rajpaldular
August 14th, 2008, 05:43 PM
:mad:
स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को पहले अवैधानिक गतिविधियां (निरोधक) कानून के तहत प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन हाल ही विशेष न्यायाधिकरण ने प्रतिबंध आगे जारी रखने को न्यायसंगत नहीं माना, क्योंकि सरकार इस संगठन के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य पेश नहीं कर पाई। निस्संदेह यह प्रकरण केन्द्र सरकार की अक्षमता का द्योतक है, पर उच्चतम न्यायालय ने अप्रिय स्थिति आने से बचा लिया।
यह भली भांति ज्ञात है कि सिमी एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है जिसका उद्देश्य भारत को इस्लामी देश के रूप में परिवर्तित कर कथित तौर पर "भारत को आजाद" कराना है। सिमी ऎसे कट्टरपंथियों का समूह है, जिनका घोषित लक्ष्य ताकत और हिंसा का सहारा लेकर दार-उल-इस्लाम (इस्लाम की धरती) की स्थापना करना है। अगर इस संगठन के अंगीकृत उद्देश्यों को सही ढंग से न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता तो वे इस पर प्रतिबंध की अवधि बढ़ाने के लिए पर्याप्त होते।
सिमी की स्थापना अप्रेल 1977 में अलीगढ़ (उत्तरप्रदेश) में की गई थी। वेस्टर्न इलिनोइस यूनिवर्सिटी मैकॉम्ब के पत्रकारिता व जन सम्पर्क विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीकी इसका संस्थापक अघ्यक्ष था। इसका मूल उद्देश्य जमात-ए-इस्लामी हिन्द की एक शाखा के रूप में उदार संगठन बनना था।
इस संगठन के घोषित लक्ष्य लोगों की जिन्दगी को पवित्र कुरान के अनुसार चलाना, इस्लाम का प्रचार-प्रसार और इस्लाम के लिए जिहाद करना है, जो मूलत: गैर-राजनीतिक हैं, लेकिन गुप्त एजेंडा कुछ और ही है।
संगठन देश के मुस्लिम युवाओं को इस्लाम के कट्टरपंथी प्रचार-प्रसार और शरीयत-आधारित इस्लामिक शासन की स्थापना के लिए जागरूक करने के प्रयास करता रहा है। संगठन का पंथ निरपेक्षता, भारतीय संविधान और पंथ निरपेक्ष राज्य में कतई विश्वास नहीं है। सिमी का लक्ष्य बढ़ते नैतिक पतन, भारतीय समाज की यौन अनैतिकता और अवनतिकारक पश्चिमी संस्कृति का पुरजोर विरोध करना भी है। यह अक्सर कहता रहा है कि इसके लक्ष्यों में "खिलाफत" की स्थापना और इस्लाम की सर्वोच्चता कायम करने के लिए जिहाद करना भी शामिल है।
सिमी के अनुसार अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन एक सच्चे मुजाहिद के रूप में असाधारण उदाहरण है जो "उम्मा" के पक्ष में जिहाद लड़ रहा है। सिमी द्वारा की जाने वाली इस्लाम की व्याख्या व्यापक रूप से जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक सैयद अबुल आला मौदूदी के दर्शन से प्रभावित है। इसलिए यह संगठन सभी गैर- मुस्लिमों को "काफिर" और "अल्लाह के दुश्मन" मानता है, जिनके खिलाफ जिहाद जरूरी है।
वर्ष 2002 में आतंकवाद विरोधी कानून के तहत इस संगठन पर प्रतिबंध लगने तक इसके राष्ट्रीय अघ्यक्ष के रूप में डॉ. शाहिद बद्र फलाही और महासचिव के रूप में सफदर नागौरी काम करते थे। बाद में यह संगठन भूमिगत होकर नागौरी के नेतृत्व में काम करने लगा था। नागौरी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों से सम्पर्क साधने की कोशिश कर रहा था। नागौरी सिमी की गतिविधियों को किसी बड़े संगठन की छत्रछाया में पुनर्जीवित करना चाहता था।
जानकारी के अनुसार सिमी रियाद स्थित वर्ल्ड एसेम्बली ऑफ मुस्लिम यूथ से आर्थिक सहायता प्राप्त करती है और इसके कुवैत स्थित इंटरनेशनल इस्लामिक फैडरेशन ऑफ स्टूडेन्ट्स ऑर्गेनाइजेशन से भी निकट संबंध हैं। इसे पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों से भी आर्थिक मदद प्राप्त होती है। शिकागो स्थित कंसल्टेटिव कमेटी ऑफ इंडियन मुस्लिम्स से भी सिमी आर्थिक मदद लेता है। सिमी के पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल स्थित जमात-ए-इस्लाम (जेईआई) संगठन से भी निकट संबंध हैं। सिमी बांग्लादेश स्थित जेईआई की विद्यार्थी शाखा इस्लामी छात्र शिबिर (आईसीएस) के साथ भी काम करती है। सिमी के हिज्बुल मुजाहिद्दीन से भी निकट संबंध रहे हैं। सिमी के नेताओं के पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से भी निरंतर सम्पर्क रहे हैं। आईएसआई द्वारा भारत में अस्थिरता फैलाने की योजना में सिमी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
यह भी जानकारी मिली है कि सिमी हरकत उल मुजाहिद्दीन-बी जैसे संगठन के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में भर्तियां कराने में भी सक्रिय सहयोग देती रही है। सूत्रों के मुताबिक सिमी के कार्यकर्ता हूजी के कार्यकर्ताओं को विस्फोटक लाने, ले जाने के लिए परिवहन सुविधा, धन और सुरक्षित शरण स्थल भी उपलब्ध करवाते हैं।
भारत में सक्रिय विभिन्न कट्टरपंथी इस्लामी संगठन भी कथित रूप से सिमी के पूर्व नेताओं द्वारा ही नियंत्रित होते हैं। इनमें केरल स्थित नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट व इस्लामिक यूथ सेन्टर और तमिलनाडु स्थित तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नेत्र कजगम प्रमुख हैं।
एक आधिकारिक सूत्रों के अनुसार वर्ष 1993 में जब एक सिख आतंककारी पकड़ा गया तो उसने रहस्योद्घाटन किया था कि भारत में विघ्वंसात्मक गतिविधियां करने के लिए सिमी के कार्यकर्ताओं, सिख और कश्मीरी आतंककारियों को जमात-ए-इस्लामी के जरिए आईएसआई पाकिस्तान लेकर
गई थी।
सिमी के कई अग्रिम संगठन कट्टर धार्मिक विचारों को भारत के मुस्लिम युवाओं में फैला रहे हैं। वे "परामर्श एवं निर्देश केन्द्र" चलाकर उन्हें अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सिमी अपने 400 अंसार (पूर्णकालिक सदस्य) और लगभग 20 हजार साधारण सदस्यों को "मानव निर्मित" संस्थानों का विरोध करने और उम्मा के लिए काम करने का संदेश देती रही है। 30 वर्ष की उम्र तक के विद्यार्थी इसके सदस्य होते हैं और इस उम्र सीमा को पार करने पर वे संगठन से सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
सिमी की स्कूली छात्र शाखा "शाहीन फोर्स" के नाम से जानी जाती है। यह स्कूली बच्चों को वर्तमान भटकाव के दौर और पाप से बचाने और उन्हें इस्लामी संस्कृति की शरण में रखने पर जोर देती है। सिमी की एक शाखा और भी है जो इस्लामी मूल्यों के लिए काम करने के लिए लड़कियों को सदस्य बनाने पर भी जोर देती है।
सिमी अपने विचारों व आदर्शो के प्रचार के लिए विभिन्न स्थानीय भाषाओं में पत्रिकाएं भी प्रकाशित करती है। इनमें मलयालम में विवेकम, तमिल में सेधि मडल, बंगाली में रूपांतर, गुजराती में इकरा, हिन्दी में तहरीक, उर्दू में अल हरका और शाहीन टाइम्स शामिल हैं। इन सब बातों से सिमी की गतिविधियां सहज ही राष्ट्र विरोधी नजर आती हैं। ऎसे में उसे आराम से अपनी गतिविधियां संचालित करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। सरकार को इस प्रकरण को बेहद न्यायसंगत ढंग से पर्याप्त व पुख्ता सबूतों के साथ पेश करना चाहिए ताकि न्यायालय बिना किसी परेशानी के इस पर प्रतिबंध लागू रखने में समर्थ हो सके।
सिमी की गतिविधियां सहज ही राष्ट्र विरोधी नजर आती हैं। ऎसे में उसे आराम से अपनी गतिविधियां संचालित करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। सरकार को इस प्रकरण को ज्यादा न्यायसंगत ढंग से पर्याप्त व पुख्ता सबूतों के साथ पेश करना चाहिए ताकि न्यायालय बिना किसी परेशानी के इस पर प्रतिबंध लागू रखने में समर्थ हो सके
स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को पहले अवैधानिक गतिविधियां (निरोधक) कानून के तहत प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन हाल ही विशेष न्यायाधिकरण ने प्रतिबंध आगे जारी रखने को न्यायसंगत नहीं माना, क्योंकि सरकार इस संगठन के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य पेश नहीं कर पाई। निस्संदेह यह प्रकरण केन्द्र सरकार की अक्षमता का द्योतक है, पर उच्चतम न्यायालय ने अप्रिय स्थिति आने से बचा लिया।
यह भली भांति ज्ञात है कि सिमी एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है जिसका उद्देश्य भारत को इस्लामी देश के रूप में परिवर्तित कर कथित तौर पर "भारत को आजाद" कराना है। सिमी ऎसे कट्टरपंथियों का समूह है, जिनका घोषित लक्ष्य ताकत और हिंसा का सहारा लेकर दार-उल-इस्लाम (इस्लाम की धरती) की स्थापना करना है। अगर इस संगठन के अंगीकृत उद्देश्यों को सही ढंग से न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता तो वे इस पर प्रतिबंध की अवधि बढ़ाने के लिए पर्याप्त होते।
सिमी की स्थापना अप्रेल 1977 में अलीगढ़ (उत्तरप्रदेश) में की गई थी। वेस्टर्न इलिनोइस यूनिवर्सिटी मैकॉम्ब के पत्रकारिता व जन सम्पर्क विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीकी इसका संस्थापक अघ्यक्ष था। इसका मूल उद्देश्य जमात-ए-इस्लामी हिन्द की एक शाखा के रूप में उदार संगठन बनना था।
इस संगठन के घोषित लक्ष्य लोगों की जिन्दगी को पवित्र कुरान के अनुसार चलाना, इस्लाम का प्रचार-प्रसार और इस्लाम के लिए जिहाद करना है, जो मूलत: गैर-राजनीतिक हैं, लेकिन गुप्त एजेंडा कुछ और ही है।
संगठन देश के मुस्लिम युवाओं को इस्लाम के कट्टरपंथी प्रचार-प्रसार और शरीयत-आधारित इस्लामिक शासन की स्थापना के लिए जागरूक करने के प्रयास करता रहा है। संगठन का पंथ निरपेक्षता, भारतीय संविधान और पंथ निरपेक्ष राज्य में कतई विश्वास नहीं है। सिमी का लक्ष्य बढ़ते नैतिक पतन, भारतीय समाज की यौन अनैतिकता और अवनतिकारक पश्चिमी संस्कृति का पुरजोर विरोध करना भी है। यह अक्सर कहता रहा है कि इसके लक्ष्यों में "खिलाफत" की स्थापना और इस्लाम की सर्वोच्चता कायम करने के लिए जिहाद करना भी शामिल है।
सिमी के अनुसार अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन एक सच्चे मुजाहिद के रूप में असाधारण उदाहरण है जो "उम्मा" के पक्ष में जिहाद लड़ रहा है। सिमी द्वारा की जाने वाली इस्लाम की व्याख्या व्यापक रूप से जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक सैयद अबुल आला मौदूदी के दर्शन से प्रभावित है। इसलिए यह संगठन सभी गैर- मुस्लिमों को "काफिर" और "अल्लाह के दुश्मन" मानता है, जिनके खिलाफ जिहाद जरूरी है।
वर्ष 2002 में आतंकवाद विरोधी कानून के तहत इस संगठन पर प्रतिबंध लगने तक इसके राष्ट्रीय अघ्यक्ष के रूप में डॉ. शाहिद बद्र फलाही और महासचिव के रूप में सफदर नागौरी काम करते थे। बाद में यह संगठन भूमिगत होकर नागौरी के नेतृत्व में काम करने लगा था। नागौरी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों से सम्पर्क साधने की कोशिश कर रहा था। नागौरी सिमी की गतिविधियों को किसी बड़े संगठन की छत्रछाया में पुनर्जीवित करना चाहता था।
जानकारी के अनुसार सिमी रियाद स्थित वर्ल्ड एसेम्बली ऑफ मुस्लिम यूथ से आर्थिक सहायता प्राप्त करती है और इसके कुवैत स्थित इंटरनेशनल इस्लामिक फैडरेशन ऑफ स्टूडेन्ट्स ऑर्गेनाइजेशन से भी निकट संबंध हैं। इसे पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों से भी आर्थिक मदद प्राप्त होती है। शिकागो स्थित कंसल्टेटिव कमेटी ऑफ इंडियन मुस्लिम्स से भी सिमी आर्थिक मदद लेता है। सिमी के पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल स्थित जमात-ए-इस्लाम (जेईआई) संगठन से भी निकट संबंध हैं। सिमी बांग्लादेश स्थित जेईआई की विद्यार्थी शाखा इस्लामी छात्र शिबिर (आईसीएस) के साथ भी काम करती है। सिमी के हिज्बुल मुजाहिद्दीन से भी निकट संबंध रहे हैं। सिमी के नेताओं के पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से भी निरंतर सम्पर्क रहे हैं। आईएसआई द्वारा भारत में अस्थिरता फैलाने की योजना में सिमी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
यह भी जानकारी मिली है कि सिमी हरकत उल मुजाहिद्दीन-बी जैसे संगठन के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में भर्तियां कराने में भी सक्रिय सहयोग देती रही है। सूत्रों के मुताबिक सिमी के कार्यकर्ता हूजी के कार्यकर्ताओं को विस्फोटक लाने, ले जाने के लिए परिवहन सुविधा, धन और सुरक्षित शरण स्थल भी उपलब्ध करवाते हैं।
भारत में सक्रिय विभिन्न कट्टरपंथी इस्लामी संगठन भी कथित रूप से सिमी के पूर्व नेताओं द्वारा ही नियंत्रित होते हैं। इनमें केरल स्थित नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट व इस्लामिक यूथ सेन्टर और तमिलनाडु स्थित तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नेत्र कजगम प्रमुख हैं।
एक आधिकारिक सूत्रों के अनुसार वर्ष 1993 में जब एक सिख आतंककारी पकड़ा गया तो उसने रहस्योद्घाटन किया था कि भारत में विघ्वंसात्मक गतिविधियां करने के लिए सिमी के कार्यकर्ताओं, सिख और कश्मीरी आतंककारियों को जमात-ए-इस्लामी के जरिए आईएसआई पाकिस्तान लेकर
गई थी।
सिमी के कई अग्रिम संगठन कट्टर धार्मिक विचारों को भारत के मुस्लिम युवाओं में फैला रहे हैं। वे "परामर्श एवं निर्देश केन्द्र" चलाकर उन्हें अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सिमी अपने 400 अंसार (पूर्णकालिक सदस्य) और लगभग 20 हजार साधारण सदस्यों को "मानव निर्मित" संस्थानों का विरोध करने और उम्मा के लिए काम करने का संदेश देती रही है। 30 वर्ष की उम्र तक के विद्यार्थी इसके सदस्य होते हैं और इस उम्र सीमा को पार करने पर वे संगठन से सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
सिमी की स्कूली छात्र शाखा "शाहीन फोर्स" के नाम से जानी जाती है। यह स्कूली बच्चों को वर्तमान भटकाव के दौर और पाप से बचाने और उन्हें इस्लामी संस्कृति की शरण में रखने पर जोर देती है। सिमी की एक शाखा और भी है जो इस्लामी मूल्यों के लिए काम करने के लिए लड़कियों को सदस्य बनाने पर भी जोर देती है।
सिमी अपने विचारों व आदर्शो के प्रचार के लिए विभिन्न स्थानीय भाषाओं में पत्रिकाएं भी प्रकाशित करती है। इनमें मलयालम में विवेकम, तमिल में सेधि मडल, बंगाली में रूपांतर, गुजराती में इकरा, हिन्दी में तहरीक, उर्दू में अल हरका और शाहीन टाइम्स शामिल हैं। इन सब बातों से सिमी की गतिविधियां सहज ही राष्ट्र विरोधी नजर आती हैं। ऎसे में उसे आराम से अपनी गतिविधियां संचालित करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। सरकार को इस प्रकरण को बेहद न्यायसंगत ढंग से पर्याप्त व पुख्ता सबूतों के साथ पेश करना चाहिए ताकि न्यायालय बिना किसी परेशानी के इस पर प्रतिबंध लागू रखने में समर्थ हो सके।
सिमी की गतिविधियां सहज ही राष्ट्र विरोधी नजर आती हैं। ऎसे में उसे आराम से अपनी गतिविधियां संचालित करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। सरकार को इस प्रकरण को ज्यादा न्यायसंगत ढंग से पर्याप्त व पुख्ता सबूतों के साथ पेश करना चाहिए ताकि न्यायालय बिना किसी परेशानी के इस पर प्रतिबंध लागू रखने में समर्थ हो सके