Hanuman Beniwal

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Hanuman Beniwal

Hanuman Beniwal (हनुमान बेनीवाल) is a Member of Parliament (Lok Sabha) from Nagaur constituency of Rajasthan. He won this election in May 2019 as a Rashtriya Loktantrik Party (RLP) candidate. Earlier, Hanuman Beniwal was MLA from Khinvsar (Ind. MLA-2013, 2018), Nagaur and Ex-President, University of Rajasthan Jaipur.

Hanuman Beniwal is a prominent Jat leader from Rajasthan. He was born on 2 March 1972. He comes from village Barangaon (बरनगांव) in Nagaur tehsil and district in Rajasthan.

He has been elected RLP MLA from Khinvsar (Nagaur) Assembly constituency in 2023.

Family

Party

He founded Rashtriya Loktantrik Party (RLP)

Career in politics

He is the most prominent Jat leader in Nagaur and won the assembly elections (2013) as an Independent. In 2013 he defeated his rival BJP candidate by a margin of 23020 votes. In 2008, he was a BJP candidate and had defeated his rival BSP candidate by a margin of 24443 votes.[1]

In the Assembly elections in December 2018, he won from Khinvsar constituency, as a candidate from Rashtriya Loktantrik Party (RLTP).

Election

  • 2003 Mundwa Assembly on INLD ticket lost to Usha Punia
  • 2008 Khinwsar Assembly on BJP ticket - Won
  • 2013 Khinwsar Assembly as Independent - Won
  • 2018 Khinwsar Assembly on RLP ticket - Won
  • 2019 Nagaur Lok Sabha on RLP ticket - Won
  • 2023 Khinwsar Assembly on RLP ticket - Won

New face of Jat politics

Earlier, BJP MLA and young Jat leader Hanuman Beniwal was suspended from Bhartiya Janta Party (BJP) after remark against Rajasthan BJP Leaders including former Rajasthan CM Vasundhara Raje and other leaders like Rajendra Rathore. Beniwal, at a function in Maharani Girls College, had accused Raje of being “corrupt” and challenged Chief Minister Ashok Gehlot to take action against her. Hanuman Beniwal is one of dominating Jat Lobby of Rajasthan and known as new face of Jat politics in Rajasthan.[2]

Hanuman Beniwal attacked in Jaipur

Independent MLA Hanuman Beniwal was attacked allegedly by some unidentified assailants on 23 September 2015 (Wednesday) when he was going to Nagaur from Jaipur. He was in Self vehicle with driver and two others. The vehicle was stranded in traffic jam due to a procession of Rajput community. After few minutes, a mob of 30-40 youths attacked his vehicle with sticks. Windowpanes of his SUV were broken in the incident which took place near Jobner-Kalwar road. Probably, they were the part of the procession and attacked him at the behest of some ministers. The attackers surrounded and damaged his vehicle. Fortunately, the jam was cleared and the driver sped away, two people sitting with him received minor injuries. [3]

Hanuman Beniwal accuses Yunus Khan

Independent MLA Hanuman Beniwal accused cabinet minister Yunus Khan of helping alleged gangster Anandpal Singh escape from police custody as part of a political quid pro quo. Beniwal, who represents Khinvsar constituency in Nagaur, alleged that Khan helped Anandpal escape police custody after the alleged gangster helped him win the Assembly elections in 2013. He has demanded a CBI inquiry in the matter. [4]

Rajasthan University violence

The National Students Union of India (NSUI) staged a protest at the Rajasthan University campus on Thursday, demanding action against the police for “showing excessive brutality”. The agitation was held a day after the police lathi-charged a group of RU students protesting against a recent attack on Independent MLA from Nagaur, Hanuman Beniwal. The students were organising a peaceful rally when the police started the lathi-charge. Many of NSUI students were injured. NSUI office was also raided. Around 500 students under the banner ‘Kisaan Yuva Aakrosh Rally’ had assembled at the university campus on Wednesday morning protesting against the alleged attack on Hanuman Beniwal. The procession turned violent when police tried to contain them in the campus resulting in alleged stone pelting by the agitating students. The police resorted to lathi-charge to disperse them that led to vandalism and chaos on the campus, leaving 30 students and 18 policemen injured.[5]

राजस्थान में जाट मुख्यमंत्री बनाने का मिशन

खिंवसर विधायक हनुमान बेनीवाल आज राजस्थान प्रदेश के सर्वमान्य नेता बन चुके हैं । विधायक बेनीवाल राजस्थान में जाट को मुख्यमंत्री बनाने का मिशन लेकर चल रहे हैं और प्रदेश भर में अपने भारी काफिले के साथ जगह जगह बड़ी बड़ी सभायें करके जनसमुदाय को जाट सीएम बनाने के लिए संकल्पबद्ध करवा रहे हैं । बेनीवाल के लगातार चल रहे इन तूफानी दौरों ने दोनों पार्टियो को चिंता में डाल दिया हैं । साथ ही साथ बेनीवाल तीसरे मोर्चे को राजस्थान में प्रभावी रूप से स्थापित करने की बात कह रहे हैं ।।

लेखक- राजेश थोरी


किसान हूंकार महारैली नागौर

खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में गत 7 दिसम्बर 2016 को किसान हूंकार महारैली का आयोजन किया गया । इसमें बेनीवाल के आह्वान पर प्रदेश भर से लाखों की संख्या में किसान, मज़दूर एवं युवा वर्ग का हुजूम उमड़ा । सरकार के इशारे पर मीडिया ने इसकी कवरेज नहीं दिखाई परंतु विशेषज्ञों के अनुसार 5 लाख से ज़्यादा की भीड़ थी । इस महारैली में विधायक बेनीवाल के साथ डॉ किरोड़ी लाल जी मीणा भी थे । हूंकार महारैली नागौर से राजस्थान की राजनीति में उथल पूथल मच गई, राजनीतिक दल जो बरसों से सता का सुख भोगते आए है, विधायक बेनीवाल के बढ़ते जनाधार को देखकर दाँतों तले अंगुली दबाने के अलावा कुछ नहीं कर सके ।।

लेखक- राजेश थोरी

किसान हूंकार महारैली बाड़मेर 7 जनवरी 2018

खींवसर विधायक बेनीवाल को दी पुलिस सुरक्षा

नागौर जिले के खींवसर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल को पुलिस अधीक्षक गौरव श्रीवास्तव ने सुरक्षा के लिए दो गार्ड उपलब्ध कराए हैं। हार्डकोर अपराधी आनन्दपाल सिंह के पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद नागौर एसपी ने राज्य सरकार से इसके लिए पहले ही सिफारिश की थी। उन्होंने मुख्यालय के उच्चाधिकारियों से सलाह-मशविरा किया था। उन्हीं के निर्देश पर विधायक बेनीवाल को पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराई है। विधायक बेनीवाल पर गत दिनों जयपुर में भी कुछ लोगों ने हमला किया था। गौरतलब है कि बेनीवाल काफी समय से डीडवाना के जीवण गोदारा हत्याकांड व आनन्दपाल सिंह फरारी प्रकरण को जगह-जगह उठाते रहे हैं। बेनीवाल विधानसभा में भी आनन्दपाल सिंह के सम्बन्ध मंत्री से होने के आरोप लगा चुके हैं। सूत्रों के अनुसार राज्य की प्रमुख सुरक्षा एजेंसियां एटीएस व एसओजी ने भी सरकार को आनन्दपाल गैंग से विधायक बेनीवाल को खतरा होने की रिपोर्ट दी थी। जिसको गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने गत दिनों विधायक बेनीवाल को सुरक्षा उपलब्ध कराने संबंधी बयान दिया था। [6]

पुलिस जवान खुमाराम को शहीद का दर्जा दिलाने के प्रयास

फलोदी हाइवे पर धरना देते ग्रामीण

राजस्थान में एक गैंगस्टर को खत्म करने पहुंचे दूसरी गैंग के शार्प शूटर्स का पुलिस से एनकाउंटर हो गया। नाकेबंदी के दौरान इन गैंगस्टर्स ने एके-47 से पुलिस पर गोलियां चला दीं। इसमें एक जवान खुमाराम कसवां की मौत हो गई। पीछा कर रही थी पुलिस... गोलियां बरसा रहे थे जवान... - दरअसल, राजस्थान के गैंगस्टर आनंदपाल और उसके गुर्गों पर हमला करने की फिराक में जयपुर पहुंचे राजू ठेहट गैंग के 5 शार्प शूटरों में से एक को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया। उसके चार साथी फरार हो गए। बाद में ये शार्प शूटर नागौर की सीमा में घुस गए, जहां नाकाबंदी कर रही पुलिस से उनकी मुठभेड़ हो गई। गैंगस्टर्स का पीछा कर रही पुलिस पर बदमाशों ने एके-47 से गोलियां की बौछार कर दी। इसमें घायल हुए राजस्थान पुलिस के जवान खुमाराम ने जोधपुर के एमडीएम हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया। वहीं, पुलिसकर्मी हरेंद्र चौधरी को पैर और चेहरे पर गोलियां लगीं। फरार हो गए थे बदमाश - पुलिस पर हमला करने के बाद चार शार्प शूटर फॉर्च्यून में फरार हो गए। - रास्ते में बदमाशों ने कार से दो लड़कों को भी कुचलकर घायल कर दिया। - उनकी कार भी खराब हो गई। पुलिस को नजदीक आता देख बदमाश अपनी कार छोड़कर खेतों में भागे। - पुलिस रातभर तलाश में जुटी थी। पीछा कर रही पुलिस पर वे एके-47 से फायरिंग करते रहे।- पुलिस के मुताबिक, जयपुर में गिरफ्तार किया गया शार्प शूटर राजस्थान के श्रीमाधोपुर का रहने वाला शंकर है।- बताया जा रहा है कि फरार बदमाशों में आगरा का रहने वाला शार्प शूटर गोल्डी, हरियाणा का रहने वाला रोहित फौजी और ग्वालियर का रहने वाला हरेन्द्र यादव शामिल है। एक अन्य शार्प शूटर भी है।- ये चारों एसयूवी लेकर जयपुर से सीकर, नागौर और बीकानेर जिले के कच्चे रास्तों से होते हुए नागौर-बीकानेर हाईवे पर पहुंचे। - यहां इन्होंने श्रीबालाजी पुलिस की नाकाबंदी तोड़कर कार को नागौर फलौदी रोड पर दौड़ा दिया। ग्रीन कॉरिडोर बनाकर एक जवान को बचाया - घायल जवानों को जोधपुर लाने के लिए पुलिस कमिश्नर अशोक कुमार राठौड़ ने ग्रामीण पुलिस से कॉर्डिनेट कर खेड़ापा से जोधपुर के बीच ग्रीन कॉरिडोर बनवाया।- इसके साथ ही एमडीएमएच आईसीयू ट्रोमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. विकास राजपुरोहित ने डॉ. गोपाल माहेश्वरी और उनकी टीम को सामने भेजा।- वहीं, कमिश्नर राठौड़, डीसीपी समीरकुमार सहित अन्य अधिकारी हॉस्पिटल पहुंचे और डॉक्टरों को बुलाया।आनंदपाल जयपुर में छिपा है या नागौर में - गिरफ्तार शंकर वही आरोपी है जिसने बीकानेर जेल में आनंदपाल को मारने पहुंचे बदमाशों को हथियार पहुंचाए थे।- शंकर आठ साल से राजू ठेहट की गैंग से जुड़ा है। हत्या, लूट जैसे मामलों में वह पिछले दस साल से फरार था।- चारों शार्प शूटर आनंदपाल और उसके सदस्यों पर हमला करने की फिराक में आए। वे जयपुर पहुंचे।- पुलिस की कार्रवाई के दौरान सीधे नागौर की ओर भागे। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इन दोनों जगहों में से ही कहीं आनंदपाल भी छिपा हो। एक साल में दूसरी बार पुलिस से मुठभेड़- नागौर जिले में फिर से खूनी संघर्ष हुआ है। एक साल बाद फिर पुलिस ही निशाने पर रही।- इससे पहले 14 नवंबर 2014 में कुचामन में आनंदपाल गैंग के शूटर विजेंद्र सिंह चारण ने नागौर पुलिस के हैड कांस्टेबल फैज मोहम्मद की फायरिंग कर हत्या कर दी थी।कार में मिले हथियार- बदमाश जो कार छोड़कर फरार हुए, उसमें आधा दर्जन हथियार, कारतूस, बारूद, बादाम, मिर्च, कपड़े बरामद हुए हैं।- हथियारों में कई सेमी ऑटोमैटिक हथियार होने की प्राथमिक बात सामने आई है।[7]


पुलिस जांच में सामने आया है कि बदमाश जिस कार में फरार हुए, वह बीकानेर निवासी आशाराम डूडी की लूटी हुई फॉरच्यूनर थी। आसाराम डूडी विधानसभा में विपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी के चाचा हैं। यह कार करीब एक माह पहले बीकानेर के जामसर थाना इलाके में लूट ली गई थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने एटीएस को बताया कि जिस कार में बदमाश भाग रहे थे, उनमें आनंदपाल जैसी शक्ल का भी कोई व्यक्ति था। सुबह घटना स्थल के आसपास पुलिस ने सर्च अभियान चलाया, जिसमें आनंदपाल का आईडी अन्य सामान मिला। पुलिस ने शंकर से पूछताछ की तो उसके फरार साथियों का हुलिया और कपड़े भी उनसे अलग पाए गए, जिन्होंने पुलिस पर फायरिंग की थी। इसके बाद आशंका जताई जा रही है कि उसमें आनंदपाल हो सकता है। मुठभेड़ में जान गंवाने वाले पुलिस कमांडो खूमाराम को शहीद का दर्जा देने की मांग को लेकर गुढ़ा भगवानदास गांव के पास जाम प्रदर्शन किया। इस कारण पुलिस अधिकारियों ने उनके अंतिम संस्कार करने का निर्णय बुधवार तक टाल दिया। उनकी पार्थिव देह मंगलवार शाम को पुलिस लाइन में ही रखी गई। डीजीपी मनोज भट्ट पुलिस अधिकारियों ने गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया।


इस बीच, उधर, आईजी मालिनी अग्रवाल ने बताया कि डीजीपी मनोज भट्‌ट ने खुमाराम के परिवार को 20 लाख रुपए का पैकेज, मृत आश्रित परिवार के सदस्य को नौकरी पुलिस वेलफेयर से अन्य मदद के साथ साथ गैलेंट्री मैडल दिलाने की बात कही है।

नागौरमें पुलिस पर एके-47 पर फायरिंग करने वाले शार्प शूटरों की तलाश में मंगलवार को नागौर, बीकानेर और जोधपुर जिले की सीमाओं से सटे गांव-ढाणियों और खेतों में दिनभर तलाशी अभियान चलाया। पुलिस की 30 टीमें भी 36 घंटे बाद उनका कोई सुराग नहीं लगा पाईं। इस बीच, नागौर में गैंगस्टर फायरिंग और आनंदपाल की फरारी के मुद्दे पर मंगलवार को विधानसभा में विपक्ष ने गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया पर जमकर हमला बोला। नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने आरोप लगाया कि गृह मंत्री ‘जीरो’ है। आनंदपाल और उसके साथी प्रदेश में ही हैं। पुलिस कुछ नहीं कर रही। इस पर कटारिया बोले- जब तक आनंदपाल और उसके गिरोह को नेस्तनाबूद नहीं कर देंगे, चैन से नहीं बैठेंगे।[8]


गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने सदन में वक्तव्य दिया कि ऐसा नहीं है कि पुलिस कुछ भी नहीं कर पा रही है। पुलिस को मोरली डाउन करके आप कुछ अर्जित नहीं कर पाओगे। यदि आप चाहते हो तो पुलिस को कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर भेज दें तो फिर राजस्थान का क्या नक्शा होता है,आप लोग देख सकते हो। कांस्टेबल खुमाराम मर गया। वह भी तो किसी का बेटा था। कटारिया ने कहा वर्ष 2005 से वांटेड शंकर को गिरफ्तार किया, लेकिन पुलिस को इसके लिए कोई शाबासी नहीं देता। इसके खिलाफ रींगस, रानोली, लाडनूं, बीकानेर, गंगाशहर, जयपुर सीकर में आपराधिक मामले दर्ज हैं। एसओजी ने उसे मानसरोवर से दबोच लिया। फॉरच्यूनर में उसके साथी गोल्डी, हरेन्द्र यादव, रोहित सवार थे, जिनके पास एके 47 थी। उन्हें पकड़ने के लिए श्रेणी की नाकेबंदी की। थानाधिकारी नागौर ने रोका और पीछा किया। बदमाशों की ओर से हुई अंधाधुंध फायरिंग में कांस्टेबल खुमाराम के गोली लगी जिसकी बाद में अस्पताल में मौत हो गई। कांस्टेबल हरेन्द्र का इलाज अस्पताल में जारी है। इस वारदात में अपराधियों ने 30 से 35 राउंड फायरिंग की। वहीं, पुलिस ने 19 राउंड फायर किए। इस घटना में जो भी कमी रही है उसकी जांच की जाएगी। कटारिया ने माना कि पुलिस के पास उतने अच्छे हथियार नहीं थे जितने अच्छे बदमाशों के पास थे। आनंदपाल भी कितना भागेगा...मैं कहता हूं कि जब तक आनंदपाल और उसकी गैंग को नेस्तनाबूद नहीं कर दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूंगा। उधर, नागौर पहुंचे डीजीपी मनोज भट्ट ने कहा कि पुलिस इस मामले में गंभीरता से जुटी हुई। बदमाशों को शीघ्र ही ढूंढ़ लिया जाएगा।

गौरतलब है कि सोमवार रात जयपुर में 5 शार्प शूटर मानसरोवर इलाके में थे। पुलिस ने इनमें से एक शंकर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि चार फरार हो गए थे। ये यहां से सीधे नागौर पहुंचे और पुलिस की नाकाबंदी तोड़ते हुए भागे। इस दौरान नागौर फलौदी मार्ग पर उनकी गुढ़ा भगवानदास के पास क्यूआरटी दल से मुठभेड़ हुई थी। इस दौरान दो कमांडो हरेंद्र चौधरी खुमाराम जाट घायल हुए थे। बाद में खुमाराम ने दम तोड़ दिया।

जयपुरमें गिरफ्तार राजू ठेहट गैंग के शार्प शूटर शंकरलाल उर्फ संदीप जाट को जयपुर से बीकानेर ले जाया गया। उसे बीकानेर जेल में आनंदपालसिंह को मारने के लिए हथियार पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर रिमांड पर लिया है। शंकरलाल सीकर के श्रीमाधोपुर थाना क्षेत्र में जाजोद का रहने वाला है। उसने बीकानेर जेल में आनंदपालसिंह को मारने के लिए हनुमान जाखड़ उसके साथी को हथियार उपलब्ध करवाए थे। [9]


गैंगस्टर आनंदपाल मंगलवार को फिर विधानसभा में गरजता रहा। कानून व्यवस्था को आड़े हाथों लेते हुए निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल ने पुलिस की नाकामी पर अफसोस जाहिर किया। इसके साथ ही सदन में हंगामा शुरू हो गया। गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने हर बार की तरह इस बार कहा- जब तक यह गैंगस्टर पकड़ा नहीं जाता, वे चैन से नहीं बैठेंगे। पुलिसकर्मी को शहीद का दर्जा दो... - सदन में हनुमान बेनीवाल ने कहा- नागौर मे हुई गैंगवार घटना मे बदमाशों से मुठभेड़ मे शहीद हुए खुमाराम को शहीद का दर्जा दिया जाए।- मृतक के आश्रित को सरकारी नौकरी व परिजनों को एक करोड़ रुपए की राशि भी दे सरकार। - आनंदपाल और राजू ठेहट सहित पनप रही गेंगों के खात्मे के लिए विशेष अभियान चलाने की भी बात सदन में रखी। - बेनीवाल ने फ़ैज़ मोहम्मद और नोखा के पास पांचू थाने के सिपाही उमाराम की बदमाशों से हुई मुठभेड़ का भी जिक्र किया। पुलिस अपराधियों को खत्म करने में सक्षम, लेकिन गृह विभाग नहीं दे रहा उन्हें छूट बेनीवाल ने कहा की पुलिस तंत्र मे भी कुछ गंदगी है जिसे सही करना आवश्यक है क्योंकि जयपुर के मानसरोवर से अपराधी भागते हैं और 300 किलोमीटर से भी ज़्यादा का सफर तय करके नागौर मे पुलिस से मुठभेड़ करते हैं। जयपुर से नागौर के बीच पुलिस क्या कर रही थी। यूं बोले गृह मंत्री कटारिया - गृह मंत्री गुलाब चन्द कटारिया ने कहा, मानता हूं की इस तरह की घटनाओं से प्रदेश का माहौल खराब हो रहा है, मगर हम भी अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने मे कोई कसर नही रख रहे। पुलिस नियमावली मे जो भी मदद और व्यवस्था है, उसके अनुसार हम पूरा प्रयत्न करेंगे की जल्द से जल्द आर्थिक संबल मृत सिपाही के परिजनों को मिले। वर्तमान मे शहीद का दर्जा देने का प्रावधान राज्य मे नही हैं, लेकिन सदन में मांग की है। ऐसे में पुलिस का हौसला बुलंद हो इसके लिए पड़ोसी राज्यों से चर्चा करके इस दिशा मे विचार किया जाएगा।[10]


नागौर में हुई फायरिंग में मारे गए कमांडो खुमाराम के परिजन बुधवार को उसके अंतिम संस्कार के लिए राजी हुए। परिजन उसका अंतिम संस्कार नहीं करने पर अड़ गए। परिजनों ने मृतक को शहीद का दर्जा दिए जाने, मुआवजे व परिवार में से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने की मांग की। फलोदी हाइवे पर गुढा भगवानदास सहित अास-पास 12 गांव से अधिक के करीब 3000 हजार लोग जवान को शहीद का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर तेज धूप में धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। शार्प शूटर का नहीं लगा सुराग .... उधर, पुलिस पर एके-47 पर फायरिंग करने वाले शार्प शूटरों की तलाश में बुधवार को भी नागौर, बीकानेर और जोधपुर जिले की सीमाओं से सटे गांव-ढाणियों और खेतों में दिनभर तलाशी अभियान चला। पुलिस को उनका कोई सुराग नहीं लगा। अजमेर रेंज आईजी मालिनी अग्रवाल, कलेक्टर राजन विशाल व एसपी गौरव श्रीवास्तव गुढ़ा भगवानदास पहुंचे। उन्होंने गांव के मुख्य लोगों की 15 सदस्यीय टीम बनाकर गांव के एक निजी स्कूल में जवान खुमाराम की मौत को लेकर वार्ता की। धरने में खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल भी मौजूद थे। नागौर एसपी श्रीवास्तव ने ग्रामीणों के सामने खुमाराम को शहीद का दर्जा दिलवाने का प्रस्ताव भेजने, शहीद का पूरा पैकेज सहित 20 लाख के पैकेज देने की घोषणा, शहीद के नाम पर गांव की स्कूल का नामकण, शहीद का स्मारक बनाने, पुलिस को जल्द ही आधुनिक हथियार दिलाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि हमने जो मिशन तय किया उसमें जल्दी सफल होंगे। उन्होंने कहा कि नागौर जिले में किसी भी गैंग को नहीं पनपने दिया जाएगा। इसके लिए पुलिस को जो भी करना पड़ा वह करेगी। उन्होंने जवान पर गोलियां चलाने वाले बदमाशों की गैंग को जल्द ही पकड़ने की बात कही। पुलिस अधिकारियों की मृतक के परिजनों व ग्रामीणों के साथ हुई बैठक के बाद परिजन मृतक के अंतिम संस्कार को तैयार हुए।[11]


नागौर जिले के गुढ़ा भगवानदास के पास सोमवार रात को राजू ठेहट गैंग के शॉर्प शूटरों पुलिस की मुठभेड़ में नागौर पुलिस कमांडो खुमाराम की मौत के बाद प्रदेश में एक बार फिर से बदमाशों की फायरिंग में मरने वाले पुलिसकर्मियों को शहीद का दर्जा देने की मांग ने जोर पकड़ लिया। पुलिसकर्मी खुमाराम की पार्थिव देह मंगलवार शाम को पुलिस लाइन में ही रखी गई। डीजीपी मनोज भट्ट पुलिस अधिकारियों ने गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया। मगर गुढ़ा गांव के पास ग्रामीणों का जाम प्रदर्शन दिनभर से जारी होने की वजह से पुलिस अधिकारियों ने मंगलवार को खुमाराम की देह का अंतिम संस्कार करने का निर्णय बुधवार तक टाल दिया।

खुमाराम की देह देर शाम तक पुलिस लाइन में ही रही। उधर विधानसभा में खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल ने भी प्रदेश में गैंगवार बढ़ते अपराधों का मुद्दा उठाते हुए पुलिस को खुली छूट देने तथा मुठभेड़ में मरने वाले पुलिसकर्मियों को शहीद का दर्जा देने की मांग उठाई।

नागौर फलौदी मार्ग पर सोमवार रात को नाकाबंदी तोड़कर भाग रहे राजू ठेहट गैंग के तथाकथित शॉर्प शूटरों की गुढ़ा भगवानदास के पास क्यूआरटी दल (क्विक रेस्पॉन्स टीम) से मुठभेड़ हुई थी। दोनों तरफ से फायरिंग की घटना में दो कमांडों हरेंद्र चौधरी खुमाराम जाट घायल हुए थे। कमांडो खुमाराम की देर रात को जोधपुर के एमडीएम अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। बदमाश देर रात तक पुलिस की पकड़ में नहीं आए। मंगलवार को भी नागौर, जोधपुर बीकानेर की पुलिस यहां बदमाशों की तलाश में जुटी रही।

ग्रामीणों का प्रदर्शन, पुलिस ने कहा खुमाराम हमारा भाई: गुढ़ा भगवानदास के मुठभेड़ में बदमाशों की गोली का शिकार हुआ कमांडो खुमाराम गुढ़ा भगवानदास के पास की ढाणियों का ही रहने वाला था। इस घटना के बाद ग्रामीणों में रोष उत्पन्न हो गया। नागौर फलौदी मार्ग को जाम कर यहां दिनभर प्रदर्शन किया गया। दोपहर में एसपी गौरव श्रीवास्तव ने मौके पर जाकर ग्रामीणों से बात की, मगर ग्रामीण शहीद का दर्जा देने की मांग पर अड़े रहे। देर शाम को अजमेर रेंज आईजी मालिनी अग्रवाल, एसपी गौरव श्रीवास्तव ने पुलिस लाइन में खुमाराम के चाचा पूसाराम परिजनों से बात की। परिजनों ने पुलिस अधिकारियों की बात पर सहमति जताई मगर ग्रामीणों के नहीं मानने की स्थिति में देर शाम तक देह पुलिस लाइन में रही। एसपी गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि खुमाराम की मौत का दुख परिजनों ग्रामीणों के जितना ही पुलिस विभाग को है। खुमाराम हमारा भाई है और उसकी मिट्टी को राजनीतिक बहस में खराब नहीं होने दिया जाएगा। इसके बाद शव को देर शाम तक पुलिस लाइन में ही रखे जाने का निर्णय लिया गया। देर शाम को विधायक हनुमान बेनीवाल धरना स्थल पर पहुंचे और ग्रामीणों से वार्ता शुरू की।

डीजीपी ने जताया दुख, बोले इस घटना से दुख और रोष दोनों: मंगलवार शाम 4 बजे कमांडो खुमाराम की पार्थिव देह नागौर पुलिस लाइन पहुंची। यहां डीजीपी मनोज भट्ट, आईजी अजमेर रेंज मालिनी अग्रवाल, एसपी गौरव श्रीवास्तव, नागौर कलेक्टर राजन विशाल ने पुष्प चक्र अर्पित कर खुमाराम को गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया। डीजीपी भट्ट ने कहा कि बदमाशों और पुलिस की मुठभेड़ में कमांडो खुमाराम के निधन से पूरा पुलिस विभाग शोक में है और इस घटना से जबर्दस्त रोष भी है। उन्होंने कहा कि खुमाराम की बहादुरी और उसके शौर्य को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।

सदन में फिर गूंजा गैंगवार, पुलिस को खुली छूट देने की मांग: मंगलवार को विधानसभा में विधायक हनुमान बेनीवाल ने कार्य संचालन तथा नियमों के नियम 50 के तहत स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से नागौर मे हुई गैंगवार घटना मे बदमाशों से मुठभेड़ मे शहीद हुए खुमाराम को शहीद का दर्जा देते हुए मृत आश्रित को सरकारी नौकरी परिजनों को एक करोड़ रुपए मुआवजा देने की मांग की। विधायक ने आनंदपाल और राजू ठेहट समेत अन्य गैंग के खात्मे के लिए विशेष अभियान चलाने और पुलिस को ऐसे बदमाशों से निपटने के लिए खुली छूट देने की बात कही। बेनीवाल ने पुलिसकर्मी खुमाराम को शहीद का दर्जा देने की मांग के साथ ही कुचामन के हैड कांस्टेबल फैज मोहम्मद नोखा के पास पांचू थाने के सिपाही उमाराम की बदमाशों से हुई मुठभेड़ का भी जिक्र सदन किया।

बेनीवाल ने कहा की पुलिस तंत्र मे भी कुछ गंदगी है जिसे सही करना आवश्यक है क्योंकि जयपुर के मानसरोवर से अपराधी भागते हैं और 300 किलोमीटर से भी ज़्यादा का सफर तय करके नागौर मे पुलिस से मुठभेड़ करते हैं तो जयपुर से नागौर के बीच पुलिस क्या कर रही थी। बेनीवाल ने

विधायक ने आसन से इस मामले मे गृह मंत्री का जवाब मांगते हुए कहा की पैकेज देते हुए सरकार को जल्द से जल्द जान गंवाने वाले सिपाही को शहीद का दर्जा देने की आवश्यकता है। पुलिस को अत्याधुनिक हथियार, बुलेट प्रूफ जेकेट उच्च कोटि के वाहन देने की भी मांग की।

गृह मंत्री कटारिया : राज्य में शहीद का दर्जा देने का प्रावधान नहीं, इस दिशा में विचार करेंगे: गृह मंत्री गुलाब चन्द कटारिया ने बेनीवाल ने स्थगन प्रस्ताव का जवाब देते हुए कहा की मैं मानता हूं की इस तरह की घटनाओं से प्रदेश का माहौल खराब हो रहा है मगर हम भी अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने में कोई कसर नहीं रख रहे हैं। गृह मंत्री ने कहा की पुलिस नियमावली मे जो भी मदद और व्यवस्था है उसके अनुसार हम पूरा प्रय| करेंगे कि जल्द से जल्द आर्थिक संबल मृत सिपाही के परिजनों को मिले। कटारिया ने कहा की वर्तमान मे शहीद का दर्जा देने का प्रावधान राज्य में नहीं है परन्तु आपने सदन मे मांग की और पुलिस का हौसला बुलंद हो इसके लिए पड़ोसी राज्यों से चर्चा करके इस दिशा मे विचार किया जाएगा।

खुमाराम को यह पैकेज: आईजी मालिनी अग्रवाल ने बताया कि खुमाराम के परिवार को 20 लाख रुपए का पैकेज, मृत आश्रित परिवार के सदस्य को नौकरी पुलिस वेलफेयर से अन्य मदद के साथ साथ गैलेंट्री मैडल दिया जाएगा। आईजी ने बताया कि डीजीपी मनोज भट्ट ने यह निर्णय लिया कि ऐसी घटनाओं को मध्य नजर रखते हुए पुलिस विभाग एक एक दिन की सैलेरी का सहयोग देकर ऐसे मामलों में आगे से मदद की योजना बनाकर काम करेगा।

Ref - Bhaskar News Network, Mar 23, 2016

हनुमान बेनीवाल का संक्षिप्त परिचय

  • नाम - श्री हनुमान बेनीवाल
  • पिता – स्व. श्री रामदेव चौधरी
  • माता - श्रीमती मोहनी देवी
  • जन्म दिनांक - 2 मार्च 1972
  • उपनाम: बेनीवाल
  • गोत्र: बरणगांवा
  • शिक्षा - एलएलबी व को-ओपरेटिव में डिप्लोमा राजस्थान विश्वविद्यालय से
  • पत्नी का नाम - श्रीमती कनिका बेनिवाल (बी एस सी , मोहनलाल सुखाडिया विवि उदयपुर)
  • संताने - 1 पुत्री दीया बेनीवाल, 1 पुत्र आशुतोष बेनीवाल
  • ननिहाल – पिण्डेल गौत्री जाट, सिलगांव, मुंडवा, नागौर
  • ससुराल - श्री कृष्ण जी गोदारा, सरदारपुरा जीवन (श्री गंगानगर)
राजनैतिक विवरण-
  • 1994 में राजस्थान कॉलेज के अध्यक्ष बने
  • 1995 में दुबारा राजस्थान कॉलेज के अध्यक्ष बने
  • 1996 में राजस्थान विधि कॉलेज के अध्यक्ष बने
  • 1997 में राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने
  • 2003 में मुंडवा विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे चुनाव लड़ा मगर 2000 वोटों से हार गए ।
  • 2008 में बीजेपी के टिकट पर नवगठित खींवसर विधानसभा से चुनाव लड़ा और नागौर जिले की सभी सीटो मे सबसे बड़ी जीत ।
  • 2013 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे खींवसर विधानसभा सीट से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के दुर्गसिंह चौहान को 24600 वोटों से हराकर दुसरी बार खिंवसर के विधायक बने ।
  • दिसम्बर 2018 में खींवसर विधानसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से विधायक बने ।
  • आपके पिता स्व. रामदेव चौधरी 3 बार मुंडवा (नागौर) विधानसभा से विधायक रहे ।
  • वर्तमान निवास- B-7, एमएलए क्वार्टर, जालूपुरा थाने के पास, जयपुर ।
  • E-mail- mlahanumanbeniwal@gmail.com

आज राजस्थान ही नहीं अपितु पुरे देश में आपको किसान कौम के सच्चे साथी, एवं हक के लिये लडने वाले, अन्याय के खिलाफ अपनी दंबग आवाज एवं निडरता से झंडा गाड़ने वाले से जाना जाता है । आपकी इसी विशेषता के कारण आज आप राजस्थान प्रदेश के युवाओं की पहली पंसद बन चुके हो एवं आपकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढती जा रही है । आपकी बढती लोकप्रियता से जलकर कुछ समाज कंटको ने गत 23 सितम्बर को आप पर अचानक जानलेवा हमला कर दिया, पर ईश्वर की कृपा से सकुशल बच गये । आपकी लोकप्रियता एवं दिल में बसने वाली छवि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आप पर हुऐ हमले के विरोध में समुचे राजस्थान में 200 से अधिक जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुऐ, राजस्थान यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुआ, पुलिस ने निर्दोष युवाओं पर लाठियां बरसाई जिससे 87 युवा घायल हुऐ, आज भी जयपुर के थानों में आपके प्रशंसक बंद है । इसके अलावा भी अनेकों बातें है जिनको लिखते लिखते शायद बरस गुजर जाये ।

  1. The_lallantop का विश्लेषण हनुमान बेनीवाल पर

बचपन में गांव की बैठकी में एक बूढ़े आदमी के मुंह से सुना था, “म्हाने तो गांधी बाबो बचाय लिया” । इसका हिंदी तर्जमा इस तरह से किया जा सकता है कि हमें तो गांधी बाबा ने बचा लिया । स्कूल की किताबों में गांधी जी के बारे में पढ़ा था कि उन्होंने देश को आजादी दिलाई थी, लेकिन उस बूढ़े आदमी की कही गई एक लाइन के सियासी मायने समझने में एक उम्र लग गई ।

राजस्थान कई मामलों में देश के दूसरे हिस्सों से अलग है । यू़ं तो इस महादेश का हर हिस्सा एक दूसरे से अलग है, लेकिन राजस्थान और देश के दूसरे हिस्सों के बीच का यह फर्क इस सूबे के सियासी तासीर को समझने का सिरा भी देता है । दरअसल आजादी से पहले राजस्थान में रजवाड़ों का राज हुआ करता था । कहने के लिए “प्रजा मंडल” सूबे में आजादी के आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर तो कर रहे थे, लेकिन आंदोलन की लहर उन राज्यों के मुकाबले बहुत फीकी थी जहां अंग्रेजों का सीधा शासन था ।

1956 की पहली नवंबर को राजपुताना की 19 रियासतों को जोड़कर ” राजस्थान” नाम का नया सूबा बनाया गया । एक झटके में सामंती व्यवस्था में जी रहे समाज पर जम्हूरियत लाद दी गई । नतीजतन हुआ यह कि शुरुआती दौर में कांग्रेस और विपक्ष दोनों ही तरफ से बड़े किसान और पुराने सामंत विधानसभा पहुंचते रहे । 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव में पुराने सामंतों की गोलबंदी पर खड़ी स्वतंत्र पार्टी 176 सीटों वाली विधानसभा में क्रमशः 36 और 48 सीटें हासिल करने में कामयाब रही ।

1956 में जागीर प्रथा का खत्म होना और 1969 में प्रीवी पर्स के तौर पर मिलने वाले भत्तों का बंद होना दो ऐसी घटनाऐं थीं जिसने सूबे के सियासी चरित्र को बदलकर रख दिया । राजस्थान को आजादी से पहले राजपूताना कहा जाता था । सामंतशाही के दौर में यहां एक रवायत थी कि गांव के रावळे (गांव के ठाकुर की हवेली) के सामने से लोग जूते हाथ में लेकर निकला करते थे । गैर राजपूत औरतें नाममात्र का गहना पहन सकती थीं । घोड़े पर सवारी का अधिकार भी सिर्फ राजपूतों के पास था । राजपूत इसी डर के आधार पर सदियों शासन करते आए थे । आजादी के बाद यह डर जाता रहा । गांव की चौपाल में बैठा वो बुजुर्ग इस मानसिक गुलामी के खात्मे के लिए गांधी जी को शुक्रिया कह रहा था ।

1970 के बाद खेतिहर जातियों ने पुराने सामंतों और बड़े किसानों के वर्चस्व को चुनौती देना शुरू किया । हालांकि नाथूराम मिर्धा, रामदेव मेहरीया, गौरी पूनिया जैसे कद्दावर विधायक जाट बिरादरी से आते थे, लेकिन ये सब नेता एक संपन्न बैकग्राउंड वाले थे । 1970 के बाद राजस्थान की राजनीति में ऐसे नेताओं ने धाक जमानी शुरू की जिनके सियासी सफर की शुरुआत पंचायत से हुई थी ।

राजस्थान में एक जगह है “नागौर” । किसी दौर में नागवंश का शासन होने की वज़ह से इस जगह का नाम हुआ करता था, “अहिछत्रपुर” । ‘अहि’ माने सांप और ‘छत्र’ माने फण । आजादी के बाद से ही यह जिला जाट राजनीति का गढ़ रहा है । इस जिले में एक विधानसभा पड़ती है, मुंडवा । 1972 में हुए परिसीमन के चलते बनी इस सीट पर 1977 में पहली बार चुनाव होना था ।

आपातकाल के बाद देश में भयंकर इंदिरा विरोधी लहर थी । राजस्थान आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी विरोधी प्रदर्शनों का गढ़ हुआ करता था । एक तरीके से 1977 के चुनाव का नतीज़ा वोट पड़ने से पहले ही साफ हो चुका था । कांग्रेस के कई नेता ऐन मौके पर वफादारियां बदल रहे थे ।

जून 1977 में विधानसभा चुनाव के नतीज़े आए । भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व वाली जनता पार्टी 200 में से 152 सीट जीतकर धमाकेदार तरीके से सत्ता में आई । सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी 145 से सिमटकर 41 सीट पर आ गई थी । यह संख्या 40 पर भी सिमट सकती थी अगर बरण गांव के सरपंच ने भी दूसरे कांग्रेसी नेताओं की तरह अपनी वफादारी बदल ली होती । बरण गांव के इस सरपंच का नाम था रामदेव बेनीवाल । कांग्रेस विरोधी लहर में भी मुडंवा विधानसभा से वो जनता पार्टी के राम प्रकाश के खिलाफ 3,836 वोट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे ।

1977 के चुनाव में बुरी तरह पिटने के बाद कांग्रेस अंदरूनी कलह का शिकार हो गई । नतीज़तन 1978 में कांग्रेस को एक और विभाजन का शिकार होना पड़ा । कर्नाटक से आने वाले डी. देवराज उर्स के नेतृत्व में देवकांत बरुआ, शरद पवार, एके एंटनी, यशवंत राव चव्हाण, बाबू जगजीवन राम जैसे कई कद्दावर नेता कांग्रेस से अलग हो गए । इन लोगों ने अपनी नई पार्टी का नाम रखा, ‘कांग्रेस (उर्स)’ । राजस्थान में रामदेव बेनीवाल भी इस बागी धड़े में शामिल हो गए ।

1980 में हुए लोकसभा चुनाव में 352 सीटों के साथ इंदिरा की सत्ता में वापसी हुई । सत्ता में लौटने के साथ ही इंदिरा ने एक-एक करके गैर कांग्रेसी राज्य सरकारों को बर्खास्त करना शुरू किया । राजस्थान की भैरो सिंह शेखावत की सरकार भी इसी चपेट में आ गई । 1980 की मई में राजस्थान में नए सिरे से चुनाव हुए । रामदेव बेनीवाल इस चुनाव में कांग्रेस (यू) का दामन थामे रहे और बुरी तरह से खेत रहे । उन्हें कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेंद्र मिर्धा के हाथों 8,505 वोटों से मात खानी पड़ी । 1985 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने हरेंद्र मिर्धा को इसी सीट से 3,885 वोट से हराकर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया ।

1990 के चुनाव में मुंड़वा विधानसभा सीट से एक नए सियासी सितारे का उदय होना था । नाम हबीबुर्रहमान । कांग्रेस की टिकट से लड़ रहे इस नौजवान ने दो बार विधायाक रह चुके रामदेव बेनीवाल को पटखनी दे दी । 1993 के विधानसभा चुनाव में हबीब ने एक बार फिर से यही करिश्मा कर दिखाया । रामदेव बेनीवाल का सियासी करियर ढलान पर था ।

1844 में जयपुर के सवाई राजा राम सिंह ने अपने सामंतों और प्रशासनिक अधिकारियों के बच्चों को पढ़ाने के लिए महाराजा कॉलेज बनवाया था । उस समय यह कॉलेज कलकत्ता यूनिवर्सिटी से जुड़ा हुआ करता था । आजादी के बाद यह कॉलेज नई-नई खुली राजस्थान यूनिवर्सिटी के अंडर आ गया ।

साल 1994 । रामदेव बेनीवाल के लगातार दो चुनाव हारने के एक साल बाद एक नौजवान जयपुर के महाराजा कॉलेज के बाहर अपने कुछ साथियों के साथ खड़ा था । उसके साथी हर आते-जाते छात्र को एक पर्चा थमा रहे थे । इस पर्चे पर लिखा था, हनुमान बेनीवाल फॉर प्रेसीडेंट । हनुमान बेनीवाल 1994 में महाराजा कॉलेज से पहली मर्तबा अध्यक्ष बने । यह सियासत में उनका पहला कदम था । 1995 में वो दूसरी दफा महाराजा कॉलेज के अध्यक्ष बने । 1996 में लॉ कॉलेज के अध्यक्ष चुने गए । बतौर छात्रनेता वो तेजी से उभर रहे थे । आने वाले दो साल उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देने वाले थे । लेकिन उससे पहले 1996 का एक किस्सा ।

ये 1996 का साल था । सुबह के तकरीबन साढ़े चार का वक़्त था । जयपुर के सिन्धी कैंप बस स्टैंड पर खड़े कुछ छात्र चाय पीते-पीते अखबार बांच रहे थे । अखबार के उपरी किनारे पर दर्ज तारीख बताती थी कि यह 9 अगस्त का दिन था । पहले पन्ने पर खबर लिखी हुई थी, ‘राजस्थान विश्वविद्यालय में बवाल, छात्रसंघ अध्यक्ष सहित एक दर्जन छात्रनेता गिरफ्तार ।’ ये छात्र इस खबर की एक-एक लाइन पढ़ रहे थे और ठहाके लगाकर हंस रहे थे । इन लोगों ने अखबार को तह करके अपने साथ रख लिया और यूनिवर्सिटी की तरफ बढ़ गए ।

राजस्थान यूनिवर्सिटी में प्रदेश के हर कोने से छात्र पढ़ने आते हैं । जाति के अलावा यहां जिलावार गोलबंदिया भी बनी होती हैं । 1996 का छात्रसंघ चुनाव नागौर ग्रुप के पक्ष में रहा था । नागौर के नावां से आने वाले महेंद्र चौधरी राजस्थान यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष बने थे और बरणगांव के रहने वाले हनुमान बेनीवाल लॉ कॉलेज के अध्यक्ष चुने गए थे ।

जुलाई के अंत में ये लोग छात्रसंघ का चुनाव जीते थे और अगस्त के पहले सप्ताह से विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू हो गया । विपक्ष के कई छात्र संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर यूनिवर्सिटी बंद करने का आह्वान कर दिया । राजस्थान यूनिवर्सिटी उस दौर में बंद और हड़तालों के लिए ही जानी जाती थी । ये दोनों नेता इस प्रचार के दम पर चुनाव जीतकर आए थे कि वो बंद और हड़तालों के चलते यूनिवर्सिटी के आम छात्रों की पढ़ाई डिस्टर्ब नहीं होने देंगे । इसलिए ये दोनों नेता यूनिवर्सिटी बंद के खिलाफ थे ।

सुबह सवा नौ बजे दोनों पक्ष यूनिवर्सिटी गेट पर आमने-सामने हो गए । दोनों तरफ से तनाव बढ़ता जा रहा था । पुलिस ने छात्रों की भीड़ को हटाने के लिए लाठीचार्ज कर दिया । बदले में गुस्साए छात्रों ने पुलिस पर पत्थर बरसाने चालू कर दिए । करीब तीन घंटे चली इस लाठी-पत्थर की जंग में दोनों तरफ के कई लोग घायल हुए ।

प्रदर्शन पर लगाम लगाने के लिए पुलिस ने एक दर्जन से ज्यादा छात्रों को गिरफ्तार कर लिया । इसमें महेंद्र चौधरी और हनुमान बेनीवाल भी शामिल थे । गिरफ्तार किए गए छात्रों को पहले बजाज नगर थाने लेकर जाया गया और वहां से इन्हें केन्द्रीय कारागार भेज दिया गया । कहते हैं कि उस समय इन छात्रनेताओं का ऐसा रौला था कि जेल की बैरक से निकल-निकलकर कई कैदी इन्हें देखने के लिए बाहर आ गए ।

देर रात प्रशासन को सूचना मिली कि अपने छात्रसंघ अध्यक्ष और लॉ कॉलेज अध्यक्ष की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन के लिए यूनिवर्सिटी के तमाम छात्र लामबंद हो रहे हैं । स्थिति किसी भी क्षण नियंत्रण से बाहर हो सकती थी । प्रशासन जानता था कि एक बार अगर छात्र सड़कों पर आ गए तो उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा ।

भैरो सिंह शेखावत उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री थे । विधानसभा सत्र के दौरान वो राजधानी में छात्रों का कोई आंदोलन नहीं चाहते थे । स्थिति पर काबू पाने का एक ही जरिया था । गिरफ्तार किए गए छात्रनेताओं को तुरंत रिहा किया जाए । लेकिन इसमें भी एक दिक्कत थी । जेल के कायदे के हिसाब से सूरज डूबने के बाद जेल के दरवाजे नहीं खोले जा सकते थे । स्थिति की गंभीरता को समझते हुए इस नियम को ताक पर रख दिया गया और रात दो बजे के करीब गिरफ्तार किए गए सभी छात्रनेता छोड़ दिए गए । जब तक ये लोग जेल से छूटकर आए शहर के अखबार छप चुके थे । सिन्धी कैंप पर चाय पीते-पीते ये लोग अपनी ही गिरफ्तारी की खबर पढ़ रहे थे ।

5 सितंबर 1997, 28 साल की प्रिया खंडेलवाल (बदला हुआ नाम) जयपुर के गोपालपुरा बस स्टैंड पर खड़ी अपने एक दोस्त का इंतजार कर रही थीं । दोपहर के करीब ढाई बज रहे थे । कुछ ही मिनट में उनका दोस्त विजय दहिया अपनी मोटर बाइक पर उन्हें लेने पहुंच गया । वो उसके साथ बैठकर राजस्थान यूनिवर्सिटी के जेसी बॉस हॉस्टल पहुंचीं । शाम साढ़े चार बजे वो पैदल हॉस्टल से बाहर निकलीं । उन्होंने बाहर आकर अपना पर्स टटोला तो पाया कि उसमें एक भी पाई नहीं बची है ।

करीब एक किलोमीटर चलने के बाद उन्होंने ऑटो लेने की बजाए पैदल ही पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ना शुरू किया । वहां दर्ज करवाई गई शिकायत के मुताबिक जेसी बॉस हॉस्टल के एक कमरे में ओम बेनीवाल नाम के एक छात्र के राजस्थान पुलिस में चुने जाने की खुशी में पार्टी चल रही थी । लड़के शराब पी रहे थे और वीसीआर पर ब्लू फिल्म देख रहे थे । इन लोगों ने उसे कमरे में बंद कर दिया और विजय दहिया के साथ मिलकर नशे में धुत 9 छात्रों ने उसके साथ बलात्कार किया ।

जयपुर में हुए इस बलात्कार के बाद जनता का गुस्सा फूट गया था । एक महीने पहले ही शिवानी जडेजा नाम की एक स्कूल छात्रा पर तेज़ाब फेंका जा चुका था । जुलाई के महीने में स्कूल में पढ़ने वाली शालिनी तंवर को अगवा करके रेप करने की खबर शहर के अखबार में छाई रहीं । दो महीने में महिलाओं पर हमले की तीसरी घटना के बाद शहर का धैर्य जवाब दे गया था । इस मामले से जुड़े आरोपी राजनीतिक घराने से आते थे । यहां तक कि एक पुलिस अधिकारी भी पीड़िता के यौन शोषण का आरोपी था । ऐसे में पुलिस किसी भी आरोपी को हाथ लगाने से बच रही थी । इससे जनता का गुस्सा बढ़ता जा रहा था ।

8 सितंबर के रोज 100 के करीब छात्र जयपुर के महाराजा कॉलेज के सामने पीड़िता के पक्ष में धरना दे रहे थे । इन प्रदर्शनकारियों ने रास्ते पर जीप खड़ी करके रास्ता जाम कर रखा था । लड़के बैनर लेकर खड़े थे । पुलिस की तरफ से रास्ता खुलवाने के लिए लाठीचार्ज शुरू हुआ । आक्रोशित छात्रों ने जवाब में पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया । बैनर के डंडे निकालकर कई छात्र पुलिस वालों से भिड़ गए ।

मौके पर मौजूद पुलिस इंस्पेक्टर लक्ष्मीनारायण भिंडा ने लालकोठी थाने में कुछ छात्र नेताओं के खिलाफ राजकार्य में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज करवाया । एफआईआर में दर्ज नाम थे, राज कुमार शर्मा, विजय देहडू और हनुमान बेनीवाल । उस समय तक राजस्थान विश्वविद्यालय के चुनाव नहीं हुए थे ।

जेसी बॉस हॉस्टल काण्ड के विरोध में किए गए प्रदर्शन के चलते हनुमान बेनीवाल छात्रों के बीच और ज्यादा लोकप्रिय हो गए । 1997 में हुए छात्रसंघ के चुनाव में वो दोनों बड़े छात्र संगठनों एनएसयूआई और एबीवीपी का दामन थामने की बजाए निर्दलीय लड़े और बड़े आराम से चुनाव जीत गए । ।

राजस्थान यूनिवर्सिटी में देश की दूसरी यूनिवर्सिटी की तरह ही 12वीं क्लास में मिले प्रतिशत के आधार पर एडमिशन होता है । गांव में पढने वाले छात्रों के पास शहरों की तरह बेहतर संसाधन नहीं होते । ऐसे में गांव के स्कूल से पढ़कर आने वाले छात्र मैरिट में मात खा जाते थे । हनुमान बेनीवाल यूनिवर्सिटी चुनाव के दौरान गांव से आने वाले छात्रों के लिए दाखिले के वक़्त 5 फीसदी अतरिक्त अंक की मांग कर रहे थे । चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इस मुद्दे पर आंदोलन छेड़ दिया ।

राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र और प्रशासन एक बार फिर से आमने-सामने थे । यूनिवर्सिटी छात्रों और पुलिस के बीच जंग का मैदान बनी हुई थी । छात्रों का यह मुद्दा विधानसभा में बहस की वजह बन गया । उस समय राजस्थान में भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी । सत्ता पक्ष के 58 विधायकों ने सदन में हनुमान बेनीवाल की गिरफ्तारी की मांग की । नतीजतन उन्हें राजस्थान यूनिवर्सिटी में धरना देते हुए गिरफ्तार कर लिया गया । वो कुल 8 दिन जेल में रहे और बाहर छात्र सरकार के खिलाफ मोर्चा बांधकर बैठे हुए थे । आखिरकार उनकी मांग मान ली गई । 5 फीसदी बोनस अंक मिलने की वजह से अगले सत्र में गांव से आने वाले 8000 छात्रों का एडमिशन संभव हो पाया ।

हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल 1990 और 1993 का विधानसभा चुनाव हार चुके थे । राजस्थान में वो जिस जनता दल का झंडा ढो रहे थे वो 1991 में चंद्रशेखर की सरकार गिरने के बाद कई टुकड़ों में टूट चुकी थी । इस कठिन समय में उनका साथ दिया भैरो सिंह शेखावत ने । वही भैरो सिंह शेखावत जिनके खिलाफ हनुमान बेनीवाल जयपुर में छात्र आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे । रामदेव बेनीवाल और शेखावत का परिचय जनता पार्टी के समय से था । शेखावत के कहने पर रामदेव बीजेपी में आ गए ।

1998 का विधानसभा चुनाव उनकी सियासत की अग्नि परीक्षा की तरह था । इस चुनाव में हार का मतलब था उनकी सियासी पारी का अंत । रामदेव इस सीट से बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भर चुके थे । 8 दिसंबर 1998 के रोज सूबे में चुनाव होने थे । चुनाव के लिए जनसंपर्क अभियान जोर-शोर से जारी था । 12 नवंबर को अचानक खबर आई कि दिल का दौरा पड़ने की वजह से रामदेव बेनीवाल का इंतकाल हो गया है । यह परिवार और पार्टी दोनों के लिए अप्रत्याशित था ।

पार्टी के आला लीडर बेनीवाल के घर मातमपुर्सी के लिए पहुंचे । वहां तय हुआ कि रामदेव बेनीवाल की सियासी विरासत को हनुमान आगे लेकर जाएंगे । जरूरी क्रिया-कर्म से फुर्सत पाकर हनुमान अपने नामांकन के लिए निर्वाचन अधिकारी के पास पहुंचे । वहां जाकर उन्हें पता लगा कि उम्मीदवार के देहांत होने की स्थिति में हर राजनीतिक दल को सात दिन के भीतर-भीतर चुनाव आयोग को सूचना यह भेजनी होती है कि अब उसका नया उम्मीदवार कौन होगा । भारतीय जनता पार्टी की तरफ से यह सूचना भेजने में देर हो गई थी । ऐसे में उनका नामांकन नहीं हो सकता । पिता की मौत के बाद उनकी सियासी विरासत का छिनना उनके लिए दूसरा बड़ा धक्का था । यह कठिनाई और संघर्ष के दौर की शुरुआत थी, जिसे एक दशक लंबा चलना था ।

हनुमान बेनीवाल मूलतः नागौर के बरणगांव के रहने वाले हैं । 1959 से इस गांव में सरपंचई उनके परिवार के पास रही है । बरणगांव में एक परंपरा है कि धुलंडी के दिन गांव के सभी लोग ठाकुर जी के मंदिर पर इकठ्ठा होते हैं । अगर गांव में किसी का झगड़ा चल रहा है तो उसे इसी दिन जाजम पर बैठकर सुलझा लिया जाता है । 10 मार्च 2001 के रोज लोग इसी रवायत के चलते ठाकुर जी मंदिर पर इकठ्ठा हुए थे ।

गांव को सांसद कोटे से एक सामुदायिक भवन मिला हुआ था । सामुदायिक भवन बनवाने के लिए जमीन की दरकार थी । गांव में जमीन खाली नहीं होने की वजह से ठाकुर जी के मंदिर में खाली पड़ी जमीन पर निर्माण कार्य करवाने की बात तय हुई । सामुदायिक भवन के लिए चिंहित जमीन जल्द ही विवाद का कारण बन गई । गांव के ही परमाराम का कहना था कि प्रस्तावित सामुदायिक भवन का एक हिस्सा उनकी जमीन पर खड़ा होना था । सामुदायिक भवन के लिए जमीन देने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है ।

इस विवाद को सुलझाने के लिए परमाराम को भी इस सभा में बुलाया गया । बात सुलझने की बजाए उलझती चली गई । बातचीत की जगह हाथापाई ने ली । इसी गहमागहमी में बंदूक निकल गई । हाथापाई के दौरान जमीन पर गिरे परमाराम के कंधे पर पॉइंट ब्लेंक रेंज से गोली मार दी गई । उन्होंने मौका-ए-वारदात पर ही दम तोड़ दिया ।

इस मामले में लिखी गई एफआईआर में गांव के सरपंच प्रहलाद बेनीवाल, उनके भाई हनुमान और नारायण बेनीवाल का नाम शामिल था । प्रहलाद को उसी दिन गांव से गिरफ्तार कर लिया गया । हनुमान बेनीवाल घटना के तीसरे दिन पुलिस की गिरफ्त में थे । इस मामले में वो 88 दिन लगातार जेल में रहे ।

पहले पिता की मौत, फिर नामांकन रद्द होना और उसके बाद यह कत्ल केस । बेनीवाल परिवार के लगभग सभी मर्द इस केस में जेल के भीतर थे । परेशानी की ऐसी श्रृंखला जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी । इस कत्ल केस के फंद में फंसा परिवार किसी तरह बाहर निकलता उससे पहले एक और ट्रेजडी हो गई । हनुमान के बड़े भाई प्रहलाद ने दिल के दौरे की वजह से जेल में ही दम तोड़ दिया । इस घटना ने परिवार को पूरी तरह से तोड़ दिया ।

CrPC या Criminal Procedure Code की 169 नंबर की धारा कहती है कि अगर मामले की तफ्तीश कर रहे पुलिस अधिकारी को यह लगता है कि गिरफ्तार किए गए शख्स के ऊपर कोई मामला नहीं बनता है तो वो उसे छोड़ सकता है । इसी CrPC की धारा 167 कहती है कि केस दर्ज किए जाने के 90 दिन के भीतर-भीतर कोर्ट में चार्जशीट फ़ाइल कर दी जानी चाहिए । चार्जशीट फ़ाइल करने के दो दिन पहले हनुमान बेनीवाल को CrPC की धारा 169 के आधार पर रिहा कर दिया गया । हनुमान बेनीवाल का दावा था कि वो घटना के समय मौके पर मौजूद नहीं थे और पुलिस ने अपनी तफ्तीश में इस दावे को दुरुस्त पाया ।

1996 में राजस्थान के छोटे से गांव देव डूंगरी से सूचना का अधिकार आंदोलन शुरू हुआ । 2002 में सूबे के मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत ने इस कानून को सूबे में लागू कर दिया । अशोक गहलोत एक साल बाद होने वाले चुनाव में अपने इस कदम को पूरी तरह भुनाना चाहते थे । 2003 के विधानसभा चुनाव से पहले पूरे प्रदेश की दीवारें एक नारे से पुत गईं, “कांग्रेस सरकार ने क्या दिया? सूचना का अधिकार दिया ।”

नागौर की दीवारों पर मोटे काले अक्षरों और हरी हाईलाइटिंग में लिखी एक इबारत सत्ताधारी पार्टी के नारे को चुनौती दे रही थी । यह इबारत थी, “चश्मे का निशान होगा, अगला मुख्यमंत्री किसान होगा” । चश्मा यानी ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल का चुनाव चिन्ह । चौटाला के पिता चौधरी देवीलाल का राजस्थान से पुराना नाता रहा है । 1989 के लोकसभा चुनाव में वो राजस्थान की सीकर सीट से चुनाव जीते थे । देवीलाल जाटों के नेता थे और उनकी नजर राजस्थान की जाट पट्टी पर थी । लेकिन वो अपने इस एजेंडे पर आगे नहीं बढ़ पाए थे । उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने पिता के एजेंडे पर आगे बढ़ना शुरू किया । उन्होंने 2003 के चुनाव में 50 जाट बाहुल्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे । इनमें से चार उम्मीदवार विधानसभा पहुंचने में कामयाब भी रहे थे ।

हनुमान बेनीवाल को बीजेपी का टिकट नहीं मिला था । लिहाजा उन्होंने लोकदल का दामन थाम लिया और अपने पिता की परम्परागत मुंडवा सीट पर मैदान में उतर गए । इस चुनाव में मुंडवा में मुकाबला बहुत दिलचस्प था । बीजेपी ने इस सीट से ऊषा पूनिया को मैदान में उतारा था । ऊषा पूनिया पूर्व विधायक गौरी पूनिया की बहू थीं । कांग्रेस की टिकट पर लड़ रहे थे हबीबुर्रहमान । वही हबीबुर्रहमान जिन्होंने 1990 और 93 के चुनाव में हनुमान के पिता रामदेव बेनीवाल को चित्त किया था ।

इस त्रिकोणीय संघर्ष में ऊषा पूनिया को मिले 39,027 वोट, हनुमान बेनीवाल को मिले 35,724 वोट और हबीबुर्रहमान को मिले 32,479 वोट । इस तरह हनुमान बेनीवाल यह मुकाबला 3,303 वोट से हार गए ।

यूं तो नागौर ने जीडी सोमाणी, मथुरादास माथुर और एसके डे जैसे नेताओं को लोकसभा भेजा है, लेकिन इस सीट की पहचान रही राजस्थान के बड़े जाट राजनीतिक घराने “मिर्धा” की वजह से । 1971 से 1998 तक लगातार यह सीट मिर्धा परिवार के किसी ना किसी सदस्य के पास रही । नागौर विधानसभा सीट का हिसाब-किताब भी कुछ इसी तरह का रहा । 1957 में नाथूराम मिर्धा यहां से विधानसभा पहुंचे, 1962 में रामनिवास मिर्धा । इसके बाद ये दोनों नेता केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए । नागौर विधानसभा अगर 1980 और 1991 को छोड़ दें तो यह सीट लगातार कांग्रेस के कब्जे में रही और कांग्रेस का टिकट उसे मिलता था जिसे मिर्धा देना चाहते थे ।

रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेन्द्र मिर्धा 1993 और 1998 में नागौर सीट से विधायक रहे थे । वो 2003 में बीजेपी के गजेंद्र सिंह खींवसर के हाथों चुनाव हार गए । हरेंद्र मिर्धा के चुनाव हारने की वजह से उनके परिवार के सियासी रसूक पर काफी बट्टा लगा । इसने नागौर में नए जाट चेहरे को उभरने के लिए खाली जगह दी । हनुमान बेनीवाल इस खाली जगह को भरने में तेजी से लगे हुए थे । इस बीच पास ही तहसील डीडवाना में हुए एक हत्याकांड ने उन्हें जाटों के नेता की तरह उभरने का मौक़ा दे दिया ।
जीवन राम गोदारा डीडवाना में उभरते हुए जाट नेता थे । मजबूत कद-काठी वाले गोदारा डीडवाना के किसान छात्रावास के प्रमुख हुआ करते थे । इसके अलावा वो डीडवाना में बजरंग दल का काम-काज भी देखते थे । दबंग छवि वाले जीवन राम गोदारा के नाम डीडवाना में दर्जनभर से ज्यादा केस थे । इसमें से एक केस था मदन सिंह राठौड़ की वीभत्स हत्या का । आरोप था कि उन्होंने डीडवाना बस स्टैंड पर भारतीय सेना में काम करने वाले मदन सिंह राठौड़ को पत्थर से पीट-पीट कर मार डाला था ।

आनंदपाल सिंह उस समय अपराध की दुनिया में तेजी से उभर रहा था । उसने मदन सिंह राठौड़ की हत्या का बदला लेने की ठानी । 27 जून 2006 की दोपहर जीवन गोदारा डीडवाना बाजार में अपने घर के नीचे बनी दुकान पाटीदार बूट हाउस में बैठा चाय पी रहा था । आनंदपाल अपने पांच दूसरे साथियों के साथ वहां पहुंचा और उसने एक के बाद एक 13 गोलियां जीवन गोदारा के शरीर में दाग दीं । दो अपराधियों की लड़ाई ने देखते ही देखते जाट बनाम राजपूत का मोड़ ले लिया था । हत्या के कुछ घंटे बाद ही डीडवाना राज्य के दूसरे हिस्सों से कट गया । जीवन राम गोदारा को न्याय दिलाने के नाम पर पूरे आस-पास के जिलों के जाट डीडवाना पहुंचने लगे ।

जीवन राम गोदारा उस समय की मुंडवा विधायक ऊषा के पति विजय पूनिया के करीब माना जाता था । ऊषा उस समय वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री थीं । इस वजह से विजय पूनिया गोदारा की मौत के बाद खड़े हुए प्रदर्शन से दूर रहे । इसके उलट हनुमान बेनीवाल पूरे समय इस आंदोलन में सक्रिय रहे । इसने उन्हें जाट युवाओं के बीच काफी लोकप्रियता दी । वो तेजी से युवा जाट नेता के तौर पर उभरने लगे ।

2008 के परिसीमन के बाद मूंडवा सीट खत्म कर दी गई और खींवसर नाम से नई सीट आस्तित्व में आई । हनुमान बेनीवाल को 2008 के विधानसभा चुनाव में खींवसर से बीजेपी की टिकट मिल गई । कांग्रेस ने उनके सामने डॉ. सहदेव चौधरी को टिकट दी थी । बीएसपी की टिकट से लड़ रहे दुर्ग सिंह चौहान ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था । इस मुकाबले में सफलता बेनीवाल की झोली में गिरी । इस चुनाव में हनुमान के खाते में गए 58,602 वोट । उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे दुर्ग सिंह, जिन्हें 34,292 वोट हासिल हुए । कांग्रेस के सहदेव चौधरी महज 17,124 वोट ही हासिल कर पाए । माने लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार बेनीवाल विधायक बन गए थे । अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की ओर बढ़ चुके थे । पर आगे अभी बहुत कुछ बाकी है । अंत में इतना ही कहना चाहुंगा आप जैसा नेता आज तक इस प्रदेश में नहीं हुआ, राजस्थान की जनता को आपसे बहुत आस-उम्मीद है, ईश्वर आपको सकुशल रखें ।

इस भाग के लेखक - बलवीर घिंटाला तेजाभक्त

हनुमान बेनिवाल का राजनीतिक विश्लेषण

कई सालों की कड़ी तपस्या व मेहनत के बलबूते हनुमान बेनिवाल जी ने देश प्रदेश की राजनीति में अपनी जड़ें बहुत ही मजबूती से जमा ली है। एक जमाने में ताऊ देवीलाल, नाथूराम जी मिर्धा, मदेरणा जी, चौधरी चरणसिंह जी, बाबा टिकैत सरीखे जननेताओं किसाननेताओं के जलवे देश में बुलंदी पर रहा करते थे वही आलम आज बेनिवाल जी की लोकप्रियता का है। हालांकी बेनिवाल जी ने अभी देश की राजनीति में कदम नहीं रखा है, फिर भी आज पंजाब,हरयाणा, यूपी और गुजरात में किसान कौम उनमें राष्ट्रीय पटल पर अपना भविष्य तलाशने लग गयी है। बेनिवाल जी की लोकप्रियता में दिन-ब-दिन हो रहा इजाफा इस बात को साबित करता है कि उन्होंने सियासत में काफी हद तक अपना वाजिब मकाम हासिल कर लिया है।

आजकल हर तरफ बेनिवाल जी की चर्चा है। सोशल मीडिया हो, अखबार हों या न्यूज चैनल बेनिवाल जी हर जगह छाए हुए हैं। सुबह जब हम सोकर उठते हैं, तो पाते हैं कि बेनिवाल जी या तो ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे होते हैं, या उनका कोई बयान अखबार और सोशल मीडिया पर हेडलाइन बना होता है। लेकिन पिछले कई सालों से बेनिवाल जी के सुर्खियों में रहने की वजह उनका आक्रामक रवैया या तीखे बयान नहीं, बल्कि उनके गंभीर और समसामयिक विचार हैं। आक्रामक तैवर आज भी उनमें है पर मुद्दों पर सटिक और तथ्यों सहीत बोलते हैं। तभी तो सैंकड़ों बार वर्तमान मुख्यमंत्री और उनकी मंत्री मंडली को भरे सदन में अकेले चुप करवा देते हैं। जनसभा व रैलियों में दिये गये उनके बयानों व सवालों का ना तो सत्ता पक्ष के पास कोई जवाब मिलता है और ना ही विपक्ष को।

आजकल जिस सधे हुए और पैने अंदाज में हनुमान जी लोगों के सामने अपनी बात रख रहे हैं, वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है. हनुमान जी का बदला हुआ अंदाज और उनका नया अवतार लोगों को भा गया है. यही वजह है कि उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है.

किसने सोचा था कि इतने बड़े प्रदेश के एक विधानसभा से निकला विधायक जो पहला चुनाव हार चुका था। दूसरा चुनाव जीत कर भी पार्टी से खुद निकल गया और तीसरा चुनाव पूरे देश में चल रही आंधी को चीरकर जीता। वही बेनिवाल आज देखते ही देखते प्रदेश के एक किसान-युवा-दलित वर्ग की आंखों का तारा बन जाएंगे। इन दिनों बेनिवाल जी हुंकार रैलियों के माध्यम से अपने भाषणों में जो आत्मविश्वास और मजबूत ईरादे दिखा रहे हैं, उनमें गजब का पैनापन नजर आता है। अपने भाषणों व बयानों में जो मुहावरे व्यंग्य इस्तमाल करते हैं इन मुहावरों में हंसी-मजाक के साथ-साथ गंभीर संदेश भी छुपा होता है, जो शायद 2018 के चुनावों में प्रदेश की सियासत में कुछ न कुछ करामात अवश्य करेगा।

राजनीति के इतर भी बेनिवाल जी आजकल जो कुछ क्रिया-कलाप करते हैं, वो बात भी देखते ही देखते सुर्खियां बन जाती है। पीड़ित परिवारों को कभी सहयोग राशी देनी हो चाहे बाहरी राज्य के मजदूरों को किराया मुहाया किये जाने की घटना हो। चाहे अस्पताल की अव्यवस्थाओं से आहत रात दो बजे डॉक्टरों को उनका फर्ज याद दिलाने की बात हो चाहे बीच राह में एक्सीडेंट देखकर एंबुलेंस का इंतजार किये बिना अपने स्तर पर घायलों की मदद करना हो।

ये बेनिवाल जी की लोकप्रियता का ही नतीजा है कि उनकी जनसभाओं में सैंकड़ों हजारों नहीं बल्कि लाखों की भारी भीड़ उमड़ रही है, और वो जनता का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं।

आलम ये है कि लोगों के बीच हनुमान जी से मिलने और उनके साथ सेल्फी खिंचवाने की होड़ इस कदर बढ गयी है कि एक जगह सेल्फी खिंचवाते घंटा निकल जातै है। मगर कभी भी वक्त न होने का तकाजै लेकर इस इंसान ने अपने फैंस को निराश नहीं किया। बेनिवाल जी कभी अपने इन चाहने वालों को मायूस नहीं करते। सैंकड़ों बार ऐसी जगहों पर भी जहां उन्हें सुरक्षा में रहना आवश्यक हो जाता है, फिर भी वे अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए अपने चाहने वालों के दिलों के साथ साथ उनकी मोबाईल गैलेरी में अपनी शौभा बढाते दिख जाते हैं। बेनिवाल जी की इस बढती हुई लोकप्रियता व आमजन में बनी छवि से हर कोई हैरान है। ना केवल प्रदेश के नेताओं बल्कि दिल्ली में बैठे राजनीतिक रणनीतिकारों को भी इस छवि की राज अब तक समझ नहीं आ रहा।

ऐसा नहीं है कि बेनिवाल जी अचानक से प्रदेश की राजनीति में हमारे सामने आए हैं, हां मगर जैसी अफवाहें उनके विरोधी उनको लेकर फैलाते थे उनसे इतर अचानक, इनका एक नए रूप, एक नए अवतार में हमारे सामने है। आज सार्वजनिक जीवन में उनके बोलने के अंदाज और कामकाज की शैली ने सबका मन मोह लिया है। अपने नए अवतार में हवुमान जी ने ये भी जाहिर किया कि, वो भी इंसान हैं, सबकी तरह उनका भी अपना एक चरित्र और व्यक्तित्व है, उनमें अगर कुछ अच्छे गुण हैं तो कुछ कमजोरियां भी हैं। बेनिवाल जी अब लोगों के सामने अपनी बात पूरी गंभीरता और सच्चाई के साथ रखते हैं.

उनकी बातों में अब गुस्सा नजर नहीं आता बल्कि उसकी जगह गंभीरता व मुद्दों पर तार्किक बहस ने ले ली है। उनके इस अंदाज में उनके अंतर्मन की झलक नजर आती है। ऐसे में हनुमान जी से तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद अब सत्तापक्षी व विपक्षी नेता भी उनकी लोकप्रियता को मानने लगे हैं। अब विरोधियों को भी बेनिवाल जी परिवारवाद की परंपरा में थोपे गए नेता नहीं लगते, बल्कि उनको अब अपने आप में एक अलग व्यक्तित्व दिखाई देता है।

पिछले दिनों एक परिवार के बेटे की हत्या के विरोध में रात दो बजे तक सड़क पर बैठे रहना, तथा एकलबाहरी राज्य से आए मजदूर परिवार के ठगी का शिकार होने पर उन्हें भौजन खिलाकर किराये के पैसे देकर एहतियात से विदा करना जैसी घटनाओं पर चिंतन करे तो यह निष्कर्ष निकलता है कि ये घटनाएं बेनिवाल जी के व्यक्तित्व के बारे में हजारों बातें जाहिर करती है। ये घटना बताती है कि बेनिवाल जी कितने दयालु इंसान हैं। ये घटना बताती है कि बेनिवाल जी ऐसे भरोसेमंद नेता हैं जिनके साथ लोग सिर्फ सेल्फी ही नहीं खिंचवाना चाहते, बल्कि घर बुलाकर उनका मान सम्मान भी करना चाहते हैं।

प्रदेश का किसान वर्ग अब जान गया हैं कि बेनिवाल हम में से ही एक हैं, वो भी हमारी तरह खेत खलिहान और मिट्टी से प्यार करते है। लोग ये भी समझ गए हैं कि हनुमान जी जितने सादा स्वभाव के हैं, उतने ही संवेदनशील भी हैं। हनुमान जी जिस तरह से खामोशी के साथ गरीब, बेबस, मजलूम परिवारों की मदद करते हैं, उससे लोगों को ये भी पता चल गया है कि बेनिवाल जी अपने अच्छे कामों का ढिंढोरा पीटने में यकीन नहीं रखते।

बेनिवाल जी के अभी तक के संघर्ष ने यकीनन उनकी एक संवेदनशील, मानवीय और जुझारू छवि पेश की है। पिछली तीनवहुंकार महारैलियों में लाखों जनमानस को एकत्रित कर बेनिवाल जी ने जयपुर से लेकर दिल्ली तक के राजनीतिज्ञों की चूलें हिला दी है। और एक बार फिर 10 जून को शेखावाटी ह्रदय सीकर में हुंकार महारैली आयोजित कर किसानों के उस संघर्ष को जीवंत करने में योगदान देंगे जो सामंतशाही राज में किसान कौम द्वारा देखने को मिला था। हालांकी देश में लोकतंत्र स्थापित हो चुका है मगर सत्तालोलुप पार्टियों ने उस सामंतशाही दौर को भी आज नीचा दिखा दिया है। इस जंगलराज को खत्म करने तथा किसान व दलित वर्ग को उनका सही मायनों में हक दिलाने में संघर्षरत बेनिवाल जी नयी पार्टी बनाकर चुनावी रण में कूदने के पूरे मूड में नजर आ रहे हैं। महारैलियों में उमड़ता हुजूम केवल भाषण सुनने नहीं, जैसा कि विरोधी कहते हैं बल्कि इस जननायक के प्रति दिवानगी दिखाने आते हैं। यह सोच कर आते हैं कि 70 सालों में जिन हकों से किसान को महरूम रखा गया, वह हक बेनिवाल जी अपनी कलम चलाकर हमें दिलायेंगे। यह कलम मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर चलनी चाहिए, जिसके लिए आज युवा व किसान वर्ग पूरी तरह तैयार है। अब देखना यह है कि क्या बेनिवाल जी राज्य दर राज्य जीत दर्ज कर रही बीजेपी तथा अतिउत्साह में डूबी कांग्रेस की रफ्तार पर ब्रेक लगा पाएंगे? लोग ये भी जानने को बेताब है कि क्या हनुमान जी शाह-मोदी की चमक फीकी कर पाएंगे? क्योंकि अब प्रदेश का माहौल बदल चुका है, अब वो वक्त नहीं रहा जब बीजेपी और कांग्रेस पांच साल आपस में पटखनी देकर राज्य की सत्ता पर काबिज हो जाया करते थे। अब कांग्रेस-बीजेपी के शासन से ऊब चुके जनमानस के लिए हवा कुछ-कुछ माफिक हो चली है। ऐसे में लोगों को बेनिवाल जी से उम्मीदें बढ़ गई हैं।

नागौर, बाड़मेर, बीकानेर की किसान हुंकार महारैलियों में उमड़ी भीड़ देखकर लगता है कि जनता अब कुछ नया और कुछ अलग सुनना चाहते हैं, कुछ बदलाव चाहते हैं। बेनिवाल जी को मिल रहे भारी जनसमर्थन से ये भी लगता है कि, लोग महारानी के भ्रष्ट शासन तथा कांग्रेस की निर्जीवता से ऊब चुके हैं, और अब वो दूसरे बेनिवाल जी पर विश्वास करना चाहते हैं।

ऐसा लगता है कि मतदाताओं के मन में उथल-पुथल मची हुई है, उनके अंदर कुछ पक रहा है। ऐसे में बेनिवाल जी सरकार की नीतियों और फैसलों से नाखुश जनता की आवाज बनकर उभरे हैं। वे अब लोगों की नब्ज पकड़ना बखूबी सीख गए हैं, जिसने उन्हें सही मायनों में जननायक बना दिया है।

फिलहाल हमें बेसब्री से 10 जून को होने वाली हुंकार पार्ट 4 का इंतजार है। क्योंकि बेनिवाल जी के चाहने वालों में हम भी अपना नाम शीर्ष पर रखते हैं। हर बार की भांती सम्मीलित हो कर वह रोमांच हम फिर से महसूस करना चाहते हैं। जयकार लगाते लाखों मस्तकों की दिवानगी देखे बहुत समय हो गया। जनसंपर्क में दिख रहे विश्वास व प्रेम देख कर लगता है। इस बार नयी गाथा लिखी जायेगी। जयपुर सीमा शेखावाटी पर किसानों का लश्कर लगना शुरू हो गया है। बस 10 जून को जयपुर की सत्ता पर काबिज होने के लिए कूच होना बाकी है। तैयारी शुरू कर दो साथियों, पंद्रह दिन में एक से पंद्रह हो जाओ। उस जननायक के विश्वास को बलगति देनी है कि हम तुम्हारे पिछे नहीं बल्कि साथ खड़े हैं, डटे हुए। ....

  1. बेनिवाल_सरकार_की हुंकार

जय वीर तेजाजी महाराज। .... विश्लेषक :- बलवीर घिंटाला मकराना +91-9414980415

अहिल्याबाई के निर्माता-निर्देशक पर हो कार्यवाही

अहिल्याबाई के निर्माता-निर्देशक पर हो कार्यवाही और दुबारा नहीं हो इसकी पुनरावृत्ति- सदन में गरजे बेनीवाल: सोनी टेलीविजन द्वारा प्रसारित धारावाहिक ‘अहिल्या बाई’ के दौरान महाराजा सूरजमल की छवि से छेड़छाड़ करने का मामला गुंजा लोकसभा में, सदन में जनता की आवाज बन चुके आरएलपी सुप्रीमो व नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस मामले को लेकर सदन में जमकर लगाई दहाड़, बेनीवाल ने कहा- ‘सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक “अहिल्याबाई” में महाराजा सूरजमल जी के इतिहास का प्रसारण जिस प्रकार गलत रूप से किया गया, उससे महाराजा सूरजमल जी में आस्था रखने वाले जाट समाज सहित सर्व समाज के लोगों की भावना को पहुंची है ठेस, अजेय योद्धा महाराजा सूरजमल के इतिहास के साथ छेड़छाड़ किसी भी रूप में नहीं है स्वीकार्य,’ सांसद हनुमान बेनीवाल ने कहा- सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए फिल्मों और धारावाहिक के माध्यम से इतिहास के तथ्यो के साथ किया जाता है छेड़छाड़, जिस पर सरकार को अंकुश लगाने की है जरूरत, अहिल्याबाई धारावाहिक के निर्माता तथा निदेशक के विरुद्ध दर्ज करवाया जाए मुकदमा, और धारावाहिक के प्रसारण पर रोक लगाते हुए महाराजा सूरजमल जी के संबंध में दिखाए गए गलत तथ्यो से जुड़े भाग को हटाया जाए सभी प्लेटफार्म से, यही नहीं सरकार को इस बात की सुनिश्चितता भी देनी होगी कि झूठी टीआरपी बटोरने के लिए कोई भी निर्माता व निदेशक इतिहास के तथ्यों के साथ नहीं करें छेड़छाड़, सूरजमल जी धर्म रक्षक और अजेय योद्धा थे जिन्होंने अपने जीवन काल में कोई युद्ध नही हारा और देश की अखंडता की रक्षा की

Source - अहिल्याबाई के निर्माता-निर्देशक पर हो कार्यवाही और दुबारा नहीं हो इसकी पुनरावृत्ति- सदन में गरजे बेनीवाल

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