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View Full Version : Transfer of Power Agreement



rajpaldular
April 18th, 2011, 01:46 PM
आप सोच रहे होंगे कि 'सत्ता के हस्तांतरण की संधि' ये क्या है ? आज पढ़िए सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) अर्थात भारत की स्वतंत्रता की संधि. ये इतनी भयावह संधि है कि यदि आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों अथवा कहें कि षडयंत्र को जोड़ देंगे तो उस से भी अधिक भीषण और भयावह संधि है ये. 14 अगस्त 1947 की रात्रि को जो कुछ हुआ था वो वास्तव में स्वतंत्रता नहीं आई थी अपितु ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में.Transfer of Power और Independence ये दो अलग विषय हैं.स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग विषय हैं एवं सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में पराजित जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत पश्चात एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को 'ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर' की बुक कहते हैं तथा उस पर हस्ताक्षर के पश्चात पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है एवं पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है.यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात्रि को 12 बजे.लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का अर्थ क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का आशय क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, अर्थात अंग्रेजों ने अपना राज आपको सौंपा है जिससे कि आप लोग कुछ दिन इसे चला लो जब आवश्यकता पड़ेगी तो हम पुनः आ जायेंगे | ये अंग्रेजो की व्याख्या (interpretation) थी एवं भारतीय लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया तथा इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए एवं भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका वास्तविक अर्थ भी यही है. अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" तथा दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन ही हैं. दुःख तो ये होता है कि उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे अथवा आप कह सकते हैं क़ि पूरी मानसिक जागृत अवस्था में इस संधि को मान लिया अथवा कहें सब कुछ समझ कर ये सब स्वीकार कर लिया एवं ये जो तथाकथित स्वतंत्रता प्राप्त हुई इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act अर्थात भारत के स्वतंत्रता का कानून तथा ऐसे कपट पूर्ण और धूर्तता से यदि इस देश को स्वतंत्रता मिली हो तो वो स्वतंत्रता, स्वतंत्रता है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे. वो नोआखाली में थे और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थेकि बापू चलिए आप.गाँधी जी ने मना कर दिया था. क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई स्वतंत्रता मिल रही है एवं गाँधी जी ने स्पष्ट कह दिया था कि ये स्वतंत्रता नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहाकि मैं भारत के उन करोड़ों लोगों को ये सन्देश देना चाहता हूँ कि ये जो तथाकथित स्वतंत्रता (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था वास्तव में बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही थी) और 14 अगस्त 1947 की रात्रि को जो कुछ हुआ है वो स्वतंत्रता नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में. अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का उल्लेख करना तो संभव नहीं है परन्तु कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की उल्लेख अवश्य करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है ...............

rajpaldular
April 18th, 2011, 01:47 PM
०१) इस संधि की शर्तों के अनुसार हम आज भी अंग्रेजों के अधीन ही हैं. वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth nations अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Games हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का अर्थ होता है 'समान संपत्ति'. किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति. आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो. Commonwealth में 71 देश हैं और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है परन्तु भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की आवश्यकता होती है क्योंकि वो दूसरे देश में जा रहे हैं अर्थात इसका अर्थ निकालें तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है अथवा फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होती है यदि दोनों बाते सही हैं तो 15 अगस्त 1947 को हमारी स्वतंत्रता की बात कही जाती है वो मिथ्या है एवं Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है ना क़ि Independent Nation के रूप में. इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अतिरिक्त किसी को भी नहीं. परन्तु ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या अर्थ है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था अर्थात हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है. ये है राजनितिक दासता, हम कैसे मानें क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं. एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक दास देश दुसरे दास देश के यहाँ खोलता है परन्तु इसे Embassy नहीं कहा जाता. एक मानसिक दासता का उदाहरण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के समाचार पत्रों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डायना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |
०२) भारत का नाम INDIA रहेगा और पूरे संसार में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा तथा सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा. हमारे व आपके लिए ये भारत है परन्तु दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " परन्तु दुर्भाग्य इस महान देश का क़ि ये भारत के स्थान पर इंडिया हो गया. ये इसी संधि के शर्तों में से एक है. अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है. कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा तथा ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस व्यक्ति की बात में कितनी सत्यता है मैं नहीं जानता, परन्तु भारत जब तक भारत था तब तक तो संसार में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |

०३) भारत की संसद में वन्दे मातरम नहीं गाया जायेगा अगले 50 वर्षों तक अर्थात 1997 तक. 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस समस्या को उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित स्वतंत्र देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है और वन्देमातरम को लेकर मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था. इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के मन को ठेस पहुचाये.

०४) इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जीवित अथवा मृत अंग्रेजों के हवाले करना था. यही कारण रहा क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को ज्ञात नहीं है. समय समय पर कई अफवाहें फैली परन्तु सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और ना ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई. अर्थात भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी (जो वास्तव में भारत के 'राष्ट्रपिता' थे, गाँधी जी तो 'प्लांट' किये हुए राष्ट्रपिता थे, ये भी देश का दुर्भाग्य ही था) अपने ही देश के लिए बेगाने हो गए. सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को ज्ञात होगा ही परन्तु महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई गयी थी और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से सहायता ली थी जो कि अंग्रेजों के शत्रु थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे अधिक हानि पहुंचाई थी और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों के कारण से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे. एक शत्रु देश की सहायता से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी ओर उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस के कारण से कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के शत्रु थे |

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April 18th, 2011, 01:47 PM
०५) इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक तथा अभी कुछ समय पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने नयायालय में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |

०६) आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि के नियमों के अनुसार है. ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था. इसने इस देश की हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था. इसने किसानों पर सबसे अधिक गोलियां चलवाई थी. 1857 की क्रांति के पश्चात कानपुर के निकट बिठुर में व्हीलर व नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को हत्या करवा दी थी चाहे वो गोदी का बच्चा हो अथवा मरणासन्न स्थिति में पड़ा कोई वृद्ध. इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी प्रारंभ हुई थी तथा वही भारत में आ गयी. भारत स्वतंत्र हुआ तो ये समाप्त होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम में ही परिवर्तन कर देते. परन्तु वो परिवर्तित नहीं किया गया क्योंकि ये इस संधि में है |
०७) इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेंगे परन्तु इस देश में कोई भी नियम चाहे वो किसी क्षेत्र में हो परिवर्तित नहीं जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 नियम वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का अर्थ Irish है वहीँ भारत के IPC में "I" का अर्थ Indian है शेष सब के सब कंटेंट एक ही है, कोमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कोमा बदले हुए |
०८) इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे. नगर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे. आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं. लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी नगर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (वैसे वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं. आप भी अपने नगर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक नगर है सूरत, इस सूरत में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला. अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये दासता का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |

rajpaldular
April 18th, 2011, 01:48 PM
०९) हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और हास्यप्रद ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग प्रकार की शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक विपरीत है. मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? यदि नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई महत्व नहीं है. इसके विपरीत उनके यहाँ ऐसा कदापि नहीं है आप यदि कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है परन्तु कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा. नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है. हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है. ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था की देन है, अर्थात आप भले ही 70 नंबर में फेल है परन्तु 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसे शिक्षा तंत्र से क्या उत्पन्न हो रहे हैं वो सब आपके सामने ही है और यही अंग्रेज चाहते थे. आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है अन्थ्रोपोलोग्य.| जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें दास लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में प्रारंभ किया था और आज स्वतंत्रता के 64 वर्षों के पश्चात भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |

१०) इस संधि की शर्तों के अनुसार हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा अर्थात हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में समाप्त हो जाये ये षडंत्र किया गया. आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था परन्तु ऐसा कर नहीं पाए. संसार में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप रोगग्रस्त हों तो आपका इलाज होगा परन्तु आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप रोगग्रस्त ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ, जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में रोग शैय्या पर पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का रक्त दूषित हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और रक्त निकल जाने के कारण से जोर्ज वाशिंगटन का देहांत हो गया. ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख कर गया था अर्थात कहने आशय ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय और ये सब आयुर्वेद के कारण से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारी सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |

११) इस संधि के अनुसार हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा. हमारे देश के समृद्धि और यहाँ उपस्थित उच्च तकनीक के कारण ये गुरुकुल ही थे और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था "“I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation”. गुरुकुल का अर्थ हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो कि हमारी मूर्खता है यदि आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे.

rajpaldular
April 18th, 2011, 01:49 PM
१२) इस संधि में एक और विशेष बात है, इसमें कहा गया है क़ि यदि हमारे देश के (भारत के) न्यायालय में कोई ऐसा केस आ जाये जिसके निर्णय के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके निर्णय को लेकर संविधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे केसों का निर्णय अंग्रेजों की न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमें लागू नहीं होगा. कितनी लज्जास्पद स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा.
१३) भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरूद्ध था और संधि की गणनानुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ कर जाना था और वो चली भी गयी परन्तु इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से पर शेष 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी और उसी का परिणाम है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां स्वतंत्रता के पश्चात भी इस देश में बची रह गयी और लूटती रही और आज भी वो सब लूट रही है.|
१४) अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का भाग है. आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है तथा उन 1% लोगों को देखो क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और uno में जा कर भारत के स्थान पर पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
१५) आप में से बहुत लोगों को स्मरण होगा क़ि हमारे देश में स्वतंत्रता के 50 साल के पश्चात तक संसद में वार्षिक बजट संध्या को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में संध्या के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी दासता में रहा है ये देश. ये भी इसी संधि का भाग है |
१६) 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम बनाया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज की आवश्यकता थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे. इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड प्रारंभ किया. वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय प्रारंभ किया गया और वो आज भी जारी है. जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था. आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में.

१७) अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था. मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई यदि गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था. अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना प्रारंभ किया, पहला मदिरालय प्रारंभ किया, पहला वेश्यालय प्रारंभ किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां मदिरालय खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पूरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों की. अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब सरलता से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के पश्चात ये सब समाप्त हो जाना चाहिए था परन्तु नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है.
१८) हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो वास्तव में अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड की संसदीय प्रणाली है. ये कहीं से भी न संसदीय है और ना ही लोकतान्त्रिक है. परन्तु इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है.


ऐसी हजारों शर्तें हैं. मैंने अभी जितना आवश्यक समझा उतना लिखा है. सारांश यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है.| अब आप के मन में ये प्रश्न उठ रहा होगा क़ि पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो भयावह संधियों (षडयंत्र) के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे परन्तु स्वतंत्रता के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस गए. इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि स्वतंत्रता के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये संधि की थी. वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस संसार में. भारत की स्वतंत्रता के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे पर मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे. वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे स्वतंत्रता के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है | अंग्रेज हमें जिस मार्ग पर चलाएंगे उसी मार्ग पर हम चलेंगे. इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण संधियों में फंसे. यदि आप अभी तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम मन से निकाल दीजिये तथा आप यदि समझ रहे हैं क़ि वो abc पार्टी के नेता बढ़िया नहीं थे अथवा हैं तो xyz पार्टी के नेता भी दूध के धुले नहीं हैं. आप किसी को भी बढ़िया मत समझिएगा क्योंक़ि स्वतंत्रता के पश्चात के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो अथवा प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है |

तो भारत की दासता जो अंग्रेजों के ज़माने में थी, अंग्रेजों के जाने के 64 वर्ष के पश्चात आज 2011 में जस क़ि तस है क्योंकि हमने संधि कर रखी है और देश को इन भयानक संधियों के मकड़जाल में फंसा रखा है. बहुत दुःख होता है अपने देश के बारे जानकार और सोच कर. मैं ये सब कोई प्रसन्नता से नहीं लिखता हूँ ये मेरे मन की पीड़ा है जो मैं आप लोगों से शेयर करता हूँ |

ये सब बदलना आवश्यक है परन्तु हमें सरकार नहीं व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा एवं आप यदि ये सोच रहे हैं क़ि कोई 'अवतार' आएगा और सब बदल देगा तो आप भ्रम में जी रहे हैं. कोई शिवजी, कोई हनुमान जी, कोई राम जी, कोई कृष्ण जी नहीं आने वाले. आपको और हमको ही ये सारे अवतार में आना होगा, हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और इस व्यवस्था को जड़ मूल से समाप्त करना होगा | भगवान भी उसी की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करता है |

इतने लम्बे लेख को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद् .मेरा उद्देश्य बस इतना ही है कि ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये. |

kuldeephmh
April 18th, 2011, 06:36 PM
Namashkaar RAJPAL Ji,
Aaapke is lekh ko padhne ke baad mere antraman se sirf ek hi aawaaz nikal rahi hai jo ki aapka signature text bhi hai key Always expect "The UNEXPECTED".
In sab baaton ko padhne k baad mujhe apne dekh ki sampoorrn vyastha par se man sa ooth gya hai. Pehle mai ye sochta tha ki hamara system bahut gadbad hai par ab nhi kahunga...kyunki jb system hamara hai hi nhi to kya gadbad aur kya a6aa.....Bhut dukh hua Bharat ka sarvnaash kar dene par tule is Agreement k baare me.

Aapka haardik dhanyavaad.
Mai aasha karta hu ki bhavishya me bhi aap isi trah k lekhon se hame satya k darshan karvate rahenge.
Mai aapke is samporrn lekh ko apne mitron avam jaankaron me e-mail key maadhyam se vitrit kar raha hu jis se aapke dwara aarambh ki gayi ek pahal me mai bhi ku6 yogdaan de saku!

Punah mai aapko Hardik Dhanyavaad deta hu aur aabhaar prakat karta hu ki aapne aisa lekh hamare saamne rakha jise padhne ki jarurat aaj key har bahrtiya ko hai.

Kuldeep Choudhary
Ek Bhartiya.

rajpaldular
April 20th, 2011, 11:22 AM
आदरणीय श्री कुलदीप चौधरी जी. आपका बहुत धन्यवाद, आपने इस सम्पूर्ण लेख का अध्ययन किया और इस पर मनन और चिंतन किया. सबसे बढ़िया बात आपकी मुझे ये लगी की आप आगे भी इस लेख को अपने मित्रों में फॉरवर्ड करेंगे, ये जानकर बहुत मन को शीतलता मिली. १ और १ मिलकर ११ होते हैं. इसी प्रकार जन जाग्रति होती है. अमेरिका में २-२, ४-४ और इससे अधिक लोगों के छोटे छोटे संगठन होते हैं जो अपनी बात को इतने प्रभावशाली तरीके से उठाते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति तक अपनी बात पहुँचाने में सफल हो जाते हैं.

कुछ विलम्ब हुआ आपको उत्तर देने में, वो इसलिए कि मैं देखना चाहता था कि हमारे बंधुवर ('जाटलैंड.कॉम' के सदस्य) कितने गंभीर हैं देश की ज्वलंत समस्याओं के लिए. परन्तु क्षमा चाहते हुए मुझे ये लिखना पड़ रहा है कि कम से कम हरियाणा के जाट तो इस 'साईट' पर पहेलियाँ ही बुझाते रहते हैं अथवा कोई कुछ अच्छा लिखना भी चाहता है तो उसकी टांग खींचने में लगे रहते हैं. उदाहरण के लिए 'जाटलैंड.कॉम' के एक बहुत ही वरिष्ट और माननीय सदस्य श्री रविन्द्रजीत सिंह जी...जो एक लेख निरंतर लिखते जा रहे हैं..जिसका नाम है "जाट दुनिया की नज़र में' .
मेरी दृष्टि में बहुत अच्छा लिख रहे हैं...परन्तु उनकी भी टांग खिंचाई हो रही है, उनसे प्रमाण मांगे जा रहे हैं.
श्री कुलदीप चौधरी जी ! आपका एक बार पुनः कोटि कोटि धन्यवाद.
शुभाशीर्वाद.

ravinderjeet
April 20th, 2011, 01:22 PM
राज पाल जी , मेरी टांग घन्निए लांबी-लांबी सें , लोकां नु खीन्चन्न दो और लांबी हो ज्यांगी | भीड़ में न्यारा दीखन खातर लाम्बा होंणा जरूरी स | रही पहेलियाँ की बात वे भी म्हारी संस्क्रती का भाग सें उनका होणा भी जरूरी स | इब्ब आप के तागे का जबाब में ज्यां तें ना दे पाया अक काम में बीजी था मेरे कई ताग्याँ पे भी में कई दिन तें पोस्ट नि गेरण पाया | आप का यो तागा बहुत आछा स और भोत जानकारी हामने मिली , आप छापते रहिये | जब जिस्सा बखत मिलेगा उस्सा योगदान जरूर द्यांगे | धन्यवाद |

shivamchaudhary
April 20th, 2011, 03:08 PM
राजपाल जी.
जो दुःख आपको है, वो बहुत से लोगो को है, जो इस देख की मिट्टी से जुड़े हुए है !! जिस तरह से आपने वर्णन किया, मेरा तो खून खौल उठता है, लेकिन डिग्री और परीक्षा के चक्कर में, सब बर्बाद कर दिया जाता है !!

ये १००% सत्य है की, कोई अवतार नहीं आने वाले, हमें ही करना है जो करना है .. लेकिन हम भी क्या कर रहे है .. जीने की आसान रह चुन रहे है ... अपनी फॅमिली को safe कर रहे है !! नेताओ को गाली लिख देते है, .. लेकिन नेता बनाना नहीं चाहते ... और बने भी कैसे ... अब इतने बड़े हो गए.. की अब और कुछ नहीं कर सकते जीवन यापन के अलावा.

बचपन से देखा और आजतक यही देखता आया हूँ मैं भी !! और बहुत कोशिस भी कर रहा हूँ, अपने आस पास को बदलने की. नेताओ से ज्यादा पॉवर वैसे IAS सचिवो के पास है, वो कितना कर सकते है ये भी विचारनीय है !!

अन्ना हजारे के साथ आज के युवा को देखकर ऐसा लगा, हम फिर से हिन्दुस्तान की नीव रख सकते है ,,, जहा अविष्कार के लिए डिग्री की जरूरत नहीं होगी और नेता बनाने के लिए crime की.

लिखते रहिये.... आजकल motivation की जरूरत हर जगह है :)

ravinderpannu
April 20th, 2011, 07:37 PM
राजपाल जी,
आज ये लेख पढने पाया, हालाँकि तक़रीबन रोज़ लोगिन करता हूँ और एक आधे तागे में कुछ लिख देता था, परन्तु आज जब ये लेख पढ़ा तो लगा की सच में बदकिस्मती थी भारत देश की उस समय में जब हमने ये संधि की I
एक बिजली सी दौड़ गयी शारीर में जब ये सब तथ्य पढ़े,,..!!
उस से ज्यादा आश्चर्य ये हुआ की अब जब हम एक शशक्त राष्ट्र हैं तो क्यों नहीं बदल रहे इन सब चीजों को,, बदलना शायद उपयुक्त शब्द नहीं है क्यों नहीं हम अपने भारत के कानून/संविधान बना रहे , क्यों हम उन लकीरों पर चल रहे हो जो चंद सत्ता के भूखे लोगो द्वारा लगाई गयी थी,,,
....................फिर कहीं से एक विचार आया के पहले हमें गरीबी उन्मूलन करना होगा , क्यूँकी गरीब के लिए सबसे पहला कानून/अविष्कार/डिग्री/संविधान सिर्फ रोटी/पैसा होता है ...मुझे यकीं है की आने वाले २ दशको में हम भारत में ये सब बदलाव जरुर देखेंगे ...!!!
जय हिंद I

it is all very nice stuff, plz keep posting.

upendersingh
April 21st, 2011, 02:29 AM
इस थ्रेड की शुरुआती पोस्ट्स में निःसंदेह ज्ञानवर्द्धक और रोचक जानकारी हैं, लेकिन मैं नहीं समझता कि इससे हमें कोई शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिए, हां यह जरूर है कि भारत 1947 में पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हुआ था. कुछ अधूरापन अभी भी मौजूद है. मुझे पूरी उम्मीद है कि जिस तरह से भारत एक शक्ति के रूप में उभर रहा है, उससे आने वाले समय में भारत पूरी तरह से स्वतंत्र हो जाएगा और यहां से इस्लाम का पूरी तरह से नाम-ओ-निशान तो मिट ही जाएगा, साथ ही पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे नाम भी इतिहास का हिस्सा-भर रह जाएंगे. फिर पुनः एक वृहत् भारत का निर्माण होगा. दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्र होने के बावजूद वहां लगभग 9 % अंग्रेज हैं, लेकिन स्वतंत्रता के बाद भारत में एक भी अंग्रेज नहीं रहा. द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने भी अपने लगभग 4 लाख लोग गंवाए थे, इस वजह से हम कह सकते हैं कि ब्रिटेन कोई ऐसा देश नहीं है, जिसने कभी कोई कष्ट न झेला हो. अंग्रेजों ने भारत में विकास के ढेरों कार्य करवाए थे, जिसका सुख आज भी भारत ले रहा है (रेलवेज, सड़कें, भवन, नहरें, हिल स्टेशंस इत्यादि) और अंग्रेजों को मुंह चिढ़ा रहा है.
दरअसल सन् 1000 के आस-पास भारत दुनिया का सबसे धनवान देश तो था, लेकिन अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था. जयचंद जैसे लोगों ने भूखे-नंगे मुस्लिम आक्रमणकारियों का काम और आसान कर दिया था. इसके बाद समस्या यह हुई कि यूरोप में विकसित बंदूक का इजाद हो गया...भारत सबसे धनवान देश था, लेकिन यहां के योद्धा अभी भी तलवारों से युद्ध लड़ते थे...बंदूकों के आगे तलवार कैसे टिकती भला, वो भी आपसी फूट से जूझ रहे भारतीयों की?...भारत ने लगभग 947 साल तक संघर्ष किया और अंततः अपने वजूद को तो कम से कम बचाने में सफल रहे ही, अन्यथा अंग्रेज और मुसलमान तो भारतीय संस्कृति एवं हिंदू धर्म को ही नष्ट कर देना चाहते थे. भारत का आने वाला समय बहुत ही शानदार मालूम पड़ता है, एकदम अभूतपूर्व. 121 करोड़ लोग, वो भी परमाणु बम संपन्न...ब्रिटेन जैसे छुछुंदरों को कंपकंपी चढाने के लिए इतना ही काफी है...बहुत अच्छा हो कि भारत परमाणु रोधी शस्त्र तकनीक (Anti-Nuclear Weapon Technique) भी विकसित कर ले...फिर हमारे पास परमाणु बम तो होगा ही, साथ ही इसके बचाव की तकनीक भी होगी...फिर हम इस सारे संसार पर राज कर सकते हैं और पाकिस्तान-बंगलादेश जैसे मुल्कों को भारत में मिलने के लिए तो मजबूर कर ही सकते हैं, साथ ही उन्हें हिंदू धर्म में वापसी के लिए भी विवश कर सकते हैं...ऐसा होता है तो बहुत ही अच्छा है, अन्यथा भारत वर्तमान में भी अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे शक्तिशाली देश तो है ही...

kuldeephmh
April 21st, 2011, 07:15 AM
श्री कुलदीप चौधरी जी ! आपका एक बार पुनः कोटि कोटि धन्यवाद.
शुभाशीर्वाद.

आपका हार्दिक अभिनन्दन राजपाल जी ,
आपकी पहली पर्तिक्रिया से ही चार लोग तो देश की चिंताजनक हालत पर विचार करनें के लिए आगे आगे आयें हैं |
यह एक अच्छी शुरुआत है जल्दी ही देश का हर नागरिक इस बात को समझेगा और भारत पुनः एक विशवशक्ति बनकर सामने आएगा |
आज भारत के हर युवक में कौशल और कला भरपूर है जिसका लोहा अमेरिका और अन्य देश भी मानते है जरुरत है तो बस एक ज्ञान पुंज की जो इस कौशल को उभरकर सामने आने में मदद करे |
आपकी यह पोस्ट भी उस प्रकाश पुंज की एक ज्योति की तरह ही है |
आपकी प्रतिक्रिया एवम मित्रो को भेजी गयी इ-मेल के जवाबों से पुनः प्रभावित होकर मै इस सम्पूर्ण पोस्ट को बल्क मैलिंग सिस्टम का प्रयोग करते हुए करीब ४१४ ( चार सौ चोदह )लोगो को फॉरवर्ड कर रहा हूँ | आशा है आपको और अन्य देशहित चिंतको को प्रसन्त्ता होगी एवं एक नए जोश का संचार होगा |

धन्यवाद

rajpaldular
April 21st, 2011, 02:44 PM
आदरणीय उपेन्दर सिंह जी लाकड़ा ! आपको बहुत साधुवाद. आपने इस धागे का अध्ययन करने के साथ ही साथ चिंतन मनन भी किया. मैं आपकी बहुत सारी बातों से सहमत हूँ, परन्तु मुझे नहीं लगता कि भारत पुनः अपनी 'विश्व शक्ति' बनेगा, पाकिस्तान और बांग्लादेश को हिन्दू बनाना तो बहुत दूर की बात है. हमें अपने अल्प संख्यकों को देखना चाहिए, एक एक दम्पति के १०-१२ बच्चे मिलेंगे और हमारे परिवारों में १ अथवा २ बच्चे ही मिलेंगे, मुझे लगता है कि आने वाले १५-२० वर्षों में पलड़ा इनका (अल्संख्यकों) का भारी हो जायेगा. जिनके अधिक वोट होंगे सरकार वो बनाएगा. मैं इनके साथ एक बहुत लम्बे समय के लिए रहा हूँ, जितना मैं इनको जानता हूँ अथवा भगवान ने जितनी मुझे बुद्धि प्रदान की है, उसके आधार पर मेरा ये मानना है कि भारत का भविष्य अंधकारमय है. हमारा सनातन धर्म कुछ वर्षों का अतिथि है. और हमारे धर्म को कोई दूसरा समाप्त नहीं कर रहा है अपितु अपने ही लोग (राजनेता) इसमें अंतिम कीलें ठोक रहे हैं.

rajpaldular
April 21st, 2011, 03:02 PM
आदरणीय शिव कुमार जी चौधरी आपका मैं हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ कि आपने इस धागे का अध्ययन किया और उत्तर भी लिखा. आपने सत्य लिखा कि हम इतने बड़े हो गए हैं कि जीवन यापन के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकते. हर व्यक्ति सर्वप्रथम अपने परिवार के बारे में ही सोचता है, अपने परिवार को पहले सुरक्षित देखना चाहता है. मुझे नहीं लगता कि अन्ना हजारे भ्रष्टाचार समाप्त करने की दिशा में कुछ कर पाएंगे, आज ही मैं टी.वी. पर समाचार देख रहा था, 'अमर सिंह, मुलायम सिंह' 'सी. डी.' प्रकरण के बारे में बता रहे थे.

rajpaldular
April 21st, 2011, 03:18 PM
आदरणीय कुलदीप जी चौधरी . आपने ४१४ व्यक्तियों को ये मेल प्रेषित की है, ज्ञान का प्रवाह जितना अधिक हो उतना ही बढ़िया. कम से कम हम सबको इन सब बातों का जानकारी तो होनी चाहिए, जानकारी होगी तभी हमें उसके दोनों पक्षों (भले-बुरे) का ज्ञान होगा, शनैः शनैः इस प्रकार क्रांति भी आ सकती है. पुनः आपको बहुत बहुत धन्यवाद.

upendersingh
April 21st, 2011, 05:11 PM
आदरणीय उपेन्दर सिंह जी लाकड़ा ! आपको बहुत साधुवाद. आपने इस धागे का अध्ययन करने के साथ ही साथ चिंतन मनन भी किया. मैं आपकी बहुत सारी बातों से सहमत हूँ, परन्तु मुझे नहीं लगता कि भारत पुनः अपनी 'विश्व शक्ति' बनेगा,

राजपाल जी, भारत की स्वतंत्रता से पहले ना जाने कितने लोगों को ऐसा लगता था कि भारत कभी आजाद हो ही नहीं सकता, लेकिन ऐसा हुआ...इसके बाद ना जाने कितने लोगों को ऐसा लगता था कि भारत कभी सैन्य ताकत नहीं बन सकता, परमाणु संपन्न नहीं बन सकता, लेकिन ऐसा हुआ...आज लगभग हर क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदमों से दुनिया हैरान है, लेकिन कुछ दशक पहले ना जाने कितने लोगों को ऐसा लगता था कि ऐसा कभी हो ही नहीं सकता...तो ऐसी कोई बात नहीं है कि भारत आने वाले समय में विश्व की महाशक्ति बन ही नहीं सकता...कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि ऐसा हो ही नहीं सकता...


पाकिस्तान और बांग्लादेश को हिन्दू बनाना तो बहुत दूर की बात है. हमें अपने अल्प संख्यकों को देखना चाहिए, एक एक दम्पति के १०-१२ बच्चे मिलेंगे और हमारे परिवारों में १ अथवा २ बच्चे ही मिलेंगे, मुझे लगता है कि आने वाले १५-२० वर्षों में पलड़ा इनका (अल्संख्यकों) का भारी हो जायेगा. जिनके अधिक वोट होंगे सरकार वो बनाएगा.

भारत में हिंदुओं में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो दर्जनों बच्चे रखते हैं और अल्पसंख्यकों में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो 1-2 बच्चे रखते हैं...अभी ये लोग 12-14 % हैं और इन्हें बहुसंख्यक बनने में बहुत समय लगेगा...वो भी तब जबकि हम लगभग 84 % भारतीय हिंदू बिलकुल ही आंखें मूंदकर तमाशा देखते रहें...ऐसा नहीं हो सकता...


मैं इनके साथ एक बहुत लम्बे समय के लिए रहा हूँ, जितना मैं इनको जानता हूँ अथवा भगवान ने जितनी मुझे बुद्धि प्रदान की है, उसके आधार पर मेरा ये मानना है कि भारत का भविष्य अंधकारमय है. हमारा सनातन धर्म कुछ वर्षों का अतिथि है. और हमारे धर्म को कोई दूसरा समाप्त नहीं कर रहा है अपितु अपने ही लोग (राजनेता) इसमें अंतिम कीलें ठोक रहे हैं.

सनातन हिंदू धर्म तो सदियों से रहा है और रहेगा...मुट्ठी-भर नेताओं और देशद्रोहियों में इतना दम नहीं है कि वे महान हिंदू धर्म को नष्ट कर सकें...भारत का भविष्य क्या होगा, इस पर तो अभी हम राय ही व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान तो हकीकत है...वर्तमान की हकीकत यह है कि हमने 4-4 बार मोहम्मद गोरी और महमूद गजनवी के इन तथाकथित वंशजों को धूल-धूसरित किया हुआ है...कभी ना डूबने वाले अंग्रेजी साम्राज्य को नष्ट करने में हमारी भूमिका अहम् रही है...हमने 28 साल बाद क्रिकेट का विश्व कप जीता, वो भी इस अंदाज में जो कि पहले कभी देखने को नहीं मिला...हम इसी अंदाज में और क्षेत्रों में भी आगे बढ़ रहे हैं...इसके बावजूद मैं अपनी राय आपके जैसी तब करूंगा, यदि भारत के साथ कुछ बेहद अपमानजनक और विध्वंसक हो जाता है, जैसे कि भारत पर कोई बड़ा परमाणु हमला या फिर कोई बहुत ही भीषण आपदा या ऐसा ही कुछ और...सच्चाई तो यह है कि जब तक मुझ पर, मेरी जाति पर, मेरे निकटजनों पर, मेरे धर्म पर और मुझसे जुड़े हुए अन्य पहलुओं पर इसकी कोई आंच ना आ जाए, तब तक मैं तो अपनी राय नहीं बदलने वाला...कोई भी भारत को नीचा दिखाने का प्रयास करे और मैं उसकी बातों का जवाब दूंगा, यदि मैं निरुत्तर हो गया और बगलें झांकने को विवश हो गया तो फिर मैं अपनी राय बदल लूंगा...हालांकि मेरी राय कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि मैं तो एक मामूली इंसान हूं...
आज की राजनीति यह है कि इंग्लिश भले ही अंग्रेजों की भाषा है, लेकिन इसे इस तरह से अपनाओ और प्रचारित करो कि आने वाले समय में दुनिया में ये प्रचारित हो जाए कि ये भाषा तो पैदा ही भारत में हुई है...दूसरे देशों ने यही तो किया...चिकित्सा और ना जाने क्या-क्या सीखकर तो यहां से गए, जबकि आज दुनिया को लगता है कि ऐसी चीजें पैदा ही उन देशों में हुईं...उदाहरण के लिए इस वेस्टमिंस्टर सिस्टम को इतना ज्यादा और इस ढंग से अपनाओ कि आने वाले 100-200 साल में यह प्रचारित हो जाए कि यह तो देन ही भारत की है...
हालांकि आपका प्रयास भी अपनी जगह सही है...यदि किसी को समय रहते सचेत नहीं किया जाता तो वो लापरवाह हो जाता है और पतन की राह पकड़ लेता है, लेकिन खुद को बार-बार हीन प्रदर्शित करना भी घातक है, क्योंकि इससे आत्मविश्वास कम होता है...जो वास्तविकता है, उसके आधार पर संतुलन बनाकर कोई बात कहनी चाहिए...बहरहाल सबके अपने-अपने विचार हैं और उन्हें व्यक्त करने का भी सबको अधिकार है...मैंने भी बस अपने विचार व्यक्त किए...हो सकता है आप ही ठीक साबित हों...

rajpaldular
April 22nd, 2011, 01:39 PM
आदरणीय श्री उपेन्द्र सिंह जी लाकड़ा ! मुझे बहुत हर्ष हुआ कि आपने बहुत परिश्रम एवं अत्यंत विचार मंथन के पश्चात अपने विचार व्यक्त किये, बहुत सुन्दर विचार हैं l हमारा हिन्दू धर्म प्राचीन समय में बहुत विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ था और समृद्ध भी था. ईरान में एक राजा बहुत प्रसिद्ध हुए हैं उनका नाम था 'नरोत्तम', ये मैंने कहीं पढ़ा था. प्राचीन इराक में भी हिन्दू धर्म था. यहाँ तक कि पूरा का पूरा आज का अरब जगत भी प्राचीन समय में हिन्दू ही था. मैंने अपने जीवन का बहुत बड़ा भाग मस्कट, ओमान में व्यतीत किया है, एक taxi ड्राईवर ने मुझे स्वयं मुझे बताया था कि निश्चित समय तिथि तो नहीं बता सका था पर इतना उसने बताया कि प्राचीन समय में पूरे अरब में हिन्दू ही थे, इसके पश्चात बुद्धिस्ट बने, तत्पश्चात वहां इस्लाम आया. उपेन्द्र सिंह जी अब आप स्वयं ही विचार कीजिये कि हिन्दू धर्म सिमट कर केवल भारत में ही शेष बचा है, इसको भी हिन्दू राष्ट्र कहाँ कह सकते हैं? नेहरु और गाँधी ने इसको 'छद्म धर्म निरपेक्ष राष्ट्र' बना कर रख दिया है. वैसे आपको मैं धन्यवाद देता हूँ कि आप सकारात्मक सोच रखते हैं, भारत पुनः एक महा शक्ति बनेगा मैं भी यही परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ.

htomar
April 22nd, 2011, 07:12 PM
राजपाल जी अच्छी जानकारी मुहेया करायी आपने.इसके लिए बहुत-२ धन्यवाद.

१)बिल्डिंग्स और रोड के नाम तो अच्छा ही है की वही चले आ रहे आ रहे है.नहीं तो यहाँ उन्हें लेकर भी आये दिन आन्दोलान हुआ करते.जो नयी बनी है उन्ही का नाम तब तक रहता है जब तक नया cm ना आ जाये.
२) नेताजी का मुद्दा भी अब अप्रासंगिक हो चुका है.
३) कंपनिया तो यहाँ की भी बाहर बिज़नस कर रही है.ibm को भगाया था उससे भी घाटा ही हुआ था.जो उस समय थी उसके बाद भी बहुत सी कंपनिया आई जिनसे फायदा ही हुआ.

rajpaldular
May 26th, 2011, 11:43 AM
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nschhonkar
January 16th, 2013, 11:24 PM
Shriman ji
Bharat ki dasta ki kahani jankar bahut dukh hua, is schchai ko jyada se jyada logon tak pahuchuga

Narendra Singh Chhonkar

swaich
January 17th, 2013, 10:00 AM
Probably the biggest piece of baloney ever written on JL.