Sagar Madhya Pradesh

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District map of Sagar

Sagar (सागर) is a city tehsil and district in Madhya Pradesh.

Origin of name

Its name is derived from a large lake around which the city was settled.

Variants

History

The ancient Indian kingdom of Chedi had its capital as "Suktimati", which is located in Sagar in contemporary times.

Sagar owes its importance to having been made the capital of the Maratha governor Govind Pant Bundele who established himself here in 1735. By a treaty concluded with the Maratha Peshwa in 1818, at the conclusion of the Third Anglo-Maratha War, the greater part of the present district was made over to the British. The town became the capital of the Saugor and Nerbudda Territories, then attached to the North-Western Provinces. The Saugor and Nerbudda Territories later became part of the Central Provinces (afterwards Central Provinces and Berar) and Sagar District was added to Jabalpur Division.

During the Revolt of 1857 the whole district was in the possession of the rebels, except the town and fort, in which the British were shut up for eight months, until relieved by Sir Hugh Rose. The rebels were totally defeated and British rule restored by March 1858.

In the early 20th century Sagar had a British cantonment, which contained a battery of artillery, a detachment of a European regiment, a native cavalry and a native infantry regiment. Upon India's independence in 1947, the former Central Provinces and Berar became the Indian state of Madhya Pradesh.

सागर, मध्य प्रदेश

सागर (AS, p.952): मध्य प्रदेश में दक्षिण बुंदेलखंड के एक भाग पर मुगल काल में कुछ समय तक निहाल सिंह राजपूत के वंशजों का राज्य रहा था. इसी वंश के नरेश उदानशाह ने 1650 ई. में सागर नगर बसाया था. कहा जाता है कि सागर के पास का परकोटा नामक ग्राम भी इसी ने बसाया था. गढ़पहरा नामक नगर छत्रसाल के आक्रमण के पश्चात, उजाड़ हो गया था और वहां के निवासी सागर आकर बस गए थे. [1]

सागर परिचय

सागर, भारत के राज्य मध्य प्रदेश का एक संभाग है। सागर जिला भारत देश का हृदय जिला कहलाता है। सागर जिले मे NH26 वर्तमान NH44 पर रानगिर तिराहा से कर्क रेखा (23°3') गुजरती हैं। सागर संभाग में कुल छः जिले हैं, जिनमें से सागर भी एक है। अन्‍य पाँच जिले दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़ और निवाड़ी हैं। सागर इन सभी जिलों का संभागीय मुख्यालय है। सागर में प्रदेश का सबसे पुराना विश्वविद्यालय डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय है, जो अब केंद्रीय विश्वविद्यालय भी है।

भौगोलिक स्थिति: भारत के मध्य भाग में 23.10 उत्तरी अक्षांश से 24.27 उत्तरी अक्षांश तथा 78.5 पूर्व देशांस से 79.21 पूर्व देशांस के मध्य फैला सागर जिला मध्य प्रदेश के उत्तर मध्य में स्थित है। यह क्षेत्र आमतौर पर बुंदेलखंड के रूप में जाना जाता है। इसके उत्तर में छतरपुर टीकमगढ़ और ललितपुर, पश्चिम में विदिशा व अशोकनगर, दक्षिण में नरसिंहपुर, पश्चिम-दक्षिण में रायसेन तथा पूर्व में दमोह जिले की सीमाएं लगती हैं। जिले के दक्षिणी भाग से कर्क रेखा गुजरती है। भौगोलिक दृष्टि से सागर देश के मध्य भाग में स्थित है और इसे ‘‘भारत का हृदय’’ कहना उचित होगा ।

प्रमुख नदियां व प्राकृतिक संसाधन: सागर जिले में प्रमुख रूप से धसान, बेबस, बीना, बामनेर और सुनार नदियां निकलती हैं। इसके अलावा कड़ान, देहार, गधेरी व कुछ अन्य छोटी बरसाती नदियां भी हैं। अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में सागर जिले को समृद्ध नहीं कहा जा सकता लेकिन वास्तव में जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उनका बुद्धिमत्तापूर्ण दोहन बाकी है। कृषि उत्पादन में सागर जिले के कुछ क्षेत्रों की अच्छी पहचान हैं। खुरई तहसील में उन्नत किस्म के गेहूं का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है।

अक्षांश - 23.10 से 24.27 उत्तर देशांतर - 78.5 से 79.21 पूर्व औसत वर्षा - 1252 मि.मी. प्रमुख धंधे - बीड़ी निर्माण एवं कृषि प्रमुख फसलें - सोयाबीन, गेहूं

इतिहास: विंध्य पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित यह जिला पुराने समय से ही मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। सागर के आरंभिक इतिहास की कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन पुस्तकों में दर्ज विवरणों के अनुसार प्रागैतिहासिक काल में यह क्षेत्र गुहा मानव की क्रीड़ा स्थली रहा। पौराणिक साक्ष्यों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि इस जिले का भूभाग रामायण और महाभारत काल में विदिशा और दशार्ण जनपदों में शामिल था।

इसके बाद ईसा पूर्व छटवीं शताब्दी में यह उत्तर भारत के विस्तृत महाजनपदों में से एक चेदी साम्राज्‍य का हिस्सा बन गया। इसके उपरांत ज्ञात होता है कि इसे पुलिंद देश में सम्मिलित कर लिया गया। पुलिंद देश में बुंदेलखंड का पश्चिमी भाग और सागर जिला शामिल था। सागर के संबंध में विस्तृत जानकारी ‘टालमी’ के लिखे विवरणों से प्राप्त होती है। टालमी के अनुसार ‘फुलिटों’ (पुलिंदौं) का नगर ‘आगर’ (सागर) था।

गुप्त वंश के शासनकाल में इस क्षेत्र को सर्वाधिक महत्व मिला. समुद्रगुप्त के समय में एरण को स्वभोग नगर के रूप में उद्धृत किया गया है और यह राजकीय तथा सैन्य गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। नवमीं शताब्दी में यहां चंदेल और कलचुरी राजवंशों का आधिपत्य हुआ और 13-14वीं शताब्दी में मुगलों का शासन शुरू होने से पूर्व यहां कुछ समय तक परमारों का शासन भी रहने के संकेत मिलते हैं। ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के अनुसार सागर का प्रथम शासक श्रीधर वर्मन को माना जाता है।

पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सागर पर गौंड़ शासकों ने कब्जा जमाया। फिर महाराजा छत्रसाल ने धामोनी, गढ़ाकोटा और खिमलासा में मुगलों को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की लेकिन बाद में इसे श्रीमंत बाजीराव पेशवा ने पंडित गोविंद पंत बुंदेले को सौपा इसके बाद मामलतदार श्रीमंत गोविंद पंत ने सागर शहर की स्थापना की । साल्वै की सन्धि के बाद इसे अंग्रेजो को सौंप दिया। सन् 1818 में अंग्रेजों ने अपना कब्जा जमाया और यहां ब्रिटिश साम्राज्‍य का आधिपत्य हो गया। सन् 1861 में इसे प्रशासनिक व्यवस्था के लिए नागपुर में मिला दिया गया और यह व्यवस्था सन् 1956 में नए मध्यप्रदेश राज्‍य का गठन होने तक बनी रही।

जाट इतिहास

दलीप सिंह अहलावत [2] के अनुसार सिद्धू - बराड़ जाटवंश (गोत्र) चन्द्रवंशी मालव या मल्ल जाटवंश के शाखा गोत्र हैं। मालव जाटों का शक्तिशाली राज्य रामायणकाल में था और महाभारतकाल में इस वंश के जाटों के अलग-अलग दो राज्य, उत्तरी भारत में मल्लराष्ट्र तथा दक्षिण में मल्लदेश थे। सिकन्दर के आक्रमण के समय पंजाब में इनकी विशेष शक्ति थी। मध्यभारत में अवन्ति प्रदेश पर इन जाटों का राज्य होने के कारण उस प्रदेश का नाम मालवा पड़ा। इसी तरह पंजाब में मालव जाटों के नाम पर भटिण्डा, फरीदकोट, फिरोजपुर, लुधियाना आदि के बीच के प्रदेश का नाम मालवा पड़ा। (देखो, तृतीय अध्याय, मल्ल या मालव, प्रकरण)।

जब सातवीं शताब्दी में भारतवर्ष में राजपूत संघ बना तब मालव या मलोई गोत्र के जाटों के भटिण्डा में भट्टी राजपूतों से भयंकर युद्ध हुए। उनको पराजित करके इन जाटों ने वहां पर अपना अधिकार किया। इसी वंश के राव सिद्ध भटिण्डा नामक भूमि पर शासन करते-करते मध्य भारत के सागर जिले में आक्रान्ता होकर पहुंचे। इन्होंने वहां बहमनीवंश के फिरोजखां मुस्लिम शासक को ठीक समय पर सहायता करके अपना साथी बना लिया था जिसका कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख शमशुद्दीन बहमनी ने किया है। इस लेखक ने राव सिद्ध को सागर का शासनकर्त्ता सिद्ध किया है। राव सिद्ध मालव गोत्र के जाट थे तथा राव उनकी उपाधि थी। इनके छः पुत्रों से पंजाब के असंख्य सिद्धवंशज जाटों का उल्लेख मिलता है। राव सिद्ध अपने ईश्वर विश्वास और शान्तिप्रियता के लिए विख्यात माने जाते हैं। राव सिद्ध से चलने वाला वंश ‘सिद्धू’ और उनकी आठवीं पीढ़ी में होने वाले सिद्धू जाट गोत्री राव बराड़ से ‘बराड़’ नाम पर इन लोगों की प्रसिद्धि हुई। राव बराड़ के बड़े पुत्र राव दुल या ढुल बराड़ के वंशजों ने फरीदकोट और राव बराड़ के दूसरे पुत्र राव पौड़ के वंशजों ने पटियाला, जींद, नाभा नामक राज्यों की स्थापना की। जब पंजाब पर मिसलों का शासन हुआ तब राव पौड़ के वंश में राव फूल के नाम पर इस वंश समुदाय को ‘फुलकिया’ नाम से प्रसिद्ध किया गया। पटियाला, जींद, नाभा रियासतें भी फुलकिया राज्य कहलाईं। बाबा आला सिंह संस्थापक राज्य पटियाला इस वंश में अत्यन्त प्रतापी महापुरुष हुए। राव फूल के छः पुत्र थे जिनके नाम ये हैं - 1. तिलोक 2. रामा 3. रुधू 4. झण्डू 5. चुनू 6. तखतमल। इनके वंशजों ने अनेक राज्य पंजाब में स्थापित किए।

Jat Gotras

Tahsils in Sagar District

Villages in Sagar tahsil

Notable persons

  • Krishna Veer Singh Thakur (Dusad) - Advocate, Parkota Hills, Behind HDFC, Gaughat Sagar, Pradesh Mantri BJP, Mob:9425170530, Ph:07582243634
  • Raghu Thakur (Dusad) - Leader and Social worker
  • V.S. Thakur (Dusad) (Late) - SDO (Forest) Sagar Madhya Pradesh

External links

References


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