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Thread: Hindi Kavita

  1. #281

    Kahin tum To Nahi...

    कातिल शूल भी दुलरा रहे हैं पों को मेरे
    कहीं तुम पंथ पेर पलके बिछाए टू नही बैठी

    हवाओं में न जाने आज कुछ नमी सी हेई
    डगर की उष्णता में भी न जाने क्यों कमी सी हेई
    गगन पेर बदलियाँ लहरा रही हेई, श्याम आँचल सी
    कहीं तुम नयन में सावन बिछाए टू नही बैठी

    अमावस की दुल्हन सोई हुई हेई, अवनी से लग कर
    न जाने तरिकाए बात किसकी जोती जग कर
    गहन तम हेई, डगर मेरी मगर फिर भी चमकती हेई
    कहीं तुम द्वार पे दीपक जलाये टू नही बैठी

    हुई कुछ बात असइ, फूल भी फीके पड़ जाते
    सितारे भी चमक पर आज टू अपनी इतराते
    बहुत शर्मा रहा हेई, बदलियो की ओत में चन्दा
    कहीं तुम आँख में काजल लगाये टू नही बैठी

    Poet : Balswaroop Rahi
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  2. #282
    Quote Originally Posted by nainakhicher View Post
    Aaj Jatland par bhi barish ho hi gai. Very nice yoginder bhaiya.
    Bebbe Aap ki pharmaish thi Barish ki aur Mausam bhi dastak de raha hei
    to bus aapki khattir dhundh ke post kar di

    Aapka Bhaiya
    Yogendra singh joon
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  3. #283
    Quote Originally Posted by cooljat View Post

    तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार - शिवमंगल सिंह सुमन

    आज सिन्धु ने विष उगला है
    लहरों का यौवन मचला है
    आज ह्रदय में और सिन्धु में
    साथ उठा है ज्वार

    तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    One more for the day, Again an inspiring poem, givin msg to those who shed tears just for lil defeats & few shattered dreams! Truly matchless, Great moral as well!


    छिप-छिप अश्रु बहाने वालों - गोपालदास "नीरज"


    छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
    कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
    सपना क्या है, नयन सेज पर
    सोया हुआ आँख का पानी
    और टूटना है उसका ज्यों
    जागे कच्ची नींद जवानी
    गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
    कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |

    Rock on
    Jit
    Too good jit.... keep it up... the second one is really worth posting and meaningful.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  4. #284
    can any one post MADHUSHALA BY Harivansh Rai bacchan

  5. #285

    Madhushal !!




    Shri Harvansh Rai Bachhan
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  6. #286
    Quote Originally Posted by ahlwit View Post
    can any one post MADHUSHALA BY Harivansh Rai bacchan
    RAHUL JI AAP KE LIYE MADHUSHLA PADH LIJIYE
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  7. #287

    Jab Milegi Roshni Mujhse Milegi




    POET : RAM AVTAR TYAGI
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  8. #288
    योगेंदर भाई,

    अति सुंदर !

    में जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;
    मत मिटाओ -
    पाँव मेरे देख कर दुनिया चलेगी !!.......

    में बहारों का अकेला वंशधर हूँ ......

    आंसुओं को देख कर मेरी हँसी तुम मत उड़ाओ!
    में ना रोऊँ तो शिला कैसे गलेगी ! .....


    इस सुंदर कविता को यहाँ प्रेषित करने के लिए धन्यवाद !



    खुश रहो !
    Last edited by spdeshwal; May 30th, 2008 at 03:53 AM.

  9. #289
    Yoginder Bhai, thank you very much for posting Madhushala

  10. #290
    One more gem from the treasure of Great Bachchan, matchless!!
    lil melancholic in touch .... but a class apart ... as usual !!


    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है - हरिवंश राय बच्चन

    कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
    भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था

    स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
    स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
    ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
    एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
    का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
    प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
    थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
    वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
    एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
    कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
    आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
    थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
    वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
    पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
    वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
    एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
    भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
    अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
    ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
    पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
    दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
    एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
    वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
    खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

    क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
    कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
    नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
    किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
    जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
    पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
    है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है |


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  11. #291
    One more for the day, A quality inspiring poem ... really touchin' ... never say die is the moral !! Awesome!


    क्योंकि सपना है अभी भी - धर्मवीर भारती

    ...क्योंकि सपना है अभी भी
    इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल
    कोहरे डूबी दिशाएं
    कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल
    किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
    ...क्योंकि सपना है अभी भी!

    तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
    जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा
    कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा
    विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
    (एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा?)
    किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
    है धधकती आग में तपना अभी भी
    ....क्योंकि सपना है अभी भी!

    तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
    वह तुम्ही हो जो
    टूटती तलवार की झंकार में
    या भीड़ की जयकार में
    या मौत के सुनसान हाहाकार में
    फिर गूंज जाती हो

    और मुझको
    ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
    फिर तड़प कर याद आता है कि
    सब कुछ खो गया है - दिशाएं, पहचान, कुंडल,कवच
    लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
    तुम्हारा अपना अभी भी

    इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल
    कोहरे डूबी दिशाएं
    कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध धुमिल
    किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
    ... क्योंकि सपना है अभी भी!



    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  12. #292
    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    One more for the day, A quality inspiring poem ... really touchin' ... never say die is the moral !! Awesome!


    क्योंकि सपना है अभी भी - धर्मवीर भारती

    ...क्योंकि सपना है अभी भी
    इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल
    कोहरे डूबी दिशाएं
    कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल
    किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
    ...क्योंकि सपना है अभी भी!

    तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
    जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा
    कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा
    विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
    (एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा?)
    किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
    है धधकती आग में तपना अभी भी
    ....क्योंकि सपना है अभी भी!

    तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
    वह तुम्ही हो जो
    टूटती तलवार की झंकार में
    या भीड़ की जयकार में
    या मौत के सुनसान हाहाकार में
    फिर गूंज जाती हो

    और मुझको
    ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
    फिर तड़प कर याद आता है कि
    सब कुछ खो गया है - दिशाएं, पहचान, कुंडल,कवच
    लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
    तुम्हारा अपना अभी भी

    इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल
    कोहरे डूबी दिशाएं
    कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध धुमिल
    किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
    ... क्योंकि सपना है अभी भी!



    Rock on
    Jit
    BAHUT BADHIYA JIT BHAI
    योगेन्द्रसिंह

    Treat Life As Sea, Heart as Seashore and Friends like waves.
    It never matters how many waves are there?
    What matters is which one touches the Seashore.

  13. #293
    विवशता - शिव मंगल सिंह 'सुमन'

    मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
    पथ ही मुड़ गया था।

    गति मिलि मैं चल पड़ा
    पथ पर कहीं रुकना मना था,
    राह अनदेखी, अजाना देश
    संगी अनसुना था।
    चाँद सूरज की तरह चलता
    न जाना रातदिन है,
    किस तरह हम तुम गए मिल
    आज भी कहना कठिन है,
    तन न आया माँगने अभिसार
    मन ही जुड़ गया था।

    देख मेरे पंख चल, गतिमय
    लता भी लहलहाई
    पत्र आँचल में छिपाए मुख
    कली भी मुस्कुराई।
    एक क्षण को थम गए डैने
    समझ विश्राम का पल
    पर प्रबल संघर्ष बनकर
    आ गई आँधी सदलबल।
    डाल झूमी, पर न टूटी
    किंतु पंछी उड़ गया था।
    - शिव मंगल सिंह 'सुमन'
    Last edited by neels; May 30th, 2008 at 09:17 PM.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  14. The Following User Says Thank You to neels For This Useful Post:

    kamnanadar (March 1st, 2012)

  15. #294
    Quote Originally Posted by ysjabp View Post


    POET : RAM AVTAR TYAGI
    Interesting and Gud one

  16. #295

    Thumbs up

    Gud Job Yogs n Jit...keep posting.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  17. #296

    Thumbs up

    Too gud, Awesome Poem Neels...
    Touches to the core of heart!


    Quote Originally Posted by neels View Post
    विवशता - शिव मंगल सिंह 'सुमन'

    मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
    पथ ही मुड़ गया था।

    .
    .
    .

    डाल झूमी, पर न टूटी
    किंतु पंछी उड़ गया था।
    - शिव मंगल सिंह 'सुमन'
    Last edited by cooljat; June 2nd, 2008 at 03:53 PM.
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  18. #297
    'Road' word makes my nomadic soul feel, whenever I hear it! ... nyways, got this beautiful deep pondering poem ... really a nice poem!


    सड़क दर सड़क - पूर्णिमा वर्मन

    सड़क दर सड़क
    मंज़िलों की तरफ़ बढ़ते हुए
    हम आवारा हो गए थे
    सही डग भरते हुए।

    डूब कर उतराए
    खुद को रोक भी पाए
    मगर सुनसान रस्ते हो गए थे
    तभी सब चलते हुए
    हाथ थामे कौन-सा
    थे हाथ सब मलते हुए

    जंगलों में साँप थे
    थे बीहड़ों में रास्ते
    अस्तीनें तंग थीं
    जेबों में थे कुछ वास्ते
    वास्ते आवाराओं के
    काम क्या आते भला?
    दूर तक दिखता नहीं था
    पार जाता काफ़िला

    दिल में थी छोटी-सी आशा
    सिर पे एक रुमाल था
    दूर पानी का कुआँ था
    पैर में एक घाव था
    दर्द के दर्शन से हल्की
    मसख़री करते हुए
    सबको छोड़ा और धीरे से
    किनारे हो लिए।


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  19. #298
    समय की शिला पर - शम्भुनाथ सिंह
    समय की शिला पर मधुर चित्र कितने
    किसी ने बनाये, किसी ने मिटाये।

    किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी
    किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूंद पानी
    इसी में गये बीत दिन ज़िन्दगी के
    गयी घुल जवानी, गयी मिट निशानी।
    विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने
    धरा ने उठाये, गगन ने गिराये।

    शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना,
    किसी को लगा यह मरण का बहाना,
    शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया
    तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना?
    प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने
    मिलन ने जलाये, विरह ने बुझाये।

    भटकती हुई राह में वंचना की
    रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की
    तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब
    कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की।
    नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने
    निशा ने जगाये, उषा ने सुलाये।

    सुरभि की अनिल-पंख पर मौन भाषा
    उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा
    तुहिन-बिंदु बनकर बिखर पर गये स्वर
    नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा।
    किसी के चरण पर वरण-फूल कितने
    लता ने चढ़ाये, लहर ने बहाये।

    - शम्भुनाथ सिंह
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

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    kamnanadar (March 1st, 2012)

  21. #299
    One more for the day, Really an Inspirin' one !...


    एक भी आँसू न कर बेकार - रामावतार त्यागी

    एक भी आँसू न कर बेकार
    जाने कब समंदर मांगने आ जाए!

    पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
    यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
    और जिस के पास देने को न कुछ भी
    एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है

    कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
    जाने देवता को कौनसा भा जाय!

    चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
    किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
    आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
    पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं

    हर छलकते अश्रु को कर प्यार
    जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!

    व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
    काम अपने पाँव ही आते सफर में
    वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
    जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में

    हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
    जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  22. #300
    Well, Poornima Varman ... I discoverd this lil less know poet lately, and I find her creations really deep classy & thought provoking, Indeed Gem of a poet !

    Time, its indeed mystic .. sometimes it acts as friend while sometimes as a foe, indeed classy poem that describes!...


    इस मोड़ पर - पूर्णिमा वर्मन

    वक्त हरदम
    साथ था मेरे
    कभी रूमाल बन कर
    पोंछता आँसू
    कभी तूफ़ान बन कर
    टूटता मुझ पर

    कभी वह भूख था
    कभी उम्मीद का सूरज
    कभी संगीत था
    तनहाइयों का
    कभी वह आख़िरी किश्ती
    जो मुझको छोड़ जाती थी
    किनारे पर अकेला

    वो हमदम था
    कि दुश्मन
    या कि कोई अजनबी था
    समझते – ना समझते
    उम्र के इस मोड़ पर
    आ गए दोनों. . ,


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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    kamnanadar (March 1st, 2012)

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