Krikalasa

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Krikalasa (कृकलास) or Krikalasamukha (कृकलासमुख) is ancient tribe of Mahabharata period. It is a sanskrit word which means lizard (गिरगिट). It is of Nagavanshi origin.

Jat Gotra

History

कृकलास कुण्ड - द्वारका के तीर्थों में कृकलास कुण्ड प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थान है। इस स्थान का महात्म्य श्रीमद भागवत और सकंदपुराण के राजा नृग के आख्यान के साथ जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि राजा नृग प्रतिदिन एक हजार गाय ब्राह्मणों को दान किया करता था। एक दिन भूलवश दान की हुई गाय दुबारा ब्राह्मण को दान कर दिया तो ब्राह्मण ने राजा को शापित किया कि वह गिरगिट की योनि प्राप्त करेगा। उसका उद्धार भगवान् कृष्ण के स्पर्श हुआ। वह कूप कृकलास तीर्थ के नाम से विख्यात है। कृकलासमिति ख्यातं नृगतीर्थमनुत्तम् नृगो यत्र महिपालः कृकलासवपुर्द्धर - स्कन्द पुराण द्वारका माहात्म्य अ. [1]

In Mahabharata

Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 44 gives the list of combatants who came to the ceremony for investing Kartikeya with the status of generalissimo. Shloka 81 names Krikalasa, Viraja, along with Tittira and Dharan. [2]

References

  1. दिव्य द्वारका, प्रकाशक दण्डी स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी, सचिव श्रीद्वारकाधीश संस्कृत अकेडमी एण्ड इंडोलॉजिकल रिसर्च द्वारका गुजरात, पृ.68
  2. कॊकिला वदनाश चान्ये शयेनतित्तिरिकाननाः । कृकलास मुखाश चैव विरजॊऽमबरधारिणः (IX.44.81)

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