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Thread: Hindi Kavita

  1. #981

    वक़्त नहीं

    हर ख़ुशी है लोगों के दामन में
    पर एक हँसी के लिए वक़्त नहीं
    दिन रात दौड़ती दुनिया में
    ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं

    माँ की लोरी का एहसास तो है
    पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
    सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
    अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं

    सारे नाम मोबाइल में हैं
    पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
    गैरों की क्या बात करें
    जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं

    आँखों में है नींद बड़ी
    पर सोने का वक़्त नहीं
    दिल है ग़मों से भरा हुआ
    पर रोने का भी वक़्त नहीं

    पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
    कि थकने का भी वक़्त नहीं
    पराये एहसासों की क्या कद्र करें
    जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं

    तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
    इस ज़िन्दगी का क्या होगा
    कि हर पल मरने वालों को
    जीने के लिए भी वक़्त नहीं .......

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    cooljat (December 17th, 2012), mahendra13 (December 17th, 2012), navdeepkhatkar (December 17th, 2012), rskankara (January 14th, 2013), SandeepSirohi (December 17th, 2012)

  3. #982
    Quote Originally Posted by sivach View Post
    हर ख़ुशी है लोगों के दामन में
    पर एक हँसी के लिए वक़्त नहीं
    दिन रात दौड़ती दुनिया में
    ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं

    माँ की लोरी का एहसास तो है
    पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
    सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
    अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं

    सारे नाम मोबाइल में हैं
    पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
    गैरों की क्या बात करें
    जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं

    आँखों में है नींद बड़ी
    पर सोने का वक़्त नहीं
    दिल है ग़मों से भरा हुआ
    पर रोने का भी वक़्त नहीं

    पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
    कि थकने का भी वक़्त नहीं
    पराये एहसासों की क्या कद्र करें
    जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं

    तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
    इस ज़िन्दगी का क्या होगा
    कि हर पल मरने वालों को
    जीने के लिए भी वक़्त नहीं .......

    Quite true ..
    Navdeep Khatkar
    मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन, मेरा परिचय

  4. #983
    पापा तुम क्यों तारा बन गए
    हमसे दूर ईश्वर का सहारा बन गए
    पार्क में बच्चे पापा के साथ खेलते हैं
    कभी दौड़ते कभी कंधे पर चढ़ते हैं
    मै दूर बैठा उनको देखा करता हूँ
    बस तुम को ही सोचा करता हूँ
    पहले से जीने के ढंग गए
    पापा तुम क्यों तारा बन गए

    माँ काम करते करते थक जाती है
    कहानी रात को कभी कभी ही सुनती है
    ब्रश मे फस्ट आने का कॉम्पटीशन कोई करता नहीं
    सच पापा अब तो ब्रश करने का ही मन करता नहीं
    मेरे जीवन के तो सारे रंग गए
    पापा तुम क्यों तारा बन गए

    मै अकेले स्कूल जाता हूँ
    आप कि कही बातो को मन मे दोहराता हूँ
    किनारे चलो ऊँगली पकडो मत दौडो
    पर ऊँगली पकड़ने को जो हाथ बढ़ता हूँ
    तुम को वहां नहीं पाता हूँ
    मेरे तो सब सहारे गए
    पापा तुम क्यों तारा बन गए

    रोज मै तुम से बात करता हूँ
    तारों मे तुम को खोजा करता हूँ
    जब छाते हैं बादल तो बहुत रोता हूँ
    तुम को नहीं देख पाउँगा बस यही कहता हूँ
    आंसूं अब मेरे साथी बनगए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    शाम आती है पर तुम आते नहीं
    कैसे हो बेटे कह के गोद में उठाते नहीं
    एक बार कहो
    क्या मिला होमवर्क रहा कैसा स्कूल
    दो हाई फाई लग रहे हो कितने कूल
    मस्ती भरे सारे वो पल गए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    जब कहता हूँ चॉकलेट लाने को
    बहला के मुझे दे देती है गुड खाने को
    दो वक्त कि रोटी मिलजाए तू स्कूल जा पाए
    बस इतना कमा पाती हूँ मै
    इसी लिये तेरा कहा नहीं कर पाती हूँ
    अब मेरी खाव्हिशों के दिन गए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    मै माँ से माँ मुझ से छुप के रोती है
    अक्सर खाने की ३ प्लेट धरती है
    मै उसके लिये हसीं कमाना चाहता हूँ
    आप जैसा घर का ख्याल रखना चाहता हूँ
    मै जल्दी से बड़ा होना चाहता हूँ
    मेरे खेलने के दिन गए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
    सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||

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  6. #984
    बहुत ही मार्मिक !!!!

    दिल को छू गयी और ये आँखों ने बयाँ कर दिया
    भगवान क्यों ऐसा एक बच्चे के साथ कर दिया


    Quote Originally Posted by SandeepSirohi View Post
    पापा तुम क्यों तारा बन गए
    हमसे दूर ईश्वर का सहारा बन गए
    पार्क में बच्चे पापा के साथ खेलते हैं
    कभी दौड़ते कभी कंधे पर चढ़ते हैं
    मै दूर बैठा उनको देखा करता हूँ
    बस तुम को ही सोचा करता हूँ
    पहले से जीने के ढंग गए
    पापा तुम क्यों तारा बन गए

    माँ काम करते करते थक जाती है
    कहानी रात को कभी कभी ही सुनती है
    ब्रश मे फस्ट आने का कॉम्पटीशन कोई करता नहीं
    सच पापा अब तो ब्रश करने का ही मन करता नहीं
    मेरे जीवन के तो सारे रंग गए
    पापा तुम क्यों तारा बन गए

    मै अकेले स्कूल जाता हूँ
    आप कि कही बातो को मन मे दोहराता हूँ
    किनारे चलो ऊँगली पकडो मत दौडो
    पर ऊँगली पकड़ने को जो हाथ बढ़ता हूँ
    तुम को वहां नहीं पाता हूँ
    मेरे तो सब सहारे गए
    पापा तुम क्यों तारा बन गए

    रोज मै तुम से बात करता हूँ
    तारों मे तुम को खोजा करता हूँ
    जब छाते हैं बादल तो बहुत रोता हूँ
    तुम को नहीं देख पाउँगा बस यही कहता हूँ
    आंसूं अब मेरे साथी बनगए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    शाम आती है पर तुम आते नहीं
    कैसे हो बेटे कह के गोद में उठाते नहीं
    एक बार कहो
    क्या मिला होमवर्क रहा कैसा स्कूल
    दो हाई फाई लग रहे हो कितने कूल
    मस्ती भरे सारे वो पल गए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    जब कहता हूँ चॉकलेट लाने को
    बहला के मुझे दे देती है गुड खाने को
    दो वक्त कि रोटी मिलजाए तू स्कूल जा पाए
    बस इतना कमा पाती हूँ मै
    इसी लिये तेरा कहा नहीं कर पाती हूँ
    अब मेरी खाव्हिशों के दिन गए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

    मै माँ से माँ मुझ से छुप के रोती है
    अक्सर खाने की ३ प्लेट धरती है
    मै उसके लिये हसीं कमाना चाहता हूँ
    आप जैसा घर का ख्याल रखना चाहता हूँ
    मै जल्दी से बड़ा होना चाहता हूँ
    मेरे खेलने के दिन गए
    पापा तुम क्यों तारा बनगए

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  8. #985

    Thumbs down

    .

    Rage, grief, frustration and many more strong emotions on sorry state of women in India, expressed in B'ful n' strong words. Kudos to you Anirudha Beniwal.



    शुरुआत तो सीता ने की थी, मूक बन जाने की,
    न छिनने की अपना हक, चुपचाप धरती मैं सामने की।
    रही सही कसर पूरी की राधा ने, एक रसीले को भगवान बनाने की,

    अरे अब तो ये षड़यंत्र समझ जाओ,
    छोड़ पाँव विष्णु के लक्ष्मी, कभी तो तुम भी आराम फरमाओ।
    बड़ी चालाकी से गुलाम बनाया गया है स्त्री तुझे,
    दे धरम का नाम, गुलामी पाठ पढाया गया तुझे।

    बहुत बनी शहनशील, क्षमावान, बलिदानी,
    क्या मिला? लुटी आबरू अपने ही बगीचे मैं।
    बेच दिया भाई ने, बाप मुछो पे ताव देता खड़ा है,
    कोन खरीदेगा तेरी बोली है, बाज़ार मैं झगड़ा है।

    माना के गुस्सा बहुत है, खून का रंग अभी तक है लाल,
    तो तोड़ ये जेवरों के बेड़िया, गुलामी के सब यंत्र जलाओ।
    अरे आवाज़ उठाओ, चिल्लाओ, कुछ तोड़ फोड़ मचाओ,
    बहुत कर लिया करवा-चौथ, अब तांडव नाच दिखाओ।

    फ़ेंक दो ये सीता, राधा, मीरा अपने मंदिरों से,
    अब काली को अपनाओ, अब दुर्गा को ले आओ।


    Cheers
    Jit
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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  10. #986
    चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी
    झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी

    पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
    आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी

    जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
    उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी

    वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
    अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी

    जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
    इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी

    जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
    आज देखो उस जगह भी मुर्दानी छाने लगी

    महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
    सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||

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  12. #987

    जो हुआ सो हुआ

    उठ के कपड़े बदल
    घर से बाहर निकल
    जो हुआ सो हुआ॥

    जब तलक साँस है
    भूख है प्यास है
    ये ही इतिहास है
    रख के कांधे पे हल
    खेत की ओर चल
    जो हुआ सो हुआ॥

    खून से तर-ब-तर
    कर के हर राहगुज़र
    थक चुके जानवर
    लकड़ियों की तरह
    फिर से चूल्हे में जल
    जो हुआ सो हुआ॥

    जो मरा क्यों मरा
    जो जला क्यों जला
    जो लुटा क्यों लुटा
    मुद्दतों से हैं गुम
    इन सवालों के हल
    जो हुआ सो हुआ॥

    मंदिरों में भजन
    मस्ज़िदों में अज़ाँ
    आदमी है कहाँ
    आदमी के लिए
    एक ताज़ा ग़ज़ल
    जो हुआ सो हुआ।।
    मीठे बोल बोलिये क्योंकि अल्फाजों में जान होती है,
    ये समुंदर के वह मोती हैं जिनसे इंसानों की पहचान होती है।।

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  14. #988
    Another gem from Gulzar's treasure -

    ..

    धुप लगे आकाश पे जब
    दिन में चाँद नज़र आया था
    डाक से आया एक मुहर लगा
    एक पुराना सा तेरा, चिट्ठी का लिफाफा याद आया
    चिट्ठी ग़ुम हुये तो अरसा बीत चुका
    मुहर लगा, बस मटयाला सा
    उसका लिफाफा रखा है !

    ..



    Cheers
    Jit
    Last edited by cooljat; January 8th, 2013 at 08:22 PM.
    .. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..



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  16. #989
    जिंदगी में जब भी, तुम्हारे "साथ" की जरुरत होती है
    हरसूं क्यूँ तुम, मुझसे "अगणित" अनंत दूर होती है

    तेरे "कोमल" शब्दों की ध्वनी से,
    मन "तनाव" रहित हो जाता है
    जब तुम "किलकारियां" लगाती हो
    किसी बच्चे की तरह मेरे "होंटों" में
    अजब "संतुष्टि" भरा "मुस्कान" स्वतः ही आ जाता है

    तेरी "दुरी" मुझे इतना क्यूँ सताता है
    मन "अधीर" हो जाता है बहुत तडफाता है
    हर "लम्हा" तेरे आने का "ख्वाब" ये सजाता है

    फिर भी तुम क्यूँ नही आती
    क्यूँ मुझे नही अपनाती

    शायद "तुम्हे" भी इन्तिज़ार है मेरी "मैय्यत" का
    मैं तो "दफ़न" हो जाऊंगा उम्मीदे मेरी "जिन्दा" रहेगी
    जब भी किसी "नादाँ" की बात चलेगी
    तेरे "लबों" में मेरी "कहानी" जिन्दा रहेगी
    मीठे बोल बोलिये क्योंकि अल्फाजों में जान होती है,
    ये समुंदर के वह मोती हैं जिनसे इंसानों की पहचान होती है।।

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  18. #990
    ताक पर रख दो चिंताए |
    खूंटी पै टांग दो परेशानी ||

    कुछ नहीं स्थिर दुनिया में |
    हर चीज है आनी जानी ||

    व्यर्थ में क्यों रोते हो |
    रोने से ना कुछ पाओगे ||

    हँस लो है जीवन छोटा सा |
    वरना रो रो मर जाओगे ||

    महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
    सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||

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  20. #991
    काजल की कोठरी में मैं
    और मेरे साथ मेरा मन |
    अनगिनत मछलियां और कुछ मछेरे
    चल रहे हैं साथ-साथ साँझ और सबेरे
    मछलियों की कोठरी में मैं
    और मेरे साथ मेरा मन |
    एक ओर पर्वत और एक ओर कूआँ
    नजर जिधर जाए उधर धूआँ ही धूआँ
    धुएँ के आर-पार मैं
    और मेरे साथ मेरा मन |
    मूंद लीं आँखें तो नाच उठे कोयल
    नाच उठे भौंरे और खिल गए फूल
    फूलों की टोकड़ी में मैं
    और मेरे साथ मेरा मन |


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    anuragsunda (March 18th, 2013), sivach (February 4th, 2013)

  22. #992
    काँटों का फूल से मिलन
    है अजीब ये समीकरण |
    बादल के नाम पर आँधियां चलीं
    सरसों के खेत में बिजलियाँ गिरीं
    आंसुओं से है भरा चमन
    है अजीब ये समीकरण |
    खाली हैं आज साधुओं की झोलियां
    निकल रहीं तिजोरियों से मात्र गोलियां
    बच्चों के सर पे ये कफन
    है अजीब ये समीकरण |
    बरगद के पेड़ पर मेढ़क चढे
    सूरज की जगह आज काजल उगे
    नाव और नदी का ये चयन
    है अजीब ये समीकरण |


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    anuragsunda (March 18th, 2013), sivach (February 4th, 2013)

  24. #993
    जब नहीं थे राम बुद्ध ईसा मोहम्मद
    तब भी थे धरती पर मनुष्य
    जंगलों में विचरते आग पानी हवा के आगे झुकते
    किसी विश्वास पर ही टिका होता था उनका जीवन

    फिर आए अनुयायी
    आया एक नया अधिकार युद्ध
    घृणा और पाखण्ड के नए रिवाज़ आए
    धरती धर्म से बोझिल थी
    उसके अगंभीर भार से दबती हुई

    सभ्यता के साथ अजीब नाता है बर्बरता का
    जैसे फूलों को घूरती हिंसक आंख
    हमने रंग से नफ़रत पैदा की
    सिर्फ़ उन दो रंगों से जो हमारे पास थे
    उन्हें पूरक नहीं बना सके दिन और रात की तरह
    सभ्यता की बढ़ती रोशनी में
    प्रवेश करती रही अंधेरे की लहर
    विज्ञान की चमकती सीढ़ियां
    आदमी के रक्त की बनावट
    हम मस्तिष्क के बारे में पढ़ते रहे
    सोच और विचार को अलग करते रहे

    मनुष्य ने संदेह किया मनुष्य पर
    उसे बदल डाला एक जंतु में
    विश्वास की एक नदी जाती थी मनुष्यता के समुद्र तक
    उसी में घोलते रहे अपना अविश्वास
    अब गंगा की तरह इसे भी साफ़ करना मुश्किल
    कब तक बचे रहेंगे हम इस जल से करते हुए तर्पण


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    sivach (February 4th, 2013)

  26. #994
    मुझे अच्छी लगती है पुरानी कलम
    पुरानी कापी पर उल्टी तरफ़ से लिखना
    शायद मेरा दिमाग पुराना है या मैं हूं आदिम
    मैं खोजती हूं पुरानापन
    तुरत आयी एक पुरानी हंसी मुझे हल्का कर देती है
    मुझे अच्छे लगते हैं नए बने हुए पुराने संबंध
    पुरानी हंसी और दुख और चप्पलों के फ़ीते
    नयी परिभाषाओं की भीड़ में
    संभाले जाने चाहिए पुराने संबंध
    नदी और जंगल के
    रेत और आकाश के
    प्यार और प्रकाश के।


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    anuragsunda (March 18th, 2013)

  28. #995
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    Continued here: http://www.jatland.com/forums/showthread.php?35582

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