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View Full Version : Judiciary System of India !!!!!



rajpaldular
May 14th, 2011, 06:27 PM
भारत के कानून
भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था. 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में उपस्थित 99 % अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था. लोग इतने क्रोध में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे. हमारे देश के इतिहास की पुस्तकों में उस क्रांति को सिपाही 'विद्रोह' के नाम से पढाया जाता है. Mutiny और Revolution में अंतर होता है किन्तु इस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया हमारे इतिहास में. 1857 की गर्मी में मेरठ से आरम्भ हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने प्रारंभ किया था, परन्तु 'एक साधारण व्यक्ति' [Common people ] का आन्दोलन बन गया और इसकी अग्नि पूरे देश में प्रज्वलित हो गयी और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हो गया था. भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था परन्तु नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर प्रकार से योगदान दिया. धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं. अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के समीप है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो अथवा मरणासन्न. बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था. उसके पश्चात उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए आवश्यक होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना प्रारंभ किया. अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना आरम्भ किया था और मोटे रूप में उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था परन्तु 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए आवश्यक होता है. आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं.
1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में 33% की भागीदारी थी, संसार के कुल उत्पादन का 43% भारत में उत्पन्न होता था और संसार की आय में भारत का भाग 27% था. ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी, इसलिए आधिकारिक रूप से भारत को लूटने के लिए अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के पश्चात तैयार हुई थी, उस बहस में ये निश्चित हुआ कि "भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाये क्योंकि सारे संसार में सबसे अधिक उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा." तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और टैक्स तय किया गया 350% अर्थात 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया Excise Duty देना होगा. इसके पश्चात अंग्रेजों ने सामान के बेचने पर Sales Tax लगाया और वो तय किया गया 120% अर्थात 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो. इसके पश्चात एक और टैक्स आया Income Tax और वो था 97% अर्थात 100 रुपया कमाया तो 97 रुपया अंग्रेजों को दे दो. ऐसे ही Road Tax, Toll Tax, Municipal Corporation tax, Octroi, House Tax, Property Tax लगाया और ऐसे करते-करते 23 प्रकार के टैक्स लगाये अंग्रेजों ने और खूब लूटा इस देश को. 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लूटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि लगभग 300 लाख करोड़ रुपया लूटा अंग्रेजों ने इस देश से. तो भारत में जो निर्धनता आयी है वो लूट में से आयी निर्धनता है. विश्व व्यापार में जो हमारी भागीदारी उस समय 33% थी वो घटकर 5% रह गयी, हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए. इस प्रकार से बेरोजगारी उत्पन्न हुई, निर्धनता-बेरोजगारी से भूखमरी उत्पन्न हुई और आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं थे अपितु अंग्रेजों के ख़राब कानून से उत्पन्न हुए अकाल थे, और इन कानूनों के कारण से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे. तो हमारी निर्धनता का कारण ऐतिहासिक है कोई प्राकृतिक, आध्यात्मिक अथवा सामाजिक कारण नहीं है. हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, सब का उल्लेख करना तो कठिन है परन्तु कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ:-

rajpaldular
May 14th, 2011, 06:28 PM
Indian Education Act - 1858 में Indian Education Act बनाया गया. इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी. परन्तु उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी. अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग क्षेत्रों का अलग-अलग समय सर्वे किया था. 1823 के आसपास की बात है ये | Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है. और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को सदैव के लिए यदि दास बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसके स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर भारतीय पर मस्तिष्क से अंग्रेज उत्पन्न होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे, और मैकोले एक मुहावरा प्रयोग कर रहा था कि "जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी." इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को अवैध घोषित किया, जब गुरुकुल अवैध हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो अवैध हो गयी, फिर संस्कृत को अवैध घोषित किया, और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर समाप्त कर दिया अग्नि में स्वाहा कर दिया गया, उसमे पढ़ाने वाले गुरुओं को मारा-पीटा, जेल में डाला. 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, अर्थात हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाये जाते थे और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी. इस प्रकार सारे गुरुकुलों को समाप्त किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों दासता के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत प्रसिद्ध चिट्ठी है वो, उसमे वो लिखता है कि "इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे पर मस्तिष्क से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपनी संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी " और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में लज्जा आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो स्वयं में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में लज्जा आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा? लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, संसार में 204 देश हैं और अंग्रेजी केवल 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है? शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है. इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे. ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी. अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी. संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है. जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी.
Indian Police Act - 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया. 1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी इस देश में परन्तु 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे भयभीत उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके. अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए. उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया. पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि यदि कहीं 5 से अधिक लोग हों तो वो डंडा चला सकता है अर्थात लाठी चार्ज कर सकता है और वो भी बिना पूछे और बिना बताये और पुलिस को तो Right to Offence है पर आम आदमी को Right to Defence नहीं है. आपने अपने बचाव के लिए उसके डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि आपने उसके ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं कर सकते. इसी कानून का फायदा उठा कर लाला लाजपत राय पर लाठियां चलायी गयी थी और लाला जी की मृत्यु हो गयी थी और लाठी चलाने वाले सांडर्स का क्या हुआ था? कुछ नहीं, क्योंकि वो अपनी ड्यूटी कर रहा था और जब सांडर्स को कोई सजा नहीं हुई तो लालाजी की मृत्यु का प्रतिशोध भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारकर लिया था और वही दमन और अत्याचार वाला कानून "इंडियन पुलिस एक्ट" आज भी इस देश में बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले चल रहा है और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही वेतन में, वेतन में मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की और जेल मैनुअल के अनुसार आपको पूरे कपड़े उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो? और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो शीघ्र मरें, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी है हमारी जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है |

rajpaldular
May 14th, 2011, 06:29 PM
Indian Civil Services Act - 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया. ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं. भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चूंकि आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं. अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा. इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और इन अधिकारियों का हर तीन वर्ष के पश्चात स्थानांतरण हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये भय था कि यदि अधिक दिन तक कोई अधिकारी एक स्थान पर रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों का जीवन इसी में कट जाता है और ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax, लगान और लूट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनका कोई वेतन निश्चित नहीं होता था और वो जो लूटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था. ये हास-परिहास की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये ये एक कटु सत्य है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय. अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 वर्षों में बस इतना ही परिवर्तन हुआ है.
Indian Income Tax Act - इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि "ये तो बड़ा confusing है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है", तो दूसरे ने कहा कि हाँ इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई समस्या हो तो वो हमसे ही संपर्क करें. आज भी भारत के आम आदमी को छोडिये, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं और इनकम टैक्स की दर रखी गयी 97% अर्थात 100 रुपया कमाओ तो 97 रुपया टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर प्रकार के टैक्स की छूट दी जाती है ताकि ब्रिटेन के माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके और इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि "हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, यदि भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वो बर्बाद हो जायेंगे अथवा टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जायेंगे और यदि बेईमान हो गए तो हमारी दासता में आ जायेंगे और यदि बरबाद हुए तो हमारी दासता में आने ही वाले है" तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो समाप्त हो जाएँ और यदि बेईमानी करें तो सदैव ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें. अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में समाप्त हो जाना चाहिए था पर ऐसा नहीं हुआ और आपको जान कर ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी और इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर अधिक कर नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि कर अधिक नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा सदैव निर्धन रहेगी, यदि सरकार की आय बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो. अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लूटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं.| नमक पर भी टैक्स हो गया है और नमक भी विदेशी कंपनियां बेंच रही हैं.
Indian Forest Act - 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में. इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की संपत्ति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर प्रकार के उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे . अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया. साधारण व्यक्ति अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और यदि काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी अथवा दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक पोस्ट बनाया District Forest Officer जो उन लोगों को तत्काल दंड दे सके, उसपर केस करे, उसको मारे-पीटे पर दूसरी ओर जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई अंतर नहीं पड़ता. अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं. हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है ITC पूरा नाम है Indian Tobacco Company इसका असली नाम है American Tobacco Company, और ये कंपनी हर वर्ष 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर वर्ष काटती है. इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं परन्तु आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी अधिक ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपनी भूमि पर लगे पेड़ भी नहीं काट सकते. तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण व्यक्ति को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष व्यक्ति को आप छू भीं नहीं सकते और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया.

rajpaldular
May 14th, 2011, 06:30 PM
Indian Penal Code - अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ) | ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और दास देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है पर Ireland में जहाँ "I" का अर्थ Irish है वहीं भारत में इस "I" का अर्थ Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है शेष कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है. अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को सदैव के लिए दास बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी. ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में. ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पायेगा. इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण मनुष्य तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे अधिक कष्ट देगा और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा" और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा." ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और स्वतंत्रता के 64 वर्षों के पश्चात भी हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके निर्णय नहीं हो पा रहे हैं. 10 करोड़ से अधिक लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं पर न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना दृष्टिगोचर नहीं हो रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है. IPC का आधार ही ऐसा है और मैकोले ने लिखा था कि "भारत के लोगों के मुकदमों का निर्णय होगा, न्याय नहीं मिलेगा" मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है. अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी हो उस IPC को भारत की संसद ने 64 साल बाद भी नहीं बदला है और ना कभी प्रयास ही किया है.
Land Acquisition Act - एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी. ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे एक ही काम के लिए भारत भेजा था कि तुम जाओ और भारत के किसानों के पास जितनी भूमि है उसे छीनकर अंग्रेजों के हवाले करो. डलहौजी ने इस "भूमि को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया, इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छीनी गयी. जो भूमि किसानों की थी वो ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गयी. डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है कि " मैं गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से भूमि के कागज मांगता था" | और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय भूमि के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ परंपरा से चला आ रहा था या आज भी है कि पिता की भूमि अथवा अन्य संपत्ति पुत्र की हो जाती है, पुत्र की भूमि उसके पुत्र की हो जाती है. सब मौखिक होता था, जिह्वा का मूल्य होता था अथवा आज भी है आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ जो विवाह होते हैं वो केवल और केवल मौखिक समझौते से होते हैं कोई लिखित समझौता नहीं होता है, एक दिन /तिथि निश्चित हो जाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष विवाह की तैयारी में लग जाते है लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले जा कर लड़की वालों के यहाँ पहुँच जाते है, विवाह हो जाता है. तो कागज तो किसी के पास था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली. एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी. परिणाम क्या हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए. डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था, एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ भूमि थी, ये अंग्रेजों के रिकॉर्ड बताते हैं. डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो भूमि अंग्रेजी सरकार की हो गयीं.| 1947 की स्वतंत्रता के पश्चात ये कानून समाप्त होना चाहिए था पर नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है. हम आज भी अपनी स्वयं की भूमि पर मात्र किरायेदार हैं, यदि सरकार का मन हुआ कि आपके जमीन से हो के रोड निकाला जाये तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे कर आपका घर और भूमि ले ली जाएगी. आज भी इस देश में किसानों की भूमि छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है. पहले भूमि छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो भूमि भेंट करते थे, अब भारत सरकार वो भूमि छीनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है और Special Economic Zone उन्हीं जमीनों पर बनाये जा रहे हैं और ये बहुत बहुत बेदर्दी से ली जा रही है. भारतीय अथवा बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई भूमि पसंद आ गयी तो सरकार एक नोटिस देकर वो भूमि किसानों से ले लेती है और वही भूमि वो कंपनी वाले महंगे दाम पर दूसरों को बेचते हैं. जिसकी भूमि है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है, भूमि की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है, भू स्वामी नहीं. एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहां पहुँच कर घडियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहले वाला पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है परन्तु दोनों पार्टियाँ मिल कर इस कानून को समाप्त करने का प्रयास नहीं करते और 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी कठिनाई के इस देश में आज भी चल रहा है. इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी भूमि छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती है आपको लगता है कि ये देश स्वतंत्र हो गया है ? मुझे तो नहीं लगता.
Indian Citizenship Act - अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था Indian Citizenship Act, आप और हम भारत के नागरिक हैं तो कैसे हैं, उसके Terms और Condition अंग्रेज तय कर के गए हैं. अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें. तो इसलिए इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति (पुरुष अथवा महिला) एक विशेष अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) . परन्तु हमने इसमें आज 2011 तक के 64 सालों में रत्ती भर का भी संशोधन नहीं किया. इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, .......नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है. ये भारत की स्वतंत्रता का मखौल नहीं तो और क्या है ? संसार के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है. आप अमेरिका जायेंगे और रहना आरंभ करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा पर आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा. ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है. संसार में 204 देश हैं परन्तु दो-तीन देश को छोड़ कर हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में उत्पन्न नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, पर भारत में ऐसा नहीं है. कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है, Indian Citizenship Act , उसमे ये व्यवस्था है. ये अंग्रेजों के समय का कानून है, हम उसी को चला रहे हैं, उसी को ढो रहे हैं आज भी, स्वतंत्रता के 64 वर्षों के पश्चात भी. आप समझते हैं कि हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ?
Indian Advocates Act - हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वो काला टोपा लगाते थे और उसपर नकली बालों का विग लगाते थे. ये व्यवस्था स्वतंत्रता के 40-50 वर्षों के पश्चात तक चलती रही थी. हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड. काला कोट जो होता है वो आप जानते हैं कि गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता, और इंग्लैंड में चूंकि वर्ष में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं ये समझ से बाहर की बात है. हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काले रंग के स्थान पर, परन्तु नहीं. हमारे देश में स्वतंत्रता के पहले के जो वकील हुआ करते थे वो अधिक हिम्मत वाले थे.लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सदैव मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें समस्याओं का भी सामना करना पड़ा था, परन्तु उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया.

Indian Motor Vehicle Act - उस ज़माने में कार/मोटर जो थी वो केवल अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता थी तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि यदि किसी को मोटर से धक्का लगे अथवा धक्के से मृत्यु हो जाये तो दंड नहीं होना चाहिए अथवा हो भी तो कम से कम. वर्ष डेढ़ वर्ष का दंड हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए उसको हत्या नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि हत्या में तो धारा 302 लग जाएगी और वहां हो जाएगी फाँसी अथवा आजीवन कारावास, तो अंग्रेजों ने इस एक्ट में ये प्रावधान रखा कि यदि कोई (अंग्रेजों के) मोटर के नीचे दब कर मरा तो उसे कठोर और लंबा दंड ना मिले. ये व्यवस्था आज भी जारी है और इसीलिए मोटर के धक्के से होने वाली मृत्यु में किसी को दंड नहीं होता और सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर वर्ष डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से अथवा उसके नीचे आ कर मरते हैं परन्तु आज तक किसी को फाँसी अथवा आजीवन कारावास नहीं हुआ.

rajpaldular
May 14th, 2011, 06:31 PM
Indian Agricultural Price Commission Act - ये भी अंग्रेजों के ज़माने का कानून है. पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे. अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को समाप्त करने के लिए ये कानून लाये और किसानों को उनके फसल का दाम तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया. अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वो किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा और ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वो तय करते थे. आप हर वर्ष समाचारों में सुनते होंगे कि "सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया".| ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, अर्थात किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है. इससे अधिक आपके फसल का दाम नहीं होगा. किसानों को अपने उपजाए अनाजों का दाम तय करने का अधिकार आज भी नहीं है इस स्वतंत्र भारत में. उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है और आज दिल्ली के AC Room में बैठ कर वो लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते |
Indian Patent Act - अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act , और वो बना था 1911 | Patent का अर्थ होता है एक प्रकार का Legal Right, कोई व्यक्ति, वैज्ञानिक अथवा कंपनी यदि किसी चीज का आविष्कार करती है तो उसे उस आविष्कार पर एक खास अवधि के लिए अधिकार दिया जाता है. ये जा कर 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से परन्तु इसे अब फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है. अभी विस्तार से नहीं लिखूंगा अर्थात इस देश के लोगों के हित से अधिक आवश्यक है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित.

rajpaldular
May 14th, 2011, 06:32 PM
ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है और अधिक बोझिल न हो जाये इसलिए यहीं विराम देता हूँ. इन कानूनों की पुस्तकें बाज़ार में उपलब्ध हैं परन्तु मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ के आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन के संसद House of Commons की library से लिया गया हैं. अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ:-



अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी परन्तु उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकाल कर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं. ये कानून अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को नष्ट भ्रष्ट करने के लिए लाया था. परन्तु आज भी भारत में हजारों कत्लखाने गायों को काटने के लिए चल रहे हैं.

1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था Government of India Act , ये अंग्रेजों ने भारत को 1000 साल दास बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना.

1939 में राशन कार्ड का कानून बनाया गया क्योंकि उसी वर्ष द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ और अंग्रेजों को धन के साथ-साथ भोजन की भी आवश्यकता थी तो उन्होंने भारत से धन भी लिया और अनाज भी लिया और इसी समय राशन कार्ड की शुरुआत की गयी और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें सस्ते दाम पर अनाज मिलता था और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार था और अंग्रेजों ने उस द्वितीय विश्वयुद्ध में 1732 करोड़ स्टर्लिंग पौंड का कर्ज लिया था भारत से जो आज भी उन्होंने नहीं चुकाया है और ना ही किसी भारतीय सरकार ने उनसे ये मांगने की हिम्मत की पिछले 64 वर्षों में.

अंग्रेजों को यहाँ से चीनी की आपूर्ति होती थी और भारत के लोग चीनी के स्थान पर गुड (Jaggary) बनाना पसंद करते थे और गन्ना चीनी मीलों को नहीं देते थे तो अंग्रेजों ने गन्ना उत्पादक इलाकों में गुड बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और गुड बनाना अवैध घोषित कर दिया था और वो कानून आज भी इस देश में चल रहा है.

पहले गाँव का विकास गाँव के लोगों के जिम्मे होता था और वही लोग इसकी योजना बनाते थे. किसी गाँव की क्या आवश्यकता है, ये उस गाँव के रहने वालों से श्रेष्ठ कौन जान सकता है पर गाँव की उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने PWD की स्थापना की. वो PWD आज भी है. NGO भी इसीलिए लाया गया था, ये भी अंग्रेजों ने ही प्रारंभ किया था.

हमारे देश में सीमेंट नहीं होता था अपितु चूना और दूध को मिला कर जो लेप तैयार होता था उसी से ईंटों को जोड़ा जाता था. अंग्रेजों ने अपने देश का सीमेंट बेचने के लिए 1850 में इस कला को प्रतिबंधित कर दिया और सीमेंट को भारत के बाजार में उतारा. हमारे देश के किलों/महलों (Forts) को आप देखते होंगे सब के सब इसी भारतीय विधि से खड़े हुए थे और आज भी कई सौ वर्षों से खड़े हैं और सीमेंट से बने घरों की अधिकतम आयु होती है 100 वर्ष और चूने से बने घरों की न्यूनतम आयु होती है ५०० वर्ष.

आप दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों की एक परमपरा देखते होंगे, इन मंदिरों को पेरियार जाती के लोग बनाते थे आज की भाषा में वो सब के सब सिविल इंजिनियर थे, बहुत अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया उन्होंने. एक अंग्रेज अधिकारी था A.O.Hume, इसी ने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की थी, जब ये 1890 में मद्रास प्रेसिडेंसी में अधिकारी बन कर गया तो इसने वहां इस जाति को मंदिरों के निर्माण करने से प्रतिबंधित कर दिया, अवैध घोषित कर दिया. परिणाम क्या हुआ कि वो भव्य मंदिरों की परंपरा तो समाप्त हुई ही साथ ही साथ वो सभी बेरोजगार हो गए और हमारी एक भवन निर्माण कला समाप्त हो गयी. वो कानून आज भी है.

rajpaldular
May 14th, 2011, 06:33 PM
उड़ीसा में नहर के माध्यम से खेतों में पानी तब छोड़ा जाता था जब उसकी आवश्यकता नहीं होती थी और जब आवश्यकता होती थी अर्थात गर्मियों में तो उस समय नहरों में पानी नहीं दिया जाता था. आप भारत के पूर्वी इलाकों को देखते होंगे, जिसमे सम्मिलित हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा, ये इलाके पिछड़े हुए हैं. कभी आपने सोचा है कि ये इलाके क्यों पिछड़े हुए हैं ? जब कि भारत के 90% Minerals इसी इलाके में होते हैं. अभी मुझे इससे सम्बंधित दस्तावेज मिल नहीं पाए हैं इसलिए इस पर अधिक नहीं लिखूंगा. कभी मैं विलियम बेंटिक और मैकोले के बीच हुई बातचीत के बारे में लिखूंगा कि कैसे वो आपनी बातचीत में कलकत्ता और लन्दन की तुलना कर रहे हैं, और 1835 के आस पास हुई बातचीत के आधार पर ये स्पष्ट होता है कि लन्दन निहायत ही घटिया नगर है और कलकत्ता उस समय सबसे समृद्ध.
एक कानून के हिसाब से बच्चे को पेट में मारोगे तो Abhortion और पैदा होने पर मारोगे तो हत्या. Abhortion हुआ तो कुछ नहीं पर उसे पैदा होने के बाद मारा तो हत्या का मामला बनेगा.
अंग्रेजों ने सेना के लिए कानून बनाया था. इसके सैनिकों को मूंछ (mustache) रखने पर अतिरिक्त भत्ता मिलता था. सेना में आज भी मूंछ रखने पर उसके देख रेख और maintainance के लिए भत्ता मिलता है.
आपमें से बहुतों ने क़ुतुब मीनार के पास एक लोहे का स्तम्भ देखा होगा जो सैकड़ों वर्षों से खुले में है परन्तु आज तक उसमे जंग (Rust) नहीं लगा है. ये स्टील बनाने की जो कला थी वो हमारे देश के आदिवासियों के पास थी जो कि आज के झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओड़िसा के इलाकों में रहते थे और वो कच्चा लोहा वहीं खानों से निकाल कर लाते थे और इस विधि से उन्नत किस्म का लोहा बनाते थे. आज संसार में इतनी उच्च तकनीक होने के पश्चात भी ऐसा लोहा कोई देश नहीं बना पाया है जिस पर जंग न लगे. तो अंग्रेजों ने इस तकनीक को नष्ट करने के लिए एक कानून बनाया कि कोई भी आदिवासी खानों से कच्चा लोहा नहीं निकालेगा, और कोई ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो उसे 40 कोड़े पड़ेंगे और यदि फिर भी बच गया तो उसको गोली मार दी जाएगी. इस प्रकार से ये तकनीक इस देश में अंग्रेजों ने नष्ट की और वो कानून आज भी चल रहा है और ध्यान दीजियेगा कि इन्ही इलाकों में माओवाद और नक्सलवाद चल रहा है.
विचित्र विचित्र कानून है इस देश में. आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे और ख़त्म भी किया था, मैं कहना ये चाहता हूँ कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाये थे वो अपने लाभ और हमारी हानि के लिए था और हमें स्वतंत्रता के पश्चात इसे समाप्त कर देना चाहिए था परन्तु अंग्रेजों की दासता की एक भी निशानी को हमने 64 वर्षों में मिटाया नहीं. सब को संभाल कर और सहेज कर रखा है और हर वर्ष अपने को मूर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को ध्वजा फहराते हैं, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं. स्वतंत्रता का अर्थ होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था. ये स्वतंत्रता है अथवा परतंत्रता ? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है इन 64 वर्षों में ? सब तो अंग्रेजों का ही है.यदि ध्वज फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम स्वतंत्र हो गए थे. स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी व्यवस्था जिसमे आप दासता की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे दासता आयी थी, वो तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि स्वतंत्रता अधूरी है, इस अधूरी स्वतंत्रता को पूर्ण स्वतंत्रता में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा. दासता के कानूनों को ही यदि हमारी संसद आगे बढाती जाये और चलाती जाये इसके लिए संसद नहीं बनाई हमने और इसके लिए चुनाव नहीं होते और करोडो रूपये खर्च नहीं किये जाते. हमने हमारी अपनी व्यवस्थाओं को चलाने के लिए संसद बनाई है. ये जो दासता की व्यवस्था स्वतंत्रता के 64 वर्षों के पश्चात भी चल रही है तो उसे तो समाप्त करना ही पड़ेगा. आज नहीं तो कल किसी को तो ये प्रश्न करना ही होगा. भारत की राजनितिक पार्टियाँ ये प्रश् नहीं उठाती है, ये मंदिर-मस्जिद के प्रश्न उठाती हैं और हमें उसी में उलझाये रखती हैं, इन कानूनों को जो दासता की निशानी है उनका प्रश्न नहीं उठता हैं. समाज को बाँट देने वाले जितने प्रश्न हैं वो ये उठाती हैं परन्तु दासता वाले कानूनों के प्रश् नहीं उठाती हैं.

वास्तव में हमारे देश की स्वतंत्रता की लड़ाई के समय जितने भी देशभक्त शहीद हुए, जैसे भगत सिंह, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह आदि आदि, ये तो कुछ नाम हैं ऐसे 7 लाख से ऊपर देशभक्त थे, उन सब की आत्मा आज भी भटक रही होगी, और वो आपस में एक दूसरे से यही प्रश्न कर रहे होंगे कि हम कितने मूर्ख थे जो ऐसे देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए या तो वो मूर्ख थे या फिर हम महामूर्ख हैं जो इन सब व्यवस्थाओं को सहेज के और संभाल के रखे हुए हैं.

हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी. जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमे कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गयी, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए. भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिये और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं.

rameshlakra
May 14th, 2011, 09:32 PM
Very revealing and most of it seems to be true. This needs to be given publicity and hope Ramdev ji or Anna Hazare ji hear about it ?

pscil
May 14th, 2011, 10:50 PM
We were mental slaves earlier and that was the reason why the mughals and british could rule us and we continue to be mental slaves and that is the reason why allow our exploitation. We need to come out of our mental slavery and not blame others for our misfortunes. When you cast aside this slavery and become strong no one will be able to exploit you. Atama shakti atma gyan ki upaj hoti hai

ravinderpannu
May 15th, 2011, 02:39 PM
enlightning,बहुत ही रोचक और ज्ञान वर्धक जानकारी दी है आपने राजपाल जी...!!