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View Full Version : Mout Bukh Ka Ek Pita Hai, Fir Tujhe Kaise Gyan Nahi !



spdeshwal
October 24th, 2008, 09:40 AM
मौत भूख का एक पिता है , फ़िर तुझे कैसे ज्ञान नही ?

आज में आप सभी के साथ पंडित लख्मीचंद की एक बहुत सुंदर रचना बाँटना चाहता हूँ ! दादा लखमी की इस सुंदर रचना को स्वर दिया मा. सतबीर जी ने !

एक पिता है , हेरे फ़िर तुझे कैसे ज्ञान नही !
अधर्म करके जीना चाहता , राजधर्म का ध्यान नही
मोंत भूख का एक पिता है , फ़िर तुझे कैसे ज्ञान नही
अधर्म करके जीना चाहता , राज धर्म का ध्यान नही !

इस सुंदर रचना को पंडित जी ने इस मार्मिक दृष्टान्त की सहायता से समझाने का पर्यास किया है:

एक मालिक के घर पर एक गऊ अपाहिज हो जाती है !मालिक ने गऊ को घर से निकल दिया !
गऊ दूर जंगल में जाकर अपना पेट गुजरा करती है ! परमात्मा की कृपा से उसका एक सांड से मिलन हो जाता है ! सांड के मिलने से उसका काफी परिवार हुआ ! दिन बितते चले जाते हैं ! एक बार परिवार की सभी सदय्स्या गउएँ मिलकर कहती है ,
हे माँ इस हद से पार , खाई के परली( दूसरी ) तरफ़ काफी लम्बी २ घास उगी है , सहज ही पेट भर जाता है !वह लंगडी गाय उनके साथ चली जाती है !भगवान् की ऐसी निगाह फिरि , एक शेर का आना हो जाता है !शेर के दहाड़ने से सभी गउएँ भाग जाती हैं !वह लंगडी गऊ अकेली रह जाती है ! शेर उसे दबोच लेता ! वह दुआएं करती है ! रे भाई मेरा एक छोटा बच्चा है , में उसको दूध पिला के तेरे समक्ष आजाउंगी ! शेर ने उसको छोड़ दिया!
उसने अपने बच्चे को दूध पिलाया, मन को संतोष मिला शान्ति मिली! और फ़िर अपन वचन पुरा करती हुई उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है जब वह गऊ को मारने के लिए झपटा , वह कहती है, " रे पापी ये बता मुझे क्यों मारना चाहता है ? वह कहता है मुझे भूख लगी है और यदि भूख को ना मेटा जाए तो आत्मा को ठेस लगती है ! आत्मा मुसने से फ़िर कुछ नही रहता !
गऊ कहती है , रे पापी मुझे मेरी मोंत दिखाई देती है !क्या मेरी आत्मा नही मुसती ?
तेरी भी आत्मा मुसती है !
भूख लगने से भी आत्मा मुसती है , मोत दिखने से भी आत्मा मुसती है !
दोनों का एक ही जगह से जन्म हुआ है , कुछ ज्ञान कर, ज्ञान क बिना तू अधुरा है !
ज्ञान के बिना तुझे सुख नही मिल सकता , मोक्ष नही मिल सकता ! वह लंगडी गऊ उस शेर को ज्ञान देती है!
क्या भला ?


अरे ज्ञान बिना संसार दुखी, ज्ञान बिना दुःख सुख खेणा,
ज्ञान से ऋषि तपस्या करते , जो तुझको पड़ा पड़ा सहणा !
ज्ञान से कार व्यवहार चालते, साहूकार से ऋण लेना !
ज्ञान से प्रजा का पालन करके, ब्याज मूल सब दे देना !
अरे ले कर्जा कोए मार किसे का , जो रहती ये सच्ची शान नही !
अधर्म करके जीना ......

एक सत्यकाम ने गुरु की गउओं को इतने दिन तक चरा दिया,
जहाँ गई वो साथ गया , उसने प्रेम से उदर भरा दिया!
सत्यकाम ने गुरु के वचन को धर्मनाव पर तिरा दिया,
फ़िर से बात सुनी सांड की यम् का दर्शन करा दिया!
ज्ञानी पुरूष कोण कहे , पशुओं में भी भगवान् नही !
अधर्म करके जीना .

होए ज्ञान के कारण पृथ्वी ,जल ,वायु , तेज , आकाश खड़े :
ज्ञान के कारण सो कोस परे , ज्ञान के कारण पास खड़े !
ज्ञान के कारण ऋषि तपस्या करते , बन इश्वर के दास खड़े ,
मुझ को मोक्ष मिले होण ने, न्यू करके पूरी आस खड़े
जान जाओ पर रहो धर्म पे , इस देह का मान गुमान नही !
अधर्म करके जीना ..........

फेर अंत में क्या कहती है भला:

ज्ञान बिना मेरी टांग टूटगी , ज्ञान बिना कूदी खाई !
ज्ञान बिना में लंगडी होगी , ज्ञान बिना बुड्ढी ब्याई !
ज्ञान बिना तू मुझको खाता, कुछ मन में ध्यान करो भाई !
लख्मीचंद कह क्यों भूल गए सब, धर्म शरण की यो राही!
इस निराकार का बच्चा बन ज्या, क्यों कह मेरे में भगवान् नही !
अधर्म करके जीना चाहता , राजधर्म का ध्यान नही !

मोंत भूख का एक पिता है , फ़िर तुझे कैसे ज्ञान नही
अधर्म करके जीना चाहता , राज धर्म का ध्यान नही

आप सभी यू ट्यूब पर इस सुंदर रागनी की विडियो का भी लुत्फ उठा सकते हैं :

http://au.youtube.com/watch?v=83vaB9Er91E



खुश रहो!

dndeswal
October 24th, 2008, 10:27 AM
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बहुत खूब सत्यपाल भाई ।

इस रागनी को मैने Jatland Wiki के Haryanavi Folk Lore (http://www.jatland.com/home/Haryanavi_Folk_Lore) सैक्शन में डाल दिया है ।

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downtoearth
October 24th, 2008, 10:43 AM
Deswal sir, the words are very simple but the meaning they convey is the logical interpretation of life in true sense. Highly commendable!!! I mean it!!! Keep pouring!!

jitendershooda
October 24th, 2008, 11:59 AM
Deshwal ji, lekin agar sher nahi kaega to kya karega?
Thanks for sharing.

spdeshwal
October 26th, 2008, 01:21 PM
दयानंद भाई , इस रागनी को जाटविकी में शामिल करने के लिए बहूत धन्यवाद !

रुपेंदर भाई , होसला अफजाई के लिए धन्यवाद ! दरअसल , ये आप जैसे कद्रदानों की ही प्रेरणा है जो घंटो की मेहनत को सार्थक बना देती है !

जीतू भाई , जब इंसान सभी प्राणियों में बुद्धिमान होते हुए भी अपना पेट भरने के लिए दुसरे प्राणी की हत्या कर सकता है , तब शेर का क्या दोष ! लेकिन गाय को भी जीने का उतना ही अधिकार नही है क्या ?
दादा लखमी का इस दृष्टांत को लिखने का भावः यही था की शेर अपना पेट भरने के लिए दुसरे जिव की हत्या अज्ञानवश करता है, लेकिन मनुष्य को इश्वर ने सोचने समझने की शक्ति इस्सी लिए दी है , ताकि वह किसी भी अनर्थ को करने से पहले बार बार विचार करे !



खाश रहो !

harvindermalik
October 26th, 2008, 05:20 PM
Bahuuut badhiya....Ragani Sir... Thanks

SANDEEP5
October 27th, 2008, 02:26 PM
Sataypal ji,

man khush ho gya , bahoot dino baad itni saari gyaan ki baate ek hi post par dekhne ko mili :)