Samoli

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Samoli (सामोली) (Sambholi) is a village in Kotra tahsil in in Udaipur District in Rajasthan.

History

Samoli Inscription of year 646 AD

सांभोली का शिलालेख ६४६ ई.

मेवाड़ के दक्षिण में भोमट तह्सील में सांभौली नामक गांव में यह शिलालेख [1]प्राप्त हुआ था. यह अजमेर संग्रहालय में रखा गया है. यह मेवाड़ के गुहिल राजा शीलादित्य के समय का वि.सं. ७०३ (६४६ ई.) का १२ पंक्तियों का है. इसकी भाषा संस्कृत और लिपि कुटिल है. मेवाड़ के गुहिल-वंश के समय को निश्चित करने में सहयक है. उसके समय वटनगर से आये हुये महाजनों के समुदाय ने, जिसका मुखिया जेंतक था, अरण्यकगिरि में लोगों का जीवन रूपी आगर उत्पन्न किया. महाज (महाजनों के समुदाय) की आज्ञा से जेंतक महत्तर ने अरण्यवासिनी देवी का मन्दिर बनाया. यह अनेक देशों से आये हुये अठारह वैतालिकों (स्तुति गायकों) से विख्यात, और नित्य आने वाले धन-धान्य सम्पन्न मनुष्यों की भीड़ से भरा हुआ था. उसकी प्रतिष्ठा कर जेंतक मेहत्तर ने यमदूतों को आते हुये देख ’देवबुक’ नामक सिद्धस्थान में अग्नि में प्रवेश किया.

इस शिलालेख में प्रयुक्त शब्द ’विजयी’, ’वटनगर’, ’आगर’, आरण्यकगिरि, तथा ’अरण्यवासिनी’, ’महत्तर’ आदि बड़े महत्व के हैं. यदि संभौली गांव के संदर्भ में इनका अध्ययन किया जाये तो कई ऐतिहासिक बिन्दुओं पर अच्छा प्रकाश पड़ता हैं. इससे स्थानीय भीलों पर शीलादित्य का प्रभाव स्थापित होना, इसके द्वारा जन-समुदाय को जीवन व्यतीत करने की सुविधा प्रदान करना, देश-विदेश से व्यापारियों का इस क्षेत्र में बसना, मन्दिरों का निर्माण होना, जिवन के साधनों की वृद्धि होना आदि संकेत मिलते हैं.इससे यह भी संकेत मिलता है कि जावर के निकट के अरण्यगिरि में तांबे और जस्ते की खानों का काम भी इसी युग से आरम्भ हुआ हो. आज का जावर माता का मन्दिर उस समय अरण्यवासिनी के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध था गायकों और दर्शकों की भीड़ से भरा रहता था. यह इस बात का प्रतीक है कि शीलादित्य के समय में यह देश का भाग खनन उद्योग के कारण स्मृद्ध था. ’महाजन’ शब्द के प्रयोग से महाजन समुदाय या संघ का बोध होता है वह सातवीं शताब्दी के जनोपयोगी संस्था की व्यवस्था क बोधक है.

इस लेख में जेंतक के अग्नि प्रवेश की घटना की खोज की आवश्यकता है.

Notable persons

External links

References

  1. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.48. Royal Asiatic Society, Report,1908-09. Indian Antiquity Part 29, p.189. E.I. Part 20, No. 9, pp.97-99

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