खाप पर बिरादरियों को बाटने की चाल

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खाप पर बिरादरियों को बांट कर रखने की चाल

खाप पद्धति किसी खास बिरादरी तक सीमित पद्धति नहीं है। एक निश्चित स्थान पर टिक कर खेती करने वाले सब कबीलों में इस पद्धति का एक तरह का विकास हुआ था और अब तक गांवों में रहने वाली सब बिरादरियों में मौजूद है। यह सार्वभौम है। पहचानने की आवश्यकता है। कौन बिरादरी समूह ऐसा है जो अपनी समस्याओं पर मिल बैठ कर निर्णय नहीं लेता है, विचार नहीं करता है? हर बिरादरी में यह पद्धति है। मूलतः यह प्रचलन ग्रामीण जीवनशैली का अंग बन गया है जहां परिवार के श्रम पर चलने वाली खेती-किसानी जीवनयापन का धंधा है। इस पद्धति का उत्तर भारत में नाम खाप है। इस क्षेत्र में लोकतन्त्र के व्यवहार को विकसित करने में खास भूमिका बनी जिसे खाप पद्धति जाहिर करती है।

खाप का विकास व नामकरण गांव में कृषिकर्म से जुड़ी जीवनशैली से हुआ जिसमें मिलनसारी व भाईचारे का भाव इसका सार है। इसके बिना खेती-किसानी चल नहीं सकती जबतक कि पूंजी को खेती का मूल साधन न बना लिया जाए। परिवार के श्रम पर खेती की जीवनशैली व संस्कृति का मिलनसारी व भाईचारा आधार है और खाप उस शैली की एक आवश्वयक पद्धति। भारत के आर्थिक जीवन का यह बुनियादी सच है। इसे मिटाने का अर्थ भारत के ग्रामीण जीवन में पारिवारिक श्रम पर चलने वाली खेती-किसानी को पलट कर राज की ताकत पर पूंजी की गुलाम खेती में जबरन बदलने की चेष्टा है। भारत में ऐसा कर्म करोड़ो लोगों को जबरन तबाह करने से बड़ा दूसरा कोई अपराध नहीं होगा जहां इज्जत से जीने लायक रोजगार के दरवाजे पहले ही बंद हैं। कारखानेदारी व व्यवसाय में यह कुव्वत ही नहीं बची है कि वह कुछेक लोगों को छोड़ कर देश-दुनियां कीं पूरी आबादी को इज्जतदार रोजगार दे सके। बहुसंख्यक आबादी के लिए यह पूंजी व बाजारू स्पर्धा की गुलाम पद्धति अभिशाप है।

सरकार नहीं चाहती कि लोगों में मिलनसारी व भाईचारे की यह प्रक्रिया बनी रहे; वह चाहती है कि हर व्यक्ति अकेला रहे और हर मामले में उस पर (सरकार पर ) निर्भर हो कर रहे। व्यक्ति को अपने समाज से काट कर कमजोर करने की चाल हर राजा चलता आया है। अब भी यही प्रयास है। राज-काज अलग चीज है समाज दूसरा गठन है। राज सरकार जिन लोगों के लिए काम करती है उसमें निस्हाय व्यक्ति की जरूत है जबकि समाज को समरस आदमी की आवश्यकता है। दोनों में अन्तर है। इसे समझना चाहिए। सरकार की जरूरत के लिए अखबारी दुनियां ने अपने मकसद को आगे बढाने हेतु ऑनर किलिंग का बहाना लेकर खाप विरोधी एक अभियान चलाया हुआ है। इस साजिश को ठीक से नहीं समझा गया जिससे लाभ उन ताकतों को मिल रहा है जो समाज को नाथना चाहती हैं ताकि उनका वर्चस्व बना रहे। अखबार, केन्द्र सरकार व एन.जी.ओ सैक्टर की इस बात पर मिलीभगत सामने आ चुकी है जिसमें इनका प्रयास अदालतों को प्रयोग करने का भी रहा है।

सम्भवतः बहुत कम लोगों को पता है कि खाप के विरुद्ध जब अभियान चरम पर पहुंचा तो केन्द्र सरकार के गृहमन्त्री ने लोगों में मिल बैठ कर चर्चा व सलाह करने की पद्धति पर पाबंदी लगाने के लिए सख्त कानून बनाने की वकालत की थी और देश के विधि आयोग ने इस सम्बंध में जो कानून का प्रारूप सरकार को सन् 2012 में भेजा उसमें प्रावधान रखा गया था कि कोई पांच से अधिक व्यक्तियों का समूह पारिवारिक मामलों पर विचार के लिए बैठेगा तो सभी को कर्म का दोषी माना जायेंगां। उसमें अलग से कहीं जाट बिरादरी के लोगों का जिक्र नही था कि कानून उनपर ही लागू होगा। इसका अर्थ हुआ कि किसी बिरादरी के भी लोग मिल कर विचार करेगें वह गैरगानूनी माना जायेगा। यह प्रारूप हमारी बात की पुष्टि करता है कि सरकार की मंशा लोगों की पहल को रोकने की है केवल जाट बिरादरी की बात नहीं है। मिल बैठ कर विचार करने जैसे मौलिक जनतान्त्रिक अधिकार पर खतरा सब के ऊपर है।

देखने में आया कि खाप के विरुद्ध छेड़े गये प्रचार अभियान के असर में आ कर अनेक बिरादरियों ने खाप शब्द को नकारना आरम्भ कर दिया था, क्योंकि अनजाने ही यह मान लिया गया कि खाप केवल जाट बिरादरी की पहचान है। इस तरह की बात खाप विरोधी प्रचार अभियान में खूब चलाई थी। जातिगत विरोध के बावजूद जाट बिरादरी केे पढे-लिखे लोगों का बड़ा हिस्सा भी नफरत करता है; इन्हें पढाया गया कि जाट गांव का कुलक है (कुलक रूसी भाषा का शब्द है जिसे जारशाही के विरुद्ध जनता को तैयार करने में वहां की कम्यंनिष्ट पार्टी ने जमीनों पर कब्जा जमा कर बैठे धनी लोगों के इस तबके के विरोध में किसानों को लामबंद किया था। अब यह शब्द ग्रामीण क्षेत्रों के बदनाम लुटेरों के लिए प्रयोग होता है)।

जाट बिरादरी सामान्यत पारिवारिक श्रम पर निर्भर खेती करने वाला समूह है जिसे खाप के नाम पर निशाना बना कर हमला हुआ तो उन लोगों को बहुत अच्छा लगा जो खेती को पिछड़ेपन व सामंती/कुलक काम मान कर प्रगतिशील होने में मस्त रहते हैं। यह नहीं समझा गया कि इस अभियान को चलाने वाला अत्यन्त छोटा सा समूह है और वे खाप के सवाल पर जाट बिरादरी को अलग थलग करने की चालाकी बरत रहा है ताकि बांटों और राज करो की नीति पर चल कर इस प्रथा को समाप्त करने में सफल हो सके। वे चाहते है कि सरकार का हाथ खुला रहे जिस पर इनका वर्चस्व है। पूंजी के साम्राज्य को आगे बढाने में जो ग्रामीण क्षेत्र का खाप नामक रोड़ा है उसे हटाया जा सके। वे चाहते थे कि इस सवाल पर बिरादरियों को बांट कर रखा जाए और एक एक करके इस सवाल पर सब को पीटा जाए। यदि सब बिरादरियां कहीं मिल कर सरकार के इरादे का विरोध करतीं तो किसकी हिम्मत थी जो लोगों को मिल बैठ कर विचार करने से रोकने का कानूनी प्रबंध करे। इस एकता का लाभ सब को रहता। सरकार इस प्रचार अभियान के जरिये बिरादरियों को अलग थलग करने में कामयाब हुई और जनशक्ति को घाटा पहंुचा। अभियान चलाने वालों के इरादे को समझनें में गलती हुई है और आपसी भाईचारे पर चोट आई है। यह नहीं होना चाहिए था।

इसे स्वीकार कर लेने में सब का भला है कि खाप सब बिरादरियों की पद्धति है और इसकी रक्षा होनी चाहिए।