Nirmala Boora

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Nirmala Boora (left)

Nirmala Boora (निर्मला बूरा) is a wrestler from Ghirai (घिराय) village in Hisar district in Haryana. She is winner of silver medal in 48-kg category wrestling at the Commonwealth Games - 2010 at Delhi.

Silver Medal Commonwealth Games - 2010 at Delhi

She used to beat up boys her age in school. Nirmala Booras parents were worried about her future. Her frequent scuffles at her school in Ghirai made her quite unpopular with the school administration. Her parents, however, made a wise choice by putting her in a wrestling academy. That decision worked for Boora. The Haryana police inspector clinched silver in 48-kg category wrestling at the Commonwealth Games. "We were worried about her future so we put her in sports", said Ishwar Singh, her father. The silver medal winner assured her villagers that she will not beat up the boys anymore. The young wrestler loves halwa and choorma (a concoction of wheat flour and desi ghee). It keeps me going, said Nirmala. [1]

प्रतापी पोती ने पूरा किया प्रताप पहलवान का सपना

निर्मला बूरा का स्वागत करते घिराय के लोग
सन्दर्भ - दैनिक भास्कर हिसार 11-10-2010

घिराय (हिसार). मानो, वक्त भी बूरा परिवार के साथ इंसाफ करना चाहता था। कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीतकर पहलवान निर्मला बूरा रविवार को अपने गांव घिराय लौटी तो बुजुर्गो के जहन में प्रताप पहलवान की कहानी ताजा हो गई।

निर्मला के फौजी दादा प्रताप सिंह बूरा भी पहलवान थे। कुश्ती के दौरान हादसा हुआ। गर्दन पर चोट लगी और प्रताप सिंह बचाए नहीं जा सके थे। तब निर्मला के पिता ईश्वर सिंह छह महीने के थे। डेढ़ साल बाद उनकी मां का भी निधन हो गया और ईश्वर सिंह अपने ताई—ताऊ की गोद में पले।

आज पोती देश का नाम रोशन कर लौटी तो भला प्रताप पहलवान को कोई कैसे भूल सकता था। दादाजी के कुश्ती प्रेम के किस्से सुनकर ही निर्मला बड़ी हुई। निर्मला घिराय गांव में कबड्डी खेलती थी। हिसार में गीतिका जाखड़ को कुश्ती करते देखा तो खून में मौजूद पहलवानी जोर मारने लगी। मगर परिवार ने कुश्ती करने से रोका। कभी दादाजी के साथ हुए हादसे के बहाने। फिर गांववालों के तानों के कारण।

वे कहते थे, लड़की होकर पहलवानी करेगी क्या। मां किताबो देवी को मनाना मुश्किल था। मगर निर्मला ने जिद नहीं छोड़ी। उसे सबसे ज्यादा हौसला मिला बड़े दादाजी भजन सिंह बूरा से। किसान पिता ईश्वर सिंह बताते हैं- मेरे ताऊजी निर्मला को मेरे पिता के किस्से सुनाते थे। अगर हमने उसे कुश्ती करने से रोका तो वह उसे खेलने भेज देते थे।

किस्मत भी हौसले का साथ देती है। निर्मला ने 2001 में कुश्ती को गंभीरता से लिया और इसी साल राष्ट्रीय कुश्ती में वह चैंपियन बन गई। दुबली पतली होने के कारण कोच सतबीर पंढाल और सुभाष चंद्र ने उससे मांसाहार लेने को कहा मगर उसने भी कह दिया, हमारे लिए दूध दही ही काफी है। पांच साल लगातार राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती। 2003 में उसकी उपलब्धियों को सरकार ने भी माना और हरियाणा पुलिस में उसे नौकरी मिल गई। कनाडा में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक पाने के बाद 2007 में वह सब इंस्पेक्टर बना दी गईं। 2010 में स्पेन में अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।

ईश्वर सिंह के पांच बच्चों में निर्मला सबसे बड़ी है। छोटी बहन की शादी हो चुकी है। सबसे छोटी पूनम भी पहलवान है। भाई कबड्डी खेलते हैं। खुद निर्मला कब शादी करेगी? कोई फुर्सत नहीं है, अभी तो नवंबर में एशियाड होगा और फिर दो साल बाद लंदन में ओलंपिक्स — निर्मला का लक्ष्य साफ है।

References


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