vinod23lamba
January 25th, 2009, 05:01 PM
जाट होने पर गर्व करो-- भूलों नहीं (एक सोच)
जाट खिलाड़ी भूल गए हैं कि वो जाट है
जाट आज खेल के मैदान में छाए हुए है.. क्रिकेट की पिच से लेकर बॉक्सिंग की रिंग तक .. कुश्ती के अखाड़ा से लेकर बैडमिंटन के कोर्ट में ये जाट खिलाड़ी न सिर्फ भारत का झंड़ा ऊंचा कर रहे है.. बल्कि जाटों को खुद पर गर्व करने का एक और मौका दे रहे है। सबसे पहले क्रिकेट की बात की जाए तो सही होगा ..क्योकी भले ही और खेल देश को गौरव दिलाते हो। लेकिन आज भी क्रिकेट की लोकप्रियता के आगे कोई खेल नहीं टिकता। लेकिन क्या एक स्टार सिर्फ स्टार होता है और अपने लोगो के प्रति उसका प्यार और समर्थन खत्म हो जाता है। मैं इस बात को लेकर परेशान हूं और एक जाट होने के नाते मैं ये समझना भी चाहता हूं.. कि आखिर किसी आदमी के लिए अपनी जड़ों की क्या अहमियत होती है।
सहवाग टीम इंडिया की सबसे मजबूत बल्लेबाज़ होने के साथ-साथ वर्ल्ड क्रिकेट में सबसे विस्फोटक बल्लेबाज़ है। प्रवीण कुमार अभी अपने करियर को आगे बढ़ाने में लगे है। लेकिन इन दोनों खिलाड़ियों में जाट के नजरिए से देखा जाए तो वीरू भाई आज बहुत प्रोफोशेनल हो चुके है। इस ब्लॉग को लिखने की प्रेरणा भी मुझे इन दो खिलाड़ियों के व्यवहार से मिली। वहीं दिल्ली के प्रदीप सांगवान आज भी जाट कहे जाने पर बहुत अच्छा महसूस करते है। कुछ ऐसे ही रणजी खिलाड़ी अभी तक तो ...इस बात को मानने में कोई शर्म महसूस नहीं करते कि वो जाट है।
बॉक्सिंग स्टार विजेंद्र के रवैय्ये की भी तारिफ करनी होगी।
ममता ख़रब महिला हॉकी टीम की कप्तान होने के बाद भी अपनी जड़ों से जमी हुई है।
साइना नेहवाल अभी स्टार बनने की ओर हैं और उनसे अब तक के व्यवहार से मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका हूं. कि साइना अभी भी जाट कहलवाने पर गर्व महसूस करती है या नहीं।
कुछ ऐसा ही हाल मीडिया में जाट पत्रकारों का भी है। यहां लोग खुद को स्टार समझ अपने पुराने इतिहास को जल्द से जल्द भूला देना चाहते है।
ये सवाल उठाने का मेरा मतबल सिर्फ इतना है.... कि आप चाहे जिस ऊचाई तक पहुंच जाए लेकिन जहां से आपने अपनी उठान भरी तो उसे कभी न भूले।
अगर आप लोग मेरी बात से सहमत हो तो अपने सूझाव जरूर भेंजे नहीं तो नासमझ समझ कर समझाने की कोशिश करे।
लेकिन मैं अपनी जड़ों को अभी तक नहीं भूला हूं और आगे भी याद रखना चाहूंगा।
vinod lamba
sports correspondent
जाट खिलाड़ी भूल गए हैं कि वो जाट है
जाट आज खेल के मैदान में छाए हुए है.. क्रिकेट की पिच से लेकर बॉक्सिंग की रिंग तक .. कुश्ती के अखाड़ा से लेकर बैडमिंटन के कोर्ट में ये जाट खिलाड़ी न सिर्फ भारत का झंड़ा ऊंचा कर रहे है.. बल्कि जाटों को खुद पर गर्व करने का एक और मौका दे रहे है। सबसे पहले क्रिकेट की बात की जाए तो सही होगा ..क्योकी भले ही और खेल देश को गौरव दिलाते हो। लेकिन आज भी क्रिकेट की लोकप्रियता के आगे कोई खेल नहीं टिकता। लेकिन क्या एक स्टार सिर्फ स्टार होता है और अपने लोगो के प्रति उसका प्यार और समर्थन खत्म हो जाता है। मैं इस बात को लेकर परेशान हूं और एक जाट होने के नाते मैं ये समझना भी चाहता हूं.. कि आखिर किसी आदमी के लिए अपनी जड़ों की क्या अहमियत होती है।
सहवाग टीम इंडिया की सबसे मजबूत बल्लेबाज़ होने के साथ-साथ वर्ल्ड क्रिकेट में सबसे विस्फोटक बल्लेबाज़ है। प्रवीण कुमार अभी अपने करियर को आगे बढ़ाने में लगे है। लेकिन इन दोनों खिलाड़ियों में जाट के नजरिए से देखा जाए तो वीरू भाई आज बहुत प्रोफोशेनल हो चुके है। इस ब्लॉग को लिखने की प्रेरणा भी मुझे इन दो खिलाड़ियों के व्यवहार से मिली। वहीं दिल्ली के प्रदीप सांगवान आज भी जाट कहे जाने पर बहुत अच्छा महसूस करते है। कुछ ऐसे ही रणजी खिलाड़ी अभी तक तो ...इस बात को मानने में कोई शर्म महसूस नहीं करते कि वो जाट है।
बॉक्सिंग स्टार विजेंद्र के रवैय्ये की भी तारिफ करनी होगी।
ममता ख़रब महिला हॉकी टीम की कप्तान होने के बाद भी अपनी जड़ों से जमी हुई है।
साइना नेहवाल अभी स्टार बनने की ओर हैं और उनसे अब तक के व्यवहार से मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका हूं. कि साइना अभी भी जाट कहलवाने पर गर्व महसूस करती है या नहीं।
कुछ ऐसा ही हाल मीडिया में जाट पत्रकारों का भी है। यहां लोग खुद को स्टार समझ अपने पुराने इतिहास को जल्द से जल्द भूला देना चाहते है।
ये सवाल उठाने का मेरा मतबल सिर्फ इतना है.... कि आप चाहे जिस ऊचाई तक पहुंच जाए लेकिन जहां से आपने अपनी उठान भरी तो उसे कभी न भूले।
अगर आप लोग मेरी बात से सहमत हो तो अपने सूझाव जरूर भेंजे नहीं तो नासमझ समझ कर समझाने की कोशिश करे।
लेकिन मैं अपनी जड़ों को अभी तक नहीं भूला हूं और आगे भी याद रखना चाहूंगा।
vinod lamba
sports correspondent