Supano

From Jatland Wiki
(Redirected from सुपनो)
Jump to navigation Jump to search

सुपनो (सुहागरात) - राजस्थानी लोक गीत

वीणा कैसेट द्वारा जारी कुरजां

प्राचीन काल में राजस्थान में जीविकोपार्जन की स्थितियां बहुत दुरूह और कठिन थी. पुरुषों को बेहतर कमाई के लिए नौकरी या व्यापार के लिए दुसरे प्रान्तों में बहुत दूर जाना होता था या फ़िर फौज की नोकरी में. यातायात व संचार के साधनों की कमी के आभाव में आना-जाना व संदेश भेजना भी कठिन था. एक प्रवास भी कई बार ३-४ वर्ष का हो जाता था कभी कभी प्रवास के समय की लम्बाई सहनशक्ति की सीमाएं पार कर देती थी, तब विरह में तड़पती नारी मन की भावनाएं गीतों के बहने फूट पड़ती थी. पुरूष भी इन गीतों में डूब कर पत्नी की वियोग व्यथा अनुभव करते थे. इस तरह के राजस्थान में अनेक काव्य गीत प्रचलित है. वीणा कैसेट द्वारा कुरजां राजस्थानी विरह लोक गीत पर कैसेट जारी किया है. यह विरह गीत सुपनो भी इसमें सामिल है तथा वियोग श्रंगार के गीत का काव्य सोष्ठव अनूठा है और धुनें भावों को प्रकट करने में सक्षम है. यह गीत प्रवासी समाज की भावनाओं के केन्द्र में रहा है. सुपना सुहागरात गीत पारंपरिक धुन पर आधारित है जिसके माध्यम से परिणय-मिलन को तरस रही किशोरी के सपनों का चित्रण किया गया है.

विरह में तड़पती नारी


सुणल्यो सहेल्यो म्हारी भायल्यो

सुपनो जी आयो आधी रात

सहेल्यो थानें सुपनों सुणाऊं ए sss २

नौ तो कुआ दस बावड़ी भरिया ताळ तळाब

सुपनें में मैं तो सासरियो देख्यो ए sss २

ऊँची मेडी चढ़ चली गढ़ छूवै असमान

सासरियो म्हाने बाल्हो लाग्यो ए sss २

मायड़ सी म्हारी सास छी बाबुल सा ससुर सुजान

नणदली म्हारे घणी मन भाई ए sss २

सेज बिछी रंग महल में फूलां स्यूं सेज सजाई

पियाजी रंग महल्याँ पधारया ए sss २

मधरी-मधरी चाल छी होठां पे मुस्कान

पियाजी म्हारे घणा मन भाया ए sss २

घूंघटो उठायो म्हारो प्रेम से नैणा स्यूं नैण मिलाय

पियाजी म्हारे नैणा में समाया ए sss २

पलकां झुकी म्हारी लाज स्यूं होठां स्यूं बोल्यो नाहीं जाय

पियाजी म्हानें अंग लगाया ए sss २

पाछे सुपनों टूटग्यो, रहगी अधूरी आस

सहेल्यां थाने अब के सुणाऊं ए sss २ स्थाई

यह भी देखें

सपनों के गाने यहाँ सुने

लेखक: लक्ष्मण बुरड़क


Back to राजस्थानी लोकगीत

Back to Rajasthani Folk Lore