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Thread: Hindi Kavita

  1. #321
    [quote=Samarkadian;172635]Thanks Guys! Here is some more positivism and realistic work by a young girl.

    _______________Samundra Manthan______________________//////

    Ek DIn Hridya Mein Aaya
    Samudra Manthan Ka Khayal
    To Mai Gayi Sagar Ke Pass
    Pucchne Uska Haal Chaal
    Shaant, Gambhir Maun Tha Sagar
    Samete Bahut Kuch Bheetar.................
    __________________________________________________ ________

    SAGAR KI VYATHA KA BADE SUNDER SHABDON MEIN VARNAN KIY HE
    BHAUT KHOOB.......
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  2. #322
    Quote Originally Posted by rama View Post
    Hello Dr. Neelam
    I think the poet is Randhari Singh Dinkar.
    Thanks.
    POET :RASHTRA KAVI SHRI RAMDHARI SINGH DINKAR
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  3. #323

    Har Andheri Raat Par Diva Jalana Kab Mana Hai.

    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
    - Harivansh Rai Bachchan

    कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
    भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था

    स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
    स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
    ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
    एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
    का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
    प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
    थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
    वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
    एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
    कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
    आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
    थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
    वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
    पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
    वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
    एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
    भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
    अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
    ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
    पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
    दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
    एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
    वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
    खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
    कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
    नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
    किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
    जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
    पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  4. #324
    Quote Originally Posted by neels View Post
    Liked it....
    ऊँचाई - अटल बिहारी वाजपेयी

    जो जितना ऊँचा,
    उतना एकाकी होता है,
    हर भार को स्वयं ढोता है,
    चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
    मन ही मन रोता है।


    मेरे प्रभु!
    मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
    गैरों को गले न लगा सकूँ,
    इतनी रुखाई कभी मत देना।
    - अटल बिहारी वाजपेयी
    Neel Ji Behad Khubsurat
    Ek dum Satik tathya he yeh panktiyan...
    Learn to write your Pain on the Sand
    Where winds of forgiveness erase it away
    Curve your Joys on Stone
    Where even rains cannot erase it !!
    ENJOY LIFE !!!


  5. #325

    Smile

    Quote Originally Posted by ysjabp View Post
    POET :RASHTRA KAVI SHRI RAMDHARI SINGH DINKAR
    O.K.
    Thanks.

  6. #326
    कवि: माखनलाल चतुर्वेदी
    ~*~*~*~*~*~*~*~
    कैसी है पहिचान तुम्हारी
    राह भूलने पर मिलते हो !


    पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने
    विविध धुनों में कितना गाया
    दायें-बायें, ऊपर-नीचे
    दूर-पास तुमको कब पाया


    धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही
    तुम खिलते हो तो खिलते हो।

    कैसी है पहिचान तुम्हारी
    राह भूलने पर मिलते हो!!


    किरणों प्रकट हुए, सूरज के
    सौ रहस्य तुम खोल उठे से
    किन्तु अँतड़ियों में गरीब की
    कुम्हलाये स्वर बोल उठे से !


    काँच-कलेजे में भी कस्र्णा-
    के डोरे ही से खिलते हो।
    कैसी है पहिचान तुम्हारी
    राह भूलने पर मिलते हो।।

    प्रणय और पुस्र्षार्थ तुम्हारा
    मनमोहिनी धरा के बल हैं
    दिवस-रात्रि, बीहड़-बस्ती सब
    तेरी ही छाया के छल हैं।


    प्राण, कौन से स्वप्न दिख गये
    जो बलि के फूलों खिलते हो।
    कैसी है पहिचान तुम्हारी
    राह भूलने पर मिलते हो।।

  7. #327

    Jeevan ki aapadhapi me----

    जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं,
    जो किया, कहा, माना उसमें भला बुरा क्या।


    जिस दिन मेरी चेतना जगी मैनें देखा,
    मैं खडा हुआ हूं दुनिया के इस मेले में,
    हर एक यहां पर एक भुलाने में भूला,
    हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में,
    कुछ देर रहा हक्क-बक्क, भौंचक्का सा,
    आ गया कंहा, क्या करुं यहां, जाऊं किस जगह?
    फ़िर एक तरफ़ से आया ही तो धक्का सा,
    मैनें भी बहना शुरु किया उस रेले में,
    क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
    जो भीतर भी भावों का उहापोह मचा,
    जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
    जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
    जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं,
    जो किया, कहा, माना उसमें भला बुरा क्या।


    मेला जितना भडकीला रंग-रंगीला था,
    मानस के अंदर उतनी ही कमज़ोरी थी,
    जितना ज़्यादा संचित करने की ख्वाहिश थी,
    उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
    जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
    उतना ही रेले तेज़ ढकेले जाते थे,
    क्रय-विक्रय तो ठंडे दिल से हो सकता है,
    यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
    अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊं,
    क्या मान अकिंचन पथ पर बिखरता आया,
    वह कौन रतन अनमोल मिला मुझको
    जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
    यह थी तकदीरी बात, मुझे गुण-दोष ना दो
    जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
    जिसको समझा था आंसू, वह मोती निकला
    जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं,
    जो किया, कहा, माना उसमें भला बुरा क्या।


    मैं कितना ही भूलूं, भटकूं या भरमाऊं,
    है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
    कितने ही मेरे पांव पडे, ऊंचे-नीचे,
    प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
    मुझ पर विधि का आभार बहुत सी बातों का,
    पर मैं क्रितग्य उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
    नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
    अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
    मैं जहां खडा था कल, उस थल पर आज नही,
    कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
    ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं,
    वे छू कर ही काल-देश की सीमाएं,
    जग दे मुझ पर फ़ैसला जैसा उसे भाए,
    लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के,
    इस एक और पहलू से होकर निकल चला,
    जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं,
    जो किया, कहा, माना उसमें भला बुरा क्या


    Dr. Harivansh Rai Bachchan

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    kamnanadar (March 1st, 2012)

  9. #328

    Soone Ghar Mein.....




    Lovely poem by : Shri Satyanarayan
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  10. #329

    Geet Ka Pahla Charan





    poet : Indira Gaud
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  11. #330
    एक भी आँसू न कर बेकार
    जाने कब समंदर मांगने आ जाए!

    पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
    यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
    और जिस के पास देने को न कुछ भी
    एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है

    कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
    जाने देवता को कौनसा भा जाय!

    चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
    किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
    आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
    पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं

    हर छलकते अश्रु को कर प्यार
    जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!

    व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
    काम अपने पाँव ही आते सफर में
    वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
    जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में

    हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
    जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!


    Poet: (Ram Avtar Tyagi)
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  12. #331
    When someone u trust most, leaves u in middle of nowhere ... the agony, heartache, restlessness, this poem describes really well!


    अब नहीं हो - अभिज्ञात

    हार, किस काँधे पे धर दूँ
    जीत किस को भेंट कर दूँ
    कोई तो अपना नहीं था
    एक तुम थे, अब नही हो!
    किस तरह राहत बनेगी
    टूट जाने की हताशा
    थक गई साँसों को देगा
    कौन जीवन की दिलासा
    बिस्तरों पर सिलवटें अब
    नींद क्या, बस करवटें अब
    रात ने ताने दिए तो
    आँख में बस बात ये कि
    कोई तो सपना नहीं था
    एक तुम थे, अब नहीं हो!

    किस हथेली की रेखाओं
    का वरण मैंने किया है
    किसका, क्षण भर प्यार पाने
    को जनम मैंने लिया है
    इस प्रश्न का हल मिला कल
    हाँ वही रीता हुआ पल
    जिसने मेरा गीत साधा
    जो कहो, रत्ना या राधा
    कोई तो इतना नहीं था
    एक तुम थे, अब नहीं हो!


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  13. #332

    Lightbulb

    Bhaisaab, I already posted these poems long back!

    Quote Originally Posted by ysjabp View Post
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
    - Harivansh Rai Bachchan

    कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
    भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
    .
    .

    एक भी आँसू न कर बेकार
    जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  14. #333

    Cool Thnak you

    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    Bhaisaab, I already posted these poems long back!
    Dear Jeet

    (HOW ARE YOU! I HOPE YOU WILL BE FINE )

    Now this post is to big , and I joined just 03 months ago
    AB AAP SAMAJH GAYE HOGE KI MAINE YE NAHI PADHA THA ILLIYE HI POST HO GAYA, AGLI BAAR MEIN DHYAN RAKHUNGA

    YAD DILANE KE LIYE SHUKRIYA
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  15. #334
    ईंधन - गुलज़ार

    छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी
    हम उपलों पर शक्लें गूँधा करते थे
    आँख लगाकर - कान बनाकर
    नाक सजाकर -
    पगड़ी वाला, टोपी वाला
    मेरा उपला -
    तेरा उपला -
    अपने-अपने जाने-पहचाने नामों से
    उपले थापा करते थे

    हँसता-खेलता सूरज रोज़ सवेरे आकर
    गोबर के उपलों पे खेला करता था
    रात को आँगन में जब चूल्हा जलता था
    हम सारे चूल्हा घेर के बैठे रहते थे
    किस उपले की बारी आयी
    किसका उपला राख हुआ
    वो पंडित था -
    इक मुन्ना था -
    इक दशरथ था -


    बरसों बाद - मैं
    श्मशान में बैठा सोच रहा हूँ
    आज की रात इस वक्त के जलते चूल्हे में
    इक दोस्त का उपला और गया!

    - गुलज़ार
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

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    navdeepkhatkar (October 24th, 2012)

  17. #335
    Sooner or later, we all compromise in life. Sooner or later, idealism gives way to realism. This beautiful poem by Dushyant Kumar depcits it really well!


    अब तो पथ यही है - दुष्यंत कुमार

    जिन्दगी ने कर लिया स्वीकार,
    अब तो पथ यही है |

    अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
    एक हल्का सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
    यह शिला पिघले या ना पिघले, रास्ता नम हो चला है,
    क्यों करूँ आकाश की मनुहार,
    अब तो पथ यही है |

    क्या भरोसा, कांचों का घट है किसी दिन फूट जाए,
    एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
    एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
    आज हर नक्षत्र है अनुदार,
    अब तो पथ यही है |

    ये लड़ाई, जो की अपने आप से मैँने लड़ी है,
    यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पड़ी है,
    यह पहाड़ी पांव क्या चढते. इरादों ने चढी़ है,
    कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
    अब तो पथ यही है | .


    Rock on
    Jit
    Last edited by cooljat; June 24th, 2008 at 03:39 PM.
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  18. #336
    You have reached the peak of career and life is taking you places. You have accomplished what ever is worthwhile in life and a loving family surrounds you. Yet, that first love in the life long bygone though, still haunts you. When all is quiet around, that face silently emerges in thoughts. Look how beautifully Dushyant Kumar puts it in words!

    तुझे कैसे भूल जाऊं - दुष्यंत कुमार

    अब उम्र की ढलान उतरते हुए मुझे
    आती है तेरी याद, तुझे कैसे भूल जाऊं |

    गहरा गये हैं सब धुंधलके निगाह में
    गो राहरौ नहीं है कहीं, फ़िर भी राह में
    लगते हैं चन्द साए उभरते हुए मुझे
    आती है तेरी याद, तुझे कैसे भूल जाऊं |

    फैले हुए सवाल सा, सड़कों का जाल है
    ये सड़क है उजाड़, या मेरा ख्याल है
    सामाने-सफर बांधते-धरते हुए मुझे
    आती है तेरी याद, तुझे कैसे भूल जाऊं |

    फ़िर पर्वतों के पास बिछा झील का पलंग
    होकर निढाल, शाम बजाती है जल-तरंग
    इन रास्तों से तनहा गुज़रते हुए मुझे
    आती है तेरी याद, तुझे कैसे भूल जाऊं |

    उन सिलसिलों की टीस अभी तक है घाव में
    थोडी-सी आंच और बची है अलाव में
    सजदा किसी पड़ाव में करते हुए मुझे
    आती है तेरी याद, तुझे कैसे भूल जाऊं |


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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    kamnanadar (March 1st, 2012)

  20. #337
    One indeed Rare Gem of Inspiring poem from the Treasure of Great Poet Bachhan ji! Life is a Journey and we sould always keep movin' ... great moral !!


    यात्रा और यात्री - हरिवंश राय बच्चन


    साँस चलती है तुझे
    चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

    चल रहा है तारकों का
    दल गगन में गीत गाता,
    चल रहा आकाश भी है
    शून्य में भ्रमता-भ्रमाता,
    पाँव के नीचे पड़ी
    अचला नहीं, यह चंचला है,
    एक कण भी, एक क्षण भी
    एक थल पर टिक न पाता,
    शक्तियाँ गति की तुझे
    सब ओर से घेरे हुए है;
    स्थान से अपने तुझे
    टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!

    साँस चलती है तुझे
    चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

    थे जहाँ पर गर्त पैरों
    को ज़माना ही पड़ा था,
    पत्थरों से पाँव के
    छाले छिलाना ही पड़ा था,
    घास मखमल-सी जहाँ थी
    मन गया था लोट सहसा,
    थी घनी छाया जहाँ पर
    तन जुड़ाना ही पड़ा था,
    पग परीक्षा, पग प्रलोभन
    ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू
    इस तरफ डटना उधर
    ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

    साँस चलती है तुझे
    चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

    शूल कुछ ऐसे, पगो में
    चेतना की स्फूर्ति भरते,
    तेज़ चलने को विवश
    करते, हमेशा जबकि गड़ते,
    शुक्रिया उनका कि वे
    पथ को रहे प्रेरक बनाए,
    किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने
    के लिए मजबूर करते,
    और जो उत्साह का
    देते कलेजा चीर, ऐसे
    कंटकों का दल तुझे
    दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

    साँस चलती है तुझे
    चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

    सूर्य ने हँसना भुलाया,
    चंद्रमा ने मुस्कुराना,
    और भूली यामिनी भी
    तारिकाओं को जगाना,
    एक झोंके ने बुझाया
    हाथ का भी दीप लेकिन
    मत बना इसको पथिक तू
    बैठ जाने का बहाना,
    एक कोने में हृदय के
    आग तेरे जग रही है,
    देखने को मग तुझे
    जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

    साँस चलती है तुझे
    चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

    वह कठिन पथ और कब
    उसकी मुसीबत भूलती है,
    साँस उसकी याद करके
    भी अभी तक फूलती है;
    यह मनुज की वीरता है
    या कि उसकी बेहयाई,
    साथ ही आशा सुखों का
    स्वप्न लेकर झूलती है
    सत्य सुधियाँ, झूठ शायद
    स्वप्न, पर चलना अगर है,
    झूठ से सच को तुझे
    छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

    साँस चलती है तुझे
    चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  21. #338
    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    Sooner or later, we all compromise in life. Sooner or later, idealism gives way to realism. This beautiful poem by Dushyant Kumar depcits it really well!


    अब तो पथ यही है - दुष्यंत कुमार

    जिन्दगी ने कर लिया स्वीकार,
    अब तो पथ यही है |

    अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
    एक हल्का सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
    यह शिला पिघले या ना पिघले, रास्ता नम हो चला है,
    क्यों करूँ आकाश की मनुहार,
    अब तो पथ यही है |

    क्या भरोसा, कांचों का घट है किसी दिन फूट जाए,
    एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
    एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
    आज हर नक्षत्र है अनुदार,
    अब तो पथ यही है |

    ये लड़ाई, जो की अपने आप से मैँने लड़ी है,
    यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पड़ी है,
    यह पहाड़ी पांव क्या चढते. इरादों ने चढी़ है,
    कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
    अब तो पथ यही है | .


    Rock on
    Jit
    gud one
    “Lead me, follow me or get out of my way”

  22. #339
    Gud Ones Jit... keep posting good stuff.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  23. #340
    Indeed one Inspiring gem of a poem by Dushyant Kumar, awesome!



    मत कहो, आकाश में कुहरा घना है - दुष्यंत कुमार

    मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
    यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

    सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
    क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

    इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
    हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

    पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
    बात इतनी है कि कोई पुल बना है ।

    रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
    आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

    हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
    शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।

    दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
    आजकल नेपथ्य में संभावना है ।


    Rock on
    Jit
    Last edited by cooljat; July 3rd, 2008 at 12:19 PM.
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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