aryasatyadev
May 12th, 2009, 08:33 AM
Hi Friends.... came across an article.... thought i should share with all......
गर्मियों में बाहर तेज धूप, रूखी गर्म हवाएं चलने और अंदर उमस की वजह से हीट स्ट्रोक, पेट से संबंधित समस्याएं और स्किन की बीमारियां आम हो जाती हैं। लाइफस्टाइल में थोड़ा-सा बदलाव करके और चंद एहतियात बरतकर हीट को आसानी से बीट किया जा सकता है।
लू लगना (हीट स्ट्रोक, सन स्ट्रोक)
गर्मियों में झुलसा देनेवाली धूप और गर्म हवाएं कई बार हीट स्ट्रोक की वजह बन जाती हैं। ऐसे में ज्यादा देर तक बाहर रहना खतरनाक हो सकता है। लू लगने पर शरीर में गर्मी का संतुलन बिगड़ जाता है। इससे शुरू में लगातार पसीना आता है। कई बार शरीर में पानी व नमक की कमी होने पर डी-हाइड्रेशन हो जाता है। पोटैशियम और सोडियम की कमी से मरीज को कमजोरी व घबराहट महसूस होती है। कई बार लूस मोशंस या उलटी होने पर लगातार फ्लूइड न लेने से भी शरीर में पानी और सोडियम की कमी हो जाती है और डी-हाइड्रेशन हो सकता है।
लक्षण
बुखार होना, पसीना आना बंद होना, गर्म-सूखी स्किन, सात-आठ घंटे तक पेशाब न आना, बुखार, थकावट, सिर व पेट में दर्द, आंखों में जलन, बार-बार उलटी-दस्त होना, दिल तेजी से धड़कना, अजीबोगरीब बर्ताव, गुस्सा, कन्यूफ्जन, लंबी-लंबी सांस लेना और हालत बिगड़ने पर बेहोशी का अहसास होना। इनमें से कुछ लक्षण दिखाई दें तो फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। शरीर का टेंपरेचर अगर 104 डिग्री फॉरनहाइट से ज्यादा हो तो समझें हालत गंभीर है।
सावधानियां व बचाव
-घर से बाहर निकलते वक्त पानी की बोतल साथ रखें और बीच-बीच में पानी पीते रहें।
- खाली पेट घर से न निकलें।
- अगर कमरे में एसी नहीं चल रहा हो तो खिड़कियां-दरवाजे पूरी तरह बंद न रखें, क्योंकि हवा पास न होने की स्थिति में भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।
- धूप से आकर सादा पानी पीने के बजाय नीबू-पानी, शिकंजी, नारियल पानी, लस्सी, छाछ, आम पना, सत्तू, ठंडाई, खस का शर्बत या जलजीरा पीएं।
-लूस मोशंस होने पर सादा पानी के बजाय नीबू-नमक चीनी या ओआरएस का घोल पिलाते रहें।
खानपान का रखें खयाल
-गमिर्यों में जहां तक हो सके लो-कैलरी डाइट लें और जितनी भूख हो, उसका आधा खाएं।
-खुली रखीं चीजें न खाएं।
-कम तली-भुनी और हल्की चीजें खाएं, क्योंकि इस मौसम में खाना पचने में दिक्कत होती है।
-बासी भोजन न खाएं।
- ज्यादा-से-ज्यादा दही खाएं।
- आम पना, नीबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि लगातार लें।
- आलू, गोभी जैसी गरिष्ठ सब्जियों के बजाय तोरी, भिंडी, लौकी आदि मौसमी सब्जियां खाएं।
- तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, आम. अंगूर जैसे मौसमी फल खाएं।
- फल-सलाद दो घंटे से ज्यादा देर कटे हों तो न खाएं।
- बेल या गुड़ का शरबत काफी फायदेमंद होता है।
- गर्मी में कच्चा प्याज खाना भी फायदेमंद होता है।
फर्स्ट-ऐड
डॉक्टर के पास पहुंचने से पहले ही मरीज की देखभाल शुरू कर दें क्योंकि पहले दो घंटे इलाज के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होते हैं :
- लू लगने पर मरीज को ठंडी या छायादार जगह पर ले जाएं।
- उसे सीधे लिटाएं और सिर के नीचे पतला तकिया रख दें।
- शरीर का टेंपरेचर नीचे लाने की कोशिश करें।
- गले, छाती और कमर के कपड़े ढीले कर दें।
-पंखा चला दें या हाथ से हवा करें।
-भीड़ को हटाएं, हवा आने दें।
- शरीर पर तब तक ठंडे पानी के छींटे मारें या स्पंज करें, जब तक शरीर का तापमान कुछ कम न हो जाए।
- जितनी जल्दी हो सके मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं, क्योंकि शरीर के तापमान के हिसाब से उसे आईसीयू में रखने की जरूरत हो सकती है।
स्किन की समस्याएं
गर्मियों में फंगल इन्फेक्शन, घमौरियां और सनबर्न जैसी दिक्कतें आम हैं। इनसे बचाव या इलाज के नाम पर बिना स्पेशलिस्ट की सलाह के बिना क्रीम आदि न लगाएं, क्योंकि इससे स्किन का रंग काला पड़ सकता है।
बचाव
- घमौरियों और फंगल इन्फेक्शन आदि से बचने के लिए आजकल दिन में कम से कम दो बार अच्छी तरह से नहाएं। अगर साबुन से ऐलर्जि हो या त्वचा रूखी होने का डर हो तो बेसन का इस्तेमाल करें।
- हाथों-पैरों की उंगलियों के बीच और बगलों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें, क्योंकि नमी के कारण यहां फंगल इन्फेक्शन हो सकता है।
-धूप में निकलते वक्त शरीर को ढक कर रखनेवाले कपड़े पहनें।
- कॉटन के सफेद या हल्के रंग वाले मुलायम कपड़ों को ही प्राथमिकता दें, क्योंकि कॉटन पसीना सोखता है और इससे त्वचा पर रगड़ नहीं पड़ती।
- धूप में जाना हो तो शरीर के खुले हिस्सों पर सनस्क्रीन क्रीम लगाएं। इसका असर तीन-चार घंटे तक ही रहता है, इसलिए हर तीन-चार घंटे में स्किन को साफ कर सनस्क्रीन क्रीम लगाएं।
- कितने एसपीएफ का सनस्क्रीन लगाना, यह स्किन की जरूरत के हिसाब से किसी एक्सपर्ट की मदद से तय करें।
- छतरी लेकर धूप में निकलें और स्किन में नमी बरकरार रखने के लिए खूब पानी और रसदार फल खाएं।
टैनिंग और सनबर्न सिर्फ सनस्क्रीन क्रीम लगाने से ठीक नहीं होते। इसके लिए निम्न घरेलू इलाज भी किए जा सकते हैं :
- स्किन पर मुल्तानी मिट्टी या लैक्टोकैलामाइन के लेप से समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है।
- विटामिन-सी युक्त खाने की चीजों जैसे नीबू, टमाटर, संतरा, अमरूद आदि खाने से स्किन के कई इन्फेक्शन से बचा जा सकता है।
- ऐलोवेरा का लेप लगाने से स्किन को ठंडक मिलती है।
- दही में नीबू का रस और हल्दी मिलाकर लगाने से टैनिंग कम होती है।
- बेसन में हल्दी, नीबू, दही और गुलाब जल मिलाकर उबटन की तरह इस्तेमाल करें।
- खीरा, पपीता या केला मसलकर स्किन पर लगाना फायदेमंद होता है।
- आंखों की जलन कम करने के लिए खीरा काटकर आंखों के ऊपर रखें।
कुछ भ्रम और सचाई
पैरासिटोमोल - यह हर मौसम में बुखार कम करने की असरदार दवा नहीं है। गर्मियों में बुखार होने पर यह कारगर नहीं होती। पैरासिटामोल पसीने के ग्लैंड्स को खोलने का काम करती है और गर्मी में शरीर यह काम खुद-ब-खुद कर लेता है। इसलिए बुखार की दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।
पीलापन - गर्मी के दिनों में किडनी पानी की ज्यादा-से-ज्यादा बचत करती है, जिससे यूरीन गाढ़ा होता है। इसके पीलेपन को आमतौर पर लोग पीलिया का संकेत मान लेते हैं, जबकि यह सामान्य बात है। हां, पीलापन यह जरूर बताता है कि आपको पानी ज्यादा पीने की जरूरत है।
पट्टियां रखना - शरीर के बहुत ज्यादा तपने पर पानी की पट्टियां रखने की सलाह दी जाती है लेकिन यह तब तक फायदेमंद नहीं है, जब तक आप शरीर पर रखकर पट्टी के गर्म होते ही इन्हें हटा नहीं लेते। पट्टियां हटाने के बाद ही पानी शरीर की गर्मी लेकर भाप बनकर उड़ता है।
तेज गर्मी में नहाना - कहते हैं कि तेज धूप से आने के बाद नहाने से लू लग जाती है। यह गलत है। नहाने से शरीर का तापमान बैलंस हो जाता है। हालांकि बहुत ठंडे पानी से नहाने से बचना चाहिए।
खाने की तासीर - खाने की कुछ चीजों की तासीर गर्म और कुछ की ठंडी बताई जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा नहीं होता। हर चीज मौसम के अनुरूप काम करती है। जिस मौसम में जो चीज ज्यादा मिलती है, वह फायदेमंद है। उदाहरण के तौर पर मौसमी सब्जियां और फल आदि।
स्किन की बीमारी - कहते हैं खट्टा-मीठा साथ खाने से स्किन की बीमारियां हो जाती हैं, जो गलत है। दोनों चीजें साथ खाने में कोई बुराई नहीं है।
सर्जरी - आंखों की सर्जरी गर्मी में नहीं करानी चाहिए, यह भ्रांति है। आंखों की सर्जरी किसी भी मौसम में करा सकते हैं क्योंकि हॉस्पिटल और थिअटर सही तापमान के आधार पर डिजाइन किए होते हैं।
प्राणायाम व योगासन भी दिलाते हैं राहत
गर्मियों में कुछ योगासन और प्राणायाम काफी फायदेमंद हो सकते हैं। इनमें शीतली प्राणायाम, शवासन और सर्वांगासन महत्वपूर्ण हैं।
शीतली प्राणायाम : पालथी मारकर आराम से बैठें और जीभ को बांसुरी के आकर में मोड़कर बाहर की तरफ निकालें। धीरे-धीरे बाहरी हिस्से के ऊपर से हवा को खींचते हुए फेफड़ों तक सांस भरकर मुंह को बंद कर लें। थोड़ी देर सांस को रोकें, फिर इसे नाक से बाहर फेंकें। जब भी गर्मी का अहसास हो या तेज प्यास लगी हो और पानी न मिले तो यह प्राणायाम करें। पांच से सात बार इस प्रक्रिया को दोहराते ही आराम मिल जाएगा।
ध्यान रखें : शीतली प्राणायाम करने से उन लोगों को परहेज करना चाहिए जिन्हें सर्दी-जुकाम, खांसी या अस्थमा की समस्या है।
गर्मियों में बाहर तेज धूप, रूखी गर्म हवाएं चलने और अंदर उमस की वजह से हीट स्ट्रोक, पेट से संबंधित समस्याएं और स्किन की बीमारियां आम हो जाती हैं। लाइफस्टाइल में थोड़ा-सा बदलाव करके और चंद एहतियात बरतकर हीट को आसानी से बीट किया जा सकता है।
लू लगना (हीट स्ट्रोक, सन स्ट्रोक)
गर्मियों में झुलसा देनेवाली धूप और गर्म हवाएं कई बार हीट स्ट्रोक की वजह बन जाती हैं। ऐसे में ज्यादा देर तक बाहर रहना खतरनाक हो सकता है। लू लगने पर शरीर में गर्मी का संतुलन बिगड़ जाता है। इससे शुरू में लगातार पसीना आता है। कई बार शरीर में पानी व नमक की कमी होने पर डी-हाइड्रेशन हो जाता है। पोटैशियम और सोडियम की कमी से मरीज को कमजोरी व घबराहट महसूस होती है। कई बार लूस मोशंस या उलटी होने पर लगातार फ्लूइड न लेने से भी शरीर में पानी और सोडियम की कमी हो जाती है और डी-हाइड्रेशन हो सकता है।
लक्षण
बुखार होना, पसीना आना बंद होना, गर्म-सूखी स्किन, सात-आठ घंटे तक पेशाब न आना, बुखार, थकावट, सिर व पेट में दर्द, आंखों में जलन, बार-बार उलटी-दस्त होना, दिल तेजी से धड़कना, अजीबोगरीब बर्ताव, गुस्सा, कन्यूफ्जन, लंबी-लंबी सांस लेना और हालत बिगड़ने पर बेहोशी का अहसास होना। इनमें से कुछ लक्षण दिखाई दें तो फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। शरीर का टेंपरेचर अगर 104 डिग्री फॉरनहाइट से ज्यादा हो तो समझें हालत गंभीर है।
सावधानियां व बचाव
-घर से बाहर निकलते वक्त पानी की बोतल साथ रखें और बीच-बीच में पानी पीते रहें।
- खाली पेट घर से न निकलें।
- अगर कमरे में एसी नहीं चल रहा हो तो खिड़कियां-दरवाजे पूरी तरह बंद न रखें, क्योंकि हवा पास न होने की स्थिति में भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।
- धूप से आकर सादा पानी पीने के बजाय नीबू-पानी, शिकंजी, नारियल पानी, लस्सी, छाछ, आम पना, सत्तू, ठंडाई, खस का शर्बत या जलजीरा पीएं।
-लूस मोशंस होने पर सादा पानी के बजाय नीबू-नमक चीनी या ओआरएस का घोल पिलाते रहें।
खानपान का रखें खयाल
-गमिर्यों में जहां तक हो सके लो-कैलरी डाइट लें और जितनी भूख हो, उसका आधा खाएं।
-खुली रखीं चीजें न खाएं।
-कम तली-भुनी और हल्की चीजें खाएं, क्योंकि इस मौसम में खाना पचने में दिक्कत होती है।
-बासी भोजन न खाएं।
- ज्यादा-से-ज्यादा दही खाएं।
- आम पना, नीबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि लगातार लें।
- आलू, गोभी जैसी गरिष्ठ सब्जियों के बजाय तोरी, भिंडी, लौकी आदि मौसमी सब्जियां खाएं।
- तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, आम. अंगूर जैसे मौसमी फल खाएं।
- फल-सलाद दो घंटे से ज्यादा देर कटे हों तो न खाएं।
- बेल या गुड़ का शरबत काफी फायदेमंद होता है।
- गर्मी में कच्चा प्याज खाना भी फायदेमंद होता है।
फर्स्ट-ऐड
डॉक्टर के पास पहुंचने से पहले ही मरीज की देखभाल शुरू कर दें क्योंकि पहले दो घंटे इलाज के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होते हैं :
- लू लगने पर मरीज को ठंडी या छायादार जगह पर ले जाएं।
- उसे सीधे लिटाएं और सिर के नीचे पतला तकिया रख दें।
- शरीर का टेंपरेचर नीचे लाने की कोशिश करें।
- गले, छाती और कमर के कपड़े ढीले कर दें।
-पंखा चला दें या हाथ से हवा करें।
-भीड़ को हटाएं, हवा आने दें।
- शरीर पर तब तक ठंडे पानी के छींटे मारें या स्पंज करें, जब तक शरीर का तापमान कुछ कम न हो जाए।
- जितनी जल्दी हो सके मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं, क्योंकि शरीर के तापमान के हिसाब से उसे आईसीयू में रखने की जरूरत हो सकती है।
स्किन की समस्याएं
गर्मियों में फंगल इन्फेक्शन, घमौरियां और सनबर्न जैसी दिक्कतें आम हैं। इनसे बचाव या इलाज के नाम पर बिना स्पेशलिस्ट की सलाह के बिना क्रीम आदि न लगाएं, क्योंकि इससे स्किन का रंग काला पड़ सकता है।
बचाव
- घमौरियों और फंगल इन्फेक्शन आदि से बचने के लिए आजकल दिन में कम से कम दो बार अच्छी तरह से नहाएं। अगर साबुन से ऐलर्जि हो या त्वचा रूखी होने का डर हो तो बेसन का इस्तेमाल करें।
- हाथों-पैरों की उंगलियों के बीच और बगलों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें, क्योंकि नमी के कारण यहां फंगल इन्फेक्शन हो सकता है।
-धूप में निकलते वक्त शरीर को ढक कर रखनेवाले कपड़े पहनें।
- कॉटन के सफेद या हल्के रंग वाले मुलायम कपड़ों को ही प्राथमिकता दें, क्योंकि कॉटन पसीना सोखता है और इससे त्वचा पर रगड़ नहीं पड़ती।
- धूप में जाना हो तो शरीर के खुले हिस्सों पर सनस्क्रीन क्रीम लगाएं। इसका असर तीन-चार घंटे तक ही रहता है, इसलिए हर तीन-चार घंटे में स्किन को साफ कर सनस्क्रीन क्रीम लगाएं।
- कितने एसपीएफ का सनस्क्रीन लगाना, यह स्किन की जरूरत के हिसाब से किसी एक्सपर्ट की मदद से तय करें।
- छतरी लेकर धूप में निकलें और स्किन में नमी बरकरार रखने के लिए खूब पानी और रसदार फल खाएं।
टैनिंग और सनबर्न सिर्फ सनस्क्रीन क्रीम लगाने से ठीक नहीं होते। इसके लिए निम्न घरेलू इलाज भी किए जा सकते हैं :
- स्किन पर मुल्तानी मिट्टी या लैक्टोकैलामाइन के लेप से समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है।
- विटामिन-सी युक्त खाने की चीजों जैसे नीबू, टमाटर, संतरा, अमरूद आदि खाने से स्किन के कई इन्फेक्शन से बचा जा सकता है।
- ऐलोवेरा का लेप लगाने से स्किन को ठंडक मिलती है।
- दही में नीबू का रस और हल्दी मिलाकर लगाने से टैनिंग कम होती है।
- बेसन में हल्दी, नीबू, दही और गुलाब जल मिलाकर उबटन की तरह इस्तेमाल करें।
- खीरा, पपीता या केला मसलकर स्किन पर लगाना फायदेमंद होता है।
- आंखों की जलन कम करने के लिए खीरा काटकर आंखों के ऊपर रखें।
कुछ भ्रम और सचाई
पैरासिटोमोल - यह हर मौसम में बुखार कम करने की असरदार दवा नहीं है। गर्मियों में बुखार होने पर यह कारगर नहीं होती। पैरासिटामोल पसीने के ग्लैंड्स को खोलने का काम करती है और गर्मी में शरीर यह काम खुद-ब-खुद कर लेता है। इसलिए बुखार की दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।
पीलापन - गर्मी के दिनों में किडनी पानी की ज्यादा-से-ज्यादा बचत करती है, जिससे यूरीन गाढ़ा होता है। इसके पीलेपन को आमतौर पर लोग पीलिया का संकेत मान लेते हैं, जबकि यह सामान्य बात है। हां, पीलापन यह जरूर बताता है कि आपको पानी ज्यादा पीने की जरूरत है।
पट्टियां रखना - शरीर के बहुत ज्यादा तपने पर पानी की पट्टियां रखने की सलाह दी जाती है लेकिन यह तब तक फायदेमंद नहीं है, जब तक आप शरीर पर रखकर पट्टी के गर्म होते ही इन्हें हटा नहीं लेते। पट्टियां हटाने के बाद ही पानी शरीर की गर्मी लेकर भाप बनकर उड़ता है।
तेज गर्मी में नहाना - कहते हैं कि तेज धूप से आने के बाद नहाने से लू लग जाती है। यह गलत है। नहाने से शरीर का तापमान बैलंस हो जाता है। हालांकि बहुत ठंडे पानी से नहाने से बचना चाहिए।
खाने की तासीर - खाने की कुछ चीजों की तासीर गर्म और कुछ की ठंडी बताई जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा नहीं होता। हर चीज मौसम के अनुरूप काम करती है। जिस मौसम में जो चीज ज्यादा मिलती है, वह फायदेमंद है। उदाहरण के तौर पर मौसमी सब्जियां और फल आदि।
स्किन की बीमारी - कहते हैं खट्टा-मीठा साथ खाने से स्किन की बीमारियां हो जाती हैं, जो गलत है। दोनों चीजें साथ खाने में कोई बुराई नहीं है।
सर्जरी - आंखों की सर्जरी गर्मी में नहीं करानी चाहिए, यह भ्रांति है। आंखों की सर्जरी किसी भी मौसम में करा सकते हैं क्योंकि हॉस्पिटल और थिअटर सही तापमान के आधार पर डिजाइन किए होते हैं।
प्राणायाम व योगासन भी दिलाते हैं राहत
गर्मियों में कुछ योगासन और प्राणायाम काफी फायदेमंद हो सकते हैं। इनमें शीतली प्राणायाम, शवासन और सर्वांगासन महत्वपूर्ण हैं।
शीतली प्राणायाम : पालथी मारकर आराम से बैठें और जीभ को बांसुरी के आकर में मोड़कर बाहर की तरफ निकालें। धीरे-धीरे बाहरी हिस्से के ऊपर से हवा को खींचते हुए फेफड़ों तक सांस भरकर मुंह को बंद कर लें। थोड़ी देर सांस को रोकें, फिर इसे नाक से बाहर फेंकें। जब भी गर्मी का अहसास हो या तेज प्यास लगी हो और पानी न मिले तो यह प्राणायाम करें। पांच से सात बार इस प्रक्रिया को दोहराते ही आराम मिल जाएगा।
ध्यान रखें : शीतली प्राणायाम करने से उन लोगों को परहेज करना चाहिए जिन्हें सर्दी-जुकाम, खांसी या अस्थमा की समस्या है।