Raja Maldeo

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Raja Maldeo (1416) was a ruler in the who was a Chahar Jat, who ruled at Sidhmukh in Jangladesh (Bikaner). The Slave dynasty ruler was then ruled at Delhi. The Delhi ruler's army while returning from Jaisalmer clashed with Raja Maldeo. It happened like this.

Two bulls were fighting. The Delhi army was watching it, but no one dared to stop them. It was then that Raja Maldeo’s daughter, Somadevi came out and caught both the bulls by the horns and quietened them.

The slave dynasty ruler was so impressed that he asked for Somadevi’s hand in marriage. But Raja Maldeo refused the offer. The ruler then tried to take away Somadevi forcefully.

This led to a bloody battle in which Raja Maldeo, Somadevi and many Jats died. The location of the battle is said to be near the border of Sidhmukh. The remaining members of Raja Maldeo's family migrated to the Jhunjhawati region (present-day Jhunjhunu).

मालदेव चाहर

जांगल (बीकानेर) प्रदेश में सीधमुख नामक स्थान पर अब से करीब 550 वर्ष पहले मालदेव नाम का चाहर राज करता था। उस समय देहली में गुलाम बादशाहों का राज्य था। जैसलमेर से लौटते हुए एक मुसलमान सेनापति से मालदेव का युद्ध हुआ था। घटना इस प्रकार बताई जाती है कि मुसलमान सेनापति ने मालदेव के गढ़ से बाहर अपना डेरा डाला। कहते हैं कोई भैंसा सांड बिगड़ गया,स्त्री-पुरुष और बच्चे हाय-हाय करने लगे। मुसलमान सैनिक भी सांड के सामने न आए। मालदेव की पुत्री ने जिसका नाम सोमादेवी था, भैंसे को सींग पकड़कर रोक लिया, वह पूरा बल लगाकर भी न छुड़ा सका। मुसलमान सेनानायक जिसका नाम नहीं लिखा, सोमादेवी को ले जाने के लिये अड़ गया। जाटों की ओर से उसे समझाया गया। आखिर सीधमुख की सीमा पर लड़कर मालदेवजी काम आए और उनके परिवार के लोग उधर से निकलकर झूंझावाटी में आ गये। [1]

राजस्थान में चाहर गोत्र

  • ऋषि - भृगु
  • वंश - अग्नि
  • मूल निवास - आबू पर्वत राजस्थान। शिव के गले में अर्बुद नाग रहता है उसी के नाम पर इस पर्वत का नाम आबू पर्वत पड़ा।
  • कुलदेव - भगवान सोमनाथ
  • कुलदेवी - ज्वालामुखी
  • पित्तर - इस वंश में संवत 1145 विक्रम (सन 1088 ई.) में नत्थू सिंह पुत्र कँवरजी पित्तर हुए हैं, जिनकी अमावस्या को धोक लगती है। इस वंश की बादशाह इल्तुतमिश (r. 1211–1236) (गुलाम वंश) से जांगल प्रदेश के सर नामक स्थान पर लड़ाई हुई।

राजा चाहर देव - इस लड़ाई के बाद चाहरों की एक शाखा नरवर नामक स्थान पर चली गयी। सन् 1298 ई. में नरवर पर राजा चाहरदेव का शासन था। यह प्रतापी राजा मुस्लिम आक्रांताओं के साथ लड़ाई में मारा गया और चाहर वंश ब्रज प्रदेश और जांगल प्रदेश में बस गया। इतिहासकारों को ग्वालियर के आस-पास खुदाई में सिक्के मिले हैं जिन पर एक तरफ अश्वारूढ़ राजा की तस्वीर है और दूसरी और अश्वारूढ़ श्रीसामंत देव लिखा है। इतिहासकार इसे राजा चाहरदेव के सिक्के मानते हैं।

संवत 1324 विक्रम (1268 ई.) में कंवरराम व कानजी चाहर ने बादशाह बलवान को पांच हजार चांदी के सिक्के एवं घोड़ी नजराने में दी। बादशाह बलवान ने खुश होकर कांजण (बीकानेर के पास) का राज्य दिया। 1266 -1287 ई तक गयासुदीन बलवान ने राज्य किया। सिद्धमुख एवं कांजण दोनों जांगल प्रदेश में चाहर राज्य थे।

राजा मालदेव चाहर - जांगल प्रदेश के सात पट्टीदार लम्बरदारों (80 गाँवों की एक पट्टी होती थी) से पूरा लगान न उगा पाने के कारण दिल्ली का बादशाह खिज्रखां मुबारिक (सैयद वंश) नाराज हो गए। उसने उन सातों चौधरियों को पकड़ने के लिए सेनापति बाजखां पठान के नेतृतव में सेना भेजी। खिज्रखां सैयद का शासन 1414 ई से 1421 ई तक था। बाजखां पठान इन सात चौधरियों को गिरफ्तार कर दिल्ली लेजा रहा था। यह लश्कर कांजण से गुजरा। अपनी रानी के कहने पर राजा मालदेव ने सेनापति बाजखां पठान को इन चौधरियों को छोड़ने के लिए कहा. किन्तु वह नहीं माना। आखिर में युद्ध हुआ जिसमें मुग़ल सेना मारी गयी. इस घटना से यह कहावत प्रचलित है कि -

माला तुर्क पछाड़याँ दे दोख्याँ सर दोट ।
सात जात (गोत) के चौधरी, बसे चाहर की ओट ।

ये सात चौधरी सऊ, सहारण, गोदारा, बेनीवाल, पूनिया, सिहाग और कस्वां गोत्र के थे।

विक्रम संवत 1473 (1416 ई.) में स्वयं बादशाह खिज्रखां मुबारिक सैयद एक विशाल सेना लेकर राजा माल देव चाहर को सबक सिखाने आया। एक तरफ सिधमुख एवं कांजण की छोटी सेना थी तो दूसरी तरफ दिल्ली बादशाह की विशाल सेना।

मालदेव चाहर की अत्यंत रूपवती कन्या सोमादेवी थी। कहते हैं कि आपस में लड़ते सांडों को वह सींगों से पकड़कर अलग कर देती थी। बादशाह ने संधि प्रस्ताव के रूप में युद्ध का हर्जाना और विजय के प्रतीक रूप में सोमादेवी का डोला माँगा। स्वाभिमानी मालदेव ने धर्म-पथ पर बलिदान होना श्रेयष्कर समझा। चाहरों एवं खिजरखां सैयद में युद्ध हुआ। इस युद्ध में सोमादेवी भी पुरुष वेश में लड़ी। युद्ध में दोनों पिता-पुत्री एवं अधिकांश चाहर मारे गए।

बचे हुए चाहर मत्स्य प्रदेश एवं उदयपुरवाटी (झुंझुनू) आ गए। उदयपुरवाटी के पास परशुरामपुर गाँव बसाया। यहाँ से एक पूर्वज गोपाल चाहर विक्रम संवत 1509 (1453 ई.) बसंत पंचमी (माघ पाँचम) को (18 पीढ़ी) खेजड़ी की डाली रोपकर ग्राम चारावास बसाया। उस समय दिल्ली पर बहलोल लोदी (1451 -1489 ई.) का राज्य था। ग्राम चारावास वर्त्तमान खेतड़ी तहसील जिला झुंझुनू में स्थित है। इस ग्राम के बजरंग सिंह चाहर खेतड़ी के प्रधान हैं और श्री पूरण सिंह चाहर सरपंच हैं।[2]

Further reading

  • Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudi, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998
  • Thakur Deshraj: Jat Itihasa (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992.

References

  1. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृ.-603
  2. अनूप सिंह चाहर, जाट समाज आगरा, नवम्बर 2013, पृ. 26-27

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