Nakula

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Nakula (नकुल) was one of the five Pandava brothers. Nakula and Sahadeva were twins born to Madri. Nakula literally means 'most handsome in the lineage'.

Birth

Due to Pandu's inability to bear children, because of the curse of Rishi Kindama, Kunti had to use the boon given by Sage Durvasa to give birth to her three children. She shared the boon with Pandu's second wife, Madri, who invoked the Ashwini Kumaras to beget Nakula and Sahadeva.

Mention by Panini

Nakula (नकुल) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

Madri became Sati

Later Pandu lost his life when he attempted an intercourse with his wife, Madri. The latter also immolated herself in her husband's pyre, so Nakula and Sahadeva lost both their parents at an early age. Later Kunti and the five Pandavas moved to Hastinapura.

Marriage of Nakula

All five Pandava brothers were wed concurrently to Draupadi, and each had a son by her. Nakula's son with Draupadi was Satanika. Nakula also married Karenumati, the daughter of the Chedi Kingdom, who bore him a son, Niramitra.

Nakula's conquests

Nakula set out from Khandavaprastha for the west. Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 29 mentions that Yudhisthira after crowning as the emperor of Indraprastha sent Nakula to west to subjugate kingdoms for the Rajasuya sacrifice. He, with a huge army set forth to the kingdom once dominated by Vasudeva. He first attacked the prosperous mountainous country of Rohitaka. It is said that Nakula needed ten-thousand camels to bring the entire wealth to Indraprastha.

Nakula subjugated the following countries: Rohitaka (रॊहीतक), Mattamyurakas (मत्तमयूरक), Sairishaka (शैरीषक), Mahetta (महेच्छ), Akrosa (?), Dasarnas (?), Shibis (शिबी), Trigartas (त्रिगर्त), Ambashtas (अम्बष्ठ), Malavas (मालव), Panchakarpata (पञ्च कर्पट) five tribes of the Karnatas ?, Madhyamakeyas (मध्यमिकाय), Vatadhanas (वाटधान), Utsava Sanketas (उत्सव संकेत), Gramaniya (गरामणेय), Shudras (शूद्रा), Abhiras (अभीर), Amaraparvata (अमरपर्वत), Uttarajyotika (उत्तरज्यॊतिक), Divyakata (दिव्यकट पुरम्) = Vrindataka city (वृण्डाटक पुरम्) Dwarapala (द्वारपाल), Ramathas (रमठ), Harahunas (हारहूण), Pratichya (प्रतीच्य) Sakala (Madra city) (शाकल), Mlechchas (मलेच्छ), Palhavas (पह्लवा), Barbara (बर्बर), Kiratas (), Yavanas (), Sakas ().

Nakula during Exile

Yudhisthira's loss in the game of dice meant that all Pandavas had to live in exile for 13 years. Once in exile, Jatasura, disguised as a Brahmin, kidnapped Nakula along with Draupadi, Sahadeva and Yudhisthira. Bhima rescued them eventually, and in the fight that ensued, Nakula killed Kshemankara, Mahamaha and Suratha. In the 13th year, Nakula disguised himself as an ostler and assumed the name of Granthika (within themselves Pandavas called him Jayasena) at the Kingdom of Virata. He worked as a horse-trainer who looked after horses in the royal stable.

चेदि जनपद से संबंध

चेदि जनपद बुन्देलखण्ड में था। चेदि जाट गोत्र भी है। उस समय वहां पर चन्द्रवंशी शिशुपाल राज्य करता था। ययातिपुत्र यदु के पुत्र करोक्षत्री की परम्परा में शूरसेन राजा हुआ। उसकी पुत्री क्षत्रश्रवा का विवाह चेदिराज दमघोष से हुआ जिनसे शिशुपाल हुआ। नकुल ने चेदि नरेश की पुत्री करेणुमती से विवाह किया। जिनसे पुत्र निरमित्र हुआ। (देखो चन्द्रवंशीय वंशावली)। श्रीकृष्ण जी ने शिशुपाल को मार दिया था। उसका पुत्र चेदिराज धृष्टकेतु पाण्डवों की तरफ होकर महाभारत युद्ध में लड़ा था।[2]

इतिहासकार स्वामी ओमानन्द सरस्वती लिखते हैं -

एक प्रचलित किंवदन्ति है कि ब्रज से द्वारका को जाने के लिये हरि अर्थात् कृष्ण के यान का जाने का यही निर्दिष्ट मार्ग था, अतः यह भू-भाग हरियाणा कहलाया । इसी से मिलती-जुलती एक अन्योक्ति भी है कि कौरवों और पाण्डवों के युद्ध में श्रीकृष्ण जब सम्मिलित होने के लिए आये तो सर्वप्रथम इसी प्रदेश में ठहरे थे । उनकी सेना भी इधर ही एकत्र थी । इसलिये हरि-कृष्ण का आना, इससे यह प्रदेश हरि-आना (हरियाना) कहलाया । (बालमुकुन्द स्मारक ग्रन्थ, पृष्ठ १)

समीक्षा - योगिराज श्रीकृष्ण को भी पौराणिक भाईयों ने विष्णु का अवतार माना है, अतः विष्णु के नाम हरि से इन्हें भी विभूषित किया गया । श्रीकृष्ण जी महाराज की जन्मभूमि मथुरा भी हरियाणे में है और इनकी कर्मभूमि इन्द्रप्रस्थ तथा कुरुक्षेत्र भी इसी प्रदेश में हैं । इनके महाभारत के समय ठहरने का स्थान भी हरयाणा था तथा ब्रज से द्वारका जाने का मार्ग भी उनका यहीं से था । अतः इस प्रदेश का नाम उनके 'हरि' नाम के कारण हरियाणा पड़ गया । यह कल्पना भी कारण हो सकती है, किन्तु इससे अधिक प्रमाणित बात यह है कि जहाँ उनकी कर्मभूमि और जन्मभूमि दोनों ही इस प्रदेश में थीं, वहाँ उन्होंने इस प्रदेश को जीतकर अपनी विजय पताका इस पर फहराई थी तो इसी कारण इसका नाम हरियाणा भी हो गया । महाभारत सभापर्व में उनकी जीत का निम्नलिखित प्रमाण है –

नकुलस्य तु वक्ष्यामि कर्माणि विजयं तथा ।
वासुदेव - जितामाशा यथासवजयत प्रभुः ॥
(महा० सभापर्व ३२ अध्याय)

मैं नकुल के पराक्रम और विजय का वर्णन करूंगा । शक्तिशाली नकुल जिस प्रकार भगवान् वसुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण ने इस पश्‍चिम दिशा को जीता था, उसी प्रकार इस पश्‍चिम दिशा पर नकुल ने विजय पाई ।

महर्षि व्यास ने पश्‍चिम दिशा का जो उल्लेख किया है, उसमें सर्वप्रथम हरयाणे का भाग रोहतक आदि आता है । (निर्याय खांडवप्रस्थात्) वह नकुल खांडवप्रस्थ (इन्द्रप्रस्थ) दिल्ली से पश्‍चिम की ओर चलता है और जहाँ-जहाँ पहुँचता है उसके विषय में लिखा है -

ततो बहुधनं रम्यं गवाढ्यं धनधान्यवत् ।
कार्तिकेयस्य दयितं रोहितकमुपाद्रवत् ॥

वहाँ इन्द्रप्रस्थ से चलकर मार्ग में बहुत धनी, गोबहुल धन ही नहीं, धान्य (अनेक प्रकार के अन्नों) से परिपूरित सुन्दर रमणीय कार्त्तिकेय के प्रिय नगर रोहितक (रोहतक) में जा पहुँचा ।

तत्र युद्धं महच्चासीत् शूरैर्मत्तमयूरकैः ।
मरुभूमिं च कार्त्स्न्येन तथैव बहुधान्यकम्
(महा० सभापर्व अ० ३२)

वहाँ उनका मत्तमयूरक (मयूरध्वज धारी) शूरवीर यौधेयों के साथ घोर संग्राम हुआ । नकुल ने सारी मरुभूमि (मयूरभूमि) और सारे बहुधान्यक (हरयाणा) प्रदेश को जीत लिया ।

शैरीषकं महेत्थं च वशे चक्रे महाद्युति ।
आक्रोश चैव राजर्षिं तेन युद्धमभवन्महत् ॥
तान् दशार्णान् जित्वा स प्रतस्थे पाण्डुनन्दनः ।

इस प्रदेश के मध्य स्थान शैरीषक (सिरसा) और महेत्थं (महम) आदि को उस तेजस्वी नकुल ने जीता । इस प्रकार यौधेयों के दशार्ण - दश दुर्गों को जीत कर वह आगे बढ़ा । यहां आक्रोश के साथ घोर युद्ध हुआ, किन्तु नकुल ने उसे जीत लिया ।

इस प्रकार श्रीकृष्ण जी महाराज ने इस हरयाणा प्रदेश को जो नकुल ने जीता, इसे पहले ही जीत लिया था । इसी अध्याय में पुनः इसकी पुष्टि महाभारत में की है । यथा -

एवं विजित्य नकुलो दिशं वरुणपालिताम् ।
प्रतीचीं वासुदेवेन निर्जितां भरतर्षभ ॥२०॥

इस प्रकार हे भरत श्रेष्ठ ! भगवान् वासुदेव श्रीकृष्ण द्वारा जीती हुई वरुणपालित पश्‍चिम दिशा पर (हरयाणा सहित) विजय पाकर नकुल इन्द्रप्रस्थ को गया । इस प्रकार यह हरयाणा श्रीकृष्ण महाराज की जन्मभूमि, कर्मभूमि और विशेषतया उनका जीता हुआ प्रदेश था । अतः श्रीकृष्ण का नाम विष्णु के नाम (अवतार) हरि मानने के कारण हरियाणा पड़ गया, इस युक्ति में कुछ सार और तथ्य प्रतीत होता है ।[3]

References


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