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View Full Version : Jaat Ka Dharam Kya Hai ?



raka
May 16th, 2011, 12:50 AM
लेकिन यह प्रशन पैदा होता हैं कि जाटों ने इस ब्राह्मणवाद में प्रवेश कैसे किया ? यह जानने के लिए हमे थोड़ा इतिहास में झाकना पड़ेगा | प्राचीन उत्तर भारत में अफगानिस्तान व स्वात घाटी से लेकर मथुरा , आगरा व बौद्ध गया तक जाटों का गढ़ था जहाँ बोद्ध धर्म का ढंका बज रहा था | इस सच्चाई को चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा हैं कि (जिसने सन 399 से 414 तक उत्तर भारत कि यात्रा कि ) इस क्षेत्र में कहीं कहीं ब्रह्मण थे , जो छोटे छोटे मंदिरों में पूजा किया करते थे | यात्री ने इनके धर्म को केवल ब्राह्मणवाद ही लिखा हैं , जबकि उसने जैन धर्म को मानने वालो कि संख्या तक का वर्णन किया हैं | फाह्यान ने अपनी यात्रा व्रतांत चीनी भाषा में लिखा हैं जिसका अंग्रेजी में सबसे पहले अनुवाद जमेस लीगी ने किया , जिसमे अपने अनुवाद में इन ब्राह्मणों को heretics brahmins अर्थात विधर्मी ब्रह्मण लिखा हैं | अर्थात इन ब्राह्मणों का कोई धर्म नहीं था इस कारण पूजा के नाम से इनका गुजर बसर बहुत ही कठिनाई से चल रहा था | जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इन्होने जाटों को खुश करने के लिए अपने मंदिरों में जाट महापुरुषों उदाहरण के लिए शिवजी , श्रीराम ,. श्रीक्रिशन , श्रीहनुमान , गणेश आदि कि मुर्तिया स्थापित कि इससे जाट लोग भी इन्हें कुछ दान पुन्य करने लगे और समय आते आते कुछ जगह ब्रह्मण राजाओ का राज आने पर साथ साथ ब्राह्मणों कि भी पूजा होने लगी | इस काल में कुछ जाट मूर्ति पूजक होकर ब्रह्मण का समर्थन करने लगे थे | महाराजा हर्षवर्धन बैंस कि मृत्यु ( सन 647 ) के पश्चात जिनका कोई वंशज नहीं था , मौका देख कर व अवसर का लाभ उठाते हुए , ब्राह्मणों ने माउन्ट आबू पर्वत पर ब्रह्त्त यज्ञ के नाम से एक यज्ञ रचाकर अग्निकुंड से राजपूत जाति कि उत्पति का ढोंग रचाया | इसी कारण केवल चार गोत्रो के राजपूत अपने आपको अग्निवंशीय राजपूत कहते हैं | जबकि अग्नि से एक चींटी भी पैदा नहीं हो सकती हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव जलाने व भस्म करने का हैं , पैदा करने का नहीं |

इससे स्पष्ट हैं कि ब्रह्मण धर्म अर्थात हिन्दू धर्म जाटों का धर्म न कभी था और न अभी हैं | जो धर्म वास्तव में हैं ही नहीं , तो उसे धारण करने का प्रशन ही पैदा नहीं होता | इसलिए प्रशन पैदा होता हैं कि हम जाटों को अभी किस धर्म को धारण करना चाहिए | इससे पहले हमे सभी मुख्य धर्मो को संक्षेप में समझना हैं | हम सबसे पहले जाटों के प्राचीन धर्म बौद्ध कि बात करेंगे | याद रहे बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित हैं और इसी अहिंसा के सिद्धांत के कारण प्राचीन में जाटों के राज गए इसलिए इसे क्षत्रिय धर्म नहीं कहा जा सकता , जो जाटों के स्वभाव के उपयुक्त नहीं हैं | इसलिए इस धर्म को धारण करने का कोई औचित्य नहीं | इसके बाद संसार के लोगो का एक बड़ा धर्म इस्लाम धर्म हैं , जिसमे हिन्दू कहे जानेवालो जाटों से अधिक मुसलमान जाट हैं | लेकिन इन तथाकथित हिन्दू जाटों के दिलों में सदियों से ब्राह्मणवादी प्रचार ने कूट कूट कर नफरत पैदा कर दी और उसे एक गाली के समान बना दिया जिस कारण यह जाट वर्तमान में इस धर्म को नहीं पचा पाएंगे | हालांकि इस्लाम धर्म कि तरह जाट कौम एकेश्वरवाद में विश्वास करने वाली तथा मूर्ति पूजा विरोधी हैं | इसके बाद दुनिया का सबसे विकासशील और शिक्षित धर्म ईसाई धर्म हैं जो दया और करुना पर आधारित धर्म हैं | परन्तु जाट कौम सालों से इस धर्म के प्रति किसी भी प्रकार कि न तो कोई सोच रखे हुए हैं और न ही इसका कोई ज्ञान | इसलिए इतनी बड़ी कौम को ईसाई धर्म के विचार में अचानक डालना एक मूर्खतापूर्ण कदम हैं | इसके बाद एक और भारतीय जैन धर्म हैं जो पूर्णतया अहिंसावादी सिद्धांत वाला हैं , इसलिए इसके बारे में विचार करना जाट कौम के लिए निरर्थक हैं | इसके बाद नवीनतम धर्म सिक्ख धर्म हैं | वर्तमान में सिक्ख धर्म में 70% जाट हैं और यह मुगलों से लड़ते - लड़ते बहादुरी का प्रतिक होते - होते स्थापित हुआ , जिसमे कमा के खाना सर्वोपरि हैं | यह धर्म पाखंडवाद और असमानता का विरोधी हैं | सेवाभाव में विश्वास करनेवाला एवंम ब्राह्मणवाद का विनाश करने वाला धर्म हैं | यह धर्म आधुनिक , विकासशील व प्रगतिशील और अपनी सुरक्षा करने में सदैव सक्षम हैं | आज तक कि लड़ाइयो से यह सिद्ध हो चूका हैं कि इस धर्म के लोग सबसे अधिक देशभक्त और लड़ाकू हैं | यह धर्म जाट परम्परों और उनकी संस्कृति के सर्वथा अनुकूल हैं | जिसको ग्रहण करने में जाटों को किसी भी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं होगी | वैसे भी निरुक्त ग्रंन्थ में लिखा : जटायते इति जाटयम | अर्थात जो जटाएं रखते हैं , वे असली जाट कहलाते हैं | भाषा किसी भी धर्म को ग्रहण करने में कोई बाधा नहीं होती | इस धर्म को रख पाने में जब पंजाब के जाट को कोई परेशानी नहीं हैं तो हमको कैसे होगी ? यदि भविष्य में जाट कौम अपनी इज्जत , शान और अपने आत्मसम्मान कि रक्षा के लिए इस गौरवपूर्ण एवंम स्वाभिमानी सिक्ख धर्म को धारण करती हैं तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा क्योंकि मैं दावे से लिख रहा हु कि जाट कौम अपने आप को हिन्दू कहकर कभी भी शिखर पर नहीं जा सकती और कभी चली भी गई तो कोई उसे रहने नहीं देगा | इस बात को चौ. चरण सिंह ने भी अपने जीवन में स्वीकार किया था और कहा कि काश . मैं ब्राह्मण होता | हम ब्राह्मण बन नहीं सकते , सिक्ख बन सकते हैं | चौ. छोटूराम ने भी जाट गजट के अंक सन 1924 में जाटों को सिक्ख धर्म अपनाने कि वकालत कि थी | जिसकी निंदा पंडित श्रीराम शर्मा ने अखबार हरियाणा तिलक ने 17 अप्रैल 1924 को छपी थी |
जाट भाइयों , आओ और खुले दिल और दिमाग से इस पर विचार मंथन करे और कौम को पाखंडवाद और कायरता कि गुलामी से मुक्त करे | जय जाट | जोर से कहो . जो बोले सो निहाल | सत श्री अकाल |
राज करेगा खालसा , आकी रहै न कोई |
अर्थात भविष्य में खालिश व पवित्र लोग राज कर सकेंगे आकी अर्थात कोई गुंडा , पाखंडी और लुटेरा नहीं रह पायेगा |

thukrela
August 9th, 2011, 02:47 PM
राका जी मैंने जाट का धर्म क्या होना चाहिए इस पर आधारित आपके दोनों article पढ़े , और मै आपकी बात से सहमति रखता हु . वैसे तोह धर्म जैसी घटिया चीज़ कोई नहीं परन्तु society में इसकी ज़रूरत पड़ती है, क्योकि ये आपकी identity का हिस्सा होती है .

हिन्दू धर्मी गीदड़ न तोह कभी जाट शेर को राजा मने है, न मानते है, न मानेंगे

जाटलैंड से जुड़े आप सभी उत्तर भारत में रहते है जहा जाटो का बोल बाला है
मेरी जड़े उत्तर प्रदेश की है परन्तु मध्य प्रदेश के धार जिले मै मेरा जनम हुआ
जो पैत्रिक भूमि से तक़रीबन 800km दूर है, और मेरा बचपन वही बीता
और वहा का आदमी जानता भी नहीं है की जाट कौन लोग होते है!!
[हा नर्मदा के घटो पर जाट बसते है]

चम्बल का भी यही हाल है, और हैरानी की बात ये है की गोहद यहाँ से सिर्फ 35km दुरी पर स्थित है
जो जाट महाराजा भीम सिंह राणा की भूमि है!

यहाँ लोग मुझे ठाकुर या पंजाबी समजते है
जाट शब्द उनकी शब्दवाली मे नहीं
मेरे अधिकतर दोस्त ठाकुर है, और अपनी बड़ी शेखी बखारते है
परन्तु मै अकेला ही उन पर भरी पड़ता हूँ
मेरे ठाट उनके गले नहीं उतारते
कहते है की yar तू तोह हरयाणवी लगता है, क्योंके हरयाणा को उन्होंने अपनी कमजोरी छुपाने का बहाना बना रखता है
जैसे की हरयाणा की भूमि मे कोई power builder powder खाद पधारत क रूप मे मिला हो
UP के जाटो को तोह वे अलग ही प्रजाति मानते है
क्यों की जाट का पंजाब, हरयाणा व पछिम उत्तर प्रदेश पर राज उनके दिल को चुबता है

भारतपुर के विराट जाट साम्राज्य के संदेर्ब मे भी उनकी जानकारी शुन्य है
कारण ? क्योकि बामन बनियों से भरी इथिहसकारो की फ़ौज ने कभी भी जाट को पसंद नहीं किया
वे मर जायेंगे परन्तु चन्द्रगुप्त व अशोक ko मौर्या जोत्री जाट न साबित होने देंगे

जाट तोह केवल शौर्य व सम्मान के लिए जीता है
प्यार के दो बोल बोलने पर ही खुश हो जाता है, उसे दुनिया की खैरात नहीं चाहिए

आज तक हम इस देश व इस देश ke लोगो की शुरक्षा के लिए अपना लहू बहते आए है
पर कहा है वो सम्मान जिसके के हम सच्चे हकदारी है ?

मुझे आशा है की सभी जाट भाई मेरी बात का अर्थ समज गए होंगे
अंत मे एक ही बात कहूँगा ''जागो जाट बलवान!!''

thukrela
August 22nd, 2011, 11:29 AM
हिन्दू धर्म का पोल पटीला ::

हिन्दू धर्म की सम्पुर्ण पोल बुद्ध, महावीर व पतंजलि जैसे लोगो ने खोल दी थी
बुद्ध का जन्म राज परिवार में हुआ था, परन्तु जीवन के सत्य की ख़ोज में वो सब छोड़ चल दिया
अपनी राह पर बुद्ध को हजारो साधू-संत मिले व वे श्रेष्ठ से श्रेष्ठ ज्ञानी पंडित के आधीन हुए

उन्होंने कठोरे से कठोरे तपस्या की, शरीर की सीमओं तक उपवास किया, परन्तु कुछ भी हाथ न लगा!
न कोई सिद्धि, न कोई दिव्य शक्ति, कुछ भी नहीं !!!
बुद्ध ने अच्छे से अच्छे ज्ञानी पंडित की अकल ठिकाने लगा दी
जो कुछ भी कहा गया सब किया, परन्तु कुछ भी हाथ न लगा
अंततह गुरु भी बुद्ध को छोड़ भागने लगे

और इससे ब्रामानो को भय लगने लगा, वे घबरा गये
उनके पाखंड का भांडा फूटने लगा
तोह उन्होंने बुद्ध को भगवान कह कर, हिन्दूकुश से दूर Tibet भगा दिया

हिन्दू धर्म इस दुनिया का सबसे पाखंडी व सबसे भोतिकवादी धर्म है
''आज तक दुनिया में हजारो करोडो लोग धार्मिक हुए, परन्तु कुछ ही ईश्वर को प्राप्त हुए
कुछ 10 -15 लोग है, हम उंगलियों पर गिन सकते हैं''
इसे धर्म की सफलता नहीं कहेंगे, इसे दुर्घटना कहते है
ये वो लोग है जो गुर्घटना वर्ष धर्म की चपेट में आने से बच गये, सो अल्लाहित हुए!

अगर आप अपने आस पास कोई बोहोत मूढ़ आदमी देखे तोह समज जाना की वो धार्मिक है

amitdeswal85
November 10th, 2011, 09:34 AM
Rakesh I like your post but the idea of changing the religion is not good. I really appreciate you for your research work on this point but you that Brahmins had done "Brahhit Yaghya" from that Rajpoots Born out, further you say that it is a false stoty, yes it is false story but it is also a controversial point that which society is older than other Jat or Rajpoot.Further if we change our religion, what we give the our community?

DrRajpalSingh
December 24th, 2011, 12:48 AM
Rakesh I like your post but the idea of changing the religion is not good. I really appreciate you for your research work on this point but you that Brahmins had done "Brahhit Yaghya" from that Rajpoots Born out, further you say that it is a false stoty, yes it is false story but it is also a controversial point that which society is older than other Jat or Rajpoot.Further if we change our religion, what we give the our community?

Friend
You have raised vital issues in this post. The history books in several volumes have been authored but the end is not discernible in future too.
Who is forcing or tempting to the Jats to change their religion; the fact is none could succeed in luring us. Then what for and why think of changing the religion.

Moar
March 7th, 2012, 12:32 AM
A news from दैनिक जागरण (अखब़ार)- कुरुक्षेत्र जागरण सिटी. जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र. शनिवार- 1 अक्टूबर, 2011 with the title 'वैदिक साहित्य को स्वार्थी व्याख्याताओं ने किया गन्दा' says:

" राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के राष्ट्रीय सचिव प्रोफेस्सर रूपकिशोर ने कहा कि वैदिक साहित्य की परम्परा बेहद सम्पन्न है, लेकिन अनेक स्वार्थी व्याख्याताओं ने इस ज्ञान गंगा को मैला कर दिया है. यही स्वार्थी व्याख्याएं वैदिक साहित्य की बदनामी का कारण रही हैं....... उन्होंने कहा कि कोई भी साहित्य यदि समाज कि चुनौतियों का सामना नहीं करेगा और व्यवहार से हटकर एक तिलिस्मी दुनिया कि वकालत करेगा, वह आज नहीं तो कल अप्रासंगिक जरुर हो जायेगा. संघोष्ठी में विशिष्ट अतिथि डा. वेदपाल आचार्य ने कहा कि ऋषि दयानन्द की जो तर्क परंपरा है, उसे जाने समझे बिना वैदिक साहित्य की तार्किकता और प्रासंगिकता सिद्ध नहीं की जा सकती. उन्होनें ज़ोर देकर कहा कि हमें ज्ञान का बंद बक्सा बनने कि ज़रूरत नहीं है. हमे तर्कशील होकर ही वैदिक आशय को समझना चाहिए....... " <Source: दैनिक जागरण (अखब़ार)- कुरुक्षेत्र जागरण सिटी. जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र. शनिवार- 1 अक्टूबर, 2011>

KuldeepTeotia
March 15th, 2012, 03:47 AM
लेकिन यह प्रशन पैदा होता हैं कि जाटों ने इस ब्राह्मणवाद में प्रवेश कैसे किया ? यह जानने के लिए हमे थोड़ा इतिहास में झाकना पड़ेगा | प्राचीन उत्तर भारत में अफगानिस्तान व स्वात घाटी से लेकर मथुरा , आगरा व बौद्ध गया तक जाटों का गढ़ था जहाँ बोद्ध धर्म का ढंका बज रहा था | इस सच्चाई को चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा हैं कि (जिसने सन 399 से 414 तक उत्तर भारत कि यात्रा कि ) इस क्षेत्र में कहीं कहीं ब्रह्मण थे , जो छोटे छोटे मंदिरों में पूजा किया करते थे | यात्री ने इनके धर्म को केवल ब्राह्मणवाद ही लिखा हैं , जबकि उसने जैन धर्म को मानने वालो कि संख्या तक का वर्णन किया हैं | फाह्यान ने अपनी यात्रा व्रतांत चीनी भाषा में लिखा हैं जिसका अंग्रेजी में सबसे पहले अनुवाद जमेस लीगी ने किया , जिसमे अपने अनुवाद में इन ब्राह्मणों को heretics brahmins अर्थात विधर्मी ब्रह्मण लिखा हैं | अर्थात इन ब्राह्मणों का कोई धर्म नहीं था इस कारण पूजा के नाम से इनका गुजर बसर बहुत ही कठिनाई से चल रहा था | जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इन्होने जाटों को खुश करने के लिए अपने मंदिरों में जाट महापुरुषों उदाहरण के लिए शिवजी , श्रीराम ,. श्रीक्रिशन , श्रीहनुमान , गणेश आदि कि मुर्तिया स्थापित कि इससे जाट लोग भी इन्हें कुछ दान पुन्य करने लगे और समय आते आते कुछ जगह ब्रह्मण राजाओ का राज आने पर साथ साथ ब्राह्मणों कि भी पूजा होने लगी | इस काल में कुछ जाट मूर्ति पूजक होकर ब्रह्मण का समर्थन करने लगे थे | महाराजा हर्षवर्धन बैंस कि मृत्यु ( सन 647 ) के पश्चात जिनका कोई वंशज नहीं था , मौका देख कर व अवसर का लाभ उठाते हुए , ब्राह्मणों ने माउन्ट आबू पर्वत पर ब्रह्त्त यज्ञ के नाम से एक यज्ञ रचाकर अग्निकुंड से राजपूत जाति कि उत्पति का ढोंग रचाया | इसी कारण केवल चार गोत्रो के राजपूत अपने आपको अग्निवंशीय राजपूत कहते हैं | जबकि अग्नि से एक चींटी भी पैदा नहीं हो सकती हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव जलाने व भस्म करने का हैं , पैदा करने का नहीं |

इससे स्पष्ट हैं कि ब्रह्मण धर्म अर्थात हिन्दू धर्म जाटों का धर्म न कभी था और न अभी हैं | जो धर्म वास्तव में हैं ही नहीं , तो उसे धारण करने का प्रशन ही पैदा नहीं होता | इसलिए प्रशन पैदा होता हैं कि हम जाटों को अभी किस धर्म को धारण करना चाहिए | इससे पहले हमे सभी मुख्य धर्मो को संक्षेप में समझना हैं | हम सबसे पहले जाटों के प्राचीन धर्म बौद्ध कि बात करेंगे | याद रहे बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित हैं और इसी अहिंसा के सिद्धांत के कारण प्राचीन में जाटों के राज गए इसलिए इसे क्षत्रिय धर्म नहीं कहा जा सकता , जो जाटों के स्वभाव के उपयुक्त नहीं हैं | इसलिए इस धर्म को धारण करने का कोई औचित्य नहीं | इसके बाद संसार के लोगो का एक बड़ा धर्म इस्लाम धर्म हैं , जिसमे हिन्दू कहे जानेवालो जाटों से अधिक मुसलमान जाट हैं | लेकिन इन तथाकथित हिन्दू जाटों के दिलों में सदियों से ब्राह्मणवादी प्रचार ने कूट कूट कर नफरत पैदा कर दी और उसे एक गाली के समान बना दिया जिस कारण यह जाट वर्तमान में इस धर्म को नहीं पचा पाएंगे | हालांकि इस्लाम धर्म कि तरह जाट कौम एकेश्वरवाद में विश्वास करने वाली तथा मूर्ति पूजा विरोधी हैं | इसके बाद दुनिया का सबसे विकासशील और शिक्षित धर्म ईसाई धर्म हैं जो दया और करुना पर आधारित धर्म हैं | परन्तु जाट कौम सालों से इस धर्म के प्रति किसी भी प्रकार कि न तो कोई सोच रखे हुए हैं और न ही इसका कोई ज्ञान | इसलिए इतनी बड़ी कौम को ईसाई धर्म के विचार में अचानक डालना एक मूर्खतापूर्ण कदम हैं | इसके बाद एक और भारतीय जैन धर्म हैं जो पूर्णतया अहिंसावादी सिद्धांत वाला हैं , इसलिए इसके बारे में विचार करना जाट कौम के लिए निरर्थक हैं | इसके बाद नवीनतम धर्म सिक्ख धर्म हैं | वर्तमान में सिक्ख धर्म में 70% जाट हैं और यह मुगलों से लड़ते - लड़ते बहादुरी का प्रतिक होते - होते स्थापित हुआ , जिसमे कमा के खाना सर्वोपरि हैं | यह धर्म पाखंडवाद और असमानता का विरोधी हैं | सेवाभाव में विश्वास करनेवाला एवंम ब्राह्मणवाद का विनाश करने वाला धर्म हैं | यह धर्म आधुनिक , विकासशील व प्रगतिशील और अपनी सुरक्षा करने में सदैव सक्षम हैं | आज तक कि लड़ाइयो से यह सिद्ध हो चूका हैं कि इस धर्म के लोग सबसे अधिक देशभक्त और लड़ाकू हैं | यह धर्म जाट परम्परों और उनकी संस्कृति के सर्वथा अनुकूल हैं | जिसको ग्रहण करने में जाटों को किसी भी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं होगी | वैसे भी निरुक्त ग्रंन्थ में लिखा : जटायते इति जाटयम | अर्थात जो जटाएं रखते हैं , वे असली जाट कहलाते हैं | भाषा किसी भी धर्म को ग्रहण करने में कोई बाधा नहीं होती | इस धर्म को रख पाने में जब पंजाब के जाट को कोई परेशानी नहीं हैं तो हमको कैसे होगी ? यदि भविष्य में जाट कौम अपनी इज्जत , शान और अपने आत्मसम्मान कि रक्षा के लिए इस गौरवपूर्ण एवंम स्वाभिमानी सिक्ख धर्म को धारण करती हैं तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा क्योंकि मैं दावे से लिख रहा हु कि जाट कौम अपने आप को हिन्दू कहकर कभी भी शिखर पर नहीं जा सकती और कभी चली भी गई तो कोई उसे रहने नहीं देगा | इस बात को चौ. चरण सिंह ने भी अपने जीवन में स्वीकार किया था और कहा कि काश . मैं ब्राह्मण होता | हम ब्राह्मण बन नहीं सकते , सिक्ख बन सकते हैं | चौ. छोटूराम ने भी जाट गजट के अंक सन 1924 में जाटों को सिक्ख धर्म अपनाने कि वकालत कि थी | जिसकी निंदा पंडित श्रीराम शर्मा ने अखबार हरियाणा तिलक ने 17 अप्रैल 1924 को छपी थी |
जाट भाइयों , आओ और खुले दिल और दिमाग से इस पर विचार मंथन करे और कौम को पाखंडवाद और कायरता कि गुलामी से मुक्त करे | जय जाट | जोर से कहो . जो बोले सो निहाल | सत श्री अकाल |
राज करेगा खालसा , आकी रहै न कोई |
अर्थात भविष्य में खालिश व पवित्र लोग राज कर सकेंगे आकी अर्थात कोई गुंडा , पाखंडी और लुटेरा नहीं रह पायेगा |

Sir vedic culture is jat dharam,,which today is known as arya samaj...sikhisim and bodhism are also in line with vedic culture so they are also jat culture in itself..
broadly speaking we all aryans never had any scripted reilgion(like islam,jewism etc..._)and the culture of ancient aryans when they were in punjab region only is known as vedic culture,,,
but when aryans had covered all northen region...the actual vedic culture had moderated into a more rigid bhramanculture(by around 600 bc)..(accept punjab region)
but again crushing the bhraman culture there came the reformed bodhism which then was followed by whole north india and east side..

but again the bhraman culture raise up in region and the term rajputa and hinduism were invented by mighty bhramins to finish the bodhism and to place a strong position of bhramins in the society..because in hinduism there was a concept of reservation for bharamins that a son of bhramin will be a pandat ji only wheter he has any intellegence and character or not...one who belongs to shudra varn his next generation will also be called shudra..

while in ancient vedic culture there the verna were the category only in which one lies...the father could be a vaishya and his one son could be a khschtriya or bhramin and the other could be else.. depending upon the capablitey and intellegence of oneself

BUT in highly jat populted region bhramins could never succed to change there basic culture which was on line of ancient vedic system..
it were jats who never had sati-pratha which was a strong practice in bhramin culture(today known as sanatan dharam)
in jats widow marriage was allowed whch is vedic culture..
non-monarchical system (punchayat-system) has also been a strong culture of jaats and was in vedic culture..

sandeepverma
August 21st, 2019, 09:08 PM
Moderator is actually responsible for fate of this platform. He himself is under influence of so called विधर्मी people by Chinese traveller. All the posts under this thread since 2012 are deleted after my post in support of views of Mr More. God saves all, only this hope or prayer.

Siddharth1012
March 30th, 2020, 11:06 PM
Best idea by sir choturam,
Jaat never originally accept hindu dhram, but with time qe mix, some from punjab region created sikhism,
These manuvadi people wants us to treat them superior but jaat had choose their way saperate thts why they had mentioned us shudrs some of us who choose hindu dhram they bribe them giving title of rajputs

narendersingh
April 27th, 2020, 11:27 AM
Friend
You have raised vital issues in this post. The history books in several volumes have been authored but the end is not discernible in future too.
Who is forcing or tempting to the Jats to change their religion; the fact is none could succeed in luring us. Then what for and why think of changing the religion.

True said Sir
Changing the religion is not the solution
We preach the five elements and should in the future. Jat itself is a religion,race cult, ethnicity.
Do the best and leave the rest