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View Full Version : Responsibility!



sjakhars
September 4th, 2007, 08:03 PM
I read this article in a news paper. It's written By Tushar Gandhi.
Please have a look and share your views.

मैं मानता हूं कि कोई एक व्यक्ति देश और दुनिया में क्रांति नहीं ला सकता। लेकिन ऐसा करने का जज्बा तो कम से कम होना ही चाहिए। इसके बावजूद सच्चाई यह है कि हम में से हर कोई कुछ भी गलत देखता है तो मुंह फेर लेता है। उसे लगता है गलत कामों से रोकना किसी और की जिम्मेदारी है। दरअसल, हमारे यहां उंगली दिखाने वाली फितरत है। व्यक्तिगत आक्षेप लगाना बड़ी पारंपरिक-सी आदत है हमारे यहां। हमें ह़क तो सब चाहिए, पर कुछ करने की इच्छा-शक्ति बिल्कुल नहीं है। हमें सब मिल जाए, मगर हमारे ऊपर तनिक भी आंच न आए, यही मानसिकता घर कर गई है। मैं इस बात से सहमत हूं कि दिल्ली बदलने से दुनिया नहीं बदल जाएगी। लेकिन छोटी-छोटी चीजों से भी समाज में बदलाव आना संभव है। मुझे विश्वास है कि यदि हम स्वयं की जिम्मेदारी निभाएं, तो पूरे समाज का चेहरा बदल जाएगा।
इस संदर्भ में मैं आपको कई सालों पहले की एक घटना बताता हूं। शायद 10-15 साल पहले की बात है। मैं मद्रास से मुंबई आ रहा था। आज अगर याद करूं तो लगता है कि वह मद्रास मेल रही होगी, क्योंकि तब मद्रास ही नाम था चेन्नई का। रास्ते में किसी ने टॉयलेट को बुरी तरह गंदा कर दिया था। सारे यात्री परेशानी, दुर्गंध में बैठे रेलवे वालों को गालियां दे रहे थे। उस स्थिति में कोई भी यात्री टॉयलेट यूज करने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था।
लेकिन अगले जंक्शन पर गाड़ी में कुछ कैथलिक सिस्टर क्या चढ़ीं, थोड़ी देर बाद कंपार्टमेंट का नजारा ही बदल गया। असल में गाड़ी वहां से अगले कुछ मिनट ही चली होगी कि एक सिस्टर टॉयलेट में जाने लगी। हमने उसे तुरंत रोककर बताया कि टॉयलेट बहुत जयादा गंदा है और कृपया वह वहां न जाए। उस सिस्टर ने हमारी सलाह को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि क्या हुआ! सच कहूं तो उस समय उसके प्रति हमारे मन में 'सहानुभूति' हो रही थी। लेकिन वह टॉयलेट में गई और मात्र पांच मिनट में बाहर आकर हम सभी को खुश़खबरी दी कि टॉयलेट पूरी तरह सा़फ है, अब हम सभी उसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
आपको मैं इस पूरे मुद्दे का सारांश बताता हूं। दरअसल, उस सिस्टर ने टॉयलेट में जाकर खुद अपने हाथों वह टॉयलेट सा़फ किया था। हालांकि बाद में हम सबने बारी-बारी से उसका इस्तेमाल किया, लेकिन शर्मिदगी का अहसास बराबर बना रहा। इसकी वजह यह थी कि कितनी देर तक हम सारे लोग उस बदबूदार माहौल में पीड़ा सहते हुए बैठे रहे, क्या किसी को यह नहीं सूझा कि थोड़ा-सा पानी डालकर हम खुद भी उसकी स़फाई कर सकते थे?
आज समाज के लिए गंदगी सबसे विकट समस्या है। लेकिन क्या किसी की भी आलोचना करने से पहले हम यह सोचते हैं कि अपने-अपने स्तर पर स़फाई तो कोई भी कर सकता है। जाहिर है कि आलोचना करना बहुत आसान है, पर स्वयं की जिम्मेदारी का अहसास करना बहुत कठिन। कई बार ऐसा (अपनी जिम्मेदारी निभाना) करना बहुत आसान होता है, बावजूद इसके जैसा कि मैंने पहले ही कहा, किसी और पर जिम्मेदारी थोप देना एक परंपरा-सी बन गई है हमारे देश में। लेकिन उस दिन के बाद उस मिशनरीज, खासकर उस सिस्टर के प्रति मेरे मन में जो श्रद्धा हो गई, वह शब्दों में बयान नहीं कर सकता। कारण स्पष्ट है कि हमारी सलाह मानकर यदि वह भी उस दुर्गध भरे वातावरण में बैठी रहती तो शायद मुझे एक ऐसा सब़क नहीं मिलता, जिसे याद कर व्यक्तिगत रूप से मैं आज भी शर्मिदगी महसूस करता हूं!
(लेखक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र हैं।)

devdahiya
September 5th, 2007, 09:42 AM
Bhai ristedar ji, infact hammein sab ko tou sharam aani bhi bandd ho chukki....hum tou jo achha kaam krre bhi tou uska majjak uddate hein.Hummari samajik vyavasatha buri trah charmarra gai hei.We are highly irresponsible people on this side of globe......Mharre log tei CHUPPADD MEIN HAGGEIN SEIN ARR DEEDDE KAADHH-2 SAHMMI LAKHAWEIN SEIN.It is a real sad story...aur Jatland ki te durdasha ho chukki.

Topic you selected is of paramount importance but deaf and dumbs don't hear react.

skarmveer
September 5th, 2007, 05:36 PM
Hamari samasya hai hum aapney dil or dimag ko saaf nahi kar pa rahey hai
isliea hum aapney baake jimedaari say bachna chahtey hai "jeemmedariyeo nibhaney per hee aadhikar miltey hai" perntoo hum pahley adhikar chahtey hai
jimmedaari dusroo ko batatey hai. Sabhi apnee jimedaari samjhegey to dharti sawarg ban jayagi.

Regards

deepakchoudhry
September 5th, 2007, 08:35 PM
......Mharre log tei CHUPPADD MEIN HAGGEIN SEIN ARR DEEDDE KAADHH-2 SAHMMI LAKHAWEIN SEIN.:D
Ha Ha Ha....Sad but funny.

deepakchoudhry
September 5th, 2007, 08:40 PM
Bhai Ji,

Aaj kal attitude hai....Tension lenay ka nahin...Denay Ka.

No sharam, No remorse, No thankfulless.

Deepak