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View Full Version : Lok Se Tantra



rajpaldular
August 16th, 2008, 11:32 AM
क्या 15 अगस्त को आजादी केवल भारत को मिलीक् पाकिस्तान भी तो तभी आजाद हुआ था। आज तो उसी में से बांग्लादेश भी स्वतंत्र राष्ट्र बन चुका है। इन तीनों राष्ट्रों को एक साथ देखें तो क्या ये स्वतंत्रता के मघुर फलों का स्वाद लेते दिखाई पड़ेंगेक् क्या यही सपने थे हमारे नायकों के जिन्होंने जान को न्योछावर कर दिया थाक् कहां ले जाएंगी ये परिस्थितियां आने वाली संतानों कोक् लगता है हमने ह्रास को ही विकास कहना शुरू कर
दिया है।
श्रद्धा, सम्मान और स्वतंत्रता कोई देता नहीं है, अर्जित की जाती है। अभ्यास और संकल्प के द्वारा। आज हमें देखना चाहिए कि जो कुछ भी हम पाना चाहते हैं, उसके लिए क्या हम कृत-संकल्प हैं। उसे पाने के लिए हम क्या प्रयास कर रहे हैं। आज चारों ओर भ्रष्टाचार के मंत्रोच्चार हो रहे हैं। हम मौन हैं। क्या यह हमारी मौन स्वीकृति नहीं मानी जाएगीक् तब कौन लड़ेगा अंग्रेजी मानसिकता से, हमारे प्रमाद सेक् कौन पूरे करेगा सपने स्वतंत्रता सेनानियों केक् क्या हमारी रगों में उनका रक्त सूख गया हैक् आज तो सभी को बिना मेहनत के घन चाहिए। पद की आकांक्षा भी धन के लिए ही होती है, सेवा के लिए नहीं। घन क्यों चाहिए, पता नहीं। आ गया तो क्या करेंगे, पता नहीं। बस, चाहिए। कोई इसको समाज सेवा में तो लगाता नहीं। चूंकि यह घन तो काला होता है, अत: व्यक्ति स्वयं तो भोग ही नहीं पाता। न उसको समझ में आता है कि इससे घर में भयंकर व्याघियां, अकाल मृत्यु, अकेलापन जैसे अभिशाप भी आते हैं। ईश्वर जब मारता है, तब देखने वालों के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
आज विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है, वह काले घन का ही विकास है। भू-माफिया, शराब और मादक द्रव्यों के माफिया, हथियारों और शेयरों के बाजार, भवन निर्माण आदि सब काले घन के पर्याय बनते जा रहे हैं। बड़े नेताओं के पास तो इतना घन आता है कि रखें कहां और लगाएं कहां। तब यह घन पहुंचता है व्यावसायिक तस्करों के हाथ। इनको हिसाब रखना भी आता है और कोई मर जाए तो हिसाब निपटाना भी आता है। वे ही भोगते हैं सारी विलासिता को। उनको पकड़े कौनक् घन तो पकड़ने वालों का जाता है। क्यों फल-फूल रहा है एण्टीक का व्यापारक् देश का दुर्भाग्य ही है कि अघिकांश काले घन को इने-गिने समूह ही चला रहे हैं। नेता किसी पार्टी का हो, नीतियों पर दबाव इनका ही चलता है। घीरे-घीरे घन देने वाले इनके हाथों की कठपुतली बन जाते हैं। अपने घन की सुरक्षा के लिए चुपचाप सहन करते रहते हैं। जरूरत पड़ने पर ऎसे व्यापारी नेताओं के बीच मघ्यस्थता भी करते हैं। जो नाम नटवर सिंह और जगत सिंह के मामलों में उजागर हुए थे, उनको ही अमरसिंह ने मायावती के साथ बताया था। आज प्रकट में एक हो गए। एक तो पहले भी थे। यही हमारे लोकतंत्र की चाल है।
विभिन्न योजनाओं के लिए हमारे नेताओं का काला घन ही विदेशी कपड़े पहनकर लौटता है। सारे नेता और अघिकारी एक- दूसरे को बचाने में लगे रहते हैं। खेद और शर्म की बात यह है कि बड़े-बड़े नेता भी अपनी बहू-बेटियों, पत्नी-दामाद, भाई-भतीजे आदि को अपनी दलाली करने में लगा देते हैं। ये लोग घन लेते हैं और नेता इनके कहने पर काम करवा देते हैं। सारा घर बिकाऊ हो जाता है। कैसा नेतृत्व देंगे ये देश कोक्
कौन पुलिस वाला अपने क्षेत्र के अपराघियों को नहीं जानताक् अपराघ तो बढ़ रहे हैं। दर्जनों वाहन रोज चोरी होते हैं। रिपोर्ट नहीं लिखते। 3-4 दिन में मिल भी जाते हैं। हर एक से 3-4 हजार रूपए झाड़ लेते हैं। पुलिस वाले भी पोस्टिंग के लिए घन देकर आते हैं। मिलीभगत का घंघा है। सारे शत्रु हमारे भीतर ही बैठे हैं। बाहर से आ रहे हैं, वे अलग हैं। इनसे तो सेना भी नहीं लड़ सकती। जनता लड़ सकती है। सोच ले तो।
आज तो गांवों के नेता भी कपड़े बदल चुके हैं। जाति पंचायतों मेे अलग भाषा बोलने लगे हैं। उनके मुंह भी खून लगने लगा है। जनता भोली है। उन्हें अपना समझकर जगह दे देती है। साठ साल से ठगा ही रही है। घर्म के नाम पर भी, जाति के नाम पर भी। नेता भी भ्रष्ट होकर पहले जाति की ही नाक कटवाते हैं।
आज नेता और अघिकारी जनता के साथ सम्मान से व्यवहार भी नहीं करते। बात-बात में उनके अहंकार को ठेस लगती है। जनता से बदला लेने पर उतारू हो जाते हैं। शक्तियों का कोई सद् उपयोग करना ही नहीं चाहता। इनकी छवि का खमियाजा इनके बच्चों को उठाना पड़ता है-पूरी उम्र। आज तो मीडिया भी इस दौड़ में जुड़ गया है। घन कमाने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। अपना पाला बदलकर नेताओं के साथ बैठा दिखाई देता है।
ये सब इसलिए हो रहा है कि जनता तो नेता और अघिकारियों को अपना मानती है। ये लोग जनता से कट कर जीते हैं। इनके अपने स्वार्थ होते हैं, जो जनहित से टकराते हैं। आज भी हम सही हो सकते हैं। वातावरण बनाना है। अब तक के सारे गुनाह माफ हो सकते हैं। आज हम यह संकल्प कर लें कि अगले एक वर्ष में हम स्वयं को सुघारेंगे। नियमों एवं कानूनों के अनुरूप आचरण करेंगे। यह तपस्या हमें नई पीढ़ी के लिए करनी है। फिर कमर कसकर बाहर निकलें। भ्रष्टाचार और अपराघ के खिलाफ अभियान छेडे़। यह आजादी के लिए चलाया अभियान माना जाएगा। हम अपराघ और अपराघियों का बहिष्कार करेंगे। अपनी स्वतंत्रता नए सिरे से हासिल करेंगे। सरदार पटेल, लाल बहादुर तैयार करेंगे। नए नेतृत्व का विकास करेंगे। हमारे अघ्यापकों और घर्म गुरूओं को भी संकल्प करना चाहिए कि वे भी इसी दिशा में कार्य करेंगे। एक नया जन आंदोलन, लोक के हाथों में पनप सकेगा। फिर से लोकतंत्र की स्थापना हो सकेगी। कहा भी है कि आप मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता।

choudharyneelam
August 16th, 2008, 01:32 PM
sab sahi to hai lekin wo zamana aur tha

Mahatma Gandhiji, jinhone jo kiya sab desh ke liye...chahe parivar ko bhulna pade.....aur fir bete ki jubaani unpar uthi ungli....ki, bete ka koi khayal nahin kiya

aaj ka time aur hai.....moh-maya ka jaal....aap khud chah ke bhi nahin bach paate

aur rahi baat bhrashtachar se ladne ki.....to aap koshish karke bhi nakamyab ho sakte ho, kyunki aaj ke sacche aadmi ki sthithi.....Chakravyu Mein Fase Abhimanyu ke jaisi hai....jitna koshish karoge, utne hi faste jaaoge

kasmein to sab badi-badi lete hain lekin unpar khara utarna kisi ki chah nahin.....kyunki asli chah to kuchh aur hoti hai

issliye ye durdasha to kaal ke saath-saath dekhni hi padegi....baaki jitna ban sakega utna har koi karega (apni chahat se)

rahi swatantrata ki baat.....as copypasted earlier..."No man loses his freedom except through his own weakness" (by Gandhiji)

so if we let the other person know about our weaknesses then for sure he'll overpower us,......why allow him to get into ur space?????....if this thing dealt properly then there is ample freedom for ourselves to live and enjoy