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Thread: Hindi Kavita

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  1. #1

    Thumbs up Hindi Kavita

    Got the idea of this thread from the movie "Maine Gandhi Ko Nahin Mara" directed by Jahnu Barua, with lead characters played superbly by Anupam Kher and Urmila Matondkar. It is a gripping tail of a family's struggle to treat the delusional dementia of their old father. A poem that runs through the movie is very inspirational and I thought I should share it with the readers. Here is the poem, especially for those who get disheartened by failures. The poem is by the famous Hindi poet Suryakant Tripathi Nirala.

    But the idea behind this thread is not to share just this one poem,, rather I feel there are many more very meaningful, good hindi kavita,,, which is treat to read. So I request all the fellow members, who are interested in Hindi Poetry to post any gud "kavita" with poet name n other reference. I ll also keep coming with my fav. poems (n there r many....).

    So here is Nirala's "Himmat Kerne Walon Ki Kabhi Haar Nahin Hoti"...

    लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
    हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती...


    नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है
    चढ्ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है

    मन् का विश्वास रगों में साहस बनता है
    चढ़ कर गिरना , गिर कर चढ़ना ना अखरता है
    आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती....


    डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगता है
    जा जा कर खाली हाथ लौट आता है
    मिलते ना सहज ही मोती पानी में
    बहता दूना उत्साह इसी हैरानी में
    मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
    हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती....

    असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो
    क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
    जब तक ना सफल हो नींद चैन की त्यागो तुम
    संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
    कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
    हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती....
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  2. The Following 7 Users Say Thank You to neels For This Useful Post:

    bazardparveen (February 24th, 2012), cooljat (February 10th, 2013), gsolanki9063 (November 10th, 2012), kuldeeppunia25 (February 18th, 2012), ndalal (August 27th, 2012), SandeepSirohi (October 3rd, 2012), Sure (November 15th, 2011)

  3. #2

    Thumbs up

    Very inspiring lines Neelam! Keep it up dear!


    Stay planted like a rock...come what may? Life is to live bravely...otherwise cowards die many a death daily.Lead your way holding your head high!
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

  4. #3
    neelam ji, yo kavita tai meri bhi favorites me hain. all good thoughts i come accross i stick on the wall in front of me. this poem is also there.
    thanks for sharing with everyone

    "कर्मंयेवाधिकरास्ते = कर्मणि एव अधिकार: ते = कर्म करनें में ही अधिकार है तुम्हारा"

  5. #4

    सखि वे मुझसे कह कर जाते / मैथिलीशरण गुप्त

    The relationship between a husband and wife is based on total faith. A girl leaves her family and adopts the family of her husband. Her expectation is that her husband will take her in full confidence and share all feelings and thoughts with her. Prince Siddharta (who later became Gautam Buddha) left his wife Yashodhara and his son while they were sleeping, without telling a word, to start his own journey to Truth. That must have shattered Yashodhara. In this famous poem by Rashtra Kavi Maithili Sharan Gupt, Yashodhara wonders would she have stopped Siddhartha, had he confided in her. “For aren’t we the ones who readily prepare and send our beloved husbands even for wars, when it is required? So why would I have said no to him, if he had just told me?” she wonders. She is greatly anguished, but she loves him and even in her anguish she tries to defend his decision of leaving without telling her. A very touching poem indeed.


    सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
    कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?


    मुझको बहुत उन्होंने माना
    फिर भी क्या पूरा पहचाना?
    मैंने मुख्य उसी को जाना
    जो वे मन में लाते।
    सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


    स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
    प्रियतम को, प्राणों के पण में,
    हमीं भेज देती हैं रण में -
    क्षात्र-धर्म के नाते।
    सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


    हु*आ न यह भी भाग्य अभागा,
    किसपर विफल गर्व अब जागा?
    जिसने अपनाया था, त्यागा;
    रहे स्मरण ही आते!
    सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


    नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
    पर इनसे जो आँसू बहते,
    सदय हृदय वे कैसे सहते?
    गये तरस ही खाते!
    सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


    जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
    दुखी न हों इस जन के दुख से,
    उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
    आज अधिक वे भाते!
    सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


    गये, लौट भी वे आवेंगे,
    कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
    रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
    पर क्या गाते-गाते?
    सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  6. The Following 4 Users Say Thank You to neels For This Useful Post:

    bharatnain (January 2nd, 2013), karan (December 22nd, 2011), ndalal (August 27th, 2012), Sure (November 15th, 2011)

  7. #5
    good neelam... both poems are really nice... especially the first one ... gr888 nirala ji... keep pouring ... i will also find some gud n will share

  8. #6
    neelam ji, but ye ek stri ke andar ka antardwandh hota hai,, swabhaav se hi

    abhi vo kahe "mai kya rokti unko?"
    but real me rok bhi leti

    "कर्मंयेवाधिकरास्ते = कर्मणि एव अधिकार: ते = कर्म करनें में ही अधिकार है तुम्हारा"

  9. #7

    Hindi Kavita

    Dr. Rathee, keep writting...we are really enjoying ur kavita's.

  10. #8
    Quote Originally Posted by manojmann View Post
    Dr. Rathee, keep writting...we are really enjoying ur kavita's.
    Quote Originally Posted by vikasgulia
    This is the first time, I stumbled upon this thread....and believe me..i could not stop my self to read it from beginning till end....

    Am Lovin' It!!!!!!!!!!!!!!!!! .
    Thanks a Lot Guys.... ll try to keep adding some classics.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  11. #9

    चंद्र गहना से लौटती बेर / केदारनाथ अग्रवाल

    One more Classic !

    चंद्र गहना से लौटती बेर / केदारनाथ अग्रवाल

    देखा आया चंद्र गहना।
    देखता हूँ दृश्य अब मैं
    मेड़ पर इस खेत पर मैं बैठा अकेला।
    एक बीते के बराबर
    यह हरा ठिगना चना,
    बाँधे मुरैठा शीश पर
    छोटे गुलाबी फूल का,
    सज कर खड़ा है।
    पास ही मिल कर उगी है
    बीच में आली हठीली
    देह की पतली, कमर की है लचीली,
    नीज फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
    कह रही है, जो छूए यह,
    दूँ हृदय का दान उसको।
    और सरसों की न पूछो-
    हो गई सबसे सयानी,
    हाथ पीले कर लिए हैं
    ब्याह-मंडप में पधारी
    फाग गाता मास फागुन
    आ गया है आज जैसे।
    देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है,
    पकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
    इस विजन में,
    दूर व्यापारिक नगर से
    प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
    और पैरों के तले हैं एक पोखर,
    उठ रही है इसमें लहरियाँ,
    नील तल में जो उगी है घास भूरी
    ले रही वह भी लहरियाँ।
    एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
    आँख को है चकमकाता।
    हैं कईं पत्थर किनारे
    पी रहे चुपचाप पानी,
    प्यास जाने कब बुझेगी!
    चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
    देखते ही मीन चंचल
    ध्यान-निद्रा त्यागता है,
    चट दबाकर चोंच में
    नीचे गले के डालता है!
    एक काले माथ वाली चतुर चिडि़या
    श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
    टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
    एक उजली चटुल मछली
    चोंच पीली में दबा कर
    दूर उड़ती है गगन में!
    औ' यही से-
    भूमी ऊँची है जहाँ से-
    रेल की पटरी गई है।
    चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
    कम ऊँची-ऊँची पहाडि़याँ
    दूर दिशाओं तक फैली हैं।
    बाँझ भूमि पर
    इधर-उधर रिंवा के पेड़
    काँटेदार कुरूप खड़े हैं
    सुन पड़ता है
    मीठा-मीठा रस टपकता
    सुग्गे का स्वर
    टें टें टें टें;
    सुन पड़ता है
    वनस्थली का हृदय चीरता
    उठता-गिरता,
    सारस का स्वर
    टिरटों टिरटों;
    मन होता है-
    उड़ जाऊँ मैं
    पर फैलाए सारस के संग
    जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
    हरे खेत में
    सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
    चुप्पे-चुप्पे।
    Last edited by neels; January 1st, 2008 at 10:39 PM. Reason: correction
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  12. #10

    Thumbs up

    Quote Originally Posted by neels View Post
    One more Classic !

    चंद्र गहना से लौटती बेर / केदारनाथ अग्रवाल

    देखा आया चंद्र गहना।
    देखता हूँ दृश्य अब मैं
    मेड़ पर इस खेत पर मैं बैठा अकेला।
    एक बीते के बराबर
    यह हरा ठिगना चना,
    बाँधे मुरैठा शीश पर
    छोटे गुलाबी फूल का,
    सज कर खड़ा है।
    पास ही मिल कर उगी है
    बीच में आली हठीली
    देह की पतली, कमर की है लचीली,
    नीज फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
    कह रही है, जो छूए यह,
    दूँ हृदय का दान उसको।
    और सरसों की न पूछो-
    हो गई सबसे सयानी,
    हाथ पीले कर लिए हैं
    ब्याह-मंडप में पधारी
    फाग गाता मास फागुन
    आ गया है आज जैसे।
    देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है,
    पकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
    इस विजन में,
    दूर व्यापारिक नगर से
    प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
    और पैरों के तले हैं एक पोखर,
    उठ रही है इसमें लहरियाँ,
    नील तल में जो उगी है घास भूरी
    ले रही वह भी लहरियाँ।
    एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
    आँख को है चकमकाता।
    हैं कईं पत्थर किनारे
    पी रहे चुपचाप पानी,
    प्यास जाने कब बुझेगी!
    चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
    देखते ही मीन चंचल
    ध्यान-निद्रा त्यागता है,
    चट दबाकर चोंच में
    नीचे गले के डालता है!
    एक काले माथ वाली चतुर चिडि़या
    श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
    टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
    एक उजली चटुल मछली
    चोंच पीली में दबा कर
    दूर उड़ती है गगन में!
    औ' यही से-
    भूमी ऊँची है जहाँ से-
    रेल की पटरी गई है।
    चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
    कम ऊँची-ऊँची पहाडि़याँ
    दूर दिशाओं तक फैली हैं।
    बाँझ भूमि पर
    इधर-उधर रिंवा के पेड़
    काँटेदार कुरूप खड़े हैं
    सुन पड़ता है
    मीठा-मीठा रस टपकता
    सुग्गे का स्वर
    टें टें टें टें;
    सुन पड़ता है
    वनस्थली का हृदय चीरता
    उठता-गिरता,
    सारस का स्वर
    टिरटों टिरटों;
    मन होता है-
    उड़ जाऊँ मैं
    पर फैलाए सारस के संग
    जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
    हरे खेत में
    सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
    चुप्पे-चुप्पे।



    Awesome..!
    Expecting more such nice stuff..!
    FIGHT FOR A BRIGHTER INDIA

  13. #11

    कलम, आज उनकी जय बोल / रामधारी सिंह "दिनकर"

    कलम, आज उनकी जय बोल / रामधारी सिंह "दिनकर"

    जो अगणित लघु दीप हमारे
    तूफानों में एक किनारे
    जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
    मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
    कलम, आज उनकी जय बोल

    पीकर जिनकी लाल शिखाएं
    उगल रही लपट दिशाएं
    जिनके सिंहनाद से सहमी
    धरती रही अभी तक डोल
    कलम, आज उनकी जय बोल
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  14. #12
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    well

    bahut ache neelam jin kaveyo ko ham bhul jate h unko time time par
    yad karte rahna chahiye

  15. #13

    Kousish Karne Walon Ki Haar Nahi Hoti

    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

    लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

    नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
    चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
    मन का विश्वाश रगों मे साहस भरता है
    चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
    आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

    डुबकियां सिन्धु मे गोताखोर लगाता है,
    जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
    मिलते नहीं सहज ही मोंती गहरे पानी में,
    बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
    मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

    असफलता एक चुनौती है , इसे स्वीकार करो ,
    क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो .

    जब तक ना सफल हो , नींद चैन को त्यागो तुम ,
    संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम.
    कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


    -----By Harivansh Rai Bachchan
    Last edited by VirenderNarwal; September 25th, 2008 at 09:48 PM. Reason: Merged in previous thread....as Hindi Kavita

  16. #14

    Smile

    Nice job "D". Thanks a lot for sharing

  17. #15
    Ever Inspiring Poem.... bt DK,, this poem is by Nirala, not Bachhan.

    chk it... http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=22113

    This was the first poem with which i started Hindi Kavita thread.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  18. #16
    मेरे भारत की आजादी, जिनकी बेमौल निशानी है।
    जो सींच गए खूं से धरती, इक उनकी अमर कहानी है।


    वो स्वतंत्रता के अग्रदूत, बन दीप सहारा देते थे।
    खुद अपने घर को जला-जला, मां को उजियारा देते थे।


    उनके शोणित की बूंद-बूंद, इस धरती पर बलिहारी थी।
    हर तूफानी ताकत उनके, पौरुष के आगे हारी थी।


    मॉ की खातिर लडते-लडते, जब उनकी सांसें सोई थी।
    चूमा था फॉंसी का फंदा, तब मृत्यु बिलखकर रोई थी।


    ना रोक सके अंग्रेज कभी, आंधी उस वीर जवानी की।
    है कौन कलम जो लिख सकती, गाथा उनकी कुर्बानी की।


    पर आज सिसकती भारत मां, नेताओं के देखे लक्षण।
    जिसकी छाती से दूध पिया, वो उसका तन करते भक्षण।


    जब जनता बिलख रही होती, ये चादर ताने सोते हैं।
    फिर निकल रात के साए में, ये खूनी खंजर बोते हैं।


    अब कौन बचाए फूलों को, गुलशन को माली लूट रहा।
    रिश्वत लेते जिसको पकड़ा, वो रिश्वत देकर छूट रहा।


    डाकू भी अब लड़कर चुनाव, संसद तक में आ जाते हैं।
    हर मर्यादा को छिन्न भिन्न, कुछ मिनटों में कर जाते हैं।


    यह राष्ट्र अटल, रवि सा उज्ज्वल, तेजोमय, सारा विश्व कहे।
    पर इसको सत्ता के दलाल, तम के हाथों में बेच रहे।


    ये भला देश का करते हैं, तो सिर्फ कागजी कामों में।
    भूखे पेटों को अन्न नहीं ये सडा रहे गोदामो में।


    अपनी काली करतूतों से, बेइज्जत देश कराया है।
    मेरे इस प्यारे भारत का, दुनिया में शीश झुकाया है।


    पूछो उनसे जाकर क्यों है, हर द्वार-द्वार पर दानवता।
    निष्कंटक घूमें हत्यारे, है ज़ार-ज़ार क्यों मानवता।


    खुद अपने ही दुष्कर्मों पर, घडियाली आंसू टपकाते।
    ये अमर शहीदों को भी अब, संसद में गाली दे जाते।


    खा गए देश को लूट-लूट, भर लिया ज़ेब में लोकतंत्र।
    इन भ्रष्टाचारी दुष्टों का, है पाप यज्ञ और लूट मंत्र।


    गांधी, सुभाष, नेहरू, पटेल, देखो छाई ये वीरानी।
    अशफाक, भगत, बिस्मिल तुमको, फिर याद करें हिन्दुस्तानी।


    है कहॉं वीर आजाद, और वो खुदीराम सा बलिदानी।
    जब लालबहादुर याद करूं, आंखों में भर आता पानी।


    जब नमन शहीदों को करता, तब रक्त हिलोरें लेता है।
    भारत मां की पीड़ा का स्वर, फिर आज चुनौती देता है।


    अब निर्णय बहुत लाजमी है, मत शब्दों में धिक्कारो।
    सारे भ्रष्टों को चुन-चुन कर, चौराहों पर चाबुक मारो।


    हो अपने हाथों परिवर्तन, तन में शोणित का ज्वार उठे।
    विप्लव का फिर हो शंखनाद, अगणित योद्धा ललकार उठें।


    मैं खड़ा विश्वगुरु की रज पर, पीड़ा को छंद बनाता हूं।
    यह परिवर्तन का क्रांति गीत, मां का चारण बन गाता हूं।
    -अरुण मित्तल अद्भुत‘`

  19. #17
    Email Verification Pending
    Login to view details.
    Quote Originally Posted by dkumars View Post
    मेरे भारत की आजादी, जिनकी बेमौल निशानी है।
    जो सींच गए खूं से धरती, इक उनकी अमर कहानी है।


    वो स्वतंत्रता के अग्रदूत, बन दीप सहारा देते थे।
    खुद अपने घर को जला-जला, मां को उजियारा देते थे।


    उनके शोणित की बूंद-बूंद, इस धरती पर बलिहारी थी।
    हर तूफानी ताकत उनके, पौरुष के आगे हारी थी।


    मॉ की खातिर लडते-लडते, जब उनकी सांसें सोई थी।
    चूमा था फॉंसी का फंदा, तब मृत्यु बिलखकर रोई थी।


    ना रोक सके अंग्रेज कभी, आंधी उस वीर जवानी की।
    है कौन कलम जो लिख सकती, गाथा उनकी कुर्बानी की।


    पर आज सिसकती भारत मां, नेताओं के देखे लक्षण।
    जिसकी छाती से दूध पिया, वो उसका तन करते भक्षण।


    जब जनता बिलख रही होती, ये चादर ताने सोते हैं।
    फिर निकल रात के साए में, ये खूनी खंजर बोते हैं।


    अब कौन बचाए फूलों को, गुलशन को माली लूट रहा।
    रिश्वत लेते जिसको पकड़ा, वो रिश्वत देकर छूट रहा।




    हो अपने हाथों परिवर्तन, तन में शोणित का ज्वार उठे।
    विप्लव का फिर हो शंखनाद, अगणित योद्धा ललकार उठें।


    मैं खड़ा विश्वगुरु की रज पर, पीड़ा को छंद बनाता हूं।
    यह परिवर्तन का क्रांति गीत, मां का चारण बन गाता हूं।
    -अरुण मित्तल अद्भुत‘`
    good... bahut badiya bhai aaj kal asi kavitaye kam hi sun ne ko
    milti hai

  20. #18
    Poem that express the sheer grief and pain of the poet, who's soldier friend just sacrificed his life on the battlefield. Depicts the real picture aftermath.

    A poem that ll moist your eyes for sure ! ...

    सैनिक की मौत - अशोक कुमार पाण्डेय

    तीन रंगो के
    लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
    लौट आया है मेरा दोस्त

    अखबारों के पन्नों
    और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
    भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
    उदास बैठै हैं पिता
    थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन

    सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
    बार-बार फूट पड़ती है पत्नी

    कभी-कभी
    एक किस्से का अंत
    कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है

    और किस्सा भी क्या?
    किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
    फिर सपनीली उम्र आते-आते
    सिमट जाना सारे सपनो का
    इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के

    अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग

    या फिर केवल योग
    कि दे’शभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
    और नौकरी जिंदगी की
    इसीलिये
    भरती की भगदड़ में दब जाना
    महज हादसा है
    और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
    ’शहादत!

    बचपन में कुत्तों के डर से
    रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
    आठ को मार कर मरा था

    बारह दु’शमनों के बीच फंसे आदमी के पास
    बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?


    वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
    जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
    दरअसल उस दिन
    अखबारों के पहले पन्ने पर
    दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
    और उसी दिन ठीक उसी वक्त
    देश के सबसे तेज चैनल पर
    चल रही थी
    क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा

    एक दूसरे चैनल पर
    दोनों दे’शों के म’शहूर ’शायर
    एक सी भाषा में कह रहे थे
    लगभग एक सी गजलें

    तीसरे पर छूट रहे थे
    हंसी के बेतहा’शा फव्वारे
    सीमाओं को तोड़कर

    और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
    सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
    दबी थीं
    अलग-अलग वर्दियों में
    एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
    नौ बेनाम ला’शों



    अजीब खेल है
    कि वजीरों की दोस्ती
    प्यादों की लाशों पर पनपती है
    और
    जंग तो जंग
    ’शाति भी लहू पीती है! ...



    Jit

    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  21. #19
    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    Poem that express the sheer grief and pain of the poet, who's soldier friend just sacrificed his life on the battlefield. Depicts the real picture aftermath.

    A poem that ll moist your eyes for sure ! ...

    सैनिक की मौत - अशोक कुमार पाण्डेय

    तीन रंगो के
    लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
    लौट आया है मेरा दोस्त

    अखबारों के पन्नों
    और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
    भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
    उदास बैठै हैं पिता
    थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन

    सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
    बार-बार फूट पड़ती है पत्नी

    कभी-कभी
    एक किस्से का अंत
    कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है

    और किस्सा भी क्या?
    किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
    फिर सपनीली उम्र आते-आते
    सिमट जाना सारे सपनो का
    इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के

    अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग

    या फिर केवल योग
    कि दे’शभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
    और नौकरी जिंदगी की
    इसीलिये
    भरती की भगदड़ में दब जाना
    महज हादसा है
    और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
    ’शहादत!

    बचपन में कुत्तों के डर से
    रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
    आठ को मार कर मरा था

    बारह दु’शमनों के बीच फंसे आदमी के पास
    बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?


    वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
    जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
    दरअसल उस दिन
    अखबारों के पहले पन्ने पर
    दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
    और उसी दिन ठीक उसी वक्त
    देश के सबसे तेज चैनल पर
    चल रही थी
    क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा

    एक दूसरे चैनल पर
    दोनों दे’शों के म’शहूर ’शायर
    एक सी भाषा में कह रहे थे
    लगभग एक सी गजलें

    तीसरे पर छूट रहे थे
    हंसी के बेतहा’शा फव्वारे
    सीमाओं को तोड़कर

    और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
    सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
    दबी थीं
    अलग-अलग वर्दियों में
    एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
    नौ बेनाम ला’शों



    अजीब खेल है
    कि वजीरों की दोस्ती
    प्यादों की लाशों पर पनपती है
    और
    जंग तो जंग
    ’शाति भी लहू पीती है! ...



    Jit

    Superb man u made my day. well done and keep it up

  22. #20
    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    Poem that express the sheer grief and pain of the poet, who's soldier friend just sacrificed his life on the battlefield. Depicts the real picture aftermath.

    A poem that ll moist your eyes for sure ! ...

    सैनिक की मौत - अशोक कुमार पाण्डेय

    तीन रंगो के
    लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
    लौट आया है मेरा दोस्त

    अखबारों के पन्नों
    और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
    भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
    उदास बैठै हैं पिता
    थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन

    सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
    बार-बार फूट पड़ती है पत्नी

    कभी-कभी
    एक किस्से का अंत
    कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है

    और किस्सा भी क्या?
    किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
    फिर सपनीली उम्र आते-आते
    सिमट जाना सारे सपनो का
    इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के

    अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग

    या फिर केवल योग
    कि दे’शभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
    और नौकरी जिंदगी की
    इसीलिये
    भरती की भगदड़ में दब जाना
    महज हादसा है
    और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
    ’शहादत!

    बचपन में कुत्तों के डर से
    रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
    आठ को मार कर मरा था

    बारह दु’शमनों के बीच फंसे आदमी के पास
    बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?


    वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
    जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
    दरअसल उस दिन
    अखबारों के पहले पन्ने पर
    दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
    और उसी दिन ठीक उसी वक्त
    देश के सबसे तेज चैनल पर
    चल रही थी
    क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा

    एक दूसरे चैनल पर
    दोनों दे’शों के म’शहूर ’शायर
    एक सी भाषा में कह रहे थे
    लगभग एक सी गजलें

    तीसरे पर छूट रहे थे
    हंसी के बेतहा’शा फव्वारे
    सीमाओं को तोड़कर

    और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
    सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
    दबी थीं
    अलग-अलग वर्दियों में
    एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
    नौ बेनाम ला’शों



    अजीब खेल है
    कि वजीरों की दोस्ती
    प्यादों की लाशों पर पनपती है
    और
    जंग तो जंग
    ’शाति भी लहू पीती है! ...



    Jit

    Excellent.....
    “Lead me, follow me or get out of my way”

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