Suraj Bhan Dangi

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Suraj Bhan Dangi (सूरजभान डांगी) was a freedom fighter from village Beebasar in Jhunjhunu district in Rajasthan. He was a man of strong character. He fought against the exploitation of farmers by the Jagirdars of Shekhawati. Since he was fighting against the interests of Jagirdars they addressed him as daku i.e. dacoit. His influential role in the anti- aristocracy movement of the farmers and bold character has led to making of a hindi film Gulami as detailed below:

The film Ghulami based on story of Suraj Bhan Dangi

The Ghulami film

The film Gulami (1985) by Dharmendra is based on the story of Suraj Bhan Dangi and Ranjit Singh Choudhary. The character of Ranjit Singh Choudhary was played by Dharmendra and that of Suraj Bhan Dangi by Surendra Pal. The film Gulami focuses on the caste and feudal system in Rajasthan and a rebellion started by the Jats under Ranjit Singh Choudhary (Dharmendra), against the Rajput Thakur landlords. The main protagonist has to become a bandit in the eyes of the law to save the land and the honour of the hundreds of peasants, leaving his pregnant wife (Reena Roy) behind to fend for herself.

सूरजभान डांगी का जीवन परिचय

सूरजभान डांगी झुन्झुनू जिले के गाँव बीबासर का रहने वाला था । सूरजभान को दुनिया डाकू के नाम से जानती है । दरअसल उस समय सामन्त शाही की तूती बोलती थी और स्वतन्त्रता सेनानी को देशद्रोही कहा जाता था । सूरजभान ऐसा मर्द था जिसे देख कर भीमसेन पांडव का स्मरण हो जाता था । उसने सामन्त शाही के खिलाफ़ बन्दूक ऊठाई और दुष्टों के कब्जे से माल छीनकर जनता में बांटने के कारण खतरनाक डकैत कहलाने का कारण बना । वह बहुत चरित्रवान व्यक्ति था जिसने कभी गरीब को नहीं सताया ना ही पराई औरत की तरफ़ नजर ऊठाई ।

एक दिन सूरजभान फ़तेहपुर से होकर गांव जा रहा था । गारिण्डा का करीम खां उस समय जीप रखता था । पुलिस ने करीम खां की जीप ली और एक ठाकुर को लेकर बीबासर पहुंचे । करीम खां अपने को तीसमारखां समझता था सो उसने सूरजभान की पत्नी से कहा,"अरे तुम्हारे पति को समझाती नहीं । वह दादागिरी करता है । यह समझ तुम्हारा चूडा फ़ूट गया, तुम्हें लम्बी बाह की कुर्ती पहननी पडेगी ।" वह बोली, "ज्यादा बोलना महंगा पड़ जायेगा । उन्हें पकड़ने की हिम्मत है तो इस रास्ते गये हैं पकड़ लेना ।"

सिपाही और करीम खां रास्ते-रास्ते गये तो देखा कि एक खेत में रोहिडे के पेड़ के नीचे सूरजभान सो रहा था और ऊंट कांकड़ में चर रहा था । सिपाहियों की बन्दूक चलाने की हिम्मत नहीं हुई । वे जानते थे कि सूरजभान हमले में बच गया तो उनको इस धरती पर कहीं भी छुपने के लिये जगह नहीं मिलेगी यह सोचकर वे चुप-चाप खिसक लिये । सूरजभान अपने घर आया तो पत्नी ने करीम खां के बारे में बताया । सूरजभान बिना पानी पिये ही अपने साथी रामदेव कोलीडा और एक मीणा को लेकर रवाना हुआ । फ़तेहपुर में एक सिपाही ने दादागिरी की तो उसको गोली से उड़ा दिया । गारिण्डा जाकर करीम खां को आवाज लगाई । वह बाहर आया तो उसे भी गोली से उड़ा दिया । करीम खां का पुत्र भंवर खां बन्दूक लेकर निकला तो उसे भी सुख की नीन्द सुला दिया । तभी औरतें गाती हैं-

करीम खां को मार, भंवर खां नै मारयो।
बीबियां न काला वस्त्र पहना, सूरजभान दहाडो भारी दिन्यो।। [1]

सूरजभान डांगी और रणजीत सिंह चौधरी की कहानी पर आधारित धर्मेन्द्र की गुलामी फिल्म बनी है ।[2]

External links

सन्दर्भ

  1. मनसुख रणवां: राजस्थान के संत-शूरमा एवं लोक कथाएं, प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर-302001, 2010, पृ.78
  2. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998, Section 9 pp. 20

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