rajpaldular
August 11th, 2008, 04:22 PM
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत चुंबकीय उपचार जिस सिद्धांत पर काम करता है उसके मुताबिक सारे ब्रrााड का मूलाघार चुंबकीय शक्ति है और इसके प्रभाव से ही सारे ग्रहों, उपग्रहों व नक्षत्रों को एक-दूसरे से जुडे रहने की शक्ति प्राप्त होती है। पृथ्वी स्वयं एक शक्तिशाली चुंबक है और सभी प्राणियों के शरीर में भी चुंबकीय शक्ति होती है। जब तक पृथ्वी के चंुबक का हमारी चुंबकीय ऊर्जा पर संतुलन और नियंत्रण रहता है, हम स्वस्थ रहते हैं। पर यह चुंबकीय ऊर्जा जब किसी कारणवश प्रभावित होती है और इनका आपसी संतुलन और नियंत्रण घटने लगता है तो शरीर में अनियमितताएं उत्पन्न हो जाती हैं। इस तरह हम रोग ग्रस्त हो जाते हैं।
चुंबकीय चिकित्सा क्या हैक्
मानव शरीर मूल रूप से एक विद्युत चुंबकीय क्षेत्र है और इसी तरह शरीर की प्रत्येक कोशिका विद्युत की एक इकाई है जिसका अपना क्षेत्र होता है। ये चुंबकीय क्षेत्र शरीर एवं मन में परिवर्तनों के अनुसार घटते-बढते रहते हैं। शरीर में इन चुंबकीय क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाए रखना ही चुंबकीय चिकित्सा का मूल मंत्र है।
चुंबकीय चिकित्सा द्वारा उपचार कैसेक्
चुंबकीय चिकित्सा पद्धति पूरी तरह से प्राकृतिक और वैज्ञानिक नियमों पर आघारित है। इसमें किसी भी प्रकार के टीके, दवाई, मालिश या गहरे दबाव की जरूरत नहीं होती। चुंबकीय चिकित्सा में इलाज के दौरान केवल रोग के अनुसार चुंबक को पगथली, हथेली और रोग ग्रस्त स्थान पर थोडे समय के लिए स्पर्श कराना पडता है। रोग मुक्त होने के बाद चुंबक का उपयोग छोडने में भी कोई कठिनाई नहीं आती है। यह पद्धति सभी रोगों के बचाव और उपचार दोनों में ही सक्षम है।
चुंबक से रोग का उपचार करते समय रांगी को सुविघापूर्वक किसी कुर्सी या सोफे पर बिठाना चाहिए। जमीन पर बिठाकर यह चिकित्सा नहीं की जानी चाहिए। इसके अलावा चुंबक के प्रयोग करने से पूर्व चुंबक का प्रकार और रोगी की दिशा का भी घ्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि उत्तरी घ्रुव के चुंबक का प्रयोग करना है तो रोगी का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। यदि उत्तर और दक्षिण घ्रुवों वाले चुंबको का प्रयोग एक साथ करना है तो रोगी किसी भी दिशा में मुंह करके बैठ सकता है। उपचार के दौरान रोगी का पैर जमीन से स्पर्श नहीं होना चाहिए पैर के तलुवों पर चुंबक का स्पर्श कराते समय चुंबक को लकडी के पटरे पर रख कर उपचार करना चाहिए। वहीं, चुंबकों का प्रयोग करने की अवघि रोग के स्वरूप, रोग की अवघि, चुंबकित किए जाने वाले अंगों, रोगी की व्यक्तिगत सुग्राह्यता आदि पर निर्भर करती है। प्राय: इसका फैसला चुंबक-चिकित्सक पर छोड दिया जाता है कि वो उपरोक्त कारणों को देखते हुए कितनी अवघि तक चुंबकों के प्रयोग का निर्देश देता है।
विभिन्न रोगों का रेकी से इलाज:*
टायफायड- टायफायड होने पर रोगी के पैरों के तलुवों मे सुबह के समय एक बार शक्तिशाली चुंबकों का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद शाम को कोहनी के मोड के अंतिम पाçश्üाक भाग में दक्षिणी घ्रव और पीछे की ओर उठी हुई कशेरूका के बीचों-बीच गर्दन की सातवीं कशेरूका पर उत्तरी घ्रुव वाले चुंबकों का प्रयोग करना चाहिए। चुंबकीय जल तैयार कर दो-दो घंटे के अंतर पर रोगी को पिलाना चाहिए। तेज बुखार रहने पर कनपटियों पर नीला तेल लगाने से आराम मिलता है।
गुर्दे की पथरी- इस रोग के इलाज के लिए चुंबकों का उपयोग सबसे अघिक लाभदायक होता है। गुर्दे में तेज दर्द होने पर उस स्थान पर लगाना चाहिए जहां पर दर्द हो रहा है। चुंबक का स्पर्श कराते समय इस बात का घ्यान रखना चाहिए कि उत्तरी घ्रुव वाला चुंबक शरीर के दाई ओर हो और दक्षिणी घ्रुव वाला चुंबक उत्तर की ओर लगाया जाए। रोगी को नियमित रूप से पैरों के तलुवों में शक्तिशाली चुंबक का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही दिन में तीन-चार बार चुंबकीय जल का भी सेवन करना चाहिए। चुंबकीय उपयोग के साथ चुंबकीय जल का प्रयोग केवल पथरियो को घोलकर शरीर से बाहर निकालने का काम ही नहीं करता बल्कि शरीर में उन लवणों के जमाव से भी छुटकारा दिलाता है जो पथरी बनाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
दमा- दमा रोग के उपचार के दौरान रोगी को सुबह-सवेरे हथेलियों पर चुंबक लगाने चाहिए। शाम को कंघे की हaी के नीचे उत्तरी घु्रव वाले सेरामिक चुंबक लगाना चाहिए। यदि रोगी को मघुमेह न हो तो रोग की तीव्रता के दौरान उसे एक गिलास पानी में 2-3 चम्मच ग्लूकोज घोल कर पिला देना चाहिए। ऎसा माना जाता है कि दमा के कारण रोगी के ब्लड में शुगर की कमी हो जाती है। जिसके कारण दमा का दौरा पड जाता है।
पीठ का दर्द- पीठ अथवा कमर मे यदि बहुत अघिक दर्द हो रहा हो तो रोगी को पूरी तरह आराम करना चाहिए और ठोस बिस्तर पर सोना चाहिए, ताकि रीढ की हaी बिल्कुल सीघी रहे। बैठते और खडे होते समय भी सीघा तन कर खडा होना या बैठना चाहिए। जब दर्द का फैलाव बहुत लंबाई में ऊपर से नीचे की ओर हो तो दर्द वाले स्थान के सबसे ऊपरी भाग पर उत्तरी घ्रुव वाला चुंबक और सबसे निचले भाग पर दक्षिणी घ्रुव वाला चुंबक लगाना चाहिए। इसी तरह यदि दर्द का फैलाव दाईं ओर से बाई ओर की चौडाई में हो तो उत्तरी घ्रुव वाला चुंबक दाईं तरफ दर्द वाले स्थान पर और दक्षिणी घु्रव वाला चुंबक बाई ओर की दर्द वाली जगह पर लगाना चाहिए। यह क्रिया सुबह के समय की जानी चाहिए।
मोटापा- चुंबकीय चिकित्सा पद्धति के द्वारा मोटापे का उपचार भी किया जा सकता है। यदि मोटापा शरीर की किसी ग्रंथी के दोषपूर्ण हो जाने के कारण है तो ग्रंथियों को नियमित गति देने के लिए चुंबक का प्रयोग किया जाता है। रोज सुबह हथेलियों पर शक्तिशाली चुंबकों का प्रयोग करना चाहिए। शाम को नाभि के लगभग 10 सेंटीमीटर ऊपर और मघ्य रेखा के 5 सेंटीमीटर की दूरी पर दोनों ओर चुंबक का प्रयोग करना चाहिए। चुंबकों का प्रयोग करते समय यह घ्यान रखना चाहिए कि उत्तरी घ्रुव वाले चुंबक का प्रयोग बाई ओर किया जाए और दक्षिणी घु्रव वाला चुंबक दाई ओर हो।
*चुंबकीय उपचार के दौरान इस पद्धति का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। किसी प्रशिक्षित चिकित्सक से इलाज करवाना या उसकी देख-रेख में उपचार करना बेहतर होगा।
चुंबकीय चिकित्सा क्या हैक्
मानव शरीर मूल रूप से एक विद्युत चुंबकीय क्षेत्र है और इसी तरह शरीर की प्रत्येक कोशिका विद्युत की एक इकाई है जिसका अपना क्षेत्र होता है। ये चुंबकीय क्षेत्र शरीर एवं मन में परिवर्तनों के अनुसार घटते-बढते रहते हैं। शरीर में इन चुंबकीय क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाए रखना ही चुंबकीय चिकित्सा का मूल मंत्र है।
चुंबकीय चिकित्सा द्वारा उपचार कैसेक्
चुंबकीय चिकित्सा पद्धति पूरी तरह से प्राकृतिक और वैज्ञानिक नियमों पर आघारित है। इसमें किसी भी प्रकार के टीके, दवाई, मालिश या गहरे दबाव की जरूरत नहीं होती। चुंबकीय चिकित्सा में इलाज के दौरान केवल रोग के अनुसार चुंबक को पगथली, हथेली और रोग ग्रस्त स्थान पर थोडे समय के लिए स्पर्श कराना पडता है। रोग मुक्त होने के बाद चुंबक का उपयोग छोडने में भी कोई कठिनाई नहीं आती है। यह पद्धति सभी रोगों के बचाव और उपचार दोनों में ही सक्षम है।
चुंबक से रोग का उपचार करते समय रांगी को सुविघापूर्वक किसी कुर्सी या सोफे पर बिठाना चाहिए। जमीन पर बिठाकर यह चिकित्सा नहीं की जानी चाहिए। इसके अलावा चुंबक के प्रयोग करने से पूर्व चुंबक का प्रकार और रोगी की दिशा का भी घ्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि उत्तरी घ्रुव के चुंबक का प्रयोग करना है तो रोगी का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। यदि उत्तर और दक्षिण घ्रुवों वाले चुंबको का प्रयोग एक साथ करना है तो रोगी किसी भी दिशा में मुंह करके बैठ सकता है। उपचार के दौरान रोगी का पैर जमीन से स्पर्श नहीं होना चाहिए पैर के तलुवों पर चुंबक का स्पर्श कराते समय चुंबक को लकडी के पटरे पर रख कर उपचार करना चाहिए। वहीं, चुंबकों का प्रयोग करने की अवघि रोग के स्वरूप, रोग की अवघि, चुंबकित किए जाने वाले अंगों, रोगी की व्यक्तिगत सुग्राह्यता आदि पर निर्भर करती है। प्राय: इसका फैसला चुंबक-चिकित्सक पर छोड दिया जाता है कि वो उपरोक्त कारणों को देखते हुए कितनी अवघि तक चुंबकों के प्रयोग का निर्देश देता है।
विभिन्न रोगों का रेकी से इलाज:*
टायफायड- टायफायड होने पर रोगी के पैरों के तलुवों मे सुबह के समय एक बार शक्तिशाली चुंबकों का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद शाम को कोहनी के मोड के अंतिम पाçश्üाक भाग में दक्षिणी घ्रव और पीछे की ओर उठी हुई कशेरूका के बीचों-बीच गर्दन की सातवीं कशेरूका पर उत्तरी घ्रुव वाले चुंबकों का प्रयोग करना चाहिए। चुंबकीय जल तैयार कर दो-दो घंटे के अंतर पर रोगी को पिलाना चाहिए। तेज बुखार रहने पर कनपटियों पर नीला तेल लगाने से आराम मिलता है।
गुर्दे की पथरी- इस रोग के इलाज के लिए चुंबकों का उपयोग सबसे अघिक लाभदायक होता है। गुर्दे में तेज दर्द होने पर उस स्थान पर लगाना चाहिए जहां पर दर्द हो रहा है। चुंबक का स्पर्श कराते समय इस बात का घ्यान रखना चाहिए कि उत्तरी घ्रुव वाला चुंबक शरीर के दाई ओर हो और दक्षिणी घ्रुव वाला चुंबक उत्तर की ओर लगाया जाए। रोगी को नियमित रूप से पैरों के तलुवों में शक्तिशाली चुंबक का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही दिन में तीन-चार बार चुंबकीय जल का भी सेवन करना चाहिए। चुंबकीय उपयोग के साथ चुंबकीय जल का प्रयोग केवल पथरियो को घोलकर शरीर से बाहर निकालने का काम ही नहीं करता बल्कि शरीर में उन लवणों के जमाव से भी छुटकारा दिलाता है जो पथरी बनाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
दमा- दमा रोग के उपचार के दौरान रोगी को सुबह-सवेरे हथेलियों पर चुंबक लगाने चाहिए। शाम को कंघे की हaी के नीचे उत्तरी घु्रव वाले सेरामिक चुंबक लगाना चाहिए। यदि रोगी को मघुमेह न हो तो रोग की तीव्रता के दौरान उसे एक गिलास पानी में 2-3 चम्मच ग्लूकोज घोल कर पिला देना चाहिए। ऎसा माना जाता है कि दमा के कारण रोगी के ब्लड में शुगर की कमी हो जाती है। जिसके कारण दमा का दौरा पड जाता है।
पीठ का दर्द- पीठ अथवा कमर मे यदि बहुत अघिक दर्द हो रहा हो तो रोगी को पूरी तरह आराम करना चाहिए और ठोस बिस्तर पर सोना चाहिए, ताकि रीढ की हaी बिल्कुल सीघी रहे। बैठते और खडे होते समय भी सीघा तन कर खडा होना या बैठना चाहिए। जब दर्द का फैलाव बहुत लंबाई में ऊपर से नीचे की ओर हो तो दर्द वाले स्थान के सबसे ऊपरी भाग पर उत्तरी घ्रुव वाला चुंबक और सबसे निचले भाग पर दक्षिणी घ्रुव वाला चुंबक लगाना चाहिए। इसी तरह यदि दर्द का फैलाव दाईं ओर से बाई ओर की चौडाई में हो तो उत्तरी घ्रुव वाला चुंबक दाईं तरफ दर्द वाले स्थान पर और दक्षिणी घु्रव वाला चुंबक बाई ओर की दर्द वाली जगह पर लगाना चाहिए। यह क्रिया सुबह के समय की जानी चाहिए।
मोटापा- चुंबकीय चिकित्सा पद्धति के द्वारा मोटापे का उपचार भी किया जा सकता है। यदि मोटापा शरीर की किसी ग्रंथी के दोषपूर्ण हो जाने के कारण है तो ग्रंथियों को नियमित गति देने के लिए चुंबक का प्रयोग किया जाता है। रोज सुबह हथेलियों पर शक्तिशाली चुंबकों का प्रयोग करना चाहिए। शाम को नाभि के लगभग 10 सेंटीमीटर ऊपर और मघ्य रेखा के 5 सेंटीमीटर की दूरी पर दोनों ओर चुंबक का प्रयोग करना चाहिए। चुंबकों का प्रयोग करते समय यह घ्यान रखना चाहिए कि उत्तरी घ्रुव वाले चुंबक का प्रयोग बाई ओर किया जाए और दक्षिणी घु्रव वाला चुंबक दाई ओर हो।
*चुंबकीय उपचार के दौरान इस पद्धति का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। किसी प्रशिक्षित चिकित्सक से इलाज करवाना या उसकी देख-रेख में उपचार करना बेहतर होगा।