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View Full Version : PEEPAL – The ‘Holy’ Doctor



dndeswal
June 24th, 2006, 08:48 PM
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PEEPAL – the ‘Holy’ Doctor

In my last thread NEEM – The ‘Desi’ Pharmacy (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=15072) in this Forum, I had given a detailed account about the herbal qualities of Neem tree. The Peepal tree is another such tree – its entire components are used in various Ayurvedic medicines. The divine or holy status which this tree has gained, is perhaps due to its herbal or medicinal qualities, its cool shade, shelter to birds, its sweet fruits and many other qualities.

The following excerpts have been picked up from the booklet “Peepal” written by late Swami Omanand (http://www.jatland.com/home/Swami_Omanand_Sarswati), the great Jat leader and an Ayurvedic doctor of repute. Hope, like Neem thread, this thread would be liked by all interested.


परमपिता परमात्मा की सृष्टि में असंख्य वृक्ष अथवा जड़ी-बूटियाँ हैं जो उसने दया करके प्राणिमात्र के कल्याणार्थ उत्पन्न की हैं । अलपज्ञ होने से मानव अनेक त्रुटियां व भूल करता है और उसके फलस्वरूप अनेक दु:ख भोगता है, रोगी पड़ता है और दु:ख पाता है । आश्चर्य यह है कि इसके चारों ओर रोग की औषध होते हुए भी अपनी मूर्खता के कारण यह रोगों में फँसकर दु:ख भोगता है । पीपल भारत का एक प्रसिद्ध वृक्ष है जिससे भारत का आबाल वृद्ध वनिता सभी भली-भांति परिचित हैं । चरक, सुश्रुत और निघन्टु आदि आयुर्वेद शास्त्रों में इसका प्रयाप्त वर्णन मिलता है जिसे छोटे, बड़े, वैद्य, ग्रामीण लोग भी जानते तथा कुछ-कुछ औषध रूप में प्रयोग भी करते हैं, किन्तु पीपल अनेक रोगों के लिये तो स्वयं औषध ही नहीं, अपितु औषधालय का रूप है । इस वृक्ष का विस्तार व फैलाव तथा उंचाई बहुत होती है । वह सौ फुट से भी ऊंचा देखने में लगता है । सैकड़ों पशु व मनुष्य उसकी छाया में विश्राम कर सकते हैं । इतना अधिक इसका विस्तार व फैलाव देखने में मिलता है । भारत में तो यह सर्वत्र ही मिलता है । इसे पौराणिक भाई बहुत पवित्र और पूज्य मानते हैं तथा इसे देववृक्ष अर्थात देवताओं का वृक्ष मानते हैं इससे उनका अंधविश्वास व अंधश्रद्धा समझी जाती है किन्तु इसका एक मूल कारण है । इसमें अनेक दिव्य गुण हैं और प्राणवायु को शुद्ध करने का सबसे अधिक गुण इसमें पाया जाता है । इस कारण फुसफुस (फेफड़े) के रोगों, क्षय (तपेदिक), श्वास (दमा), कास (खांसी) तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है । आर्य (हिन्दू) लोग इसे बहुत श्रद्धा से लगाते हैं, देवता समझकर प्रतिदिन जल सींचते हैं । इसीलिये जोहड़ों और घरों के अंदर तथा बाहर,ग्रामों के आस-पास तथा खेतों तक में सर्वत्र बड़ी भारी संख्या में लगाये जाते हैं ।

पश्चिमी यूरोप के देशों में तो यह प्रसिद्धि है कि भारत देश में पीपल का ऐसा वृक्ष है जो प्राणवायु (आक्सीजन) दिन तथा रात में भी प्रदान करता है, जबकि सभी वृक्ष रात्रि में विषैला घातक वायु (कार्बन) छोड़ते हैं । इसीलिये गीता में यह लिखा है:

अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: ।
गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि: ॥

जिस प्रकार देवर्षियों में नारद और गन्धर्वों में चित्ररथ तथा सिद्धों में कपिल मुनि श्रेष्ठतम हैं उसी प्रकार सब वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) सर्वश्रेठ है । इसलिये धर्मवृक्ष, शुचिद्रुम:, याज्ञिक:, श्रीमान और पवित्रक: आदि अनेक नाम पीपल वृक्ष के निघन्टुवों में दिये गए हैं । महात्मा बुद्ध ने भी इस पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी । इसी कारण इसका नाम बोधिवृक्ष भी है । पीपल एक यज्ञीय वृक्ष है, अर्थात इसका प्रत्येक भाग सभी प्रणियों के लिये और विशेष रूप से मानव के कल्याणार्थ है व उपादेय है । इसकी छाया बहुत शीतल और सुखद है । पत्र कोमल, चिकने हरे रंग के आंखों को सुहाने लगते हैं । फल बहुत लगते हैं और पकने पर मधुर तथा स्वादु लगते हैं, औषध के रूप में इसके पत्र, त्वक, फल, बीज, दुग्ध (लाख), लकड़ी आदि इसका प्रत्येक अंग व अंश हितकर है । इसकी लकड़ियां भी यज्ञ में समिधा के रूप में काम आती हैं । पीपल वृक्ष की छोटी-छोटी तथा पतली-पतली लकड़ियां स्वयं सूख कर झड़तीं रहतीं हैं । दैनिक यज्ञ करने वाले को तोड़ने की आवश्यकता नहीं रहती, पीपल के वृक्ष के नीचे पड़ी हुई मिल जातीं हैं । पीपल वृक्ष की आयु भी लम्बी होती है । यह लम्बे समय तक सुख देने वाला है, सर्व हितकर है । इसीलिये देववृक्ष, यज्ञीयवृक्ष और पूज्य वृक्ष माना जाता है, इसी कारण आर्य जाति का सर्वप्रिय वृक्ष है । चैत्यद्रुम (मंदिरों का वृक्ष) विप्र:, शुभद: और मंगल्य: आदि इसके नाम हैं । एक और नाम है केशवावास: अर्थात श्रीकृष्ण जी महाराज केशव, इस के नीचे आवास करते रहते थे । हाथी का प्रिय भोजन होने से गजाशन: गजभक्षक: आदि भी नाम पीपल के हैं ।

पीपल की छाल

पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है । इसके पत्ते आनुमौलिक होते हैं । सुजाक में छाल प्रयुक्त होती है । इसकी छाल के अंदर फोड़े को पकाने के तत्व भी होते हैं । इसकी छाल का शीत निर्यास (घनसत्व) गीली खुजली को दूर करने के लिए मिलाया जाता है । इसकी छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है ।

इसकी ताजी जलाई हुई छल की राख को पानी में घोल कर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी दूर हो जाती है । इसकी छाल का चूर्ण भगन्दर रोग में उपयोगी पाया गया है । लंका में इसकी छाल का रस दांत मसूडों की पीड़ा को दूर करने के लिए कुल्ले करने में बरता जाता है ।

पीपल के सूखे फल श्वास (दमे) के रोग को दूर करने के लिए अच्छे सिद्ध हुए हैं । १५ दिन में ही लाभ हो जाता है । फलों के प्रयोग से स्त्रियों का बांझपन नष्ट होता है और सन्तानोत्पत्ति होती है।

दन्तरोग और पीपल

पीपल की दातुन प्रतिदिन करने से सभी को लाभ होता है । किन्तु पित्त प्रकृति के व्यक्ति को पीपल की दातुन विशेष रूप से हितकर है । पीपल की दातुन प्रतिदिन करने से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं जैसे दांतों को कीड़ा लगना, मसूड़ों का सूजन (शोथ), इनसे पीप व खून निकलना, दांतों का मैला होना, दांतों की पीड़ा और दांतों का हिलना आदि सभी रोग दूर होते हैं । पीपल की दातुन करने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है । सब रोग दूर होकर दृष्टि भी तेज होती है ।

दन्तमञ्जन

पीपल की अंतरछाल अथवा जड़ की छाल लेकर छाया में सुखा लें, फिर कपड़छान कर लें । इस एक छटांक चूर्ण में १ तोला सैंधा लवण मिलाकर सुरक्षित रखें । इसको दन्तमंजन के समान प्रयोग करें । इसके प्रयोग से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं और दांतों की जड़ें मजबूत होकर इनकी आयु बढ़ जाती है । दांत अधिक समय तक टिके वा जमे रहते हैं । इसी मंजन को बिना लवण के केवल छाल मात्र से बनाया जा सकता है । यह दन्त रोगों के लिए अच्छा मंजन है ।

पीपल के फल

पीपल के फल (पीपल वटी) को इकट्ठा करके छाया में सुखा लें और सुरक्षित रखें । ताजे फल अनेक रोगों में बहुत ही लाभदायक होते हैं । किन्तु ये सदैव ताजे नहीं मिलते, अत: सब ऋतुओं में प्रयोगार्थ सुखाकर रख लें ।

जिस व्यक्ति के मुख में दुर्गन्ध रहती हो अथवा मुख का स्वाद किसी समय भी ठीक न रहता हो तो उसके लिए पीपल के फलों को खाने से बहुत लाभ होता है । अरुचि मुख का दुस्वाद व विरसता ठीक हो जाते हैं । जिस ऋतु में पीपल के फल ताजा मिलते हों तो रोगी को प्रतिदिन दो तीन तोले प्रात: सायं खाने चाहियें । ताजा न मिलें तो छाया में सुखाये हुए ६ माशा प्रात: सायं रोगी को एक-दो मास खाने चाहियें, इससे पूर्ण लाभ होगा ।
....continued
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dndeswal
June 24th, 2006, 08:55 PM
...Continued from previous post

जहां मुख की नीरसता और दुर्घन्ध दूर होगी वहां शरीर की दाह (जलन) ऊष्णता दूर होकर शरीर पुष्ट होगा । छाती की जलन को दूर करने के लिए पीपल के फलों का उपयोग बहुत ही लाभप्रद है ।

पीपल का घनसत्व

पीपल का घनसत्व हृदय के तथा अन्य रोगों को दूर करने वाला है । पीपल का पंचांग अर्थात पीपल के पत्ते, जड़ की छाल, फल, पीपल की दाढी व पीपल की कोंपलें सब सम भाग ले लेवें । इन सब को कूटकर सोलह गुणा जल में किसी शुद्ध मिट्टी के बर्तन में भिगो देवें । २४ घंटे तक पड़ा रहने दें और किसी कली वाले व मिट्टी के पात्र में पकायें, जब एक-चौथाई जल रह जाये और तीन-चौथाई जल जाये, तो उतारकर मल छान लें, फिर इसे मन्दाग्नि पर पकायें । गाढ़ा होने पर उतार लें और सुरक्षित रखें, यही पीपल का सत्व है । यह अनेक रोगों को दूर करने वाली अमृत तुल्य औषध व रसायन है । इस की मात्रा दो रत्ती से एक माशा तक है । इसकी गोलियां हृदय रोग को दूर करने के लिए बहुत ही अच्छी औषध है । इसका सेवन पीपल के अर्क, शर्बत व मधु के साथ करायें, बहुत शीघ्र और अत्यधिक लाभ होगा ।

इसी घनत्व का अनेक रोगों पर देश काल पात्र देखकर चतुर वैद्य अनेक प्रयोग करते हैं । इस सत्व में पीपल के सभी गुण विद्यमान होते हैं क्योंकि यह पीपल का सार है, इसमें मूल पदार्थ के सभी गुण होते हैं । अकेले इस तत्व के प्रयोग से भी बहुत लाभ होते हैं । अन्य औषधियों के साथ मिलाकर भी प्रयोग करते हैं । इसके बनाते समय यह सावधानी रखनी चाहिये के इसे मन्दाग्नि पर पकाना चाहिये तथा इसमें जल का भाग नहीं रहना चाहिये, नहीं तो जलांश रहने से यह सड़ जाता है । इसके सत्व में विशेष गुण यह है कि यह कोमल से कोमल प्रकृति के व्यक्तियों को निर्भय तथा निशंक होकर सेवन करा सकते हैं । एक वर्ष के बालक से लेकर सौ वर्ष के वृद्ध तक किसी को भी सेवन करायें, कोई हानि होने की संभावना नहीं । यहां तक कि गर्भवती स्त्रियों को भी निर्भयतापूर्वक इसका सेवन कराया जा सकता है अर्थात आबाल वृद्ध वनिता सभी के लिए यह हितकारी है । सत्व होने से मात्रा भी इसकी थोड़ी ही दी जाती है । सोने चाँदी के वर्क लगाकर इसकी छोटी बड़ी गोली भी बनाई जा सकती है । इस प्रकार यह साधारण और सस्ती औषध भी निर्धनों के लिए मूल्यवान रसायनों से बढकर है ।

नेत्र रोग

१. पीपल का दूध आंखों के अनेक रोगों को दूर करता है । पीपल के पत्ते व शाखा [टहनी] तोड़ने से जो दूध निकलता है उसे थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन सलाई से लगाना चाहिये । इससे आंख से पानी व मल (ढीड) बहना, फोला, आंख का दुखना, लाली आदि रोग दूर होते हैं ।

२. पीपल के कोमल पत्तों का रस १ तोला, मेंहदी के ताजे पत्तों का रस १ तोला - इन दोनों को मिला लें तथा थोड़ा सा मधु (शहद) इसमें मिला दें और सलाई से आँखों में डालें तो आंख दुखना, लाली, फोला आदि रोग इसके सेवन से दूर होते हैं ।

३. कभी आंख में चोट लग जाये और चोट के कारण आंख में सख्त पीड़ा हो, लाली हो, यहां तक कि आंख खुलती न हो और आंख से दीखता भी न हो तो पीपल के पत्तों का रस तथा मेंहदी के पत्तों का रस समभाग लेकर मिला लें और उसमें रूई के एक साफ फोहे को खूब अच्छी प्रकार से भिगोकर गोघृत एक कटोरी में डाल कर इसमें कुछ देर तक इस फोहे को पकायें तथा आँखों पर बांधकर रोगी को लिटा दें । केवल दो-तीन बार इस प्रकार ऐसे फोहे को बांधने से रोगी की आंख पूर्ववत सर्वथा स्वस्थ हो जाती है । रोगी के नेत्र में कितनी ही पीड़ा हो इस फोहे को बांधने से पीड़ा दूर होकर रोगी सो जायेगा |

४. पीपल के पत्तों का क्वाथ बनाकर छानकर उस को पका कर गाढा कर लें, उस में समभाग शुद्ध मधु मिलाकर शीशी में सुरक्षित रखें । प्रात: सायं सलाई से इसे आंखों में लगाने से दुखती आंखें ठीक हो जातीं हैं । आंखों की लाली तथा जलन भी दूर होती है, नेत्रों को अपूर्व सुख व शान्ति की अनुभूति होती है ।

रक्त तथा चर्मरोगों पर पीपल

१. पीपल की अन्तर्छाल का क्वाथ पिलाने से सर्वप्रकार के चर्मरोग, फोड़े, फुन्सी, खुजली, दाद नष्ट होते हैं ।

२. पीपल के बीजों का चूर्ण बारीक पीसकर ३ माशे से ६ माशे तक शहद में मिलाकर प्रात: सायं दोनों समय चटायें - इससे कुछ दिन में रक्त शुद्ध होकर रक्त सम्बंधी सभी रोग दूर होकर रोगी स्वस्थ होगा ।

३. पीपल के कोमल पत्ते व कोपलें दो तोले लेकर आध सेर जल में उबालकर क्वाथ बनायें, १ छंटांक शेष रहने पर उतारकर छान लें और इसमें १ तोला शहद मिलाकर प्रात: सांय रोगी को पिलायें । १ मास तक पिलाने से रक्त शुद्ध हो जायेगा और रक्त के सभी फोड़े, फुन्सी, दाद इससे दूर होंगे ।

उदर रोगों पर

आजकल शिक्षित वर्ग में कब्ज व कोष्ठबद्धता का रोग बहुत पाया जाता है क्योंकि वे प्राय: व्यायाम व शारीरिक श्रम नहीं करते, बैठे या लेटे रहते हैं । खाया हुआ ठीक नहीं पचता और आंतें निर्बल होकर कब्ज से शिकार हो जाते हैं । पीपल के पत्ते, फल तथा छाल सभी ही कोष्ठबद्धता को दूर करते हैं।

१. पीपल के फलों को लेकर छाया में सुखा लें । आधा पाव फल में आधा पाव देसी खांड मिला लें, इन्हें कपड़ छान कर लें सुरक्षित रखें । एक तोला गाय के गर्म दूध से साथ लेवें । प्रात:काल शौच खुलकर आयेगा तथा शरीर में बल शक्ति की भी वृद्धि होगी । पीपल के फल पुष्टिकारक भी हैं ।

२. पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर कूटकर कपड़छान कर लें और गुड़ में जंगली बेर से गर्म दूध के साथ लेने से कब्ज दूर होगा ।

उदरशूल : पीपल के दो तीन पत्ते कूटकर गुड़ में गोली बनाकर खिलाकर गर्म जल व गर्म गोदुग्ध पिलाने से उदर पीड़ा दूर होती है ।

वमन : पेट की गड़बड़ के कारण अथवा अंदर किसी कारण से वमन होता है तो पीपल की छाल को जलाकर उसके कोयलों को जल में बुझायें और निथरे हुये जल को रोगी को पिलाने से वमन व कै बंद हो जायेगी । इससे तृषा (प्यास) भी बुझ जाती है ।

कृमिरोग : पीपल के पत्तों व पंचांग की गुड़ में बनाई गईं गोलियां प्रात: सायं दो तीन गोलियां सौंफ व बिडंग आसव के साथ देवें तो कुछ ही दिन में कृमि मर कर सब निकल जायेंगे ।



पीपल और सन्तानोपत्ति

शमीमश्वत्थ आरूढस्तत्र पुंसवनं कृतम् ।
तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत्स्त्रीष्वा भरामसि ॥
. . . (अथर्ववेद कां ६, सू. ११ मं. १)

अर्थ: जो अश्वत्थ (पीपल) का वृक्ष शमी वृक्ष पर उत्पन्न होकर आरूढ रहता है अर्थात् जो पीपल का वृक्ष शमी वृक्ष के ऊपर उगता है और उसी पर बड़ा होकर रहता है, चढा रहता है, उस पर ही सवार रहता है (जिसकी जड़ भूमि में नहीं जाती), वह पीपल का वृक्ष पुंसत्व शक्ति देने वाला होता है । वह पुत्रदा अर्थात् पुत्रोपन्न करने वाला होता है। इसका औषध रूप में सेवन किया जाये तो पुत्र की प्राप्ति करवाता है । ऐसे पीपल के फल, छाल, पत्र और दाढी, बल्कल आदि का स्त्रियों को सेवन कराने से उनका बांझपन दूर होता है और पुत्र की प्राप्ति होती है । इससे अधिक पुत्रदा औषधि क्या होगी जिसका प्रतिपादन स्वयं वेद भगवान करता है ।

dndeswal
June 24th, 2006, 09:02 PM
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.....Continued from previous post

वन्ध्यत्व का मुख्य कारण तो स्त्रियों के मासिक धर्म की गड़बड़ी ही है इसलिये इसकी चिकित्सा सर्वप्रथम वैद्य को करनी चाहिये । कुमार्यासव और अशोकारिष्ट के लगातर सेवन से मासिक धर्म तथा श्वेतप्रदरादि रोग दूर होते हैं । जब मासिक धर्म ठीक हो जाये तो तत्पश्चात निम्न योग का प्रयोग करें.

१. योग: पीपल की दाढी, अश्वगंध नागौरी, शतावर, कौंच के बीज, गोखरू, विधारा के बीज (शुद्ध), पीपल बड़ा - सब एक एक तोला लेकर कूटकर कपड़छान कर लें तथा सब के समभाग अर्थात ७ तोले खांड देशी व मिश्री मिला लें । मात्रा - ३ माशे से ६ माशे तक गाय के दूध से साथ प्रात:काल सायंकाल दोनों समय सेवन करें, पुरुष को भी सेवन करायें । मासिक धर्म की निवृत्ति के ११ दिन पश्चात सन्तानोत्पत्ति के लिए शास्त्रविधि से अनुसार गर्भाधान करें।

२. पीपल की दाढी १० तोले तथा अश्वगंध नागौरी १० तोले तथा २० तोले देशी खांड लेवें । सबको कूटकर कपड़छान कर लें । मासिक धर्म से निवृत्ति के पीछे दस ग्यारह दिन तक व अधिक स्त्री पुरुष दोनों सेवन करें ।

३. पीपल की जटा ५ तोले, हाथी दांत का चूर्ण आधी छ्टांक दोनों कूटकर कपड़छान कर लें । मासिक धर्म से निवृत हो स्नान करें, फिर प्रतिदिन रात्री को सोते समय ४ माशे चूर्ण गाय के दूध से साथ सेवन करें । प्रथम मास में यदि सफलता न मिले तो फिर इसी औषध का दूसरे मास इसी प्रकार सेवन करायें, अवश्य ही सफलता मिलेगी ।

४. पीपल के सूखे फलों के चूर्ण की फांकी कच्चे दूध से साथ देने से स्त्री का बांझपन रोग मिट जाता है । किन्तु यह औषध ऋतुधर्म के पश्चात १४ दिन तक देनी चाहिये ।

मासिक धर्म की गड़बड़ : (१) मुरमुखी (बीजबोल) ६ माशे, हाऊबेर ६ माशे - इन दोनों को जल में उबालकर छानकर २ तोला गुड़ मिलाकर पिलायें । एक-दो बार के पिलाने से मासिक धर्म खुल जायेगा ।

(२) सौंफ ३ माशे, हाऊबेर ३ माशे को जल में क्वाथ करें और इसमें २ तोले गुड़ का शर्बत मिलाकर पिलायें । केवल दो तीन बार के पिलाने से मासिक धर्म खुल जायेगा ।

अन्त में :

यत्राश्वत्थ न्यग्रोधा महावृक्षा: शिखण्डिन: ।
तत्परेताप्सरस: प्रतिबुद्धा अभूतन ॥
. . (अथर्ववेद ४ कां, ३७ सू. ४ मं)

अर्थ : जिन स्थानों पर पीपल, बड़ आदि ऊंचे ऊंचे वृक्ष होते हैं वहां अश्वारोही बलवान योद्धा होते हैं । पीपल के, बड़ के वृक्षों के नीचे उनके अश्व तथा वे स्वयं भी विश्राम करके सब रोगों से मुक्त रहते हैं । आकाश में दूषित वायु से उत्पन्न होने वाले छूत के रोगों, प्लेग, चेचक, हैजा, ज्वर आदि से वे सुरक्षित रहते हैं क्योंकि वे "प्रतिबद्धा" ज्ञानी जागरूक रहने वाले होते हैं। वे इन पीपल, वट आदि महावृक्षों के गुणों से परिचित होकर इनको औषध रूप में सेवन करते हैं तथा इन महावृक्षों की छाया, फल, फूल, दूध, पत्तों की शक्तिशाली औषध का सेवन करके मिरगी, अपस्मार, पागलपन आदि रोगों से बचे रहते हैं तथा विद्वान प्रतिबद्ध जागरूक होकर सुखी रहते हैं ।
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http://www.4to40.com/images/earth/geography/trees/peepal_fig.gif

Some Internet links about Peepal tree:

http://www.kamat.com/indica/culture/plant_worship/ashwath.htm (http://www.kamat.com/indica/culture/plant_worship/ashwath.htm)

http://www.4to40.com/earth/geography/index.asp?article=earth_geography_trees (http://www.4to40.com/earth/geography/index.asp?article=earth_geography_trees)

http://www.gurjari.net/ico/Mystica/html/peepal_tree.htm (http://www.gurjari.net/ico/Mystica/html/peepal_tree.htm)

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sjakhars
June 26th, 2006, 10:39 PM
Very nice information Deswal sir.
Informative and useful.

downtoearth
June 27th, 2006, 11:00 AM
deswal sir,,, thanx a lot,,,,,,,,,, mein too peepal ney nuey laya karta............. ek cheez aur batau....... peepal aur bard to koi farak howey sey ney ?:)

dndeswal
June 27th, 2006, 02:11 PM
deswal sir,,, thanx a lot,,,,,,,,,, mein too peepal ney nuey laya karta............. ek cheez aur batau....... peepal aur bard to koi farak howey sey ney ?:)

Yes, there is great difference between 'peepal' and 'badd' (Banyan Tree). My next thread in this section would be on Badd tree, which is actually considered a rural sanitorium. This tree too has wonderful herbal qualities which have been explained in ancient Ayurvedic books. There has also been an ancient tradition of planting 5 Badd trees at one place, which is called 'Panchvati'. Details will be given in my next thread.
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amitenggmalik
June 27th, 2006, 11:29 PM
sir ji
peepal hi aisa tree hai jo raat ko bhi oxygen chodhta hai

devdahiya
June 29th, 2006, 06:47 PM
Indeed a very informative thread.Thanks for such a detailed description Deswal ji.

downtoearth
June 29th, 2006, 06:59 PM
Yes, there is great difference between 'peepal' and 'badd' (Banyan Tree). My next thread in this section would be on Badd tree, which is actually considered a rural sanitorium. This tree too has wonderful herbal qualities which have been explained in ancient Ayurvedic books. There has also been an ancient tradition of planting 5 Badd trees at one place, which is called 'Panchvati'. Details will be given in my next thread.
. deswal sir thanx for the infoo,,,,,,,,,,,,, waiting for ur new thread ,,, taawli gerooo:)

monikadahiya
July 2nd, 2006, 04:51 AM
Deswal sir,
Thank you so much for this information :)
Do you have any idea about aloe vera leaf??I know its extremely good for skin . le to aai magar kya karna hai uska pata nahi :p ... If u have any info please do share.

dndeswal
July 2nd, 2006, 12:53 PM
Deswal sir,
Thank you so much for this information :)
Do you have any idea about aloe vera leaf??I know its extremely good for skin . le to aai magar kya karna hai uska pata nahi :p ... If u have any info please do share.
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This plant is found mostly in Africa, Central America and southern parts of United States – it is a cactus variety. Native people knew its medicinal value and in Mexico, the locals still use it for skin diseases.

If you have green (or dry) leaves of this plant, cut it into tiny pieces and put in a metal pot (Pateela). Mix about one litre of water (or a little more, depends on quantity) and thoroughly boil it on heat. After being cooled, squeeze the leaves in the same pot - the same way as we prepare the raita of bathua. Don’t throw the left-over water or the squeezed one – squeezed leaves may be thrown in dustbin. Pour this water into a glass-bottle (beware - not a plastic bottle). The bottle can be put in a refrigerator also. Apply this herbal-mix water on your body skin twice daily.

For some information on this plant, see the following web-links:

http://en.wikipedia.org/wiki/Aloe_vera (http://en.wikipedia.org/wiki/Aloe_vera)

http://www.aloeverabenefits.com/what-is-in-aloe-vera.html (http://www.aloeverabenefits.com/what-is-in-aloe-vera.html)
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monikadahiya
July 3rd, 2006, 08:54 PM
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This plant is found mostly in Africa, Central America and southern parts of United States – it is a cactus variety. Native people knew its medicinal value and in Mexico, the locals still use it for skin diseases.

If you have green (or dry) leaves of this plant, cut it into tiny pieces and put in a metal pot (Pateela). Mix about one litre of water (or a little more, depends on quantity) and thoroughly boil it on heat. After being cooled, squeeze the leaves in the same pot - the same way as we prepare the raita of bathua. Don’t throw the left-over water or the squeezed one – squeezed leaves may be thrown in dustbin. Pour this water into a glass-bottle (beware - not a plastic bottle). The bottle can be put in a refrigerator also. Apply this herbal-mix water on your body skin twice daily.

For some information on this plant, see the following web-links:

http://en.wikipedia.org/wiki/Aloe_vera (http://en.wikipedia.org/wiki/Aloe_vera)

http://www.aloeverabenefits.com/what-is-in-aloe-vera.html (http://www.aloeverabenefits.com/what-is-in-aloe-vera.html)
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Thanks a lot for the information Deswal sir!!!:)

sunitahooda
July 6th, 2006, 01:36 PM
Deswal Sir....abhi maine Part-1 hi padha hai....bohot interesting hai, jaisa maine kaha tha ki fursat me hi padhungi, kyunki gyanvardhak vishay ko mai aaram se padhtihoon, mujhe nahi pata tha ki Peepal ki bhi daatun ki jaa sakti hai,pata nahi taste kaisa hoga par try karungi, mai to iss vriksh se bhoot-pret ki kahaniyan juddi honey se pass se bhi darr kar nikalti thi....aapki thread padh kar mera darr kuchh kum hua:) Aap jitni mehnat koye na kar sakta....Hats off to you!

yashmalik
July 7th, 2006, 11:12 AM
Thats why i can see a peepal or two in every village of haryana and Delhi. Peepal is incomparable just like neem.

rajendersingh
July 8th, 2006, 10:19 PM
dear all,
its well known fact that peepal is worshiped like gods even today..reasons could be same as given.i have copy of gazzetier of rohatak distict of year..i think about 1884... in this document there is a chapter about vagetation in rohtak district at that time.peepal is also mentioned in that .about peepal,it is written that no hindu uses peepal as firewood for any occasion.it is only in muslims that peepal is used as firewood .the surperising thing is that ,it is mentioned,that as a exception there is one subcaste in jats who uses peeal as firewood like muslims. the name of that jat gotra is given .its is a prominant gotra of jats near delhi. and many a time we do hear different strories about their origin and how they became jats.i do not want to name that gotra as it will not be in good taste at a public plate form.

monikadahiya
July 9th, 2006, 03:01 AM
dear all,
its well known fact that peepal is worshiped like gods even today..reasons could be same as given.

Yes rajender ji, i've heard ki peepal ke ped mein krishan bhagwan ka vaas hota hai.. :)

trueblueindian
September 25th, 2006, 01:28 AM
deswal sahab the information you shared here is really very vital, thx a lot.

sadly the old sanskrit/technical words used here for preparing medicene are lill bit confusing, can u please translate them in english along wid grammage.

also does someone have an idea about a vaidh around delhi(there are lot of jhola chaaps or pakhandis in this trade) who practices ayurvaid wid gud knowlidge, some of medicens mentioned here can be of great help to me, an info here will be highly apreciated.

dndeswal
September 28th, 2006, 09:51 PM
deswal sahab the information you shared here is really very vital, thx a lot.

sadly the old sanskrit/technical words used here for preparing medicene are lill bit confusing, can u please translate them in english along wid grammage.

also does someone have an idea about a vaidh around delhi(there are lot of jhola chaaps or pakhandis in this trade) who practices ayurvaid wid gud knowlidge, some of medicens mentioned here can be of great help to me, an info here will be highly apreciated.

For receiving free Ayurvedic literature in English by post, please write to:

Secretary/ Joint Secretary,
Department of Ayurveda, Yoga & Naturopathy,
Unani, Siddha and Homeopathy (AYUSH)
Indian Red Cross Society Building,
Red Cross Road,
New Delhi-110001.
Phone: 23715564/ 23327187
Fax: 23327660/ 23731846
E-mail : sec-ism@nic.in, jsismh@nic.in
Website: www.indianmedicine.nic.in (http://www.indianmedicine.nic.in)

It is better to visit the place and pick up the English material personally.
.

trueblueindian
October 3rd, 2006, 01:53 PM
For receiving free Ayurvedic literature in English by post, please write to:

Secretary/ Joint Secretary,
Department of Ayurveda, Yoga & Naturopathy,
Unani, Siddha and Homeopathy (AYUSH)
Indian Red Cross Society Building,
Red Cross Road,
New Delhi-110001.
Phone: 23715564/ 23327187
Fax: 23327660/ 23731846
E-mail : sec-ism@nic.in, jsismh@nic.in
Website: www.indianmedicine.nic.in (http://www.indianmedicine.nic.in)

It is better to visit the place and pick up the English material personally.
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thx very much DND ji, picking up a copy wont be a problem. will do that today only.