Singhandev

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Singhandev (सिंहनदेव) or Sambhu Singh or Singhandev Bamraulia, Rana of Gohad (1505 - 1518), fifth in descent from Ratanpal Bamraulia. He is consdered to be the founder of Bamraulia state of Gohad. Entered the service of the Tuar Raja Man Singh of Gwalior, and received Gohad in reward for his services in 1505. Invested with the hereditary title of Rana and with the Royal insignia, comprising a parasol and the chamra or yak-tail. He was son of Kripal Singh, a samanta of Tomars. His childhood name was Shambhu Singh. Looking to his qualities like a tiger he was called Singhandev.

Singhandev awarded with title Rana

According to Rajputana Gazetteer, in the history of Bamraulia clan, Raja Jait Singh ruled Garh Bairath near Alwar in Rajasthan and Birandev in Tuhingarh as Jagirs offered by Tomar rulers of Delhi during eleventh century. Raja Chaharpal Dev Tomar died in battle of Tarain in 1192 and their rule at Delhi vanished, the Jat rulers left the plains and moved to remote areas in search of new grounds. The Jat rulers first settled at Bamrauli Katara village near Agra and later moved to Pachokhara in year 1367 due to differences with Mugal subedar Muneer Muhammad. [1] When they were inhabiting at village Barthara near Gohad, they established marital relations with Jat Bisotia thakurs. In the fifth generation of Ratanapala Bamraulia, Raja Man Singh Tomar awarded Singhandev the zamindari of Gohad and the title of Rana in 1505 AD.[2][3]

Sinhandev ruled in Pachokhara. Later Jats made Gohad as their permanent capital in year 1368.[4][5]

His successor

His successor was Abhay Chander or Rana Abhay Singh, Rana of Gohad (1518 - 1531)

सिंघनदेव बमरौलिया द्वारा राजा मान सिंह की युद्धों में सहायता

सन 1505 में दिल्ली सुलतान सिकन्दर लोधी ग्वालियर विजय के लिए विशाल सेना लेकर आगरा से चला. उसने ग्वालियर से 10 कोस की दूरी पर अलापुर नामक स्थान पर मोर्चा लगाया। राजा मानसिंह ने भी युद्ध की तैयारी की. दोनों सेनाओं का जौरा-अलापुर पर घमासान युद्ध हुआ. जिसमे सिकन्दर लोधी पराजित हुआ. पराजित सुलतान ने भागकर धौलपुर में शरण ली. इस युद्ध में बगथरा का जाट सरदार सिंघन देव 5000 सैनिकों की सेना लेकर राजा मान सिंह के पक्ष में सिकन्दर लोधी के विरुद्ध युद्ध करने पहुंचा.[6] सिंघन देव के नेतृत्व में जाट सेना ने सुलतान को शाही सेना से घमासान युद्ध किया. और सेना को व्यथित कर दिया। सुलतान खान जहाँ तथा ओध खां की सहायता से रण क्षेत्र से जान बचकर भागा. इसके बाद सुलतान सिकंदर लोधी ने मानसिंह के जीवित रहते ग्वालियर पर कभी आक्रमण करने का साहस नहीं किया. [7] (Ojha, p.36)

सिंघनदेव बमरौलिया द्वारा पिण्डारी दस्यु सरदार भामापौर का दमन

ग्वालियर के तोमर राजा मान सिंह (1486-1516) के शासन काल में दक्षिण के पिण्डारियों का एक डाकू दल ग्वालियर तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र टोंक, सिरोंज, कोटा छाबड़ा आदि राज्यों में लूट-पाट किया करता था, उनके सरदार का नाम भामापौर था,जो बहुत बलशाली था. ग्वालियर राजा मानसिंह ने सभी सरदारों को बुलाकर भामापौर के दमन हेतु मंत्रणा की. तब बगथरा के जाट सरदार सिंघनदेव ने भामापौर के दमन का संकल्प लिया. सिंघनदेव अपने नाना झाँझन पूरिया (झाँकरी गाँव), मैथादास गिरवां गाँव के तथा जाजिलजी बिसोटिया (तुरार खेड़ा) को साथ लेकर उस पिण्डारी दस्यु भामापौर की खोज में निकल पड़े. भामापौर को नदी किनारे बीहड़ में शिव मन्दिर में घेर लिया. उस समय वह आँखे खोज में पूजा कर रहा रहा था. सिंघन देव ने युद्ध के लिए ललकारा तो उसने ताम्रपत्र से पूरे जोर से सिंघनदेव के माथे पर वार कर दिया. जिससे सिंघन देव का माथा फुट गया. सिंघनदेव वहीँ गिर पड़े, तब मैथादास तथा जाजील जी बिसौटिया तथा झांझन दास पुरिया एक साथ भामापौर पर टूट पड़े. सिंघन देव ने फूर्ति से उठकर अपनी तलवार से भामापौर का सर धड़ से अलग कर दिया. भामापौर के मारे जाने पर पिण्डारी लुटेरों का दल दक्षिण की ओर भाग गया. ग्वालियर राज्य अराजकता से मुक्त हो गया. सिंघनदेव की बहादुरी से प्रसन्न होकर राजा मान सिंह ने उसे एक रत्न-जड़ित तलवार भेंट कर, गोहद का राजा बनाकर राणा की उपाधि से विभूषित किया.[8] (Ojha, p.37)

गोहद राजवंश के संस्थापक - राणा सिंघन देव (1505-1518)

राणा सिंघनदेव का जन्म गोहद के समीप बगथरा गाँव में हुआ. इनका जन्म ई. सन् 1476 में होना अनुमानित है.[9] इनके पिता का नाम कृपाल सिंह था, जो ग्वालियर के तोमर राजाओं के सामंत थे.[10] कुल पुरोहित ने कृपाल सिंह के इस पुत्र का नाम शम्भू सिंह रखा. शम्भू सिंह बचपन से ही कर्मठ, शूरवीर, साहसी तथा उत्साही युवक था. वह अपनी वाकपटुता, कुशाग्र बुद्धि तथा सेवा भावना से ग्वालियर के तत्कालीन तोमर राजा मान सिंह का (1486-1516) कृपा पात्र बन गया. उनकी गणना मान सिंह के प्रमुख सामंतों में की जाती थी. उनकी आवाज बुलंद थी की युद्ध के समय जब वे शत्रु को ललकारते थे, तो शत्रु के छक्के छोट जाते थे. उनकी आवाज सिंह की दहाड़ जैसी होने से उनके साथी सरदारों में वे शम्भू सिंह के स्थान पर सिंघन देव नाम से जाने जाते थे. [11] (Ojha, p.49)

राणा सिंघन देव का राजतिलक :

जब सन 1505 ई. में ग्वालियर के तोमर राजा मान सिंह ने राणा सिंघनदेव को गोहद क्षेत्र का नियमित राजा बना दिया तो समस्त जाटों ने क्षत्रिय परम्पराओं के अनुसार बगथरा गाँव में राणा सिंघनदेव का राजतिलक किया.[12] (Ojha, p.50)

गोहद दुर्ग की स्थापना :

जनश्रुति है कि बगथरा में निवास के दौरान एक दिन राणा सिंघनदेव अपने जाट सरदारों के साथ वेसली नदी के बीहड़ में शिकार खेलने गए. वहां उन्होंने गायों और एक शेर को साथ पानी पीते देखा तो उसी स्थान पर किला बनाने का निर्णय किया. उसी स्थान पर अपना निवास और राज्य सञ्चालन के लिए दुर्ग बनाने तथा स्थापित राज्य का नाम गौ-माता के नाम पर गोहद रखने का निर्णय लिया.जब शुभ मुहूर्त में दुर्ग निर्माण हेतु भूमि पूजनोपरांत नींव की खुदाई प्रारम्भ हुई तो नृसिंह भगवान की पावन प्रतिमा प्राप्त हुई बताई गयी. राणा ने नृसिंह भगवान को अपना कुल देवता स्वीकार किया तथा नृसिंह भगवान का चित्र राजचिन्ह घोषित किया. गोहद की गद्दी नृसिंह भगवान की गद्दी कही जाती है. [13] जनश्रुति यह भी है कि राणा सिंघनदेव द्वारा स्थापित राज्य 'गोहड़ी गाँव' के पास होने से इसका नाम गोहद पड़ा. (Ojha, p.93)

राणा सिंघन देव की शासन व्यवस्था :

राणा सिंघन देव ने नवीन राजवंश की नींव डाली थी, इसलिए उस समय राज्य विस्तार काम था, फिर भी राज्य विस्तार की एक व्यवस्थित योजना थी. यह उनके कुशाग्र बुद्धि की परिचायक है. उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में जूझते हुए नित्य संघर्षरत रहकर गोहद राज्य का विस्तार किया. उन्होंने बगथरा गाँव में एक 'राम सागर' ताल खुदवाया तथा गोहद में नृसिंह भगवान का मंदिर बनवाया.[14](Ojha, p.52)

मूल्यांकन - राणा सिंघन देव निर्भीक, बलवान तथा साहसी था, वह अपनी प्रजा का अत्यंत प्रिय था. वह ग्वालियर के तोमर राजा का प्रमुख सामंत था. आज भी बगथरा क्षेत्र के निवासी चौपालों पर बैठकर उनकी प्रशंसा में लोकगीत गाते हैं. उन्होंने 1505 से 1518 ई. तक शासन किया. ई. सन 1518 में अल्प तक उनकी मृत्यु हो गयी.[15] (Ojha, p.52)


सुजस प्रबंध में सिंहनदेव

सुजस प्रबंध (Sujas Prabandh) के रचनाकार कवि नथन इस काव्य के प्रारंभिक चार छंदों में कवि नथन ने गोहद के कई राजाओं का स्मरण किया है. सर्वप्रथम, वह सिंहनदेव को तपस्वी, बलसाली तथा साधनारत कहता है.

External links

References

  1. Sovaran Singh Chahar, Jat-Veer Smarika, Agra, 1992, p. 41
  2. Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : Gohad ke Jaton ka Itihas(Hindi), p. 14
  3. Rajputana Gazeteer, Part-I, 1879, p. 248-249
  4. Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : Gohad ke Jaton ka Itihas(Hindi), p. 14
  5. Sovaran Singh Chahar, Jat-Veer Smarika, Agra, 1992, p. 41
  6. Diary of Rana Jai Singh, Books of Jagas
  7. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.158
  8. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.11
  9. Rana Jai Singh: Gohad Ki Dayari, Jagaon Ki Pothi
  10. Rajputana Gazetteer Part-1 , 1789, p. 248-49
  11. Jagaon Ki Pothi
  12. Jagaon Ki Pothi
  13. Rana Jai Singh: Gohad Ki Dayari
  14. Jagaon Ki Pothi
  15. Jagaon Ki Pothi

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