आजादी के 62 सालों में भारत की तस्*वीर यकीनन बदली है। भारत ने तमाम क्षेत्र में जबर्दस्त तरक्की की है और विश्व के मानचित्र पर अपनी छवि बेहतर बनाई है। विज्ञान का क्षेत्र हो, व्यापार का, खेल का या फिर कोई और, देश ने सभी क्षेत्रों में झंडे गाड़े हैं। इसके बावजूद आम भारतीय गरीबी, बदहाली, परेशानी की जिंदगी जी रहा है। सुकून की तलाश में उसे भटकना पड़ रहा है।

भ्रष्टाचार हमारे सिस्टम में गहराई तक घुस गया है। कहीं भी, कोई भी काम ईमानदारी से हो जाए तो हैरानी होती है।सिस्*टम में चुस्*ती का भी सर्वथा अभाव है। एक तो लालफीताशाही और उस पर लेटलतीफी। सिस्*टम 62 साल के किसी बुजुर्ग की तरह सुस्*ती, लेटलतीफी से काम कर रहा है।

लोगों का भी हाल ऐसा लगता है कि जो है, जैसा है की स्थिति को उन्*होंने स्*वीकार कर लिया है। लोग वोट डालने तक की जहमत नहीं उठाते। सिस्*टम से उनका विश्*वास हिला है, तो वे खुद को सिस्*टम से अलग कर चलने की कोशिश करने लगते हैं। मैं क्या करूं? मेरी कौन सुनेगा? जैसे सवालों की आड़ में वे चुप्*पी लगा जाते हैं। जबकि ऐसे कई उदाहरण हैं कि जनता जागी है तो सिस्*टम बदला है। तो फिर क्*या इस देश में सबसे बड़ी समस्*या जनता की सुस्*ती ही है? या फिर भ्रष्*टाचार सारी बीमारियों की जड़ है? या लेटलतीफी ने सारा खेल खराब कर रखा है? आखिर क्*या है भारत की सबसे बड़ी समस्*या?