मैंने कइयो को कहते हुए सुना स के चौ छोटूराम जी ओहल्याण और सेठ चौ . छाजुराम जी लाम्बा अंग्रेजो कई पक्ष में थे | जबकि हकीक़त यह हैं की इन् दोन्वा न अपनी कौम और देश से बहुत प्रेम था ,गाँधी नेहरु से भी ज्यादा |
जाब चौ.छोटूराम जी ओहल्याण से पूछा की क्या आप आज़ादी नहीं चाहते , तो इस पर चौ. साहब का जवाब था के मैं आज़ादी के हक में सु पर अभी मेरी कौम इस लायक नहीं हुई हैं पहले हम अपनी कौम को हर स्तर पर तैयार कर ले उसके बाद आज़ादी मांगेंगे क्योंकि अगर अभी आज़ादी मिल गई तो " इन् गोरे अंग्रेजो से जयादा काले अंग्रेजो की गुलामी खतरनाक होगी " | आज हम ये देख भी रहें हैं की चौ.साहब की बात कितनी सही थी |
चौ साहब अक्सर कहते थे ..
"इस कौम का इलाही दुखडा किसे सुनाऊ ?
डर हैं के इसके गम में घुल घुल के मर न जाऊँ ||"
इस्सी तरह लोगो का चौ. छाजुराम जी लाम्बा के बारे में कथन हैं | चौ.साहब एक व्यापारी थे , जाटों कौम को उठाने में चौ.साहब का बहुत बड़ा हाथ हैं | जाट संस्थाए चौ.साहब की दें हैं | जब शहीद -ऐ - आज़म भगत सिंह संधू सान्द्रस का कत्ल करने बाद अपने साथियों साथ कलकाता गए थे तो वहा पर वे एक महीने तक चौ. साहब की कोठी पर रुके थे | अगर चौ साहब अंग्रेजो के पीठु होते तो भगत सिंह जी और उनके साथियों को पनाह देने की हिम्मत नहीं करते |
मेरी आप सब से येही अर्ज हैं के इन् महान हस्तियों जिनके कारन आज हम जाट इस मुकाम पर पहुचे हैं , के खिलाफ ऐसे दुष्प्रचार से बचे |