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View Full Version : Hindi Kavita



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neels
November 13th, 2007, 01:36 PM
Got the idea of this thread from the movie "Maine Gandhi Ko Nahin Mara" directed by Jahnu Barua, with lead characters played superbly by Anupam Kher and Urmila Matondkar. It is a gripping tail of a family's struggle to treat the delusional dementia of their old father. A poem that runs through the movie is very inspirational and I thought I should share it with the readers. Here is the poem, especially for those who get disheartened by failures. The poem is by the famous Hindi poet Suryakant Tripathi Nirala.

But the idea behind this thread is not to share just this one poem,, rather I feel there are many more very meaningful, good hindi kavita,,, which is treat to read. So I request all the fellow members, who are interested in Hindi Poetry to post any gud "kavita" with poet name n other reference. I ll also keep coming with my fav. poems (n there r many....:)).

So here is Nirala's "Himmat Kerne Walon Ki Kabhi Haar Nahin Hoti"...

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती...

नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ्ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन् का विश्वास रगों में साहस बनता है
चढ़ कर गिरना , गिर कर चढ़ना ना अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती....

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगता है
जा जा कर खाली हाथ लौट आता है
मिलते ना सहज ही मोती पानी में
बहता दूना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती....

असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
जब तक ना सफल हो नींद चैन की त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती....

devdahiya
November 13th, 2007, 01:39 PM
Very inspiring lines Neelam! Keep it up dear!


Stay planted like a rock...come what may? Life is to live bravely...otherwise cowards die many a death daily.Lead your way holding your head high!

navingulia
November 13th, 2007, 02:17 PM
neelam ji, yo kavita tai meri bhi favorites me hain. all good thoughts i come accross i stick on the wall in front of me. this poem is also there.
thanks for sharing with everyone

neels
November 13th, 2007, 03:46 PM
The relationship between a husband and wife is based on total faith. A girl leaves her family and adopts the family of her husband. Her expectation is that her husband will take her in full confidence and share all feelings and thoughts with her. Prince Siddharta (who later became Gautam Buddha) left his wife Yashodhara and his son while they were sleeping, without telling a word, to start his own journey to Truth. That must have shattered Yashodhara. In this famous poem by Rashtra Kavi Maithili Sharan Gupt, Yashodhara wonders would she have stopped Siddhartha, had he confided in her. “For aren’t we the ones who readily prepare and send our beloved husbands even for wars, when it is required? So why would I have said no to him, if he had just told me?” she wonders. She is greatly anguished, but she loves him and even in her anguish she tries to defend his decision of leaving without telling her. A very touching poem indeed.


सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?


मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


हु*आ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

dkumars
November 13th, 2007, 03:56 PM
good neelam... both poems are really nice... especially the first one ... gr888 nirala ji... keep pouring ... i will also find some gud n will share

navingulia
November 13th, 2007, 05:36 PM
neelam ji, but ye ek stri ke andar ka antardwandh hota hai,, swabhaav se hi

abhi vo kahe "mai kya rokti unko?"
but real me rok bhi leti

neels
November 13th, 2007, 06:54 PM
Navin ji,, sahi hai aapki baat to,,,, per maine to ek famous si kavita share ki hai.... maine likhi to hai nahin....:)... yup its about the pain n conflicts of a woman.

paveldahiya
November 14th, 2007, 02:07 AM
www.kavitakosh.org

sandeeprathee
November 15th, 2007, 02:11 AM
Neelam ji thanks for such a refreshing thead :)

Dont remember exactly when i got to read my first hindi poem :confused:,but this very word reminds me of the NCERT book 'Swati' that most of us might have read dring our cherished school days.

During that time poems didnt attracted me that much as they came with a full scary package (भावार्थ, जीवनी, व्याख्या):):D.

But there were some poems that were very simple,quite realistic and so refreshing that you felt yourself getting dissolved with every word of that. Some were so motivating that unknowingly they gave us strength from time to time during high and low.

Here's one from lot many...


जो बीत गई सो बात गई




-डा. हरिवंशराय बच्चन

जो बीत गई सो बात गई !!



जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मचाता है


जो बीत गई सो बात गई !!!



जीवन में वह् था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियां
मुर्झाईं कितनी वल्लरियां
जो मुर्झाईं फ़िर कहां खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है


जो बीत गई सो बात गई !!!



मृदु मिट्टी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वो मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है


जो बीत गई सो बात गई !!!

neels
November 15th, 2007, 12:33 PM
Neelam ji thanks for such a refreshing thead :)
Dont remember exactly when i got to read my first hindi poem :confused:,but this very word reminds me of the NCERT book 'Swati' that most of us might have read dring our cherished school days.

During that time poems didnt attracted me that much as they came with a full scary package (भावार्थ, जीवनी, व्याख्या):):D.

But there were some poems that were very simple,quite realistic and so refreshing that you felt yourself getting dissolved with every word of that. Some were so motivating that unknowingly they gave us strength from time to time during high and low.

Here's one from lot many...

जो बीत गई सो बात गई



Good one...!!!

Thanks Sandeep you liked the idea.... this is what I had in my mind.. that some of the poems we read during school/college had stayed with us in our memories. I still remember some of them..... Here's one more -

अरुण यह मधुमय देश हमारा

कवि: जयशंकर प्रसाद

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कंकुम सारा॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये, समझ नीड़ निज प्यारा॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥

neels
November 15th, 2007, 12:40 PM
www.kavitakosh.org (http://www.kavitakosh.org)

Pavel Ji thanks for the link...thou it was not difficult to search too... actually the idea behind the thread was not to bring all of the hindi kavya here,, rather to bring afront some of very famous n inspiring poems. Very similar as there's Hindi Song/English song etc.... otherwise on net everything is available n everyone can search.

maliksnehlata
November 15th, 2007, 02:14 PM
Hello Neelam
Aapki sakhi wo kehkar jate poem padkar to bahut aacha laga.
Keep going like this.
Sneh lata

vijay
November 15th, 2007, 02:34 PM
Anybody remember this poem ...... i forgot the writer's name :)

भरा नहीं जो भावों से
बहती जिसमे रसधार नहीं |
ह्रदय नहीं वो पत्थर है
जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं ||

dreamer
November 15th, 2007, 02:36 PM
Anybody remember this poem ...... i forgot the writer's name :)

भरा नहीं जो भावों से
बहती जिसमे रसधार नहीं |
ह्रदय नहीं वो पत्थर है
जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं ||



Shayad .. RamDhari Singh Dinkar

cooljat
November 15th, 2007, 05:41 PM
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
कवि - शिवमंगल सिंह 'सुमन'.

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर!
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।


Rock on
Jit

cooljat
November 15th, 2007, 05:51 PM
रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन - राय कूकणा (Kukana is a Jat gotra!:))

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन
फिसलने को आतुर है कण-कण।

वक्र पगों की चाल चलता
रेत के सागर में बहता
आँधियों के इस असर में
दिशाहीन पथिक-सा हर दिन।

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन

भतूलों ने घर छुड़ाया
कुछ देर आसमाँ छुआया
पटक धरा वक्ष पर फिर से
याद दिलाया माँ का आँगन।

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन

सावन बरसा जी लगाकर
धनक धमक से गगन सजाकर
पोखर नाले भरे नीर से
नृत्य नाद संग पुलकित यौवन।

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन

घूँट अभी एक ही भरी थी
जलधारा हो चली बिखरी थी
नदी यहाँ थी होकर गुज़री
पर रहा प्यास से व्याकुल ये मन।

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन

शुष्क पात सम पल ये पसरे
बरस-बरस सावन भी बिसरे
पुरवा चुप है बरखा रूठी
अब ढीली पकड़ ढूँढे अवलंबन।

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन
फिसलने वाला है कण-कण।

Rock on
Jit

neels
November 15th, 2007, 05:52 PM
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
कवि - शिवमंगल सिंह 'सुमन'.

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
Rock on
Jit

Very Nice Jit.....

One more from 'Suman'
हम पंछी उन्मुक्त गगन के / शिवमंगल सिंह सुमन


हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालों।

neels
November 15th, 2007, 05:54 PM
रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन - राय कूकणा (Kukana is a Jat gotra!:))

रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन
फिसलने को आतुर है कण-कण।
.
.
.
रेत की मुट्ठी-सा ये जीवन
फिसलने वाला है कण-कण।

Rock on
Jit

WOW this is great... I had never read it. Thanks for sharing.

neels
November 15th, 2007, 06:11 PM
"अज्ञेय" की एक क्षणिका - This is my all time favourite, a sattire on modern city based man.

सांप

सांप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हे नहीं आया
एक बात पूछूं - उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डसना
विष कहाँ पाया ?

neels
November 15th, 2007, 06:30 PM
Hello Neelam
Aapki sakhi wo kehkar jate poem padkar to bahut aacha laga.
Keep going like this.
Sneh lata

Thanks Sneh lata.... happy to know that people still ve interest in Hindi Kavita. Yea sure I ll keep keep pouring (i mean copy-pasting :)) the poems I ve known all these years.

cooljat
November 15th, 2007, 06:42 PM
Really liked this one, Thx! :)



One more from 'Suman'
हम पंछी उन्मुक्त गगन के / शिवमंगल सिंह सुमन


हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

.
.
.

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालों।

neels
November 15th, 2007, 06:51 PM
Anybody remember this poem ...... i forgot the writer's name :)

भरा नहीं जो भावों से
बहती जिसमे रसधार नहीं |
ह्रदय नहीं वो पत्थर है
जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं ||

Vijay, These lines are by Maithili Sharan Gupt,,, but I dont remember which poem, perhaps Bharat-Bharti !

dahiyars
November 15th, 2007, 08:52 PM
Resp Neel ji

Thank you very much for posting meaningful poems of established poets like Niralaji, MaithiliSharan Gupt ji, Suman ji ,Agey ji, Jai Shankar Parshad ji and Harivans Rai Bachan ji.
I was thinking a lot whether I should post this poem or not but I could not Contain myself. I am posting a pom by PAAS "SABSEY KHATARNAK HOTA HAI-----",a part of it.
Please go through

R.S.Dahiya

neels
November 15th, 2007, 09:11 PM
I was thinking a lot whether I should post this poem or not but I could not Contain myself. I am posting a pom by PAAS "SABSEY KHATARNAK HOTA HAI-----",a part of it.
Please go through

R.S.Dahiya

Resp. Sir,

I dont think you should ve any confusion for posting such a good n realistic poem. Liked it, really nice. Thanks for sharing.

paveldahiya
November 16th, 2007, 01:24 AM
Pavel Ji thanks for the link...thou it was not difficult to search too... actually the idea behind the thread was not to bring all of the hindi kavya here,, rather to bring afront some of very famous n inspiring poems. Very similar as there's Hindi Song/English song etc.... otherwise on net everything is available n everyone can search.

Tnx Neelam ji :)

sandeeprathee
November 16th, 2007, 02:32 AM
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
कवि - शिवमंगल सिंह 'सुमन'.

Rock on
Jit

Good One Jit..

i have posted one poem from Harivansh Rai Bachhan Ji in some thread earlier. sharing with you all once again...

अग्नि पथ-हरिवंश राय बच्चन


अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !


व्रिक्ष हों भले खड़े,
हों घने,हों बडे़,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत,माँग मत!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !


तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी- कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !

यह महान द्रश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !

sandeeprathee
November 16th, 2007, 02:49 AM
some beautiful lines from Faiz Ahmed Faiz....

वो लोग बहुत खुशकिस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे

हम जीते जी मशरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा

फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया

cooljat
November 16th, 2007, 11:47 AM
Thanks Rathee bhai :) Its one classic poem by great Bachhan ji, if I aint wrong its the same poem which was used in cult movie Agneepath!! :)

n Yeah! I really liked ur signature....its sums up wat shud be the way of life!


Rock on
Jit


Good One Jit..

i have posted one poem from Harivansh Rai Bachhan Ji in some thread earlier. sharing with you all once again...

अग्नि पथ-हरिवंश राय बच्चन

अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !
.
.
.
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !

cooljat
November 16th, 2007, 12:45 PM
हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं - - ओमकृष्ण राहत



हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं रोने पे मुझे विश्वास नहीं
इस मूरख मन को जाने क्यों ये जी बहलावे रास नहीं

अश्रु का खिलौना टूट गया मुस्कान की गुडिया रूठ गई
इस चंचल बालक-मन को मगर लुटे जाने का अहसास नहीं

सब बात बिगड़ने की एक आस निरास का चक्कर है
जो बिगड़ गई वो बात नही जो टूट गई वो आस नहीं

क्या भीगा भीगा मौसम था क्या रुत है फिकी फिकी सी
हम पहरो रोया करते थे अब एक भी आंशु पास नहीं

हिम्मत तो करो पूछो तो सही इस बगिया के रखवालों से
क्यों रंग नहीं है फूलों पे क्यों कलियों में बू बास नहीं

वो आ जाएं या घर बैठे कुछ इसमे ऐसा फ़र्क नहीं
ये मिलना जुलना रश्में है दिल इन रश्मों का दास नहीं

जब सारा जीवन बीत गया तब जीने का ढब आया है
वो जाएं तो कोई शोक नहीं वो आए तो कोई उल्लास नहीं

इस बॆरन बिरहा ने मेरा ये हाल बनाया है राहत
वो कबसे सामने बैठे हैं और आंखों पे विश्वास नहीं



Rock on
Jit

neels
November 16th, 2007, 12:55 PM
i have posted one poem from Harivansh Rai Bachhan Ji in some thread earlier. sharing with you all once again...

अग्नि पथ-हरिवंश राय बच्चन
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी- कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !


Surely Sandeep, Agni Path is one of the best poems... n when Amitabh Bachchan recites it... it seems like the feelings( Bhaav) flowing out of words.

the one by Faiz... the last line...dono ko adhura chhod diya.... is so realistic.

neels
November 16th, 2007, 12:57 PM
हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं - - ओमकृष्ण राहत
जो बिगड़ गई वो बात नही जो टूट गई वो आस नहीं

जब सारा जीवन बीत गया तब जीने का ढब आया है
वो जाएं तो कोई शोक नहीं वो आए तो कोई उल्लास नहीं
Rock on
Jit

These lines are SUPERB...!!!

neels
November 16th, 2007, 01:09 PM
आ: धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत

मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा !
पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,
बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला ।
सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये ।

मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक ,
बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर ।
मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे ,
ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था ।

अर्धशती हहराती निकल गयी है तबसे ।
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने
ग्रीष्म तपे , वर्षा झूलीं , शरदें मुसकाई
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे ,खिले वन ।

औ' जब फिर से गाढी ऊदी लालसा लिये
गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर
मैने कौतूहलवश आँगन के कोने की
गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिए मिट्टी के नीचे ।
भू के अन्चल मे मणि माणिक बाँध दिए हों ।

मै फिर भूल गया था छोटी से घटना को
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन ।
किन्तु एक दिन , जब मै सन्ध्या को आँगन मे
टहल रहा था- तब सह्सा मैने जो देखा ,
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मै विस्मय से ।

देखा आँगन के कोने मे कई नवागत
छोटी छोटी छाता ताने खडे हुए है ।
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की;
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं ,प्यारी -
जो भी हो , वे हरे हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उडने को उत्सुक लगते थे
डिम्ब तोडकर निकले चिडियों के बच्चे से ।

निर्निमेष , क्षण भर मै उनको रहा देखता-
सहसा मुझे स्मरण हो आया कुछ दिन पहले ,
बीज सेम के रोपे थे मैने आँगन मे
और उन्ही से बौने पौधौं की यह पलटन
मेरी आँखो के सम्मुख अब खडी गर्व से ,
नन्हे नाटे पैर पटक , बढ़ती जाती है ।

तबसे उनको रहा देखता धीरे धीरे
अनगिनती पत्तो से लद भर गयी झाडियाँ
हरे भरे टँग गये कई मखमली चन्दोवे
बेलें फैल गई बल खा , आँगन मे लहरा
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे हरे सौ झरने फूट ऊपर को
मै अवाक रह गया वंश कैसे बढता है

यह धरती कितना देती है । धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रो को
नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को
बचपन मे , छि: स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर

रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ ।
इसमे सच्ची समता के दाने बोने है
इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है
इसमे मानव ममता के दाने बोने है
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसले
मानवता की - जीवन क्ष्रम से हँसे दिशाएं
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे ।

cooljat
November 16th, 2007, 01:15 PM
Awesome!! Indeed a class apart!
Thx! neels :)


आ: धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत


यह धरती कितना देती है । धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रो को
नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को
बचपन मे , छि: स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर

रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ ।
इसमे सच्ची समता के दाने बोने है
इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है
इसमे मानव ममता के दाने बोने है
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसले
मानवता की - जीवन क्ष्रम से हँसे दिशाएं
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे ।

cooljat
November 16th, 2007, 02:43 PM
Really Inspirin' lines for all the broken hearted :)
Dont know the poet name though...

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है
क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे
यहाँ ठोकर देने वाला हर पत्थर नही होता
क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता !!


Rock on
Jit

dahiyars
November 16th, 2007, 08:14 PM
Dear All

Lot of creative poems are being put. Thanks to all for subscriptions .
Sahir Ludhianvi was a poet of his own variety. A poem by him Vo Subah kabhi to Aayegee.

R.S.Dahiya

neels
November 18th, 2007, 01:44 PM
Dear All

Lot of creative poems are being put. Thanks to all for subscriptions .
Sahir Ludhianvi was a poet of his own variety. A poem by him Vo Subah kabhi to Aayegee.

R.S.Dahiya

Its very nice .... Sahir Ludhianvi was a great shayar.

neels
November 18th, 2007, 01:49 PM
Really Inspirin' lines for all the broken hearted :)
Dont know the poet name though...

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो
इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता !!
Rock on
Jit

Gud one Jit.....
reminds me of a quote....."we always feel bad and think that good things happen only to 'OTHERS', but we forget that we are also 'OTHERS' for someone"

neels
November 18th, 2007, 01:54 PM
यह कदम्ब का पेड़ / सुभद्राकुमारी चौहान

This one I still remember word to word,,, from the golden old days of school...

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।

cooljat
November 18th, 2007, 07:39 PM
रिश्ते - दीप्ति गुप्ता



अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है,
अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है
टूटते, बिखरते, सिसकते, कसकते
रिश्तों का इतिहास,
दिल पे लिखा है बेहिसाब!
प्यार की आँच में पक कर पक्के होते जो,
वे कब कौन सी आग में झुलसते चले जाते हैं,
झुलसते चले जाते हैं और राख हो जाते हैं!
क्या वे नियति से नियत घड़ियाँ लिखा कर लाते हैं?
कौन सी कमी कहाँ रह जाती है
कि वे अस्तित्वहीन हो जाते हैं,
या एक अरसे की पूर्ण जिन्दगी जी कर,
वे अपने अन्तिम मुकाम पर पहुँच जाते हैं!
मैंने देखे हैं कुछ रिश्ते धन-दौलत पे टिके होते हैं,
कुछ चालबाजों से लुटे होते हैं-गहरा धोखा खाए होते हैं
कुछ आँसुओं से खारे और नम हुए होते हैं,
कुछ रिश्ते अभावों में पले होते हैं-
पर भावों से भरे होते है! बड़े ही खरे होते हैं !
कुछ रिश्ते, रिश्तों की कब्र पर बने होते हैं,
जो कभी पनपते नहीं, बहुत समय तक जीते नहीं
दुर्भाग्य और दुखों के तूफान से बचते नहीं!
स्वार्थ पर बनें रिश्ते बुलबुले की तरह उठते हैं
कुछ देर बने रहते हैं और गायब हो जाते हैं;
कुछ रिश्ते दूरियों में ओझल हो जाते हैं,
जाने वाले के साथ दूर चले जाते हैं !
कुछ नजदीकियों की भेंट चढ़ जाते हैं,
कुछ शक से सुन्न हो जाते हैं !
कुछ अतिविश्वास की बलि चढ़ जाते हैं!
फिर भी रिश्ते बनते हैं, बिगड़ते हैं,
जीते हैं, मरते हैं, लड़खड़ाते हैं, लंगड़ाते हैं
तेरे मेरे उसके द्वारा घसीटे जाते हैं,
कभी रस्मों की बैसाखी पे चलाए जाते हैं!

पर कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं
जो जन्म से लेकर बचपन जवानी - बुढ़ापे से गुजरते हुए,
बड़ी गरिमा से जीते हुए महान महिमाय हो जाते हैं !
ऐसे रिश्ते सदियों में नजर आते हैं !
जब कभी सच्चा रिश्ता नजर आया है
कृष्ण की बाँसुरी ने गीत गुनगुनाया है!
आसमां में ईद का चाँद मुस्कराया है!
या सूरज रात में ही निकल आया है!
ईद का चाँद रोज नहीं दिखता,
इन्द्रधनुष भी कभी-कभी खिलता है!
इसलिए शायद - प्यारा खरा रिश्ता
सदियों में दिखता है, मुश्किल से मिलता है पर,
दिखता है, मिलता है, यही क्या कम है .. !!!



Rock on
Jit

cooljat
November 18th, 2007, 07:40 PM
जीवन - सुगंध सिन्हा



यह जीवन एक सफर है,
सुख दुख का भंवर है,
सबके जीवन की दिशा अलग है,
लोग अलग परिभाषा अलग है।
पृथक पृथक है उनके भाव,
वेश अलग अभिलाषा अलग है।
कोई जीता है स्व के लिये,
तो कोई जीवित है नव के लिये,
कहीं दिलों में प्रेम की इच्छा,
तो कहीं है जीत का जज़्बा,
कहीं सांस लेते हैं संस्कार,
तो कहीं किया कुकर्मों ने कब्ज़ा।
कहीं सत्य नन्हीं आँखों से
सूर्य का प्रकाश ढूँढ रहा,
तो कहीं झूठ का काला बादल,
मन के सपनों को रूँध रहा।
मैंने देखा है सपनों को जलते,
झुलसे मन में इच्छा पलते,
जब मन को मिलता न किनारा,
ढूँढे वह तिनके का सहारा,
सपनों की माला के मोती,
बिखरे जैसे बुझती हुई ज्योति।
दिल में एक सवाल छुपा है,
माँगे प्रभु की असीम कृपा है,
आज फिर से जीवन जी लूँ,
मन में यह विश्वास जगा है।
धूप छाँव तो प्रकृति का नियम है,
जितना जीवन मिले वो कम है,
आज वह चाहता है जीना,
न झुके कभी, ताने रहे सीना,
जीवन का उसने अर्थ है जाना,
जाना ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त स्वयं है।


Rock on
Jit

devdahiya
November 19th, 2007, 03:06 PM
NYU NAHIN BERA KISSKI SEI..PAR AAWE SE USSI LIKH DYUN SUUN:


Aaha gramya jeewan bhi kya hei,kyun na isse sab ka mann chahe

Thodde mein nirvah yahan hei
Aissa awassar aur kahan hei

Khaprellon par bellein chhai,phulli-phalli harri mann bhai
Kashi phal kushmandd kahin hein,kahin lokkiyan lattak rahi hein


Aage nahin aati...


Ek aur:

Laathhi mein guun bohot hein sadda rakhiye sangg
Gehir naddi narra jahan tahan bachaye angg
Tahan bachaye angg jhhappat kutta ko maare
Dushman davageer ho tahu ko jhhare
Keh girdhar kavirai suno ho dhuur ke bhathhi
Sab hathhiyar chhaddi ke haath mein lijje laathhi

shashiverma
November 19th, 2007, 06:46 PM
Thanks neelam....this is real gud thread...enjoyed reading almost all the peoms of this thread........sab bohut acche hai......

cooljat
November 19th, 2007, 10:50 PM
Hummmm.... had u posted some quality poems it wud hv been better then this appreciation!! :p;) hehehehhehe!... never mind Shashi!!

I know u hv gud taste for quality Poems...why dont u post some!?


waitin...



Rock on
Jit


Thanks neelam....this is real gud thread...enjoyed reading almost all the peoms of this thread........sab bohut acche hai......

samranwa
November 20th, 2007, 07:54 AM
Hi! Neelam, Must say Quality thread you've started :) Will add some of my favs for sure in spare time.. keep it up! Sam.

cooljat
November 20th, 2007, 11:43 AM
Really liked this one ... resemble a Geniune Jat traits!! :)

सर्द सुबह में - वीरेंद्र कुंवर

सूरज की मनमानी टोंके
ऊँचे स्वर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम

दुनिया की आंखों में अपना
यही गुनाह रहा
दो और दो को हर हालत में
हमने चार कहा

पाँच नहीं कह सके
तनी भोंहों के डर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम

पीछे खड़े प्रलोभन
आगे अपने खड़ा ज़मीर
लोग बाँधने चले
हवा के पाँवों में जंजीर

समझोता कुछ कर ना सके
अपने शायर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम

दुश्मन हो कर नहीं
प्रचारित करते ख़ुद को मित्र
ओढ़ दोगलेपन की चादर
रखते नहीं चरित्र

जैसे बाहर से दिखते
वैसे भीतर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम.


Rock on
Jit

neels
November 20th, 2007, 03:36 PM
अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है,
अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है

Rock on
Jit

Rishte to dilon ke hote hain.. wo kabhi tut-te nahin, marte nahin,,,,,, jo tut jate hain, bikhar jate hain, khatam ho jate hain,,, wo bandhan hote hain.

neels
November 20th, 2007, 03:43 PM
Thanks neelam....this is real gud thread...enjoyed reading almost all the peoms of this thread........sab bohut acche hai......

Hi! Neelam, Must say Quality thread you've started :) Will add some of my favs for sure in spare time.. keep it up! Sam.

Thanks dear for appreciating.. looking fwd to some additions from yu gals as well.

neels
November 20th, 2007, 03:46 PM
Really liked this one ... resemble a Geniune Jat traits!! :)
सर्द सुबह में - वीरेंद्र कुंवर
दुनिया की आंखों में अपना
यही गुनाह रहा
दो और दो को हर हालत में
हमने चार कहा

दुश्मन हो कर नहीं
प्रचारित करते ख़ुद को मित्र
ओढ़ दोगलेपन की चादर
रखते नहीं चरित्र

जैसे बाहर से दिखते
वैसे भीतर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम.
Rock on
Jit

Gud one Jit,,,, reminded me of Diplomacy/St.fwdness thread at JL...;)

dkumars
November 20th, 2007, 04:54 PM
Rishte to dilon ke hote hain.. wo kabhi tut-te nahin, marte nahin,,,,,, jo tut jate hain, bikhar jate hain, khatam ho jate hain,,, wo bandhan hote hain.


Wah neelam ji ek aur kavita ban gayi... formatting change kar raha hoon bas ... aapne anjaane mein ek aur kavita likh daali

Rishte toh dilon ke hote hain, shareero ke nahi,
Rishtein kabhi tut-te nahin, marte nahin
jo tut jate hain, bikhar jate hain, khatam ho jate hain
wo bandhan hote hain, rishtein nahi

neels
November 20th, 2007, 05:11 PM
NYU NAHIN BERA KISSKI SEI..PAR AAWE SE USSI LIKH DYUN SUUN:


Aaha gramya jeewan bhi kya hei,kyun na isse sab ka mann chahe

Thodde mein nirvah yahan hei
Aissa awassar aur kahan hei
Khaprellon par bellein chhai,phulli-phalli harri mann bhai
Kashi phal kushmandd kahin hein,kahin lokkiyan lattak rahi hein

Aage nahin aati...
Ek aur:

Laathhi mein guun bohot hein sadda rakhiye sangg
Gehir naddi narra jahan tahan bachaye angg
Tahan bachaye angg jhhappat kutta ko maare
Dushman davageer ho tahu ko jhhare
Keh girdhar kavirai suno ho dhuur ke bhathhi
Sab hathhiyar chhaddi ke haath mein lijje laathhi

Achchi hai sir bahut.... trying to convert them in Hindi font... to match the spirit of thread and also so that more ppl can enjoy them.....

आहा ग्राम्य जीवन भी क्या है, क्यूं न इसे सबका मन चाहे
थोड़े में निर्वाह यहां है
ऐसा अवसर और कहां है
खप्रेल्लों पर बेलें छाई, फूली- फली हरी मन भाई
कशी फल कुश्मान्द कहीं है
कहीं लौकियां लटक रही हैं.....

the second one.....

लाठी में गुण बहुत हैं, सदा रखिये संग
गहरी नदी नाला जहां, तहां बचाए अंग
तहां बचाए अंग, झटपट कुत्ता को मारे
दुश्मन दवागीर हो ताहू को झाडे
कह गिरधर कविराए सुनो हो दूर के भाथी
सब हथियार छोड़ के हाथ में लीजिये लाठी

neels
November 20th, 2007, 05:16 PM
बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद


बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।

खग कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।

अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।

neels
November 20th, 2007, 05:17 PM
Wah neelam ji ek aur kavita ban gayi... formatting change kar raha hoon bas ... aapne anjaane mein ek aur kavita likh daali

Rishte toh dilon ke hote hain, shareero ke nahi,
Rishtein kabhi tut-te nahin, marte nahin
jo tut jate hain, bikhar jate hain, khatam ho jate hain
wo bandhan hote hain, rishtein nahi

Wah- wah DK tum bhi kavi ban gaye....:):p;)

spdeshwal
November 20th, 2007, 08:03 PM
I would like to share a couple of my favourite Hindi poems




पुष्प की अभिलाषा
- माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

spdeshwal
November 20th, 2007, 08:06 PM
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे—सुभद्राकुमारी चौहान की बाल-कविता



यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्*हैया बनता धीरे धीरे
ले देती यदि मुझे तुम बांसुरी दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्*हें नहीं कुछ कहता, पर मैं चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्*मां ऊंचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मज़े से मैं बांसुरी बजाता
अम्*मां-अम्*मां कह बंसी के स्*वरों में तुम्*हें बुलाता


सुन मेरी बंसी मां, तुम कितना खुश हो जातीं
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं
तुमको आती देख, बांसुरी रख मैं चुप हो जाता
एक बार मां कह, पत्*तों में धीरे से छिप जाता
तुम हो चकित देखती, चारों ओर ना मुझको पातीं
व्*या*कुल सी हो तब, कदंब के नीचे तक आ जातीं
पत्*तों का मरमर स्*वर सुनकर,जब ऊपर आंख उठातीं
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितनी घबरा जातीं


ग़ुस्*सा होकर मुझे डांटतीं, कहतीं नीचे आ जा
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहतीं मुन्*ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्*हें मिठाई दूंगी
नये खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी
मैं हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वहीं कहीं पत्*तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मैं ना उतरकर आता
मां, तब मां का हृदय तुम्*हारा बहुत विकल हो जाता


तुम आंचल फैलाकर अम्*मां, वहीं पेड़ के नीचे
ईश्*वर से विनती करतीं, बैठी आंखें मीचे
तुम्*हें ध्*यान में लगी देख मैं, धीरे धीरे आता
और तुम्*हारे आंचल के नीचे छिप जाता
तुम घबराकर आंख खोलतीं, और मां खुश हो जातीं
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे ।।

vijay
November 20th, 2007, 10:05 PM
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

Wonderful post Sir ...... i was waiting for a post like this ..... since long here

I wonder how many people think about this here ............ :)

Infact some ppl posted nice one here... just like you ...

I believe it may be a landmark of our great Hindi poetry at jatland .............. i mean genuine Hindi poetry of class

hope ppl will respect this feeling :)

neels
November 20th, 2007, 10:06 PM
I would like to share a couple of my favourite Hindi poems
पुष्प की अभिलाषा
- माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

Thank u Sir for sharing this one... I guess everyone has read "Pushp Ki Abhilasha" in their school days.... I wanted to post this since day one,,,, but was just waiting if anyone else come with this one.

dkumars
November 20th, 2007, 11:05 PM
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे—सुभद्राकुमारी चौहान की बाल-कविता



यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्*हैया बनता धीरे धीरे
ले देती यदि मुझे तुम बांसुरी दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्*हें नहीं कुछ कहता, पर मैं चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्*मां ऊंचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मज़े से मैं बांसुरी बजाता
अम्*मां-अम्*मां कह बंसी के स्*वरों में तुम्*हें बुलाता


सुन मेरी बंसी मां, तुम कितना खुश हो जातीं
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं
तुमको आती देख, बांसुरी रख मैं चुप हो जाता
एक बार मां कह, पत्*तों में धीरे से छिप जाता
तुम हो चकित देखती, चारों ओर ना मुझको पातीं
व्*या*कुल सी हो तब, कदंब के नीचे तक आ जातीं
पत्*तों का मरमर स्*वर सुनकर,जब ऊपर आंख उठातीं
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितनी घबरा जातीं


ग़ुस्*सा होकर मुझे डांटतीं, कहतीं नीचे आ जा
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहतीं मुन्*ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्*हें मिठाई दूंगी
नये खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी
मैं हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वहीं कहीं पत्*तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मैं ना उतरकर आता
मां, तब मां का हृदय तुम्*हारा बहुत विकल हो जाता


तुम आंचल फैलाकर अम्*मां, वहीं पेड़ के नीचे
ईश्*वर से विनती करतीं, बैठी आंखें मीचे
तुम्*हें ध्*यान में लगी देख मैं, धीरे धीरे आता
और तुम्*हारे आंचल के नीचे छिप जाता
तुम घबराकर आंख खोलतीं, और मां खुश हो जातीं
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे ।।



Thanks deswal ji ... bahut din se dhoondh raha tha

sandeeprathee
November 20th, 2007, 11:54 PM
this thread indeed turning into a very nice/refreshing one with some great contributions by fellow members... liked all of the poems :)


आ: धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत

मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा !

these very lines make me feel that childrens imaginations have no boundries, sometimes imaginations takes shapes that are quite unrealistic in real world but this is what childhood is all about.... floating in clouds....fairy tales...

Good poem..Neelam ji :)


Really Inspirin' lines for all the broken hearted :)
Dont know the poet name though...

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता !!

Rock on
Jit

One more good one from Jit :)




I would like to share a couple of my favourite Hindi poems




पुष्प की अभिलाषा
- माखनलाल चतुर्वेदी

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

Deshwal ji thanks for posting this one........i remember using some lines from this poem while writing essays in Hindi during school time. :)

sandeeprathee
November 20th, 2007, 11:59 PM
some lines are going through my mind......dont exactly know the poem and poet :confused:. writing 2 lines...

सच हम नही सच तुम नही
सच है महज संघर्ष ही

will be more than happy if someone can post the complete poem with poets name. :)

sandeeprathee
November 21st, 2007, 12:11 AM
मोड़__

सफर में मिला था वो मुझे इक मोड़ पर
फ़िर बढ़ चला था में उसे वहीं छोड़ कर |
लेकिन अब उस मोड़ पर लौटने का मन करता है
ये मुमकिन नही फ़िर भी क्यों ये दिल मचलता है |

अब तो ये उम्मीद है, आए फ़िर मोड़ कोई वैसा
वो मिल जाएं फ़िर किसी दिन यूंही |
उस मोड़ के इन्तजार में जाने कितने मोड़ गए गुजर
मिले कई मगर, हमसफ़र मिला न उस जैसा |

wrote these few lines long time back.
Hope you all like it...:confused:

cooljat
November 21st, 2007, 03:25 PM
Well, read these lines somewhere thou dont know the Poet name but Poem is a class apart!! :)

जिन्दगी के मोड्


जिन्दगी के मोड् खुद किस-किस तरफ़ को ले गए
उम्र ढलती गई और हम सोचते ही रह गए,

इक दौर था जब सफ़र में हर शख्स अपने साथ था
उस कारवां के अब यहां बस नामो-निशान ही रह गए,

जब ज़िन्दगी की शाम ढली तो बुझ गइ जलती श़मा
और यूं तड़पते हुए परवाने सब सह गए,

रवां थी कश्ती मगर हर तरफ़ अन्धेरा था
चराग दिल की लौ से जलाकर हम उजाला कर गये

ग़म से मुझे कोई रंज नहीं पर अऱमान खुशियों का था
अब आंसू की तो बात ही क्या हम ज़हर हंस कर पी गए,

तो क्या हुआ ग़र ज़िन्दगी ने दर्द का दामन दिया
हमने उसमें भी खु़शी के हर रंग भर दिए,

ऊंचे-नीचे रास्तों पे कइ बार जब लड़्खड़ाए कदम
इक बार ठहरे, फिर संभल कर हम ज़िन्दगी को जी गए।



Rock on
Jit

cooljat
November 21st, 2007, 03:58 PM
Sandeep Bhai, Really an outstanding poem :)
Indeed deep touching down inside!!
Really liked it bro, Thx for posting :)
keep writin'...



Rock on
Jit


मोड़__

सफर में मिला था वो मुझे इक मोड़ पर
फ़िर बढ़ चला था में उसे वहीं छोड़ कर |
लेकिन अब उस मोड़ पर लौटने का मन करता है
ये मुमकिन नही फ़िर भी क्यों ये दिल मचलता है |

अब तो ये उम्मीद है, आए फ़िर मोड़ कोई वैसा
वो मिल जाएं फ़िर किसी दिन यूंही |
उस मोड़ के इन्तजार में जाने कितने मोड़ गए गुजर
मिले कई मगर, हमसफ़र मिला न उस जैसा |

wrote these few lines long time back.
Hope you all like it...:confused:

vijay
November 21st, 2007, 08:45 PM
'नीरज' की लिखी एक कविता :



बदल गये अब नयन तुम्हारे ||


साथ साथ चले हम डगर पर
में रो रोकर तुम हंस हंसकर
लिए गोद में किन्तु न तुमने मेरे अश्रु विचारे |
बदल गये अब नयन तुम्हारे ||


जिनमे स्नेह-सिंधु लहराया
प्रीति भरा काजल मुस्काया
देखे उनमे आज घृणा के धधक रहे अंगारे ||
बदल गये अब नयन तुम्हारे ||


सोच रहा मैं एकाकी मन
कितना कठिन प्रेम का बन्धन
वहीं गये हर बार जहाँ हम जीती बाजी हारे ||
बदल गये अब नयन तुम्हारे ||

vijay
November 21st, 2007, 09:17 PM
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

चाहता था जब ह्रदय बनना तुम्हारा ही पुजारी
छीनकर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी
आंसुओं से दिन-रात मैंने चरण धोये तुम्हारे
न भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी
अब जब तरस कर पूजा भावना भी मर चुकी है
तुम चली मुझको दिखाने भावमय संसार प्रेयसि !

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

अब मचलते है न नयनो में कभी रंगीन सपने
है गए भर से किये थे जो ह्रदय में घाव तुमने
कल्पना में अब परी बनकर उतर पाती नहीं तुम
पास जो थे स्वयं तुमने मिटाये चिन्ह अपने
दुखी मन में जब तुम्हारी याद ही नहीं बाकी कोई
फिर कहाँ से मैं करूं आरंभ यह व्यापार प्रेयसि !

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

अश्रु-सी है आज तैरती याद उस दिन की नज़र में
थी पड़ी जब नाव अपनी काल के तूफानी भंवर में
कूल पर तब हो खड़ी तुम व्यंग्य मुझ पर कर रही थी
पा सका था पार मैं खुद डूब कर सागर-लहर मैं
हर लहर ही आज जब लगाने लगी है पार मुझको
तुम चली देने मुझको तब एक जड़ पतवार प्रेयसि !

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

neels
November 22nd, 2007, 12:39 AM
मोड़__

सफर में मिला था वो मुझे इक मोड़ पर
फ़िर बढ़ चला था में उसे वहीं छोड़ कर |

अब तो ये उम्मीद है, आए फ़िर मोड़ कोई वैसा
वो मिल जाएं फ़िर किसी दिन यूंही |
उस मोड़ के इन्तजार में जाने कितने मोड़ गए गुजर
मिले कई मगर, हमसफ़र मिला न उस जैसा |

wrote these few lines long time back.
Hope you all like it...:confused:

Very touchin' bro...... u write really well.. keep it up.
cudnt find the other poem which u mentioned... seems like ve read some time.. bt nt getting the lines correct.

Ur this poem reminded me of a thraed i started few days ago.... Ai Waqt Rukja....... truly.....

लेकिन अब उस मोड़ पर लौटने का मन करता है
ये मुमकिन नही फ़िर भी क्यों ये दिल मचलता है |

now few lines to add of similar nature.....

kabhi haadson ka safar mile,
kabhi mushkilon ki dagar mile
ye charag hain meri raah ke,
mujhe manjilon ki talaash hai.

koi ho safar mein jo saath de,
main rukun jahan koi haath de,
meri manjilen abhi door hain,
mujhe raaston ki talaash hai.

sandeeprathee
November 23rd, 2007, 12:35 AM
Thanks JEET that you liked my last post :)

thanks a lot Neelam ji :). will post some more for sure.

some time back i got to listen 2-3 gajals from KAHAKSHAN by Jagjit Singh. one of them was written by Majaj Sahib...noted poet/shayar of his time. posting here the lyrics of that class act....



आवारा__ मजाज लखनवी

शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
गैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ?
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?

ये रूपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफी का तस्सवुर, जैसे आशिक का हाल
आह ! लेकिन कौन समझे कौन जाने दिल का हाल ?
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?

रात हँस-हँस कर ये कहती है कि मैखाने में चल
फिर किसी शहनाज-ए-लालारुख के काशाने में चल
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?

रास्ते में रुक के दम ले लूँ, मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ, मेरी फितरत नहीं
और कोई हमनवां मिल जाये, ये किस्मत नहीं
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?

spdeshwal
November 23rd, 2007, 02:17 AM
I believe, all members have read and sang this beauty of Great poetess Subhadhra kumari Chauhan in your school days:


सिंहासन हिल उठे, राजवंशो ने भृकुटी तानी थी
बूढे भारत में आई, फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की, कीमत सबने पहचानी थी
दूर फ़िरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वो तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
खूब लडी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी

Cheers!

vijay
November 23rd, 2007, 02:21 AM
I believe, all members have read and sang this beauty of Great poetess Subhadhra kumari Chauhan in your school days:


सिंहासन हिल उठे, राजवंशो ने भृकुटी तानी थी
बूढे भारत में आई, फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की, कीमत सबने पहचानी थी
दूर फ़िरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वो तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
खूब लडी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी

Cheers!

Sooooo nice .................. plz post the complete poem !

cooljat
November 23rd, 2007, 01:16 PM
Nice soulful philosophical one ... dont remember the poet name thou.. :)

शाम..........

उसकी आहट से मन में पुलक है,
प्रतिदिन उसका रूप अलग है,
छोड़ के बैठा मैं सब काम,
देखो आने वाली शाम ...

भोर, दुपहरी के बाद वो आती
कुछ इठलाती, कुछ मुसकाती
हवा के झोंके वो संग लाती
मेरी प्यारी, निराली शाम...

सूरज का चेहरा तन जाता
विद्यालय से वापस मैं आता
बढ़ती गर्मी, तपता हर ग्राम
तब ठंडक पहुँचाती शाम...

बचपन बीता आई जवानी
जीवन की थी बदली कहानी
इंतज़ार में थी हैरानी
पर वो आती, संग शाम सुहानी...

जीवन का ये अंतिम चरण है
संग स्मृतियों के कुछ क्षण हैं
आज इन्हें जब वो लेकर आती
और भी न्यारी लगती शाम....


Rock on
Jit

cooljat
November 23rd, 2007, 02:16 PM
वैसे तो बरसात में शायद ही मेघविहीन आकाश नज़र आता है। पर ग़र आसमान साफ हो तो इधर-उधर बिखरे तारों का सौंदर्य देखते ही बनता है। गर्मी में देर रात बिजली गुल होने से छत पर खाट के ऊपर लेटे-लेटे कितनी बार ही इस दृश्य का आनंद उठाया है। पर तारों भरी रात, अगर एक झरने के बहते जल के सानिध्य में गुजारी जाए तो.....? पानी पर टिमटिमाते तारों के लहराते प्रतिबिंब का सम्मोहन भी क्या खूब होगा। तो चलें अनुभव करें वर्मा जी का ये अद्बुत शब्दचित्र... :)


ये गजरे तारों वाले - रामकुमार वर्मा


इस सोते संसार बीच,
जग कर, सज कर रजनी बाले!
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले?

मोल करेगा कौन,
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥

निर्झर के निर्मल जल में,
ये गजरे हिला हिला धोना।
लहर हहर कर यदि चूमे तो,
किंचित् विचलित मत होना॥

होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
लहरों ही में लहराना।
'लो मेरे तारों के गजरे'
निर्झर-स्वर में यह गाना॥

यदि प्रभात तक कोई आकर,
तुम से हाय! न मोल करे।
तो फूलों पर ओस-रूप में
बिखरा देना सब गजरे॥


रॉक ऑन,
जीत.

shashiverma
November 23rd, 2007, 02:48 PM
kabhi haadson ka safar mile,
kabhi mushkilon ki dagar mile
ye charag hain meri raah ke,
mujhe manjilon ki talaash hai.

koi ho safar mein jo saath de,
main rukun jahan koi haath de,
meri manjilen abhi door hain,
mujhe raaston ki talaash hai.

This is gud one neel.....I guess this was also the title song of the serial "Phir wahi talas". and I like both the serial and song a lot.......especially the line ....meri manjilen abhi dor hain..mujhe raaston kei talas hai......

and some of the beautiful lines from gulzar.....

Aadmi Bulbula hai Paani ka,
Aur Paani Kee Behtee Sat-hey par,
Toot-ta bhee hai, Doobta bhee hai.
Phir Ubharta hai, Phir sey Behtaa hai,
Naa Samandar Nigal Sakaa Isko,
Naa Tawaareeqh Tor Paayi hai.
Waqt kee Mauj par Sadaa Behtaa,
Aadmi Bulbula hai Paani ka.

ज़िंदगी क्या है जानने के लिये
ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है
आज तक कोई भी रहा तो नही

आओ हम सब पहन ले आइने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सारे हसीन लगेंगे यहाँ

है नही जो दिखाई देता है
आइने पर छपा हुआ चेहरा
तर्जुमा आइने का ठीक नही

neels
November 23rd, 2007, 08:23 PM
I guess everyone wud ve heard this one in their life time.. aur kuch lines gungunaayi bhi hongi..... Here its for all to go thru the same patriotic feel once again....

झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।


चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।


वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|


महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,


चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।


निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।


अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।


रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।


बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।


यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।


हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,


जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।


लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।


ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।


अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।


पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।


घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,


दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।


तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

neels
November 23rd, 2007, 08:40 PM
The last one was very long... so here's a small one to refresh....

स्नेह-निर्झर बह गया है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"



स्नेह-निर्झर बह गया है!
रेत ज्यों तन रह गया है।


आम की यह डाल जो सुखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-"

जीवन दह गया है।

दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-
ठाट जीवन का वही

जो ढह गया है।

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही

कवि कह गया है।

dharmpaltakhar
November 24th, 2007, 12:59 PM
(posting again as suggested by Jit)

एक नन्ही मुन्नी सी पुजारन
पतली बाहें, पतली गर्दन

भोर भये मंदिर आई है
आई नहीं है, माँ लायी है

वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद भी आँखों में भरी है

ठोड़ी तक लट आयी हुई है
यूँही सी लहराई हुई है

आँखों में तारों सी चमक है
मुखड़े पे चांदनी की झलक है

कैसी सुंदर है, क्या कहिये
नन्ही सी एक सीता कहिये

धुप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर एक फूल खिला है

चाँद का टुकडा फूल की डाली
कमसिन सीधी भोली-भाली

कान में चांदी की बाली है
हाथ में पीतल की थाली है

दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ग्यान नहीं है

कैसी भोली और सीधी है
मंदिर की छत देख रही है

माँ बढ़ कर चुटकी लेती है
चुपके-चुपके हंस देती है

हँसना रोना उसका मजहब
उसको पूजा से क्या मतलब

खुद तो आई है मंदिर में
मन उसका है गुडिया घर में

neels
November 24th, 2007, 08:03 PM
This is gud one neel.....I guess this was also the title song of the serial "Phir wahi talas". and I like both the serial and song a lot.......especially the line ....meri manjilen abhi dor hain..mujhe raaston kei talas hai......



Yea Shashi,,, thsi is same.. the title song of Phir Wahi Talaash.

neels
November 24th, 2007, 08:04 PM
Gud contribution by all.... Keep It Up...!!!

sandeeprathee
November 26th, 2007, 04:55 AM
कमरे से बाहर पारा शून्य से नीचे लुढ़क चुका है, कमरे के अंदर हीटर की गर्मी में मैं भी अपने कम्बल में नींद के आगोश मैं लुढ़कने ही वाला था की अचानक ख्याल आया आज कुछ लिखा जाए. पैन पेपर उठाने की हिम्मत नही हुई तो google translater पर ही उँगलियाँ चलने लगी. जो लिखा है हो सकता है सच्चाई से परे हो पर मुझे सोचने को मजबूर जरूर करता है .... 'जब आगो तभी सवेरा' के फलसफे को चरित्रार्थ करता है.


नव वर्ष -----

नव वर्ष की फ़िर से आहट हुई है
फ़िर कोई निश्चय लेने की चाहत हुई है
फ़िर से ख़ुद को खंगालने की कोशिश की
सोचा कुछ मिल जाए इस बार बदलने को

सोचा नव वर्ष में सदा सच बोलूँगा
फ़िर लगा की ऐसा निश्चय लिया तो
शायद पूरे वर्ष मुहँ ही नही खोलूँगा

सोचा छल कपट से दूर रहूँगा
लेकिन ऐसा निश्चय करना ही शायद
ख़ुद से छल करना है
छल के बगैर इस ज़माने में
अपना कहाँ काम चलना है

फ़िर कुछ और ख्याल आए
चलो इस बार सब ऐब छोड़ देते हैं
सदाचार की राह चलते हैं
समाज का कुछ ख्याल करते हैं
अपनी कुछ इमेज बदलते हैं

अचानक से सिर भारी होने लगा
बार बार करवटें बदलने लगा
शायद में किसी गहरे सपने से जगने लगा
हाँ सपना ही तो था ..सपना ही होगा
वरना कौन इतना सोचता है

आत्मग्लानी होने लगी
अपने स्वार्थ से अलग होने की इच्छा प्रबल होने लगी
उसी इक क्षण में मैंने प्रण लिया ख़ुद को बदलने का
नेक राह पर चलने का इक अच्छा इंसान बनने का

और शायद वही क्षण मेरे लिए नव वर्ष की शुरुवात थी
मैं स्वार्थ की चादर उतार चुका था
मेरा हैप्पी न्यू येअर हो चुका था :)

cooljat
November 26th, 2007, 11:37 AM
A deep philosophical poem to ponder...:)


ज़िंदगी - अजंता शर्मा


जो सुलगता है उसे चुपचाप बुझाना है,
ज़िंदगी तेरे रंग में रंग जाना है।

गर पढ़कर कोई सहर का दिलासा दे,
जला के हाथ लकीरों को मिटाना है।

पोंछना है धुँधले ख़्वाबों की तस्वीर,
कोरी ही सही, हक़ीक़त से दीवार सजाना है।

गर लड़ना ही है तो खाली क्यों उतरें?
अपनी तरकश को ज़ख्मों का ख़ज़ाना है।



Rock on
Jit

mukeshkumar007
November 26th, 2007, 01:35 PM
कमरे से बाहर पारा शून्य से नीचे लुढ़क चुका है, कमरे के अंदर हीटर की गर्मी में मैं भी अपने कम्बल में नींद के आगोश मैं लुढ़कने ही वाला था की अचानक ख्याल आया आज कुछ लिखा जाए. पैन पेपर उठाने की हिम्मत नही हुई तो google translater पर ही उँगलियाँ चलने लगी. जो लिखा है हो सकता है सच्चाई से परे हो पर मुझे सोचने को मजबूर जरूर करता है .... 'जब आगो तभी सवेरा' के फलसफे को चरित्रार्थ करता है.


नव वर्ष -----

नव वर्ष की फ़िर से आहट हुई है
फ़िर कोई निश्चय लेने की चाहत हुई है
फ़िर से ख़ुद को खंगालने की कोशिश की
सोचा कुछ मिल जाए इस बार बदलने को

सोचा नव वर्ष में सदा सच बोलूँगा
फ़िर लगा की ऐसा निश्चय लिया तो
शायद पूरे वर्ष मुहँ ही नही खोलूँगा

सोचा छल कपट से दूर रहूँगा
लेकिन ऐसा निश्चय करना ही शायद
ख़ुद से छल करना है
छल के बगैर इस ज़माने में
अपना कहाँ काम चलना है

फ़िर कुछ और ख्याल आए
चलो इस बार सब ऐब छोड़ देते हैं
सदाचार की राह चलते हैं
समाज का कुछ ख्याल करते हैं
अपनी कुछ इमेज बदलते हैं

अचानक से सिर भारी होने लगा
बार बार करवटें बदलने लगा
शायद में किसी गहरे सपने से जगने लगा
हाँ सपना ही तो था ..सपना ही होगा
वरना कौन इतना सोचता है

आत्मग्लानी होने लगी
अपने स्वार्थ से अलग होने की इच्छा प्रबल होने लगी
उसी इक क्षण में मैंने प्रण लिया ख़ुद को बदलने का
नेक राह पर चलने का इक अच्छा इंसान बनने का

और शायद वही क्षण मेरे लिए नव वर्ष की शुरुवात थी
मैं स्वार्थ की चादर उतार चुका था
मेरा हैप्पी न्यू येअर हो चुका था :)

shandaar !!

mukeshkumar007
November 26th, 2007, 01:54 PM
Well, read these lines somewhere thou dont know the Poet name but Poem is a class apart!! :)

जिन्दगी के मोड्


जिन्दगी के मोड् खुद किस-किस तरफ़ को ले गए
उम्र ढलती गई और हम सोचते ही रह गए,

इक दौर था जब सफ़र में हर शख्स अपने साथ था
उस कारवां के अब यहां बस नामो-निशान ही रह गए,

जब ज़िन्दगी की शाम ढली तो बुझ गइ जलती श़मा
और यूं तड़पते हुए परवाने सब सह गए,

रवां थी कश्ती मगर हर तरफ़ अन्धेरा था
चराग दिल की लौ से जलाकर हम उजाला कर गये

ग़म से मुझे कोई रंज नहीं पर अऱमान खुशियों का था
अब आंसू की तो बात ही क्या हम ज़हर हंस कर पी गए,

तो क्या हुआ ग़र ज़िन्दगी ने दर्द का दामन दिया
हमने उसमें भी खु़शी के हर रंग भर दिए,

ऊंचे-नीचे रास्तों पे कइ बार जब लड़्खड़ाए कदम
इक बार ठहरे, फिर संभल कर हम ज़िन्दगी को जी गए।



Rock on
Jit

bhai really good one !! and good thread indeed ! aur ane de aisi

cooljat
November 26th, 2007, 03:54 PM
One more Gem of a poem, very much inspirin, very much deep touchin' n msg givin' .. :)

मेरा दोस्त मेरा आसमां - आश्विन गांधी


जब कभी परेशानी होती है
आसमां को देख लेता हूँ
गम हल्का हो जाता है
मुस्कराहट छा जाती है
दिल पुकार उठता है
मेरा दोस्त मेरा आसमां

चित्रकार कोई अजीब
आसमां बना दिया
सुबह हो या शाम
दिन हो या रात
सूरज चाँद
टिमटिमाते तारे
कभी बादल कभी बारिश
कोहरा कभी कभी इन्द्रधनुष

जब भी देखूं
रूप नए रंग निराले
अनंत अगाध असीम
समा ले मुझे
आसमां दोस्त मेरा
मेरा दोस्त मेरा आसमां.


Rock on
Jit

mukeshkumar007
November 26th, 2007, 05:33 PM
One more Gem of a poem, very much inspirin, very much deep touchin' n msg givin' .. :)

मेरा दोस्त मेरा आसमां - आश्विन गांधी


जब कभी परेशानी होती है
आसमां को देख लेता हूँ
गम हल्का हो जाता है
मुस्कराहट छा जाती है
दिल पुकार उठता है
मेरा दोस्त मेरा आसमां

चित्रकार कोई अजीब
आसमां बना दिया
सुबह हो या शाम
दिन हो या रात
सूरज चाँद
टिमटिमाते तारे
कभी बादल कभी बारिश
कोहरा कभी कभी इन्द्रधनुष

जब भी देखूं
रूप नए रंग निराले
अनंत अगाध असीम
समा ले मुझे
आसमां दोस्त मेरा
मेरा दोस्त मेरा आसमां.


Rock on
Jit

bhai !! sehi maie emotional kar diya re yaar teri is kavita ne to ! wonderful brother !!

neels
November 26th, 2007, 07:07 PM
कमरे से बाहर पारा शून्य से नीचे लुढ़क चुका है, कमरे के अंदर हीटर की गर्मी में मैं भी अपने कम्बल में नींद के आगोश मैं लुढ़कने ही वाला था की अचानक ख्याल आया आज कुछ लिखा जाए. पैन पेपर उठाने की हिम्मत नही हुई तो google translater पर ही उँगलियाँ चलने लगी. जो लिखा है हो सकता है सच्चाई से परे हो पर मुझे सोचने को मजबूर जरूर करता है .... 'जब आगो तभी सवेरा' के फलसफे को चरित्रार्थ करता है.


नव वर्ष -----

नव वर्ष की फ़िर से आहट हुई है
फ़िर कोई निश्चय लेने की चाहत हुई है
फ़िर से ख़ुद को खंगालने की कोशिश की
सोचा कुछ मिल जाए इस बार बदलने को

सोचा नव वर्ष में सदा सच बोलूँगा
फ़िर लगा की ऐसा निश्चय लिया तो
शायद पूरे वर्ष मुहँ ही नही खोलूँगा

सोचा छल कपट से दूर रहूँगा
लेकिन ऐसा निश्चय करना ही शायद
ख़ुद से छल करना है
छल के बगैर इस ज़माने में
अपना कहाँ काम चलना है

फ़िर कुछ और ख्याल आए
चलो इस बार सब ऐब छोड़ देते हैं
सदाचार की राह चलते हैं
समाज का कुछ ख्याल करते हैं
अपनी कुछ इमेज बदलते हैं

अचानक से सिर भारी होने लगा
बार बार करवटें बदलने लगा
शायद में किसी गहरे सपने से जगने लगा
हाँ सपना ही तो था ..सपना ही होगा
वरना कौन इतना सोचता है

आत्मग्लानी होने लगी
अपने स्वार्थ से अलग होने की इच्छा प्रबल होने लगी
उसी इक क्षण में मैंने प्रण लिया ख़ुद को बदलने का
नेक राह पर चलने का इक अच्छा इंसान बनने का

और शायद वही क्षण मेरे लिए नव वर्ष की शुरुवात थी
मैं स्वार्थ की चादर उतार चुका था
मेरा हैप्पी न्यू येअर हो चुका था :)

Very gud... really gud.

neels
November 26th, 2007, 07:09 PM
One more Gem of a poem, very much inspirin, very much deep touchin' n msg givin' .. :)

मेरा दोस्त मेरा आसमां - आश्विन गांधी
जब कभी परेशानी होती है
आसमां को देख लेता हूँ
गम हल्का हो जाता है
मुस्कराहट छा जाती है
दिल पुकार उठता है
मेरा दोस्त मेरा आसमां
Rock on
Jit

simply nice.

neels
November 26th, 2007, 07:17 PM
बढे़ चलो, बढे़ चलो / सोहनलाल द्विवेदी

न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

घटा घिरी अटूट हो,
अधर में कालकूट हो,
वही सुधा का घूंट हो,
जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

गगन उगलता आग हो,
छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फाग हो,
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

चलो नई मिसाल हो,
जलो नई मिसाल हो,
बढो़ नया कमाल हो,
झुको नही, रूको नही, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

अशेष रक्त तोल दो,
स्वतंत्रता का मोल दो,
कड़ी युगों की खोल दो,
डरो नही, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

sandeeprathee
November 27th, 2007, 02:13 AM
बढे़ चलो, बढे़ चलो / सोहनलाल द्विवेदी

न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।



Good one Neelam ji :)

theres a similar poem dont remember it exactly writing 2 lines that comes to my mind rite now:

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

Also wants to add some lines in this post that my Grandmother used to recite before going to bed. it again might be a long poem but i just got hold of few lines....

खाट पे लोट राम की औट
माधो सांकल ब्रह्मा ताला
सो जा काया राम रुखाला |

kanishka
November 27th, 2007, 04:19 AM
bhai !! sehi maie emotional kar diya re yaar teri is kavita ne to ! wonderful brother !!

kaarvan nikal gaya gubaa:)r dekhte rahe

cooljat
November 27th, 2007, 07:14 AM
Simply Awesome poem with full of Zeal! :)


बढे़ चलो, बढे़ चलो / सोहनलाल द्विवेदी

न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

kanishka
November 27th, 2007, 04:28 PM
बढे़ चलो, बढे़ चलो / सोहनलाल द्विवेदी

न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।



good one but I feel that its Hato Nahin, Dato Vahin ?:)

cooljat
November 27th, 2007, 06:53 PM
Indeed one gem of a poem about Life's blues n bliss :) Inspirin' ...


सुख और दुख - डॉ आदित्य शुक्ल



सुख–दुख जैसे धूप और छाया, पल पल आता जाता है।
सुख में कितना हँसता था तू दुख से क्यों घबराता है।

घोर अमावस का मतलब है कल फिर चंदा आएगा।
कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष हो, पखवाड़े का नाता है।

कितनी प्यारी लगती सबको रामचंद्र की वह गाथा।
जिसमें सुख तो नाम मात्र है, दुख संकट ही ज़्यादा है।

जिसके सारे सच हो सपने, जग में ऐसा कोई नहीं।
तेरा सपना टूट गया तो क्यों इतना पछताता है।

पत्थर की यदि होती वाणी, तब तुम को बतलाता वह।
कितनी पीड़ाएँ सह सहकर मूरत वह बन पाता है।

सुख दुख जैसे धूप और छाया, पल पल आता जाता है।
सुख में कितना हँसता था तू दुख से क्यों घबराता है।


Rock on
Jit

neels
November 27th, 2007, 10:21 PM
सूर्य–सा मत छोड़ जाना

लेखिका: निर्मला जोशी


मैं तुम्हारी बाट जोहूं
तुम दिशा मत मोड़ जाना।

तुम अगर ना साथ दोगे
पूर्ण कैसे छंद होंगे।
भावना के ज्वार कैसे
पंक्तियों में बंद होंगे।

वर्णमाला में दुखों की
और कुछ मत जोड़ जाना।

देह से हूं दूर लेकिन
हूं हृदय के पास भी मैं।
नयन में सावन संजोए
गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।

तार में झंकार भर कर
बीन–सा मत तोड़ जाना।

पी गई सारा अंधेरा
दीप–सी जलती रही मैं।
इस भरे पाषाण युग में
मोम–सी गलती रही मैं।

प्रात को संध्या बनाकर
सूर्य–सा मत छोड़ जाना।

vijay
November 27th, 2007, 10:29 PM
सूर्य–सा मत छोड़ जाना
लेखिका: निर्मला जोशी

पी गई सारा अंधेरा
दीप–सी जलती रही मैं।
इस भरे पाषाण युग में
मोम–सी गलती रही मैं।

प्रात को संध्या बनाकर
सूर्य–सा मत छोड़ जाना।

Really nice one :)

cooljat
November 28th, 2007, 01:13 PM
A really deep touching poem with a touch of solitude, classy indeed! ...


अधूरी बात - डॉ उमा ओसापा


ये बात है उन दिनों की
जब नींद आंखों को छू कर
लॊट जाती थी
चाँद जागता था सारी रात
बादलों से घिरा
सितारों की महफ़िल में
गुपचुप सी बात बहती थी

रात ठहर जाती थी एक पहर
जानने को ये माज़रा क्या है
क्यों ग़मगीन है ये समां
कॊन अकेला है यहाँ
वो बात जो सिर्फ़
हवाओं को समझ आती थी
और चांदनी जैसे
आंसुओं से नम हो जाती थी

हर पल को रहता था
सुबह की रौशनी का इंतज़ार
चाँद सितारों की बात लेकिन
रात पूरी होने तक अधूरी रह जाती थी |


Rock on
Jit

cooljat
November 28th, 2007, 03:14 PM
Few really deep touchin n so true lines, dont know the poet name thou! :)

"क्या समेटे कोई यहाँ से,
और क्या यहाँ छोढ़ कर जाए...

बीत रहे हैं जो लम्हे,
कल सभी तो बनेंगे यादों के साये!..."


Rock on
Jit

cooljat
November 28th, 2007, 03:22 PM
One more for Day....one really deep touching thoughtprovoking poem!!


नन्हा सपना - कीर्ति वैध


आँखों के अंधेर गलियारे में
इक रोता नन्हा सपना
न सूर्य किरण छुए
न रात चाँदनी हंसाये
कई दिन का भूखा
सुस्त चाल लिए
खामोश धडकनों
को भी रूलाये

दस्तक सुन, आस लिए
इक सांस में, हंस जाये
न पा, फिर मुरझा जाये
गुमनाम, फिर जीए जाये.....


Rock on
Jit

mukeshkumar007
November 28th, 2007, 06:53 PM
Few really deep touchin n so true lines, dont know the poet name thou! :)

"क्या समेटे कोई यहाँ से,
और क्या यहाँ छोढ़ कर जाए...

बीत रहे हैं जो लम्हे,
कल सभी तो बनेंगे यादों के साये!..."


Rock on
Jit

sachi maie nice one !!

cooljat
December 3rd, 2007, 06:53 PM
One really gem of a poem from Great Bachaan saab, that describes 'Real Love' & distinguish between Love & Infatuation in sucha simple n sweet manner!! Truly matchless poem that touches to the core of soul!! :):):)


आदर्श प्रेम - डॉ. हरिवंश राय बच्चन


प्यार किसी को करना लेकिन
कहकर उसे बताना क्या,
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या |

गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या,
मन के कल्पित भावो से
औरों को भ्रम में लाना क्या |

ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या,
प्रेम हार पहनना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या |

त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमे स्वार्थ बताना क्या,
देकर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या |

Rock on
Jit

neels
December 3rd, 2007, 09:58 PM
One really gem of a poem from Great Bachaan saab, that describes 'Real Love' & distinguish between Love & Infatuation in sucha simple n sweet manner!! Truly matchless poem that touches to the core of soul!! :):):)


आदर्श प्रेम - डॉ. हरिवंश राय बच्चन


प्यार किसी को करना लेकिन
कहकर उसे बताना क्या,
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या |

Rock on
Jit

Nice one. :)

neels
December 3rd, 2007, 10:02 PM
जो तुम आ जाते एक बार / महादेवी वर्मा

जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार


हंस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार

sandeeprathee
December 6th, 2007, 02:02 AM
Some lines from movie Anand...penned by Guljar.
these very lines sounds very impressive and deep touching in the voice of Big B....

मौत तू एक कविता है,

मुझसे एक कविता का वादा है
मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे

दिन अभी पानी में हो,
रात किनारे के करीब

ना अंधेरा ना उजाला हो,
ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो
और रूह को जब साँस आऐ

मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ...

sandeeprathee
December 6th, 2007, 02:07 AM
Guljar ji kya kehne....inka likha ek ek labj badi saralta se aapke jehan main utar jaata hai...

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर

उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

neels
December 6th, 2007, 01:00 PM
शाम होने को है / जावेद अख़्तर

शाम होने को है

लाल सूरज समन्दर में खोने को है

और उसके परे कुछ परिन्दे कतारें बनाए

उन्हीं जंगलों को चले,

जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोसले

ये परिन्दे वहीं लौट कर जाएँगे, और सो जाएँगे

हम ही हैरान हैं, इस मकानों के जंगल में

अपना कोई भी ठिकाना नहीं

शाम होने को है

हम कहाँ जाएँगे

jitendershooda
December 6th, 2007, 03:01 PM
Guljar ji kya kehne....inka likha ek ek labj badi saralta se aapke jehan main utar jaata hai...

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर

उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी


घणी बढिया !!!

sandeeprathee
December 7th, 2007, 03:56 AM
घणी बढिया !!!

Jeetu bhai aapke bhi is thread par chakkar lagte hain........:).

sandeeprathee
December 7th, 2007, 04:04 AM
this poem was used as Title song of one of early 90's TV seriel "Palash ke phool".

पलाश के फूल

मेरा ख्याल है यह,हकीकत सी हो जाना तुम,
मेरी बाहों में आ कर सो जाना तुम.
अपनी खुशबू से मेरे घर को मखाना तुम,
फूल पलाश के चुन लाना तुम.

दुनिया के नजारे स्वीकार नही,
अपनी मुस्कराहट से मुझे बहलाना तुम.
सुर्ख हो जाये जब ज़िंदगी की फिजा,
फूल पलाश के चुन लाना तुम.

मौसम बसंत का जब भी आएगा,
अपने आँगन में खुशबू लाएगा,
चह चहाती चिडिया सी गाना तुम,
दूर गगन में कहीं उड़ जाना तुम,
फूल पलाश के चुन लाना तुम.

जब भी हो जाये उदास मन मेरा,
मीठी सी बातों को होठों पे रख लाना तुम.
आँगन में उड़ते सूखे पत्तों को,
अपने आँचल में समेट लाना तुम,
फूल पलाश के चुन लाना तुम.

मेरे सपनो को तोड़ कर न जाना तुम,
अपने अटूट रिश्ते का विश्वास,
मेरे बेताब दिल को दे जाना तुम,
फूल पलाश के यूँ ही हर बार चुन लाना तुम.

cooljat
December 7th, 2007, 08:13 AM
Nice One!...

Defines very much bout the Paradox of today's Life!


शाम होने को है / जावेद अख़्तर


हम कहाँ जाएँगे

suniljakhar
December 9th, 2007, 01:27 PM
Deswal sir, Thank you for sharing these wonderful lines , I still remember this poem and used to recite in morning prayer during my primary education- actually each day one student from my class used to speak in front of everybody during morning prayer.


I would like to share a couple of my favourite Hindi poems




पुष्प की अभिलाषा
- माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

visheshan
December 10th, 2007, 06:58 AM
Here is another poem, a few lines,originally posted by my dear husband, Lt. Sh. Rajesh Kumar Rathee ji, on March 27th 2007. This forum was very dear to him and it took me 6 months to muster the courage to take up from where he left.I hope and pray that I will be able be to justice to it though I can be of no match to him.

Ek choti si koshish hai, umeed hai apka sahara milega.

---Mrs. Monica Rathee

Teri Yaad
aaj phir teri yaad ka ek moti, boond ban kar patto
par se phisalta hua,
palko tak aa kar ruk gaya, aakhon ke samne atka
raha,
jhilmilata hua, palko se chal kar gaalon ko sahlata
hua,
hoto ko chumta aage chala, meri hatheli par aa
betha,
tumhari yaad ka ek or moti, jhilmilata hua es tanhai
main
boond ban kar palkon par aa kar atak gaya, teri yaad
ban kar."
__________________
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vijay
December 10th, 2007, 12:52 PM
Here is another poem, a few lines,originally posted by my dear husband, Lt. Sh. Rajesh Kumar Rathee ji, on March 27th 2007. This forum was very dear to him and it took me 6 months to muster the courage to take up from where he left.I hope and pray that I will be able be to justice to it though I can be of no match to him.

---Mrs. Monica Rathee


Monica Ji,

Yes, Jatland was so dear to him. Nice to see you here. It feels like he is here and watching all of us.

He is with us and will be forever. GOD BLESS :)




Ek choti si koshish hai, umeed hai apka sahara milega.

Teri Yaad
aaj phir teri yaad ka ek moti, boond ban kar patto par se phisalta hua,
palko tak aa kar ruk gaya, aakhon ke samne atka raha,
jhilmilata hua, palko se chal kar gaalon ko sahlata hua,
hoto ko chumta aage chala, meri hatheli par aa betha,
tumhari yaad ka ek or moti, jhilmilata hua es tanhai main
boond ban kar palkon par aa kar atak gaya, teri yaad ban kar."


यादों के मोती जब जब भी इन पलकों मे झिलमिलायेंगे
वो न जाने कितनी शिकायते करता होगा भगवान से ||
ज़िंदगी भर साथ चलेगा हमारे वो एक साये की तरह
वो आज भी हमें प्यार से निहारता होगा आसमान से ||

spdeshwal
December 11th, 2007, 02:30 AM
Bahoot achhi koshish hai!

Aapke aatmik chhann aur bhav hi to kavita ko janam deti hein.

Vijay has rightly said that he is always with us!

keep visiting the forum!


Sateypal

neels
December 11th, 2007, 02:14 PM
Here is another poem, a few lines,originally posted by my dear husband, Lt. Sh. Rajesh Kumar Rathee ji, on March 27th 2007. This forum was very dear to him and it took me 6 months to muster the courage to take up from where he left.I hope and pray that I will be able be to justice to it though I can be of no match to him.

Ek choti si koshish hai, umeed hai apka sahara milega.

---Mrs. Monica Rathee


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Hi, Welcome on the thread and the site. Thanks for adding b'ful as well meaningful writing. I know you write b'ful poetry..bhaisahb mentioned this at times. I hope with your presence and active involvement, you ll take his place here which we definitely miss a lot.

keep writing n keep posting.

regards,
neelam

rajeshrathee
December 12th, 2007, 09:36 AM
Thank you for your support. I will try to do my best.

Monica

jitendershooda
December 12th, 2007, 10:38 AM
Here is another poem, a few lines,originally posted by my dear husband, Lt. Sh. Rajesh Kumar Rathee ji, on March 27th 2007. This forum was very dear to him and it took me 6 months to muster the courage to take up from where he left.I hope and pray that I will be able be to justice to it though I can be of no match to him.

Ek choti si koshish hai, umeed hai apka sahara milega.

---Mrs. Monica Rathee

Teri Yaad
aaj phir teri yaad ka ek moti, boond ban kar patto
par se phisalta hua,
palko tak aa kar ruk gaya, aakhon ke samne atka
raha,
jhilmilata hua, palko se chal kar gaalon ko sahlata
hua,
hoto ko chumta aage chala, meri hatheli par aa
betha,
tumhari yaad ka ek or moti, jhilmilata hua es tanhai
main
boond ban kar palkon par aa kar atak gaya, teri yaad
ban kar."
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Welcome Monica ji. Bahut marm-sparsi panktiyan likhi hein aapne. Be attached to this site and keep pouring nice stuff like bhai saab.

neels
December 12th, 2007, 08:22 PM
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं / निदा फ़ाज़ली

Also sung by Jagjit Singh in his Album 'Mirage'. Meaningful lyrics,, talking about the uncertain n uncontrolled circumstances in life.

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम खबर के हम हैं

dndeswal
December 12th, 2007, 08:57 PM
.


The earliest Hindi Kavita - by Amir Khusro !!


मुकरियाँ
( अमीर खुसरो )

रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥

नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥

वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥

जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥

बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥

अति सुरंग है रंग रंगीले। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥

अर्ध निशा वह आया भौन। सुंदरता बरने कवि कौन॥
निरखत ही मन भयो अनंद। क्यों सखि साजन? ना सखि चंद॥

शोभा सदा बढ़ावन हारा। आँखिन से छिन होत न न्यारा॥
आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन? ना सखि अंजन॥

जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै॥
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥

बिन आये सबहीं सुख भूले। आये ते अँग-अँग सब फूले॥
सीरी भई लगावत छाती। क्यों सखि साजन? ना सखि पाति॥


-

neels
December 12th, 2007, 09:16 PM
.


The earliest Hindi Kavita - by Amir Khusro !!


मुकरियाँ
( अमीर खुसरो )


रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥





Nice one DND Sir with the folk touch.

sandeeprathee
December 13th, 2007, 01:42 AM
.


The earliest Hindi Kavita - by Amir Khusro !!


मुकरियाँ
( अमीर खुसरो )



अर्ध निशा वह आया भौन। सुंदरता बरने कवि कौन॥
निरखत ही मन भयो अनंद। क्यों सखि साजन? ना सखि चंद॥


शोभा सदा बढ़ावन हारा। आँखिन से छिन होत न न्यारा॥
आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन? ना सखि अंजन॥


जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै॥
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥


-



Deswal Ji ....this is too Good a poem :)

kuch aur aisi classic poems aapki taraf se sun-ne ko milengi aasha karte hain.

sandeeprathee
December 13th, 2007, 02:04 AM
read this poem from Nagarjuna during school time....

गुलाबी चूड़ियाँ

कवि:नागार्जुन
***********************

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी

बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा

आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने

मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!

rajeshrathee
December 13th, 2007, 06:49 AM
.


The earliest Hindi Kavita - by Amir Khusro !!


जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै॥
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥


बिन आये सबहीं सुख भूले। आये ते अँग-अँग सब फूले॥
सीरी भई लगावत छाती। क्यों सखि साजन? ना सखि पाति॥



-

Very nice poem Sir. Bahut muddat ke bad koi achhi kavita padne mein aayi hai.


Monica

rajeshrathee
December 13th, 2007, 07:23 AM
This poem might sound depressing to some but please bear with me.

Monica





कारवाँ गुज़र गया
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।


- गोपालदास नीरज

http://manaskriti.com/kaavyaalaya/images/leaf.jpg

cooljat
December 13th, 2007, 02:14 PM
Dear Bhabiji,

Its sucha pleasure to see u here.. :)

Thanks a lot for posting Rajesh Bhaisaab Poem.

Eyes become moist again reminding them!!

Warm Regards


Rock on
Jit


Here is another poem, a few lines,originally posted by my dear husband, Lt. Sh. Rajesh Kumar Rathee ji, on March 27th 2007. This forum was very dear to him and it took me 6 months to muster the courage to take up from where he left.I hope and pray that I will be able be to justice to it though I can be of no match to him.

Ek choti si koshish hai, umeed hai apka sahara milega.

---Mrs. Monica Rathee

Teri Yaad
aaj phir teri yaad ka ek moti, boond ban kar patto
par se phisalta hua,
palko tak aa kar ruk gaya, aakhon ke samne atka
raha,
jhilmilata hua, palko se chal kar gaalon ko sahlata
hua,
hoto ko chumta aage chala, meri hatheli par aa
betha,
tumhari yaad ka ek or moti, jhilmilata hua es tanhai
main
boond ban kar palkon par aa kar atak gaya, teri yaad
ban kar."
__________________
LIFE IS LIKE AN ICE CREAM, ENJOY BEFORE IT MELTS
http://www.jatland.com/forums/images/kirsch/statusicon/user_offline.gif http://www.jatland.com/forums/images/kirsch/buttons/report.gif (http://www.jatland.com/forums/report.php?p=134445)

cooljat
December 13th, 2007, 02:19 PM
Very Heart Touchin' poem Bhabiji!

This is what we Say Destiny's wild move!

But Life moves on...

Rock on
Jit


This poem might sound depressing to some but please bear with me.

Monica




कारवाँ गुज़र गया
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!


- गोपालदास नीरज

http://manaskriti.com/kaavyaalaya/images/leaf.jpg

neels
December 13th, 2007, 02:20 PM
read this poem from Nagarjuna during school time....

गुलाबी चूड़ियाँ

कवि:नागार्जुन
***********************

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी



Really Sweet.

jitendershooda
December 13th, 2007, 02:55 PM
.


The earliest Hindi Kavita - by Amir Khusro !!


मुकरियाँ
( अमीर खुसरो )


रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥


नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥
-


Gajab!! Deshwal ji thanks for sharing. Anchalik touch bahut badhiya de rakhya hai hindi ke pahele kavi ne.

jitendershooda
December 13th, 2007, 02:57 PM
read this poem from Nagarjuna during school time....

गुलाबी चूड़ियाँ

कवि:नागार्जुन
***********************

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी


Bahut dina pache yaad diva di bhai tanne ya badhiya kavita. Ke tun isne kanthasth kar rahya hai er kitab le ja rahya se hude bhi :)

Nice one indeed!!

jitendershooda
December 13th, 2007, 03:01 PM
माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।



- गोपालदास नीरज

http://manaskriti.com/kaavyaalaya/images/leaf.jpg



Shareer mein sihran paida karne wali panktiyan hein ji ye to .... gajab likhi hein.

rajeshrathee
December 15th, 2007, 08:00 AM
प्रयाण गीत (http://sudeep-swadesh.blogspot.com/2007/01/blog-post_5999.html)


वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं।
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर,हटो नहीं
तुम निडर,डटो नहीं
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी(1916 - -1998)


Monica

rajeshrathee
December 15th, 2007, 08:26 AM
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं! (http://sudeep-swadesh.blogspot.com/2007/07/blog-post_21.html)


क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
अनगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अनगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

याद सुखों की आंसू लाती,
दुख की, दिलभारी कर जाती,
दोष किसे दूं जब अपने से अपने दिन बर्बाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
दोनों करकेपछताता हूं,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आज़ाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!


- बच्चन



Monica

manojmann
December 15th, 2007, 07:23 PM
Dr. Rathee, keep writting...we are really enjoying ur kavita's.

jitendershooda
December 17th, 2007, 04:32 PM
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं! (http://sudeep-swadesh.blogspot.com/2007/07/blog-post_21.html)

याद सुखों की आंसू लाती,
दुख की, दिलभारी कर जाती,
दोष किसे दूं जब अपने से अपने दिन बर्बाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
दोनों करकेपछताता हूं,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आज़ाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

- बच्चन
Monica

Really nice. One more from bacchan ji,

मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

हम क्या हैं जगती के सर में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

shashiverma
December 17th, 2007, 06:59 PM
Bachhan.....sagar kei saman hai.......jab bhee hath badhaogai moti hei paogai.....
gud one above.....enjoying...

Welcome back Monika ji... gud to see you.

vikasgulia
December 17th, 2007, 07:30 PM
This is the first time, I stumbled upon this thread....and believe me..i could not stop my self to read it from beginning till end....

Am Lovin' It!!!!!!!!!!!!!!!!! :):):)

dndeswal
December 29th, 2007, 06:10 PM
.

पनघट (अमीर खुसरो)


बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निजाम पिया ।
पनिया भरन को मैं जो गई थी
छीन-झपट मोरी मटकी पटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की ।


खुसरो निजाम के बल-बल जाइए
लाज राखी मेरे घूंघट पट की
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की।


पहेलियां (अमीर खुसरो)


खडा भी लोटा पडा भी लोटा
है बैठा पर कहें हैं लोटा
खुसरो कहें समझ का टोटा
( लोटा)


बीसों का सर काट लिया
ना मारा ना खून किया
( नाखून )


एक थाल मोती से भरा
सब के सर पर औंधा धरा
चारों ओर वह थाली फिरे
मोती उससे एक न गिरे।
( आकाश )


एक नार ने अचरज किया
सांप मार पिंजरे में दिया
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए
ताल सूख सांप मर जाए
( दीया-बाती)
.

kanishka
December 29th, 2007, 11:00 PM
.

पनघट (अमीर खुसरो)


बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निजाम पिया ।
पनिया भरन को मैं जो गई थी
छीन-झपट मोरी मटकी पटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की ।


खुसरो निजाम के बल-बल जाइए
लाज राखी मेरे घूंघट पट की
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की।


पहेलियां (अमीर खुसरो)


खडा भी लोटा पडा भी लोटा
है बैठा पर कहें हैं लोटा
खुसरो कहें समझ का टोटा
( लोटा)


बीसों का सर काट लिया
ना मारा ना खून किया
( नाखून )


एक थाल मोती से भरा
सब के सर पर औंधा धरा
चारों ओर वह थाली फिरे
मोती उससे एक न गिरे।
( आकाश )


एक नार ने अचरज किया
सांप मार पिंजरे में दिया
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए
ताल सूख सांप मर जाए
( दीया-बाती)
.
i think it's like this perhaps

बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे भर लाऊं मैं जमना से मटकी

amiteshv
December 29th, 2007, 11:18 PM
amir khusro was successor of nizamuddin aulia. He lived in delhi. yamuna was nearby. like ganga was nearby aa me jo jat doob jata va hi khushnaseeb man jata.

amiteshv
December 30th, 2007, 01:37 AM
haridwar me liya tha hanumanji ne jyotish vidya ka gyan. udde nne ek pakhand khandini pataka bhi phahrayee thi, swami ji ne:)

jaatdesi
December 30th, 2007, 10:10 AM
from book chup chap chiddi ka baap - jagbeer rathee

trak aala gajab tar gaya
garib ke chore ne margya
postmartam karna padega
rupiya 200 bharna padega
rupiya udharan pe
yaaran pe pyaran pe
mangda rahya naat de rehye
atman uski kaatde rehye
sanjh tak anginat ghav the
jakhmi dil tha jakhmi panv the
divar tale beth ro liya
postmartam to ho liya
par kiska ?
balak ka ak uska ?

neels
January 1st, 2008, 09:27 PM
Dr. Rathee, keep writting...we are really enjoying ur kavita's.

This is the first time, I stumbled upon this thread....and believe me..i could not stop my self to read it from beginning till end....

Am Lovin' It!!!!!!!!!!!!!!!!! :):):).

Thanks a Lot Guys.... ll try to keep adding some classics.

neels
January 1st, 2008, 09:30 PM
One more Classic !

चंद्र गहना से लौटती बेर / केदारनाथ अग्रवाल

देखा आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत पर मैं बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
पास ही मिल कर उगी है
बीच में आली हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नीज फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छूए यह,
दूँ हृदय का दान उसको।
और सरसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है,
पकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
और पैरों के तले हैं एक पोखर,
उठ रही है इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कईं पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिडि़या
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में!
औ' यही से-
भूमी ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाडि़याँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रिंवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है-
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।

hoodarajesh
January 1st, 2008, 10:31 PM
bahut ache neelam jin kaveyo ko ham bhul jate h unko time time par
yad karte rahna chahiye

crsnadar
January 3rd, 2008, 01:14 AM
One more Classic !

चंद्र गहना से लौटती बेर / केदारनाथ अग्रवाल

देखा आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत पर मैं बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
पास ही मिल कर उगी है
बीच में आली हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नीज फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छूए यह,
दूँ हृदय का दान उसको।
और सरसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है,
पकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
और पैरों के तले हैं एक पोखर,
उठ रही है इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कईं पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिडि़या
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में!
औ' यही से-
भूमी ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाडि़याँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रिंवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है-
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।




Awesome..!
Expecting more such nice stuff..!

neels
January 3rd, 2008, 01:36 PM
कलम, आज उनकी जय बोल / रामधारी सिंह "दिनकर"

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही लपट दिशाएं
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल

crsnadar
January 3rd, 2008, 04:52 PM
कलम, आज उनकी जय बोल / रामधारी सिंह "दिनकर"

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही लपट दिशाएं
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल



Nice to remind "RSD Ji" once again.
"Ramdhari Singh Dinkar" a name who always lived in crisis but whose innervoice coundn't ever been silent & who's "Kalam" never stopped asserting his gerne.
One of the Great Writer..!

cooljat
January 3rd, 2008, 06:10 PM
A very much touching poem by a Jat himself, depicts trait of Real JAT! :)


हाँ-नहीं - देवेन्द्र रणवा


हाँ बोलने में
जितनी लगती है
ठीक उससे दुगनी ताकत लगती है
नहीं बोलने में

हाँ बोलना यानि
शीतल हवा हो जाना
नहीं बोलना यानि
गरम तवा हो जाना

हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नही करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है |


Read, Think n Implement if possible... :)


Rock on
Jit

mukeshkumar007
January 3rd, 2008, 06:18 PM
A very much touching poem by a Jat himself, depicts trait of Real JAT! :)


हाँ-नहीं - देवेन्द्र रणवा

हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नही करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है |


Read, Think n Implement if possible... :)


Rock on
Jit

ek jat hi likh sakta hai bhai isi poem to.. really good one !!!

neels
January 3rd, 2008, 09:05 PM
A very much touching poem by a Jat himself, depicts trait of Real JAT! :)

हाँ-नहीं - देवेन्द्र रणवा

हाँ बोलने में
जितनी लगती है
ठीक उससे दुगनी ताकत लगती है
नहीं बोलने में

हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नही करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है |
Read, Think n Implement if possible... :)

Rock on
Jit

Gud one Jit....lekin kai baar nahin bolna bhi bahut zaroori hota hai.

amiteshv
January 4th, 2008, 01:53 AM
very well written

crsnadar
January 4th, 2008, 07:40 PM
A very much touching poem by a Jat himself, depicts trait of Real JAT! :)


हाँ-नहीं - देवेन्द्र रणवा


हाँ बोलने में
जितनी लगती है
ठीक उससे दुगनी ताकत लगती है
नहीं बोलने में

हाँ बोलना यानि
शीतल हवा हो जाना
नहीं बोलना यानि
गरम तवा हो जाना

हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नही करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है |


Read, Think n Implement if possible... :)


Rock on
Jit

Really Nice...&...It's Different...really Different:):):)

minnibamel
January 5th, 2008, 03:55 AM
Thanks,Neelam to starting this thread...This thread is awesome...I hv read this thread number of times....refreshes school poems..and soul touching....really good one...

vijay
January 5th, 2008, 11:11 AM
The evergreen poem and i bet that everybody had read this during school days.:)

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे, हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ ।

मुझे तोड़ लेना वनमाली !
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक ।

vijay
January 5th, 2008, 11:20 AM
चाँदनी छत पे चल रही होगी
-दुष्यंतकुमार

चाँदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
वो बर्फ़-सी पिघल रही होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शमा-सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी

vijay
January 5th, 2008, 11:29 AM
बात की बात -शिवमंगलसिंह 'सुमन'

इस जीवन में बैठे ठाले
ऐसे भी क्षण आ जाते हैं
जब हम अपने से ही अपनी-
बीती कहने लग जाते हैं ।

तन खोया-खोया-सा लगता
मन उर्वर-सा हो जाता है
कुछ खोया-सा मिल जाता है
कुछ मिला हुआ खो जाता है ।

लगता; सुख-दुख की स्मृतियों के
कुछ बिखरे तार बुना डालूँ
यों ही सूने में अंतर के
कुछ भाव-अभाव सुना डालूँ |

कवि की अपनी सीमायें है
कहता जितना कह पाता है
कितना भी कह डाले, लेकिन-
अनकहा अधिक रह जाता है |

यों ही चलते-फिरते मन में
बेचैनी सी क्यों उठती है ?
बसती बस्ती के बीच सदा
सपनों की दुनिया लुटती है |

जो भी आया था जीवन में
यदि चला गया तो रोना क्या ?
ढलती दुनिया के दानों में
सुधियों के तार पिरोना क्या ?

जीवन में काम हजारों हैं
मन रम जाए तो क्या कहना !
दौड़-धूप के बीच एक-
क्षण, थम जाए तो क्या कहना !

कुछ खाली खाली होगा ही
जिसमें निश्वास समाया था
उससे ही सारा झगड़ा है
जिसने विश्वास चुराया था |

फिर भी सूनापन साथ रहा
तो गति दूनी करनी होगी
साँचे के तीव्र-विवर्त्*तन से
मन की पूनी भरनी होगी |

जो भी अभाव भरना होगा
चलते-चलते भर जाएगा
पथ में गुनने बैठूँगा तो
जीना दूभर हो जाएगा ।

neels
January 5th, 2008, 01:52 PM
The evergreen poem and i bet that everybody had read this during school days.:)

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी



-----Repeated

neels
January 5th, 2008, 01:54 PM
बात की बात -शिवमंगलसिंह 'सुमन'

इस जीवन में बैठे ठाले
ऐसे भी क्षण आ जाते हैं
जब हम अपने से ही अपनी-
बीती कहने लग जाते हैं ।



Liked this. This happens many times with all.

neels
January 5th, 2008, 02:07 PM
Thanks,Neelam to starting this thread...This thread is awesome...I hv read this thread number of times....refreshes school poems..and soul touching....really good one...

bahut ache neelam jin kaveyo ko ham bhul jate h unko time time par yad karte rahna chahiye

Thanks Rajni n Rajesh. Wud appreciate if you also contribute some.

neels
January 5th, 2008, 02:21 PM
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।


जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।


आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज बनता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।


मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?


मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।


मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।


स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

crsnadar
January 7th, 2008, 01:58 PM
Great to see so many Jat KAVIs & KAVIYTRIs...

Me too making ONE KAVITA...will release soon...:)

cooljat
January 7th, 2008, 02:28 PM
Bhai ur missing the point of the thread!! ;)

here poems of famous poets be it Jat or Non-Jat to be posted not ur own creation!!

So Follow the rules for more info read the first post of the thread! :)

Rock on
Jit



Great to see so many Jat KAVIs & KAVIYTRIs...

Me too making ONE KAVITA...will release soon...:)

crsnadar
January 7th, 2008, 10:51 PM
Bhai ur missing the point of the thread!! ;)

here poems of famous poets be it Jat or Non-Jat to be posted not ur own creation!!

So Follow the rules for more info read the first post of the thread! :)

Rock on
Jit

OK theek hai...:)

cooljat
January 10th, 2008, 05:47 PM
A really nice composition that describes perplexity of Life.. :)


उलझन - दुष्यन्त कुमार चतुर्वेदी

जीवन क्यों तुम बीत रहे हो
व्यर्थ अनर्थ सी बातों में
रात सी काली शंकाओं मे
भाग्य अभाग्य के खातों मे
कल था निर्धन आज धनी मैं
कल का धनी अब निर्धन क्यों हूं
ये रिश्ता है वो रिश्ता है
रिश्तों मे बंध जाता क्यों हूं
अति तनाव के वो क्षण काले
आत्मा तक मे लगते छाले
लेकिन जिनसे तनाव बढता
उनसे ही क्यों लगाव बढता??

कर्तव्यों मे घिरा हुआ सा
मुक्ति की आशा क्यों करता मै
सबसे निर्भय दिखने वाला
अपने आप से क्यों डरता मै
जीवन भर का जोङ घटाना
शून्य साथ मे ले कर जाना
फिर भी जीवन गणित ना समझा
जाने किन पन्नों मे उलझा

उलझन उलझन उलझन उलझन
जीवन क्या तुम उलझन ही हो
या फिर चिन्ताओं मे डूबे
थके हुए टूटे मन ही हो
अगर तुम्हें कुछ पता लगे तो
तुम ही आ कर के बतलाना
जीवन क्या है-जीवन क्यूं है
जीवन क्योंकर बीत रहा है ??


Rock on
Jit

neels
January 10th, 2008, 09:40 PM
A really nice composition that describes perplexity of Life.. :)


उलझन - दुष्यन्त कुमार चतुर्वेदी

जीवन क्यों तुम बीत रहे हो
व्यर्थ अनर्थ सी बातों में
रात सी काली शंकाओं मे
भाग्य अभाग्य के खातों मे
कल था निर्धन आज धनी मैं
कल का धनी अब निर्धन क्यों हूं
ये रिश्ता है वो रिश्ता है
रिश्तों मे बंध जाता क्यों हूं
अति तनाव के वो क्षण काले
आत्मा तक मे लगते छाले
लेकिन जिनसे तनाव बढता
उनसे ही क्यों लगाव बढता??

कर्तव्यों मे घिरा हुआ सा
मुक्ति की आशा क्यों करता मै
सबसे निर्भय दिखने वाला
अपने आप से क्यों डरता मै
जीवन भर का जोङ घटाना
शून्य साथ मे ले कर जाना
फिर भी जीवन गणित ना समझा
जाने किन पन्नों मे उलझा

उलझन उलझन उलझन उलझन
जीवन क्या तुम उलझन ही हो
या फिर चिन्ताओं मे डूबे
थके हुए टूटे मन ही हो
अगर तुम्हें कुछ पता लगे तो
तुम ही आ कर के बतलाना
जीवन क्या है-जीवन क्यूं है
जीवन क्योंकर बीत रहा है ??


Rock on
Jit

Gud hai... Very Realistic.

cooljat
February 5th, 2008, 07:12 PM
Realistic but Gloomy one, yet quite touchin' n Sensible! :)


तलाश - दुष्यन्त कुमार

रिश्तों मे दुख, नातों मे दुख
घर मे भी दुख, बाहर भी दुख
जीवन के हर मोङ पे बस दुख
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कभी किसी की बातें दुखतीं
कहीं पुरानी यादें दुखतीं
रक्त के वो सम्बन्ध खो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

मन मे जो भी तनाव भरता
जाकर इक कागज़ पे उतरता
कागज़ भी अब बोझ हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कभी पुराने लोग थे कहते
बँटने से सुख दुगुना होता
मैने भी था सुखों को बाँटा
पर बँट कर वे लोप हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

भटक भटक कर मन भी हारा
रहा अकेला मै बेचारा
सपने भी अब स्वयम् सो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये

कोई कहे कर्तव्य मे सुख है
कोई कहे वैराग्य में सुख है
सारे सच अब झूठ हो गये
ओ सुख अब तुम कहाँ खो गये.


Rock on
Jit

cooljat
February 13th, 2008, 06:57 PM
A Sweet & Serene Poem on the eve of V'Day! :)


हृदय - विश्व पारीक

हर पुष्प चमन का खिल जाए,
खुद हीं धागों में सिल जाए,
हर वृक्ष कोपलों से लदकर
सुरम्य सुषमा में मिल जाए,
सुरधनु गगन से उतर यहाँ
अगणित रंगों में बँट जाए,
उन रंगों की हो रंगोली
हर रंगोली के हों साये।
जल के तरंग के संग कभी
हर अंग धरा का हिल जाए,
मन का उमंग लेकर अनंग
नई राह , नई मंजिल पाए।
जलचर ,नभचर की कौन कहे
हर गुण मानव का जुड़ जाए,
श्रृंगार प्रकृति का छोटा हो,
उसके जैसा जो उर पाए।

वह हृदय कहीं एक लोक नहीं,
जिसमें रह कर हो शोक नहीं,
है राह एक , दो नेत्र नेक,
कर दे नेत्रों से विलोक कहीं।

द्वि-अंबुज हैं, ठहरा दृग-जल,
प्रीत बहे जिनमें प्रति-पल,
उस राह से पहुँचे जो उर में
भुले खुद हीं वह विश्व सकल।

हर धड़क्न से वायु बहती,
हर सिसक्न से भींगे है रवि,
हर हंसी है मानो मधुकुंभ
है लिए वसंत उसकी छवि।

क्या पुष्प तुम्हें दूँ इस दिन मैं,
जिसे देख पुष्प खुद शर्माए।
कुछ बोल सखे, लब खोल सखे,
हमसे क्यों इतना घबराए।


Rock on
Jit

rkumar
February 14th, 2008, 07:29 AM
here is one I just wrote;

Teri bat

sirf tujh se hi bat karta hun, aur teri hi bat karta hun
Tum falak pe raj karti ho, mai zamin pe basr karta hun
tera daman chand sitaron se damkta rahta hai,
mai to ek purane se fate hue kurte me thiturta hun

do waqt ki roti ki kasm-e-kash me laga rahta hun
jab bhi thak jata hun, bas teri aur dekh leta hun
dil bahal jata hai, tujhe hansta dekh kar
bhookh me bas teri hansi se , pet bhar leta hun

tujhe muskurate dekhna, meri aadat ban gayee hai
tujh se ekele me bat karna meri ibadat ban gayee hai
Zameen ke unginat insaanon ko dekh dekh kar
mere liye tum ek haseen hoor-e-zannat ban gayee ho

Tere sans ki khusboo, zameen ke har fool se behtar hai
tera jishm me laga ne jane kaunsa sang-e-marmar hai
tum kabhi tajmahal lagti ho, to aur kabhi chasm-e-shahi
teri jaban me ganga ke pani ki kal kal aur jhar jhar hai
.................................................. ...

RK^2

cooljat
February 18th, 2008, 04:17 PM
One gracious poem that helps you to do introspection!..:)


स्वयं की तलाश - अभिनव

एकाकी की परछाइयों में,
मन की गहराइयों में,
जब खो जाता हूँ मैं,
स्वयं को स्वयं से दूर ही पाता हूँ मैं।

कई लोगों से मैं मिला,अनेकों को जाना।
पर कहाँ मिलाप हुआ मेरा स्वयं से,
खुद को कहाँ है पहचाना ?
परिजनों को प्यार से,परजनों को ललकार से,
भिन्न-भिन्न व्यवहार से,सारे संसार से,
जब अपना परिचय बताता हूँ मैं,
स्वयं को स्वयं से दूर ही पाता हूँ मैं।

जीवन एक युद्घ,प्रतिदिन-प्रतिपल मैं लड़ रहा हूँ।
पथ में आती हार को कर के दरनिकार
बस जीतने का प्रयास कर रहा हूँ
जीत की आशा में,हार की निराशा में,
कठिण प्रयास में,दुःख में,उल्लास में,
जब खुद को ढूंढ़ना चाहता हूँ मैं,
स्वयं को स्वयं से दूर ही पाता हूँ मैं।

जीवन की इस भाग दौड़ में,
एक दूजे से आगे बढ़ने की होड़ में,
ऐसा लगता है कहीं कुछ छूट गया है,
मेरा मन जैसे मुझसे रूठ गया है।
इस आपाधापी से जब भी कुछ क्षण
अपने लिये चुराता हूँ मैं,
स्वयं को स्वयं से दूर ही पाता हूँ मैं।

खुद को जानने की कोशिश में,
मैंने बस इतना जाना है,
जीवन का एक गूढ़ रहस्य,
शायद मैंने पहचाना है।
हार-जीत निरर्थक,यहाँ
जीत का प्रयास ही जीत का अहसास है।
ज़िंदगी है ऐसा सफ़र जिसमें,रास्ते बड़े मंज़िलों से
स्वयं को पाना महत्वपूर्ण नहीं,
महत्वपूर्ण स्वयं की तलाश है ।।


Rock on
Jit

rkumar
February 18th, 2008, 09:18 PM
O mere gaon ke sukhe hue kunwe,
teri halat pe mujhe taras aata hai
jahan kabhi panghat laga karta tha,
wahan ub kudaa pada rahta hai

kabhi teri pooja huaa karti thee
tere pani me lahar utha karti thee
mere muhalle ke har ghar ki,
tere pani se, gagri bhara karti thee

sham ko tere charon taraf,
ek mela sa laga karta thaa
tujh se pani lane ke bahane
ne jane kia kia hua karta thaa

kitnon ne tera pani peekar
har roj naya jeevan paaya
kuche ne tere under jakar
jeevan se chutkara paaya

aaj tera pani kho gaya hai
kunwe se, kurdi ho gaya hai
tera nirmal pani kiya gaya
gaon beemar ho gaya hai

duniya ke sab ameeron se
aaj ek bheekh mangta hoon
agar paise me shakti hai to,
tumse kunwe ka pani mangta hoon

RK^2

cooljat
February 19th, 2008, 04:32 PM
How True!!.. :)


जो पत्थर काटकर - राजेंद्र पासवान घायल


जो पत्थर काटकर सबके लिए
पानी जुटाता है
उसे पानी नहीं मिलता
पसीने में नहाता है

लगा रहता है जो हर दिन किसी का
घर बनाने में
उसी को घर नहीं होता उसे
मौसम सताता है

जुता रहता है बैलों की तरह
जो खेत में दिन भर
उसी का अपना बच्चा भूख से
आँसू बहाता है

बनाए जिसके धागों से बने हैं
आज ये कपड़े
उसी का तन नहीं ढँकता
कोई गुड़िया सजाता है

जलाता है बदन कोई हमेशा
धूप में 'घायल'
ज़रा-सी गर्मी लगने पर कोई
पंखा चलाता है |



Rock on
Jit

neels
February 19th, 2008, 04:42 PM
How True!!.. :)

जलाता है बदन कोई हमेशा
धूप में 'घायल'
ज़रा-सी गर्मी लगने पर कोई
पंखा चलाता है |



Aaj kal to pankhon se bhi kaam nahin chalta... AC chalte hain....:)

neels
February 19th, 2008, 04:47 PM
One of all times great

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं / मोहम्मद इक़बाल

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं


ताही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं


कना'अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं


अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ और भी हैं


तू शहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं


इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं


गए दिन की तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं

cooljat
February 19th, 2008, 05:16 PM
one beautiful and touching creation !! ... :)


धूप - आचार्य सारथी

झाँक-झूँक खिड़की की
स्याह सलाख़ों से
कमरे को पोत रही
अलसाई धूप!

जागा था
चिड़ियों की चोंचों में दिन
सूरज को पाया था
तारे गिन-गिन
देख-देख आंगन से
उठते धुएँ को
अंधियारे घूँघट में
घबराई धूप!

भीगी थी सुर्ख-सुर्ख
बारिश से रात
सोची थी मौसम ने
फ़सलों की बात
खुशबू की फाँसों में
फूलों की चाह लिए
काँटों की बाँदी बन
पछताई धूप!


Rock on
Jit

crsnadar
February 19th, 2008, 05:18 PM
One of all times great

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं / मोहम्मद इक़बाल

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं


ताही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं


कना'अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं


अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ और भी हैं


तू शहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं


इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं


गए दिन की तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं



Awesome one...but little tough:) but nice...very nice..!




Pyar jidhar hai jeet hai wahi, gar prem nahi to jeet nahi

Itne intehaano me jale hai jo, waha ek intehaan aur sahi

neels
February 19th, 2008, 05:39 PM
Awesome one...but little tough:) but nice...very nice..!




Pyar jidhar hai jeet hai wahi, gar prem nahi to jeet nahi

Itne intehaano me jale hai jo, waha ek intehaan aur sahi

Wah wah Wah wah kya baat kahi hai Rahul ji..... wanna quote one sher to continue... bt wont write here... as nt in the interest of the thread.....:)

sandeeprathee
February 27th, 2008, 10:31 PM
One gracious poem that helps you to do introspection!..:)


स्वयं की तलाश - अभिनव

खुद को जानने की कोशिश में,
मैंने बस इतना जाना है,
जीवन का एक गूढ़ रहस्य,
शायद मैंने पहचाना है।
हार-जीत निरर्थक,यहाँ
जीत का प्रयास ही जीत का अहसास है।
ज़िंदगी है ऐसा सफ़र जिसमें,रास्ते बड़े मंज़िलों से
स्वयं को पाना महत्वपूर्ण नहीं,
महत्वपूर्ण स्वयं की तलाश है ।।


Rock on
Jit

Toooooo Gud jit bhai....

cooljat
March 2nd, 2008, 07:31 PM
A fine poem with lil romantic touch! :)


जाने क्यूँ??? - दुष्यन्त कुमार

दिल मे कोई बात नहीं है
कोई भी जज़्बात नहीं है
इन्तज़ार की बात नहीं है
फिर भी तकता राह किसी की...

ग़म का कोई नहीं अन्धेरा
नहीं खुशी का कोई सवेरा
ना अरमानों का कोई डेरा
फिर भी तकता राह किसी की...

कोई फूल ना खिलने वाला
नहीं कोई भी मिलने वाला
जाम न साक़ी, खाली प्याला
फिर भी तकता राह किसी की...

इक तरफा इक़रार है शायद
बिना कहे इज़हार है शायद
हुआ नहीं, पर प्यार है शायद
फिर भी तकता राह किसी की |


Rock on
Jit

neels
March 4th, 2008, 04:31 PM
जाने क्यूँ...???

आज शाम है बहुत उदास
केवल मैं हूँ अपने पास ।

दूर कहीं पर हास-विलास
दूर कहीं उत्सव-उल्लास
दूर छिटक कर कहीं खो गया
मेरा चिर-संचित विश्वास ।


कुछ भूला सा और भ्रमा सा
केवल मैं हूँ अपने पास
एक धुंध में कुछ सहमी सी
आज शाम है बहुत उदास ।


एकाकीपन का एकांत
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।


थकी-थकी सी मेरी साँसें
पवन घुटन से भरा अशान्त,
ऐसा लगता अवरोधों से
यह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त ।


अंधकार में खोया-खोया
एकाकीपन का एकांत
मेरे आगे जो कुछ भी वह
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।


उतर रहा तम का अम्बार
मेरे मन में व्यथा अपार ।


आदि-अन्त की सीमाओं में
काल अवधि का यह विस्तार
क्या कारण? क्या कार्य यहाँ पर?
एक प्रशन मैं हूँ साकार ।


क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना?
मेरे मन में व्यथा अपार
औ समेटता निज में सब कुछ
उतर रहा तम का अम्बार ।


सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
आज शाम है बहुत उदास ।


जोकि आज था तोड़ रहा वह
बुझी-बुझी सी अन्तिम साँस
और अनिश्चित कल में ही है
मेरी आस्था, मेरी आस ।


जीवन रेंग रहा है लेकर
सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
और डूबती हुई अमा में
आज शाम है बहुत उदास ।

cooljat
March 4th, 2008, 04:44 PM
Tooooo Gud! :):)
Very touchin poem indeed!!



जाने क्यूँ...???

आज शाम है बहुत उदास
केवल मैं हूँ अपने पास ।

दूर कहीं पर हास-विलास
दूर कहीं उत्सव-उल्लास
दूर छिटक कर कहीं खो गया
मेरा चिर-संचित विश्वास ।


कुछ भूला सा और भ्रमा सा
केवल मैं हूँ अपने पास
एक धुंध में कुछ सहमी सी
आज शाम है बहुत उदास ।


एकाकीपन का एकांत
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।

neels
March 4th, 2008, 08:14 PM
नामांकन - रामधारी सिंह दिनकर

------ class love poem by Dinker.

सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैंने तुम्हारा नाम
याद है, तुम हंस पड़ी थी 'क्या तमाशा है !
लिख रहे हो इस तरह तन्मय
की जैसे लिख रहे होओ शिला पर |
मानती हूँ, यह मधुर अंकन अमरता पा सकेगा |
वायु की क्या बात ? इसको सिंधु भी न मिटा सकेगा |'

और तबसे नाम मैंने है लिखा ऐसे
कि, सचमुच, सिंधु कि लहरें न उसको पाएंगी,
फूल में सौरभ, तुम्हारा नाम मेरे गीत में है |
विश्व में यह गीत फैलेगा
अजन्मी पीढियाँ सुख से
तुम्हारे नाम को दुहराएंगी |

crsnadar
March 5th, 2008, 12:57 PM
Ya...we know...it's as usual very very very nice..!
as you...
:)

cooljat
March 6th, 2008, 06:24 PM
One classy Inspiring writing by Great Dr. Harivansh Ray Bachan !! :)

नीड का निर्माण फिर फिर - डा. हरिवंश राय बच्चन

नीड का निर्माण फिर फिर,
नेह का आह्वान फिर फिर!

वह उठी आँधी कि नभ में, छा गया सहसा अंधेरा,
धूलि धूसर बादलों नें, भूमि को इस भाँति घेरा,
रात सा दिन हो गया, फिर रात आयी और काली
लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा

रात के उत्पात भय से भीत जन-जन, भीत कण कण,
किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर फिर
नीड का निर्माण फिर फिर,
नेह का आह्वान फिर फिर!



Rock on
Jit

mukeshkumar007
March 6th, 2008, 06:27 PM
One classy Inspiring writing by Great Dr. Harivansh Ray Bachan !! :)

नीड का निर्माण फिर फिर - डा. हरिवंश राय बच्चन


लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा

रात के उत्पात भय से भीत जन-जन, भीत कण कण,
किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर फिर
नीड का निर्माण फिर फिर,



Rock on
Jit

good one ! :)

sandeeprathee
March 18th, 2008, 10:16 PM
One more form Harivansh Rai....

रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी।

तारिकाऐं ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी।
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा सा और अधसोया हुआ सा।

रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
एक बिजली छू गई सहसा जगा मैं
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में।

इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।
मैं लगा दूँ आग इस संसार में
है प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।

जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।

प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ उजाले में अंधेरा डूब जाता।
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी
खूबियों के साथ परदे को उठाता।

एक चेहरा सा लगा तुमने लिया था
और मैंने था उतारा एक चेहरा।
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने
पर ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।

रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
और उतने फ़ासले पर आज तक
सौ यत्न करके भी न आये फिर कभी हम।

फिर न आया वक्त वैसा
फिर न मौका उस तरह का
फिर न लौटा चाँद निर्मम।
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ।

क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं?
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने। - हरिवंशराय बच्चन

cooljat
April 18th, 2008, 03:38 PM
A poem that describes Melancholic Ecstacy!! ....:)


जानना चाहता हूँ - राजर्षि अरुण


जानना चाहता हूँ मैं
जीवन को
उसकी अन्यतम गहराइयों में
इसलिए उतरना चाहता हूँ मैं
दुख की गहन गुफ़ा में
तैरना चाहता हूँ
नकारात्मकता की अंधकारमय नदी में
जैसे तैरती है कोई मछली
धारा के विरोध में
मुझे लगता है
मछली प्राणवंत हो उठती होगी
उल्टी धारा से खेलते हुए
अनायास ही चहचहा उठती होगी चिड़िया
उठती हुई ऊपर
धरती से ऊपर
गुरुत्वाकर्षण के विरोध में

इसलिए बिंधना चाहता हूँ मैं
हज़ार-हज़ार काँटों से
कि अनुभव कर सकूँ कि
उस बिंधने में मैं अपने अस्तित्व के
कितने क़रीब था
अनुभव कर सकूँ
उसे जो बिंधा!

गुदगुदाने के भाव से भरकर
परम आस्था और अहोभाव से भरकर
मृत्युसहोदर परम पीड़ा की गोद में
नवजात शिशु-सा निश्चिंत होकर
उस संजीवनी का पान करना चाहता हूँ
सुकरात का उत्तराधिकारी बनकर

शायद परम किरण का स्पर्श
तभी होता है
ज़िंदगी को!



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Jit

mukeshkumar007
April 18th, 2008, 03:59 PM
A poem that describes Melancholic Ecstacy!! ....:)


जानना चाहता हूँ - राजर्षि अरुण


जानना चाहता हूँ मैं
जीवन को
उसकी अन्यतम गहराइयों में
इसलिए उतरना चाहता हूँ मैं
दुख की गहन गुफ़ा में
तैरना चाहता हूँ
नकारात्मकता की अंधकारमय नदी में
जैसे तैरती है कोई मछली
धारा के विरोध में
मुझे लगता है
मछली प्राणवंत हो उठती होगी
उल्टी धारा से खेलते हुए
अनायास ही चहचहा उठती होगी चिड़िया
उठती हुई ऊपर
धरती से ऊपर
गुरुत्वाकर्षण के विरोध में

इसलिए बिंधना चाहता हूँ मैं
हज़ार-हज़ार काँटों से
कि अनुभव कर सकूँ कि
उस बिंधने में मैं अपने अस्तित्व के
कितने क़रीब था
अनुभव कर सकूँ
उसे जो बिंधा!

गुदगुदाने के भाव से भरकर
परम आस्था और अहोभाव से भरकर
मृत्युसहोदर परम पीड़ा की गोद में
नवजात शिशु-सा निश्चिंत होकर
उस संजीवनी का पान करना चाहता हूँ
सुकरात का उत्तराधिकारी बनकर

शायद परम किरण का स्पर्श
तभी होता है
ज़िंदगी को!



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Jit

hmmmm good one jit !!

neels
April 18th, 2008, 11:02 PM
One more form Harivansh Rai....

रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी।

- हरिवंशराय बच्चन


A poem that describes Melancholic Ecstacy!! ....:)


जानना चाहता हूँ - राजर्षि अरुण


जानना चाहता हूँ मैं
जीवन को
उसकी अन्यतम गहराइयों में
इसलिए उतरना चाहता हूँ मैं
दुख की गहन गुफ़ा में
तैरना चाहता हूँ

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Jit

Wow guys yu doing great job..... so guuddd... keep it up....keep searchin n posting quality stuff.

cooljat
April 23rd, 2008, 06:19 PM
Nice one...depicts introspection of an introvert person! too gud.. :)



भीगे अख़बार-सा मैं - संजय पुरोहित


भीगे अख़बार-सा मैं,
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा
पढ़े जाने की ललक लिए
लेकिन न उठाया किसी ने
हो आशंकित न हो जाऊँ
तार-तार
प्रतीक्षा में नव किरणों को
सोख लेने की
लिए शब्दों के ज़खीरे
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा

अपने में समेटे,
कुछ गुज़रे कल, कुछ बहके पल
कुछ रेखाएँ रंगीन, कुछ श्वेत औ' श्याम
कुछ योजनाएँ, कुछ घोषणाएँ
कुछ शुभ कामनाएँ, कुछ संवेदनाएँ
समेटे हुए आँचल में अपने
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा
भीगे अखब़ार-सा मैं


Rock on
Jit

cooljat
April 23rd, 2008, 06:24 PM
One really touching poem dedicated to all lonesome Jats who're living in the concrete jungle out there and very much miss the peaceful serene life of Village!!... :)


मेरा गाँव - तसलीम अहमद


मुझे नहीं चाहिए-
एक कमरे की ज़िंदगी,
सुबह-शाम का पानी,
साढ़े आठ बजे का अलार्म,
मशीन का दूध,
पलंग के नीचे रसोई,
पड़ोस का सन्नाटा,
उपरी मंज़िल का शोर,
गली की किच-किच।

वाकई, नहीं चाहिए मुझे-
जोश भरे पल भर के रिश्ते,
मतलब की दोस्ती,
जल्दी की दुआ-सलाम,
ऑफ़िस की जल्दी,
बसों की भीड़,
स्टैंड की उदासी,
रेंगती कारों का रेला,
मुर्दा दिलों का मेला,
और...
धुए से लिपटी शाम की बेला।

नहीं सहन होता मुझसे-
देर का सोना,
नींद में रोना,
उम्मीदों का मरना,
खुद से डरना,
क्यों...
अखबार की हेडलाइंस,
टीवी का सुर्खियाँ,
नहीं चाहिए...नहीं चाहिए...नहीं चाहिए
मुझे यह शहर,
पर, मेरा गाँव...?


Rock on
Jit

mukeshkumar007
April 23rd, 2008, 06:39 PM
One really touching poem dedicated to all lonesome Jats who're living in the concrete jungle out there and very much miss the peaceful serene life of Village!!... :)


मेरा गाँव - तसलीम अहमद


मुझे नहीं चाहिए-
एक कमरे की ज़िंदगी,
सुबह-शाम का पानी,
साढ़े आठ बजे का अलार्म,
मशीन का दूध,
पलंग के नीचे रसोई,
पड़ोस का सन्नाटा,
उपरी मंज़िल का शोर,
गली की किच-किच।

वाकई, नहीं चाहिए मुझे-
जोश भरे पल भर के रिश्ते,
मतलब की दोस्ती,
जल्दी की दुआ-सलाम,
ऑफ़िस की जल्दी,
बसों की भीड़,
स्टैंड की उदासी,
रेंगती कारों का रेला,
मुर्दा दिलों का मेला,
और...
धुए से लिपटी शाम की बेला।

नहीं सहन होता मुझसे-
देर का सोना,
नींद में रोना,
उम्मीदों का मरना,
खुद से डरना,
क्यों...
अखबार की हेडलाइंस,
टीवी का सुर्खियाँ,
नहीं चाहिए...नहीं चाहिए...नहीं चाहिए
मुझे यह शहर,
पर, मेरा गाँव...?


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Jit

bhai sachi maie good one.. :):) yaar kati emotional kar diya re yaar... :(

sandeeprathee
April 24th, 2008, 03:34 PM
Too Good.... kavi ki kalpana atulniye hai. liked the comarision here :).


Nice one...depicts introspection of an introvert person! too gud.. :)



भीगे अख़बार-सा मैं - संजय पुरोहित


भीगे अख़बार-सा मैं,
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा
पढ़े जाने की ललक लिए
लेकिन न उठाया किसी ने
हो आशंकित न हो जाऊँ
तार-तार
प्रतीक्षा में नव किरणों को
सोख लेने की
लिए शब्दों के ज़खीरे
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा

अपने में समेटे,
कुछ गुज़रे कल, कुछ बहके पल
कुछ रेखाएँ रंगीन, कुछ श्वेत औ' श्याम
कुछ योजनाएँ, कुछ घोषणाएँ
कुछ शुभ कामनाएँ, कुछ संवेदनाएँ
समेटे हुए आँचल में अपने
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा
भीगे अखब़ार-सा मैं


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Jit

cooljat
April 29th, 2008, 12:10 PM
Simple, Serene yet So Very True... :)


मंज़िल की तलाश - निवेदिता जोशी

जिंदगी अनुभव के धुएँ छोड़ती
तेढे-मेढे रास्तों से गुज़रती रेलगाड़ी
अनजाने से कितने मुसाफिर चढ़ते उतरते
पर्वतों की घुमावदार चढाई
और साथ बैठी तन्हाई
कहाँ जा रही है जिंदगी ?

किस स्टेशन की तलाश है, पता नहीं
अनकही सी चाहत दिल में लिए
ये सफर कहीं खत्म होगा ?

अगर नहीं तो कभी दिल में झाँक कर देखा है
की मंज़िल क्या है ? ...


Rock on
Jit

sandeeprathee
April 29th, 2008, 12:40 PM
Simple, Serene yet So Very True... :)


मंज़िल की तलाश - निवेदिता जोशी

जिंदगी अनुभव के धुएँ छोड़ती
तेढे-मेढे रास्तों से गुज़रती रेलगाड़ी
अनजाने से कितने मुसाफिर चढ़ते उतरते
पर्वतों की घुमावदार चढाई
और साथ बैठी तन्हाई
कहाँ जा रही है जिंदगी ?

किस स्टेशन की तलाश है, पता नहीं
अनकही सी चाहत दिल में लिए
ये सफर कहीं खत्म होगा ?

अगर नहीं तो कभी दिल में झाँक कर देखा है
की मंज़िल क्या है ? ...


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Jit

this poem reminds me of one old song...

गाडी बुला रही है सीटी बजा रही है
चलना ही जिंदगी है ,चलती ही जा रही है !

good poem indeed :)

neels
April 29th, 2008, 11:03 PM
Simple, Serene yet So Very True... :)


मंज़िल की तलाश - निवेदिता जोशी

जिंदगी अनुभव के धुएँ छोड़ती
तेढे-मेढे रास्तों से गुज़रती रेलगाड़ी
अनजाने से कितने मुसाफिर चढ़ते उतरते
पर्वतों की घुमावदार चढाई
और साथ बैठी तन्हाई
कहाँ जा रही है जिंदगी ?

किस स्टेशन की तलाश है, पता नहीं
अनकही सी चाहत दिल में लिए
ये सफर कहीं खत्म होगा ?

अगर नहीं तो कभी दिल में झाँक कर देखा है
की मंज़िल क्या है ? ...


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Jit

WOW...this is so realistic.....how true.... really in this train of life....how many ppl come n go at diff times of life....some co passengers stay wid yu throughout the life.... bt some fr short durations...from one station to another....
Very Nice one Jit..... Gud effeort to search such a poem.

neels
April 29th, 2008, 11:06 PM
One really touching poem dedicated to all lonesome Jats who're living in the concrete jungle out there and very much miss the peaceful serene life of Village!!... :)


मेरा गाँव - तसलीम अहमद


नहीं चाहिए...नहीं चाहिए...नहीं चाहिए
मुझे यह शहर,
पर, मेरा गाँव...?


Rock on
Jit

Open ended..... now who can continue it.... frm....per, mera gaon........

neels
April 29th, 2008, 11:25 PM
कल सहसा यह सन्देश मिला / भगवतीचरण वर्मा

कल सहसा यह सन्देश मिला
सूने-से युग के बाद मुझे
कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर
तुम कर लेती हो याद मुझे ।

गिरने की गति में मिलकर
गतिमय होकर गतिहीन हुआ
एकाकीपन से आया था
अब सूनेपन में लीन हुआ ।


यह ममता का वरदान सुमुखि
है अब केवल अपवाद मुझे
मैं तो अपने को भूल रहा,
तुम कर लेती हो याद मुझे ।


पुलकित सपनों का क्रय करने
मैं आया अपने प्राणों से
लेकर अपनी कोमलताओं को
मैं टकराया पाषाणों से ।


मिट-मिटकर मैंने देखा है
मिट जानेवाला प्यार यहाँ
सुकुमार भावना को अपनी
बन जाते देखा भार यहाँ ।


उत्तप्त मरूस्थल बना चुका
विस्मृति का विषम विषाद मुझे
किस आशा से छवि की प्रतिमा !
तुम कर लेती हो याद मुझे ?


हँस-हँसकर कब से मसल रहा
हूँ मैं अपने विश्वासों को
पागल बनकर मैं फेंक रहा
हूँ कब से उलटे पाँसों को ।


पशुता से तिल-तिल हार रहा
हूँ मानवता का दाँव अरे
निर्दय व्यंगों में बदल रहे
मेरे ये पल अनुराग-भरे ।


बन गया एक अस्तित्व अमिट
मिट जाने का अवसाद मुझे
फिर किस अभिलाषा से रूपसि !
तुम कर लेती हो याद मुझे ?


यह अपना-अपना भाग्य, मिला
अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें
जग की लघुता का ज्ञान मुझे,
अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें ।


जिस विधि ने था संयोग रचा,
उसने ही रचा वियोग प्रिये
मुझको रोने का रोग मिला,
तुमको हँसने का भोग प्रिये ।


सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,
पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे
फिर एक कसक बनकर अब क्यों
तुम कर लेती हो याद मुझे ?

cooljat
April 30th, 2008, 07:46 AM
Awesome poem Neels, Matchless Classy!
Gud to see u back on the thread! :)
Keep Pourin'...




कल सहसा यह सन्देश मिला / भगवतीचरण वर्मा

कल सहसा यह सन्देश मिला
सूने-से युग के बाद मुझे
कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर
तुम कर लेती हो याद मुझे ।

गिरने की गति में मिलकर
गतिमय होकर गतिहीन हुआ
एकाकीपन से आया था
अब सूनेपन में लीन हुआ ।

.
.
.


सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,
पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे
फिर एक कसक बनकर अब क्यों
तुम कर लेती हो याद मुझे ?

spdeshwal
April 30th, 2008, 07:55 AM
Thanks Jit or posting all these beautiful poems!

Last two were too good to resit and read again and again.

Neelam ji Superb from an elite class poet!

Evey stanza is tale of its own, "sanvedhanshilta, prem ki prakashtha, vichhoh"

The very fist verse set the tone....Thanks for sharing!

cooljat
April 30th, 2008, 08:13 AM
Thx a Lot Bhaisaab! :)
Btw, I wud say this is one of the best thread of JL till date.
If you go thro' it completly u'll find some rare gems of poems, ..
Poems with a philosphical touch, meaningful & always inspirin'..

Rock on
Jit


Thanks Jit or posting all these beautiful poems!

Last two were too good to resit and read again and again.

Neelam ji Superb from an elite class poet!

Evey stanza is tale of its own, "sanvedhanshilta, prem ki prakashtha, vichhoh"

The very fist verse set the tone....Thanks for sharing!

mukeshkumar007
April 30th, 2008, 10:10 AM
कल सहसा यह सन्देश मिला / भगवतीचरण वर्मा

[[/COLOR][/B]
जिस विधि ने था संयोग रचा,
उसने ही रचा वियोग प्रिये
मुझको रोने का रोग मिला,
तुमको हँसने का भोग प्रिये ।


सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,
पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे
फिर एक कसक बनकर अब क्यों
तुम कर लेती हो याद मुझे ?


Nice one :)

cooljat
April 30th, 2008, 11:35 AM
One more really touchin poem by Nivedita Joshi!!, Her poems speak a lot in less words!... :)

नंगे पाँव - निवेदिता जोशी

दर्द भरे रेगिस्तान में
नंगे पाँव के निशान दिखाई दिए
तो लगा जीवन यहीं है, यहीं कहीं है |
सहसा जब उन निशानों पर अपने पाँव पड़े
तो पता चला की वो मेरे ही पाँव के ठहराव थे
जिंदगी इस मरूभूमि से तो पहले भी गुजरी थी
तो क्या यह ठहराव था या फिर मेरा जीवन
उन्ही वीथियों में अभी भी भटक रहा है
जहाँ रेगिस्तान में सिर्फ तपते हुए नंगे
पाँव के निशान हैं |...


Rock on
Jit

neels
April 30th, 2008, 09:24 PM
Thank You Sir for appreciating our efforts and its gud to know that yu liked these poems.


Thanks Jit or posting all these beautiful poems!

Last two were too good to resit and read again and again.

Neelam ji Superb from an elite class poet!

Evey stanza is tale of its own, "sanvedhanshilta, prem ki prakashtha, vichhoh"

The very fist verse set the tone....Thanks for sharing!

cooljat
May 5th, 2008, 08:32 AM
A beautiful yet meaningful poem that very much describes span of LIFE!!.. :)


जीवन-मृत्यु - विमल शर्मा


बचपन...

जीवन को जानने की जिज्ञासा
एक निरंतर प्रक्रिया ।
एक मुट्ठी आसमाँ सुख की अनुभूति
एक कागज़ का टुकडा भी एक खिलौना
एवं पूर्व संतुष्टि ।

जवानी...

जीवन को जीने की भूख
एक असफल प्रयास ।
भौतिक आसमाँ की प्राप्ति सुख की अनुभूति
कागज़ के टुकड़े के हाथों सवयं एक खिलौना
एवं क्षणिक संतुष्टि ।

बुढापा...

भय मृत्यु से समीपता का
मृत्यु को जानने की उत्कंठ अभिलाषा
एक सतत् सत्य ।
क्षितिज के पार झाँकने का मन
बोध सवयं की सीमितता का
असीम की परिकल्पना
असंतुष्टि ।


Rock on
Jit

cooljat
May 5th, 2008, 11:18 AM
One more for the day, lil melancholic but so true, happens with everybody sometimes!...

अतीत का अंधेरा - डॉ. सुषम बेदी


और उदास हो जाता है वर्तमान
जब अतीत भावी पर हावी हो जाता है

गुज़रा हुआ विस्मृत बन कर
जो लौट चुका था
भावी का प्रतीक बन कर स्थापित हो जाता है

आस्थाओं की भूमि पर
गढ़ों से निकले बरसाती
कीड़ों की तरह
भूले हुए दर्द भरे हुए घाव
फिर से बिसूर पड़ते हैं
छा देते हैं, कामनाओं का संसार

और दूभर हो जाता है जीना
जब जीने के सारे हथियार
आकांक्षाओं के जंग से
जख्म़ी और कुड़े हो जाते हैं
भविष्य पर चढ़ आता है
अतीत का अंधेरा |



Rock on
Jit

shweta123
May 5th, 2008, 11:50 AM
Open ended..... now who can continue it.... frm....per, mera gaon........


पर मेरा गाँव भी बुझा सा खड़ा है
कुछ दबा कुछ सकुचा सा
एक ओर को पड़ा है

न वो पहली सी बात रही
न वो शीतल छाँव रही
मनों मे ये कैसी कड़वाहट है
अब तो दूध मे भी मिलावट है

लगता है ज़मीन सिकुड़ गई है
ओर लोगो के दिल मे भी न पहले सा भाव है
खुली हवा चटपटा रही है
फसल खेतो मे अनमनी सी लहलहा रही है

कहा है वो भोलेपन के किस्से
क्यो गुम है वो ममता भरी आँखे
कही नही मिलता अब वो अपनापन
क्या गाँव क्या शहर

कहा जाऊ अब सोचता हूँ मैं
न शहर मे मन बसता था
न गाँव मे रही अब वो बात ........

cooljat
May 5th, 2008, 12:31 PM
Shweta, Gud effort....indeed a class act! :)
You represented it beautifuly n its so very true!..

keep writing..

Rock on
Jit



न वो पहली सी बात रही
न वो शीतल छाँव रही
मनों मे ये कैसी कड़वाहट है
अब तो दूध मे भी मिलावट है

लगता है ज़मीन सिकुड़ गई है
ओर लोगो के दिल मे भी न पहले सा भाव है
खुली हवा चटपटा रही है
फसल खेतो मे अनमनी सी लहलहा रही है

mukeshkumar007
May 5th, 2008, 12:42 PM
लगता है ज़मीन सिकुड़ गई है
ओर लोगो के दिल मे भी न पहले सा भाव है
खुली हवा चटपटा रही है
फसल खेतो मे अनमनी सी लहलहा रही है

कहा है वो भोलेपन के किस्से
क्यो गुम है वो ममता भरी आँखे
कही नही मिलता अब वो अपनापन
क्या गाँव क्या शहर


Bhoot acha Di :) isi to meri bi samaj maie aa jati hai :)

cooljat
May 5th, 2008, 01:17 PM
One priceless gem from the rare treasure of Great Harivans Rai Bachaan...:)
Words fall short to appreciate his deep classy matchless creations...speechless!


ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंशराय बच्चन


सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!


Rock on
Jit

Samarkadian
May 5th, 2008, 11:47 PM
Guys, enough pessimism about village.:)Its not that bad as poets has portrayed but still I tried something in new ray.Enjoy!

"Kyon ki Ye Mera Gaon Hai..


Thoda Ruka Sa Hi To Hai,
Thoda Sa Sahma Hi to Hai,
To Kya Hua,
Chahye Kuch Bhi Hai,
Chahye Kaisa Bhi ho,
Iske Sukh Bhi Mere The,
Aur Dukh Bhi Mere Hain,
Kyonki Ye Mera Hi Gaon Hai....

Bhula Nahi Hoon,
Na Hi Bhujha Hoon,
Na Hi Daba Hoon,
Bas Thodi Der Aur...
Mere Saathiyo, Mere Beliyo!!
Mai Aa Raha Hoon,
Mai La Raha Hoon;
Wo Masumiyat,
Wo Bholapan,Wahi Sadgi,
Har Chehre ke Liye

Phir Hukka Gudgudayega Chauplo Mein,
Phir Jamega Saang 'Jyani Chor' Ka,
Phir Mela Lagega Kuo Per,
Laherayegi Bahuo Ki Choti,
Phir Bachpan Marega Kilkariya,
Jam ke Khayega Barbanti Aur Nimboliya,
Lahlati Faslo Mein Jhumenge,
Jhumenge Nar Aur Nari,
Khilegi Khusi ki Dhoop Har Aangan Mein,
Rang Barsega Is Holi Per,
Man Nachega Is Diwali Per...


Shahar Mein Base Mere Saathiyo!!
Tum Aana Mere Ghar,
Chotta Sa Hai;
Meri Ma Banyegi Aur Khilayegi Tumko,
Mamta se Bani Chutni Aur Rotiya,
Phir Kahna,
Baat Karenge,
Raat Bhar,
Chaubare per,
Dekhenge,Ugte Suraj Ko,
Us Naye Savere Ko,
Yahin Na Rah Jao To Kahna,
Iski Khusboo Ke Na Ho Jao To Kahna,
Kyon ki Ye Mera Gaon Hai.......:) [/SIZE]

mukeshkumar007
May 6th, 2008, 01:15 PM
Dekhenge,Ugte Suraj Ko,
Us Naye Savere Ko,
Yahin Na Rah Jao To Kahna,
Iski Khusboo Ke Na Ho Jao To Kahna,
Kyon ki Ye Mera Gaon Hai.......:) [/SIZE][/SIZE][/I][/FONT]

Nice One :):)

nainakhicher
May 6th, 2008, 03:36 PM
for one moment i was in ur village. so nicely described. so beautifully praised. really, shahar ki bhagti hui life k comparison mein kitni shant aur thehri hui he gaon ki life. very soothing samar.

cooljat
May 6th, 2008, 03:49 PM
Bhai Samar,

Kudos to u, indeed classy lines...gaon always haunts!
beautiful poem indeed!

keep pourin'


Rock on
Jit


Guys, enough pessimism about village.:)Its not that bad as poets has portrayed but still I tried something in new ray.Enjoy!

"Kyon ki Ye Mera Gaon Hai..


Thoda Ruka Sa Hi To Hai,
Thoda Sa Sahma Hi to Hai,
To Kya Hua,
Chahye Kuch Bhi Hai,
Chahye Kaisa Bhi ho,
Iske Sukh Bhi Mere The,
Aur Dukh Bhi Mere Hain,
Kyonki Ye Mera Hi Gaon Hai....

cooljat
May 6th, 2008, 05:21 PM
One classy poem with deep thoughts!.. :)



अपने अन्तर का ख़ालीपन - नेमिचन्द्र जैन


अपने अन्तर का ख़ालीपन तेरे सुधि-सौरभ से भर लूँ
एककी मन पर तेरी छबि धीमे-धीमे अंकित कर लूँ
एक सहज ममता की छाया में मैं अपने प्राण बिछा दूँ
तेरे ही आकर्षण में अपना उद्धत अभिमान सुला दूँ ।

यह एकान्त अभेद अन्धेरे-सा मन पर घिरता आता है
जी का सब विश्वास अचानक ही मानो गिरता जाता है
घोर विवशता के मरु में ये भटक पड़े हैं प्राण अकेले
आज नहीं कोई जो मेरे मन की यह दुर्बलता झेले ।

शान्त हो गई है चुप हो कर मन की जो आहत पुकार थी
मन्द हो गई बुझती जी की ज्वाला वह जो दुर्निवार थी
एक रिक्त बस-प्राणों के इस तरु पर आ छाया है हिम-सा
सुधि का दीप दूर एकाकी होता जाता है मद्धिम-सा ।

मेरे अन्तर का रहस्य मुझ को ही आकर कौन बताए
कौन बिखरते-से प्राणों में जीवन का जादू भर जाए
मेरे पथदर्शक, खोलूँ कैसे ये उलझी गाँठें मन की
बोलो, कैसे जोड़ूँ बिखरी कड़ियाँ इस खुलते बन्धन की ।


Rock on
Jit

neels
May 6th, 2008, 06:23 PM
Too Gud Shweta... very nice effort....

panwar18
May 7th, 2008, 05:59 AM
Nice One.........Keep it up...........

cooljat
May 8th, 2008, 02:45 PM
Nostalgia!!...indeed this simple n serene poem that reminds us of golden old childhood days!... :)


वो बचपन के दिन....


वो बचपन के दिन जब याद आते हैं,ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं,
वो हलकी सी तक्रारें, वो मीठी सी नोंक-झोंक ,
वो रोज नए बहाने बनाना, वो कल के रूठे दोस्तो को मनाना,
वो स्कूल की घंटी ,वो खेल का मैदान,
वो झील के किनारे आम का बागान,
वो पत्थर उछालकर कच्चे आमों को गिराना,
वो दौड़ की होड़ मे दोस्तो को गिराना-उठाना,
वो सावन के झूले ,वो कोयल की कूक,
वो बारिश की रिमझिम में भीगना-भिगाना,
वो बारिश के पानी से आंगन का भर जाना,
फिर कागज की कस्तियाँ बनाकर पानी मे चलाना !
जाने ये अब कहॉ खो गए, शायद अब ये किसी और के हो गए
वो बचपन के दिन जब याद आते हैं, ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं !


Rock on
Jit

mukeshkumar007
May 8th, 2008, 04:35 PM
वो बचपन के दिन....
वो बचपन के दिन जब याद आते हैं,ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं,
वो हलकी सी तक्रारें, वो मीठी सी नोंक-झोंक ,
वो रोज नए बहाने बनाना, वो कल के रूठे दोस्तो को मनाना,
वो स्कूल की घंटी ,वो खेल का मैदान,
वो झील के किनारे आम का बागान,
वो पत्थर उछालकर कच्चे आमों को गिराना,
वो दौड़ की होड़ मे दोस्तो को गिराना-उठाना,
वो सावन के झूले ,वो कोयल की कूक,
वो बारिश की रिमझिम में भीगना-भिगाना,
वो बारिश के पानी से आंगन का भर जाना,
फिर कागज की कस्तियाँ बनाकर पानी मे चलाना !
जाने ये अब कहॉ खो गए, शायद अब ये किसी और के हो गए
वो बचपन के दिन जब याद आते हैं, ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं !




too good bhai..


वो बचपन के दिन जब याद आते हैं,ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं,

हा बचपन के वो दिन

घर से स्कूल जाना और फिर रास्ते मे कही छिप जाना
प्रार्थना मे उबासे मारना और फिर सो जाना
टीचर की मार खाना और फिर घर आकर रोते रोते उसकी शिकायत करना !
टीचर की मार से बचने के लिए मारने से पहले ही जोर जोर से रोने का नाटक करना !
अपने से भारी से लड़ाई करना फिर उससे मार खा के दुर जाकर जोर जोर से उसको गाली देना !
स्कूल नही जाना पड़े इसके लिए भागवान से बीमार होने की प्रार्थना करना !

are wah maie to kavi ban gaya :rock

cooljat
May 8th, 2008, 04:46 PM
Gud Effort bhai Mukesh, Jee saa aa gaya! :)
waise Bachpan ke din yaad karke to har koi emotional kavi ho hi jata hai! :)

But indeed, very commendable effort by u, muje to pad ke tera bachpan yaad aa gaya ! ;)

Keep writin'...


Rock on
Jit



too good bhai..


वो बचपन के दिन जब याद आते हैं,ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं,

हा बचपन के वो दिन

घर से स्कूल जाना और फिर रास्ते मे कही छिप जाना
प्रार्थना मे उबासे मारना और फिर सो जाना
टीचर की मार खाना और फिर घर आकर रोते रोते उसकी शिकायत करना !
टीचर की मार से बचने के लिए मारने से पहले ही जोर जोर से रोने का नाटक करना !
अपने से भारी से लड़ाई करना फिर उससे मार खा के दुर जाकर जोर जोर से उसको गाली देना !
स्कूल नही जाना पड़े इसके लिए भागवान से बीमार होने की प्रार्थना करना !

are wah maie to kavi ban gaya :rock

cooljat
May 12th, 2008, 06:25 PM
Nice Inspirin' poem... :)

जीवन, तू अविरल बहता रहे - तारा सिंह

जीवन तू पानी का कण नहीं
जो तिनके से लग जाए ठहर
तू तो जिन्दगी की नदिया में
है उठते लहरों की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जीवन, तू कोई गुलाब नहीं
जो डाली से हो जाये अलग
तू कोई आफताब नहीं
जब जी में आये, जाये घट
और जब चाहे, जाये बढ़
तू तो है, नीले अंबर के
सागर में उन सितारों की तरह
जो रहता है खिला उत्पल की तरह
जिसमें महक भी हो और हो ललक
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी की पवित्र गंगा में
तू है तरंगित धारा की तरह
जिसके अंतःस्थल में है पवित्रता
और महक है चंदन की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी– ताल के अंतःस्थल में
तू रह बादल में बिजली की तरह
प्रेमांलिगन बिना, जिंदगी शिथिल है
तू तैरते रह कुमुदिनी की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
अगर दुख तूफान बन ढ़ाये कहर
तो तू किनारे से लगकर बह
दुर्गम हो डगर, कटीली हो सफर
तू सूरज की तरह चमकता रह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी कोई फूलों की सेज नहीं
जो तुझे सुलाकर रखे सुंदरी की तरह
जिंदगी तो काँटों की सेज है
तुझे रहना है गुलाब की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी – घट रह सकता है, भरा
अगर अविरल तू बहता रह
तेरे सिवा किसको है फिकर
तू रह किसी प्रियतम की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जब भी निकले हृदय से आह
तू चातक की तरह मुँह खोले
रोके रख मेरी राह
यूँ ही मत रख, जिंदगी संग डाह
जीवन, तू अविरल बहता रह...


Rock on
Jit

neels
May 12th, 2008, 09:23 PM
Gud ones Jit.... the bachpan ke din is sor of adaptation frm jagjit singh ghazal..wo kagaz ki kashti, wo baarish ka paani......my all time fav .

Samarkadian
May 14th, 2008, 08:00 AM
Hindi litreature would have been impotent without Ramdhari Singh .None of his contemporary match him in Philosophy,spirtiuality.prowess, mascualinity,soul searching sensibility, zeal for humanity as he does.Since his death no one even gives the vague glimpse of a little greatness which he showered 'aise hi'.Thaty I call him 'Nirala' .Here is one of his creation which is one of my favourite.true to the core of life.ENjoy................:)




~~~~~~Shakti aur Akshma~~~~~~


क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?



क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।



अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।



क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।


तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।



उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।


सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।



सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।



सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

cooljat
May 14th, 2008, 08:12 AM
Matchless Indeed!! :)

Our Taekwondo Coach often address these very inspirin' lines in front of the Team!..

Thx man for posting sucha beautiful n inspirin Kavita!..


Rock on
Jit


Hindi litreature would have been impotent without Ramdhari Singh .None of his contemporary match him in Philosophy,spirtiuality.prowess, mascualinity,soul searching sensibility, zeal for humanity as he does.Since his death no one even gives the vague glimpse of a little greatness which he showered 'aise hi'.Thaty I call him 'Nirala' .Here is one of his creation which is one of my favourite.true to the core of life.ENjoy................:)




~~~~~~Shakti aur Akshma~~~~~~





क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।

cooljat
May 15th, 2008, 06:49 PM
Gulzaar, the name itself is mesmerizing! ...
one rare gem from his treasure.. matchless!!! :)


अफ़साने - गुलज़ार


खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।


Rock on
Jit

neels
May 15th, 2008, 06:57 PM
Hindi litreature would have been impotent without Ramdhari Singh .None of his contemporary match him in Philosophy,spirtiuality.prowess, mascualinity,soul searching sensibility, zeal for humanity as he does.Since his death no one even gives the vague glimpse of a little greatness which he showered 'aise hi'.Thaty I call him 'Nirala' .Here is one of his creation which is one of my favourite.true to the core of life.ENjoy................:)




~~~~~~Shakti aur Akshma~~~~~~


क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?


क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

Too Good Samar... its from kurukshetra..i remember.... thnx fr posting..i had missed it.

cooljat
May 17th, 2008, 11:40 AM
One really a deep pondering poem about 'Dreams' ... Awesome indeed!!... :)


सपने - अपर्णा भट्ट

कुछ सपनों को जो पंख दिए,
वो खुले आसमान में उड़ने लगे,
बादलों की छांव मिले,
तो कभी तारों की महफिल सजी।

नरम-नरम हवा के पालनों में पलने लगे,
कोरे-कोरे ये सपने रंगों से खेलने लगे,
सुनहरी धूप की धागों से एक नया जहाँ बुनते हुए,
बिखरे-बिखरे यह सपने अपने-आप में ही सिमटने लगे।

लम्बी-लम्बी राहों पर नन्हें-नन्हें कुछ कदम,
मासूम यह सपने मंज़िल की तलाश में चल पड़े.
दीपक की लौ में सूरज की रोशनी नहीं मिली,
तो थककर यह सपने उसी लौ में जलने लगे।

वक्त आगे निकल गया, सपने पीछे छूट गए,
कुछ ठहर गए, कुछ टूट गए, कुछ खुद पर ही हंसने लगे,
ज़िन्दगी के दांव में, खुद ज़िन्दगी को हार के,
अब इन अधूरे सपनो के सौदे होने लगे।

चलते-चलते खो गये, अपनी ही धड़कन से दूर हो गए,
पीछे मुड़े तो दिखा कहानी बनके बिकता अपना ही चहरा,
फिर भी रुका नहीं सांसों और धड़कनों का यह सुस्त कारवां,
क्यूंकि टिमटिमा रहा था अभी भी एक सपना सितारा बन के।


Rock on
Jit

ysjabp
May 17th, 2008, 12:53 PM
Chaahaa Thaa Bhar Luu.
Hatheliyo.n Mein Apni,
Tumahaara Cheraa
Us Kii Roshni Mein
Padhani Chahii thii
Paribhashaa un Rishto.n Kii
Jinaka Koi Naam Nahi Hota
Ki Meri Nazar Mein Chehraa
Ek Kitaab Hota Hei.
Jismein Likhii Hoti Hein
Wo Kavitaye,
Jinhe abhii Tak
Padha Hi Nahi Gaya
Par Afsoss !!
Us Muqaddas Shai Ko
Tumne Sirf
Dehh Ka Hissa Samajhaa
Aur Ye Ho Na Saka
Adhuri Rah Gayi
Wah kitaab
Padhi Hii Nahi
Kavitayen Tamaam

Poet :-
"Harish Karamchandani"

cooljat
May 17th, 2008, 01:01 PM
Bhaisaab, with due respect I wanna let u know that this Thread is solely dedicated to 'Hindi Poems' written by various Poet ...please dont add Sher-o-Shayri, Gajal, witty shers, cheap luv poems etc in this thread; if u wanna post there're various other threads goin on for same, kindly post there only! :)

Plz! dont pollute the thread and post only 'Hindi Poems' I repeat 'Hindi Kavita' !!!

I hope u got it n will cooperate! :)

Thanx in advance!


Rock on
Jit




Chaahaa Thaa Bhar Luu.nhatheliyo.n Mein Apni,tumahaara Cheraaus Kii Roshni Meinpadhani Chahiithii Paribhashaaun Rishto.n Kiijinaka Koi Naam Nahi Hotaki Meri Nazar Mein Chehraaek Kitaab Hota Hei.jismein Likhii Hoti Heinwo Kavitaye, Jinheabhii Tak Padha Hi Nahi Gayapar Afsoss !!us Muqaddas Shai Ko Tumne Sirf Dehh Ka Hissa Samajhaaaur Ye Ho Na Saka Adhuri Rah Gayi Wahkitaabpadhi Hii Nahikavitayen Tamaam

ysjabp
May 17th, 2008, 01:11 PM
Bhaisaab, with due respect I wanna let u know that this Thread is solely dedicated to 'Hindi Poems' written by various Poet ...please dont add Sher-o-Shayri, Gajal, witty shers, cheap luv poems etc in this thread; if u wanna post there're various other threads goin on for same, kindly post there only! :)

Plz! dont pollute the thread and post only 'Hindi Poems' I repeat 'Hindi Kavita' !!!

I hope u got it n will cooperate! :)

Thanx in advance!


Rock on
Jit

Jit Bhaisaheb
Kavita hi hei, Shayari nahi hei, phir bhi agar aapko lagta hei to main Maffi Chaungaa.

ysjabp
May 17th, 2008, 01:34 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/nishkriyata/nishkriyata.gif


Poet : Rajiv Krishna Saxena

vijay
May 17th, 2008, 03:01 PM
Chaahaa Thaa Bhar Luu.
Hatheliyo.n Mein Apni,
Tumahaara Cheraa
Us Kii Roshni Mein
Padhani Chahii thii
Paribhashaa un Rishto.n Kii
Jinaka Koi Naam Nahi Hota
Ki Meri Nazar Mein Chehraa
Ek Kitaab Hota Hei.
Jismein Likhii Hoti Hein
Wo Kavitaye,
Jinhe abhii Tak
Padha Hi Nahi Gaya
Par Afsoss !!
Us Muqaddas Shai Ko
Tumne Sirf
Dehh Ka Hissa Samajhaa
Aur Ye Ho Na Saka
Adhuri Rah Gayi
Wah kitaab
Padhi Hii Nahi
Kavitayen Tamaam

Poet :-
"Harish Karamchandani"

Nice Poem .... Yogender bhai :)

vijay
May 17th, 2008, 03:03 PM
अफ़साने - गुलज़ार

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।



Such a nice GAZAL by Gulzar.

neels
May 17th, 2008, 03:46 PM
One really a deep pondering poem about 'Dreams' ... Awesome indeed!!... :)


सपने - अपर्णा भट्ट

कुछ सपनों को जो पंख दिए,
वो खुले आसमान में उड़ने लगे,
बादलों की छांव मिले,
तो कभी तारों की महफिल सजी।

नरम-नरम हवा के पालनों में पलने लगे,
कोरे-कोरे ये सपने रंगों से खेलने लगे,
सुनहरी धूप की धागों से एक नया जहाँ बुनते हुए,
बिखरे-बिखरे यह सपने अपने-आप में ही सिमटने लगे।

लम्बी-लम्बी राहों पर नन्हें-नन्हें कुछ कदम,
मासूम यह सपने मंज़िल की तलाश में चल पड़े.
दीपक की लौ में सूरज की रोशनी नहीं मिली,
तो थककर यह सपने उसी लौ में जलने लगे।

वक्त आगे निकल गया, सपने पीछे छूट गए,
कुछ ठहर गए, कुछ टूट गए, कुछ खुद पर ही हंसने लगे,
ज़िन्दगी के दांव में, खुद ज़िन्दगी को हार के,
अब इन अधूरे सपनो के सौदे होने लगे।

चलते-चलते खो गये, अपनी ही धड़कन से दूर हो गए,
पीछे मुड़े तो दिखा कहानी बनके बिकता अपना ही चहरा,
फिर भी रुका नहीं सांसों और धड़कनों का यह सुस्त कारवां,
क्यूंकि टिमटिमा रहा था अभी भी एक सपना सितारा बन के।


Rock on
Jit

Realistic One

neels
May 17th, 2008, 04:15 PM
Nice one Yogendra

http://www.geeta-kavita.com/images/nishkriyata/nishkriyata.gif


Poet : Rajiv Krishna Saxena

ysjabp
May 17th, 2008, 04:26 PM
Nice Poem .... Yogender bhai :)

DEAR VIJAY SINGH JI
ISII KAVITA KO PADH KAR JIT BHAISAHEB NARAAZ HO GAYE THE

vijay
May 17th, 2008, 04:29 PM
DEAR VIJAY SINGH JI
ISII KAVITA KO PADH KAR JIT BHAISAHEB NARAAZ HO GAYE THE


Koi baat nahin bhai !

Aachhi kavita hai ..... aur post karte rahiye :)

ysjabp
May 17th, 2008, 04:29 PM
Nice one Yogendra

SHUKARIYAA DR SAHIBA

ysjabp
May 17th, 2008, 04:43 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/motif/bracket_right.gif http://www.geeta-kavita.com/images/bachpan/bachpan1.gifhttp://www.geeta-kavita.com/images/bachpan/bachpan2.gifhttp://www.geeta-kavita.com/images/bachpan/bachpan3.gif http://www.geeta-kavita.com/images/common/top_table_edge_01_bgd.gif

Poetry by: Subhadra Kumari Chauhan

ysjabp
May 17th, 2008, 04:46 PM
Koi baat nahin bhai !

Aachhi kavita hai ..... aur post karte rahiye :)

Haunsala Afjaii ke liye Shukriyaa, Vijay Bhaisaheb

cooljat
May 19th, 2008, 10:25 AM
For your kind info, its a NAZM not a GAZAL and Nazm = Urdu Kavita!!

A Nazm (Urdu: نظم ) is an Urdu poetic form that is normally written in rhymed verse.



Such a nice GAZAL by Gulzar.

cooljat
May 19th, 2008, 12:25 PM
Bhai Yogi,

Am really sorry to mistaken u ...
bhai yaar yo hindi (devnagri lipi) mein hoti na kavita to aur bhi badhiya lagti! :)
nyways, keep addin the poems that make sense!

way to go bro...

Cheers!


Rock on
Jit


Jit Bhaisaheb
Kavita hi hei, Shayari nahi hei, phir bhi agar aapko lagta hei to main Maffi Chaungaa.

vijay
May 19th, 2008, 01:01 PM
For your kind info, its a NAZAM not a GAZAL!
Nazam is also known as URDU POEM!

Hahahaha ...... So this is NAZAM ..... Hahahahahaha :rolleyes:

Thanx for the telling us the breaking news that definition of GAZAL and NAZAM are changed NOW. :rolleyes:

cooljat
May 19th, 2008, 02:03 PM
Solitude is always a true friend of an introvert!!...
A thought provokin poem that depicts it very well! :)


भीड़ में अकेलापन - रति सक्सेना

वह अकेला था
उस दिन
जब उसे परहेज था
शब्दों से

वह अकेला हैं
आज भी
जब शब्द भिनभिना रहें हैं
मक्खियों की तरह

अपने साथ रहते हुए
कितनी राहत थी उसे!
भीड़ ने कितना
अकेला बना दिया उसे!


Rock on
Jit

cooljat
May 19th, 2008, 02:09 PM
When Memories haunt, they make u restless...u just cant run away from 'em!..
Beautifully expressed in this poem!! ... one more for the day...


याद - रति सक्सेना

खिड़की बन्द की
दरवाज़ा उलट दिया
रोशनदानों के कानों में
कपड़ा ठूँस दिया

कोई भी तो सूराख नहीं रहा
जिसे बन्द नहीं किया

फिर भी न जाने कब और कैसे
याद से घर भर गया।

Rock on
Jit

ysjabp
May 19th, 2008, 02:46 PM
Jit Bhaisaheb There is no need to say sorry
Abhi Devnagari mein hi post karne ki koshish karoonga

Margdarshan ke Liye main aapka Abhaari rahunga.


Bhai Yogi,

Am really sorry to mistaken u ...
bhai yaar yo hindi (devnagri lipi) mein hoti na kavita to aur bhi badhiya lagti! :)
nyways, keep addin the poems that make sense!

way to go bro...

Cheers!


Rock on
Jit

cooljat
May 19th, 2008, 03:26 PM
Thanx bro,

click :- http://www.google.com/transliterate/indic

This is arguably the best & simplest way to type devnagari...

no need for obligations bro, pleasure will be mine to help ya..


Rock on
Jit


Jit Bhaisaheb There is no need to say sorry
Abhi Devnagari mein hi post karne ki koshish karoonga

Margdarshan ke Liye main aapka Abhaari rahunga.

shashiverma
May 19th, 2008, 04:10 PM
Beautiful poems....throughly enjoyed most of them.

And the picture (mother and her child) along with the poem on Bachpan....is simply gr8.........so simple and beautiful.

ysjabp
May 19th, 2008, 04:15 PM
Beautiful poems....throughly enjoyed most of them.

And the picture (mother and her child) along with the poem on Bachpan....is simply gr8.........so simple and beautiful.


Thank you Ma'am

ysjabp
May 19th, 2008, 07:08 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/motif/bracket_right.gif http://www.geeta-kavita.com/images/adhuri_yaad/adhuri_yaad.gif

neels
May 19th, 2008, 07:17 PM
When Memories haunt, they make u restless...u just cant run away from 'em!..
Beautifully expressed in this poem!! ... one more for the day...


याद - रति सक्सेना

खिड़की बन्द की
दरवाज़ा उलट दिया
रोशनदानों के कानों में
कपड़ा ठूँस दिया

कोई भी तो सूराख नहीं रहा
जिसे बन्द नहीं किया

फिर भी न जाने कब और कैसे
याद से घर भर गया।

Rock on
Jit

Hmmmm.... Yaadein..very intersting Topic....my obs... as much yu ll try to run away from these memories.... more they gonna haunt... simple logic... in trying to avoid them..yu r thinking abt them more often...:)

neels
May 19th, 2008, 07:23 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/motif/bracket_right.gif http://www.geeta-kavita.com/images/adhuri_yaad/adhuri_yaad.gif

Oh one more on "yaad"... gud one yogs.... i ll request yu to also give poet name along with the poem... and it wud be better if yu can just copy -paste the text...nt pasting it like an image... only text version is more easy to read n catch more sight... hope yu wont mind.

ysjabp
May 19th, 2008, 07:32 PM
Oh one more on "yaad"... gud one yogs.... i ll request yu to also give poet name along with the poem... and it wud be better if yu can just copy -paste the text...nt pasting it like an image... only text version is more easy to read n catch more sight... hope yu wont mind.

poet : Rakesh Khandelwal

Thank You Ma'am
I will try to post text only

warm rgds..
Yogendrasingh

shashiverma
May 19th, 2008, 08:01 PM
Oh one more on "yaad"... gud one yogs.... i ll request yu to also give poet name along with the poem... and it wud be better if yu can just copy -paste the text...nt pasting it like an image... only text version is more easy to read n catch more sight...



I will try to post text only



Why not poem with pictures neels? I find it good to read poem in this form. They look more soothing and attractive with no irritating spell mistakes which appears when u type hindi using google sites.
Rest is upto you people... This is just a personal opinion... :) Anyways, I would enjoy reading whatever way it is written...

vijay
May 19th, 2008, 09:06 PM
Why not poem with pictures neels? I find it good to read poem in this form. They look more soothing and attractive with no irritating spell mistakes which appears when u type hindi using google sites.
Rest is upto you people... This is just a personal opinion... :) Anyways, I would enjoy reading whatever way it is written...

What they say "A picture is worth million of words" and it's right as a picture intensify the thoughts of any write up.

I remember a Jatland member who used to put picture in her peotry and she used to call it "Picture Poetry" ... her name is Akanksha Chaudhary ..... if anyone remember about her. She used to write her own composition and most of the picture attached with her poem were used to be clicked by herself only.

Once again .... Just like Shashi ....... it's my personal openion only :)

Keep going guys ....... such a nice thread :)