ravinderjeet
October 16th, 2011, 11:31 AM
जट्टों के तीज -त्यौहार
में कई दिन तें सोचर्या था अक क्यूकर आजकाल मीडिया अर भामनां ने कसुती ढाल त्यौहार जो के धार्मिक की बजाय सामाजिक होया करदे ,वे सब जूठी कहानी घड=घड के ने जनमानस में एक तरह का डर बिठा दिया अक जो हाम कहवाँ वो-ए धर्म स अर भगवान् स | में इह तागे के माध्यम तें किहे भी त्यौहार का जो के जाट मनावें सें उह का सही अर्थों में विश्लेषण कर्ण की कोशिश करूंगा | बाकी सब भाइयां के विचार और समीक्षआ आमंत्रित सें |
करवा चौथ
यु त्यौहार दुवाली तें ११ दिन पहलम आया करे |करवा , करुआ का अप्भारंश स | करुआ कोरे माटी के बर्तन ने कहया करें जो की नया हो | सामाजिक नियमां के अनुसार म्हारा जीवन ग्राम्य जीवन था अर हर ज़ात आपणे काम खातर दूसरी ज़ात पे निर्भर होया करदी | इह दिन कुम्हार आपणे आपणे जजमान के घरां उनकी जरूत के हिसाब तें बासण, बरोली, कापन, चुघड़े, कुहलियां अर दुसरे माटी के बणे होड़ सामान ले जाया करदे अर उनके बदले में नई आई फसल में हिस्सा लिया करदे (बाजरा जुआर गूआर मूंग मोठ) | पुराणे बासण जिनके मोघे बंद हो जांदे वो इह दिन बदली कर दिया करदे अर पुराने बासण काढावानी या गरम करण खातर या दुसरे नाज पकावन के काम आया करदे | इह तें कुम्हार का भी कम चाल जांदा अर किसान के घर में पुरानी चीज नए काम खातर आजाद हो जांदी | जिन के कई बासण उबर-सुबर जांदे वे छात पे मुदधे मार दिया करदे ,फेर पाछे काम में लयावन खातर ,आज काल कई भाई न्यू सोच के ने बरोली मुदधि मारे सें अक नजर ना लागेगी घर के , पर असल में इस्सी कोए बात ना स , यु बरोली या हांडी मुदधि मारण का रिवाज पुराणे बासण बदली होणे के कारण स, ना की कोए धर्म या नजर के कारण |बासण के उप्पर कापन धर के उह पे गिहूँ जमाया करदे | अर ये काम कुँआरी छोरियां के जिम्मे होया करदा सारे बासण बदलन का | इह काम के बदले में उन् ने एक छोटे करुए (बासण ) भर के ने खील बताशे मिल्या करदे | इह त्यौहार का पूरी तरां सामाजिक ताना बाणा स | पाछले ५०-६० सालाँ तें इह में सुहागन लुगाइयां के आपणे लोग की लांबी उम्र खातर बरत राखन अर चाँद नु देख के छाल्नी में के बरत तोड़अन का रिवाज चाल्या स | ये बरत भामन बानिये के शुरू करे होड़ सें जिनके कब्ज ,बदहजमी अर दूसरी पेट की बिमारी हो जाया करदी पड़ें पड़ें | इह में किहे नकली देवी देवता का कोए रोल कोणी स |
में कई दिन तें सोचर्या था अक क्यूकर आजकाल मीडिया अर भामनां ने कसुती ढाल त्यौहार जो के धार्मिक की बजाय सामाजिक होया करदे ,वे सब जूठी कहानी घड=घड के ने जनमानस में एक तरह का डर बिठा दिया अक जो हाम कहवाँ वो-ए धर्म स अर भगवान् स | में इह तागे के माध्यम तें किहे भी त्यौहार का जो के जाट मनावें सें उह का सही अर्थों में विश्लेषण कर्ण की कोशिश करूंगा | बाकी सब भाइयां के विचार और समीक्षआ आमंत्रित सें |
करवा चौथ
यु त्यौहार दुवाली तें ११ दिन पहलम आया करे |करवा , करुआ का अप्भारंश स | करुआ कोरे माटी के बर्तन ने कहया करें जो की नया हो | सामाजिक नियमां के अनुसार म्हारा जीवन ग्राम्य जीवन था अर हर ज़ात आपणे काम खातर दूसरी ज़ात पे निर्भर होया करदी | इह दिन कुम्हार आपणे आपणे जजमान के घरां उनकी जरूत के हिसाब तें बासण, बरोली, कापन, चुघड़े, कुहलियां अर दुसरे माटी के बणे होड़ सामान ले जाया करदे अर उनके बदले में नई आई फसल में हिस्सा लिया करदे (बाजरा जुआर गूआर मूंग मोठ) | पुराणे बासण जिनके मोघे बंद हो जांदे वो इह दिन बदली कर दिया करदे अर पुराने बासण काढावानी या गरम करण खातर या दुसरे नाज पकावन के काम आया करदे | इह तें कुम्हार का भी कम चाल जांदा अर किसान के घर में पुरानी चीज नए काम खातर आजाद हो जांदी | जिन के कई बासण उबर-सुबर जांदे वे छात पे मुदधे मार दिया करदे ,फेर पाछे काम में लयावन खातर ,आज काल कई भाई न्यू सोच के ने बरोली मुदधि मारे सें अक नजर ना लागेगी घर के , पर असल में इस्सी कोए बात ना स , यु बरोली या हांडी मुदधि मारण का रिवाज पुराणे बासण बदली होणे के कारण स, ना की कोए धर्म या नजर के कारण |बासण के उप्पर कापन धर के उह पे गिहूँ जमाया करदे | अर ये काम कुँआरी छोरियां के जिम्मे होया करदा सारे बासण बदलन का | इह काम के बदले में उन् ने एक छोटे करुए (बासण ) भर के ने खील बताशे मिल्या करदे | इह त्यौहार का पूरी तरां सामाजिक ताना बाणा स | पाछले ५०-६० सालाँ तें इह में सुहागन लुगाइयां के आपणे लोग की लांबी उम्र खातर बरत राखन अर चाँद नु देख के छाल्नी में के बरत तोड़अन का रिवाज चाल्या स | ये बरत भामन बानिये के शुरू करे होड़ सें जिनके कब्ज ,बदहजमी अर दूसरी पेट की बिमारी हो जाया करदी पड़ें पड़ें | इह में किहे नकली देवी देवता का कोए रोल कोणी स |