कातिल शूल भी दुलरा रहे हैं पों को मेरे
कहीं तुम पंथ पेर पलके बिछाए टू नही बैठी
हवाओं में न जाने आज कुछ नमी सी हेई
डगर की उष्णता में भी न जाने क्यों कमी सी हेई
गगन पेर बदलियाँ लहरा रही हेई, श्याम आँचल सी
कहीं तुम नयन में सावन बिछाए टू नही बैठी
अमावस की दुल्हन सोई हुई हेई, अवनी से लग कर
न जाने तरिकाए बात किसकी जोती जग कर
गहन तम हेई, डगर मेरी मगर फिर भी चमकती हेई
कहीं तुम द्वार पे दीपक जलाये टू नही बैठी
हुई कुछ बात असइ, फूल भी फीके पड़ जाते
सितारे भी चमक पर आज टू अपनी इतराते
बहुत शर्मा रहा हेई, बदलियो की ओत में चन्दा
कहीं तुम आँख में काजल लगाये टू नही बैठी
Poet : Balswaroop Rahi