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View Full Version : bhagat singh:Yug ka Deepak



PARVYUG
April 24th, 2011, 06:12 PM
युग का दीपक





वह था मर्द जो अंतिम क्षण तक अड़ा रहा

वह था सिंह जो उस वेदी पर खड़ा रहा




http://3.bp.blogspot.com/-cPfzQ4a7YOI/TbQUG_5uuTI/AAAAAAAAAC4/u9m2C4wBGbo/s1600/wefwefwfwgwg.jpg (http://3.bp.blogspot.com/-cPfzQ4a7YOI/TbQUG_5uuTI/AAAAAAAAAC4/u9m2C4wBGbo/s1600/wefwefwfwgwg.jpg)



बलिदान का क्षण वह अनोखा

वो वीर फंदे को चूम रहा था
चमक उठा मस्तक
दमक रहा मुख उज्जवल था
वह तूफ़ान सैलाब नसों मैं
दिल मैं भाव वासंती था
देखा न देखा ऐसा यह वीरों का वसंत
मर मिटने की यह भावना
ये अनुराग ये प्रेम महान
उन्नत होती संस्कृति तुमसे
तुम्हारा सदा रहे दिनमान

kuldeephmh
April 25th, 2011, 12:36 PM
Inklaab Zindabaad!!

deependra
April 25th, 2011, 08:31 PM
इस ज़मीं आसमा से आगे हूँ.... वक़्त के कारवा से आगे हूँ ... मैं कहा हूँ ये खुदा जाने ..... कल जहा था वहा से आगे हूँ .....

Very beautiful lines Kuldeep!!

riyaa
April 28th, 2011, 07:51 PM
he was a real hero...

Saharan1628
April 29th, 2011, 01:38 PM
Bhagat Singh teri photu kyan te na laagti notan pe....

kuldeephmh
April 29th, 2011, 01:39 PM
Very beautiful lines Kuldeep!!
Thanks Bhai!

htomar
April 29th, 2011, 06:45 PM
जिन खेतों में तुमने बोई थी बंदूकें
उनमे उगी हैं नीली पड़ चुकी लाशें

जिन कारखानों में उगता था
तुम्हारी उम्मीद का लाल सूरज
वहां दिन को रोशनी
रात के अंधेरों से मिलती है

ज़िन्दगी से ऐसी थी तुम्हारी मोहब्बत
कि कांपी तक नही जबान
सू ऐ दार पर
इंक़लाब जिंदाबाद कहते
अभी एक सदी भी नही गुज़री
और ज़िन्दगी हो गयी है इतनी बेमानी
कि पूरी एक पीढी जी रही है
ज़हर के सहारे

तुमने देखना चाहा था
जिन हाथों में सुर्ख परचम
कुछ करने की नपुंसक सी तुष्टि में
रोज़ भरे जा रहे हैं
अख़बारों के पन्ने

तुम जिन्हें दे गए थे
एक मुडे हुए पन्ने वाले किताब
सजाकर रख दी है उन्होंने
घर की सबसे खुफिया आलमारी मैं

तुम्हारी तस्वीर ज़रूर निकल आयी है
इस साल जुलूसों में रंग-बिरंगे झंडों के साथ

सब बैचेन हैं
तुम्हारी सवाल करती आंखों पर
अपने अपने चश्मे सजाने को
तुम्हारी घूरती आँखें डरती हैं उन्हें
और तुम्हारी बातें गुज़रे ज़माने की लगती हैं

अवतार बनने की होड़ में
तुम्हारी तकरीरों में मनचाहे रंग

रंग-बिरंगे त्यौहारों के इस देश में
तुम्हारा जन्म भी एक उत्सव है

मै किस भीड़ में हो जाऊँ शामिल

तुम्हे कैसे याद करुँ भगत सिंह
जबकि जानता हूँ की तुम्हे याद करना
अपनी आत्मा को केंचुलों से निकल लाना है

कौन सा ख्वाब दूँ मै
अपनी बेटी की आंखों में
कौन सी मिट्टी लाकर रख दूँ
उसके सिरहाने

जलियांवाला बाग़ फैलते-फैलते
... हिन्दुस्तान बन गया है

ravinderjeet
April 29th, 2011, 08:23 PM
जिन खेतों में तुमने बोई थी बंदूकें
उनमे उगी हैं नीली पड़ चुकी लाशें

जिन कारखानों में उगता था
तुम्हारी उम्मीद का लाल सूरज
वहां दिन को रोशनी
रात के अंधेरों से मिलती है

ज़िन्दगी से ऐसी थी तुम्हारी मोहब्बत
कि कांपी तक नही जबान
सू ऐ दार पर
इंक़लाब जिंदाबाद कहते
अभी एक सदी भी नही गुज़री
और ज़िन्दगी हो गयी है इतनी बेमानी
कि पूरी एक पीढी जी रही है
ज़हर के सहारे

तुमने देखना चाहा था
जिन हाथों में सुर्ख परचम
कुछ करने की नपुंसक सी तुष्टि में
रोज़ भरे जा रहे हैं
अख़बारों के पन्ने

तुम जिन्हें दे गए थे
एक मुडे हुए पन्ने वाले किताब
सजाकर रख दी है उन्होंने
घर की सबसे खुफिया आलमारी मैं

तुम्हारी तस्वीर ज़रूर निकल आयी है
इस साल जुलूसों में रंग-बिरंगे झंडों के साथ

सब बैचेन हैं
तुम्हारी सवाल करती आंखों पर
अपने अपने चश्मे सजाने को
तुम्हारी घूरती आँखें डरती हैं उन्हें
और तुम्हारी बातें गुज़रे ज़माने की लगती हैं

अवतार बनने की होड़ में
तुम्हारी तकरीरों में मनचाहे रंग

रंग-बिरंगे त्यौहारों के इस देश में
तुम्हारा जन्म भी एक उत्सव है

मै किस भीड़ में हो जाऊँ शामिल

तुम्हे कैसे याद करुँ भगत सिंह
जबकि जानता हूँ की तुम्हे याद करना
अपनी आत्मा को केंचुलों से निकल लाना है

कौन सा ख्वाब दूँ मै
अपनी बेटी की आंखों में
कौन सी मिट्टी लाकर रख दूँ
उसके सिरहाने

जलियांवाला बाग़ फैलते-फैलते
... हिन्दुस्तान बन गया है

भोत बढ़िया कविता स हरेंदर भाई | कवि का नाम भी लिखो बेरा हो तो |

htomar
April 30th, 2011, 11:09 AM
"Ashok Kumar Panday". Yatharth waadi kavi hai.
hindi kavita waale thread mai to likh deta hu kavi ka naam.yaha chhod diya tha.

भोत बढ़िया कविता स हरेंदर भाई | कवि का नाम भी लिखो बेरा हो तो |

rajpaldular
September 27th, 2011, 04:27 PM
अमर शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर उन्हें शत शत नमन!!!!! http://a1.sphotos.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s320x320/297308_197587016979956_100001859771175_488952_1774 940244_n.jpg (http://www.facebook.com/photo.php?fbid=197587016979956&set=o.269077573120900&type=1&ref=nf)

rajpaldular
September 27th, 2011, 05:11 PM
EVERYONE CELLEBRATES B'DAY OF GANDHI ON 2nd OCT.

27th SEPT., 1907 IS B'DAY OF BHAGAT SINGH.

DOES NOBODY KNOW THAT?

http://lh6.ggpht.com/_VguqKrEgM54/TKCBaItZKSI/AAAAAAAAAo8/bpph9t97EY8/s640/BhagatSingh.jpg

ravinderjeet
September 27th, 2011, 05:16 PM
शहीद भगत सिंह की रह ही सही थी ,इसीलिए हमें आजादी मिली थी |

सहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले |
यही उनका आखीरी निशाँ होगा |


शहीदों को कुरबानी के दिन याद किया जाता हे | २३ मार्च | शहीदी दिवस |

AhlawatSardar
September 27th, 2011, 07:16 PM
बब्बर शेर भगत सिंह न दिल की डूंगी गहराई ते लाख लाख बधाई हो, रब करा फेर भगत दोबारा जनम ले |

मेरी माँ नु पुत्त नि लभणे तैनू यार बथेरे |

तेरी फोटो क्यों नि भगत सियांह लगदी नोटा ते |

deependra
September 27th, 2011, 08:08 PM
EVERYONE CELLEBRATES B'DAY OF GANDHI ON 2nd OCT.

27th SEPT., 1907 IS B'DAY OF BHAGAT SINGH.

DOES NOBODY KNOW THAT?

http://lh6.ggpht.com/_VguqKrEgM54/TKCBaItZKSI/AAAAAAAAAo8/bpph9t97EY8/s640/BhagatSingh.jpg

Thanks Rajpal ji for reminding us of great martyr Bhagat Singh who was the face of indian freedom movement.

deependra
September 27th, 2011, 08:11 PM
Posting two lines recited by Bhagat Singh's mother after his martyrdom-


क्या हुआ जो मर गया अहल-ए-वतन के वास्ते,
बुलबुले मर जाती हैं, अपने चमन के वास्ते...


अमर शहीद को शत शत नमन!!!

rajpaldular
September 28th, 2011, 11:06 AM
A request to God on this day:

God please send back the Greatest Bhagat Singh and many other freedom fighters who are resting in peace in heaven… because their Mother land India need them once again this time to fight against their own corrupt , greedy & blood sucker leaders…….

ravinderpannu
September 28th, 2011, 11:27 AM
Jinhone apni zindagi kar di vatan k naam,,
un shaheedo ko lakho salam,,

Vande matrm,..!!

28 sep,1907 : Birth of a legend,.. Shaheed Bhagat Singh.

ashokpaul
September 28th, 2011, 12:45 PM
भगत सिंह और आर्य समाज

भगत सिंह के अधिकांश चित्रों में सिर पर केश पगड़ी नहीं हैट दिखायी देता है। नाम में 'सिंह' जुड़ा रहने से पंजाब से बाहर के लोग उसे प्राय: राजपूत ठाकुर समझ लेते हैं। भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ था। अब तो शायद उसके छोटे भाइयों में से किसी के भी सिर पर केश नहीं हैं। सिख संप्रदाय में भी हिंदुओं की तरह ब्राह्मणों और खत्रियों की कई उपजातियां हैं। भगत सिंह का परिवार साधारण किसान था, जिसे जाट कहा जाता है। भगत सिंह और उनके पिता सरदार किशन सिंह के नाम के साथ सरदार की उपाधि जुड़ी देख कुछ लोग इस शब्द को उनके वंश की उपाधि ही समझ लेते हैं। ऐसी कोई बात नहीं है। पंजाब में प्रत्येक सिख सरदार पुकारा जाता है ठीक वैसे ही जैसे कि निरक्षर ब्राह्मण भी पंडित पुकारे जाते हैं। भगत सिंह को कभी किसी ऐतिहासिक पुरातन महापुरुष से अपने वंश का संबंध जोड़ने का गर्व करते नहीं सुना।

भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह की आस्था वैदिक कार्य के आर्यसमाजी ढंग की थी। सिख परिवार में पैदा होकर, भगवान द्वारा सिर पर लाद दिए गए संप्रदाय की अवहेलना करके जो व्यक्ति अपनी बुध्दि से किसी दूसरे संप्रदाय को तर्क संगत समझ कर स्वीकार कर लेता है, वह प्रकृति से विचार स्वतंत्राता चाहने वाला और अपने ज्ञान की सीमा तक क्रांतिकारी ही होगा। भगत सिंह की इस पारिवारिक परिस्थिति का प्रभाव उसके मानसिक विकास पर पड़ना अनिवार्य था। सरदार अर्जुन सिंह न केवल व्यक्तिगत रूप से ही अपने धार्मिक विचारों के अनुसार आचरण करते थे बल्कि अपने गांव में भी बिरादरी और बस्ती के विरोध की परवा न कर आर्यसमाज का जलसा और प्रचार करने के लिए लोहा लेते रहते थे।

भगत सिंह के परिवार का संप्रदाय सिख था परंतु सिख सांप्रदायिकता के प्रति इस परिवार में कोई रूढ़िवादी आस्था नहीं थी। सिर पर केश होने के बावजूद यह लोग सिख की अपेक्षा आर्यसमाजी ही अधिक थे।भगत सिंह के परिवार की आर्यसमाज के प्रति अनुरक्ति विचार-स्वतंत्रता और क्रांति की ओर प्रवृत्ति के कारण ही थी।

भगत सिंह का जनेऊ संस्कार भी करवाया गया और इसी संस्कार के अवसर पर भगत सिंह के दादा ने उन्हें राष्ट्र को समर्पित कर दिया. इसका उल्लेख स्वयं भगत सिंह अपने पत्रों में करते हैं.

भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह तो सामाजिक प्रश्नों पर सांप्रदायिकता की उपेक्षा कर उन्हें केवल राजनैतिक दृष्टि से ही देखते थे। सरदार किशन सिंह आर्यसमाज के समाज-सुधार के कार्यक्रमों में काफी दिलचस्पी रखते थे।

उस समय आर्यसमाज के आंदोलन का विशेष रुझान सामाजिक समस्याओं की ओर था। शिक्षा-प्रचार, विधवा-विवाह, जन्म से वर्ण-व्यवस्था की धारणा को तोड़ना और अछूत समझी जाने वाली जातियों के लिए मनुष्यता के अधिकारों की मांग इस आंदोलन के प्रमुख भाग थे। इन प्रगतिशील भावनाओं का स्वाभाविक परिणाम विदेशी दासता से असंतोष भी हुआ। सामाजिक प्रगति के पथ पर कदम रखने से व्यक्ति राजनैतिक दृष्टि से सचेत हुए बिना नहीं रह सकता। यही कारण था कि पंजाब में आर्यसमाज द्वारा सामाजिक सुधार की चेतना फैलने के साथ-साथ ही विदेशी दासता के विरोध की चेतना भी फैलने लगी। उस समय पंजाब के प्राय: सभी राजनैतिक कार्यकर्ता लाला हरदयाल, अम्बाप्रसाद सूफी, लाला लाजपत राय और अजीत सिंह आदि 'आर्यसमाजी विचार स्वतंत्रता' द्वारा प्रभावित थे। 1914-1915 लाहौर षडयंत्र के मामले में भाई परमानंदजी आदि भी आर्यसमाज की प्रगतिशील चेतना की ही उपज थे।

उपरोक्त घटना से यह स्पष्ट है कि रूढ़िवाद से मुक्त पारिवारिक वातावरण में भगत सिंह ने तर्क, विद्रोह और साहस की दीक्षा स्वाभाविक रूप से पाई थी। भगत सिंह के परिवार की आर्यसमाज के प्रति अनुरक्ति विचार-स्वतंत्रता और क्रांति की ओर प्रवृत्ति के कारण ही थी। आज आर्यसमाज के आंदोलन और संगठन ने मठ और रूढ़िवाद का जैसा रूप धारण कर लिया है, उससे उन्नीसवीं शताब्दी के अंत और बीसवीं शताब्दी के आरंभिक काल के आर्यसमाजियों की भावना का अनुमान ठीक-ठीक नहीं हो सकता; जैसे कि आज अमरीकन और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की ईसाइयत को देख कर रोमन साम्राज्य के समय ईसाई धर्म द्वारा किए गए परलोक के विश्वास के सहारे नीरु के दमन और अत्याचार के विरुध्द लड़ने वाले ईसाई दासों और गरीब इसाई लोगों की मनोभावना का अनुमान नहीं किया जा सकता।

यदि हम उन आर्यों की भांति कार्य करना चाहते हैं तो वही भावना लानी होगी और इसका एक मात्र मार्ग है "आर्य प्रशिक्षण सत्र" यह युवाओं को व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, रूढ़ीवाद से दूर कर आर्य समाज की विचार स्वतंत्रता से औत प्रोत करवाता है. आप भी आर्य प्रशिक्षण सत्र में आकर भगत सिंह सरीखे युवाओं की पीढ़ी के वाहक बने. अधिक जानकारी के लिए देखें- www.aryanirmatrisabha.com




http://www.aryanirmatrisabha.c​o/
www.aryanirmatrisabha.com

deependra
September 28th, 2011, 08:09 PM
भगत सिंह और आर्य समाज

भगत सिंह के अधिकांश चित्रों में सिर पर केश पगड़ी नहीं हैट दिखायी देता है। नाम में 'सिंह' जुड़ा रहने से पंजाब से बाहर के लोग उसे प्राय: राजपूत ठाकुर समझ लेते हैं। भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ था। अब तो शायद उसके छोटे भाइयों में से किसी के भी सिर पर केश नहीं हैं। सिख संप्रदाय में भी हिंदुओं की तरह ब्राह्मणों और खत्रियों की कई उपजातियां हैं। भगत सिंह का परिवार साधारण किसान था, जिसे जाट कहा जाता है। भगत सिंह और उनके पिता सरदार किशन सिंह के नाम के साथ सरदार की उपाधि जुड़ी देख कुछ लोग इस शब्द को उनके वंश की उपाधि ही समझ लेते हैं। ऐसी कोई बात नहीं है। पंजाब में प्रत्येक सिख सरदार पुकारा जाता है ठीक वैसे ही जैसे कि निरक्षर ब्राह्मण भी पंडित पुकारे जाते हैं। भगत सिंह को कभी किसी ऐतिहासिक पुरातन महापुरुष से अपने वंश का संबंध जोड़ने का गर्व करते नहीं सुना।

भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह की आस्था वैदिक कार्य के आर्यसमाजी ढंग की थी। सिख परिवार में पैदा होकर, भगवान द्वारा सिर पर लाद दिए गए संप्रदाय की अवहेलना करके जो व्यक्ति अपनी बुध्दि से किसी दूसरे संप्रदाय को तर्क संगत समझ कर स्वीकार कर लेता है, वह प्रकृति से विचार स्वतंत्राता चाहने वाला और अपने ज्ञान की सीमा तक क्रांतिकारी ही होगा। भगत सिंह की इस पारिवारिक परिस्थिति का प्रभाव उसके मानसिक विकास पर पड़ना अनिवार्य था। सरदार अर्जुन सिंह न केवल व्यक्तिगत रूप से ही अपने धार्मिक विचारों के अनुसार आचरण करते थे बल्कि अपने गांव में भी बिरादरी और बस्ती के विरोध की परवा न कर आर्यसमाज का जलसा और प्रचार करने के लिए लोहा लेते रहते थे।

भगत सिंह के परिवार का संप्रदाय सिख था परंतु सिख सांप्रदायिकता के प्रति इस परिवार में कोई रूढ़िवादी आस्था नहीं थी। सिर पर केश होने के बावजूद यह लोग सिख की अपेक्षा आर्यसमाजी ही अधिक थे।भगत सिंह के परिवार की आर्यसमाज के प्रति अनुरक्ति विचार-स्वतंत्रता और क्रांति की ओर प्रवृत्ति के कारण ही थी।

भगत सिंह का जनेऊ संस्कार भी करवाया गया और इसी संस्कार के अवसर पर भगत सिंह के दादा ने उन्हें राष्ट्र को समर्पित कर दिया. इसका उल्लेख स्वयं भगत सिंह अपने पत्रों में करते हैं.

भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह तो सामाजिक प्रश्नों पर सांप्रदायिकता की उपेक्षा कर उन्हें केवल राजनैतिक दृष्टि से ही देखते थे। सरदार किशन सिंह आर्यसमाज के समाज-सुधार के कार्यक्रमों में काफी दिलचस्पी रखते थे।

उस समय आर्यसमाज के आंदोलन का विशेष रुझान सामाजिक समस्याओं की ओर था। शिक्षा-प्रचार, विधवा-विवाह, जन्म से वर्ण-व्यवस्था की धारणा को तोड़ना और अछूत समझी जाने वाली जातियों के लिए मनुष्यता के अधिकारों की मांग इस आंदोलन के प्रमुख भाग थे। इन प्रगतिशील भावनाओं का स्वाभाविक परिणाम विदेशी दासता से असंतोष भी हुआ। सामाजिक प्रगति के पथ पर कदम रखने से व्यक्ति राजनैतिक दृष्टि से सचेत हुए बिना नहीं रह सकता। यही कारण था कि पंजाब में आर्यसमाज द्वारा सामाजिक सुधार की चेतना फैलने के साथ-साथ ही विदेशी दासता के विरोध की चेतना भी फैलने लगी। उस समय पंजाब के प्राय: सभी राजनैतिक कार्यकर्ता लाला हरदयाल, अम्बाप्रसाद सूफी, लाला लाजपत राय और अजीत सिंह आदि 'आर्यसमाजी विचार स्वतंत्रता' द्वारा प्रभावित थे। 1914-1915 लाहौर षडयंत्र के मामले में भाई परमानंदजी आदि भी आर्यसमाज की प्रगतिशील चेतना की ही उपज थे।

उपरोक्त घटना से यह स्पष्ट है कि रूढ़िवाद से मुक्त पारिवारिक वातावरण में भगत सिंह ने तर्क, विद्रोह और साहस की दीक्षा स्वाभाविक रूप से पाई थी। भगत सिंह के परिवार की आर्यसमाज के प्रति अनुरक्ति विचार-स्वतंत्रता और क्रांति की ओर प्रवृत्ति के कारण ही थी। आज आर्यसमाज के आंदोलन और संगठन ने मठ और रूढ़िवाद का जैसा रूप धारण कर लिया है, उससे उन्नीसवीं शताब्दी के अंत और बीसवीं शताब्दी के आरंभिक काल के आर्यसमाजियों की भावना का अनुमान ठीक-ठीक नहीं हो सकता; जैसे कि आज अमरीकन और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की ईसाइयत को देख कर रोमन साम्राज्य के समय ईसाई धर्म द्वारा किए गए परलोक के विश्वास के सहारे नीरु के दमन और अत्याचार के विरुध्द लड़ने वाले ईसाई दासों और गरीब इसाई लोगों की मनोभावना का अनुमान नहीं किया जा सकता।

यदि हम उन आर्यों की भांति कार्य करना चाहते हैं तो वही भावना लानी होगी और इसका एक मात्र मार्ग है "आर्य प्रशिक्षण सत्र" यह युवाओं को व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, रूढ़ीवाद से दूर कर आर्य समाज की विचार स्वतंत्रता से औत प्रोत करवाता है. आप भी आर्य प्रशिक्षण सत्र में आकर भगत सिंह सरीखे युवाओं की पीढ़ी के वाहक बने. अधिक जानकारी के लिए देखें- www.aryanirmatrisabha.com (http://www.aryanirmatrisabha.com)




http://www.aryanirmatrisabha.c​o/
www.aryanirmatrisabha.com (http://www.aryanirmatrisabha.com)

आर्य जी, ये सत्य है की भगत सिंह जी का परिवार कट्टर आर्यसमाजी था और उनका रुझान क्रांति की तरफ इसी कारण से था. परन्तु स्वयं भगत सिंह ने कई बार लिखा कि वो नास्तिक हैं.
समझ नहीं आता कि आर्य समाजी लोग क्यूँ बार बार भगत सिंह को आर्य समाजी सिद्ध करना चाहते हैं और क्यूँ हम उन लोगो का उल्लेख भी नहीं करते जो आर्य समाज के सिद्धांतो के प्रति पूर्ण समर्पित थे. सबसे बड़ा उदाहरण है- पंडित रामप्रसाद बिस्मिल. बिस्मिल कट्टर आर्यसमाजी थे और उनका चिंतन भी पूर्ण परिपक्व था. मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप जो शिविर लगाते हैं, उनमे बिस्मिल की जेल में लिखी गयी आतमकथा वितरित करें...

AhlawatSardar
September 28th, 2011, 08:40 PM
भगत सिंह का परिवार साधारण किसान था, जिसे जाट कहा जाता है ।

जाट कहा जाता नहीं जाट था, जाट था |

भगत सिंह संधू गोत का जाट था जिसका गाँव पंजाब में खटकड़ कलां है |

पूरी जाट कौम का गौरव - शहीद भगत सिंह |

cutejaatsandeep
September 28th, 2011, 09:38 PM
jaat bhahiyoo m really lucky ki jiss bhagat singh ne apne deesh ki aazadi ke liyee choti c umarr mai apni jaan deti usss bhagat ka potaa meraa frd hai....n mujhe uski shakal mai aisa lagta hai jaise swayamm shahid bhagat singh meree samnee ho....he lives in faridabad

Rajkamal
September 29th, 2011, 10:59 AM
jaat bhahiyoo m really lucky ki jiss bhagat singh ne apne deesh ki aazadi ke liyee choti c umarr mai apni jaan deti usss bhagat ka potaa meraa frd hai....n mujhe uski shakal mai aisa lagta hai jaise swayamm shahid bhagat singh meree samnee ho....he lives in faridabad

Sandeep bhai Shaheede Azam ka to byaah a koni hoya tha...........................

cooljat
September 29th, 2011, 12:13 PM
.

What a Shame! Not even a single line published in remembrance of Legend Bhagat Singh by any news agency for that matter on his B'day anniversary. I strongly believe that the country who doesn't remember n' value its Martyrs .. will go down in gutter, sooner than later!


Long Live Revolution !!

ashokpaul
September 29th, 2011, 12:55 PM
आर्य जी, ये सत्य है की भगत सिंह जी का परिवार कट्टर आर्यसमाजी था और उनका रुझान क्रांति की तरफ इसी कारण से था. परन्तु स्वयं भगत सिंह ने कई बार लिखा कि वो नास्तिक हैं.
समझ नहीं आता कि आर्य समाजी लोग क्यूँ बार बार भगत सिंह को आर्य समाजी सिद्ध करना चाहते हैं और क्यूँ हम उन लोगो का उल्लेख भी नहीं करते जो आर्य समाज के सिद्धांतो के प्रति पूर्ण समर्पित थे. सबसे बड़ा उदाहरण है- पंडित रामप्रसाद बिस्मिल. बिस्मिल कट्टर आर्यसमाजी थे और उनका चिंतन भी पूर्ण परिपक्व था. मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप जो शिविर लगाते हैं, उनमे बिस्मिल की जेल में लिखी गयी आतमकथा वितरित करें...

दीपेंद्रजी मैंने पूरे लेख में कहीं नही लिखा की भगत सिंह स्वयं को आर्य कह रहे हैं!!! हाँ भगत सिंह राष्ट्र को आर्य समाज की दें थे. आर्य परिवार में ही भगत सिंह जैसा युवक पैदा हो सकता है जहाँ विचारों की स्वतंत्रता हो. अपने परिवार का युवक बलिदान हो गया, जब उसकी आयु मात्र २४ वर्ष की थी. अभी तो उसने सिद्धांतों का प्रतिपादन करना था. भगत सिंह के आर्य संस्कार भी हुए थे-

१. यज्ञोपवित संस्कार (इसी संस्कार पर उनके दादा ने उसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था, ये एक आर्य ही कर सकता है नास्तिक नही)
२. उनकी शिक्षा नेशनल कॉलेज लाहोरे में हुई थी (जो की लाला लाजपत राय द्वारा संचालित था, जो आर्य समाज और राष्ट्र के जाज्वल्यमान नक्षत्र थे )
३. सांडर्स की हत्या के बाद उन्हें छिपने के लिए कोलकाता में स्थान "आर्य समाज" ही मिला था कोई नास्तिकों का अड्डा नही.

और जहाँ उन्होंने स्वयं को नास्तिक लिखा है उससे पहली पंक्ति में लिखते हैं मेरा अध्यन european ज्यादा रहा है एशियाटिक नही और चर्च की माने तो आर्य लोग भी नास्तिक ही हैं और आज भी आम अवधारणा है आर्यसमाजी किसी को नही मानते!!!

तो इसका अर्थ ये है की आर्य नास्तिक होते हैं???
काठ की हांडी बार नही चढ़ती दीपेन्द्र जी, कम्मुनिष्टों ने बहूत कोशिश कर ली है पर तथ्य झूठ्लाये नही जा सकते.

भगत सिंह आर्यपौत्र, आर्यपुत्र, आर्य विद्यार्थी, आर्यमित्र और यहाँ तक की HRA के कानपूर ब्रांच के अध्यक्ष भी क्रन्तिगुरु रामप्रसाद बिस्मिल आर्य थे जैसा आपने लिखा है.

ashokpaul
September 29th, 2011, 12:58 PM
http://aryayuvamahasammelan.bl​ogspot.com/ क्रांतिकारियों को याद करने एवं संपूर्ण क्रांति को आगे बढ़ाने के लिए "आर्य युवा सम्मलेन" में आप सब इष्ट मित्रों सहित आमंतरित हैं.

cutejaatsandeep
September 29th, 2011, 03:04 PM
sahu saab bhai kaa betaa bhi to pootaa hi huaa naa.....

ravinderjeet
September 29th, 2011, 07:25 PM
बड्डे आये बड्डे आ के तुर्र गए ,
अस्सी वि चढ़दी उम्रे जावांगे ,
शौंक नहीं भीड़ विच ग्वाचन दा कोई ,
सर कड्ड के उत्ते आवांगे ,
जुल्म होया ते होऊ साड्डे इन्कुलाबिया ते ,
गल हक ते सच दी सुनावांगे ,
कल्ले पाणेया ते रत्त निचोड़ अपणा ,
इतिहास सुन्हेरी रचावांगे !!!!
–== सरदार भगत सिंह ==–

KuldeepTeotia
February 3rd, 2012, 11:48 PM
दीपेंद्रजी मैंने पूरे लेख में कहीं नही लिखा की भगत सिंह स्वयं को आर्य कह रहे हैं!!! हाँ भगत सिंह राष्ट्र को आर्य समाज की दें थे. आर्य परिवार में ही भगत सिंह जैसा युवक पैदा हो सकता है जहाँ विचारों की स्वतंत्रता हो. अपने परिवार का युवक बलिदान हो गया, जब उसकी आयु मात्र २४ वर्ष की थी. अभी तो उसने सिद्धांतों का प्रतिपादन करना था. भगत सिंह के आर्य संस्कार भी हुए थे-

१. यज्ञोपवित संस्कार (इसी संस्कार पर उनके दादा ने उसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था, ये एक आर्य ही कर सकता है नास्तिक नही)
२. उनकी शिक्षा नेशनल कॉलेज लाहोरे में हुई थी (जो की लाला लाजपत राय द्वारा संचालित था, जो आर्य समाज और राष्ट्र के जाज्वल्यमान नक्षत्र थे )
३. सांडर्स की हत्या के बाद उन्हें छिपने के लिए कोलकाता में स्थान "आर्य समाज" ही मिला था कोई नास्तिकों का अड्डा नही.

और जहाँ उन्होंने स्वयं को नास्तिक लिखा है उससे पहली पंक्ति में लिखते हैं मेरा अध्यन european ज्यादा रहा है एशियाटिक नही और चर्च की माने तो आर्य लोग भी नास्तिक ही हैं और आज भी आम अवधारणा है आर्यसमाजी किसी को नही मानते!!!

तो इसका अर्थ ये है की आर्य नास्तिक होते हैं???
काठ की हांडी बार नही चढ़ती दीपेन्द्र जी, कम्मुनिष्टों ने बहूत कोशिश कर ली है पर तथ्य झूठ्लाये नही जा सकते.

भगत सिंह आर्यपौत्र, आर्यपुत्र, आर्य विद्यार्थी, आर्यमित्र और यहाँ तक की HRA के कानपूर ब्रांच के अध्यक्ष भी क्रन्तिगुरु रामप्रसाद बिस्मिल आर्य थे जैसा आपने लिखा है.

as much to me aryasamaj gives only teachings.its a relegion of thoughts,philosophies...its not like a scripted religion of practices,gods and identities as are others..sanatan hinduism,islam etc etc..
and according to bhagat singh as he mentioned in one of his own written document "why i m an etheist" says that "an aryasamijist is anything but atheist"

rsdalal
March 6th, 2012, 07:14 AM
Not sure how much truth in this, but looks like Sobha Singh Father of Kushwant Singh and One Shadi Lal were the main witness for Bhagat Singh
http://en.wikipedia.org/wiki/Sobha_Singh_(builder)
Both were given many contracts and land holdings. Shadi Lal moved to Shamli in UP.

ravinderjeet
March 6th, 2012, 05:31 PM
Not sure how much truth in this, but looks like Sobha Singh Father of Kushwant Singh and One Shadi Lal were the main witness for Bhagat Singh
http://en.wikipedia.org/wiki/Sobha_Singh_(builder)
Both were given many contracts and land holdings. Shadi Lal moved to Shamli in UP.

" जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से |":sorrow:

rajpaldular
August 6th, 2012, 02:31 PM
http://a2.sphotos.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s480x480/373952_385729384814352_286811454_n.jpg (http://www.facebook.com/photo.php?fbid=385729384814352&set=a.108255112561782.22908.107805679273392&type=1&ref=nf)
भगत सिंह की आखिर इच्छा तो दूर उनका सम्मान बचाना भारी हो रहा है !! आप से केवल एक ही अनुरोध है इसे इतना शेयर कीजिये के
घर घर पहुँच जाए ...

http://www.ibtl.in/video/6436/64-years-of-independence-and-the-last-desire-of-bhagat-singh (http://www.ibtl.in/video/6436/64-years-of-independence-and-the-last-desire-of-bhagat-singh)

ramitchaudhary
August 17th, 2012, 01:20 AM
he was a real hero...

he is a real hero...................

rekhasmriti
August 17th, 2012, 06:17 AM
Kash !!!!!!!!!!!!!!!


Bhagat Singh teri photu kyan te na laagti notan pe....

rajpaldular
September 27th, 2012, 04:04 PM
मित्रो ओपरेशन ट्रोजन होर्से का सम्बन्ध अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से हैं जिन्हें आज ही के दिन बर्बरतापूर्वक ब्रिटिश अधिकारियों ने मार दिया था । ब्रिटिश अधिकारियों ने ना नियमानुसार शवों का पोस्टमार्टम करवाया, ना शवों को परिजनों को सौंपा और न ही फांसी के लिए निश्चित दिन अथवा प्रक्रिया का ही पालन किया । ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जे. पी सैंडर्स के परिजनों के प्रतिशोध की भावना को तुष्ट करने के लिए इन तीनों क्रांतिवीरों की गर्दन तोड़ने से लेकर गोली मारने और फिर शवों का अपमान करने तक की बर्बर कार्यवाही तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा की गयी । इस सब कार्यवाही के लिए गाँधी-नेहरु की मौन स्वीकृति के चलते कांग्रेस तब भी मौन थी और स्वतन्त्र भारत में ऐसे क्रांतिवीरों के जन्मस्थलों पर भरने वाले मेले कहीं राष्ट्रवाद को प्रबल और प्रखर ना कर दें इसलिए वही इतिहास पढाया जाता रहा जिसे ब्रिटिश काल में अंग्रेजों की स्तुति में लिखा गया था ।

कुछ वर्षों पूर्व ब्रिटेन में एक पुस्तक का लोकार्पण किया गया था "“Secrets unfurled by an Intelligence Bureau Agent of British-India” इस पुस्तक में उन तथ्यों पर प्रकाश डालने की चेष्टा की गयी है जिनके चलते अमर शहीद भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के मृत शरीरों का ना तो नियमानुसार पोस्ट मार्टम करवाया गया और ना ही शवों को परिजनों को सौंपा गया । आपको जान कर ये आश्चर्य होगा कि पुस्तक में लिखे गए सभी तथ्य तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे विश्वसनीय एजेंट दिलीप सिंह इलाहबादी के रिकार्ड से लिए गए हैं । ये दिलीप सिंह इलाहबादी वही है जो नेहरु के घर में एक बागवान के रूप में वर्षों तक रहा, और ये वही इलाहबादी है जिसने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन के दौरान जवाहर लाल नेहरु को सार्वजनिक रूप से चांटा मारा था । स्वतंत्र भारत में जब ब्रिटिश यहाँ से गए तब इस इलाहबादी को अपने साथ ब्रिटेन ले गए जहाँ वो 1986 तक जीवित था । इस पुस्तक को कुलवंत सिंह कुन्नर ने लिखा है जो दिलीप सिंह इलाहबादी का दत्तक प्रपोत्र है । इसी पुस्तक में ये बताया गया है कि शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की हत्या के दुष्कृत्य को ब्रिटिश सरकार ने "ओपरेशन ट्रोजन होर्से" का नाम दिया था । ब्रिटिश अधिकारी सैंडर्स के ससुर को इन तीनो शहीदों को गोली मारने और इनके शव का अपमान करके अपने प्रतिशोध की अग्नि बुझाने की अनुमति प्रदान की गयी थी। पुस्तक में रहस्योद्घाटन किया गया है कि सैंडर्स के ससुर ने तीनो युवा शहीदों के सीने और सिर में गोली मारी थी ।

Mr V.N. Smith Superintendent of Police (political) Criminal Investigation Department, Punjab, wrote in his memoirs on “The Saunders Murder Case” being preserved in a microfilm at the British Library London, — “Normally execution took place at 8 am, but it was decided to act at once before the public could become aware of what had happened” — He further wrote that “at about 7 pm shouts of Inquilab Zindabad were heard from inside the jail. This was correctly, interpreted as a signal that the final curtain was about to drop”.


आइये इन महान शहीदों की पावन स्मृति में हमारे महान जाट शहीद भगत सिंह के जन्म दिवस पर उन्हें कोटिश: नमन करें। वन्दे माँ भारती ! शहीद भगत सिंह अमर रहे !!

rajpaldular
October 1st, 2012, 12:34 PM
http://sphotos-e.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s480x480/417259_122921424523142_1137234983_n.jpg

rekhasmriti
October 1st, 2012, 09:30 PM
Waise I am kinda doubtful .
Hum kitne bhi bekar sahi -------but Pakistan se toh better hai .




http://sphotos-e.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s480x480/417259_122921424523142_1137234983_n.jpg

desijat
October 2nd, 2012, 02:39 AM
http://www.dailytimes.com.pk/default.asp?page=2012%5C10%5C01%5Cstory_1-10-2012_pg13_6 > This is what google lead me to, none the less, good.


http://sphotos-e.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s480x480/417259_122921424523142_1137234983_n.jpg

rajpaldular
January 19th, 2013, 11:24 AM
http://sphotos-g.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s480x480/408665_444391575627647_503512671_n.jpg


RBI Has Decided to Release 5 Rupees Coin In Memory Of Freedom Fighter Shahid Bhagat Singh Ji.

rajpaldular
March 22nd, 2013, 02:14 PM
http://sphotos-d.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/s480x480/484201_636896939659546_1351917357_n.jpg

इस आदमी ने बोर्ड पर.. पंजाबी में.. कुछ लिखा है..।
क्या आपको.. पता है कि.. यह क्या लिखा है..?

यह लिखा है :
.
.
.
"शहीद-ए -आजम.. सरदार भगत सिंह".. के 101-वें जन्मदिन.. के अवसर पर.. यहाँ जूते मुफ्त में पॉलिश किये जाएंगे..!!

एक भूखा गरीब आदमी देश के शहीदों के लिए अपनी आमदनी छोड़ सकता है पर..
देखो.. भारत के.. बेशर्म नेताओं को .. किसी ने भी.. भगत सिंह जयंती पर.. एक शब्द भी नहीं बोला..!!!

rajpaldular
March 23rd, 2013, 01:45 PM
http://sphotos-h.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash3/s480x480/581615_4701251532541_1741581616_n.jpg

जब भी 23 वर्ष के उस युवा क्रांतिकारी भगत सिंह के विषय में सोचता हु तो सर अनायास उन के चरणों में झुक सा जाता है ......

एक ऐसा व्यक्ति जिस का नाम "भगत सिंह" पुरे भारत वर्ष में राष्ट्रभक्त व्यक्तित्व का पर्यावाची बन कर रह गया और मैं उस दिव्य आत्मा के चरणों में बस इतना ही निवेदन करता हु की हमें निरंतर राष्ट्र भक्ति के मार्ग में चलने की प्रेरणा देते रहे .....

नमन वंदन ..... वन्दे मातरम् ...भारत माता की जय

cooljat
March 23rd, 2013, 02:17 PM
.

The sense in which the word Revolution is used in that phrase, is the spirit, the longing for a change for the better. The people generally get accustomed to the established order of things and begin to tremble at the very idea of a change. It is this lethargical spirit that needs be replaced by the revolutionary spirit. Otherwise degeneration gains the upper hand and the whole humanity is led stray by the reactionary forces. Such a state of affairs leads to stagnation and paralysis in human progress. The spirit of Revolution should always permeate the soul of humanity, so that the reactionary forces may not accumulate to check its eternal onward march. Old order should change, always and ever, yielding place to new, so that one “good” order may not corrupt the world. It is in this sense that we raise the shout “Long Live Revolution.”
- Bhagat Singh


Grand Salute to Saheed-E-Azam !!

rajpaldular
March 23rd, 2013, 03:15 PM
भगत सिंह का घर, इसी आंगन में भगत पैदा हुए.



http://sphotos-d.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash4/s480x480/486581_577010788990969_82710564_n.jpg

JSRana
March 23rd, 2013, 04:16 PM
23 मार्च का दिन उन आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ जब सुबह के समय राजनीतिक बंदियों को उनके बैरक से बाहर निकाला जाता था। आम तौर पर वे दिन भर बाहर रहते थे और सूरज ढलने के बाद वापस अपने बैरकों में चले जाते थे। लेकिन आज वार्डन चरत सिंह शाम करीब चार बजे ही सभी कैदियों को अंदर जाने को कह रहा था। सभी हैरान थे, आज इतनी जल्दी क्यों। पहले तो वार्डन की डांट के बावजूद सूर्यास्त के काफी देर बाद तक वे बाहर रहते थे। लेकिन आज वह आवाज काफी कठोर और दृढ़ थी। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्यों? बस इतना कहा, ऊपर से ऑर्डर है।चरत सिंह द्वारा क्रांतिकारियों के प्रति नरमी और माता-पिता की तरह देखभाल उन्हें दिल तक छू गई थी। वे सभी उसकी इज्जत करते थे। इसलिए बिना किसी बहस के सभी आम दिनों से चार घंटे पहले ही अपने-अपने बैरकों में चले गए। लेकिन सभी कौतूहल से सलाखों के पीछे से झांक रहे थे। तभी उन्होंने देखा बरकत नाई एक के बाद कोठरियों में जा रहा था और बता रहा था कि आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।हमेशा की तरह मुस्कुराने वाला बरकत आज काफी उदास था। सभी कैदी खामोश थे, कोई कुछ भी बात नहीं कर पा रहा था। सभी अपनी कोठरियों के बाहर से जाते रास्ते की ओर देख रहे थे। वे उम्मीद कर रहे थे कि शायद इसी रास्ते से भगत सिंह और उनके साथी गुजरेंगे।फांसी के दो घंटे पहले भगत सिंह के वकील मेहता को उनसे मिलने की इजाजत मिल गई। उन्होंने अपने मुवक्किल की आखिरी इच्छा जानने की दरखास्त की थी और उसे मान लिया गया। भगत सिंह अपनी कोठरी में ऐसे आगे-पीछे घूम रहे थे जैसे कि पिंजरे में कोई शेर घूम रहा हो। उन्होंने मेहता का मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या वे उनके लिए 'दि रेवोल्यूशनरी लेनिन' नाम की किताब लाए हैं। भगत सिंह ने मेहता से इस किताब को लाने का अनुरोध किया था। जब मेहता ने उन्हें किताब दी, वे बहुत खुश हुए और तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया, जैसे कि उन्हें मालूम था कि उनके पास वक्त ज्यादा नहीं है। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे, अपनी निगाहें किताब से बिना हटाए भगत सिंह ने कहा, मेरे दो नारे उन तक पहुंचाएं..इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। मेहता ने भगत सिंह से पूछा आज तुम कैसे हो? उन्होंने कहा, हमेशा की तरह खुश हूं। मेहता ने फिर पूछा, तुम्हें किसी चीज की इच्छा है? भगत सिंह ने कहा, हां मैं दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी सेवा कर सकूं। भगत ने कहा, पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने जो रुचि उनके मुकदमे में दिखाई उसके लिए दोनों का धन्यवाद करें।मेहता के जाने के तुरंत बाद अधिकारियों ने भगत सिंह और उनके साथियों को बताया कि उन्हें फांसी का समय 11 घंटा घटाकर कल सुबह छह बजे की बजाए आज साम सात बजे कर दिया गया है। भगत सिंह ने मुश्किल से किताब के कुछ पन्ने ही पढ़े थे। उन्होंने कहा, क्या आप मुझे एक अध्याय पढ़ने का भी वक्त नहीं देंगे? बदले में अधिकारी ने उनसे फांसी के तख्ते की तरफ चलने को कहा। एक-एक करके तीनों का वजन किया गया। फिर वे नहाए और कपड़े पहने। वार्डन चतर सिंह ने भगत सिंह के कान में कहा, वाहे गुरु से प्रार्थना कर ले। वे हंसे और कहा, मैंने पूरी जिंदगी में भगवान को कभी याद नहीं किया, बल्कि दुखों और गरीबों की वजह से कोसा जरूर हूं। अगर अब मैं उनसे माफी मांगूगा तो वे कहेंगे कि यह डरपोक है जो माफी चाहता है क्योंकि इसका अंत करीब आ गया है।तीनों के हाथ बंधे थे और वे संतरियों के पीछे एक-दूसरे से ठिठोली करते हुए सूली की तरफ बढ़ रहे थे। उन्होंने फिर गाना शुरू कर दिया-'कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे, ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमां होगा। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकी यही नाम-ओ-निशां होगा।'जेल की घड़ी में साढ़े छह बज रहे थे। कैदियों ने थोड़ी दूरी पर, भारी जूतों की आवाज और जाने-पहचाने गीत, 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' की आवाज सुनी। उन्होंने एक और गीत गाना शुरू कर दिया, 'माई रंग दे मेरा बसंती चोला' और इसके बाद वहां 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे लगने लगे। सभी कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे।तीनों को फांसी के तख्ते तक ले जाया गया। भगत सिंह बीच में थे। तीनों से आखिरी इच्छा पूछी गई तो भगत सिंह ने कहा वे आखिरी बार दोनों साथियों से गले लगना चाहते हैं और ऐसा ही हुआ। फिर तीनों ने रस्सी को चूमा और अपने गले में खुद पहन लिए। फिर उनके हाथ-पैर बांध दिए गए। जल्लाद ने ठीक शाम 7:33 बजे रस्सी खींच दी और उनके पैरों के नीचे से तख्ती हटा दी गई। उनके दुर्बल शरीर काफी देर तक सूली पर लटकते रहे फिर उन्हें नीचे उतारा और जांच के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।सब कुछ शांत हो चुका था। फांसी के बाद चरत सिंह वार्ड की तरफ आया और फूट-फूट कर रोने लगा। उसने अपनी तीस साल की नौकरी में बहुत सी फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी को भी हंसते-मुस्कराते सूली पर चढ़ते नहीं देखा था, जैसा कि उन तीनों ने किया था।

Source : http://www.jagran.com/news/national-martyr-day-last-three-and-half-hours-of-bhagat-singh-10238990.html

rajpaldular
March 25th, 2013, 11:15 AM
http://sphotos-d.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash3/s480x480/550057_515807048469774_946168097_n.jpg


भगत सिंह की मां (विद्यावती जी) बटुकेश्वर दत्त को दिल्ली के एक अस्पताल में बीमारी के समय ममताभरी हाथो से आशीर्वाद देते हुए...इस दुर्लभ फोटो को Pankaj Chaturvedi जी के सौजन्य से शेयर कर रहा हूं...और भगत सिंह जैसे वीर सपूत को जन्म देने वाली माँ को शत्-शत् नमन करता हूं...