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View Full Version : sumthing abt haryanvi culture



dahiyarocks
October 31st, 2011, 08:49 AM
हरियाणा केवल राजनीतिक भूभाग ही नहीं बल्कि एक ऐसा ऐतहासिक स्थल है, जिसकी अपनी भौगोलिक सीमाएं हैं। यह प्रांत श्रृष्टि की उत्पत्ति का भी साक्षी है। यहीं पर आदिकाल में वेदों की रचना हुई। विश्व को ज्ञान का भंडार देने वाले ग्रंथ श्रीमदभागवत गीता की वाणी का प्रकाश यहीं से विश्व भर में फैला। इस प्रदेश में कई गांवों के नाम तक संगीत के रागों पर आधारित हैं। यहीं पर सौरंगी को तान देने वाला वाद्ययंत्र पैदा हुआ, जिसे दुनिया में सारंगी के नाम से जाना जाता है।

हरियाणा शब्द भी १९६६ में सामने नहीं आया अपितु सरकारी रिकार्ड में यह अंग्रेजों के समय से ही दर्ज है। उस दौर में हरियाणा दिल्ली सूबे के एक जिले के रूप में था, जिसका भू-क्षेत्र व्यापक था। उसी क्षेत्र को १९६६ में हरियाणा प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किया गया। मुगल काल के अंतिम चरण में हरियाणवी संस्कृ ति अपने उत्कर्ष पर थी। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में यहां के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। वहीं पंजाब के रजावाड़ों ने अंग्रेजों का साथ दिया। यह साथ फौज और रसद दोनों रूपों में दिया गया। अंग्रेज जब १८५७ का गदर कुचलने में कामयाब रहे, तब उन्होंने बतौर सजा दिल्ली सूबे को कई हिस्सों में बांट दिया और यहीं से शुरू हुई हरियाणवीं संस्कृति के क्षरण की दारुण कथा। पतन और पराभव की यह शृंखला १९६६ तक जारी रही है। अंगे्रजों ने इस भू-भाग को पंजाबी रजवाड़ों के हवाले कर दिया । उन्होंने हरियाणवी संस्कृति के उत्थान में तनिक भी सहयोग नहीं किया। इसके कलाकारों को सभी सुविधाओं से वंचित कर दिया गया। नतीजतन कलाकार देश की दूसरें हिस्सों में पलायन कर गए। धीरे-धीरे हरियाणा सांस्कृतिक रूप से खोखला होता गया। इस भू-भाग के अधिकतर कलाकार मुसलमान व मिरासी परिवारों से थे। १९४७ में भारत विभाजन के समय ये कलाकार भी पाकिस्तान पलायन कर गए। यह पलायन हरियाणवी संस्कृति की ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ। आजादी के बाद भी हरियाणवी संस्कृति को किसी भी प्रकार का राजकीय प्रश्रय नहीं मिला। १९६६ के परवर्ती लेखकों ने नाहीं कभी इस मुद्दे पर लेखन किया और नाहीं उस दौर की सरकारों ने इसे दिशा में कोई कार्य किया । इससे हमारे बुजुर्गों का अपनी भाषा और संस्कृति पर से विश्वास उठने लगा था।

यह सब मैंने अपने अध्ययन के दौरान जाना और परखा। यह जानकर ही मैंने हरियाणवी को पुन: प्रतिष्ठित करने का बीड़़ा उठाया । १९७८ तक हरियाणा के एक मात्र कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा समारोहों में १८ प्रतिस्पर्धाओं में एक भी प्रतिस्पर्धा का हरियाणवी में न होना प्रदेश के लिए चिंता का विषय था। १९८४ में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक का पद संभालने के बाद से ही मैंने हरियाणवीं को जीवंत करने की मुहिम पर काम करना शुरू कर दिया। यह वह दौर था, जब आम हरियाणवी भी अपनी लोक भाषा में बात करने में संकोच करता था।

जनवरी, १९८५ में केयू के तत्कालीन कुलपति केके शर्मा (आईएएस)ने मुझसे कहा कि वे प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम एसएच बर्नी की मौजूदगी में विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम करना चाहते हैं। मैंने उन्हें सुझाव दिया, ‘‘हम अपने परिसर में तो कार्यक्रम करते ही रहते हैं, क्यों न यह कार्यक्रम चण्डीगढ़ के टैगोर थियेटर में करें, ताकि हमारी प्रस्तुति को बाहर के लोग भी देख सकें। कुलपति ने मेरे प्रस्ताव पर स्वीकृति की मोहर लगा दी। इस कार्यक्रम की तैयारी करते हुए मैंने सोचा क्यों न इसमें हरियाणवी की एक प्रस्तुति भी शामिल की जाए। १९८२-८३ के दौर में जाने-माने सांगी पं. रामकिशन व्यास के साथ काम करते हुए मैंने देखा था कि हरियाणा के लोक साजिंदे और लोकसाज प्राय: लुप्त हो चुके हैं। उन्हें पुनर्जीवित करने की जरूरत है। इसी विचार से प्रेरित होकर मैंंने उक्त कार्यक्रम में हरियाणा के लोकसाजों और साजिंदों को पेश किया। यही प्रस्तुति बाद में हरियाणवी आर्केस्ट्रा के वर्तमान स्वरूप का आधार बनी। यही हमारे सांग की पुनस्र्थापना की पहली सीढ़ी भी थी।

प्रदेश में हरियाणवी आर्केस्ट्रा के सफल प्रयोग के बाद मैंने इसे पूरे देश में स्थापित करने का प्रयास किया। मैंने दो वर्षों तक विश्वविद्यालयों में युवा समारोह का दायित्व संभालने वाली संस्था एसोसिएशन आफ इंडियन युनिवर्सिटीज, दिल्ली को पत्र लिखा और लोक आर्केस्ट्रा को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं का हिस्सा बनाने की मांग की। हालांकि यह प्रयास फलीभूत न हो सका। सौभाग्य से तीसरे वर्ष ही मुझे एआईयू के कल्चरल बोर्ड का सदस्य मनोनीत किया गया। बोर्ड की पहली बैठक में ही मैंने लोकवाद्यों की दयनीय दशा को तथ्यों सहित सबके सामने रखा। उस बैठक में गहन मंथन के बाद एआईयू ने परीक्षण के रूप में सभी विश्वविद्यालयों के युवा समारोहों में लोक आर्केस्ट्रा शामिल करने का निर्णय लिया। उस वर्ष युवा महोत्सव भी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में ही आयोजित हुुआ। इस कारण देश के लोकवाद्यों की पहली प्रतियोगिता भी कुरुक्षेत्र में ही आयोजित हुई। लोकवाद्यों की इस प्रतियोगिता ने देश भर में खूब धूम मचाई। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी विश्वविद्यालयों ने लोक आर्केस्ट्रा को अपने युवा समारोहों में शामिल किया। इस प्रक्रिया विश्वविद्यालयों ने लोकवाद्यों के पुनरुत्थान में भी अहम भूमिका निभाई । इस प्रयोग से सांस्कृतिक उत्थान को भी बल मिला। हरियाणवी संस्कृति के अध्ययन के दौरान मैंने पाया कि यहां का लोक नाट्य ‘सांग’ प्राय: लुप्त हो चुका है, जबकि प्रदेश में इसकी परंपरा सदियों पुरानी थी। प्राचीन काल में इसे ‘सांगीत’ के नाम से जाना जाता था। वह दौर ऐसा था, जब सांग कलाकार भी लुप्त होते चले जा रहे थे। उस समय सांग और इस जुड़ी सभी विधाओं को पुनर्जीवित करने के लिए हमने हरियाणा की सांस्कृतिक प्रयोगशाला ‘रत्नावली’ को माध्यम बनाया। हमने सांग की सभी विधाओं को एक-एक कर रत्नावली के मंच से उभारना शुरू किया। वह एक ऐसा दौर था जब मंच से हरियाणवी बोलने में वक्ताओं को झिझक होती थी। इस झिझक को खत्म करने के लिए रत्नावली के मंच पर हरियाणवी भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कालांतर में रागिनियों का मजबूत करने के लिए हरियाणवी रागिनियों को रत्नावली का हिस्सा बनाया गया। यह प्रयोग हमने हरियाणवी एकल नृत्य, लोक गायन और चुटकुलों को पुनर्जीवित करने के लिए भी किया। हालांकि यह सब इतनी आसानी से संभव नहीं था। इसके लिए हमें लोक संगीत, लोक नाट्य और लोकवाद्य को लेकर निरंतर कार्यशालाएं आयोजित करनी पड़ीं। इनके माध्यम से लोक कलाकारों को तराशने का कार्य किया गया। इसी का प्रतिफल है कि आज हरियाणा की माटी लोक कलाओं से समृद्ध हो चुकी है। लेकिन इसे प्रक्रिया का अंत नहीं माना जा सकता बल्कि यह तो प्रदेश की संस्कृति को ऊंचाई पर ले जाने की पहली सीढ़ी है।


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dahiyarocks
November 1st, 2011, 08:35 AM
jai haryana

Fateh
November 1st, 2011, 11:36 AM
Dahiya Sahab, thanks for your love and contribution. Haryana, culture or even sangeet was always active on ground and may not be on official level since we were part of punjab and


obeously their punjaby culture and sangeet dominated. I personally feel, till 1966, our sangeet, song, ragnies etc ware quite alive, even Ch Bansi lal in his first tenure as CM, tried to recognise it officially, every dist was given a Public relation officer, a cultural troop who used to sing and act in Haryanvi, Mr Hardhyan was very famouce among PROs of those days. Dounfall started after 1970. Anyway Brother, I am personally greatful to you for your contribution.

dahiyarocks
November 1st, 2011, 11:37 AM
bhai sahab yo anup lather ne likha se.......

mne te khali akhbar mein te chapa se

urmiladuhan
November 5th, 2011, 07:44 PM
[SIZE=3][COLOR=#0000ff] Haryana, culture or even sangeet was always active on ground and may not be on official level since we were part of punjab and


]
To an outsider, the only culture of Haryana may only be agriculture. However, if one goes into the history of haryanvi musical culture, it is found that the popular 'Nautanki' of U.P has roots in the 'Saang' concept of Haryana. In some parts of Haryana, Saang, historically, has focussed on Krishna stories, and from there it travelled to U.P. Saang near Kurukshetra (and its north areas), historically was devotional (unlike how it was in Rohtak area). I think, Saang singers (who are non Jats) would cater to the needs of the dominant population i.e., if Jat dominated, brahmin dominated etc, and that would get relected in their performance. It is also believed that Saang of Haryana is the root of a popular music form of Maharashtra (I don't know the name, perhaps someone more knowledgeful in this area can tell)

deshi-jat
November 5th, 2011, 07:54 PM
It might be "Lavani".


To an outsider, the only culture of Haryana may only be agriculture. However, if one goes into the history of haryanvi musical culture, it is found that the popular 'Nautanki' of U.P has roots in the 'Saang' concept of Haryana. In some parts of Haryana, Saang, historically, has focussed on Krishna stories, and from there it travelled to U.P. Saang near Kurukshetra (and its north areas), historically was devotional (unlike how it was in Rohtak area). I think, Saang singers (who are non Jats) would cater to the needs of the dominant population i.e., if Jat dominated, brahmin dominated etc, and that would get relected in their performance. It is also believed that Saang of Haryana is the root of a popular music form of Maharashtra (I don't know the name, perhaps someone more knowledgeful in this area can tell)

urmiladuhan
November 5th, 2011, 07:56 PM
It might be "Lavani".

I think you may be right - sounds familiar.

JSRana
November 5th, 2011, 08:06 PM
उर्मिला जी इब हम ने इतना ज्ञान त कोन्या पर जो सुना स उस हिसाब त पंडित लख्मीचंद सब त ज्ञानी अर मशहूर सांगी
हुए सँ उन के गुरु थे श्री मान सिंह अर उन के गुरु शायद श्री मवासी नाथ थे | पंडित लख्मीचंद के सांगा मैं ज्यादातर किस्से
धार्मिक कथाओं पर आधारित थे |

urmiladuhan
November 5th, 2011, 08:33 PM
उर्मिला जी इब हम ने इतना ज्ञान त कोन्या पर जो सुना स उस हिसाब त पंडित लख्मीचंद सब त ज्ञानी अर मशहूर सांगी
हुए सँ उन के गुरु थे श्री मान सिंह अर उन के गुरु शायद श्री मवासी नाथ थे | पंडित लख्मीचंद के सांगा मैं ज्यादातर किस्से
धार्मिक कथाओं पर आधारित थे |


Thanks for the good information.

Is it true that most Saangis in Haryana belong to Schedule Caste?

Fateh
November 6th, 2011, 09:50 AM
I have also noticed that most boys who used to act and dance as girls were from schedule caste

ravinderjeet
November 6th, 2011, 12:49 PM
सांग , संस्कृत के स्वांग शब्द का अपभरंश हे | जिसका मतलब नाटक होता हे | उतरप्रदेश में इस्से नौटंकी कहते हैं | महाराष्टर में "तमाशा" कहा जाता हे जो की एक नर्त्यानाटिका होती हे | " लावणी " नर्त्य का एक रूप होता हे और ये तमाशा का एक भाग होता हे | जेसे हरयाना/पंजाब में घूमर और गिद्धा नर्त्या के अलग अलग रूप हैं |

deshi-jat
November 6th, 2011, 07:16 PM
रविन्द्र, इणकी सस्कृति के बारे मै बी बताइये कीमे . कुछ चीज़ तो इणकी हरियाणा तै मिलै सै, जैसे कुश्ती का शौक, पागड़ी का स्टाइल, इत्यादि. इनकी कोई Dish पसंद आई हो तै recipe चेपिये भाई. श्रीखंड/आम्रखंड तो कीमे ठीक- ठाक सा लाग्या




सांग , संस्कृत के स्वांग शब्द का अपभरंश हे | जिसका मतलब नाटक होता हे | उतरप्रदेश में इस्से नौटंकी कहते हैं | महाराष्टर में "तमाशा" कहा जाता हे जो की एक नर्त्यानाटिका होती हे | " लावणी " नर्त्य का एक रूप होता हे और ये तमाशा का एक भाग होता हे | जेसे हरयाना/पंजाब में घूमर और गिद्धा नर्त्या के अलग अलग रूप हैं |

singhvp
November 6th, 2011, 08:34 PM
उर्मिला जी इब हम ने इतना ज्ञान त कोन्या पर जो सुना स उस हिसाब त पंडित लख्मीचंद सब त ज्ञानी अर मशहूर सांगी
हुए सँ उन के गुरु थे श्री मान सिंह अर उन के गुरु शायद श्री मवासी नाथ थे | पंडित लख्मीचंद के सांगा मैं ज्यादातर किस्से
धार्मिक कथाओं पर आधारित थे |


राणा साहब, आप नै ठीक कह्या, पंडित लखमी चंद बढ़िया सांगी होने के साथ साथ हरियाणवी बोली के बहुत बढ़िया lyricist भी थे I खड़े पैर, रागनी घड़ दिया करदा पंडित जी I बतावें सें एक बार लख्मीचंद किसे गाम मैं गया तो गाम की छोरी आर लुगाई घरां की मुंडेर पर चढ़ गी उसने देखण की खातर I
लखमी चंद नै फटाफट न्यू रागनी घड़ दी थी :

लखमी चंद का गाम सै जांटी ढाई कोस लंडेरे तें
कदे पड़ के नाड़ तुड़ा ले नै छोरी, हट दूर मन्डेरे तें

न्यू बतावें सें छोरी नै उसे टेम मुंडेरे तें छलांग मार दी थी लखमी की कविता पे मोहित हो के , फेर बेरा नहीं के होया I
या बात कितनी साची सै या तो रोहतक आले भाई बतावंगे
उसका गाम शायद रोहतक जिले मैं था I

वैसे धनपत सिंह आर चंद्रबादी भी आछे सांगी माने जाते थे. धनपत का सांग तो मन्ने भी देख राख्या सै

VPannu
November 7th, 2011, 03:16 AM
राणा साहब, आप नै ठीक कह्या, पंडित लखमी चंद बढ़िया सांगी होने के साथ साथ हरियाणवी बोली के बहुत बढ़िया lyricist भी थे I खड़े पैर, रागनी घड़ दिया करदा पंडित जी I बतावें सें एक बार लख्मीचंद किसे गाम मैं गया तो गाम की छोरी आर लुगाई घरां की मुंडेर पर चढ़ गी उसने देखण की खातर I
लखमी चंद नै फटाफट न्यू रागनी घड़ दी थी :

लखमी चंद का गाम सै जांटी ढाई कोस लंडेरे तें
कदे पड़ के नाड़ तुड़ा ले नै छोरी, हट दूर मन्डेरे तें

न्यू बतावें सें छोरी नै उसे टेम मुंडेरे तें छलांग मार दी थी लखमी की कविता पे मोहित हो के , फेर बेरा नहीं के होया I
या बात कितनी साची सै या तो रोहतक आले भाई बतावंगे
उसका गाम शायद रोहतक जिले मैं था I

वैसे धनपत सिंह आर चंद्रबादी भी आछे सांगी माने जाते थे. धनपत का सांग तो मन्ने भी देख राख्या सैyo manne bhi sun rakha hai kissa. AFAIK, Pt. Lakhmi chand ka gaam i.e. jaanti , Rohtak me kona. yo aave se G T Road pe khabbe haath, Rai sports school ar Narela ke beech me..Sonipat te dilli jaate huve.

JSRana
November 7th, 2011, 01:46 PM
Thanks for the good information.

Is it true that most Saangis in Haryana belong to Schedule Caste?

उर्मिला जी, इतना घणा ज्ञान त मंने न स पर जो सुना स उस के हिसाब त बाह्मण सब त घणे और मशहूर सांगी हुए सँ |जैसे दीप चाँद बाह्मण (राय साहब ), पंडित नथूराम, भरतू बाह्मण, पंडित लखमी चंद, पंडित मांगे राम वगेरा वगेरा | (पंडित दीप चंद त अंग्रेजों ने राय साहब की उपाधि दी थी अर सुना स पंडित लखमी चंद के त सात खून माफ़ थे)

वैसे सांग क़ी शुरुआत किशन लाल भाट न उत्तर प्रदेश मे करी थी अर अनूसूचित जाती आला का भी सांग क़ी उन्नति मैं बहुत बड़ा योगदान रहा सै |

धन्यवाद् सहित |

JSRana
November 7th, 2011, 02:49 PM
राणा साहब, आप नै ठीक कह्या, पंडित लखमी चंद बढ़िया सांगी होने के साथ साथ हरियाणवी बोली के बहुत बढ़िया lyricist भी थे i खड़े पैर, रागनी घड़ दिया करदा पंडित जी i बतावें सें एक बार लख्मीचंद किसे गाम मैं गया तो गाम की छोरी आर लुगाई घरां की मुंडेर पर चढ़ गी उसने देखण की खातर i
लखमी चंद नै फटाफट न्यू रागनी घड़ दी थी :

लखमी चंद का गाम सै जांटी ढाई कोस लंडेरे तें (ननेरे त ) (नरेला)
कदे पड़ के नाड़ तुड़ा ले नै छोरी, हट दूर मन्डेरे तें

न्यू बतावें सें छोरी नै उसे टेम मुंडेरे तें छलांग मार दी थी लखमी की कविता पे मोहित हो के , फेर बेरा नहीं के होया i
या बात कितनी साची सै या तो रोहतक आले भाई बतावंगे
उसका गाम शायद रोहतक जिले मैं था i

वैसे धनपत सिंह आर चंद्रबादी भी आछे सांगी माने जाते थे. धनपत का सांग तो मन्ने भी देख राख्या सै

विजय पल जी आप ने सही कहा | मंने भी सुना स यो किस्सा | एक और किस्सा बतावां सँ पंडित जी न एक छोरी जो
चुबारे क़ी खिड़की मे त सांग देखै थी उस प् तुरत या अल्बादी रागनी बनाई |
तेरी झाँखी के मैं गोला मारू बाँट गोपीया सन का |
एक निशाना चुकण दू न छलिया बालक पण का |


और भी कई किस्से सँ पंडित लखमी चंद के | पर सुना स वो पढ़ा लिखा भी कीमे न था अर ईतना ज्ञान भरा पड़ा स
उस के रचनाओ मे |एक cd सै 'लखमी चंद का ब्रह्म ज्ञान' कदे फुर्सत हो त सुन क देखना | उस न सुन क त न लागता
के वो अनपढ़ था |
धन्यवाद् सहित |

urmiladuhan
November 7th, 2011, 03:20 PM
jai haryana

Ditto!!!!!!!!!!!

urmiladuhan
November 7th, 2011, 03:22 PM
एक cd सै 'लखमी चंद का ब्रह्म ज्ञान' कदे फुर्सत हो त सुन क देखना | | [/font]|[/font][/color]



Kindly post few excerpts, if possible.

JSRana
November 7th, 2011, 04:10 PM
Kindly post few excerpts, if possible.

please open the link below.

http://www.youtube.com/watch?v=83vaB9Er91E&feature=related

Thanks.

deshi-jat
November 8th, 2011, 03:08 AM
वीपी सिंह जी, यो रागनी सुणै बोहोत साल हो लिए कोई लिंक हो तो चेपियो




लखमी चंद का गाम सै जांटी ढाई कोस लंडेरे तें
कदे पड़ के नाड़ तुड़ा ले नै छोरी, हट दूर मन्डेरे तें