Charawas

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Location of Charawas in Jhunjhunu district

Charawas (चारावास) is village in Khetri tahsil of Jhunjhunu district in Rajasthan.

Founder

Charawas Village was founded by Gopal Chahar in 1453 AD, who came from Parasrampura Jhunjhunu.

Jat Gotras

Population

As per Census-2011 statistics, Charawas village has the total population of 4109 (of which 2123 are males while 1986 are females).[1]

History

राजस्थान में चाहर गोत्र

  • ऋषि - भृगु
  • वंश - अग्नि
  • मूल निवास - आबू पर्वत राजस्थान। शिव के गले में अर्बुद नाग रहता है उसी के नाम पर इस पर्वत का नाम आबू पर्वत पड़ा।
  • कुलदेव - भगवान सोमनाथ
  • कुलदेवी - ज्वालामुखी
  • पित्तर - इस वंश में संवत 1145 विक्रम (सन 1088 ई.) में नत्थू सिंह पुत्र कँवरजी पित्तर हुए हैं, जिनकी अमावस्या को धोक लगती है। इस वंश की बादशाह इल्तुतमिश (r. 1211–1236) (गुलाम वंश) से जांगल प्रदेश के सर नामक स्थान पर लड़ाई हुई।

राजा चाहर देव - इस लड़ाई के बाद चाहरों की एक शाखा नरवर नामक स्थान पर चली गयी। सन् 1298 ई. में नरवर पर राजा चाहरदेव का शासन था। यह प्रतापी राजा मुस्लिम आक्रांताओं के साथ लड़ाई में मारा गया और चाहर वंश ब्रज प्रदेश और जांगल प्रदेश में बस गया। इतिहासकारों को ग्वालियर के आस-पास खुदाई में सिक्के मिले हैं जिन पर एक तरफ अश्वारूढ़ राजा की तस्वीर है और दूसरी और अश्वारूढ़ श्रीसामंत देव लिखा है। इतिहासकार इसे राजा चाहरदेव के सिक्के मानते हैं।

संवत 1324 विक्रम (1268 ई.) में कंवरराम व कानजी चाहर ने बादशाह बलवान को पांच हजार चांदी के सिक्के एवं घोड़ी नजराने में दी। बादशाह बलवान ने खुश होकर कांजण (बीकानेर के पास) का राज्य दिया। 1266 -1287 ई तक गयासुदीन बलवान ने राज्य किया। सिद्धमुख एवं कांजण दोनों जांगल प्रदेश में चाहर राज्य थे।

राजा मालदेव चाहर - जांगल प्रदेश के सात पट्टीदार लम्बरदारों (80 गाँवों की एक पट्टी होती थी) से पूरा लगान न उगा पाने के कारण दिल्ली का बादशाह खिज्रखां मुबारिक (सैयद वंश) नाराज हो गए। उसने उन सातों चौधरियों को पकड़ने के लिए सेनापति बाजखां पठान के नेतृतव में सेना भेजी। खिज्रखां सैयद का शासन 1414 ई से 1421 ई तक था। बाजखां पठान इन सात चौधरियों को गिरफ्तार कर दिल्ली लेजा रहा था। यह लश्कर कांजण से गुजरा। अपनी रानी के कहने पर राजा मालदेव ने सेनापति बाजखां पठान को इन चौधरियों को छोड़ने के लिए कहा. किन्तु वह नहीं माना। आखिर में युद्ध हुआ जिसमें मुग़ल सेना मारी गयी. इस घटना से यह कहावत प्रचलित है कि -

माला तुर्क पछाड़याँ दे दोख्याँ सर दोट ।
सात जात (गोत) के चौधरी, बसे चाहर की ओट ।

ये सात चौधरी सऊ, सहारण, गोदारा, बेनीवाल, पूनिया, सिहाग और कस्वां गोत्र के थे।

विक्रम संवत 1473 (1416 ई.) में स्वयं बादशाह खिज्रखां मुबारिक सैयद एक विशाल सेना लेकर राजा माल देव चाहर को सबक सिखाने आया। एक तरफ सिधमुख एवं कांजण की छोटी सेना थी तो दूसरी तरफ दिल्ली बादशाह की विशाल सेना।

मालदेव चाहर की अत्यंत रूपवती कन्या सोमादेवी थी। कहते हैं कि आपस में लड़ते सांडों को वह सींगों से पकड़कर अलग कर देती थी। बादशाह ने संधि प्रस्ताव के रूप में युद्ध का हर्जाना और विजय के प्रतीक रूप में सोमादेवी का डोला माँगा। स्वाभिमानी मालदेव ने धर्म-पथ पर बलिदान होना श्रेयष्कर समझा। चाहरों एवं खिजरखां सैयद में युद्ध हुआ। इस युद्ध में सोमादेवी भी पुरुष वेश में लड़ी। युद्ध में दोनों पिता-पुत्री एवं अधिकांश चाहर मारे गए।

बचे हुए चाहर मत्स्य प्रदेश एवं उदयपुरवाटी (झुंझुनू) आ गए। उदयपुरवाटी के पास परशुरामपुर गाँव बसाया। यहाँ से एक पूर्वज गोपाल चाहर विक्रम संवत 1509 (1453 ई.) बसंत पंचमी (माघ पाँचम) को (18 पीढ़ी) खेजड़ी की डाली रोपकर ग्राम चारावास बसाया। उस समय दिल्ली पर बहलोल लोदी (1451 -1489 ई.) का राज्य था। ग्राम चारावास वर्त्तमान खेतड़ी तहसील जिला झुंझुनू में स्थित है। इस ग्राम के बजरंग सिंह चाहर खेतड़ी के पूर्व प्रधान हैं और श्री पूरण सिंह चाहर पूर्व सरपंच हैं।[2]

Notable persons

  • श्री बजरंग सिंह चाहर खेतड़ी के पूर्व प्रधान हैं।
  • श्री पूरण सिंह चाहर पूर्व सरपंच हैं।

Gallery

External links

References

  1. http://www.census2011.co.in/data/village/71475-charawas-rajasthan.html
  2. अनूप सिंह चाहर, जाट समाज आगरा, नवम्बर 2013, पृ. 26-27

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