Narsa Ram Jakhar

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Narsa Ram Jakhar was a Freedom fighter From village Sarothiya in Sujangarh tahsil of Churu district in Rajasthan. He opposed the oppressive actions of Jagirdars which led to his murder by the Jagirdar of Sarothiya.

सुजानगढ़ में प्रजा परिषद् की स्थापना

वर्ष 1942 में गांधीजी ने देश में करो या मरो का नारा दिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने का जय घोष किया। गांधीजी के सत्याग्रह से प्रोत्साहित होकर सुजानगढ़ में भी बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् की स्थापना की। पंडित गिरीश चन्द्र मिश्र, सेठ सागरमल खेतान, बनवारीलाल बेदी, लालचंद जैन, फूलचंद जैन जैसे कार्यकर्त्ता शहरी तबके से थे।

ग्रामीण क्षेत्रों से जो कार्यकर्त्ता 1942 से 1945 तक बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् सुजानगढ़ के सदस्य बनकर इस संघर्ष में सामिल हुए और अंग्रेजी साम्राज्य, बीकानेर की राजशाही एवं जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध बिगुल बजाय उनमे आप मुख्य थे।

नरसाराम जाखड़ नि. सारोठिया: स्वतंत्रता सेनानी ने प्रजा परिषद् की गतिविधियों में सक्रीय भाग लिया.[1]

सन 1972 में सारोठिया के शहीद नरसा राम जाखड़ को व एक अन्य जवान लड़के सहित गोली से उड़ा दिया गया और वह भी आजाद भारत में। वह इसलिए कि वह जीवन भर सामंतवाद के विरुद्ध संघर्ष करता रहा था। [2]

सामंतवाद का जन्मजात विरोधी

सारोठिया गाँव का जागीरदार मानसिंह और गाँव का जन्मजात स्वतंत्रता प्रेमी नरसा राम जाखड़ लगभग समवयस्क थे। वे बताया करते थे कि उन्होंने ठाकुर मानसिंह के जागीरी काल में उसके मनमाने कानूनों का 52 बार उल्लंघन किया था। मानसिंह ने भी उन पर इतनी ही बार दण्ड थोपे थे। उसी ठाकुर मान सिंह और नरसा राम के बीच जीवन के अंतिम पड़ाव पर टकराव हुआ। ग्राम सारोठिया में नरसा राम व उसके परिवार का एक बाड़ा था जिसका ग्राम पंचायत जीली द्वारा किया हुआ पट्टा भी नरसा राम के परिवार का ही था। बाड़े में नरसा राम का पशुओं के लिए चारा व घास-फूस डाला हुआ था। भूखंड को विवादित बनाने के लिए ठाकुर मान सिंह ने अपने कबिले के लोगों से न्यायलय में वाद प्रस्तुत करवा दिया था।

न्यायलय के आदेश से स्थल निरिक्षण के लिए स्थल निरीक्षक आने वाले थे। स्थल निरिक्षण के आधार पर यथा स्थिति कायम होनी थी। ठाकुर के पुत्र कुंवर रूपसिंह ने उससे पहले ही रात को बाड़े से बेदखल करने की योजना बनाली। नरसा राम सहित उसके परिवार के आठ लोग बाड़े में थे। ठाकुर ने आसपास के गाँवों से ट्रेक्टर भेजकर अपने सजातियों को एकत्र कर लिया। ठाकुर ने आदेश दिया कि लाठी के बल पर नरसा राम को बेदखल कर दो, बाड़े पर कब्ज़ा करलो और आवश्यकता पड़े तो जान से मार डालो सबको। सैंकड़ों की संख्या में एकत्र जागीरी दरिंदों ने रात्रि में नरसा राम के बाड़े पर लाठियों व जेलियों से लैस होकर आठ बार हमला किया जो विफल हो गया। अंत में असफल होने पर ठाकुर ने नरसा राम के परिवार का सर्वनाश करने का निश्चय किया। ठाकुर मान सिंह ने अपने पुत्र रूप सिंह को अपनी 22 बोर बन्दूक देकर हुक्म दिया कि जाओ, यदि लाठी जेली से नरसा राम काबू में नहीं आ रहा है तो सबको गोलियों से भून दो। ऐसा ही हुआ। नरसा राम और उसके परिवार पर गोलियां बरसाई गयी जिससे नरसा राम व धन्ना राम नमक युवक शहीद हो गए। . शेष बच्चे महिलायें आदि गोलियों से घायल हो गए। नरसा राम के मृत शरीर को भी जालिमों ने निर्ममता से कुचला। कहना नहीं होगा कि इस कायरता व क्रूरता पूर्ण सामंती आक्रमण के परिणाम स्वरुप बहादुर नरसा राम तो नहीं रहे परन्तु भविष्य में इस गाँव से सामंतवाद का स्वेच्छाचार और दमन सदा के लिए मिट गया।

सारोठिया गाँव में किये गए नर-संहार के उत्तरदाई अपराधियों के विरुद्ध मुकदमा चला। जिला एवं सत्र न्यायलय चूरू ने रूपसिंह को मृत्युदंड और ठाकुर मानसिंह सहित कुछ को आजीवन कारावास से दण्डित किया गया। परन्तु जोधपुर उच्च न्यायलय ने केवल मुक्य आरोपी रूप सिंह को आजीवन कारावास से दण्डित किया। शेष अभियुक्तों को दंडमुक्त कर दिया। इससे उच्च न्यायलय की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगा। इस काण्ड की पीड़ित पक्ष की पैरवी ग्राम के जागरूक युवक पेमाराम जाखड ने की। नरसाराम जाखड की हत्या का अभिशाप ठाकुर मान सिंह को लगा जो स्वाभाविक मृत्यु की अपेक्षा पक्षाघात जैसे रोग से ग्रसित हो गया और रिस-रिस कर घोर यंत्रणा व दर्दनाक पीड़ा भोग कर मरा।

सारोठिया के नरसंहार के उपरांत जब अभियुक्तों पर हत्या एवं नरसंहार का मुकदमा चला तो वह अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में पेमाराम जाखड को लड़ना पड़ा। एक तरफ सुजानगढ़ के समस्त गढ़पति थे जो प्रत्येक पेशी पर साठ-सत्तर की संख्या में बंदूकों से लैस होकर जाते थे तो दूसरी ओर दुबला-पतला पेमा राम अपने शिक्षक के सरकारी कर्तव्य पालन के साथ बिना किसी पहुँच व सहारे के मुकदमे के साक्ष्य और सबूतों को अंजाम देते हुए संघर्षरत रहकर पूर्ण संजीदगी से सामंती तत्वों से संघर्ष करता रहा अंत तक।

नरसा राम अपने जीवन काल में सारोठिया के गढ़ की ओर उंगली उठाकर कहा करता था,

"यह गढ़ हमारे खून और हड्डियों से बना है। इसमें रहने वाले सामंती दरिन्दे किसानों पर दमन चक्र चलाकर पीसते रहे हैं। जिस दिन इस गढ़ के ढ़ीरे लगेंगे, उसी दिन हमारा पित पानी बुझेगा।"

कहना नहीं होगा कि सारोठिया काण्ड के उपरांत गिरफ़्तारी से बचने के लिए मानसिंह फरार हो गया था तो पुलिस ने गढ़ की कुर्की की कार्यवाही के सन्दर्भ में ढ़ीरे लगा दिए थे। तभी मान सिंह ने पुलिस के सामने आत्म-समर्पण किया था। नरसा राम के जीते जी तो वह सपना साकार नहीं हो सका था किन्तु उसके मरणोपरांत उसके कथन को मूर्त रूप अवश्य दे दिया।

सन्दर्भ : भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.105-109

External links

References

  1. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.40
  2. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.61

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