dndeswal
June 24th, 2006, 08:48 PM
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PEEPAL – the ‘Holy’ Doctor
In my last thread NEEM – The ‘Desi’ Pharmacy (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=15072) in this Forum, I had given a detailed account about the herbal qualities of Neem tree. The Peepal tree is another such tree – its entire components are used in various Ayurvedic medicines. The divine or holy status which this tree has gained, is perhaps due to its herbal or medicinal qualities, its cool shade, shelter to birds, its sweet fruits and many other qualities.
The following excerpts have been picked up from the booklet “Peepal” written by late Swami Omanand (http://www.jatland.com/home/Swami_Omanand_Sarswati), the great Jat leader and an Ayurvedic doctor of repute. Hope, like Neem thread, this thread would be liked by all interested.
ॐ
परमपिता परमात्मा की सृष्टि में असंख्य वृक्ष अथवा जड़ी-बूटियाँ हैं जो उसने दया करके प्राणिमात्र के कल्याणार्थ उत्पन्न की हैं । अलपज्ञ होने से मानव अनेक त्रुटियां व भूल करता है और उसके फलस्वरूप अनेक दु:ख भोगता है, रोगी पड़ता है और दु:ख पाता है । आश्चर्य यह है कि इसके चारों ओर रोग की औषध होते हुए भी अपनी मूर्खता के कारण यह रोगों में फँसकर दु:ख भोगता है । पीपल भारत का एक प्रसिद्ध वृक्ष है जिससे भारत का आबाल वृद्ध वनिता सभी भली-भांति परिचित हैं । चरक, सुश्रुत और निघन्टु आदि आयुर्वेद शास्त्रों में इसका प्रयाप्त वर्णन मिलता है जिसे छोटे, बड़े, वैद्य, ग्रामीण लोग भी जानते तथा कुछ-कुछ औषध रूप में प्रयोग भी करते हैं, किन्तु पीपल अनेक रोगों के लिये तो स्वयं औषध ही नहीं, अपितु औषधालय का रूप है । इस वृक्ष का विस्तार व फैलाव तथा उंचाई बहुत होती है । वह सौ फुट से भी ऊंचा देखने में लगता है । सैकड़ों पशु व मनुष्य उसकी छाया में विश्राम कर सकते हैं । इतना अधिक इसका विस्तार व फैलाव देखने में मिलता है । भारत में तो यह सर्वत्र ही मिलता है । इसे पौराणिक भाई बहुत पवित्र और पूज्य मानते हैं तथा इसे देववृक्ष अर्थात देवताओं का वृक्ष मानते हैं इससे उनका अंधविश्वास व अंधश्रद्धा समझी जाती है किन्तु इसका एक मूल कारण है । इसमें अनेक दिव्य गुण हैं और प्राणवायु को शुद्ध करने का सबसे अधिक गुण इसमें पाया जाता है । इस कारण फुसफुस (फेफड़े) के रोगों, क्षय (तपेदिक), श्वास (दमा), कास (खांसी) तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है । आर्य (हिन्दू) लोग इसे बहुत श्रद्धा से लगाते हैं, देवता समझकर प्रतिदिन जल सींचते हैं । इसीलिये जोहड़ों और घरों के अंदर तथा बाहर,ग्रामों के आस-पास तथा खेतों तक में सर्वत्र बड़ी भारी संख्या में लगाये जाते हैं ।
पश्चिमी यूरोप के देशों में तो यह प्रसिद्धि है कि भारत देश में पीपल का ऐसा वृक्ष है जो प्राणवायु (आक्सीजन) दिन तथा रात में भी प्रदान करता है, जबकि सभी वृक्ष रात्रि में विषैला घातक वायु (कार्बन) छोड़ते हैं । इसीलिये गीता में यह लिखा है:
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: ।
गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि: ॥
जिस प्रकार देवर्षियों में नारद और गन्धर्वों में चित्ररथ तथा सिद्धों में कपिल मुनि श्रेष्ठतम हैं उसी प्रकार सब वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) सर्वश्रेठ है । इसलिये धर्मवृक्ष, शुचिद्रुम:, याज्ञिक:, श्रीमान और पवित्रक: आदि अनेक नाम पीपल वृक्ष के निघन्टुवों में दिये गए हैं । महात्मा बुद्ध ने भी इस पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी । इसी कारण इसका नाम बोधिवृक्ष भी है । पीपल एक यज्ञीय वृक्ष है, अर्थात इसका प्रत्येक भाग सभी प्रणियों के लिये और विशेष रूप से मानव के कल्याणार्थ है व उपादेय है । इसकी छाया बहुत शीतल और सुखद है । पत्र कोमल, चिकने हरे रंग के आंखों को सुहाने लगते हैं । फल बहुत लगते हैं और पकने पर मधुर तथा स्वादु लगते हैं, औषध के रूप में इसके पत्र, त्वक, फल, बीज, दुग्ध (लाख), लकड़ी आदि इसका प्रत्येक अंग व अंश हितकर है । इसकी लकड़ियां भी यज्ञ में समिधा के रूप में काम आती हैं । पीपल वृक्ष की छोटी-छोटी तथा पतली-पतली लकड़ियां स्वयं सूख कर झड़तीं रहतीं हैं । दैनिक यज्ञ करने वाले को तोड़ने की आवश्यकता नहीं रहती, पीपल के वृक्ष के नीचे पड़ी हुई मिल जातीं हैं । पीपल वृक्ष की आयु भी लम्बी होती है । यह लम्बे समय तक सुख देने वाला है, सर्व हितकर है । इसीलिये देववृक्ष, यज्ञीयवृक्ष और पूज्य वृक्ष माना जाता है, इसी कारण आर्य जाति का सर्वप्रिय वृक्ष है । चैत्यद्रुम (मंदिरों का वृक्ष) विप्र:, शुभद: और मंगल्य: आदि इसके नाम हैं । एक और नाम है केशवावास: अर्थात श्रीकृष्ण जी महाराज केशव, इस के नीचे आवास करते रहते थे । हाथी का प्रिय भोजन होने से गजाशन: गजभक्षक: आदि भी नाम पीपल के हैं ।
पीपल की छाल
पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है । इसके पत्ते आनुमौलिक होते हैं । सुजाक में छाल प्रयुक्त होती है । इसकी छाल के अंदर फोड़े को पकाने के तत्व भी होते हैं । इसकी छाल का शीत निर्यास (घनसत्व) गीली खुजली को दूर करने के लिए मिलाया जाता है । इसकी छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है ।
इसकी ताजी जलाई हुई छल की राख को पानी में घोल कर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी दूर हो जाती है । इसकी छाल का चूर्ण भगन्दर रोग में उपयोगी पाया गया है । लंका में इसकी छाल का रस दांत मसूडों की पीड़ा को दूर करने के लिए कुल्ले करने में बरता जाता है ।
पीपल के सूखे फल श्वास (दमे) के रोग को दूर करने के लिए अच्छे सिद्ध हुए हैं । १५ दिन में ही लाभ हो जाता है । फलों के प्रयोग से स्त्रियों का बांझपन नष्ट होता है और सन्तानोत्पत्ति होती है।
दन्तरोग और पीपल
पीपल की दातुन प्रतिदिन करने से सभी को लाभ होता है । किन्तु पित्त प्रकृति के व्यक्ति को पीपल की दातुन विशेष रूप से हितकर है । पीपल की दातुन प्रतिदिन करने से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं जैसे दांतों को कीड़ा लगना, मसूड़ों का सूजन (शोथ), इनसे पीप व खून निकलना, दांतों का मैला होना, दांतों की पीड़ा और दांतों का हिलना आदि सभी रोग दूर होते हैं । पीपल की दातुन करने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है । सब रोग दूर होकर दृष्टि भी तेज होती है ।
दन्तमञ्जन
पीपल की अंतरछाल अथवा जड़ की छाल लेकर छाया में सुखा लें, फिर कपड़छान कर लें । इस एक छटांक चूर्ण में १ तोला सैंधा लवण मिलाकर सुरक्षित रखें । इसको दन्तमंजन के समान प्रयोग करें । इसके प्रयोग से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं और दांतों की जड़ें मजबूत होकर इनकी आयु बढ़ जाती है । दांत अधिक समय तक टिके वा जमे रहते हैं । इसी मंजन को बिना लवण के केवल छाल मात्र से बनाया जा सकता है । यह दन्त रोगों के लिए अच्छा मंजन है ।
पीपल के फल
पीपल के फल (पीपल वटी) को इकट्ठा करके छाया में सुखा लें और सुरक्षित रखें । ताजे फल अनेक रोगों में बहुत ही लाभदायक होते हैं । किन्तु ये सदैव ताजे नहीं मिलते, अत: सब ऋतुओं में प्रयोगार्थ सुखाकर रख लें ।
जिस व्यक्ति के मुख में दुर्गन्ध रहती हो अथवा मुख का स्वाद किसी समय भी ठीक न रहता हो तो उसके लिए पीपल के फलों को खाने से बहुत लाभ होता है । अरुचि मुख का दुस्वाद व विरसता ठीक हो जाते हैं । जिस ऋतु में पीपल के फल ताजा मिलते हों तो रोगी को प्रतिदिन दो तीन तोले प्रात: सायं खाने चाहियें । ताजा न मिलें तो छाया में सुखाये हुए ६ माशा प्रात: सायं रोगी को एक-दो मास खाने चाहियें, इससे पूर्ण लाभ होगा ।
....continued
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PEEPAL – the ‘Holy’ Doctor
In my last thread NEEM – The ‘Desi’ Pharmacy (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=15072) in this Forum, I had given a detailed account about the herbal qualities of Neem tree. The Peepal tree is another such tree – its entire components are used in various Ayurvedic medicines. The divine or holy status which this tree has gained, is perhaps due to its herbal or medicinal qualities, its cool shade, shelter to birds, its sweet fruits and many other qualities.
The following excerpts have been picked up from the booklet “Peepal” written by late Swami Omanand (http://www.jatland.com/home/Swami_Omanand_Sarswati), the great Jat leader and an Ayurvedic doctor of repute. Hope, like Neem thread, this thread would be liked by all interested.
ॐ
परमपिता परमात्मा की सृष्टि में असंख्य वृक्ष अथवा जड़ी-बूटियाँ हैं जो उसने दया करके प्राणिमात्र के कल्याणार्थ उत्पन्न की हैं । अलपज्ञ होने से मानव अनेक त्रुटियां व भूल करता है और उसके फलस्वरूप अनेक दु:ख भोगता है, रोगी पड़ता है और दु:ख पाता है । आश्चर्य यह है कि इसके चारों ओर रोग की औषध होते हुए भी अपनी मूर्खता के कारण यह रोगों में फँसकर दु:ख भोगता है । पीपल भारत का एक प्रसिद्ध वृक्ष है जिससे भारत का आबाल वृद्ध वनिता सभी भली-भांति परिचित हैं । चरक, सुश्रुत और निघन्टु आदि आयुर्वेद शास्त्रों में इसका प्रयाप्त वर्णन मिलता है जिसे छोटे, बड़े, वैद्य, ग्रामीण लोग भी जानते तथा कुछ-कुछ औषध रूप में प्रयोग भी करते हैं, किन्तु पीपल अनेक रोगों के लिये तो स्वयं औषध ही नहीं, अपितु औषधालय का रूप है । इस वृक्ष का विस्तार व फैलाव तथा उंचाई बहुत होती है । वह सौ फुट से भी ऊंचा देखने में लगता है । सैकड़ों पशु व मनुष्य उसकी छाया में विश्राम कर सकते हैं । इतना अधिक इसका विस्तार व फैलाव देखने में मिलता है । भारत में तो यह सर्वत्र ही मिलता है । इसे पौराणिक भाई बहुत पवित्र और पूज्य मानते हैं तथा इसे देववृक्ष अर्थात देवताओं का वृक्ष मानते हैं इससे उनका अंधविश्वास व अंधश्रद्धा समझी जाती है किन्तु इसका एक मूल कारण है । इसमें अनेक दिव्य गुण हैं और प्राणवायु को शुद्ध करने का सबसे अधिक गुण इसमें पाया जाता है । इस कारण फुसफुस (फेफड़े) के रोगों, क्षय (तपेदिक), श्वास (दमा), कास (खांसी) तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है । आर्य (हिन्दू) लोग इसे बहुत श्रद्धा से लगाते हैं, देवता समझकर प्रतिदिन जल सींचते हैं । इसीलिये जोहड़ों और घरों के अंदर तथा बाहर,ग्रामों के आस-पास तथा खेतों तक में सर्वत्र बड़ी भारी संख्या में लगाये जाते हैं ।
पश्चिमी यूरोप के देशों में तो यह प्रसिद्धि है कि भारत देश में पीपल का ऐसा वृक्ष है जो प्राणवायु (आक्सीजन) दिन तथा रात में भी प्रदान करता है, जबकि सभी वृक्ष रात्रि में विषैला घातक वायु (कार्बन) छोड़ते हैं । इसीलिये गीता में यह लिखा है:
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: ।
गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि: ॥
जिस प्रकार देवर्षियों में नारद और गन्धर्वों में चित्ररथ तथा सिद्धों में कपिल मुनि श्रेष्ठतम हैं उसी प्रकार सब वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) सर्वश्रेठ है । इसलिये धर्मवृक्ष, शुचिद्रुम:, याज्ञिक:, श्रीमान और पवित्रक: आदि अनेक नाम पीपल वृक्ष के निघन्टुवों में दिये गए हैं । महात्मा बुद्ध ने भी इस पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी । इसी कारण इसका नाम बोधिवृक्ष भी है । पीपल एक यज्ञीय वृक्ष है, अर्थात इसका प्रत्येक भाग सभी प्रणियों के लिये और विशेष रूप से मानव के कल्याणार्थ है व उपादेय है । इसकी छाया बहुत शीतल और सुखद है । पत्र कोमल, चिकने हरे रंग के आंखों को सुहाने लगते हैं । फल बहुत लगते हैं और पकने पर मधुर तथा स्वादु लगते हैं, औषध के रूप में इसके पत्र, त्वक, फल, बीज, दुग्ध (लाख), लकड़ी आदि इसका प्रत्येक अंग व अंश हितकर है । इसकी लकड़ियां भी यज्ञ में समिधा के रूप में काम आती हैं । पीपल वृक्ष की छोटी-छोटी तथा पतली-पतली लकड़ियां स्वयं सूख कर झड़तीं रहतीं हैं । दैनिक यज्ञ करने वाले को तोड़ने की आवश्यकता नहीं रहती, पीपल के वृक्ष के नीचे पड़ी हुई मिल जातीं हैं । पीपल वृक्ष की आयु भी लम्बी होती है । यह लम्बे समय तक सुख देने वाला है, सर्व हितकर है । इसीलिये देववृक्ष, यज्ञीयवृक्ष और पूज्य वृक्ष माना जाता है, इसी कारण आर्य जाति का सर्वप्रिय वृक्ष है । चैत्यद्रुम (मंदिरों का वृक्ष) विप्र:, शुभद: और मंगल्य: आदि इसके नाम हैं । एक और नाम है केशवावास: अर्थात श्रीकृष्ण जी महाराज केशव, इस के नीचे आवास करते रहते थे । हाथी का प्रिय भोजन होने से गजाशन: गजभक्षक: आदि भी नाम पीपल के हैं ।
पीपल की छाल
पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है । इसके पत्ते आनुमौलिक होते हैं । सुजाक में छाल प्रयुक्त होती है । इसकी छाल के अंदर फोड़े को पकाने के तत्व भी होते हैं । इसकी छाल का शीत निर्यास (घनसत्व) गीली खुजली को दूर करने के लिए मिलाया जाता है । इसकी छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है ।
इसकी ताजी जलाई हुई छल की राख को पानी में घोल कर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी दूर हो जाती है । इसकी छाल का चूर्ण भगन्दर रोग में उपयोगी पाया गया है । लंका में इसकी छाल का रस दांत मसूडों की पीड़ा को दूर करने के लिए कुल्ले करने में बरता जाता है ।
पीपल के सूखे फल श्वास (दमे) के रोग को दूर करने के लिए अच्छे सिद्ध हुए हैं । १५ दिन में ही लाभ हो जाता है । फलों के प्रयोग से स्त्रियों का बांझपन नष्ट होता है और सन्तानोत्पत्ति होती है।
दन्तरोग और पीपल
पीपल की दातुन प्रतिदिन करने से सभी को लाभ होता है । किन्तु पित्त प्रकृति के व्यक्ति को पीपल की दातुन विशेष रूप से हितकर है । पीपल की दातुन प्रतिदिन करने से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं जैसे दांतों को कीड़ा लगना, मसूड़ों का सूजन (शोथ), इनसे पीप व खून निकलना, दांतों का मैला होना, दांतों की पीड़ा और दांतों का हिलना आदि सभी रोग दूर होते हैं । पीपल की दातुन करने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है । सब रोग दूर होकर दृष्टि भी तेज होती है ।
दन्तमञ्जन
पीपल की अंतरछाल अथवा जड़ की छाल लेकर छाया में सुखा लें, फिर कपड़छान कर लें । इस एक छटांक चूर्ण में १ तोला सैंधा लवण मिलाकर सुरक्षित रखें । इसको दन्तमंजन के समान प्रयोग करें । इसके प्रयोग से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं और दांतों की जड़ें मजबूत होकर इनकी आयु बढ़ जाती है । दांत अधिक समय तक टिके वा जमे रहते हैं । इसी मंजन को बिना लवण के केवल छाल मात्र से बनाया जा सकता है । यह दन्त रोगों के लिए अच्छा मंजन है ।
पीपल के फल
पीपल के फल (पीपल वटी) को इकट्ठा करके छाया में सुखा लें और सुरक्षित रखें । ताजे फल अनेक रोगों में बहुत ही लाभदायक होते हैं । किन्तु ये सदैव ताजे नहीं मिलते, अत: सब ऋतुओं में प्रयोगार्थ सुखाकर रख लें ।
जिस व्यक्ति के मुख में दुर्गन्ध रहती हो अथवा मुख का स्वाद किसी समय भी ठीक न रहता हो तो उसके लिए पीपल के फलों को खाने से बहुत लाभ होता है । अरुचि मुख का दुस्वाद व विरसता ठीक हो जाते हैं । जिस ऋतु में पीपल के फल ताजा मिलते हों तो रोगी को प्रतिदिन दो तीन तोले प्रात: सायं खाने चाहियें । ताजा न मिलें तो छाया में सुखाये हुए ६ माशा प्रात: सायं रोगी को एक-दो मास खाने चाहियें, इससे पूर्ण लाभ होगा ।
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