Humorous Jokes in Haryanavi/साधु-सन्त, बाबा, मोड्डे, मलंग

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“गई कित?”

इसे भतेरे ढ़ोंगी बाबा सैं जिनका प्रवचन कोए ना सुणता ! इसा ए एक बाबा कुरुक्षेत्र में आ-ग्या, उसनै सोच्या अक ये हरयाणा आळे तै बड़े भोळे-भाळे सैं, कोए तै मेरा प्रवचन मुफ्त में सुण ए लेगा !

बाबा नै एक छोरा स्कूल में जाता देख्या । उसनै फट-दे नै एक मोमबत्ती जळाई अर छोरे धोरै गया अर बोल्या - बेटा, तुम्हें पता है कि यह लौ कहां से आई है ?

छोरे नै सोच्या अक जै इस ताहीं जवाब दिया तै इसके प्रवचन चालू हो ज्यांगे ।

छोरे नै उस मोमबत्ती कै फूक मारी अर बोल्या - महाराज, या कित्तै तैं आई हो, पर न्यूं बता अक या सुसरी गई कित?

बाबा का जमाई

मग्घड़ मलंग खूब हट्टा-कट्टा था पर था निरा बावली-बूच । एक दिन एक रूंख (पेड़) की डाली पर बैठा था और उसी को कुल्हाड़े से काट रहा था । साथ वाले कच्चे रास्ते पर बाबा छोटूनाथ पैदल जा रहा था - दूसरे गांव की तरफ । बाबा ने पेड़ पर देखा और बोला – अरै बावळे, तू तै पड़ैगा नीचै ।


जरा सी देर में ही डाली टूट पड़ी और मग्घड़ भी नीचे गिर पड़ा । उसकी मदद के लिए बाबा छोटूनाथ उसके पास आया । मग्घड़ बाबा के पैर पकड़ कर बोला "बाबा, तू तै अंतर्यामी सै, न्यूं और बता दे अक मैं मरूंगा किस दिन ?"


बस मग्घड़ तो बाबा छोटूनाथ का चेला बन गया और उसके साथ ही दूसरे गांव में चला गया और बाबा के साथ ही उसकी कुटिया में रहने लग गया ।


बूढ़ा बाबा छोटूनाथ रोज थैला उठाकर गांव आता और घर-घर से आटा मांग कर ले जाता । मग्घड़ उसका कहना नहीं मानता था । जब भी बाबा उसको काम बताता तो वो टाल जाता - "बाबा, लोग मन्नैं भीख ना दें, तेरे बरगे बूढ़े आदमी नै भीख घणी मिल्लै सै" ।


एक दिन कई बुजुर्ग आदमी पौळी के बाहर बैठकर हुक्का पी रहे थे । बाबा को आता देखकर एक ताऊ ने बाबा से पूछा "अरै बाबा, तू बूढ़ा आदमी सै, रोज खुद क्यूं आवै सै - कदे आपणे चेले नै बी भेज दिया कर" ।


बाबा नै फट जवाब दिया - "चौधरी, वो मेरा चेला कोनी, मन्नैं भूल-तैं जमाई के कान पाड़ दिये" !!!


बेसूहरी लुगाई

एक बाबा आटा मांगण चाल्या गया । बाबा नै एक घर में जा-कै रूका मारा । बाबा नै देख्या अक सारा घर खिंढ़्या पड़ा था - कितै बर्तन पड़े, कितै चप्पल-जूते, कितै लत्ते-कपड़े पड़े थे । फेर एक बेसूहरी सी लुगाई बाहर आई अर बोली - बाबा, न्यूं आटा मांगता हांडै सै ईब, घर क्यूं ना बसाया ?


बाबा नै जवाब दिया - बेबे, सुथरा घर कदे बस्सया ना, अर तेरे बरगा बसावण का जी कोनी करया !!


"बादळां कै डील हो गई"

एक साल बारिश ना होई । सारा सामण, भादवा, आसौज खाली चल्या गया । एक कै थोड़ी ए जमीन थी, बिना आल्य (गीली मिट्टी) गीहूं बोवण का ब्यौंत ना होया । उसनै के करया - गाम के बाबा के डेरे में जा कै न्योता दे आया - अक जै बारिश हो गई तै सब-नै जिमाऊंगा । महाराज नै के करया - अक 8-10 जो मलंग चेले थे, उनके हाथां में रात नैं मटके दे कै भेज दिये । धोरै-ए जोहड़ था । चेल्यां नै सारी रात मैं वो खेत दे-मटक्यां, दे मटक्यां ठोक दिया ।


आगलै दिन गाम आळ्यां नै देख्या, तै सब पहुंच-गे महाराज का न्योता देण । महाराज बोल्या - रुक ज्याओ, थोड़ी हाण में बताऊंगा बादळां की पोजीशन । इतणा कह कै वो भीतर चेल्यां तैं सलाह मिलाण लाग्या तै चेले बोले - "महाराज, गाम आळ्यां तै कह दो अक ईबै बादळां के सिर में डील हो रही सैं, ईबै ना बरस सकते" !!


(डील = small ulcers)


मैं नाटूंगी !

एक बै एक बाबा रोटी-चून मांगण लाग रहया था किसै गाम में । एक ताई उसतैं बोल्ली - बाबा, म्हारे घर तैं ले आया किमैं ?

बाबा बोल्या - ना बेटी, तेरी बहू नाट-ग्यी ।

ताई कै ऊठ्या छो - आंछ्या, वा न्यूं क्यूकर नाट-ग्यी ? चल बाबा तू मेरी गैल चाल, मैं देखूंगी वा क्यूकर नाट-ग्यी !

बाबा हो लिया उसकी गैल । घरां जा-कै ताई नै बहू बुलाई रूका दे-कै । फिर बोल्ली - आंहे बहू ! तू कुछ देण तैं क्यूकर नाट-ग्यी बाबा नैं, तू घणी चौधरण हो रही सै ? नाटणा होगा तै मैं नाटूंगी ! चल बाबा आग्गे नै !!


रौळा

एक बै एक लुगाई घर कै भीतर आपणी छोरी गैल रौळा करै थी ।

लुगाई बोल्ली - छोरी, तू काम ढंग तैं कर लिया कर, ना तै मैं तन्नै बाब्याँ गैल ब्याह दयूँगी ।

घर कै बाहर एक बाबा सारी बात सुणै था । बाबा बोल्या - माई मैं डट्टूं अक जाऊं ?




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