Chet Ram Janu

From Jatland Wiki
(Redirected from Chetram Bhadarwasi)
Jump to navigation Jump to search
Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Chet Ram Janu (born:1891-1946) (चेतराम भामरवासी) was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in year 1891 AD at village Bhamarwasi in Chirawa tahsil of district Jhunjhunu in Rajasthan. [1]

Pushkar adhiveshan 1925

Pushkar adhiveshan 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram etc. farmer leaders had also attended. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come namely, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri. 24-year young boy Har Lal Singh also attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely, 1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education. 2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Jagirdars.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....श्री चेतराम जी भामरवासी - [पृ.419]: आपका जन्म भावरवासी व मोहनपुर में यादव गोत्र1 के खानदान में संवत 1948 (1891 ई.) को हुआ था। आप में जातीय लगन व सार्वजनिक भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। पहले पहल पुष्कर जाट महासभा में शेखावाटी से केसरिया पोशाक में एक दल लेकर पहुंचे थे। झुंझुनू जाट महासभा में भी आप ठाट-बाट से शामिल हुए थे। आप श्री ख्यालीराम जी के ताऊ लगते हैं। श्री ख्याली राम जी को तैयार करने में यानी निर्भीक और निडर बनाने में आपका काफी हाथ रहा है। आप अत्याचारी ठिकानेदारों से लड़ने में दोनों साथ रहते थे।

आप संवत 1988 से लेकर मृत्यु के समय 2003 तक बराबर ठिकानेदारों से लड़ते रहे। आप ने दर्जनों मुकदमे व अनेक बार मुकाबला में टक्कर ली है। आपका ही फल है कि ठिकानेदार


नोट 1. यह गोत्र जानू है। इन तथ्यों की पुष्टि राजेन्द्र कसवा से की गई है। Laxman Burdak (talk)


[पृ.420]: इस गांव की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देख सकते हैं। आपके 3 पुत्र और चार पुत्रियां हैं। बड़े लड़के का नाम शुचंद्र और उससे छोटे लड़के का नाम धन्नाराम है जो कि बिजनेस करते हैं। तीसरे लड़के का नाम सरदारसिंह है जो कि सातवीं क्लास में पढ़ता है। आपकी मृत्यु संवत 2003 (1946 ई.) में चैत्र बदी 10 को हुई थी।

एक बाहर की घटना है कि आपका ठिकानेदारों को इतना डर हो गया था कि एक एक दिन आप को जंगल में अकेला देख कर राज के साठ कर्मचारियों ने आप पर हमला बोल दिया। आप कितनी ही देर तक उनके साथ बड़ी बहादुरी से अकेले ही लड़ते रहे। लेकिन अंत में अकेले होने के कारण से आप को जमीन पर गिरा दिया और खूब मारपीट की। अंत में ठिकानेदारों ने अपने मन में मरा हुआ समझकर छोड़कर भाग गए। आपके शरीर में तलवार वह फरसे के तीन भारी घाव आए। किसी भी देखने वाले को यह विश्वास नहीं था कि आप जीवित रह जाएंगे। लेकिन आपको अभी ठिकानेदारों उसे बहुत लड़ना था इसलिए आप चिड़ावा के योग्य डॉक्टर से 6 महीने के इलाज के बाद ठीक होगे और आपने फिर से नया जीवन प्राप्त कर लिया।

जीवन परिचय

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[3]

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.419-420
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.419-420
  3. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21

Back to Jat Jan Sewak/The Freedom Fighters