dndeswal
October 20th, 2007, 03:49 PM
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(This post is in Devanagari script. If there is difficulty in reading the text, there is need to install ‘Mangal’ font (http://vedantijeevan.com:9700/font.htm).)
स्टाक एक्सचेंज का मियादी बुखार
आजकल अगर भारतीय अखबार इंटरनेट पर पढ़ो या प्रिंट में, एक चर्चा आम हो रही है - BSE sensex यानी बंबई स्टाक एक्सचेंज के इंडेक्स की बुलंदी । कुछ दिन पहले जब यह 19000 का आंकड़ा छू गया तो चर्चा हुई कि लो जी, अब तो देश की अर्थव्यवस्था बुलंदी पर चढ़ गई । रिजर्व बैंक को तो उल्टी चिन्ता होने लगी कि रुपये की मजबूती से और डालर की कमजोरी से देश के निर्यात को नुकसान हो रहा है । फिर सुना कि एक-दो दिन बाद इंडेक्स 1500 प्वाइंट लुढ़क गया । इससे लोगों को हैरानी हुई । मैं तो अर्थशास्त्र का ज्यादा ज्ञान नहीं रखता, पर देसी समझ से देखा जाये तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं । अंग्रेजी कहावत "Easy come, easy go" के आईने में तो जिस नगरी में टके सेर भाजी, टके सेर खाजा बिकता हो, वहां कुछ भी हो सकता है ।
आधुनिक अर्थशास्त्र के 'एक्सपर्ट' तो कहते हैं कि इस तेजी के पीछे देश की मजबूत अर्थव्यवस्था है, पर जानने वाले शुरू से ही जानते हैं कि इस बाजार के सोडावाटर के शबाब में देसी से ज्यादा विदेशी फैक्टरियों का योगदान है । रिजर्व बैंक तो पहले ही 'ओवरहीटिंग' की बात कर रहा है । अकेले भारत ही नहीं, समूचे एशिया में पूंजी के उबाल के पीछे अमरीकी फैडरल बैंक की भूमिका रही है जिसने ब्याज दर घटाकर पूंजी के समुद्र की धारा इस तरफ मोड़ दी है । इस मौजूदा भेड़चाल में लाखों छोटे निवेशक भी जुड़ गए हैं जो बिना खास मेहनत किये पूंजी को दोगुना-चौगुना करने के सपने संजोये बैठे हैं । पल में तोला, पल मे माशा - ऐसे उतार-चढ़ाव से समूचे मुद्रा-तंत्र का बैलेंस बिगड़ सकता है, एक बालू की भीत की तरह ।
देश के शेयर बाजार में आतंकवादियों का पैसा लगने के भी संकेत मिल रहे हैं जबकि दुनियाभर में निवेशकों की स्कैनिंग की जा रही है, उनकी पहचान कर के एहतियात बरती जा रही है । आये दिन विस्फोटों से जूझता हुआ हमारा देश कब तक यह सब भुगतता रहेगा ? इसी के मद्देनजर SEBI ने कुछ कदमों की घोषणा की है । देखिये SEBI का वेबसाइटhttp://investor.sebi.gov.in/ (http://investor.sebi.gov.in/)
कई साल पहले इंडोनेशिया, मलेशिया और कुछ और पूर्वी देशों का भी यही हाल था, पूंजी उछल रही थी, इन देशों को 'एशियन टाइगर' कहा करते थे । पर न्यू-यार्क की Wall Street में बैठे हुए दलालों ने रातों-रात अपनी आंकड़ेबाजी से उन सबका भट्ठा बैठा दिया था । आज अपने देश के पास बेशक एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री है, बाजार उछाल पर है, फिर भी सावधान रहने की जरूरत है, कहीं ऐसा न हो कि हमारा हाल भी वैसा ही हो जाये । आखिर आंकड़े चाहे कुछ भी कहते हों, जब तक देश की आधी आबादी भूखी-नंगी हो तब तक हमें अपने आप को तरक्कीशुदा देश नहीं कह सकते । कहीं sensex का यह उछाल एक पानी का बुलबुला तो नहीं ?
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स्टाक एक्सचेंज का मियादी बुखार
आजकल अगर भारतीय अखबार इंटरनेट पर पढ़ो या प्रिंट में, एक चर्चा आम हो रही है - BSE sensex यानी बंबई स्टाक एक्सचेंज के इंडेक्स की बुलंदी । कुछ दिन पहले जब यह 19000 का आंकड़ा छू गया तो चर्चा हुई कि लो जी, अब तो देश की अर्थव्यवस्था बुलंदी पर चढ़ गई । रिजर्व बैंक को तो उल्टी चिन्ता होने लगी कि रुपये की मजबूती से और डालर की कमजोरी से देश के निर्यात को नुकसान हो रहा है । फिर सुना कि एक-दो दिन बाद इंडेक्स 1500 प्वाइंट लुढ़क गया । इससे लोगों को हैरानी हुई । मैं तो अर्थशास्त्र का ज्यादा ज्ञान नहीं रखता, पर देसी समझ से देखा जाये तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं । अंग्रेजी कहावत "Easy come, easy go" के आईने में तो जिस नगरी में टके सेर भाजी, टके सेर खाजा बिकता हो, वहां कुछ भी हो सकता है ।
आधुनिक अर्थशास्त्र के 'एक्सपर्ट' तो कहते हैं कि इस तेजी के पीछे देश की मजबूत अर्थव्यवस्था है, पर जानने वाले शुरू से ही जानते हैं कि इस बाजार के सोडावाटर के शबाब में देसी से ज्यादा विदेशी फैक्टरियों का योगदान है । रिजर्व बैंक तो पहले ही 'ओवरहीटिंग' की बात कर रहा है । अकेले भारत ही नहीं, समूचे एशिया में पूंजी के उबाल के पीछे अमरीकी फैडरल बैंक की भूमिका रही है जिसने ब्याज दर घटाकर पूंजी के समुद्र की धारा इस तरफ मोड़ दी है । इस मौजूदा भेड़चाल में लाखों छोटे निवेशक भी जुड़ गए हैं जो बिना खास मेहनत किये पूंजी को दोगुना-चौगुना करने के सपने संजोये बैठे हैं । पल में तोला, पल मे माशा - ऐसे उतार-चढ़ाव से समूचे मुद्रा-तंत्र का बैलेंस बिगड़ सकता है, एक बालू की भीत की तरह ।
देश के शेयर बाजार में आतंकवादियों का पैसा लगने के भी संकेत मिल रहे हैं जबकि दुनियाभर में निवेशकों की स्कैनिंग की जा रही है, उनकी पहचान कर के एहतियात बरती जा रही है । आये दिन विस्फोटों से जूझता हुआ हमारा देश कब तक यह सब भुगतता रहेगा ? इसी के मद्देनजर SEBI ने कुछ कदमों की घोषणा की है । देखिये SEBI का वेबसाइटhttp://investor.sebi.gov.in/ (http://investor.sebi.gov.in/)
कई साल पहले इंडोनेशिया, मलेशिया और कुछ और पूर्वी देशों का भी यही हाल था, पूंजी उछल रही थी, इन देशों को 'एशियन टाइगर' कहा करते थे । पर न्यू-यार्क की Wall Street में बैठे हुए दलालों ने रातों-रात अपनी आंकड़ेबाजी से उन सबका भट्ठा बैठा दिया था । आज अपने देश के पास बेशक एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री है, बाजार उछाल पर है, फिर भी सावधान रहने की जरूरत है, कहीं ऐसा न हो कि हमारा हाल भी वैसा ही हो जाये । आखिर आंकड़े चाहे कुछ भी कहते हों, जब तक देश की आधी आबादी भूखी-नंगी हो तब तक हमें अपने आप को तरक्कीशुदा देश नहीं कह सकते । कहीं sensex का यह उछाल एक पानी का बुलबुला तो नहीं ?
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