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Thread: Hindi Kavita

  1. #61

    Thumbs up Zindgi ke Mod!!

    Well, read these lines somewhere thou dont know the Poet name but Poem is a class apart!!

    जिन्दगी के मोड्


    जिन्दगी के मोड् खुद किस-किस तरफ़ को ले गए
    उम्र ढलती गई और हम सोचते ही रह गए,

    इक दौर था जब सफ़र में हर शख्स अपने साथ था
    उस कारवां के अब यहां बस नामो-निशान ही रह गए,

    जब ज़िन्दगी की शाम ढली तो बुझ गइ जलती श़मा
    और यूं तड़पते हुए परवाने सब सह गए,

    रवां थी कश्ती मगर हर तरफ़ अन्धेरा था
    चराग दिल की लौ से जलाकर हम उजाला कर गये

    ग़म से मुझे कोई रंज नहीं पर अऱमान खुशियों का था
    अब आंसू की तो बात ही क्या हम ज़हर हंस कर पी गए,

    तो क्या हुआ ग़र ज़िन्दगी ने दर्द का दामन दिया
    हमने उसमें भी खु़शी के हर रंग भर दिए,

    ऊंचे-नीचे रास्तों पे कइ बार जब लड़्खड़ाए कदम
    इक बार ठहरे, फिर संभल कर हम ज़िन्दगी को जी गए।



    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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    kamnanadar (January 22nd, 2012), ndalal (August 29th, 2012)

  3. #62

    Thumbs up

    Sandeep Bhai, Really an outstanding poem
    Indeed deep touching down inside!!
    Really liked it bro, Thx for posting
    keep writin'...



    Rock on
    Jit


    Quote Originally Posted by sandeeprathee View Post
    मोड़__

    सफर में मिला था वो मुझे इक मोड़ पर
    फ़िर बढ़ चला था में उसे वहीं छोड़ कर |
    लेकिन अब उस मोड़ पर लौटने का मन करता है
    ये मुमकिन नही फ़िर भी क्यों ये दिल मचलता है |

    अब तो ये उम्मीद है, आए फ़िर मोड़ कोई वैसा
    वो मिल जाएं फ़िर किसी दिन यूंही |
    उस मोड़ के इन्तजार में जाने कितने मोड़ गए गुजर
    मिले कई मगर, हमसफ़र मिला न उस जैसा |

    wrote these few lines long time back.
    Hope you all like it...
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  4. #63

    Smile

    'नीरज' की लिखी एक कविता :


    बदल गये अब नयन तुम्हारे ||

    साथ साथ चले हम डगर पर
    में रो रोकर तुम हंस हंसकर
    लिए गोद में किन्तु न तुमने मेरे अश्रु विचारे |
    बदल गये अब नयन तुम्हारे ||

    जिनमे स्नेह-सिंधु लहराया
    प्रीति भरा काजल मुस्काया
    देखे उनमे आज घृणा के धधक रहे अंगारे ||
    बदल गये अब नयन तुम्हारे ||

    सोच रहा मैं एकाकी मन
    कितना कठिन प्रेम का बन्धन
    वहीं गये हर बार जहाँ हम जीती बाजी हारे ||
    बदल गये अब नयन तुम्हारे ||
    It's better to be alone than in a bad company.

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    kamnanadar (February 22nd, 2012), ndalal (August 29th, 2012)

  6. #64

    Smile One more..... written by "Neeraj"

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

    चाहता था जब ह्रदय बनना तुम्हारा ही पुजारी
    छीनकर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी
    आंसुओं से दिन-रात मैंने चरण धोये तुम्हारे
    न भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी
    अब जब तरस कर पूजा भावना भी मर चुकी है
    तुम चली मुझको दिखाने भावमय संसार प्रेयसि !

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

    अब मचलते है न नयनो में कभी रंगीन सपने
    है गए भर से किये थे जो ह्रदय में घाव तुमने
    कल्पना में अब परी बनकर उतर पाती नहीं तुम
    पास जो थे स्वयं तुमने मिटाये चिन्ह अपने
    दुखी मन में जब तुम्हारी याद ही नहीं बाकी कोई
    फिर कहाँ से मैं करूं आरंभ यह व्यापार प्रेयसि !

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

    अश्रु-सी है आज तैरती याद उस दिन की नज़र में
    थी पड़ी जब नाव अपनी काल के तूफानी भंवर में
    कूल पर तब हो खड़ी तुम व्यंग्य मुझ पर कर रही थी
    पा सका था पार मैं खुद डूब कर सागर-लहर मैं
    हर लहर ही आज जब लगाने लगी है पार मुझको
    तुम चली देने मुझको तब एक जड़ पतवार प्रेयसि !

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !
    It's better to be alone than in a bad company.

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    kamnanadar (January 22nd, 2012)

  8. #65
    Quote Originally Posted by sandeeprathee View Post
    मोड़__

    सफर में मिला था वो मुझे इक मोड़ पर
    फ़िर बढ़ चला था में उसे वहीं छोड़ कर |

    अब तो ये उम्मीद है, आए फ़िर मोड़ कोई वैसा
    वो मिल जाएं फ़िर किसी दिन यूंही |
    उस मोड़ के इन्तजार में जाने कितने मोड़ गए गुजर
    मिले कई मगर, हमसफ़र मिला न उस जैसा |

    wrote these few lines long time back.
    Hope you all like it...
    Very touchin' bro...... u write really well.. keep it up.
    cudnt find the other poem which u mentioned... seems like ve read some time.. bt nt getting the lines correct.

    Ur this poem reminded me of a thraed i started few days ago.... Ai Waqt Rukja....... truly.....

    लेकिन अब उस मोड़ पर लौटने का मन करता है
    ये मुमकिन नही फ़िर भी क्यों ये दिल मचलता है |

    now few lines to add of similar nature.....

    kabhi haadson ka safar mile,
    kabhi mushkilon ki dagar mile
    ye charag hain meri raah ke,
    mujhe manjilon ki talaash hai.

    koi ho safar mein jo saath de,
    main rukun jahan koi haath de,
    meri manjilen abhi door hain,
    mujhe raaston ki talaash hai.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

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    kamnanadar (February 22nd, 2012)

  10. #66
    Thanks JEET that you liked my last post

    thanks a lot Neelam ji . will post some more for sure.

    some time back i got to listen 2-3 gajals from KAHAKSHAN by Jagjit Singh. one of them was written by Majaj Sahib...noted poet/shayar of his time. posting here the lyrics of that class act....



    आवारा__ मजाज लखनवी

    शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ
    जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
    गैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ?
    ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?


    ये रूपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
    जैसे सूफी का तस्सवुर, जैसे आशिक का हाल
    आह ! लेकिन कौन समझे कौन जाने दिल का हाल ?
    ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?


    रात हँस-हँस कर ये कहती है कि मैखाने में चल
    फिर किसी शहनाज-ए-लालारुख के काशाने में चल
    ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
    ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?


    रास्ते में रुक के दम ले लूँ, मेरी आदत नहीं
    लौट कर वापस चला जाऊँ, मेरी फितरत नहीं
    और कोई हमनवां मिल जाये, ये किस्मत नहीं
    ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?

  11. #67

    Every one's favourite!

    I believe, all members have read and sang this beauty of Great poetess Subhadhra kumari Chauhan in your school days:


    सिंहासन हिल उठे, राजवंशो ने भृकुटी तानी थी
    बूढे भारत में आई, फिर से नयी जवानी थी
    गुमी हुई आज़ादी की, कीमत सबने पहचानी थी
    दूर फ़िरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
    चमक उठी सन सत्तावन में, वो तलवार पुरानी थी
    बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
    खूब लडी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी

    Cheers!

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    kamnanadar (January 22nd, 2012), ndalal (August 29th, 2012), Sure (November 15th, 2011)

  13. #68

    Smile

    Quote Originally Posted by spdeshwal View Post
    I believe, all members have read and sang this beauty of Great poetess Subhadhra kumari Chauhan in your school days:


    सिंहासन हिल उठे, राजवंशो ने भृकुटी तानी थी
    बूढे भारत में आई, फिर से नयी जवानी थी
    गुमी हुई आज़ादी की, कीमत सबने पहचानी थी
    दूर फ़िरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
    चमक उठी सन सत्तावन में, वो तलवार पुरानी थी
    बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
    खूब लडी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी

    Cheers!
    Sooooo nice .................. plz post the complete poem !
    It's better to be alone than in a bad company.

  14. #69
    Nice soulful philosophical one ... dont remember the poet name thou..

    शाम..........

    उसकी आहट से मन में पुलक है,
    प्रतिदिन उसका रूप अलग है,
    छोड़ के बैठा मैं सब काम,
    देखो आने वाली शाम ...

    भोर, दुपहरी के बाद वो आती
    कुछ इठलाती, कुछ मुसकाती
    हवा के झोंके वो संग लाती
    मेरी प्यारी, निराली शाम...

    सूरज का चेहरा तन जाता
    विद्यालय से वापस मैं आता
    बढ़ती गर्मी, तपता हर ग्राम
    तब ठंडक पहुँचाती शाम...

    बचपन बीता आई जवानी
    जीवन की थी बदली कहानी
    इंतज़ार में थी हैरानी
    पर वो आती, संग शाम सुहानी...

    जीवन का ये अंतिम चरण है
    संग स्मृतियों के कुछ क्षण हैं
    आज इन्हें जब वो लेकर आती
    और भी न्यारी लगती शाम....


    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  15. #70
    वैसे तो बरसात में शायद ही मेघविहीन आकाश नज़र आता है। पर ग़र आसमान साफ हो तो इधर-उधर बिखरे तारों का सौंदर्य देखते ही बनता है। गर्मी में देर रात बिजली गुल होने से छत पर खाट के ऊपर लेटे-लेटे कितनी बार ही इस दृश्य का आनंद उठाया है। पर तारों भरी रात, अगर एक झरने के बहते जल के सानिध्य में गुजारी जाए तो.....? पानी पर टिमटिमाते तारों के लहराते प्रतिबिंब का सम्मोहन भी क्या खूब होगा। तो चलें अनुभव करें वर्मा जी का ये अद्बुत शब्दचित्र...


    ये गजरे तारों वाले - रामकुमार वर्मा


    इस सोते संसार बीच,
    जग कर, सज कर रजनी बाले!
    कहाँ बेचने ले जाती हो,
    ये गजरे तारों वाले?

    मोल करेगा कौन,
    सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
    मत कुम्हलाने दो,
    सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥

    निर्झर के निर्मल जल में,
    ये गजरे हिला हिला धोना।
    लहर हहर कर यदि चूमे तो,
    किंचित् विचलित मत होना॥

    होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
    लहरों ही में लहराना।
    'लो मेरे तारों के गजरे'
    निर्झर-स्वर में यह गाना॥

    यदि प्रभात तक कोई आकर,
    तुम से हाय! न मोल करे।
    तो फूलों पर ओस-रूप में
    बिखरा देना सब गजरे॥


    रॉक ऑन,
    जीत.
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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    ndalal (August 29th, 2012)

  17. #71
    Quote Originally Posted by neels View Post

    kabhi haadson ka safar mile,
    kabhi mushkilon ki dagar mile
    ye charag hain meri raah ke,
    mujhe manjilon ki talaash hai.

    koi ho safar mein jo saath de,
    main rukun jahan koi haath de,
    meri manjilen abhi door hain,
    mujhe raaston ki talaash hai.
    This is gud one neel.....I guess this was also the title song of the serial "Phir wahi talas". and I like both the serial and song a lot.......especially the line ....meri manjilen abhi dor hain..mujhe raaston kei talas hai......

    and some of the beautiful lines from gulzar.....

    Aadmi Bulbula hai Paani ka,
    Aur Paani Kee Behtee Sat-hey par,
    Toot-ta bhee hai, Doobta bhee hai.
    Phir Ubharta hai, Phir sey Behtaa hai,
    Naa Samandar Nigal Sakaa Isko,
    Naa Tawaareeqh Tor Paayi hai.
    Waqt kee Mauj par Sadaa Behtaa,
    Aadmi Bulbula hai Paani ka.

    ज़िंदगी क्या है जानने के लिये
    ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है
    आज तक कोई भी रहा तो नही

    आओ हम सब पहन ले आइने
    सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
    सारे हसीन लगेंगे यहाँ

    है नही जो दिखाई देता है
    आइने पर छपा हुआ चेहरा
    तर्जुमा आइने का ठीक नही
    Last edited by shashiverma; November 23rd, 2007 at 02:58 PM.

  18. #72

    Khoob ladi mardani wo to Jhansi wali Rani thi

    I guess everyone wud ve heard this one in their life time.. aur kuch lines gungunaayi bhi hongi..... Here its for all to go thru the same patriotic feel once again....

    झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान

    सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
    बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
    गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
    दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।


    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
    लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
    नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
    बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।


    वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
    देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
    नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
    सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|


    महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
    ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
    राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
    सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,


    चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
    किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
    तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
    रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।


    निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
    राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
    फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
    लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।


    अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
    व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
    डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
    राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।


    रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
    कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
    उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
    जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।


    बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
    उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
    सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
    'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।


    यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
    वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
    नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
    बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।


    हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
    यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
    झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
    मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,


    जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
    नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
    अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
    भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।


    लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
    जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
    लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
    रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।


    ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
    घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
    यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
    विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।


    अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
    अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
    काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
    युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।


    पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
    किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
    घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
    रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।


    घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
    मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
    अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
    हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,


    दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


    जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
    यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
    होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
    हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।


    तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

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    kamnanadar (January 22nd, 2012), Sure (November 24th, 2011)

  20. #73
    The last one was very long... so here's a small one to refresh....

    स्नेह-निर्झर बह गया है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"



    स्नेह-निर्झर बह गया है!
    रेत ज्यों तन रह गया है।


    आम की यह डाल जो सुखी दिखी,
    कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
    नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
    नहीं जिसका अर्थ-"

    जीवन दह गया है।

    दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
    किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
    पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-
    ठाट जीवन का वही

    जो ढह गया है।

    अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
    श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
    बह रही है हृदय पर केवल अमा;
    मै अलक्षित हूँ; यही

    कवि कह गया है।
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  21. #74

    Nanhi Pujarin: very simple poem by Majaz

    (posting again as suggested by Jit)

    एक नन्ही मुन्नी सी पुजारन
    पतली बाहें, पतली गर्दन

    भोर भये मंदिर आई है
    आई नहीं है, माँ लायी है

    वक़्त से पहले जाग उठी है
    नींद भी आँखों में भरी है

    ठोड़ी तक लट आयी हुई है
    यूँही सी लहराई हुई है

    आँखों में तारों सी चमक है
    मुखड़े पे चांदनी की झलक है

    कैसी सुंदर है, क्या कहिये
    नन्ही सी एक सीता कहिये

    धुप चढ़े तारा चमका है
    पत्थर पर एक फूल खिला है

    चाँद का टुकडा फूल की डाली
    कमसिन सीधी भोली-भाली

    कान में चांदी की बाली है
    हाथ में पीतल की थाली है

    दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
    पूजा का कुछ ग्यान नहीं है

    कैसी भोली और सीधी है
    मंदिर की छत देख रही है

    माँ बढ़ कर चुटकी लेती है
    चुपके-चुपके हंस देती है

    हँसना रोना उसका मजहब
    उसको पूजा से क्या मतलब

    खुद तो आई है मंदिर में
    मन उसका है गुडिया घर में

  22. The Following User Says Thank You to dharmpaltakhar For This Useful Post:

    ndalal (August 29th, 2012)

  23. #75
    Quote Originally Posted by shashiverma View Post
    This is gud one neel.....I guess this was also the title song of the serial "Phir wahi talas". and I like both the serial and song a lot.......especially the line ....meri manjilen abhi dor hain..mujhe raaston kei talas hai......
    Yea Shashi,,, thsi is same.. the title song of Phir Wahi Talaash.
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  24. #76
    Gud contribution by all.... Keep It Up...!!!
    Keep Believing in Yourself and Your Dreams

  25. #77

    Thumbs up new year resolution....

    कमरे से बाहर पारा शून्य से नीचे लुढ़क चुका है, कमरे के अंदर हीटर की गर्मी में मैं भी अपने कम्बल में नींद के आगोश मैं लुढ़कने ही वाला था की अचानक ख्याल आया आज कुछ लिखा जाए. पैन पेपर उठाने की हिम्मत नही हुई तो google translater पर ही उँगलियाँ चलने लगी. जो लिखा है हो सकता है सच्चाई से परे हो पर मुझे सोचने को मजबूर जरूर करता है .... 'जब आगो तभी सवेरा' के फलसफे को चरित्रार्थ करता है.


    नव वर्ष -----

    नव वर्ष की फ़िर से आहट हुई है
    फ़िर कोई निश्चय लेने की चाहत हुई है
    फ़िर से ख़ुद को खंगालने की कोशिश की
    सोचा कुछ मिल जाए इस बार बदलने को

    सोचा नव वर्ष में सदा सच बोलूँगा
    फ़िर लगा की ऐसा निश्चय लिया तो
    शायद पूरे वर्ष मुहँ ही नही खोलूँगा

    सोचा छल कपट से दूर रहूँगा
    लेकिन ऐसा निश्चय करना ही शायद
    ख़ुद से छल करना है
    छल के बगैर इस ज़माने में
    अपना कहाँ काम चलना है

    फ़िर कुछ और ख्याल आए
    चलो इस बार सब ऐब छोड़ देते हैं
    सदाचार की राह चलते हैं
    समाज का कुछ ख्याल करते हैं
    अपनी कुछ इमेज बदलते हैं

    अचानक से सिर भारी होने लगा
    बार बार करवटें बदलने लगा
    शायद में किसी गहरे सपने से जगने लगा
    हाँ सपना ही तो था ..सपना ही होगा
    वरना कौन इतना सोचता है

    आत्मग्लानी होने लगी
    अपने स्वार्थ से अलग होने की इच्छा प्रबल होने लगी
    उसी इक क्षण में मैंने प्रण लिया ख़ुद को बदलने का
    नेक राह पर चलने का इक अच्छा इंसान बनने का

    और शायद वही क्षण मेरे लिए नव वर्ष की शुरुवात थी
    मैं स्वार्थ की चादर उतार चुका था
    मेरा हैप्पी न्यू येअर हो चुका था

  26. #78
    A deep philosophical poem to ponder...


    ज़िंदगी - अजंता शर्मा


    जो सुलगता है उसे चुपचाप बुझाना है,
    ज़िंदगी तेरे रंग में रंग जाना है।

    गर पढ़कर कोई सहर का दिलासा दे,
    जला के हाथ लकीरों को मिटाना है।

    पोंछना है धुँधले ख़्वाबों की तस्वीर,
    कोरी ही सही, हक़ीक़त से दीवार सजाना है।

    गर लड़ना ही है तो खाली क्यों उतरें?
    अपनी तरकश को ज़ख्मों का ख़ज़ाना है।



    Rock on
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



  27. The Following User Says Thank You to cooljat For This Useful Post:

    ndalal (August 29th, 2012)

  28. #79
    Quote Originally Posted by sandeeprathee View Post
    कमरे से बाहर पारा शून्य से नीचे लुढ़क चुका है, कमरे के अंदर हीटर की गर्मी में मैं भी अपने कम्बल में नींद के आगोश मैं लुढ़कने ही वाला था की अचानक ख्याल आया आज कुछ लिखा जाए. पैन पेपर उठाने की हिम्मत नही हुई तो google translater पर ही उँगलियाँ चलने लगी. जो लिखा है हो सकता है सच्चाई से परे हो पर मुझे सोचने को मजबूर जरूर करता है .... 'जब आगो तभी सवेरा' के फलसफे को चरित्रार्थ करता है.


    नव वर्ष -----

    नव वर्ष की फ़िर से आहट हुई है
    फ़िर कोई निश्चय लेने की चाहत हुई है
    फ़िर से ख़ुद को खंगालने की कोशिश की
    सोचा कुछ मिल जाए इस बार बदलने को

    सोचा नव वर्ष में सदा सच बोलूँगा
    फ़िर लगा की ऐसा निश्चय लिया तो
    शायद पूरे वर्ष मुहँ ही नही खोलूँगा

    सोचा छल कपट से दूर रहूँगा
    लेकिन ऐसा निश्चय करना ही शायद
    ख़ुद से छल करना है
    छल के बगैर इस ज़माने में
    अपना कहाँ काम चलना है

    फ़िर कुछ और ख्याल आए
    चलो इस बार सब ऐब छोड़ देते हैं
    सदाचार की राह चलते हैं
    समाज का कुछ ख्याल करते हैं
    अपनी कुछ इमेज बदलते हैं

    अचानक से सिर भारी होने लगा
    बार बार करवटें बदलने लगा
    शायद में किसी गहरे सपने से जगने लगा
    हाँ सपना ही तो था ..सपना ही होगा
    वरना कौन इतना सोचता है

    आत्मग्लानी होने लगी
    अपने स्वार्थ से अलग होने की इच्छा प्रबल होने लगी
    उसी इक क्षण में मैंने प्रण लिया ख़ुद को बदलने का
    नेक राह पर चलने का इक अच्छा इंसान बनने का

    और शायद वही क्षण मेरे लिए नव वर्ष की शुरुवात थी
    मैं स्वार्थ की चादर उतार चुका था
    मेरा हैप्पी न्यू येअर हो चुका था
    shandaar !!
    “Lead me, follow me or get out of my way”

  29. #80
    Quote Originally Posted by cooljat View Post
    Well, read these lines somewhere thou dont know the Poet name but Poem is a class apart!!

    जिन्दगी के मोड्


    जिन्दगी के मोड् खुद किस-किस तरफ़ को ले गए
    उम्र ढलती गई और हम सोचते ही रह गए,

    इक दौर था जब सफ़र में हर शख्स अपने साथ था
    उस कारवां के अब यहां बस नामो-निशान ही रह गए,

    जब ज़िन्दगी की शाम ढली तो बुझ गइ जलती श़मा
    और यूं तड़पते हुए परवाने सब सह गए,

    रवां थी कश्ती मगर हर तरफ़ अन्धेरा था
    चराग दिल की लौ से जलाकर हम उजाला कर गये

    ग़म से मुझे कोई रंज नहीं पर अऱमान खुशियों का था
    अब आंसू की तो बात ही क्या हम ज़हर हंस कर पी गए,

    तो क्या हुआ ग़र ज़िन्दगी ने दर्द का दामन दिया
    हमने उसमें भी खु़शी के हर रंग भर दिए,

    ऊंचे-नीचे रास्तों पे कइ बार जब लड़्खड़ाए कदम
    इक बार ठहरे, फिर संभल कर हम ज़िन्दगी को जी गए।



    Rock on
    Jit
    bhai really good one !! and good thread indeed ! aur ane de aisi
    “Lead me, follow me or get out of my way”

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