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"आगै नै सरकियो"
एक राजस्थानी चुटकले पर निगाह पड़ी, जाटलैंड wiki के इस पेज पर । मजेदार किस्सा लगा । उसको नीचे लिख रहा हूं । राजस्थानी पढ़ने और समझने में मुझे तो कोई दिक्कत हुई नहीं । आप भी पढ़ो जरा -
गांव में एक लुगाई बुहारी निकाळ रैयी थी । चौक में उण रो धणी बैठ्यो थो। बा बुहारी काडती-काडती उणरै कनै आई तो बोली, 'परै सी सरकियो ।'
आदमी उठकै पौळी में आगो । लुगाई भी बुहारी काडती-काडती पौळी में आगी और धणी नै बोली, 'आगै नै सरकियो दिखां ।'
आदमी बारलै चौक में आगो । थोड़ी ताळ पछै बठै भी आगै सरकणै की बात कैयी । बो उठकै घरां रै बारणै दरूजै पर आगो अर चबूतरै पर बैठगो । लुगाई बुहारती-बुहारती घरां कै बारै आई तो पति नै बोली, 'सरकियो दिखां।'
आदमी आखतो होय'र मुंबई चल्यो गयो । बठै सूं चिट्ठी लिखी- 'अब भी तेरै अड़ूं हूं कै और आगै सरकूं? आगै समंदर है, देख लिए।'
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