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Thread: Kissa-e Kadyan-Khap

  1. #1

    Kissa-e Kadyan-Khap

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    (The major part of this post is in Devanagari script. If there is difficulty in reading the text, there is need to install ‘Mangal’ font.)


    Kissa-e Kadyan-Khap किस्सा-ए काद्याण-खाप
    Author : Dayanand Deswal


    The Kadyan Khap in Haryana is stated to be comprising 12 villages : Beri, Doobaldhan, Maazra, Cheemni, Dharanna, Chhuana, Daadyan, Baghpur, Madina, Dhaudd, Mangawas, Garhi (बेरी, दूबलधन, माजरा, चीमनी, ढराणा, छुआणा, दादयां, बाघपुर, मदीणा, धौड़, मांगावास और गढ़ी). [Please don’t be confused about ‘Madina’ – there is another ‘Madina’ (Dangi) between Rohtak and Maham].

    This area has a prime location – fertile lands and meadows, plain fields suitable for canal irrigation – several water-canals pass through this area now. During pre-Independence era, living conditions were harsh – frequent famines due to scarcity of rains, damage to standing crops by wild animals, exploitation of farmers by money-lenders and social evils like superstitions preached by pope Brahmins. Before 1947, there used to be another group of 12 tiny villages, mainly of Muslim inhabitants around this area – mainly Kalanaur, Kahnaur, Aavgadhi and Nivanna. There are stories about confrontations between Jats and Muslims of this area, primarily on account of cow-slaughter by some of the Muslims and the organized crimes like cattle-thefts.

    This thread, a bit lengthy - in Hindi/Haryanavi is presented by me based on some inputs by elders of Kadyan Khap villages. While reading, please have an imagination that you are in this area about seven decades ago - around 1940.

    Traditionally, we Jats have been following two important professions – farming (हाळी) and rearing of domestic cattle (पाळी). Today’s cow & buffalo grazers (पाळी) in villages happen to be utter illiterates and I feel pity for them. But let us not forget – even Lord Rama and Krishna happened to be cow-grazers in their childhood. In my earlier writings, I have written enough for farmers (हाळी). As my tribute to these cowboys and their profession (‘पाळी’), I am now presenting, at the end of this post, a few short scenes of cow-buffalo grazing Jat boys in Kadyan Khap’s rural surroundings, much like a documentary film script.

    If there is a lapse/ mistake in facts etc., would request a pardon. Please also see comments in the end.

    (Alphabet is different from – pronunciated as in हाळी and पाळी. This alphabet is extensively used in Marathi and Haryanavi)


    मैने बेरी गांव के एक चौधरी से एक बेबाक बात पूछी - खेती और पशु-पालन तो सभी करते हैं - पंजाब के लोग भी यही काम करते हैं । उनका रहन सहन ऊंचा है, वे लोग साफ सुथरे रहते हैं, पशुओं का घर अलग बनाते हैं और आदमी और पशु एक ही कमरे में नहीं सोते । फिर क्या वजह है कि हमारे इस हरयाणा के गावों वाले लोग भैंस और दूसरे ढ़ोर-डंगरों के पास ही खाट डाल कर सोते हैं, गोबर के छींटे उनके कपड़ों पर लगे रहते हैं और कमरे में बदबू भी रहती है जबकि उनके पास रहने के लिए जमीन की कमी नहीं है ।

    उस चौधरी साहब ने इस सवाल का बहुत ही अच्छा जवाब दिया, जिसकी मैं बहुत तारीफ करता हूं। पहले खेती से नकदी मिलना बहुत मुश्किल था, अकाल पड़ते थे, सिंचाई के साधन कम थे, आजकल की तरह इतना अनाज नहीं होता था कि फालतू बच जाये और बेचकर कुछ पैसे मिल जायें । पशु बेचने से ही कुछ नकदी मिल जाती थी - गाय-भैंस पालकर बचे हुए घी को बेचकर भी कुछ नकद पैसे मिल जाते थे । पशुधन ही उनकी असली 'cash crop' हुआ करती थी, इसलिए पशुओं की रखवाली बहुत ही जरूरी थी, पशु ही ज्यादातर चोरी हो जाते थे । इसीलिए लोग किसी-न-किसी को पशुओं की रखवाली के लिए उनके पास ही सुलाते थे ।

    काहनौर-कलानौर वाले मुसलमानों का आम पेशा था - पशुओं की चोरी करना । आम तौर पर यह काम वे रात को करते थे, जब सभी सो रहे होते थे । हालांकि अपने जानने वालों के यहां वे ऐसी चोरी नहीं करते थे और गलती से उनका पशु चोरी हो जाये तो वे उसे लौटा भी देते थे । काहनौर का सुलेमान बूढ़ा मुसलमान था जो इलाके के ज्यादातर बुजुर्गों को जानता था ।

    सुलेमान माजरा गांव में एक चौधरी के यहां बैठा था । शाम हो गई - चौधरी ने उसे रोटी खाने को दी । पड़ौसी ने देख लिया और चौधरी से बोला - "अरै, इस गाड़े नै क्यूं रोटी खुवावै सै? इसके छोरे तै म्हारे ढौर-डांगरां नै खोल-कै ले-ज्यां सैं, और कम यो भी ना सै ।"

    सुलेमान - ना चौधरी, हाम और आप तो चाचा-ताऊ के भाई हैं ।

    पड़ौसी - चल सुसरा गाड़ा - हाम और तू क्यूकर चाचा-ताऊ के हो-गे ?"

    चौधरी बोला "ना रै, यो सुलेमान तै बेचारा बूढा आदमी सै, इसके बसका कुछ ना सै" ।

    सुलेमान फिर चुपचाप सुनता रहा । आधी रात को चौधरी का बैल खोलकर चलता बना - और तो और, उस पड़ौस वाले चौधरी का बैल भी उसी रात चोरी हो गया । सुबह दोनों चौधरी पहुंचे काहनौर और पहले वाला चौधरी सुलेमान से बोला "खान, बुळध आ-ग्या?"


    ....CONTINUED
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    Last edited by dndeswal; January 1st, 2007 at 10:52 AM.

  2. #2

    Kissa-e Kadyan-Khap : Part-2

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    सुलेमान - हां चौधरी साहब, आपका बैल मेरे पास आ लिया ।

    चौधरी - अरै खान, मन्नै तै तेरे ताहीं रोटी खुवाई और तू मेरा-ए बुळध खोल-ल्याया?

    सुलेमान - देख चौधरी साहब, खुदा की कसम, मेरे से यह सुनना बर्दाश्त नहीं हुआ । आपने यह कह कैसे दिया कि सुलेमान बूढा है और उसके बसका काम नहीं है ? अब तो आपको यकीन आ गया ना कि मैं भी किसी जवान से कम नहीं?

    चौधरी - हां खान, आ-ग्या यकीन । ईब तै मेरा बुळध उल्टा कर दे ।

    सुलेमान - देख चौधरी, आपका बैल तो मैं वापिस कर दूंगा, पर तेरे इस पड़ौसी का तो तभी वापिस करूंगा जब मुझे पांच रुपये मिल जायेंगे ।

    चौधरी - आर हामनै ना दिये तै ?

    सुलेमान - तो चौधरी, आपका बैल भी आपको साबुत नहीं मिलेगा । हमारे छोकरे लोग तो छुरी रखते हैं - बस ऐसी जगह जखम कर देंगे कि फिर वो हल में चलाने लायक तो रहेगा नहीं - आपको फिर वो हमारे को ही एक-दो रुपये में बेचना पड़ेगा ।

    चौधरी ने पड़ौसी को एक तरफ जाकर समझाया और सुलेमान को पांच रुपये दे दिये ।

    सुलेमान - ठीक है चौधरी साहब - वो देखो बाहर खेत में बहुत सारे मवेशी हैं । आप अपने दोनों बैल पहचान कर ले जाओ ।

    दोनों चौधरी बाहर आये - पर पहचान नहीं पाये कि उनके बैल कौन से हैं । बहुत से बैल थे वहां पर और सबके सींग लंबे-लंबे थे और लाल रंग से रंगे हुए थे । फिर पास आकर देखने लगे । एक बोला - भाई, यो बुळध तै म्हारा-ए दीखै सै, पर उसके सींग तै छोटे-छोटे थे । दूसरा चौधरी भी एक बैल के पास गया, उसके माथे पर हाथ फेरा तो वो बैल उसके हाथ को चाटने लगा । चौधरी बोला - अरै भाई, यो बुळध तै इसा लागै सै, मेरा-ए हो, पर इसके सींग तै घणे लांबे सैं ।

    कुछ देर बाद सुलेमान वहां आया और बोला - हां चौधरियो, पहचान लिये अपने बैल ? चौधरी कुछ नहीं कह सके ।

    सुलेमान फिर बोला - अरे चौधरियो, सच्ची बात है जाट - बाराह बाट । तुम लोग अपने बैल को भी पहचान नहीं पा रहे ? फिर सुलेमान उन बैलों के पास गया और उनके सींगों के ऊपर फिट किये हुए नकली लंबे सींग हाथों से खींच लिये । फिर दोनों चौधरी बोले - "ओह तेरी कै - ये तै आपणे-ए बुळध सैं " !


    **********


    बेरी गांव के एक सेठ जी के पास घोड़ी थी, उसकी रखवाली के लिए एक बाहमण का लड़का रखा हुआ था । रात को निवाणा गांव के कुछ मुस्लिम लड़के दो घोड़ों पर आए और घोड़ी को खोल कर उस पर सवार होकर चलते बने । बाहमण का लड़का गिड़गिड़ाने लगा कि सेठ तो मुझे नौकरी से निकाल देगा । उनमें से एक मुस्लिम छोकरा बोला - ठीक है तेरा भी कोई रास्ता खोजना पड़ेगा । फिर उसने अपनी लाठी जोर से उस लड़के के सिर पर दे मारी और बोला - जा, अब सेठ जी तेरे को नौकरी से नहीं निकालेंगे, कह देना मैने तो रोकने की बहुत कौशिश की पर वे मेरा सिर फोड़ कर घोड़ी को छीन कर भाग गए ।

    अगले दिन सेठ जी ने उस लड़के को निवाणा गांव भेजा । आठ रुपये लेकर उन मुसलमानों ने सेठ की घोड़ी वापिस कर दी और उसको बता भी दिया - "सेठ से कह देना कि मेरा सिर फोड़ कर तो वे घोड़ी छीन ले गए और आठ रुपये लेकर वापिस लौटा भी दी ।"

    **********

    A short documentary film-script – A tribute to village cowboys (बाल गोपाल - पाळी )
    (Dialogues in pure Haryanavi – some words may be difficult for you to understand).

    Location – The mini forest (बणी), away from Beri village – some cow-grazing boys (पाळी) from Beri, along with their domestic cattle (cows and buffalos).

    Names & nicknames: महेन्द्र (रोडू), प्रभु (लंबू), जिलेसिंह (जल्ले), करणसिंह (करणे)

    TimeSeptember 1940.


    FIRST SCENE – All the four friends are walking inside the mini-forest, along with their livestock

    (दिन का दूसरा पहर - चारों पाळी गाय-भैंसों को चरा रहे हैं और आपस में बात कर रहे हैं)

    महेन्द्र - भाई रै प्रभू, मैं तै आज तगाजे तैं सकाळी (at dawn) आ-ग्या था, बस सीत-राबड़ी पी कै । भूख लागण आळी सै, तू गंठा-टीकड़ा ले रहया सै के ?

    प्रभु - क्यूं रै रोडू, मैं तै एक टीकड़ा ले रहया सूं, तू कम-तैं-कम थोड़े-से चणे ले आता घर तैं ! कोए बात ना, मन्नैं एक बखोरा और एक पीतल का गिलास धर राख्या सै उस झाड़ी मैं - तू न्यूं करिये अक आपणी भैंस के थोड़े-से डोक्के (milk) चुळक ले - फिर थोड़ी-सी आग सिलगा ल्यांगे और गर्म कर ल्यांगे ।

    महेन्द्र - भाई, चाळा हो ज्यागा, मेरी झोटी तै न्यूं-ऐं बाखड़ी हो रही सै - ईब डोक्के चुळक लिए तै सांझ नै टोप्पा-बी ना दे और म्हारा बूढ़ा मारैगा मेरै लठ ।

    प्रभु - रोडू, तेरी या किसी (कैसी) झोटी, एक खोल्हा ढाँख ले रहया सै तू तै !
    .....continued
    .
    Last edited by dndeswal; January 2nd, 2007 at 12:40 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  3. #3

    Kissa-e Kadyan-Khap : Part-3

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    महेन्द्र - ओ लंबू, बात सुण - फेर न्यूं मत कह दिये, इस्सै बात पै लठ बाज ज्यागा । मन्नै तू किम्मै कह ले, मळ (but) मेरी झोटी नै ढाँख मत कह - मुर्रा नसल की सै, पाछले फागण मैं ब्याई थी - सारी खरसाँ (summer) दूध दिया सै - भूल-ग्या, तेरी मां रोज एक लोटा दूध मांग-कै ले ज्याया करै थी म्हारे घर-तैं - तेरी तीनूं भैंस टोप्पा बी ना दें थीं बसाख-जेठ में !

    करणसिंह - भाई लंबू, यो रोडू बात तै ठीक कहै सै, इसका दादा तै इस भैंस नै 'बुलबुल' कहया करै

    जिलेसिंह - भाई महेन्द्र, कोए बात ना यार - आज मैं एक टीकड़ा फालतू ले रहया सूं, तन्नै भूखा ना राहण दूं । पर न्यूं कर - थोड़ी सी बाजरे की सिर्टी तोड़ ल्या, आग में भूँद-ल्यांगे । मैं थोड़े- से पीच्चू तोड़-कै ल्याऊंगा ।

    महेन्द्र - राहण दे भाई, साथ-आळे कीले तै दूसरे छाज्याण-पान्ने आळां के सैं । खेत-आळा तै बाजरे के खेत मैं चिड़िया उडावै सै - गोफिया घुमा-घुमा कै, हामनै ना तोड़ण दे बाजरे की सिर्टी ।

    जिलेसिंह - कोए बात ना, खाण-पीवण का जुगाड़ तै हो ज्यागा भाई, तुम सारे कोए-सी और बात सुणाओ ।

    प्रभु - मैं ईब आया - मेरी वा हर्या झोट्टी तै दीखती-ए ना - कदे बड़-गी हो छाज्याण आळां के खेत में !

    (Prabhu goes away)

    करणसिंहअरै जल्ले, मेरे पड़ौस में रणसिंह नहीं सै, जो पाछलै साल भर्ती हुया था - इस जेठ के भीने (महीने) में उसका ब्याह हुया था । अरै भाई, वा बहू आ रही सै - मन्नै लुक-कै उसका मुंह देख लिया - कत्ती काच्ची सै वा तै - उस डाक्की कै बहू भोत (बहुत) सुथरी आ-गी भाई !

    जिलेसिंह - मेरे बटे, तन्नै उसका मुंह बी देख लिया? मैं तै उस रणसिंह की बारात मैं गया था, पर ईब ताहीं उसकी बहू का मुंह ना देख लिया सै । मेरी भाण बी न्यूं-ऐं कहै थी अक बहू सुथरी आ-गी उसकै । आवण दे भाई - न्यूं कहया करैं अक काटड़े की मां तळै धौण दूध, पर बेचारे काटड़े का के? बहू उसकी, म्हारा के ? मेरा ब्याह तै हो ना !

    महेन्द्रमेरा कुण-सा हुया बैठ्या सै? मेरी मां तै तीन साल पहल्यां मर-गी, मैं सूं सब-तैं छोटा, मेरा लंबर (नंबर) ना आवै - एक वा मेरी भाभी इसी आई सै अक मन्नै तै बखत पै रोटी बी ना मिलती । आज बी मैं तगाजे तैं सीत-राबड़ी पी कै आ-ग्या, कोए बासी रोटी थी-ए ना बोहिया में - नहीं तै मैं ले-ए ना आता !

    करणसिंह- अरै छोडो इस किस्से नै - आगले भीने सुण्या सै लखमीचंद का सांग होवैगा देबी के मंदिर आळे मैदान में - फेर देख लियो उड़ै ढूंगे लागते

    जिलेसिंह - क्याँ-नै मेरे यार ? सांग में कुण-सी असली छोरी नांचैं सैं ? एक-दो कूंगर नै घाघरी पहरा कै नचा दें सैं! पाछली खरसाँ में मन्नै देखे थे एक मुसळमाननी के ढूंगे दिल्ली में!

    महेन्द्रदिल्ली में ? अरै बैरी, तू कद पहुंच-ग्या दिल्ली ?

    जिलेसिंह - भाई आपणे बाबू गैल्यां गया था । मेरा बाबू गाडी में सामान ले-ग्या था धन्ने बाणियां का । ऊड़ै-ए सांझ हो-गी । एक जगहां का नाम सै ईदगाह - सारा मुसळमानां का इलाका । भाई, म्हारी गाडी खाली हो-कै उल्टी आवै थी, सदर बाजार में सामान उतार-कै - ईदगाह घणी ऊंची जगहां पै सै । खाली गाडी तळै तारणी थी, पर घणी नीची ढ़ळान आ-गी, गाडी आपै घुरड़ण लाग-गी - बुळधां तैं या डाटणी मुश्किल थी, टूट जाती सारी - आर म्हारै आर बुळधां कै चोट लाग जाती !

    करणसिंह - फेर के हुया ?

    जिलेसिंह - फेर भाई, गाडी मुश्किल तैं डाटी मेरे बाबू नै - मैं दो पात्थर ठा-कै ल्याया, गाडी के दोनूं पहियां कै ओट ला दई

    करणसिंह -फेर ?

    जिलेसिंह -मैं गाडी-बुळधां धोरै बैठ्या रहया, मेरा बाबू दो मुसळमान मजूरां नै बुला-कै ल्याया - उन ताहीं कह दिया अक दोनूआं नै चार-चार आने दूंगा । भाई, मजूरां नै गाडी कै पाछै रस्सा बांध कै पकड़ लिया और सहज-सहज ढळाण पै गाडी उतरण लागी । जब थोड़ी सी ढळाण बाकी रह-गी तै बेरा-सै के करया मेरे बाबू नै ?

    महेन्द्रके करया भाई जल्ले?

    .....continued
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    Last edited by dndeswal; January 1st, 2007 at 06:57 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  4. #4

    Kissa-e Kadyan-Khap : Part-4

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    जिलेसिंह - भाई, उसके मन में बेईमाना आ-ग्या - अक ईब काम तै हो-ए लिया, इन सुसरां ताहीं चार-चार आने बी क्यूं दिये ? तै भाई, उसनै बुळधां कै मारी एक टटकारी आर भजा-दी गाडी - उन दोनूं मजूरां के हाथ तैं रस्सा छूट-ग्या आर उन्हैं खाई सरड़क पै कुल्लाबात्ती ! वे बिचारे खड़े हो-गे ऊड़ै-ए । गाडी तळै उत्तर-गी आर मेरे बाबू नै बुळध रोक दिये - पंजारे (driver’s seat) पै आपणा सांटा ले-कै खड़या हो-ग्या आर बोल्या : "अरै कसाई के पेड्डो, मरवा दिये होते हाम तै, आओ आगे-नै - थारी छोरी कै बाँस दूं ?" फेर भाई, वे दोनूं मुसळमान तै यावा हो कै खड़े रहे - वे तै न्यूं सोचैं अक यो हामनै चार-चार आने दे दे, आर मेरा बाबू न्यूं सोचै अक ये सुसरे आगे-नै आ-ज्यां तै इनकै चार-चार सांटे मार दूं !

    (A big laughter – Prabhu enters the scene)

    प्रभु - अरै वाह, खूब हांसी ठट्ठा चाल रहया सै - अरै आपणी भैस आर गावड़ियां (cows) नै बी संभाळ ल्यो, कदे वे जा बड़ैं ना खेतां में !

    जिलेसिंह - अरै लंबू, कित रहया इतणी हाण ?

    प्रभु - अरै, ठीक रहया मैं चल्या गया, ना तै म्हारी झोटी साचीहें जा बड़ती साथ-आळे खेत में ।

    जिलेसिंह -तै के चाळा हो ज्याता? हाम चार जाट कट्ठे सां - किस्सै बात का डर ना सै ।

    प्रभु - चार में इसी के बात हो-गी?

    जिलेसिंह - न्यूं कहया करैं अक एक जाट जाट, दो जाट मौज - तीन जाट कम्पनी, चार जाट फौज ।

    प्रभु - इस फौज-वोज नै छोडो, ईब तुम सारे न्यूं करो - दोफाहरी हो-गी सै - भैसां नै ले चालो उस लेटड़ी (a shallow water-pond) में - वे लोट लेंगी पाणी में आर गावड़ी बैठ ज्यांगी रूखां तळै - फेर ऊड़ै बैठ कै कुछ खा-पी ल्यांगे आर गप्प हांक ल्यांगे ।

    महेन्द्रठीक सै रै, चाल्लो सारे तगाजे तैं ।

    (सभी चल पड़ते हैं - पशुओं को हांकते हुए)



    SECOND SCENE – Near the pond – the four friends having their coarse ‘lunch’


    जिलेसिंह ले भाई महेन्द्र-रोडू - ले यो आधा टीकड़ा - खाता रहै आर सुणाता रहै आपणे चमौले ।

    महेन्द्र चोखा भाई, भूख लाग रही थी । इस्सै बात पै एक याद आ-ग्या । पाछले साल कनागतां की बात सै । वो आपणे गाम आळा श्यामलाल बाणियां सै ना, वो बांकरे के बाहमणां नै बुलाया करता जिमावण खातिर । तै भाई, पाछलै साल उसनै कनागतां में आपणा नौकर भेज-कै बांकरे के चार बाहमणां का न्यौता दे दिया । आर भाई न्यौता तै था चार का, आण पौंहचे दस-बाराह ।

    प्रभु - यो बांकरा गाम तै पूरा बाहमणां का सै - सुसरे सारे भुक्खड़ सैं । ईब तै घणा भूंडा हाल हो रहया सै उनका - जाटां नै तै ईब ये फंड कम-ऐं कर राखे सैं, उस दादा बस्तीराम का प्रचार सुण-कै । फेर के हुया भाई ?

    महेन्द्रश्यामलाल बाणियां तै आपणे घर के किवाड़ बंद राख्या करै । जब वे दस-बाराह बाहमण उसके घर के बारणै पहुंचे तै लाला नै जंगले म्हां-तैं झांख-कै देख्या - किवाड़ ना खोले । आपणे नौकर तैं बोल्या "अड़, भजा दे इन्हैं - सुसड़े भूखे कितै-कै !"

    करणसिंह -काट्या रोग !

    महेन्द्र आगै सुण - फेर भाई, वे तै बिचारे बाहमण घणी हाण ताहीं लाला कै बारणै-ऐं खड़े रहे । भूख घणी करड़ी लाग रही थी । कई हाण घाम मैं खड़े हो-कै उल्टे जाण लागे । उन म्हां तैं एक नै किवाड़ धोरै जंगले मैं हाथ भीतर दे दिया आर रोमतड़ा-सा हो-कै बोल्या - "लाला, बस एक पूरी तै दे दे !"

    (A big laughter)

    प्रभु ले भई, ईब मन्नै एक किस्सा चमारां का याद आ-ग्या । मेरी भाण ब्याह राखी सै - खेड़के गाम मैं, दुल्हेड़े धोरै । पाछलै साल मैं गया था ऊड़ै भाण तैं मिल्लण । तै भाई तड़कैहें उसकै बारणै घणे सारे जाट होक्का पीवैं थे । थोड़ी हाण पाछै कबलाणे गाम के तीन चमार गाळ म्हां-कै जां थे । मेरे मौसा नै बूझ लिया - " रै कित जाओ सो ?" एक चमार बोल्या - "चौधळी साब, एक भैंस लेणी सै" । उन-तैं फेर बूझया - "किसी भैंस ल्योगे ?" बेरा सै के बोल्ले ?

    जिलेसिंहके बोल्ले ?

    प्रभु वे तेरे सुसरे गिट्टळ न्यूं बोले- ब्या रही हो चाहे कितनी-ऐं बै, पर लेणी सै खार-की !!"

    (A big laughter)

    ...CONTINUED
    Last edited by dndeswal; January 1st, 2007 at 07:03 AM.

  5. #5

    Kissa-e Kadyan-Khap : Part-5

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    करणसिंह - ये सुसरे रहैंगे ढेढ-के-ढेढ- निरे बावळी-बूच! ले ईब आपणे-ऐं गाम का किस्सा सुणाऊं

    जिलेसिंह अरै, सुणावै ना !

    करणसिंह - एक बै आंधू चमार की बहू पानी भरण चाल्ली गई आर आपणी छोटी सी छोरी नै आंधू की गोदी में बैठा-गी । पाछै वा छोरी रोवण लागी । निहाला जाट ने बूझ लिया - "रै, के बात सै आंधू - या छोरी क्यूं रोवै सै ?" आंधू बोल्या अळ चौधळी, वा आप तै पाणी भरण चाल्ली गई आर इस छोरी का खसम मन्नै बणा-गी !!

    (A big laughter again)

    प्रभु भाई वाह करणे, तू तै आंडी किस्से सुणावै सै । ईब एक काम कर - उस कूई पर-तैं थोड़ा सा पाणी ले आ, खाली झाब इस बोझड़े मैं लुको राखी सै मन्नै ।

    (Karan Singh goes away)

    जिलेसिंह अरै प्रभु, इस जांटी की डाहळी पै देखिये - यो बय्यां का आहलणा (nest) कितना प्यारा लागै सै !

    प्रभु ले भई, भगवान की माया - इस छोटे से पंछी मैं माणस तैं भी घणी अकल लागै सै ! म्हारे खेत में एक रोंझी पै तै घणे सारे आहलणे सैं ।

    जिलेसिंह कुण से खेत में ?

    प्रभु वो दूसरे सिमाणे में सै । जवार बो राखी थी उसमैं, दो दिन पाछै खेत खाली हो ज्यागा - फेर ऊड़ै-ए ले चालांगे आपणे डांगरां नै । खाली खेत में सूखी-सी घास नैं ये गावड़ी (cows) तै खूब राजी हो कै खावैं सैं । आर भाई जल्ले, तू तै गंडे-गांडळी घणे बढिया बणाता बताया । ईब-कै दीवाळी पै एक बढिया सी गांडळी म्हारी इस गावड़ी ताहीं जरूर बणा दिये । या गऊ तै भाई घणी सूधी सै - इसा भागवान पशु मिलणा मुश्किल सै ।

    जिलेसिंह चल बणा दूंगा, तू तै लागै-सै घणे-ऐं चंदे-कटारे कट्ठे कर रहया होगा

    प्रभुवे तै भतेरे हो ज्यांगे इस साल । कई साल पहल्यां या गावड़ी मेरे बाबू नै खेत में मिल्ली थी । बेरा-ना कुण-से गाम तैं आई होगी ? रात नै म्हारे खेत में ब्या-गी । दो भेड्यां नै घेर ली । बिचारी लहू-लुहाण हो-गी पर बाछड़े नै आपणे पायां बिचाळै दे कै उन तैं मुकाबला करती रही । तड़कैहें मेरा बाबू गया खेत में भेड्या (wolf) तै भाज-गे । उसनै बाछड़ा कांधे पै लाद लिया और या उसकै पाछै-पाछै हो ली । जिब पाछै इसनै तीन बाछड़े दे लिये और एक बछिया - दूध बी आछ्या दे सै और इसके बाछड़े भी घणे तगड़े बणे सैं । इसका खरणा (race, dynasty) घणा आछ्या सै ।

    महेन्द्र हां भाई, तेरे बाबू नै इसकी जान बचाई, या गऊ तै थारै घणा-ऐं धन देगी । आर भाई जै आंकल-झोटा आछ्या हो तै सारे गाम का खरणा ठीक रहै सै । एक भोत आच्छे खरणे का आंकल था - गंगाणा गाम के कांसू रांघड़ के खेत में बड़-ग्या था । उस कसाई के पेड नै तै उसकै गोळी मार दी थी ।

    जिलेसिंहआंछ्या-आंछ्या, वो-ए गंगाणा का मुसळमान कांसू पहलवान जो हरफूल जाट जुलाणी आळे नै मारया था ?

    प्रभु अरै हम्बै रै - वो-ए गाड़ा ! कांसू-हर कुल छह भाई थे । जिब वो आंक्कल मार दिया तै गाम के लोग कांसू धोरै गए । कांसू बोल्या - "आ ज्याइयो, थारा सब का न्यौता सै - इसकी तेरहवीं के चावळ बणाऊंगा" । भाई, न्यूं सुण-कै गाम के लोगां कै आग ऊठ-गी, पर वे बोले कुछ ना । सूधे हरफूल धोरै गए । कांसू न्यूं तै हरफूल का यार था, पर या बात सुण-कै हरफूल कै बी आग ऊठी - वो दो दिन पाछै गया कांसू धोरै । कांसू लठैत था पर ज्यूकर-ए कांसू नै लठ ठाया, हरफूल नै एक गोळी मारी उसके माथे में । उसके दो भाई साहमी आए, वे दोनूं बी बिच्छा दिये ।

    महेन्द्र सुण्या सै, सारे मार दिये थे ।

    प्रभु ना, सारे भाई ऊड़ै खेत में-ऐं थे । जब बाकी तीन भाई लठ ले-कै आए, तै हरफूल नै वे दो बी ढ़ेर कर दिये - एक रह-ग्या था, उसनै आपणे मुंह में घास ले ली आर हरफूल के पायां (feet) में पड़-कै बोल्या - "हरफूल, मैं तेरी काळी गऊ" । फेर हरफूल नै उसकी जान तै बक्श दी ।

    जिलेसिंह भाई, हरफूल जिसा दिलेर तै हंघ्यां पावै सै । न्यूं सुण्या सै वो जो अमृत डाकू सै ना ढ़राणा का, उसका तै पूरा गिरोह सै । फेर बी हरफूल आगै तै उसकी फूक लिकड़ ज्या सै । पाछले साल की बात बतावैं सैं । यो अमृत मोखरा-मदीणा गाम में गया, डाका डालण । आधी रात नै पहुंच्या ऊड़ै । पर बेरा पाट-ग्या अक उस्सै गाम मैं हरफूल ठहर रहया सै । अमृत नै वो चौधरी बुलवाया जिसकै हरफूल ठहर रहया था, बोल्या अक मन्नै हरफूल तैं मिलवा दे । चौधरी उल्टा गया, हरफूल ताहीं बता दिया अक एक अमृत डाकू मिलणा चाहवै सै । हरफूल मिल्या उसतैं, साफ-साफ बता दिया रै अमृत, आज मैं इस गाम का मेहमान सूं, आज आड़ै डाका मत डालिये, ना तै तन्नैं बेरा-ए सै, मेरा नाम हरफूल सै। फेर भाई, वो अमृत तै ऊड़े-तैं डाक्कां गया (ran away)!

    .....CONTINUED
    .
    Last edited by dndeswal; January 1st, 2007 at 07:09 AM.

  6. #6

    Kissa-e Kadyan-Khap : Part-6

    .
    महेन्द्रभाई, हरफूल का कोए जवाब ना - आज ताहीं कोए गरीब नहीं लूटा उसनै, धरम का रुखाळा, गऊ माता का पुजारी सै । टोहाणे में एक हत्था (slaughter house) बी तुड़वा दिया था उसनै, उड़ै ये सुसरे मुसळमान गौकशी करया करते ।

    प्रभु एक यो म्हारे पड़ौस में सुस्सरा दुजाणे का नवाब बी गौकशी करै सै - एकाध और हरफूल जिसा हो-ज्या तै यो बी सूधा करवा हो-सै

    जिलेसिंह कदे ना कदे रोग कटैगा ता सही इसका बी ।

    (करणे पानी लेकर आता है)

    प्रभु ल्या भाई करणे, प्या दे पाणी सबनै । इब न्यूं करो, इन ढांखां ने ले चाल्लो । राह मैं गाम कै नीड़ै म्हारे काका जागे के खेत में जवार कट-गी होगी, उस खेत में हंडा ल्यांगे थोड़ी हाण - फेर जाण का बखत हो-ज्यागा ।

    जिलेसिंह भाई, माड़ी-सी हाण डट ज्याओ - मेरी एक बछिया दीखती कोनी - एक झाँखळी (नजर) मार कै यो आया !

    करणसिंह - डाक्की, तू तै न्यूं कहै था अक आज पीच्चू तोड़ कै सब नैं खुवाऊंगा ! ठीक सै, तगाजे तैं आइये !

    (Zile Singh goes running)

    महेन्द्र अरै करणे, भाई एक बात तै सै, इन डांगरां नै चरावा-प्यावां हाम, और घी-मळाई खा-ज्यां मेरे दूसरे भाई । हाम तै दिन-छिप्पै पहुंचां सां घरां, जिब ताहीं तै मळाई-वळाई खतम हो-ज्या सै । मेरी मां बी कदे-कदे न्यूं कहया करती अक कित्तैं पिलजवा (puppies) गैल लाग ली !

    प्रभु अरै रोडू बावळे, तू ईबी ना समझया - इस पाळी की जात की तै आजकाल इतणी-ऐं कदर हो सै जितणी भैंस्यां में काटड़े की । कृष्ण जी के बखत ताहीं तै म्हारी घणी इज्जत थी, ईब कूण बूझै सै ?

    करणसिंह हां भई, उस जमाने में तै सुण्या सै निरी गऊ थी, इस काळी माई नै कूण जाणै था - ईब तै गऊ की कदर घटती जा सै - इन काळी माइयां का दूध पीवैं सैं आर इन्हैं जिसी अकल हो-री सै माणसां में।

    प्रभुन्यूं की न्यूं सै - इस जनावर में अकल ना होती - भैंस के ठाण में बाळक चल्या जा, उसके पांव पै पांव धर दे सै ।

    महेन्द्र और के, गऊ तै इसा काम कत्ती बी ना करै !

    प्रभु गऊ में तै लुगाई केसी शर्म हो-सै - सांड गैल जावैगी तै एकली किसै जंगल में जावैगी । सांड जै किसै माणस नै उस बखत देख लेगा तै जान तैं मार देगा । आर यो झोटा ? मेरे सुसरे में कत्तई शर्म ना होती - आपणी मां नै भी हरी कर दे सै ! एक गाम में एक इसा-ए झोटा था - आपणी मां पै-ए चढ़-ग्या था। फेर गाम आळां नै उसकै मारे लठ, आर बेच दिया कसाइयां ताहीं ।

    (Zile Singh returns back)

    जिलेसिंह आंह-रै लंबू, के किस्सा सुणा रहया सै ?

    प्रभु छोड इस किस्से नै - ईब न्यूं करो, आपणे लहंढे (herds of cattle) नै हांक ले चाल्लो गाम कानीं - वार होवण लाग रही सै ।

    महेन्द्र हां भाई जल्ले, ईब तै चालणा चाहिये, मैं तै न्यूं-बी घणे बखत तैं आ रहया सूं, भूख बी करड़ी लाग आवैगी ईब ।



    (LAST SCENE – All four walking towards the village, along with their cattle)

    करणसिंह - (अपनी भैंस की पूछ मरोड़ कर) एक या कुलच्छणी म्हारे बळ (control) में ना आती ।

    प्रभु एक खूटा बांध दे इसके गळ में !

    करणसिंहना भाई, या तै ग्याभण सै - दो-ढ़ाई भीने पाछै ब्यावैगी ।

    महेन्द्र फेर तै घणी बढिया सै, ऊत बेशक हो, पर जाड्डे में ब्यावैगी आर पूरी गर्मियां दूध देगी । म्हारै धोरै एक इसी गावड़ी थी जो माह में ब्यायी थी दो साल लगातार। एक पोप बाहमण न्यूं बोल्या अक इसी गावड़ी तै भूंडी हो सै, दान कर दो ।

    प्रभु तेरे सुसरे पोप - बहकावैं सैं हामनै । माह में ब्यावण आळी गावड़ी तै भगवान का रूप हो सै - आगली पूरी खरसाँ दूध देती रहै सै ।

    महेन्द्र हामनै कुण सी उस ताहीं दे दी? मेरे बाबू नै धमका दिया था वो पोप बाहमण । न्यूं बोल्या अक माह में सूरी और कुतिया बी ब्यावै सै - उसनै क्यूं ना दान में लेते ?

    प्रभुम्हारी या कटिया बी आच्छे खरणे की सै - हरी होवण आळी सै, आगले चमासे (rainy season) में ब्या ज्यागी ।

    करणसिंह – (अपने काटड़े को एक डंडा मार-कै) - तेरा सुसरा, चाल्लै सै आड्डा-आड्डा ! तन्नै दे दूंगा कसाइयां ताहीं !


    .....CONTINUED

    .
    Last edited by dndeswal; January 1st, 2007 at 07:16 AM.

  7. #7

    Kissa-e Kadyan-Khap : Part-7

    .
    जिलेसिंह राहण दे, और राख ले थोड़े दिन - तगड़ा दीखै सै यो तै, मेळे में बिक ज्यागा

    करणसिंह फेर तै यो झोटा बण ज्यागा, इसका तै काटूंगा रोग - सुसरा रात-दिन अर्ड़ाता रहै सै ।

    प्रभु – (हँस कर) कुछ बी कहो - सै तै जुलम, उसकी मां दूध तै दे सै उस ताहीं, उसके हिस्से के दूध नै पी-ज्यां सां हाम और आपणी गरज मिट्टे पाछै उस बेचारे नै घाल दां सां कसाइयां कै ।

    करणसिंहफेर क्यूं राख्या करो इन ढ़ांखां नै ? आपणी गावड़ी पाळो - बाछड़े हळ में काम आ ज्यांगे ।

    प्रभु हां, गावड़ी की होड तै ना होती, पर ये सुसरी काळी माई राखणी बी जरूरी सैं । यो काम बी जाटां के बसका सै, बाणियां तैं भैंस ना पाळी जा !

    जिलेसिंह या बात तै ठीक सै - एक हळ की खेती पै एक भैंस पाळी जा सै, घणी बसकी कोनी ! आर सौ बीघे की जमीन एक हळ की मानी जावै सै ।

    करणसिंहइन बाणियां तैं एक बीघा धरती बी ना संभाळी जा । ये तै न्यूं कहया करैं अक भैंस राखे तैं के मुनाफा हो सै - इसका तै गोबर बी ना बचता !

    प्रभु जिब्बै तै कहूं सूं - इस काटड़े ताहीं थोड़ी सी बांट (diet) आच्छी दे दिया कर, तगड़ा हो ज्यागा और मेळे में आच्छे दाम मिल ज्यांगे ।

    करणसिंह वाह रै, खूब कही, और-के इसकी खळ भे-कै राखां ? इसकी मां ताहीं तै बांट-बिन्दौळे का ब्यौंत ना म्हारै धोरै, आर इस बटेऊ नै छिका कै राखां ? हांडण दे सुसरे नै जंगल में ! इतणा ब्यौंत होता म्हारा, तै मैं क्यूं इस जंगल में हांडता इन-कै पाछै लठ ले-कै? आठवीं ताहीं का मदरसा तै म्हारे गाम में सै-ए, उड़ै-ए ना थोड़ा पढ़ लेता !

    महेन्द्रगाम आवण आळा सै । अरै जल्ले, तू वा बात बताणा तै भूल-ए गया - तू दिल्ली गया था आर उड़ै तन्नै एक मुसळमाननी के ढूंगे देखे थे ? पूरी बात तै तन्नैं बताई-ए ना, तू तै गाडी-बुळधां में अळझ-गया !

    जिलेसिंहकोए ना, तड़कै बता दूंगा ।

    प्रभुचाल्लो भाई, गाम आ-ग्या - मैं तै जां सूं परली गाळ कानीं - इन्हैं पहल्यां आपणे घेर(out-house) में ले ज्यांगा ।

    महेन्द्र - भाई रै, तड़कैहें तगाजे तैं पहुंच ज्याइये आज आळी जगहां - फेर बतळावांगे उड़ै ।

    (All disperse – end of the scene)

    ---------------------------------------------

    Brief notes:

    1. Some huge villages of Kadyan Khap like Beri and Doobaldhan are in existence since Mahabharata times, though written historical records are rarely available now.

    2. There are three important factors responsible for betterment of lives of these villages: (i) Ch. Chhotu Ram’s influence which resulted in a big relief to villagers – first by recruitment of youngmen into armed forces and secondly, getting rid of clutches of money-lenders and Banias. Ch. Chhotu Ram was the person who first dreamt of construction of a Dam (Bhakhra-Nangal), now a reality. (ii) The influence of Arya Samaj and the preachers and reformers like Dada Basti Ram, who had preached in this area for a long time – majority of Jats got rid of superstitions preached by Brahmins. (iii) Independence in 1947 – all Muslims of Kadyan Khap, including Nawabs of neighbouring Jhajjar and Dujana, left for Pakistan and today there are no cattle-thieves in Kadyan Khap.

    3. With God’s grace, hopefully, Haryanavi culture and language will remain intact at least till the end of this century, in the areas of Kadyan Khap villages which are slightly away from NCR. The city of Delhi is like a huge monster which is eating up nearby villages, one by one. Old agricultural methods have undergone a rapid change in these villages. Green pasteurs are being lost due to deforestation and wildlife has almost disappeared. Buffalos are now the first preference, cows are being ignored.

    4. May God empower us to save our language, rich culture and social structure.

    This happens to be my New Year gift to this site. Also read my earlier threads in this forum: Kissa-e Maham-Chaubissi , Dharti ke Lal.

    * - * - * - * - * - *
    Last edited by dndeswal; January 1st, 2007 at 07:20 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  8. #8

    Doobaldhan

    .
    दूबलधन

    बेरी गांव में सेठ साहूकारों के बहुत से घर थे और कुछ गरीब किसान भाई अपनी बैलगाड़ी में उनका माल ढोने का काम करते थे । कहते हैं एक बैलगाड़ी में कुल बीस मन सामान लादकर रोहतक से रिवाड़ी तक पहुंचाने का रेट एक रुपया मन होता था और इस में चार दिन लगते थे । खेती के अलावा यह काम करने से कुछ अलग आमदनी हो जाती थी ।

    दूबलधन के पास वाले 'माजरा' गांव के कुछ जाट भी बैलगाड़ी में तूड़ा वगैरा ढोया करते । यह गांव 'दूबलधन-माजरा' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि 'माजरा' नाम के गांव तो और भी बहुत हैं । बहुत सी बैलगाड़ी तो दूबलधन वालों की होती थी और कुछ माजरे वालों की - सब एक काफिले की तरह चलते थे - कभी रिवाड़ी की तरफ, कभी रोहतक और कभी दिल्ली । रास्ते में आने-जाने वाले पूछते 'भाई, कुण-से गाम के सो?' माजरे वाले कह देते 'हाम तै माजरे के सां'

    दूबलधन वाले बोले - भाई मजरवाळ, या बात ठीक कोनी, अपने गाम का पूरा नाम बताया कर । माजरे वाले बोले -"क्यूं हाम तै आपणे गाम माजरे का नाम बतावांगे, थारे दूबलधन का नाम क्यूं ल्यां?"

    एक बार झज्जर में रात को पड़ाव डाले हुए थे । एक रिवाड़ी की तरफ के अहीर ने पूछ लिया - चौधरी साहब, कुण-से गाम के सो ? माजरे वाले बोले "हाम तै माजरे के सां" । उस अहीर ने फिर पूछा - "पर कुण-से माजरे के ?"

    दूबळधनियां फिर माजरे वालों से बोले "ईब ल्यो आपणे फूफा दूबळधन का नाम" !!

    **********


    बागड़ के इलाके में बहुत छोटे से गांव को "ढ़ाणी" कहते हैं । दूबलधन ठहरा बड़ा गांव । दूबलधन का एक डूम एक ढाणी में जाया करता, अपने करतब दिखाने । बीच-बीच में वो दूबलधन की खूब बड़ाई करता । एक बार वे ढ़ाणी वाले बोले - "क्यूं थूहे मारै सै ? इसा के धरया सै तेरे दूबलधन में?"

    डूम ने जवाब दिया "उस गाम मांह-तैं तीन-चार ढ़ाणी बसा दूं - फेर-बी दूबलधन न्यूं-का-न्यूं रह ज्यागा" !!
    .
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  9. #9
    Deswal saab, adha natak to pada liyta, adha kisse aur din khatar... bahut padiya likhya sae... par nyu bata ya Documentry kyukar huyi... yo to realistic play ki taraha laggae sae... good job!

    -vinod
    It may be that universal history is the history of the different intonations given to a handful of metaphors. -J L Borges

  10. #10
    swad aa gaya sir,
    kasut kissa likh rakhya sai aapnay
    humor bhi sai arr jankaari bhi

  11. #11

    Very Informative...

    A very well conceived and presented account of our forefathers. Must read for all those who truly believe in our heritage and culture.

    Well done Deswal Ji.
    JAT BALWAN, JAI BHAGWAN

    (Ein Volk - Ein Reich - Ein Fuhrer)

  12. #12
    Deswal Sahab,

    Thank you so very much for the post ...Devnagiri mein padhne ka to alag hi maza hai ............

    I have a close connection with both Beri & Dubaldhan .... My nana's gaon in Beri and my father when he was a lecturer before he joined the Civil Services, he served a long time at Govt. College Dubaldhan and has a lot of friends and connections there in that village.

    So yes thanks a lot ....
    Foot Soldier - Azad Hind Fauj - becasue the struggle is not over yet

  13. #13
    Deswal saab, Harvinder and I have been talking about making a haryani film with a difference for some time now...I know I know everybody says that but they are always same, looks like you could be our man in script writting...
    Last edited by chhillar; January 4th, 2007 at 11:52 PM.
    Great spirits have always encountered violent opposition from mediocre minds... Albert Einstien

  14. #14
    Hi Dayanandji,

    It is a good Haryanvi folk lore so I have added to Jatland Wiki. We may see it here

    http://www.jatland.com/home/Haryanavi_Folk_Lore

    Regards,
    Laxman Burdak

  15. #15
    thanks Deswal ji...for posting such stuff.
    while reading i was thinking to play this script.
    excellent presentation...thanks again

    >>>>>>JAI KILLKII TAUL ! ! ! !

  16. #16

    nd

    again a good stuff frm mr dn`s pen.......deswal sir keep pouring.......
    I dont have personality,i am mere statistics.I used to be "downtoearth". Now this is my present name. Do i possess a name, a face ,an individuality ?:rolleyes:


  17. #17
    Email Verification Pending
    Login to view details.
    Deswal Saab
    Aaap ko lakh lakh salaam
    You are a living encyclopedia in yourself
    hats off to you sir

    I will be obliged if you can send me some more information in this subject matter
    Thanx once again

  18. #18

    Bahut Badhiya ...

    Bahut umda Deshwal ji .... complete from all aspects ...

    Pichu ... pilajva ... jhankhali ... gau er bheins mein difference (ha ha ha ) ... harfhool ... musalmanani ke dhoonge kukar dekhe ji wa baat poori kariyo agle sanskaran mein ...

    Doobaldhan alle ki bhi baat theek thi ... le de ne aapne foofa ka naam ... theek kaho ho ji doobaldhan ghanae bada gaam hai ... military mein bahut ghane hein hude ke.

    Burdak ji .. yo aapne aacha karya isko Haryanvi_Folk_Lore mein dal ke ... this include really close and illustrated picture of life of villages in haryana of that time....

    ETOBICOKE ... bhai Dev kadian ji aap bhi kite doonghe ee bad rahe ho dikhe canada mein ... er hude aapne side ka kissa sunan ne milgya katti goodh bhasha mein ... aatma sheele hogi hogi ...

    Good One Deshwal ji ... keep pouring such stuff ...

  19. #19
    DND sir,
    Jai kissay aur khap ka bhi issa kimmay kissa ho tai uss ne bhi chep dyo nai
    Privileged to be a Jat

  20. #20

    Simple but so realistic...

    Sir,
    I am still wondering how do u write all this, as it is really hard for a normal writer to think all this...yeah its simple but its truth, something which really happens....its a life of a common man living in blues....
    I appreciate it...

    Aur haryanvi mein padh ko to swad saa aa gaya.....and specially in hindi script. padte padte aisa laga....ki i m living that kinda life....and these ppl are so tension free...they do have tensions but not like us...That life is not so hectic the way we are entangled..Simple but so reallistic....
    Vishal Dhanda
    SPOKESPERSON

    THATHI CHORA....
    JAI KILKII TAULL!!!!!!!!

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