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View Full Version : Pagli--- God bhar gayi jiski par maang abhi tak khali hai.



htomar
May 22nd, 2011, 08:32 PM
३-४ साल पहले १ पागल लड़की देखी थी. दिन भर पार्क के आसपास घूमती रहती है. वही पार्क मे पड़ी बेंच पर सो जाती है. अब उसके २ बच्चे है. उनके साथ खेलती रहती है और घूमती रहती है वैसे ही. उन बच्चो का भविष्य क्या होगा ? इंसान क्षणिक सुख के लिए इतना नीचे भी गिर सकता है,यकीन नहीं आता. क्या यही प्रोग्रेस की है इंसान ने ? १ कविता पढ़ रहा था तो उस पगली का जीवन आँखों के सामने आ गया.



ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है
कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है
एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का
न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का
साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी
अभी अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी
वो कालेज में पढने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी
कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी
प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पागल हो गई
लूट लिया सब कुछ प्रेमी ने आखिर में कंगाल हो गई
पहले प्रेमी ने ठुकराया फिर घर वाले भी रूठ गए
वो लड़की पागल-सी हो गई सारे रिश्ते टूट गए

अभी-अभी वो पागल लड़की नए शहर में आई है
उसका साथी कोई नहीं है बस केवल परछाई है
उलझ- उलझे बाल हैं उसके सूरत अजब निराली-सी
पर दिखने में लगती है बिलकुल भोली-भाली-सी
झाडू लिए हाथ में अपने सड़कें रोज बुहारा करती
हर आने जाने वाले को हँसते हुए निहारा करती
कभी ज़ोर से रोने लगती कभी गीत वो गाती है
कभी ज़ोर से हँसने लगती और कभी चिल्लाती है
कपड़े फटे हुए हैं उसके जिनसे यौवन झाँक रहा है
केवल एक साड़ी का टुकड़ा खुले बदन को ढाँक रहा है

भूख की मारी वो बेचारी एक होटल पर खड़ी हुई है
आखिर कोई तो कुछ देगा इसी बात पे अड़ी हुई है
गली-मोहल्ले में वो भटकी चौखट-चौखट पर चिल्लाई
लेकिन उसके मन की पीड़ा कहीं किसी को रास न आई
उसको रोटी नहीं मिली है कूड़ेदान में खोज रही है
कैसे उसकी भूख मिटेगी मेरी कलम भी सोच रही है
दिल कहता है कल पूछूंगा किस माँ-बाप की बेटी है
जाने कब से सोई नहीं है जाने कब से भूखी है
ज़ुर्म बताओ पहले उसका जिसकी सज़ा वो झेल रही है
गर्मी-सर्दी और बारिश में तूफानों से खेल रही है

शहर के बाहर पेड़ के नीचे उसका रैन बसेरा है
वहीँ रात कटती है उसकी होता वहीँ सवेरा है
रात गए उसकी चीखों ने सन्नाटे को तोडा है
जाने कब तक कुछ गुंडों ने उसका जिस्म निचोड़ा है
पुलिस तलाश रही है उनको जिनने ये कुकर्म किया है
आज चिकित्सालय में उसने एक बच्चे को जन्म दिया है
कहते हैं तू कण-कण में है तुझको तो सब कुछ दिखता है
हे ईश्वर क्या तू नारी की ऐसी भी क़िस्मत लिखता है
उस पगली की क़िस्मत तूने ये कैसी लिख डाली है
गोद भर गई है उसकी पर मांग अभी तक खाली है

kuldeephmh
May 22nd, 2011, 09:29 PM
हरेन्द्र भाई!
आँखों में आंसुओ के साथ साथ हाथ ताली के लिए उठ रहे है !
धन्यवाद

riyaa
June 10th, 2011, 04:40 PM
Copied and pasted..

Life is like Facebook. People will like your problems and comments, but no one will solve them because everyone is busy updating their.

skarmveer
June 10th, 2011, 05:27 PM
Bhai Tomar Sahab Bahut Dil ko chhoney wali Kavita hai yah sachchi kahani bhee hai. Insaan aaj janwar say bhee jayada girta ja raha hai or jab koi sansakro kee baat karta hai to log ussey dakyanoos bata detey hai or yea sab sanskaron kee kami key karan hee ho raha hai. Insaniyat kee jagah paisa leta ja raha hai..............................................

ravinderjeet
June 10th, 2011, 05:58 PM
ऐसी ही एक घटना हमारे गाँव में हुई थी | में छोटा सा था और उस रात में सो नहीं पाया था | ट्रक वाले किसी अत्यंत ही सुन्दर और नंगी लड़की को रात में गाँव में उतार गये थे और वो पागल लड़की कोई कपड़ा भी पहन ने को तयार नहीं थी | चाय की दूकान पर फेंकी हुई पत्तियाँ उठा-उठा कर खा रही थी | और रात को गाँव के कुछ बदमाशों ने उसके साथ कुकर्म कर दिया था फिर सरपंच ने पुलिस बुला कर वो लड़की उनके हवाले कर दी थी | ये कविता पढ़ कर सारी तस्वीरें आँखों के सामने घूम गई |