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View Full Version : HONEY – The Super Medicine



dndeswal
August 27th, 2006, 01:06 PM
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HONEY – The Super Medicine

Honey is the wonderful gift of nature. Its qualities are described in earliest known books including the Rigveda. Apart from India, other regions of the world also have the requisite knowledge about this sweet liquid. In Russian language, honey is called ‘Med’. Russian word ‘medved’ means “the honey-eater” (the wild bear/ grizzly). And ‘meditsin’ means "the honey product”. This word (‘meditsin’) was later absorbed into English as ‘medicine’

Our rural folk have more traditional knowledge about honey than our city elite. It is a common knowledge among villagers that pure Desi ghee and pure honey always carry the same selling-rate.

The following excerpts have been picked up from the book “Madhu” written by late Swami Omanand (http://www.jatland.com/home/Swami_Omanand_Sarswati), the great Jat leader and an Ayurvedic doctor of repute.

This thread is the last in this series (after NEEM (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=15072) , PEEPAL (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?p=105432#post105432), BADD (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=16022) and AAK (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=16406).)


(If you do not see Devanagari script below this line, you need to install ‘Mangal’ font on your computer. See my thread Tips for use of Hindi on your computer (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=13233) in Tech Talk (http://www.jatland.com/forums/forumdisplay.php?f=17) forum or download it from this link (http://vedantijeevan.com:9700/font.htm).)

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मधु (शहद)

परमपिता परमात्मा की कृपा से अनेक गुणकारी वस्तुऐं हमें ऐसी प्राप्त हुईं हैं जिन्हें हम अमृत नाम दे सकते हैं । जैसे मधु (शहद) जीवन में सबको अमृतपान करा देता है । यह आबाल, वृद्ध, सभी आयु वर्ग के लिए समान रूप से सुपाच्य और शक्तिवर्धक है । स्वास्थ्यप्रद होने से मधु में रोग निवारण शक्ति भी विद्यमान है । इसी कारण आयुर्वैदिक चिकित्सा पद्धति में मधु को विशेष स्थान दिया गया । भगवान ने छोटी मधुमक्खियों को जन्म दिया और उनको वह शक्ति प्रदान की कि सहस्रों फूलों से रस चूस-चूसकर उन्होंने एक स्वादिष्ट सन्तुलित आहार की रचना कर डाली । उसने जहां मधु को स्वास्थ्यवर्धक बनाया, साथ ही मधु में रोग निवारण की अद्भुत शक्ति उसने प्रदान कर डाली । शहद का रंग-रूप और गंध भी आकर्षक है । इसमें शक्तिप्रद शर्करा, अतिरिक्त लोहा, तांबा, फासफोरस, पोटाशियम, कैल्सियम सहित अनेक खनिज तत्त्वों, प्रोटीन तथा विटामिन बी एवं सी सहित कुछ अन्य विटामिनों का ऐसा विशिष्ट अनुपात डाल दिया कि विज्ञान का दम भरने वाले वैज्ञानिकों के लिए ऐसा खाद्य पदार्थ बनाना असंभव नहीं तो सहज भी नहीं है । यह कौशल परमात्मा ने विशेष रूप से मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है । इन्हीं नन्हीं-नन्हीं मधुमक्खियों द्वारा सहस्रों फूलों का रस चूसकर प्राणिमात्र के लिए कल्याणकारी औषध मधु व शहद के रूप में तैयार कर डाली ।

भारतीय भाषाओं में इसके मधु, माक्षिक, मौ, जेनतुष्प, मद्य, तेनी, आदि नाम हैं । रूसी –Med,फारसी - शहद, अगबीन । अंग्रेजी Honey, लैटिन Meil, अरबी असलुल, नहल इत्यादि ।

धन्वन्तरि निघन्टु में मधु के आठ नाम व पर्याय दिये गए हैं :

मधु क्षौद्रं तु माक्षीकं माक्षिकं कुसुमासवम् ।
पुष्पासवं सारघं च तच्च पुष्परसं स्मृतम् ॥

अर्थात् क्षौद्र, माक्षीक, माक्षिक कुसुमासव, पुष्पासव, सारघ और पुष्परस - ये मधु के पर्याय हैं ।

धन्वन्तरि निघन्टु में मधु की आठ जातियां दीं हैं । इन जातियों के भेद निम्न प्रकार से दिये हैं-

माक्षिकं तैलवर्णं स्यात्क्षौद्रं तु कपिलं भवेत् ।
पौत्तिकं घृतवर्णं तु श्वेतं भ्रामरमुच्यते ॥
आपीतवर्णं छात्राख्यं पिङ्गलं चार्घ्यनामकम् ।
औद्दालं स्वर्णसदृशं दालं च पाटलं स्मृतम् ॥

अर्थ - माक्षिक मधु तैल के समान, क्षौद्र मधु कपिल वर्ण का, पौत्तिक मधु घी के समान, भ्रामर मधु श्वेत वर्ण का, छात्र मधु ईषत् पीत वर्ण का, आर्घ्य मधु पिङ्गल वर्ण का, औद्दालक मधु स्वर्ण के समान तथा दाल मधु पाटलवर्ण (गुलाबी रंग का) होता है ।

मधु के सामान्य गुण

मधु कषायानुरस, रूक्ष, शीतवीर्य, मधुर, अग्नि दीपन, लेखन, बलवर्धक, व्रणरोपण, सन्धानजनन, लधु, नेत्रों के लिए हितकर, स्वर को उत्तम करने वाला, हृदय के लिए हितकर, त्रिदोषहर्ता, वमन, हिचकी, विष, श्वास, कास, शोथ, अतिसार और रक्तपित्त को नष्ट करने वाला, ग्राही, कृमि, तृष्णा तथा मूर्छा को दूर करने वाला है ।

मधु के विशिष्ठ गुण

१. भ्रामर मधु - पिच्छिलता तथा माधुर्य के कारण भ्रामर मधु गुरु होता है । यह अत्यन्त मधुर होता है तथा जड़ता (जकड़न) उत्पन्न करता है ।

२. क्षौद्र मधु - यह विशेषत: शीतल, लघु और लेखन होता है

३. माक्षिक मधु - यह क्षौद्र मधु की अपेक्षा लघुतर, रूक्ष तथा सभी प्रकार के मधुओं में श्रेष्ठ होता है ।

४. पौत्तिक मधु - इसका निर्माण पुत्तिका नामक मक्खियों के द्वारा किया जाता है । यह गाढा और घी के रंग जैसा होता है । यह उष्णवीर्य, किञ्चित् कसैला, वातवर्धक, रक्तपित्त को पैदा करने वाला, भेदक, मदकारक, मधुर और कुछ विषैला होता है ।

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५. भ्रामर मधु - भ्रामर मधु भ्रमर नामक मक्खियों के द्वारा बनाया जाता है, यह बहुत गाढ़ा, सफेद, पारदर्शक और मिश्री के समान रवे वाला होता है । यह बहुत स्वादिष्ट, रक्तपित्तनाशक, मूत्ररोधक, भारी, पाक में मधुर और शीतल होता है ।

६. छात्र मधु - छत्र जाति की मक्खियों द्वारा तैयार किया हुआ मधु छात्रमधु कहलाता है । यह कुछ पीले रंग का और गाढ़ा होता है । यह मधु शीतल, भारी, पाक में मधुर, तृप्तिदायक और कृमि रोग, कुष्ठ, रक्तपित्त, प्रमेह, भ्रम, तृषा तथा विष को नष्ट करने वाला होता है ।

७. औद्दालक मधु - उद्दालक नामक मधु मक्खियों द्वारा बनाया हुआ मधु औद्दालक कहलाता है । यह सोने के समान रंग वाला, चमकदार और किञ्चित् गाढा होता है । यह रुधिर को बढाने वाला, कसैला, गर्म, अम्ल, पाक में कड़वा और पित्तकारक होता है ।

८. दाल मधु - पाक में हल्का, अग्निदीपक, कफ को नष्ट करने वाला, कसैला, रूखा, रुचिवर्धक, मधुर, चिकना, पौष्टिक, वजनदार और प्रमेह को नष्ट करने वाला होता है ।

९. आर्घ्य मधु - नेत्रों को अति हितकारक, कफ तथा पित्तनाशक, उत्तम, कसैला, पाक में चरपरा, कड़वा, पौष्टिक होता है ।

एक वर्ष के बाद पड़ा रहने वाला मधु पुराना समझा जाता है । यह पुराना मधु संकोचक, रूखा और मेदोरोगनाशक समझा जाता है, कब्ज को दूर करता है । नवीन (नया, ताजा) मधु पौष्टिक और दस्तावर होता है ।

शहद की मक्खियां बड़ी और छोटी दो ही प्रकार की होतीं हैं । बड़ी मक्खी को पहाड़ी मक्खी कहते हैं । इसका स्वभाव हिंसक होता है । किन्हीं कारणों से बिगड़ जाये तो मनुष्य और सभी पशु-पक्षियों का जीना दूभर कर देती है । छोटी मक्खी का मधु सर्वोत्तम होता है । छोटी मक्खी के शहद की अपेक्षा बड़ी मक्खी के शहद में गुण कम होते हैं ।


शहद के विषय में एक बड़ा भ्रम

प्राय: अधिकतर लोगों में यह बड़ा भारी भ्रम है कि शुद्ध शहद जमता नहीं किन्तु शीतकाल में अधिक सर्दी से असली शुद्ध शहद भी जम जाता है । शहद का न जमना शुद्धता की कसौटी नहीं । शहद को थोड़े गर्म पानी या धूप में रखकर तरल किया जा सकता है क्योंकि शुद्ध शहद में शक्कर, चीनी, ग्लुकोज आदि की मिलावट भी हो सकती है । अत: शुद्धता के बारे में सन्तुष्टि कर लेनी चाहिये ।

शहद की एक और विशेषता है कि यह वर्षों तक पड़ा रहने पर भी खराब नहीं होता क्योंकि इसमें जीवाणु-नाशक शक्ति होती है । प्रयोगों से यह सिद्ध हो गया है कि शहद नमी को सोख लेता है और किसी भी प्रकार के जीवाणु को पनपने के लिए नमी की आवश्यकता होती है । इसलिए शहद में जीवाणु पनप नहीं सकते । यही कारण है कि हर समय हरे रहने वाले घाव को भरने व सुखाने के लिए मधु का प्रयोग किया गया तो थोड़े दिनों बाद घाव ठीक हो गया । इसी प्रकार अगर किसी घाव से रक्त बंद नहीं हो रहा हो तो मधु का लेप लगाने से रक्त तुरन्त बंद हो जाता है ।

शुद्ध मधु की पहचान

अन्य वस्तुओं के समान मधु के अंदर भी मिलावट होने लगी है । नगरों में असली मधु की प्राप्ति होती ही नहीं । मधु में लोग चीनी, गुड़, मैदा आदि पदार्थ और अरारोट आदि वस्तुओं को मिला देते हैं । बनावटी शहद तो केवल गुड़ या चीनी के शीरे में नीम्बू का सत्व मिलाकर बनाया जाता है । नट जाति के लोग बनावटी शहद के बनाने में अत्यंत कुशल होते हैं । उनके बनाए हुए शहद की कितनी ही परीक्षायें कर लो, वह कभी फेल नहीं होता, किन्तु नकली मधु तो नकली ही होता है । आयुर्वेद शास्त्र में असली मधु के गुण व लक्षण बताये हैं, वे निम्न हैं -

१. असली शुद्ध मधु को कुत्ता नहीं खाता ।

२. मधु में रुई की बत्ती भिगोकर उसे जलाने से वह बत्ती घी और तेल की बत्ती के समान जलती है ।

३. सामान्य मक्खी को पकड़कर उसे शहद में डुबो दीजिये । न वह मक्खी मरेगी और न ही डूबेगी - लेकिन कुछ देर बाद तैरती हुई ऊपर आ जायेगी और उड़ जायेगी ।

४. चौथी परीक्षा मधु की उसकी गंध, रूप और स्वाद से की जाती है किन्तु यह सब परीक्षायें पूर्ण और पर्याप्त नहीं हैं । सहारनपुर में नकली शहद बनाने के कारखाने हैं जो नकली शहद ऐसा बनाते हैं कि सामान्य आदमी तो क्या, विशेष व्यक्ति भी उसे पहचानने में फेल हो जाते हैं । नकली शहद बनाने वाले इतने चतुर होते हैं कि उनका बनाया हुआ शहद ऊपर वाली परीक्षाओं में सरलता से उत्तीर्ण हो जाता है । परन्तु उनके जाने के दो-चार दिन बाद उस शहद की पोल खुल जाती है । इसलिए शहद विश्वसनीय स्थान व व्यक्तियों से खरीदना उत्तम है ।

उदर और आंतों के रोग

गन्ने से चीनी, खांड, गुड़, शक्कर जो बनते हैं इनका सेवन आजकल प्राय: सभी लोग अधिक मात्रा में करते हैं । ये उदर में पड़े रहते हैं और देर से पचते हैं । शरीर इसको पचाकर बहुत देर में उसको शरीर का अंग बनाता है । इसलिए कभी-कभी इस शर्करा पर सूक्ष्म जीवाणु आक्रमण कर देते हैं और तब आंतों में सड़न पैदा हो जाती है और साथ-साथ अपान वायु बिगड़कर गैस बनने लग जाती है । पेट में अफारा हो जाता है । खट्टी डकार आतीं हैं । डकार के साथ सड़ने से उत्पन्न अम्ल मुख में आते हैं जो मार्ग में छाती और गले में जलन पैदा करते हैं । बोलचाल में इसे कलेजे की जलन और चिकित्सकों के शब्दों में दाह कहा जाता है, यद्यपि इसका हृदय से कोई संबन्ध नहीं होता । जिन व्यक्तियों का पाचन संस्थान इस प्रकार का हो अगर वे खांड के स्थान पर मधु खाऐं तो उन्हें कोई कष्ट न हो, क्योंकि मधु की शर्करायें इतनी जल्दी शरीर द्वारा ग्रहण कर रक्तसंचार में मिल जातीं हैं । इसलिए सड़ान्द पैदा होने का अवसर ही नहीं मिलता और कोई विकार पैदा नहीं होता । आमाशय और आंत्रशोध जैसी अन्न मार्गों की शोथयुक्त अवस्थाओं में मधु देने में भय नहीं होता और ग्रीष्म में अतिसार के रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद है। गर्मी में अतिसार के सब रोगियों को आधा पाव जौ के पानी में छ: माशे शहद डालकर दिया जा सकता है । इससे लाभ होगा ।आंतों के लगभग सभी रोगों में आँवले के रस के साथ शहद का प्रयोग करने से लाभ पहुंचता है । ताजा आँवला न मिले तो सूखे आँवले के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर चाटने से लाभ होगा । आंतों के घाव (अल्सर) व अजीर्ण रोग में मधु के प्रयोग से बढ़कर दूसरी कोई औषधि नहीं ।

चर्म रोगों पर मधु का प्रभाव

चर्म रोगों पर मधु का लेप करने से बहुत लाभ होता है किन्तु चौबीस घंटे में इसका एक बार लगाना उचित है । चर्म रोगों पर मधु का आंतरिक प्रयोग तब तक करना चाहिये जब शरीर की रासायनिक क्रिया बिगड़कर विकार पैदा हो और फोड़े आदि निकलने लगें । बड़े-बड़े कठिन फोड़े मधु के बाहरी प्रयोग से अच्छे हो जाते हैं । इन फोड़ों में पहले किसी साधारण तेज चाकू से पके हुए फोड़े पर छोटा सा छिद्र करके फिर फोड़े पर मधु का लेप कर दें । इससे आश्चर्यजनक लाभ होगा, इसके लेप से जख्म में पीप पैदा नहीं होने पाता और घाव का निशान भी नहीं रहने पाता । किसी कपड़े पर मधु लगाकर चिपकाने से पट्टी भी अच्छी हो जाती है और अन्य मरहम आदि लगाने की आवश्यकता नहीं होती । बिगड़े हुए घाव को साफ करने में भी मधु एक अद्वितीय औषधि है । डाक्टरों के मतों के अनुसार मधु में विटामिन बी की प्रधानता होती है और इस कारण त्वचा और रक्त की विनिमय क्रिया को मधु का सेवन सुधारता है । चर्म और रक्त संबन्धी रोगों में मधु का आंतरिक सेवन अत्यन्त लाभदायक है । आंतों के जख्मों में भी जिसे अल्सर कहते हैं, चाहे बच्चों या बड़ों का हो, सबके लिए अति उत्तम औषधि है । यदि मधु के साथ शुद्ध गंधक का थोड़ी मात्रा में सेवन कराया जाये तो बहुत ही लाभदायक है ।

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पेट के कीड़े (कृमि रोग)

ढाक के बीज, पलास पापड़ा सात माशे पीसकर इसमें दो तोला शहद मिलकर पिला दें । इसके पिलने से पेट के कीड़े मर जाते हैं । इसके पीछे रेचक औषध देवें जिससे मृत कीड़े पेट से निकल जावें ।

अन्य योग - नीम के पत्ते, धतूरे के पत्ते, अरण्ड के पत्ते प्रत्येक छ: माशे - इन सबको घोटकर इनका रस निकालें और इसमें दो तोले मधु मिलाकर रोगी को पिलावें । इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं ।

बाल रोगों की चिकित्सा

पेट दर्द व वमन - दो तीन बार तीन चार शहद की बूंदें सौंफ या पौदीने के अर्क में मिलाकर आध-आध घंटे में देते रहें, तीन चार बार देने से पेट की पीड़ा शान्त हो जाती है । पोदीने की सूखी पत्ती व हरी पत्ती छ: माशे अजवायन व छ: माशे सौंफ आध पाव पानी में डालकर उबालें । ठंडा होने पर मल छानकर इसी पानी की कुछ बूंदें लेकर थोड़ा मधु मिलाकर बच्चे को देना चाहिये ।

दाँत निकलना - जब बच्चों के दाँत निकलते हों तो उन्हें बहुत कष्ट होता है । मसूडे सूज जाते हैं । ऐसी अवस्था में मसूडों पर चार-पांच बार नियमपूर्वक शहद लगाने से लाभ होगा ।

कनफेड़ - इस रोग में कान के पास से एक तरफ का या दोनों तरफ का सारा मुंह सख्त होता है । पीड़ा भी बहुत होती है, रोगी को ज्वर तक आ जाता है । दिन में पाँच-छ: बार शहद की नौ-दस बूंदें हलके गर्म जल में मिलाकर पिलावें और काला जीरा छ: माशे शिल पर पीसकर शहद में मिलाकर कन्फेड़ों पर लेप करें और इसकी सिकाई करें ।

कब्ज - बच्चे को कब्ज रहता हो तो सन्तरे के रस में मधु की चार-पांच बूंद मिलाकर दिन में तीन बार दें । यह कब्ज की अनुपम औषध है ।

निमोनिया - मोम देसी को पिघलाकर उस में शहद मिला लें और गर्म-गर्म से छाती पर सेक करें । निमोनिया में सितोपलादि चूर्ण चार रत्ती में एक रत्ती शृंगभस्म मिलावें और उसे एक तोला शहद में मिला लें । आध-आध घंटे पश्चात् इसे थोड़ा-थोड़ा बालक को चटाते रहें ।

दाद - नीम के पत्तों को उबालकर उनका पानी लें । उससे जख्म को साफ करें व शुद्ध शहद लगाकर पट्टी बांध दें । दिन में दो-तीन बार मधु को पानी में घोलकर पिलाते रहें ।


निद्रा में मूत्र त्याग - जिन बच्चों को माता का दूध या गऊ, बकरी का दूध आरम्भ में नहीं मिलता वे शीघ्र ही अन्न-फल आदि का भोजन करने लगते हैं । इन्हीं बच्चों को बहुधा यह रोग होता है । इस रोग में मधु के प्रयोग से बहुत लाभ होता है क्योंकि मधु में जल के सुखाने की बड़ी शक्ति होती है । अत: शहद के सेवन से बच्चों के रात्रि समय सोते हुए को पेशाब करने का स्वभाव शीघ्र नष्ट हो जाता है । दो-तीन वर्ष की आयु के बाद बच्चों को यह रोग हो तो बच्चे की माता को बड़ा कष्ट होता है । अत: बालक को रात्रि में सोने से पूर्व एक चम्मच शहद चटा दें । इस बात का ध्यान भी रखें कि सायंकाल बच्चे को पानी या दूध का पिलाना बंद रखना चाहिये । सोने से दो-तीन घंटे पहले खाने की चीज देनी चाहिये । छ: माशे से एक तोला शहद थोड़े से जल में मिलाकर दिन में दो-तीन बार देना चाहिये । मधु के प्रयोग से यह रोग ठीक हो जाता है ।

सिर की पीड़ा

जिसके आधे सिर या पूरे सिर में दर्द या पीड़ा का दौर हो उसे आधा छटाँक मधु थोड़े गर्म जल में घोलकर पिला देवें । दौरे को सर्वथा दूर करने के लिए एक अखरोट की गिरी को बारीक पीसें और एक चम्मच मधु में मिलाकर प्रात: सायं डेढ़ महीने तक सेवन कराने से रोग जड़ मूल से नष्ट हो जायेगा ।

दिमागी रोग

ये कई प्रकार के होते हैं जैसे अपस्मार (मिर्गी), उन्माद (पागलपन), मस्तिष्क में चक्कर आना व थके रहना, सुस्ती, प्रमाद, सदैव आलस्य का बना रहना, स्मरणशक्ति का घटना, सदैव निराश व हताश रहना, भय का बना रहना, सर्वथा असन्तुष्ट होकर आत्महत्या करने की सोचना । इनमें अनार के रस में मधु डालकर पीवें व पाँच-छ: बादाम की गिरी भिगोकर छिलका उतारकर पानी के साथ घोलकर मधु मिलाकर पीवें । इसके निरन्तर सेवन से स्मरणशक्ति बढ़ जाती है । स्मृतिसागर रस १ रत्ती प्रात:-सायं शहद में मिलाकर चाटें व ऊपर से गाय का दूध पीवें । इससे भी स्मरणशक्ति बढती है ।

ब्राह्मीघृत ५ ग्राम, मधु १ तोला मिलाकर प्रात:-सायं चाटें, ऊपर से गाय का दूध पीवें । इससे दिमागी रोग नष्ट होते हैं और स्मरणशक्ति बढ़ती है ।

खाँसी-जुकाम शीत रोगों की सरल औषध

शहद, अदरक और नीम्बू के रस को समान मात्रा में मिलाकर रख लें और थोड़ा गर्म जल ठंडा करके आधी छटांक जल में छ: माशे मधु मिलाकर दिन में तीन-चार बार लेवें । इससे गले के सभी रोग दूर होते हैं । पुरानी खांसी भी चली जाती है । इससे पाचन-शक्ति भी
बढ़ती है ।

इसके साथ गेहूँ का चोकर एक तोला एक पाव जल में उबालें । छानकर शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार पीवें । मरवे के पत्तों का रस शहद में मिलाकर चाटने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं । तुलसी के पत्ते, अदरक का रस तीन-तीन माशे मिलावें । एक तोला शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार चाटें । इससे जुकाम-खांसी आदि गले के सभी रोगों में लाभ होता है ।

आँखों के रोग

नेत्र रोगों में मधु का प्रयोग बाह्य और अभ्यान्तर दोनों तरफ से किया जाता है । दूर या नजदीक की दृष्टि कमजोर हो तो एक तोला छोटी मक्खी का शहद और इसमें तीन-चार नींबू का रस मिलावें । शीशी में सुरक्षित रखें और सलाई से प्रात: सायं लगावें । मोतियाबिन्द के आरम्भ में छोटी मक्खी का शहद एक तोला और सफेद प्याज का रस नौ-दस बूंद मिला लें । सलाई से प्रतिदिन लगावें । आँख के साधारण रोगों में शुद्ध मधु डालकर उपचार किया जाता है ।

सफेद प्याज का रस एक छटाँक, अदरक का रस एक छटाँक, शुद्ध मधु चार छटाँक । इन सबको मिला लें और एक बड़ी शीशी में कार्क लगाकर रख दें । दिन में दो-तीन बार इसको हिला दिया करें । दो-तीन दिन के पश्चात यह निथर जायेगा । निथर जाने के बाद ऊपर की औषध निकाल लें । इसकी एक-दो बूंद सोते वक्त आंख में डाल लिया करें । इससे मोतियाबिंद, जाला आदि सब कट जाते हैं । यह आंख में लगता है क्योंकि यह लेखन में काटने की क्रिया करता है । बड़ी आयु के लोगों के लिए अच्छी औषध है ।

श्वेत पुनर्नवा (सफेद सांठी) - सफेद फूल वाली सांठी की जड़ आँखों के लिए बहुत ही लाभदायक है । इसको शहद में घिसकर लगाने से फोला, जाला, सफेद मोतिया आदि सब कट जाते हैं । यह अंधों को भी ज्योति देता है ।

सप्तामृतलौह - हरड़, बहेड़ा, आँवला तीनों की छाल एक-एक तोला, मुलहटी एक तोला, लोहभस्म एक तोला सबको कूट-छानकर खरल में पीसकर कपड़छान कर लें और इसमें १० तोले गौ दूध मिलावें और ३० (तीस) तोले शुद्ध मधु मिला लें और शीशी में सुरक्षित रखें । एक तोला या १० ग्राम प्रात: सूर्योदय के पश्चात् व सायंकाल सूर्यास्त के समय एक तोला खाकर ऊपर से गाय का दूध पी लें । यह चक्षु रोगों के लिए अमृततुल्य औषध है । जवानी में चढे हुए चश्मे इसके दो-तीन मास के सेवन से सब उतर जाते हैं । बनी हुई आँखों में और वृद्धावस्था में भी आँखों के सभी रोगों में यह अत्यन्त लाभदायक है । इसकी जितनी प्रशंसा की जाये, थोड़ी ही है ।

रक्तविकार की औषध - एक तोला मेंहदी के पत्ते दो तोले शहद में मिलाकर पीस लें और इसका एक दो मास सेवन करें । प्रात: सायंकाल इसे दोनों समय सेवन करना चाहिये । भोजन में चने की रोटी और मूंग की छिलके वाली दाल व चावल खायें । फोड़े, दाद-खाज आदि रक्तविकार से सभी रोग दूर हो जायेंगे ।

विषैले डंक

मधुमक्खी, ततैया आदि के लड़ने से तथा अन्य भी किसी प्रकार के कीड़े के डंक मरने से जो कष्ट होता है, जहां विषैले कीड़े ने काटा है उस स्थान पर शहद के मलने से सूजन नहीं आता और पीड़ा भी शान्त हो जाती है । यदि उनके काटने से शरीर पर सूजन आ गया हो और पीड़ा हो तो नीम के पत्तों को पानी में उबालें और उसमें मधु मिलाकर निकलती हुई गर्म-गर्म भांप से कुछ देर सिकाई करें । इससे सूजन और पीड़ा शान्त हो जाती है ।

हाथ-पांव की जलन

पांच-छ: इमली के फलों को रात को मिट्टी के बर्तन में एक पाव जल में भिगो दें । प्रात:काल मल छानकर दो चम्मच मधु मिलाकर रोगी को पिलावें । एक-दो सप्ताह ऐसा करने से रोग नष्ट हो जायेगा ।

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मुंह के कील और मुंहासे

प्रात:काल उठने पर दो चम्मच मधु जल में घोलकर पीवें । एक चम्मच बादाम-रोगन में एक चम्मच शहद मिलावें और इसको अच्छी तरह मिला लें । मुंह को छाछ या बेसन से धोवें और मिले हुए शहद बादाम रोगन को चेहरे पर हल्का-हल्का लगायें और आध घंटा तक लगा रहने देना चाहिये । फिर थोड़े गर्म पानी से मुंह को धो लें और फिर ठंडे पानी से अच्छी तरह धो लें और फिर तोलिये आदि से पौंछ लें ।

पीलिया - यह भयानक रोग है । इसकी ठीक समय पर चिकित्सा न होने पर यह रोग प्राणघातक का रूप धारण कर लेता है । कुछ सूखे आलूबुखारे को मिट्टी के बर्तन में एक पाव जल में भिगो दें और छानकर एक तोला मधु मिलाकर रोगी को पिलावें । इसी प्रकार इसको दिन में तीन-चार बार पिलाना चाहिये ।

दूसरा उपचार - बागड़ में मतीरा होता है । उसका रस एक पाव एक तोला मधु मिलाकर दिन में कई बार पिलावें । यह भी पीलिये की बहुत अच्छी औषध है ।

शक्तिवर्धक औषध - एक सेर प्याज के छोटे-छोटे टुकड़े कर लें और इन टुकड़ों से दुगुना शहद लेकर किसी ढक्कन वाले बर्तन में डालकर मिला दें । ढ़क्क्न बंद करके भूमि में गड्ढ़ा खोदकर पन्द्रह दिन के लिए इसे भूमि में गाड़ दें । पन्द्रह दिन के पीछे निकाल कर इसमें से एक तोला प्रात: सायं खावें । यह बड़ा शक्तिप्रद औषध है ।

सारांश

मधु का सेवन करने वाले को जुकाम, खांसी कभी नहीं होती । मधु एक उपयोगी पदार्थ है । वेद भगवान ने भी ऋग्वेद (२०/९०) में लिखा है:

मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव: माध्वीर्न: सन्त्वोषधी: ॥६॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रज: मधु द्यौरस्तु न: पिता ॥७॥
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुर्मा अस्तु सूर्य: माध्वीर्गावो भवन्तु न: ॥८॥

हम सत्य की खोज करने वालों के लिए वायु बहे, नदियों से हमें मधुर जल प्राप्त हो, औषधियां मधुरता से परिपूर्ण हों । रात, प्रात: और संध्या मधुरता का प्रसार करें । धरती का प्रत्येक रजकण मधुमय हो । आकाश जो पितास्वरूप है, दूध की वर्षा करे । वृक्षों से मधुमय फल मिलें, सूर्य मधुमय किरणों का प्रसार करे और गायें हमें मधुमिश्रित दूध दें । यह है मधु के माहात्म्य का वर्णन ऋग्वेद में ।

Some Internet links about natural honey:

http://en.wikipedia.org/wiki/Honey (http://en.wikipedia.org/wiki/Honey)

http://koning.ecsu.ctstateu.edu/Plants_Human/bees/bees.html (http://koning.ecsu.ctstateu.edu/Plants_Human/bees/bees.html)

http://www.thefarm.org/charities/i4at/lib2/bees.htm (http://www.thefarm.org/charities/i4at/lib2/bees.htm)

http://www.theindiadirectory.com/offers/2211.htm (http://www.theindiadirectory.com/offers/2211.htm)

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shamshermalik
August 28th, 2006, 10:00 AM
It is not advised to give Honey till first birthday. Clostridium Botulinum can contaminate honey. If these spores enter an infant( kids upto one year) then they can grow in the digestive system of kids which is not mature enough to kill these Clostrdium Botulinum spores. This disease (BOTULISM) can cause paralysis and death if ventilatary support is not provided. So Honey is strictly prohibited during first year of life.

There is a tradition of giving 'Goonti" (somethinggiven to kid just after birth)in our rural area and mostly that is in the form of Honey which is a very dangerous practice. Nothing should be given to the kid except mother's milk for atleast first four months of life if the mother has enough milk to feed the child. In our rural area generally the initial milk of mother just after delivery is discarded and honey is given to the new born which is not a good practice This initial milk called Collastrum is very good and protects the kid from diseases so instead of honey the baby must get breast feed. other cases where mother donot have sufficient milk the pediatrician's advice should be taken regarding diet.


BUT NO HONEY FOR FIRST YEAR OF LIFE.





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... continued from previous post


बाल रोगों की चिकित्सा

पेट दर्द व वमन - दो तीन बार तीन चार शहद की बूंदें सौंफ या पौदीने के अर्क में मिलाकर आध-आध घंटे में देते रहें, तीन चार बार देने से पेट की पीड़ा शान्त हो जाती है । पोदीने की सूखी पत्ती व हरी पत्ती छ: माशे अजवायन व छ: माशे सौंफ आध पाव पानी में डालकर उबालें । ठंडा होने पर मल छानकर इसी पानी की कुछ बूंदें लेकर थोड़ा मधु मिलाकर बच्चे को देना चाहिये ।

दाँत निकलना - जब बच्चों के दाँत निकलते हों तो उन्हें बहुत कष्ट होता है । मसूडे सूज जाते हैं । ऐसी अवस्था में मसूडों पर चार-पांच बार नियमपूर्वक शहद लगाने से लाभ होगा ।

कनफेड़ - इस रोग में कान के पास से एक तरफ का या दोनों तरफ का सारा मुंह सख्त होता है । पीड़ा भी बहुत होती है, रोगी को ज्वर तक आ जाता है । दिन में पाँच-छ: बार शहद की नौ-दस बूंदें हलके गर्म जल में मिलाकर पिलावें और काला जीरा छ: माशे शिल पर पीसकर शहद में मिलाकर कन्फेड़ों पर लेप करें और इसकी सिकाई करें ।

कब्ज - बच्चे को कब्ज रहता हो तो सन्तरे के रस में मधु की चार-पांच बूंद मिलाकर दिन में तीन बार दें । यह कब्ज की अनुपम औषध है ।


Continued...
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vaneeta
August 28th, 2006, 12:15 PM
Also, to add to what Dr Malik said, honey should not be used during teething.
Its sweet taste was meant to distract the baby from the irritation and itching, but its use can lead to food poisoning and diarrhoea (which people for some reason believe is a part of teething process). No honey and proper hygiene and cleanliness (as babys tend to put everything in the mouth because of the itching) will help a baby during teething more than anything else.

cooljat
August 28th, 2006, 01:58 PM
wonderful info Deswal Uncle
salutations to u!
ur doin wonderful job by posting sucha great infos
keep it up

rock on
Jit

shamshermalik
August 28th, 2006, 02:31 PM
Honey mainly has...Fructose and glucose along with some Maltose and other sugars plus very little other constituents.

Cane Sugar..Chinni, gudd or shakkar has mainly Sucrose.

These Sucrose, fructoe and glucose etc are carbohydrates which are main source of energy for the body while proteins are the main body building foods.

For digestion, carbohydrates are digested and absorbed in the form of fructose and glucose. Sucrose is converted to fructose and glucose.

But the absorption of sucrose donot take that long that it can cause digestive problems and in some aspect it is better than fructose alone.

Fructose is absorbed at faster rate and can cause increased fat formation or increased triglycerides whch are not desirable. And if the fructose is taken in high dose, as in fruit juices, it can cause diarrhoea in children due to saturation of absorption. The absorption of cane sugar is slightly slow and fewer undesireable effects of frusctose are seen.

So overall there is not much difference in cane sugar and honey as far their food value for body builiding is concerned as both are surce of carbohydrate which are the main source of energy.

Carbohydrate metabolism is not responsible for the Acid peptic disease or commenly called ACIDITy or KALEJE KI JALAN and sugar, gudd and shakkar donot cause it by delayed digestion as mentioned in the thread.


This Kaleje Ki jalan is caused by Helocobacter Pylori infection and for this discovery Barry J. Marshall and J. Robin Warren were jointly given the 2005 Noble Prize in Medicine. To read more on it go to http://nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2005/press.html








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... continued from previous post


http://www.thefarm.org/charities/i4at/lib2/beemove.gif

उदर और आंतों के रोग

गन्ने से चीनी, खांड, गुड़, शक्कर जो बनते हैं इनका सेवन आजकल प्राय: सभी लोग अधिक मात्रा में करते हैं । ये उदर में पड़े रहते हैं और देर से पचते हैं । शरीर इसको पचाकर बहुत देर में उसको शरीर का अंग बनाता है । इसलिए कभी-कभी इस शर्करा पर सूक्ष्म जीवाणु आक्रमण कर देते हैं और तब आंतों में सड़न पैदा हो जाती है और साथ-साथ अपान वायु बिगड़कर गैस बनने लग जाती है । पेट में अफारा हो जाता है । खट्टी डकार आतीं हैं । डकार के साथ सड़ने से उत्पन्न अम्ल मुख में आते हैं जो मार्ग में छाती और गले में जलन पैदा करते हैं । बोलचाल में इसे कलेजे की जलन और चिकित्सकों के शब्दों में दाह कहा जाता है, यद्यपि इसका हृदय से कोई संबन्ध नहीं होता ।

Continued...
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downtoearth
August 28th, 2006, 08:04 PM
good stuff indeed ,thanx for sharing sir ..........:)

ratheetheraist
August 28th, 2006, 10:25 PM
good stuff indeed ,thanx for sharing sir ..........:)

keshavdahiya
August 28th, 2006, 11:24 PM
good stuff indeed ,thanx for sharing sir ..........:)

GUD STUFF the thik sei Bikki......iib tyarr holle ek PM aaan ne ho rehya sei tere er mere dhorre ki post deleted......reason :confused: ......aaj tahin mere bhi samjh na aaya sei......:p

dndeswal
August 29th, 2006, 09:55 AM
GUD STUFF the thik sei Bikki......iib tyarr holle ek PM aaan ne ho rehya sei tere er mere dhorre ki post deleted......reason :confused: ......aaj tahin mere bhi samjh na aaya sei......:p

ये डाक्की कहीं भी शुरू हो जाते हैं - बस जगह मिलनी चाहिये । भला इस धागे में इस तरह के गिले-शिकवे लिखने की क्या जरूरत थी? ऐसा कौन सा सौदा 'delete' हो गया केशव?

लगता है केशव ने इसी फोरम में मेरा धागा 'नीम' (http://www.jatland.com/forums/showthread.php?t=15072) पढ़ कर कुछ नीम की कोंपलें खा लीं और अभी तक उसका मुंह कड़वा है । उससे कहो कि वो थोड़ा सा शहद चाट ले - इससे मुंह में नीम का कड़वापन खत्म हो जायेगा और इस धागे में केशव शहद जैसी मीठी बात लिखेगा ।
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rahultokas
August 30th, 2006, 04:32 PM
bohot acchii jaankaari dee aapne deswal ji,,, thanks:)

choudhary_tapan
August 31st, 2006, 07:11 AM
Deswal ji....really nice work n info...me n my flatemate wers discussing last week only abt honey n we bought it to drink with milk!!!!now know lots more things about it...thank u heaps for a grt article....

anilsangwan
August 31st, 2006, 07:42 AM
Thanks for great information uncle ji...
Aur haan...jo MAHAL MAAKHI cheppi sei na aap ne....waa bahoot pasand aayee ...:D

Baaki Keshu ki, Rupi ki...aarr meri bhi waa e... :D

sspunia
September 6th, 2006, 12:41 PM
Thank You

Very good and useful information of Honey.