Baunk

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बौंक: जब कोई उपाधि स्थाई रूप धारण कर अगली पीढ़ी द्वारा प्रयोग होने लगता है तब वह बौंक का रूप धारण कर जाती है. प्राय: चार पांच पीढ़ियों में लगातार प्रयोग की जाने वाली उपाधि ही बौंक के रूप में स्थापित हो जाती है. उपाधि प्राप्त व्यक्ति की मृत्यु के बाद जीवित पीढियां यदि वही उपाधि प्रयोग करती हैं तो वह उपाधि उनका बौंक बन जाती है. पंडित मोतीलाल जी की जमीन जायदाद कश्मीर में नहर के के पास थी इसलिए उन्हें नेहरु की उपाधि मिली. अब वही उपाधि उनके परिवार जनों के लिए बौंक बन चुकी है . बौंक वास्तव में उपाधि और गोत्र के बीच की कड़ी है . उपाधि व्यक्ति के जीवन में ही प्रचलित रहती है जबकि बौंक कई पीढ़ियों तक चलता है और यह तभी समाप्त होता है जब यह गोत्र का रूप धारण कर लेता है . या फिर अपना अस्तित्व समाप्त कर दुसरे बौंक या गोत्र में समाहित हो जाता है . इसकी एक यह भी विशेषता है की यह वापिस उपाधि में नहीं बदल सकता परन्तु गोत्र में बदलने के लिए बौंक का कई पीढ़ियों तक चलते रहना इसकी एक अनिवार्य शर्त है.

सन्दर्भ

जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु, लेखक : डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया प्रकाशक : जयपाल अजेन्सीज, अध्याय 2, पृ.4