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September 30th, 2011, 03:42 PM
पाकिस्तान से आए हिन्दुओं ने कहा मर जाएंगे, पर पाकिस्तान नहीं जाएंगे
वह समय था १५ सितम्बर, २०११ की सुबह के लगभग 11 बजे का और स्थान था दिल्ली में यमुना किनारे मजनूं का टीला स्थित डेरा बाबा धुनीदास। खुले आकाश के नीचे भूमि पर पतली-सी चादर बिछाकर कुछ महिलाएं लेटी हुइ थीं, कुछ अपने बच्चों को नहला रही थीं, तो कुछ बरसात में गीली हो चुकीं लकड़ियों को जलाने का प्रयास कर रही थीं जिससे कि खाना पकाया जा सके। और भूख से बिलबिलाते नंग-धड़ंग कुछ बालक कभी उस मिट्टी के चूल्हे के पास जा रहे थे, जिससे केवल धुआं निकल रहा था, तो कभी अपनी-अपनी मां के पास जाकर खाने की मांग कर रहे थे। किंतु उन माताओं के पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था। एक बच्चा अपनी मां से खाना मांगे और वह उसे खाना न दे पाए उसके लिए सबसे बड़ा दुर्भाय्गा और क्या होगा?
ऐसे लगभग 600 महिला-पुरुष एवं बालक-बालिकाएं ९ सितम्बर, २०११ को पाकिस्तान से भारत आए हैं। उनमें से 114 दिल्ली में हैं। ये सभी हिन्दू हैं और पाकिस्तान में कट्टरवादियों के बर्बर अत्याचारों को वर्षों से सहन करते आ रहे हैं। अपनी बहू-बेटियों की लाज की रक्षा, प्राणों की सुरक्षा और अपने सनातन धर्म को बचाने के लिए ये लोग वर्षों से भारत आने के लिए वीजा मांग रहे थे। पिछले दिनों इन लोगों को बहुत कठिनाई से पर्यटक वीजा मिला और ये भारत आ गए। इन निर्धन एवं लाचार हिन्दुओं के पास न तो खाने के लिए अन्न है, न पहनने के लिए वस्त्र। इन सबके लिए खाने, रहने आदि की व्यवस्था स्थानीय हिन्दुओं की सहायता से बाबा डेरा धुनीदास ने की है। सामाजिक संस्था सेवा भारती ने भी इन बेचारों के लिए खाद्य सामग्री और औषधि आदि भेजी। कुछ अन्य सेवाभावी बन्धु भी उनकी सहायता कर रहे हैं। इसलिए इन्हें ठहरने और खाने की, चिंता नहीं है। चिंता है तो केवल वीजा अवधि की, क्योंकि वीजा केवल 35 दिन के लिए है।
इसलिए ये सभी रात-दिन इस उधेड़बुन में लगे हैं कि वीजा अवधि कैसे बढ़ायी जाए। वीजा अवधि क्यों बढ़ाना चाहते हैं? भारत में क्यों रहना चाहते हैं? इसका उत्तर 41 वर्षीय गंगाराम ने दिया, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ पशुओं से बदतर व्यवहार किया जाता है। वहां की जनता हिन्दुओं के साथ पग- पग पर दुर्व्यवहार करती है। पुकार लेकर पुलिस- प्रशासन के पास जाते हैं तो उलटे हिन्दुओं को ही मारा-पीटा जाता है। हमारी बहू-बेटी अकेली घर से निकल नहीं पाती हैं। बच्चों को स्कूल में इस्लामिक शिक्षा दी जाती है। हम लोगों से खेतों पर दिन-रात काम करवाया जाता है। किंतु उचित मजदूरी नहीं दी जाती है। मांगने पर पिटाई करते हैं। घर और मंदिर में अग्नि लगा देते हैं। इतनी बुरी हालत में हिन्दू वहां हिन्दू के नाते नहीं रह सकता। हम लोग पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे। यदि भारत सरकार हमें यहां नहीं रखना चाहती है, तो गोली मार दे। हम लोग मरना पसंद करेंगे, पर पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे।'
गंगाराम न्यू हला, जिला-मटियारी, सिंध के रहने वाले हैं। इनके परिवार में कुल 46 लोग हैं। घर के सभी पुरुष सदस्य, पाकिस्तान में मजदूरी करते थे और स्त्रियां भय से घर से बाहर नहीं निकल पाती थीं। ये लोग अपने बालकों को स्कूल इसलिए नहीं भेजते थे कि उन्हें इस्लामी शिक्षा दी जाती थी। इन्हें लगता है कि भारत में हिन्दू के नाते वे रह सकते हैं, और खुली हवा में सांस ले सकते हैं।
जब गंगाराम अपनी आपबीती बता रहे थे तब मिट्ठूमल्ल गुमसुम एक किनारे बैठे थे। कुछ पूछा तो उनकी आंखें डबडबा गयी मिट्ठूमल्ल के साथ जो हुआ है उसे जानकर हर किसी का ह्मदय चीत्कार कर उठेगा। मिट्ठूमल्ल ने कहा, 'जिला सांघड़ के जामगोठ गांव में मेरा बड़ा सा घर था और 21 सदस्यीय परिवार के गुजारे के लिए भूमि भी थी। किंतु तीन वर्ष पहले गांव के ही कट्टरवादियों ने हम पर एक झूठा आरोप लगाया और घर जला दिया। जमीन पर भी कब्जा कर लिया। प्राण बचाकर हम लोग गांव से निकल गए और दूर के एक जंगल में छुपकर रहे।
हम लोगों के पास न तो पैसा था और न ही खाने के लिए एक दाना। ऐसी परिस्थितियों में जंगल में कब तक रहते? फिर भी भूखे-प्यासे हम लोग वहां कई दिन रहे। जब भूख सहन नहीं होने लगी तो अपने सम्बन्धियों के यहां गए। सम्बन्धियों ने ही मुकदमा करने को कहा। पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अब हमारा घर किस हालत में है, यह भी नहीं पता, क्योंकि फिर हम लोग कभी गांव नहीं लौट पाए। तीन वर्ष का समय हम लोगों ने जंगल, सड़क के किनारे अथवा किसी सम्बन्धी के यहां बिताया है। कुछ हिन्दुओं ने ही हम लोगों का वीजा बनवाया और अब हम लोग भारत आ चुके हैं। भारत सरकार से विनती है कि वह हमें यहां शरण दे।'
हैदराबाद (सिंध) के अर्जुन दास अपने परिवार के 11 सदस्यों के साथ आए हैं। कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को केवल खेतिहर मजदूर बनाकर रखा जाता है। मजदूरी भी इतनी कम दी जाती है कि अकेले आदमी का भी गुजारा नहीं होता है। कुछ कहने पर कहा जाता है कि मुसलमान बन जाओ हर वस्तु मिलेगी। पाकिस्तान की कुल 25 करोड़ जनसँख्या में केवल 1 प्रतिशत भी हिन्दू नहीं रह गए हैं। हिन्दुओं को बलात इस्लाम स्वीकार करवाया जाता है। मंदिर तोड़ दिए जाते हैं। हम जैसे लोग किसी भी परिस्थिति में अपने पूर्वजों के सनातन धर्म को नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसलिए सब कुछ छोड़कर यहां आए हैं। हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में नहीं लिया जाता है। एकाध हिन्दू किसी सरकारी दफ्तर में काम कर रहा हो तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। सेना और पुलिस बल में तो हिन्दुओं को लिया ही नहीं जाता है।'
सिंध के हाला शहर से आए रामलीला कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को खुलकर सांस भी नहीं लेने दी जाती है। पड़ोसी मुस्लिम बहुत ही बारीकी से हिन्दुओं पर दृष्टि रखते हैं। किसी हिन्दू त्योंहार के आने से पहले ही चेतावनियां मिलने लगती हैं। चाहे होली, दीवाली, रामनवमी अथवा कोई अन्य त्योंहार हो, कहा जाता है जो कुछ करो घर के भीतर करो। पूजा के स्वर बाहर नहीं आने चाहिए। शंख, घंटी आदि बजाना कड़ाई से मना है। त्योहारों अथवा अन्य किसी दिन हिन्दू जब मंदिर जाते हैं, तो मंदिर के बाहर मुसलमान खड़े रहते हैं और कहते हैं मंदिर क्यों जाते हो, मस्जिद जाओ। उनकी बात नहीं मानने पर हिन्दुओं पर आक्रमण किए जाते हैं। घरों में अग्नि लगा दी जाती है।'
हाला शहर के ही चंदर राय की आयु केवल 18 वर्ष है और मोटर मैकेनिक हैं। कहते हैं, 'लोग गाड़ी ठीक करवाकर मुझे पैसे नहीं देते थे। कहते थे मुस्लिम बन जाओगे तो तुम्हारी सारी समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी। किंतु मैं अपने प्राण दे सकता हूं, किंतु धर्म नहीं। पाकिस्तान में हिन्दुओं का कोई भविष्य नहीं है। इसलिए मैंने वहां विवाह भी नहीं किया । सोचा कि जब यहां मैं ही सुरक्षित नहीं हूं तो फिर विवाह करके अपने बच्चों को इस नरक में क्यों झोंकू? पाकिस्तान में हिन्दू जन्म लेता है तो मुसीबत और मर जाए तो और बड़ी मुसीबत। यदि कोइ हिन्दू मर जाता है तो अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता है। मुसलमान कहते हैं मुर्दे को जलाने से सड़ांध आती है, इसलिए उसे दफना दो। यही कारण है कि अपने किसी सम्बन्धी के मरने पर हिन्दू रो भी नहीं पाते हैं। उन्हें लगता है कि यदि रोए तो पड़ोसी मुसलमान को पता लग जाएगा और फिर वे उसे दफनाने पर जोर देंगे। हम लोग अपने किसी मृत परिजन का अंतिम संस्कार चोरी-छुपे रात में कहीं सुनसान स्थान पर करते हैं। शव को अग्नि लगाने के पश्चात भाग खड़े होते हैं।'
डेरा बाबा धुनीदास के संचालक राजकुमार कहते हैं पाकिस्तान से आए इन हिन्दुओं की हर प्रकार से सहायता की जाएगी। उन्होंने हिन्दू समाज से भी कहा कि हिन्दुओं की सहायता के लिए खुलकर आगे आयें। उनके इस आह्वान पर ही कई लोग इन हिन्दुओं की सहायता में लगे हैं। गंगानगर (राजस्थान) के इश्वरदास और फिरोजपुर (पंजाब) के डा.कृष्ण चन्द सोलंकी कागजी कार्यवाही में इन हिन्दुओं की सहायता कर रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता और संसार भर के हिन्दुओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले राजेश गोगना कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को बचाने के लिए वहां अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक मंत्रालय बने। वहां हिन्दुओं को शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाए।' सेन्टर फार ह्रूमन राईट्स एण्ड जस्टिस के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद जगदीप धनकड़ (जो झुंझुनू जिले से हैं और जाट हैं) ने कहा कि भारत इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाए और विश्व बिरादरी में पाकिस्तान को नग्न करे।
वह समय था १५ सितम्बर, २०११ की सुबह के लगभग 11 बजे का और स्थान था दिल्ली में यमुना किनारे मजनूं का टीला स्थित डेरा बाबा धुनीदास। खुले आकाश के नीचे भूमि पर पतली-सी चादर बिछाकर कुछ महिलाएं लेटी हुइ थीं, कुछ अपने बच्चों को नहला रही थीं, तो कुछ बरसात में गीली हो चुकीं लकड़ियों को जलाने का प्रयास कर रही थीं जिससे कि खाना पकाया जा सके। और भूख से बिलबिलाते नंग-धड़ंग कुछ बालक कभी उस मिट्टी के चूल्हे के पास जा रहे थे, जिससे केवल धुआं निकल रहा था, तो कभी अपनी-अपनी मां के पास जाकर खाने की मांग कर रहे थे। किंतु उन माताओं के पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था। एक बच्चा अपनी मां से खाना मांगे और वह उसे खाना न दे पाए उसके लिए सबसे बड़ा दुर्भाय्गा और क्या होगा?
ऐसे लगभग 600 महिला-पुरुष एवं बालक-बालिकाएं ९ सितम्बर, २०११ को पाकिस्तान से भारत आए हैं। उनमें से 114 दिल्ली में हैं। ये सभी हिन्दू हैं और पाकिस्तान में कट्टरवादियों के बर्बर अत्याचारों को वर्षों से सहन करते आ रहे हैं। अपनी बहू-बेटियों की लाज की रक्षा, प्राणों की सुरक्षा और अपने सनातन धर्म को बचाने के लिए ये लोग वर्षों से भारत आने के लिए वीजा मांग रहे थे। पिछले दिनों इन लोगों को बहुत कठिनाई से पर्यटक वीजा मिला और ये भारत आ गए। इन निर्धन एवं लाचार हिन्दुओं के पास न तो खाने के लिए अन्न है, न पहनने के लिए वस्त्र। इन सबके लिए खाने, रहने आदि की व्यवस्था स्थानीय हिन्दुओं की सहायता से बाबा डेरा धुनीदास ने की है। सामाजिक संस्था सेवा भारती ने भी इन बेचारों के लिए खाद्य सामग्री और औषधि आदि भेजी। कुछ अन्य सेवाभावी बन्धु भी उनकी सहायता कर रहे हैं। इसलिए इन्हें ठहरने और खाने की, चिंता नहीं है। चिंता है तो केवल वीजा अवधि की, क्योंकि वीजा केवल 35 दिन के लिए है।
इसलिए ये सभी रात-दिन इस उधेड़बुन में लगे हैं कि वीजा अवधि कैसे बढ़ायी जाए। वीजा अवधि क्यों बढ़ाना चाहते हैं? भारत में क्यों रहना चाहते हैं? इसका उत्तर 41 वर्षीय गंगाराम ने दिया, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ पशुओं से बदतर व्यवहार किया जाता है। वहां की जनता हिन्दुओं के साथ पग- पग पर दुर्व्यवहार करती है। पुकार लेकर पुलिस- प्रशासन के पास जाते हैं तो उलटे हिन्दुओं को ही मारा-पीटा जाता है। हमारी बहू-बेटी अकेली घर से निकल नहीं पाती हैं। बच्चों को स्कूल में इस्लामिक शिक्षा दी जाती है। हम लोगों से खेतों पर दिन-रात काम करवाया जाता है। किंतु उचित मजदूरी नहीं दी जाती है। मांगने पर पिटाई करते हैं। घर और मंदिर में अग्नि लगा देते हैं। इतनी बुरी हालत में हिन्दू वहां हिन्दू के नाते नहीं रह सकता। हम लोग पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे। यदि भारत सरकार हमें यहां नहीं रखना चाहती है, तो गोली मार दे। हम लोग मरना पसंद करेंगे, पर पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे।'
गंगाराम न्यू हला, जिला-मटियारी, सिंध के रहने वाले हैं। इनके परिवार में कुल 46 लोग हैं। घर के सभी पुरुष सदस्य, पाकिस्तान में मजदूरी करते थे और स्त्रियां भय से घर से बाहर नहीं निकल पाती थीं। ये लोग अपने बालकों को स्कूल इसलिए नहीं भेजते थे कि उन्हें इस्लामी शिक्षा दी जाती थी। इन्हें लगता है कि भारत में हिन्दू के नाते वे रह सकते हैं, और खुली हवा में सांस ले सकते हैं।
जब गंगाराम अपनी आपबीती बता रहे थे तब मिट्ठूमल्ल गुमसुम एक किनारे बैठे थे। कुछ पूछा तो उनकी आंखें डबडबा गयी मिट्ठूमल्ल के साथ जो हुआ है उसे जानकर हर किसी का ह्मदय चीत्कार कर उठेगा। मिट्ठूमल्ल ने कहा, 'जिला सांघड़ के जामगोठ गांव में मेरा बड़ा सा घर था और 21 सदस्यीय परिवार के गुजारे के लिए भूमि भी थी। किंतु तीन वर्ष पहले गांव के ही कट्टरवादियों ने हम पर एक झूठा आरोप लगाया और घर जला दिया। जमीन पर भी कब्जा कर लिया। प्राण बचाकर हम लोग गांव से निकल गए और दूर के एक जंगल में छुपकर रहे।
हम लोगों के पास न तो पैसा था और न ही खाने के लिए एक दाना। ऐसी परिस्थितियों में जंगल में कब तक रहते? फिर भी भूखे-प्यासे हम लोग वहां कई दिन रहे। जब भूख सहन नहीं होने लगी तो अपने सम्बन्धियों के यहां गए। सम्बन्धियों ने ही मुकदमा करने को कहा। पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अब हमारा घर किस हालत में है, यह भी नहीं पता, क्योंकि फिर हम लोग कभी गांव नहीं लौट पाए। तीन वर्ष का समय हम लोगों ने जंगल, सड़क के किनारे अथवा किसी सम्बन्धी के यहां बिताया है। कुछ हिन्दुओं ने ही हम लोगों का वीजा बनवाया और अब हम लोग भारत आ चुके हैं। भारत सरकार से विनती है कि वह हमें यहां शरण दे।'
हैदराबाद (सिंध) के अर्जुन दास अपने परिवार के 11 सदस्यों के साथ आए हैं। कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को केवल खेतिहर मजदूर बनाकर रखा जाता है। मजदूरी भी इतनी कम दी जाती है कि अकेले आदमी का भी गुजारा नहीं होता है। कुछ कहने पर कहा जाता है कि मुसलमान बन जाओ हर वस्तु मिलेगी। पाकिस्तान की कुल 25 करोड़ जनसँख्या में केवल 1 प्रतिशत भी हिन्दू नहीं रह गए हैं। हिन्दुओं को बलात इस्लाम स्वीकार करवाया जाता है। मंदिर तोड़ दिए जाते हैं। हम जैसे लोग किसी भी परिस्थिति में अपने पूर्वजों के सनातन धर्म को नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसलिए सब कुछ छोड़कर यहां आए हैं। हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में नहीं लिया जाता है। एकाध हिन्दू किसी सरकारी दफ्तर में काम कर रहा हो तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। सेना और पुलिस बल में तो हिन्दुओं को लिया ही नहीं जाता है।'
सिंध के हाला शहर से आए रामलीला कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को खुलकर सांस भी नहीं लेने दी जाती है। पड़ोसी मुस्लिम बहुत ही बारीकी से हिन्दुओं पर दृष्टि रखते हैं। किसी हिन्दू त्योंहार के आने से पहले ही चेतावनियां मिलने लगती हैं। चाहे होली, दीवाली, रामनवमी अथवा कोई अन्य त्योंहार हो, कहा जाता है जो कुछ करो घर के भीतर करो। पूजा के स्वर बाहर नहीं आने चाहिए। शंख, घंटी आदि बजाना कड़ाई से मना है। त्योहारों अथवा अन्य किसी दिन हिन्दू जब मंदिर जाते हैं, तो मंदिर के बाहर मुसलमान खड़े रहते हैं और कहते हैं मंदिर क्यों जाते हो, मस्जिद जाओ। उनकी बात नहीं मानने पर हिन्दुओं पर आक्रमण किए जाते हैं। घरों में अग्नि लगा दी जाती है।'
हाला शहर के ही चंदर राय की आयु केवल 18 वर्ष है और मोटर मैकेनिक हैं। कहते हैं, 'लोग गाड़ी ठीक करवाकर मुझे पैसे नहीं देते थे। कहते थे मुस्लिम बन जाओगे तो तुम्हारी सारी समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी। किंतु मैं अपने प्राण दे सकता हूं, किंतु धर्म नहीं। पाकिस्तान में हिन्दुओं का कोई भविष्य नहीं है। इसलिए मैंने वहां विवाह भी नहीं किया । सोचा कि जब यहां मैं ही सुरक्षित नहीं हूं तो फिर विवाह करके अपने बच्चों को इस नरक में क्यों झोंकू? पाकिस्तान में हिन्दू जन्म लेता है तो मुसीबत और मर जाए तो और बड़ी मुसीबत। यदि कोइ हिन्दू मर जाता है तो अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता है। मुसलमान कहते हैं मुर्दे को जलाने से सड़ांध आती है, इसलिए उसे दफना दो। यही कारण है कि अपने किसी सम्बन्धी के मरने पर हिन्दू रो भी नहीं पाते हैं। उन्हें लगता है कि यदि रोए तो पड़ोसी मुसलमान को पता लग जाएगा और फिर वे उसे दफनाने पर जोर देंगे। हम लोग अपने किसी मृत परिजन का अंतिम संस्कार चोरी-छुपे रात में कहीं सुनसान स्थान पर करते हैं। शव को अग्नि लगाने के पश्चात भाग खड़े होते हैं।'
डेरा बाबा धुनीदास के संचालक राजकुमार कहते हैं पाकिस्तान से आए इन हिन्दुओं की हर प्रकार से सहायता की जाएगी। उन्होंने हिन्दू समाज से भी कहा कि हिन्दुओं की सहायता के लिए खुलकर आगे आयें। उनके इस आह्वान पर ही कई लोग इन हिन्दुओं की सहायता में लगे हैं। गंगानगर (राजस्थान) के इश्वरदास और फिरोजपुर (पंजाब) के डा.कृष्ण चन्द सोलंकी कागजी कार्यवाही में इन हिन्दुओं की सहायता कर रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता और संसार भर के हिन्दुओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले राजेश गोगना कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को बचाने के लिए वहां अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक मंत्रालय बने। वहां हिन्दुओं को शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाए।' सेन्टर फार ह्रूमन राईट्स एण्ड जस्टिस के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद जगदीप धनकड़ (जो झुंझुनू जिले से हैं और जाट हैं) ने कहा कि भारत इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाए और विश्व बिरादरी में पाकिस्तान को नग्न करे।