RavinderSura
August 11th, 2009, 11:52 AM
जाट कौम में गोत्र विवाद जायज या नाजायज
चौ.हवा सिंह सांगवान जी का गोत्र विवाद पर " जाट कौम में गौत्र विवाद जायज या नाजायज " लेख जो "जाट ज्योति " पत्रिका में प्रकाशित हुआ था |
भारतवर्ष की विशेष पहचान इसकी सांस्कृतिक विभिन्नता से हैं | देश के विभिन्न क्षेत्रों में सैकडों समाज व भाईचारे हैं जिनकी सामाजिक परम्पराओं और संस्कृतियों में विभिन्नता हैं | उदाहरण के लिए दक्षिण के राज्यों में विशेषकर तमिलनाडू के हिन्दू समाज में अपनी बहन , भुआ (बुआ) व मामा की लड़की /लड़के से विवाह करना उत्तम सम्बन्ध माना जाता हैं जबकि उत्तर भारत की स्थानीय जातियों में इनको भाई - बहन का दर्जा प्राप्त हैं | उत्तर पूर्वी राज्यों में संपत्ति की मालिक स्त्री हैं तो मेघालय में दुल्हे की बजाए दुल्हन बरात लेकर आती हैं | सामाजिक रीति - रिवाजों व मान्यताओं के इस प्रकार के अनेको उदाहरण हैं | इन विभिन्न रीति-रिवाजों का मुख्य कारण दक्षिण व उत्तर पूर्व के समाज में मात्र प्रधान संस्कृतिया हैं तो उत्तर भारत में पितृ - प्रधान संस्कृति हैं | इसका प्रमाण हैं की कोई दक्षिण भारतीय कर्मचारी अपने परिवार को साथ रखने के समय अपनी माँ की बजाए अपनी सास को साथ रखता हैं | इसी प्रकार हिन्दू धर्म में भी अलग अलग क्षत्रों में अलग अलग मान्यताए हैं जो एक - दुसरे के विपरीत हैं | हमे एक दुसरे की संस्कृतियाँ बहुत हैरान करने वाली लगती हैं लेकिन सभी को अपनी अपनी संस्कृति व मान्यताए प्रिय व सम्मानीय हैं | इसीलिए भारतीय संविधान ने सभी को सुरक्षा का भरोसा दिलाया हैं |
जाट कौम मुख्य तौर पर उत्तर भारत में रहती हैं | इसकी मूल सभ्यता , संस्कृति व पहचान चार बातों पर टिकी रही हैं - पंचायत , गौत्र , गाँव और ज़मीन ( कृषि ) इसे कृषि सभ्यता भी कहा जाता हैं | यही जाट कौम की पहचान हैं | संक्षेप में इतना ही कहना काफी होगा की पंचायत प्रणाली मूल रूप से जाट कौम की उपज हैं और इसी पंचायत प्रणाली से आज के प्रजातंत्र का विकास हुआ हैं | इस सच्चाई के ठोस प्रमाण हैं | इसी पंचायत व्यवस्था से खाप पंचायतों का विकास हुआ | एक बड़े गौत्र के समूह के गांवों ने अपनी खाप पंचायत बनाई तो कम संख्या के गौत्र वाले गांवों ने मिलकर अपनी खाप पंचायत बनाई | एक खाप में चाहे कितने ही गौत्र हो उन सबका भाई - चारा स्थाई होता हैं और उनके बच्चों का दर्जा आपसी सगे भाई बहन जैसा होता हैं | यही जाट सभ्यता की एक बड़ी महानता हैं | उदाहरण के लिए हरियाणा में सांगवान खाप के 40 गाँव के कितलाना गाँव में सांगवान गौत्र के कुल 80-85 परिवार हैं जबकि धायल और मलिक व कुछ अन्य गौत्र के लगभग 400 परिवार हैं लेकिन कोई भी सांगवान जाट धायल व मलिक आदि जो इस गाँव में रहते हैं , इन गौत्र की लड़की ब्याह कर नहीं ला सकता हैं | इसी प्रकार ये गौत्री भाई सांगवान गौत्र की ही नहीं , वहा पर रहने वाले सभी की हैं | इसी व्यवस्था को जाट समाज में भाईचारा कहते हैं और मानते हैं |
इतिहास गवाह हैं , इन खापों को इकट्ठा करके जाट सम्राट हर्ष - वर्धन बैंस ने सन् 643 में सर्वखाप पंचायत का निर्माण किया था | सर्वखाप क्षेत्र में रहने वाली दूसरी जातियां भी अपनी सुरक्षा हेतु इसमें सम्मिलित हो गई जिसे सर्वजातिय खाप पंचायत भी कहा गया | यह ऐतिहासिक तथ्य हैं की सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय आरम्भ से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर जिले के गाँव ' सौरम ' में रहा हैं | इस मुख्यालय में बाबर व अकबर सरीखे बादशाह भी अपना नतमस्तक कर चुके हैं | इस इतिहास पर कई शोध हो चुके हैं और पुस्तके लिखी गई हैं | सर्वखाप पंचायत की अपनी सेना थी और खुले न्यायालय थे | सन् 643 से सन् 1857 तक उत्तर भारत में कोई भी ऐसा युद्घ नहीं हुआ जिसमे सर्वखाप की पंचायत सेना ने भाग न लिया हो | न्याय की कसौटी पर इस पंचायत के फैसले खरे होते थे | इस बात के भी प्रमाण उपलब्ध हैं की राजा और नवाबो तक इन पंचायतों के प्रमुखों को न्यायिक सहायता के लिए बुलाते थे | सर्वखाप पंचायत का संविधान अलिखित और परम्पराओं पर आधारित हैं जैसे की 300 सालों से इंग्लैंड का संविधान चला आ रहा हैं |
राजस्थान की खापों का अंत राजपूत राज आने पर हुआ | पंजाब में सिख धर्म आने पर इनका स्थान जत्थों और मोर्चों ने ले लिया जिसका असर फतेहाबाद और कुरुक्षेत्र तक पड़ा फिर भी आज दिल्ली , हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 600 खापों का वर्चस्व कायम हैं | हलाँकि जाटों के कुछ क्षेत्रों में आज खाप पंचायत सक्रीय नहीं हैं लेकिन जाटों की गौत्र प्रथा ज्यों की त्यों कायम हैं | यही जाट कौम की पहचान और ताक़त भी हैं | यह संस्कृति समाप्त होने पर जाट कौम और रेलवे स्टेशन की भीड़ में कोई अंतर नहीं रह जाएगा | जाट कौम की इस ताक़त से सरकारें तथा दुसरे लोग अच्छी तरह से परिचित हैं | हकीक़त तो यह हैं की सर्वखाप पंचायत , खाप पंचायत और गौत्र प्रथा जाट - कौम की रीढ़ हैं | इसी रीढ़ को तोड़ने के लिए मानव अधिकारों के बहाने पंचकुला से ' साहनी ' पंजाबी , खत्री , सरीखे उच्च - न्यायालय तक पहुच गए हैं जिसमे कुछ जाट भाई भी मानव अधिकार के ठेकेदार बन कर वाह-वाहि लुटने के लिए अपनी अज्ञानता परदशिर्त कर रहे हैं | ऐसे ही लोगो ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी वैध ठहराया जो सभी कृत्य पाशविक वर्त्तियों से भी निमंतर हैं कुछ और नहीं |
जब लगभग सन् 1990 के बाद दूर-दर्शन के प्राइवेट चैंनल की बाढ़ आई तो अधिक कमाई के चक्कर में इन्होने अश्लील प्रसारण का सहारा लिया | इस अश्लीलता का कुप्रभाव जाट बच्चों पर भी पड़ना लाजमी था | इसी समय से जाटों की हुक्का संस्कृति भी सिमट रही थी अर्थात जाटों की नई पीढी को अपनी संस्कृति का ज्ञान कराने वालों का समाज में भारी अभाव हुआ जिस कारण नई पीढी अपनी संस्कृति से कटती चली गई और वे भाई बहन के पवित्र रिश्ते को ही भूल बैठे | दूसरी ओर ये कमाऊ चैंनल इन रिश्तों को अंधी वासना का खेल न कहकर इन भाई बहनों को प्रेमी युगल कहकर प्रचार करने लगे जिनका समाचार पत्रों ने भी पूरा साथ दिया | जाट समाज में भारत की किसी भी एक जाति से अधिक 4800 गौत्र हैं जिनमे से वैवाहिक रिश्तों के लिए तीन ( अपना , माँ व दादी ) के गौत्र छोड़ने पड़ते हैं | ज्ञात हो पकिस्तान का मुसलमान जाट भी आज रिश्तों के लिए अपनी माँ ओर बाप का गौत्र छोड़ता हैं | लेकिन भारत में मानवधिकार ओर इक्कीसवीं सदी का बहाना बनाकर मीडिया व अन्य वर्ग द्वारा हमारे जाट समाज को तोड़ने के लिए षड़यंत्र रचे जा रहे हैं | इसमें जाट विरोधी मीडिया अपना मुख्य रोल अदा कर रहा हैं |
जब इस प्रकार जाट समाज का विघटन शुरू हुआ तो जाट समाज के प्रबुद्ध लोगो की बैचेनी बढ़ी ओर जाट खापे सक्रीय होने लगी | इन जाट खापों की कुछ पंचायतो में ऐसे मुर्ख पंच भी सम्मिलित होने लगे जो ऐसी शादियों की बारातों में सरीक थे ओर कन्यादान तक दिया अर्थात वे एक बहन - भाई की शादी के दर्शक बने थे | फिर इन्होने ऐसे फैसले दिए जिसमे बच्चा पैदा होने के बाद भी बहन - भाई का रिश्ता बनाने पर मजबूर करने लगे | ऐसे मुर्खता पूर्ण फैसलों से जाट कौम की जग हंसाई होने लगी ओर इन फैसलों पर प्रशन चिन्ह लगने लगे | मीडिया इन्हें तालिबानी फतवे कहकर हवा देने लगा | मौके की ताक में बैठे दुसरे लोग अधिक सक्रीय हो गए तो बबली - मनोज जैसे हत्याकांड होने लगे | फिर भी जाट समाज ने इस समस्या के लिए कोई स्थाई समाधान खोजने का प्रयत्न नहीं किया |परिणामस्वरुप आज जाट कौम का अस्तित्व खतरे में हैं |
सबसे पहले हमे यह मानना होगा की गौत्र प्रणाली स्पष्ट रूप से विज्ञान पर आधारित हैं जो हमारे जाट जीन्स को सक्रीय रखने के लिए अनिवार्य हैं | जिस धर्म या समाज में इस प्रथा का आभाव हैं उनमे प्रजनन शक्ति में भारी गिरावट आई हैं | उदहारण के लिए पारसी समाज जिनकी जनसँख्या में सन् 1991 ओर 2001 की जनगणना में 3000 से भी अधिक कमी आई हैं जिसके लिए आज पारसी समाज चिंतित हैं | दूसरा उदहारण भारत में किसी विशेष एक धर्म के लोग मुश्किल से 20 प्रतिशत हैं लेकिन भारत के किन्नरों में इस धर्म की संख्या 70 प्रतिशत से भी अधिक हैं | वैज्ञानिक परीक्षणों से यह प्रमाणित हो चूका हैं की एक ही समूह में रहने वाले जंगली जानवरों में भी प्रजनन की भारी गिरावट आई हैं | उदहारण के लिए अफ्रीका के जंगलों में एक समूह में रहने वाले शेरो के झुंड समाप्ति के कगार पर पहुच रहे हैं | संक्षेप में यही कहना हैं की जाटों की गौत्र प्रथा विज्ञान पर आधारित हैं जिस पर जाट कौम को नाज होना चाहिए और जाटों को अपने अस्तित्व की रक्षा जी जान से करनी चाहिए |
अब प्रशन यह हैं की इस व्यवस्था में अवरोध क्या हैं ? इसका एक मात्र बड़ा अवरोध सन् 1956 में बनाया गया ' हिन्दू - कोड ' हैं जिसमे विवाह के लिए गौत्र का कोई भी प्रावधान नहीं हैं | इसके अनुसार सगे भाई बहन के रिश्ते को भी ' हिन्दू कोड ' वैध मानता हैं | इसी कारण दिल्ली हाई कोर्ट में 21 जून 2008 को एक संगौत्र विवाह को वैध ठहरा दिया गया | इसलिए हमारे समाज में जो इस प्रकार का गैरकानूनी और हमारे अनुसार गैरधार्मिक क्रत्य करता हैं उसके साथ कानून और प्रशासन हैं | हमारी पंचायते अलग - थलग पड़ जाती हैं और उन पर पुलिस प्रशासन जुल्म ढाता हैं | न्यायालय हमारी पंचायतो के विरोध में फैसले देता हैं और जाट समाज मारा - मारा फिरता हैं जबकि मुख्य दोषी केवल हिन्दू कोड हैं | यही जाट कौम का आज सबसे बड़ा दुश्मन हैं | अब प्रशन यह हैं की इस दुश्मन से कैसे लड़ा जाये ?
हमे याद रखना होगा की प्रजातंत्र और कानून जनता की भलाई के लिए बने हैं | संविधान लोगो की संस्कृति और पहचान की सुरक्षा का विश्वास दिलाता हैं तो ' हिन्दू कोड ' हमारी पहचान में रोड़ा क्यों बने ? इस हिन्दू कोड का मसौदा भी उन्ही लोगो ने तैयार किया था जो अपनी बहन की लड़की को बीबी मानते हैं | इसी बीच किसी समाज ने किसी करिश्मा कपूर से किसी संजय कपूर की शादी को वैध मानने वाले भी हैं | इसलिए इस समस्या का पहला और एकमात्र हल ' हिन्दू कोड ' में उपयुक्त्त संसोधन हैं | दूसरा हल अपना हमारे समाज का हैं जिसमे समाज की इन प्रथाओं को तोड़ने वालों को समाज से बाहर किया जाये | इसमें केवल कसूरवार व इसमें सहयोग करनेवालों को ही दंड दिया जाए दुसरो को नहीं चाहे वे उसके सगे भाई बहन व परिवार ही क्यों न हो ?
इस ' हिन्दू कोड ' में गौत्र का प्रावधान करने के लिए हम उच्चतम न्यायालय भी जा सकते हैं लेकिन ऐसे मामले में न्यायालयों में ज्यादा लम्बे खींच जाते हैं | इसलिए जाट समाज को भारतवर्ष की पंचायत ( संसद ) में जाना होगा | इसके लिए सर्वखाप पंचायत करके यह फैसला लिया जाए की इस मुद्दे को कौन जाट सांसद संसद में अपनी बात रखे | यदि इसके बाद भी सरकार जाट समाज की नहीं सुनती हैं तो इसका अर्थ होगा की भारत सरकार जाट समाज के हितों , संस्कृति व पहचान की रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं | इसलिए जाट समाज का इस प्रजातंत्र में रहने का कोई भी औचित्य नहीं रह जाता | इसलिए जाट समाज द्बारा भारत सरकार को स्पष्ट तौर पर बगैर किसी हिचक व लाग लपेट के कह देना चाहिए की हमे हमे अलग करो , हमे हमारी ज़मीन से अधिक कुछ नहीं चाहिए लेकिन जमीन पर जो भी हैं वह हमारा हैं चाहे वह संसद भवन ही क्यों न हो ? इसके अतिरिक्त भी जाट कौम के पास अनेक चाबिया हैं जिन्हें कौम को इस्तेमाल करना चाहिए | ये सभी चाबिया सभी तालों पर सटीक लगेंगी | आवश्यकता केवल आत्म विश्वास और निडरता के साथ सामूहिक प्रयास की हैं लिपा पोती की नहीं |
चौ.हवा सिंह सांगवान जी का गोत्र विवाद पर " जाट कौम में गौत्र विवाद जायज या नाजायज " लेख जो "जाट ज्योति " पत्रिका में प्रकाशित हुआ था |
भारतवर्ष की विशेष पहचान इसकी सांस्कृतिक विभिन्नता से हैं | देश के विभिन्न क्षेत्रों में सैकडों समाज व भाईचारे हैं जिनकी सामाजिक परम्पराओं और संस्कृतियों में विभिन्नता हैं | उदाहरण के लिए दक्षिण के राज्यों में विशेषकर तमिलनाडू के हिन्दू समाज में अपनी बहन , भुआ (बुआ) व मामा की लड़की /लड़के से विवाह करना उत्तम सम्बन्ध माना जाता हैं जबकि उत्तर भारत की स्थानीय जातियों में इनको भाई - बहन का दर्जा प्राप्त हैं | उत्तर पूर्वी राज्यों में संपत्ति की मालिक स्त्री हैं तो मेघालय में दुल्हे की बजाए दुल्हन बरात लेकर आती हैं | सामाजिक रीति - रिवाजों व मान्यताओं के इस प्रकार के अनेको उदाहरण हैं | इन विभिन्न रीति-रिवाजों का मुख्य कारण दक्षिण व उत्तर पूर्व के समाज में मात्र प्रधान संस्कृतिया हैं तो उत्तर भारत में पितृ - प्रधान संस्कृति हैं | इसका प्रमाण हैं की कोई दक्षिण भारतीय कर्मचारी अपने परिवार को साथ रखने के समय अपनी माँ की बजाए अपनी सास को साथ रखता हैं | इसी प्रकार हिन्दू धर्म में भी अलग अलग क्षत्रों में अलग अलग मान्यताए हैं जो एक - दुसरे के विपरीत हैं | हमे एक दुसरे की संस्कृतियाँ बहुत हैरान करने वाली लगती हैं लेकिन सभी को अपनी अपनी संस्कृति व मान्यताए प्रिय व सम्मानीय हैं | इसीलिए भारतीय संविधान ने सभी को सुरक्षा का भरोसा दिलाया हैं |
जाट कौम मुख्य तौर पर उत्तर भारत में रहती हैं | इसकी मूल सभ्यता , संस्कृति व पहचान चार बातों पर टिकी रही हैं - पंचायत , गौत्र , गाँव और ज़मीन ( कृषि ) इसे कृषि सभ्यता भी कहा जाता हैं | यही जाट कौम की पहचान हैं | संक्षेप में इतना ही कहना काफी होगा की पंचायत प्रणाली मूल रूप से जाट कौम की उपज हैं और इसी पंचायत प्रणाली से आज के प्रजातंत्र का विकास हुआ हैं | इस सच्चाई के ठोस प्रमाण हैं | इसी पंचायत व्यवस्था से खाप पंचायतों का विकास हुआ | एक बड़े गौत्र के समूह के गांवों ने अपनी खाप पंचायत बनाई तो कम संख्या के गौत्र वाले गांवों ने मिलकर अपनी खाप पंचायत बनाई | एक खाप में चाहे कितने ही गौत्र हो उन सबका भाई - चारा स्थाई होता हैं और उनके बच्चों का दर्जा आपसी सगे भाई बहन जैसा होता हैं | यही जाट सभ्यता की एक बड़ी महानता हैं | उदाहरण के लिए हरियाणा में सांगवान खाप के 40 गाँव के कितलाना गाँव में सांगवान गौत्र के कुल 80-85 परिवार हैं जबकि धायल और मलिक व कुछ अन्य गौत्र के लगभग 400 परिवार हैं लेकिन कोई भी सांगवान जाट धायल व मलिक आदि जो इस गाँव में रहते हैं , इन गौत्र की लड़की ब्याह कर नहीं ला सकता हैं | इसी प्रकार ये गौत्री भाई सांगवान गौत्र की ही नहीं , वहा पर रहने वाले सभी की हैं | इसी व्यवस्था को जाट समाज में भाईचारा कहते हैं और मानते हैं |
इतिहास गवाह हैं , इन खापों को इकट्ठा करके जाट सम्राट हर्ष - वर्धन बैंस ने सन् 643 में सर्वखाप पंचायत का निर्माण किया था | सर्वखाप क्षेत्र में रहने वाली दूसरी जातियां भी अपनी सुरक्षा हेतु इसमें सम्मिलित हो गई जिसे सर्वजातिय खाप पंचायत भी कहा गया | यह ऐतिहासिक तथ्य हैं की सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय आरम्भ से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर जिले के गाँव ' सौरम ' में रहा हैं | इस मुख्यालय में बाबर व अकबर सरीखे बादशाह भी अपना नतमस्तक कर चुके हैं | इस इतिहास पर कई शोध हो चुके हैं और पुस्तके लिखी गई हैं | सर्वखाप पंचायत की अपनी सेना थी और खुले न्यायालय थे | सन् 643 से सन् 1857 तक उत्तर भारत में कोई भी ऐसा युद्घ नहीं हुआ जिसमे सर्वखाप की पंचायत सेना ने भाग न लिया हो | न्याय की कसौटी पर इस पंचायत के फैसले खरे होते थे | इस बात के भी प्रमाण उपलब्ध हैं की राजा और नवाबो तक इन पंचायतों के प्रमुखों को न्यायिक सहायता के लिए बुलाते थे | सर्वखाप पंचायत का संविधान अलिखित और परम्पराओं पर आधारित हैं जैसे की 300 सालों से इंग्लैंड का संविधान चला आ रहा हैं |
राजस्थान की खापों का अंत राजपूत राज आने पर हुआ | पंजाब में सिख धर्म आने पर इनका स्थान जत्थों और मोर्चों ने ले लिया जिसका असर फतेहाबाद और कुरुक्षेत्र तक पड़ा फिर भी आज दिल्ली , हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 600 खापों का वर्चस्व कायम हैं | हलाँकि जाटों के कुछ क्षेत्रों में आज खाप पंचायत सक्रीय नहीं हैं लेकिन जाटों की गौत्र प्रथा ज्यों की त्यों कायम हैं | यही जाट कौम की पहचान और ताक़त भी हैं | यह संस्कृति समाप्त होने पर जाट कौम और रेलवे स्टेशन की भीड़ में कोई अंतर नहीं रह जाएगा | जाट कौम की इस ताक़त से सरकारें तथा दुसरे लोग अच्छी तरह से परिचित हैं | हकीक़त तो यह हैं की सर्वखाप पंचायत , खाप पंचायत और गौत्र प्रथा जाट - कौम की रीढ़ हैं | इसी रीढ़ को तोड़ने के लिए मानव अधिकारों के बहाने पंचकुला से ' साहनी ' पंजाबी , खत्री , सरीखे उच्च - न्यायालय तक पहुच गए हैं जिसमे कुछ जाट भाई भी मानव अधिकार के ठेकेदार बन कर वाह-वाहि लुटने के लिए अपनी अज्ञानता परदशिर्त कर रहे हैं | ऐसे ही लोगो ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी वैध ठहराया जो सभी कृत्य पाशविक वर्त्तियों से भी निमंतर हैं कुछ और नहीं |
जब लगभग सन् 1990 के बाद दूर-दर्शन के प्राइवेट चैंनल की बाढ़ आई तो अधिक कमाई के चक्कर में इन्होने अश्लील प्रसारण का सहारा लिया | इस अश्लीलता का कुप्रभाव जाट बच्चों पर भी पड़ना लाजमी था | इसी समय से जाटों की हुक्का संस्कृति भी सिमट रही थी अर्थात जाटों की नई पीढी को अपनी संस्कृति का ज्ञान कराने वालों का समाज में भारी अभाव हुआ जिस कारण नई पीढी अपनी संस्कृति से कटती चली गई और वे भाई बहन के पवित्र रिश्ते को ही भूल बैठे | दूसरी ओर ये कमाऊ चैंनल इन रिश्तों को अंधी वासना का खेल न कहकर इन भाई बहनों को प्रेमी युगल कहकर प्रचार करने लगे जिनका समाचार पत्रों ने भी पूरा साथ दिया | जाट समाज में भारत की किसी भी एक जाति से अधिक 4800 गौत्र हैं जिनमे से वैवाहिक रिश्तों के लिए तीन ( अपना , माँ व दादी ) के गौत्र छोड़ने पड़ते हैं | ज्ञात हो पकिस्तान का मुसलमान जाट भी आज रिश्तों के लिए अपनी माँ ओर बाप का गौत्र छोड़ता हैं | लेकिन भारत में मानवधिकार ओर इक्कीसवीं सदी का बहाना बनाकर मीडिया व अन्य वर्ग द्वारा हमारे जाट समाज को तोड़ने के लिए षड़यंत्र रचे जा रहे हैं | इसमें जाट विरोधी मीडिया अपना मुख्य रोल अदा कर रहा हैं |
जब इस प्रकार जाट समाज का विघटन शुरू हुआ तो जाट समाज के प्रबुद्ध लोगो की बैचेनी बढ़ी ओर जाट खापे सक्रीय होने लगी | इन जाट खापों की कुछ पंचायतो में ऐसे मुर्ख पंच भी सम्मिलित होने लगे जो ऐसी शादियों की बारातों में सरीक थे ओर कन्यादान तक दिया अर्थात वे एक बहन - भाई की शादी के दर्शक बने थे | फिर इन्होने ऐसे फैसले दिए जिसमे बच्चा पैदा होने के बाद भी बहन - भाई का रिश्ता बनाने पर मजबूर करने लगे | ऐसे मुर्खता पूर्ण फैसलों से जाट कौम की जग हंसाई होने लगी ओर इन फैसलों पर प्रशन चिन्ह लगने लगे | मीडिया इन्हें तालिबानी फतवे कहकर हवा देने लगा | मौके की ताक में बैठे दुसरे लोग अधिक सक्रीय हो गए तो बबली - मनोज जैसे हत्याकांड होने लगे | फिर भी जाट समाज ने इस समस्या के लिए कोई स्थाई समाधान खोजने का प्रयत्न नहीं किया |परिणामस्वरुप आज जाट कौम का अस्तित्व खतरे में हैं |
सबसे पहले हमे यह मानना होगा की गौत्र प्रणाली स्पष्ट रूप से विज्ञान पर आधारित हैं जो हमारे जाट जीन्स को सक्रीय रखने के लिए अनिवार्य हैं | जिस धर्म या समाज में इस प्रथा का आभाव हैं उनमे प्रजनन शक्ति में भारी गिरावट आई हैं | उदहारण के लिए पारसी समाज जिनकी जनसँख्या में सन् 1991 ओर 2001 की जनगणना में 3000 से भी अधिक कमी आई हैं जिसके लिए आज पारसी समाज चिंतित हैं | दूसरा उदहारण भारत में किसी विशेष एक धर्म के लोग मुश्किल से 20 प्रतिशत हैं लेकिन भारत के किन्नरों में इस धर्म की संख्या 70 प्रतिशत से भी अधिक हैं | वैज्ञानिक परीक्षणों से यह प्रमाणित हो चूका हैं की एक ही समूह में रहने वाले जंगली जानवरों में भी प्रजनन की भारी गिरावट आई हैं | उदहारण के लिए अफ्रीका के जंगलों में एक समूह में रहने वाले शेरो के झुंड समाप्ति के कगार पर पहुच रहे हैं | संक्षेप में यही कहना हैं की जाटों की गौत्र प्रथा विज्ञान पर आधारित हैं जिस पर जाट कौम को नाज होना चाहिए और जाटों को अपने अस्तित्व की रक्षा जी जान से करनी चाहिए |
अब प्रशन यह हैं की इस व्यवस्था में अवरोध क्या हैं ? इसका एक मात्र बड़ा अवरोध सन् 1956 में बनाया गया ' हिन्दू - कोड ' हैं जिसमे विवाह के लिए गौत्र का कोई भी प्रावधान नहीं हैं | इसके अनुसार सगे भाई बहन के रिश्ते को भी ' हिन्दू कोड ' वैध मानता हैं | इसी कारण दिल्ली हाई कोर्ट में 21 जून 2008 को एक संगौत्र विवाह को वैध ठहरा दिया गया | इसलिए हमारे समाज में जो इस प्रकार का गैरकानूनी और हमारे अनुसार गैरधार्मिक क्रत्य करता हैं उसके साथ कानून और प्रशासन हैं | हमारी पंचायते अलग - थलग पड़ जाती हैं और उन पर पुलिस प्रशासन जुल्म ढाता हैं | न्यायालय हमारी पंचायतो के विरोध में फैसले देता हैं और जाट समाज मारा - मारा फिरता हैं जबकि मुख्य दोषी केवल हिन्दू कोड हैं | यही जाट कौम का आज सबसे बड़ा दुश्मन हैं | अब प्रशन यह हैं की इस दुश्मन से कैसे लड़ा जाये ?
हमे याद रखना होगा की प्रजातंत्र और कानून जनता की भलाई के लिए बने हैं | संविधान लोगो की संस्कृति और पहचान की सुरक्षा का विश्वास दिलाता हैं तो ' हिन्दू कोड ' हमारी पहचान में रोड़ा क्यों बने ? इस हिन्दू कोड का मसौदा भी उन्ही लोगो ने तैयार किया था जो अपनी बहन की लड़की को बीबी मानते हैं | इसी बीच किसी समाज ने किसी करिश्मा कपूर से किसी संजय कपूर की शादी को वैध मानने वाले भी हैं | इसलिए इस समस्या का पहला और एकमात्र हल ' हिन्दू कोड ' में उपयुक्त्त संसोधन हैं | दूसरा हल अपना हमारे समाज का हैं जिसमे समाज की इन प्रथाओं को तोड़ने वालों को समाज से बाहर किया जाये | इसमें केवल कसूरवार व इसमें सहयोग करनेवालों को ही दंड दिया जाए दुसरो को नहीं चाहे वे उसके सगे भाई बहन व परिवार ही क्यों न हो ?
इस ' हिन्दू कोड ' में गौत्र का प्रावधान करने के लिए हम उच्चतम न्यायालय भी जा सकते हैं लेकिन ऐसे मामले में न्यायालयों में ज्यादा लम्बे खींच जाते हैं | इसलिए जाट समाज को भारतवर्ष की पंचायत ( संसद ) में जाना होगा | इसके लिए सर्वखाप पंचायत करके यह फैसला लिया जाए की इस मुद्दे को कौन जाट सांसद संसद में अपनी बात रखे | यदि इसके बाद भी सरकार जाट समाज की नहीं सुनती हैं तो इसका अर्थ होगा की भारत सरकार जाट समाज के हितों , संस्कृति व पहचान की रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं | इसलिए जाट समाज का इस प्रजातंत्र में रहने का कोई भी औचित्य नहीं रह जाता | इसलिए जाट समाज द्बारा भारत सरकार को स्पष्ट तौर पर बगैर किसी हिचक व लाग लपेट के कह देना चाहिए की हमे हमे अलग करो , हमे हमारी ज़मीन से अधिक कुछ नहीं चाहिए लेकिन जमीन पर जो भी हैं वह हमारा हैं चाहे वह संसद भवन ही क्यों न हो ? इसके अतिरिक्त भी जाट कौम के पास अनेक चाबिया हैं जिन्हें कौम को इस्तेमाल करना चाहिए | ये सभी चाबिया सभी तालों पर सटीक लगेंगी | आवश्यकता केवल आत्म विश्वास और निडरता के साथ सामूहिक प्रयास की हैं लिपा पोती की नहीं |