Jaunpur

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Jaunpur (जौनपुर) is a city and district in the Varanasi Division of the Indian state of Uttar Pradesh.

Variants

Location

The district headquarters is Jaunpur which is situated on the banks of the Gomti River. It is located 228 km southeast of the state capital Lucknow. The district of Jaunpur is situated in the North-West part of Varanasi Division. Its attitude varies from 261 ft to 290 ft. above Sea Level. Gomti and Sai are its main parental rivers. Besides these, Varuna, Basuhi, Pili. Mamur and Gangi are the smaller rivers here. The rivers Gomti and Basuhi divide the district into nearly four equal landmasses.


History

Jaunpur Stone Inscription of Ishvaravarman

  • . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .[Wielding] with (his) arms the bow of (the god) Âtmabhû, by means of (his) innate warriors skill that pervaded (his very) soul . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . in the flourishing lineage of the Mukhara kings; whose prowess with the bow was displayed with all the energy of a man ; . . . . . . . . . . . . . . . . . . by the rite . . . . . . . . . ; (and his) religious merit arising from sacrifices, spread out over the sky (in the form of) the mass of the clouds of the canopy of the smoke (of his oblations) . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . having the ends of (their) curls fallen down . . . . . . . . . . . . by the families . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
  • (Line 4.)-Of him, whose spotless fame spread far and wide over the regions, the son (was) king Îshvaravarman, . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . with virtues which by means of compassion and affection allayed the troubles (caused) by the approach of cruel people, and which effected the happiness of mankind ; who, indeed, of virtuous people . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ; by him, a very lion to (hostile) kings, the throne was occupied. A spark of fire that had come by the road from (the city of) Dhârâ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . the lord of the Andhras, wholly given over to fear, took up (his) abode in the crevices of the Vindhya mountains ; . . . . . . . . went to the Raivataka mountain . . . . . . . . . . . . . . . . among the warriors of the Andhra army, who were spread out among the troops of elephants (and) whose arms were studded with the lustre of (their) swords drawn out (from the scabbards), . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . bathed with the waters, fragrant with benzoin, of the torrents of . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . and cleansing the lands, full of cool waters, of (Himâlaya) the, mountain of, snow . . . . . . . . . . . . . . . . . with the pollen . . . . . . . . . . . disordered by the breaking of the waves of the swollen mountain- streams, (and) flowing onwards, . . . . . . . . . . . . . . whose day, even in the hours that come next after daybreak . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . [1]

जौनपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...जौनपुर (उ.प्र.) (AS, p.374) नगर गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। प्राचीन किंवदंती के अनुसार जमदग्नि ऋषि के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ था। जमदग्नि का एक मंदिर यहाँ आज भी स्थित है। यह भी कहा जाता है कि इस नगर की नींव 14वीं शती में 'जूना ख़ाँ' ने डाली थी, जो बाद में मुहम्मद तुग़लक़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और दिल्ली का सुल्तान हुआ। जौनपुर का प्राचीन नाम 'यवनपुर' भी बताया जाता है। 1397 ई. में जौनपुर के सूबेदार ख़्वाजा जहान ने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ की अधीनता को ठुकराकर अपनी स्वाधीनता की घोषणा कर दी और शर्की (=पूर्वी) नामक एक नए राजवंश की स्थापना की। इस वंश का यहाँ प्राय: 80 वर्षों तक राज्य रहा।

इस दौरान शर्की सुल्तानों ने जौनपुर में कई सुन्दर भवन, एक क़िला, मक़बरा तथा मस्जिदें बनवाईं। सर्वप्रसिद्ध 'अटाला मस्जिद' 1408 ई. में बनी थी। कहा जाता है कि इस मस्जिद के स्थान पर पहले 'अतला' (या अताला) देवी का मंदिर था, जिसको ध्वस्त करके उसकी सामग्री से यह मस्जिद बनाई गई। अतला देवी का मंदिर प्राचीन काल में केरारकोट नामक दुर्ग के अन्दर स्थित था। जामा मस्जिद को इब्राहीमशाह ने 1438 ई. में बनवाना प्रारंभ किया था और इसे 1442 ई. में इसकी बेगम राजीबीवी ने पूरा करवाया था।

[p.375]: जामा मस्जिद एक ऊँचे चबूतरे पर बनी है, जिस तक पहुँचने के लिए 27 सीढ़ियाँ हैं। दक्षिणी फाटक से प्रवेश करने पर 8वीं शती का एक संस्कृत लेख दिखलाई पड़ता है, जो उलटा लगा हुआ है। इससे इस स्थान पर प्राचीन हिन्दू मंदिर का विद्यमान होना सिद्ध होता है। दूसरा लेख तुगरा अक्षरों में अंकित है। मस्जिद के पूर्वी फाटक को सिकन्दर लोदी ने नष्ट कर दिया था।

1417 ई. में प्राचीन विजयचंद्र मंदिर के स्थान पर खालिस मूख्ख्लीस मस्जिद (या चार उंगली मस्जिद) को सुल्तान इब्राहीम के अमीर खालिस ख़ाँ ने बनवाया था। इसके दरवाजों पर कोई सजावट नहीं है। मुख्य दरवाज़े के पीछे एक वर्गाकार स्थान चपटी छत से ढका हुआ है। यह छत 114 खंभों पर टिकी हुई है और ये खंभे दस पंक्तियों में विन्यस्त हैं। मुख्य द्वार के बाई ओर एक छोटा काले रंग का पत्थर है, जो जनश्रुति के अनुसार किसी भी मनुष्य के नापने से सदा चार अंगुल ही रहता है। नगर के दक्षिणी-पूर्वी कोण पर चंचकपुर या झंझीरी मस्जिद थी, जिसका केवल एक स्तंभ ही अवशिष्ट है। नगर के उत्तर-पश्चिम की ओर बेगमगंज ग्राम में मुहम्मदशाह की पत्नी राजीबीवी की मस्जिद 'लाल दरवाज़ा' नाम से प्रसिद्ध है। (राजीबीवी का देहान्त इटावा में 1477 ई. में हुआ था।) इसकी बनावट जौनपुर की अन्य मस्जिदों के समान ही है, किंतु इसकी भित्तियाँ अपेक्षाकृत पतली हैं और केन्द्रीय गुंबद के दोनों ओर दो तले वाले छोटे कोष्ठ स्त्रियों के लिए बने हुए हैं। इस मस्जिद के पास इन्होंने एक ख़ानकाह, एक मदरसा और एक महल भी बनवाया था और सब इमारतों को परकोटे से घेर कर लाल रंग के पत्थर का फाटक लगवाया था।

जौनपुर की सभी मस्जिदों का नक्शा प्राय: एक-सा है। इनके बीच के खुले आंगन के चतुर्दिक जो कोठरियाँ बनी हैं, वे शुद्ध हिन्दू शैली में निर्मित हैं। यही बात भीतर की वीथियों के लिए भी कही जा सकती है। हिन्दू प्रभाव छोटे चौकोर स्तंभों और उन पर आघृत अनुप्रस्थ सिरदलों और सपाट पत्थरों से पटी छतों में पूर्ण रूप से परिलक्षित होता है, किंतु मस्जिदों के मुख्य दरवाज़े पूरी तरह से महराबदार हैं, जो विशिष्ट मुस्लिम शैली में हैं। ऐसा जान पड़ता है कि इन मस्जिदों को बनाने में प्राचीन हिन्दू मंदिरों की सामग्री काम में लाई गई थी और शिल्पी तथा निर्माता भी मुख्यत: हिन्दू ही थे। इसीलिए हिन्दू तथा मुस्लिम शैलियों का मेल पूर्णरूपेण एकाकार नहीं हो सका है।

जौनपुर में गोमती नदी के पुल का निर्माण कार्य मुग़ल बादशाह अकबर ने 1564 ई. में प्रारंभ करवाया था। यह 1569 ई. में बनकर तैयार हुआ था। यह अकबर के सूबेदार मुनीम ख़ाँ के निरीक्षण में बनाया गया था। जौनपुर के शर्की सुल्तानों के समय के तथा अन्य स्मारकों को लोदी वंश के मूर्ख तथा

[p.376]: धर्मांध सुल्तान सिकन्दर लोदी ने 1495 ई. में बहुत हानि पहुँचाई। इन्हें नष्ट-भ्रष्ट कर उसने अपने दरबारियों के रहने के लिए निवास स्थान बनवाए थे।

जौनपुर से ईश्वरवर्मन (सातवीं शती ई.), जो मौखरि वंश का राजा था, का एक तिथिहीन अभिलेख प्राप्त हुआ था, जो खंडित अवस्था में है। इसमें धारानगरी तथा आंध्र देश का उल्लेख है, किंतु इसका ठीक-ठीक अर्थ अनिश्चित है। इस अभिलेख से मौखरियों के राज्य का विस्तार जौनपुर के प्रदेश तक सूचित होता है। मौखरी नरेश कन्नौज के महाराज हर्ष के समकालीन थे।

जौनपुर परिचय

जौनपुर शहर, दक्षिणी-पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तर-मध्य भारत, वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) के पश्चिमोत्तर में स्थित है। जौनपुर शहर गोमती नदी के दोनों तरफ़ फैला हुआ है। जौनपुर का शाही क़िला और अटाला मस्जिद आज भी यहाँ की शोभा में चार-चाँद लगा रहे हैं। भारतीय इतिहास के मध्यकालीन भारत में जौनपुर अपनी कला एवं स्थापत्य के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। आज भी इत्र का व्यवसाय यहाँ बड़े पैमाने पर होता है।[3]

External links

References

  1. Fleet, John F. Corpus Inscritptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 230.
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.374-376
  3. भारतकोश-जौनपुर