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rajpaldular
July 22nd, 2011, 06:06 PM
अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव लिखते हैं....ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर. यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू. कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी. कमला आरम्भ से ही इन्दिरा के फ़िरोज से विवाह के विरुद्ध थीं... क्यों ? यह हमें नहीं बताया जाता...पर यह फ़िरोज गाँधी कौन थे ? फ़िरोज उस व्यापारी के पुत्र थे, जो "आनन्द भवन" में घरेलू सामान [हाउस होल्ड] एवं मदिरा पहुँचाने का कार्य करता था...नाम... बताता हूँ.... पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा बता दूं ... आनन्द भवन का वास्तविक नाम था "इशरत मंजिल" तथा उसके स्वामी थे मुबारक अली... मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ कार्य करते थे...खैर...हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू परन्तु प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम अधिक महत्वपूर्ण होता है, नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था एवं जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से विवाह किया और उसे मुस्लिम बनाया... फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था "घांदी" (गाँधी नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले फ़िरोज गाँधी ना होकर फ़िरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का वास्तविक कारण भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है. इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं. शांति निकेतन में पढते समय ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप स्वयं ही सोचिये... एक नितांत युवा लडकी जिसके पिता राजनीति में पूर्ण रूप से व्यस्त हों और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी? विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का लाभ फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे विवाह रचा लिया (नाम रखा "मैमूना बेगम").

नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए पर अब क्या किया जा सकता था...जब यह समाचार मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिला तो उन्होंने ताबड़तोड़ नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि के लिए फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले.. यह एक सरल कार्य था कि एक शपथ पत्र के माध्यम से, बजाय धर्म बदलने के केवल नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया और वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फ़िरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया जिससे कि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे. इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ द नेहरू एज" (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था". यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय पश्चात इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, तथापि तलाक नहीं हुआ था. फ़िरोज गाँधी बहुधा नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे. तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन मूर्ति भवन" मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था. मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ शांति मिली थी. १९६० में फ़िरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी, जबकि वह दूसरा विवाह रचाने की योजना बना चुके थे. अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (अथवा श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरे पुत्र अर्थात संजय गाँधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का पुत्र था. संजय गाँधी का वास्तविक नाम संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता था. परन्तु संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था. ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब सहायता करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था). अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ... कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) भ्रम में रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों के कारण से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनका विवाह हुआ और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था (यह इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी.

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rajpaldular
July 22nd, 2011, 06:07 PM
फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये केवल एक तौलिये में विज्ञापन किया था. साधारणतः ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने सदैव परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी. ऐसा प्रतीत होता है कि संभवतः संजय गाँधी को उसके वास्तविक पिता का नाम ज्ञात हो गया था और यही इन्दिरा की दुखती नस थी, अन्यथा क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी और संजय की मृत्यु के तत्काल बाद लम्बे समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी जबकि मोहम्मद यूनुस संजय के शव पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे. (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे... इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत प्रसिद्ध हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना [अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ] के साथ इन लोगों की विशेष नजदीकियाँ....) एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था. वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को व्यथित रहते थे. वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी. नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए. चूँकि देश तब स्वतंत्र हुआ ही ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर इंटरव्य़ू अर्ध रात्रि के समय ही दिये. मथाई के शब्दों में - एक रात मैंने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही युवा, सुन्दर और चित्ताकर्षक थी. एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी सदैव की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया और यकायक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं. नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा व्यक्ति पत्रों का एक बंडल लेकर आया. उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बालक को जन्म दिया. उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त पश्चात ही उस बालक को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी. उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस व्यक्ति ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया.

मथाई लिखते हैं - मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की बहुत प्रयास किये परन्तु कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....परन्तु मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो.... लेकिन विधाता को यह स्वीकार नहीं था.... खैर... हम बात कर रहे थे राजीव गाँधी की...जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था. राजीव गाँधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लडकी का नाम था "बियेन्का" और लडके का "रॉल". बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को मूर्ख बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया... बेचारी भोली-भाली साधारण जनता.

प्रधानमन्त्री बनने के पश्चात राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था. हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सत्य है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, किन्तु उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन वर्ष फ़ेल हो गये थे... लगभग यही हाल सानिया माईनो का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं... जबकि सत्यता यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने अवश्य गईं थीं परन्तु केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं. सोनिया गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत स्वयं सोनिया गाँधी ने उपलब्ध कराई है, उन्होंने बड़े ही भोलेपन में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज की स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी). क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी विधि से ना ही मुस्लिम विधि से. इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है. मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी अथवा प्राणियों पर दया रखने वाली हैं....और यदि कोई सानिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर दया आ सकती है और भारत वर्ष का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है.
mail recd. from Mr. Ravi Verma