Anangpal

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Mandir Statue of Anangpal Tomar II

Anangpal Tomar (731-736 AD) (अनंगपाल) or Bilan Dev Tomar was a Chandravanshi Kuntal Tomar Jat Kshatriya, descendant of Jat Samrat Parikshit of Mahabharat fame. He was the first ruler to make ancient Indraprastha, modern day - Delhi his capital.

History

Anangpal Tomar was a king of the Tomara dynasty, who ruled over areas of Delhi in India. Sources variously say this was in the 8th century CE or the 11th century.

Little is known of Anangpal, who whose ancestors had settled in the Aravalli Hills around the end of the first millennium CE. Some archaeological evidence survives of earlier settlements in the area and may be related to a ruler called Surajpal. Of Anangpal, the primary source for information comes from the Prithviraj Raso, a history of Prithviraj Chauhan which was written much later. Some sources say that physical evidence at Lal Kot (literally Red Fort, not to be confused with the present day Red Fort), which he is thought to have built and which is the oldest identifiable city in the area, suggests that he lived in the eleventh century[1][2] but others state that it was the 8th century.[3]

Anangpal Tomar II

Anangpal Tomar II

Anangpal Tomar II अनंगपाल द्वितीय (1051-1081 ) ruled Delhi in the mid-eleventh century.[1][2] He gave Mihirawali (now Mehrauli) name to modern Delhi which means path of Mihir.[3] In middle of 11th century, he built a fort called Lal Kot (literally Red Fort), in which the Qutb Minar stands today, and founded a town. He also removed the famous Iron pillar of Delhi on which are inscribed the eulogies of Chandragupta Vikramaditya (r. 375–415 CE), probably from Mathura, and set it up in 1052 CE, near a group of temples.[4] He also built the Yogmaya Temple nearby. The dynasty lasted just a century after this, as after him, came his son, Sohanpal and then his adopted grandson Mahipal

Anangpal Tomar III

The last Tomar ruler Anangpal Tomar III was succeeded by his grandson, the famous Prithvi Raj Chauhan (1149-1192 CE), who renamed the Lalkot fort as Qila Rai Pithora, and ruled both Delhi and Ajmer, and built the city which bore his name at the former place.[5].He was killed in a battle with the Turks at Tarain in AD 1192. From then onwards, Muslims ruled Delhi.[6]

Genelogy of Anangpal according to Torawati Family

सम्राट अनंगपाल द्वितीय

सम्राट अनंगपाल द्वितीय (1051ई.-1081 ई.): अनंगपाल द्वितीय ने 1051 ई.-1081 ई. तक 29 साल 6 मास 18 दिन तक राज्य किया। इनका वास्तविक नाम अनेकपाल था। इनकी मुद्राएँ तोमर देश कहलाने वाले बाघपत जिले में जोहड़ी ग्राम से प्राप्त हुई। लेख के अनुसार "सम्वत दिहालि 1109 अनंगपाल बहि "

इसका अर्थ है कि अनंगपाल ने सन 1052 ईस्वी में दिल्ली बसाई। पार्श्वनाथ चरित के अनुसार भी 1070 ईस्वी में दिल्ली पर अंनगपाल था। इंद्रप्रस्थ प्रबंध के अनुसार भी इस बात की पुष्टि होती है। महाराजा अनंगपाल तोमर की रानी हरको देवी के दो पुत्र हुए। बड़े सोहनपाल देव बड़े पुत्र आजीवन ब्रह्मचारी रहे। और छोटे जुरारदेव तोमर हुए जुरारादेव को सोनोठ गढ़ में गद्दी पर बैठे जुरारदेव तोमर के आठ पूत्र हुए -

1. सोनपाल देव तोमर - इन्होंने सोनोठ पर राज्य किया

2. मेघसिंह तोमर - इन्होंने मगोर्रा गाँव बसाया

3. फोन्दा सिंह तोमर ने फोंडर गाँव बसाया

4. गन्नेशा (ज्ञानपाल) तोमर ने गुनसारा गाँव बसाया

5. अजयपाल तोमर ने अजान गाँव बसाया

6. सुखराम तोमर ने सोंख

7. चेतराम तोमर ने चेतोखेरा गाँव

8. बत्छराज ने बछगांव बसाया

इन आठ गाँव को खेड़ा बोलते हैं। इन आठ खेड़ों की पंचायत वर्ष अनंगपाल की पुण्यतिथि (प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला-पूर्णमासी ) पर कुल देवी माँ मनसा देवी के मंदिर अनंगपाल की समाधी और किले के निकट हज़ार वर्षो से होती आ रही है। इस का उद्देश्य पूरे वर्ष के सुख दुःख की बाते करना, अपनी कुल देवी पर मुंडन करवाना, साथ ही आपसी सहयोग से रणनीति बनाना था। वर्तमान में यह अपने उद्देश्य से दूर होता दिख रहा है। मंशा देवी के मंदिर पर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला-पूर्णमासी को एक विशाल मेला लगता है जिसमे सिर्फ तोमर वंशी कुन्तल जाते हैं। दिल्ली के राजा अनंगपाल ने मथुरा के गोपालपुर गाँव में संवंत 1074 में मन्सा देवी के मंदिर की स्थापना की। यह गाँव गोपालदेव तोमर ने बसाया। अनंगपाल तोमर/तँवर ने गोपालपुर के पास 1074 संवत में सोनोठ में सोनोठगढ़ का निर्माण करवाया। जिसको आज भी देखा जा सकता है। इन्होंने |सोनोठ में एक खूँटा गाड़ा और पुरे भारतवर्ष के राजाओ को चुनोती दी की कोई भी राजा उनके गाड़े गए इस स्तम्भ (खुटे) को हिला दे या दिल्ली राज्य में प्रवेश करके दिखा दे। किसी की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए जुरारदेव तोमर के वंशज खुटेला कहलाये।

इनकी अन्य मुद्राओं पर श्री अंनगपाल लिखा गया है। इन्होने हरियाणा भाषा में भी नाम अणगपाल नाम सिक्कों पर अंकित करवाया है। इनके कुछ सिक्कों पर कुलदेवी माँ |मनसा देवी का चित्र भी अंकित है। ब्रज क्षेत्र और कृष्ण से प्रेम के कारन इन्होने कुछ सिक्को पर श्री माधव भी अंकित करवाया।

Ref - सम्राट अनंगपाल द्वितीय (1051ई.-1081 ई.) फेसबुक पर

दिल्ली

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ... हर्ष के साम्राज्य के छिन्न-भिन्न होने के पश्चात उत्तरी भारत में अनेक छोटी-छोटी रियासतें बन गई और इन्हीं में 12 वीं सदी में पृथ्वीराज चौहान की भी एक रियासत थी जिसकी राजधानी दिल्ली बनी. दिल्ली के जिस भाग में क़ुतुब मीनार है वह अथवा महरौली का निकटवर्ती प्रदेश ही पृथ्वीराज के समय की दिल्ली है. वर्तमान जोगमाया का मंदिर मूल रूप से इन्हीं चौहान नरेश का बनाया हुआ कहा जाता है. एक प्राचीन जनश्रुति के अनुसार चौहानों ने दिल्ली को तोमरों से लिया था जैसा कि 1327 ई. के एक अभिलेख से सूचित होता है--'देशोस्ति हरियाणाख्य: पृथिव्यां स्वर्गसन्निभ:, ढिल्लिकाख्या पुरी यत्र

[p.435]: तोमरैरस्ति निर्मिता। चहमाना नृपास्त्र राज्यं निहितकंटकम्, तोमरान्तरम् चक्रु: प्रजापालनतत्परा:'

यह भी कहा जाता है कि चौथी सदी ईस्वी में अनंगपाल तोमर ने दिल्ली की स्थापना की थी. इन्होंने इंद्रप्रस्थ के किले के खंडहरों पर ही अपना किला बनवाया. इसके पश्चात इसी वंश के सूरजपाल ने सूरजकुंड बनवाया जिसके खंडहर तुगलकाबाद के निकट आज भी वर्तमान हैं. तोमर वंशीय अनंगपाल द्वितीय ने 12 वीं सदी के प्रारंभ में लाल कोट का किला कुतुब के पास बनवाया. तत्पश्चात दिल्ली बीसलदेव चौहान तथा उनके वंशज पृथ्वीराज के हाथों में पहुंची. जनश्रुति के अनुसार क़ुतुब मीनार और कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद पृथ्वीराज के इस स्थान पर बने हुए 27 मंदिरों के मसालों से बनवाई गई थी.

कुछ विद्वानों का मत है कि महरौली जहां कुतुब मीनार स्थित है-- पहले एक वृहद वेधशाला के लिए विख्यात थी. 27 मंदिर 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे और कुतुब मीनार चांद-तारों आदि की गतिविधि देखने के लिए वेधशाला की मीनार थी. इन सभी इमारतों को कुतुबुद्दीन (r. 1206-1210) तथा परर्वती सुल्तानों ने इस्लामी इमारतों के रूप में बदल दिया. पृथ्वीराज के तराइन के युद्ध में (1192 ई.) मारे जाने पर दिल्ली पर मुहम्मद गोरी (1149 – 1206) का अधिकार हो गया. इस घटना के पश्चात लगभग साढ़े 6सौ वर्षों तक दिल्ली पर मुसलमान बादशाहों का अधिकार रहा और यह नगरी अनेक साम्राज्यो की राजधानी के रूप में बसती और उड़ती रही. मुहम्मद गौरी के पश्चात 1236 ई. में गुलाम वंश की राजधानी दिल्ली में बनी. इसी काल में कुतुब मीनार का निर्माण हुआ. गुलाम वंश के पश्चात अलाउद्दीन (r. 1296 to 1316) ने सीरी में अपनी राजधानी बनाई.

For reference, also see Hindi article at page Qutb Minar

दिनांक 14 अगस्त 2021 गांव पृथला, जिला पलवल हरियाणा में बैठक

दिनांक 14 अगस्त 2021 गांव पृथला, जिला पलवल हरियाणा में बैठक

जाट सम्राट महाराजा अनंगपाल तोमर मूर्ति के विषय में आज पृथला में 36 बिरादरी के युवाओं एवम बुजुर्ग सिरदारी ने एक पंचायत का आयोजन किया| पंचायत की अध्यक्षता मास्टर गिर्राज पीटीआई जी ने की। गुर्जर समाज द्वारा जाट राजा अनंगपाल तोमर की प्रतिमा स्थापित करने के विषय में भारी रोष है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा अनंगपाल तोमर जाट थे । मथुरा गजट के पेज नंबर 336 पर लिखा हुआ है कि अनंगपाल तोमर जाट थे सत्यार्थ प्रकाश में रचित है जो कि राजा परीक्षित से ले कर अनंगपाल तोमर तक की वंशावली लिखी हुई है। आज भी तोमरों की 6 जाट रियासत 3000 गांव जिनमें बहुत ही प्राचीनतम मंदिर मूर्तियां अनंगपाल तोमर जाट सम्राट की लगी हुई है| जिनमें से पिसावा तोमर जाट रियासत विरासत के रूप में आज भी विराजमान है। बागपत में उनके वंशज महाराजा अनंगपाल तोमर के दादा का सलक्षपाल तोमर जिन्होंने चौधरी खाप प्रणाली की शुरुआत करी, उनकी जयंती सालों से मनाते हुए आ रहे हैं| मथुरा सौख में 500 गांव कुंतल जाटों के वंशज है, तोमरो के हैं। जिन्होंने 1000 वर्ष पूर्व महाराजा अनंगपाल तोमर की मूर्ति एवं मनसा माता मंदिर की स्थापना करी। पलवल गांव पृथला में 45 साल से महाराजा अनंगपाल तोमर की मूर्ति स्थापित है। यह तो इतिहास की झलक भर है| अगर कोई भी समाज जाट इतिहास के साथ छेड़छाड़ करें तो जाट समाज बर्दाश्त नहीं करेगा। हम खुली बहस के लिए तैयार हैं।

पंचायत में निर्णय लिया गया कि बहुत जल्द पृथला में पहले से ही विराजमान मूर्ति को विशाल रूप दिया जाएगा। गांव गांव पंचायतों का आयोजन किया जाएगा| 36 बिरादरी एवं जाट समाज महापुरुषों के दोहन को बर्दाश्त नहीं करेगा ।

जाट समाज द्वारा गुर्जर सभा को लीगल नोटिस

लीगल नोटिस

बाहरी कड़ियाँ

Gallery

References

  1. Blake, Stephen P. (2002). Shahjahanabad: The Sovereign City in Mughal India 1639-1739. Cambridge University Press. pp. 7–9. ISBN 9780521522991.
  2. Khushwant Singh (2001). City improbable: an anthology of writings on Delhi. Viking. p. 5. ISBN 978-0-670-91235-3.
  3. Mukherji, Anisha Shekhar (2002). The red fort of Shahjahanabad. Delhi: Oxford University Press. p. 46. ISBN 9780195657753.
  4. Gazetteer, p. 233
  5. Gazetteer, p. 234
  6. D. C. Ahir (1989). Buddhism in north India. Classics India Publications. p. xvi. ISBN 81-85132-09-7.
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.434-435

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